फिरंगियों के साथ मिलकर सरकार 'रामसेतु' को क्यों तोडना चाहती है? क्योंकि
उस समुद्री इलाके में अकूत रेडियोएक्टिव संपदा भरी हुयी है , जिससे आगामी
200 वर्षों तक बिजली बनायी जा सकती है! अमेरिका की निगाह , हमारी इसी
सम्पदा पर है!
और सरकार ? ---वो तो फिरंगियों का ही साथ देती है
हमेशा ! हिन्दू धर्म का दोहन तो उसका मुख्य अजेंडा है। उसे न तो रामसेतु से
कोई मतलब है, न ही पर्यावरण से और न ही करोड़ों हिन्दुओं की आस्था से!
भारतीयों एकजुट हो जाओ , मत टूटने दो रामसेतु को, मत लुटने तो अपनी पौराणिक , ऐतिहासिक धरोहर को और इस अकूत सम्पदा को!
15 comments:
प्रभावी लेखन -
आभार -
इसके ऊपर पचोरी रिपोर्ट भी है की इस सेतू का टूटना पर्यावरण के लिए खतरनाक है ... पर सरकार फिर भी चाहती है ...
वो तो लुटकर रहेगा चंद जयचंदो की मदद से
सही कहा है आपने !!
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धन्यवाद
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यह तो राष्ट्रीय धरोहर घोषित किये जाने योग्य है.
सहमत हूँ!
आपकी पोस्ट 27 - 02- 2013 के चर्चा मंच पर प्रस्तुत की गई है
कृपया पधारें ।
न्याय व्यवस्था भी सोनिया गांधी की पिल्ली बन चुकी है। अब कोर्ट कचहरी से भी कुछ न होगा।
कसम खाओ कि सेतु को नहीं टूटने देना है, चाहे जो कीमत चुकानी पड़े। कम से कम अपने साथ तो न्याय करना है।
थोड़े से थोरियम के लालच में क्या भगवान् राम की स्मृति को बेच देंगे? हिन्दू हो तो जागो और सोये हों को जगा दो, वरना खुद को हिन्दू न कहना कभी।
विचारणीय और चिंतनीय . धर्म की रक्षा होनी चाहिए
सही कहा है आपने...पर सरकार को तो अपने मन की करने पर ही ख़ुशी मिलती है ..
"कुछ विशिष्ट वास्तु विषय हमारी अस्मिता के स्मृति चिन्ह होते हैं
स्मृतियों का भ्रंश, विभ्रम को जन्म देता है....."
धरोहरों को बचा कर रखा जाये।
लेख के साथ १९ सितम्बर १९०७ की २० बरस पुरानी सटेलाईट पिक्चर इस बात का स्वयं सिद्ध प्रमाण है कि भगवान राम ने त्रेता युग में नल नील जैसे इंजीनियर की देखरेख में कन्याकुमारी से श्रीलंका तक सेतुबंध का निर्माण कर वहाँ पर शिवलिंग स्थापित किया था.
मेरे पिताजी स्व० श्री रामलाल जी आज से ८० वर्ष पूर्व शाहजहाँपुर से पैदल यात्रा करके सेतुबन्ध रामेश्वर गंगाजल लेकर गये थे. उस समय मेरा जन्म भी नहीं हुआ था. मुझे वह बचपन में वहाँ की कहानियाँ अवश्य सुनाया करते थे.
आज हम शिक्षित तो हो गये हैं किन्तु धर्म-कर्म में हमारी आस्था अंग्रेजी शिक्षा के दुष्प्रभाव के कारण समाप्त होती जा रही है.
लगता है यह सरकार जाते-जाते राक्षसी कार्य करने पर आमादा हो गयी है. समय रहते इसका पुरजोर विरोध होना ही चाहिये.
इसी सेतु के कारण हमारे सागर तट बहुत सी विपदाओं से बचे रहते हैं!
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