लोकतंत्र अथवा तानाशाही ?
कहने को तो हमारे देश में लोकतंत्र है! लेकिन क्या ये सच है ? क्या वास्तव में हमारे नेतागण लोकतंत्र का पालन करते हैं ?
कलमाड़ी मुद्दा गायब
2G scam का मुद्दा गायब
काले धन का मुद्दा आएगा तो भटका देंगे!
लोकपाल बिल का मुद्दा भी भटका दिया.
FDI के मुद्दे को जबरदस्ती बीच में घुसाकर.
मनमानी करेंगे! जब सरकार को निजी खतरा दिखेगा तो वह--
अनशनकारियों को पिट्वाएगी
इमानदार अफसरों को मरवा देगी अथवा उन पर ऊँगली उठा उनकी छवि धूमिल करेगी.
कर्तव्यनिष्ठों को पुरस्कृत करना तो इस सरकार के अहम् के खिलाफ है...
देशभक्ति की बातें करने वालों से सरकार को विशेष खतरा महसूस होता है! ऐसा क्यों आखिर ?
यही हमारे देश में लोकतंत्र है देश के विकास सम्बन्धी निर्णय मतैक्य से लेने चाहिए ना कि मनमानी करनी चाहिए..
या फिर देश का सबसे बुद्धिमान व्यक्ति प्रधानमन्त्री ही है ? दुसरे सभी मूर्ख हैं?
हम इस देश में रहने , खाने , चलने का टैक्स तो भरें , लेकिन देश के मामले में दखल देने का कोई अधिकार नहीं ?
यह देश हम सबका है अथवा तानाशाहों का है केवल ?
29 comments:
विचारोत्तेजक पोस्ट !
इस देश में लोकतंत्र का उपयोग केवल अपने स्वार्थ की पूर्ति के लिए किया जाता है ! अगर लोकतंत्र मजबूत होता तो जनता कभी भी कमज़ोर और बेबस नहीं होती और ऐसे घोटाले भी नहीं होते !
आभार !
सार्थक, सामयिक, यथार्थ.
जनता का है। और जनता सब दिमाग में रखती है और सारा हिसाब किताब चुका लेती है वक़्त पड़ने पर।
तानाशाही ही है
लोकतंत्र होता तो क्या राहुल विन्ची जैसा गधा स्वघोषित प्रधानमन्त्री होता? क्या सोनिया मायनों जैसी चुड़ैल सुपर प्रधानमंत्री होती? मनमौनी राजा प्रधानमंत्री होते हुए भी क्या कठपुतली होता?
लोकतंत्र है kahaan?
लोक आवाज़ को कुचल दिया जाता है, तो यह कैसा लोकतंत्र?
मैं तो कहता हूँ की कांग्रेस को खुद को गद्दाफी की नाजायज़ घोषित कर देना चाहिए| हालांकि कांग्रेसी तानाशाही देखकर तो नरक में बैठी गद्दाफी की आत्मा भी हीन भावना का अनुभव कर रही होगी|
लेकिन कब तक चलेगी तानाशाही| भारत के सभी लोग तो मूर्खों की तरह शांत नहीं बैठ सकते न| कुछ डॉ. सुब्रमण्यम स्वामी, बाबा रामदेव, आचार्य बालकृष्ण, नरेंद्र मोदी जैसे शेर भी हैं|
अभी तो प्रतीक्षा कीजिये आठ दिसंबर की, जब चिदंबरम जैसे धूर्त की तिहाड़ यात्रा का आयोजन होगा| डॉ. स्वामी ने उसे लपेटे में ले लिया है और उसके खिलाफ सारे सबूत भी जुटा लिए हैं|
हम सब इस देश में रहने, खाने, चलने का टैक्स तो भरें, लेकिन देश के मामले में दखल देने का कोई अधिकार नहीं|
बिलकुल सही कहा है आपने| अब ऐसे तंत्र को लोकतंत्र को कतई नहीं कहा जा सकता|
दिव्या दीदी, हमेशा की तरह एक और बेहतरीन लेख|
विचारणीय बिन्दु हैं ... सार्थक व सटीक लेखन ।
मुझे तो लगता है कि भारत देश को कांग्रेस ने हाईजैक कर लिया है।
गद्दाफी जैसों की तानाशाही तो इनसे अच्छी थी, क्योंकि कम से कम वहां की जनता को इस बारे में मालूम तो था और यहां की जनता को भ्रम है कि वे स्वतंत्र देश के नागरिक हैं।
प्रणाम
कांग्रेस में लोकतंत्र को कोई स्थान नहीं है क्या कभी कोई नेहरु परिवार के अतिरिक्त अध्यक्ष हुआ ? ----और मनमोहन तो नौकर की भूमिका में है उनकी हैसियत तो प्रियंका के बच्चे से भी कम है सोनिया को तो देश से जाना है इस नाते वह जितना बर्बाद कर सकती है करेगी ही ,क्या किया जय बिपक्ष भी कुछ नहीं कर रहा.
सर्वसहमति ही आधार बने।
badiya saarthak aur vicharniya prastuti..
लोकतंत्र तो जनता को बहलाने का एक झुनझुना है :)
हमारे देश का लोकतंत्र सरकार और मीडिया मिल के चलाते हैं ...
इन दिनों लोकतंत्र में से लोक गायब है, और तंत्र भी। इन शब्दों के स्थान पर ताना और शाही नजर आ रहा है।
सुरेश चिपलूणकर जी की यह पोस्ट भी पढ़ लें -
'वोटिंग मशीनों से छेड़छाड़ फ़िर उजागर…:- सात में से पाँच वोट हमेशा कांग्रेस को'
बहुत सुन्दर प्रविष्टि...वाह!
I think once in power, democratic elected leaders become dictator.
दिव्या जी केवल तानशाही होती तो लोगों को समझ में भी बात आती पर यहां सत्ता के बैठने वाले नेता डेमोक्रेटिक डिक्टेटर है। जनता को लोकतंत्र का अफीम पिलाते है और फिर डंडा खिलाते है।
आपने सभी मुददे सटीक उठायें है पर जनता जागे तो बात बने।
सार्थक सटीक विचारणीय लेख..
satya se rubru karti behtarin post..sadar pranam ke sath
this is old way of taking peoples mind away from politcis , i fear that the terrorist attacksand all are also GOVT sponsored ..
Indian politics is a Dirty game
Bikram's
देश तो सभी का है जो इस समय तानाशाह होकर शासन कर रहे हैं... वे अपने प्रति क्रोध और घृणा तो जनमानस में भर ही चुके हैं... बस उनका रिजल्ट मिलना उनको बाक़ी है.
रिजल्ट गद्दाफी टाइप भी हो सकता है और गांधी टाइप भी... (गांधी में अब तक के सभी पापुलर गांधियों की बात करता हूँ. )
अब्राहम लिंकन की परिभाषा है - लोकतंत्र जनता का, जनता के लिए और जनता द्वारा शासन है..
इसलिये मेरा मानना है ... जो जनता की इच्छा के विरुद्ध जायेगा... वह अंततः पछतायेगा..
बहुत गुस्सा है आपको..
देश के बर्बादी के सिर्फ दो कारण है.. ना आप कुछ कर सकती हैं, ना मै कुछ कर सकता हूं। होता वही है जो होता रहता है।
लेकिन उम्मीद बाकी है.. कभी ना कभी तो उजाला होगा ही...
With due apologies to Abraham Lincoln, nowadays, democracy is rightly defined as, Government off the people, far (from) the people and buy the people ! Unfortunately we have to live with this fact, whichever party or coalition is in power.
sare mudde gayab hote ja rahe hain.....yahi to vidambna hai.
IN INDIA THERE IS NO DEMOCRACY ... ONLY LOOTTRANT
व्यवस्था की बदहाली के पीछे सदियों से अनपढ़ जनता में राजनीतिक जागरूकता की कमी और नीतियों के प्रति नितांत अनभिज्ञता है. इसी का लाभ राजनीतिक पार्टियाँ उठाती हैं. अब समय बदल रहा है. हमें आशावान होना चाहिए.
दिव्या जी ........ जिसकी लाठी उसकी ही भैंस होती है ......
विचारणीय लेख.
ये पब्लिक है,सब जानती है.
आपकी प्रस्तुति विचारोत्तेजक है.
मुश्किल है कि जनता में मतभेद है,जिसका का लाभ सरकार
उठाती आ रही है.
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