Tuesday, February 26, 2013

अब चाह नहीं है जीने की ..

अब चाह नहीं है जीने की ..
हर , तरफ है फटेहाल , अब नहीं ऊर्जा सीने की।

'यत्र पूज्यते नार्यस्तु'  के देश में अस्मिता लूटी जा रही पल-पल
बिलख रही हर बच्ची-बच्ची , भारत-माता सिसक रही
अब चाह नहीं है जीने की ...

कृष्ण-राम की भूमि पर , हिन्दू का कत्लेआम मचा
जीने का हक छीना उनसे, चहुँओर हो रहा नरसंहार
अब चाह नहीं है जीने की ...

सदियों से दिल में बसी आस्था के प्रतीक मंदिरों को नष्ट किया
छीन भरोसा जनता का अपनों का ही प्रतिकार किया
अब चाह नहीं है जीने की ...

दैत्य दानवों के मुख के जैसा, आतंकवाद मुख फाड़ रहा,
किया बसेरा डर ने, उर में --अंतर्मन भयभीत किया,
अब चाह नहीं है जीने की ..

अकूत सम्पदा के धनी नगर में, चोर-बाज़ार गरम हुआ
 कोयले से कौप्टर तक का,  मक्कारों ने व्यापार किया
अब चाह नहीं है जीने कि…

 रामसेतु को एडम्स-ब्रिज कह, गद्दारों ने लूट लिया,
लम्पट,  अधम, हिंसक-मानुष ने,  गो-माता का खून पीया,
अब चाह नहीं है जीने की ..

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टूट-टूट कर प्यार किया, हर बात तुम्हीं से कह डाली ,
उसपर से तुमने इल्जाम लगा , सब छीन लिया, सब छीन लिया.
अब चाह नहीं है जीने की ...

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Zeal








14 comments:

Ramakant Singh said...

आप सच कहती हैं किन्तु जीना यहाँ मरना यहाँ इसके सिवा जाना कहाँ फिर दिशा नहीं तो दशा बदल देंगे .नया पोस्ट
http://zaruratakaltara.blogspot.in/2013/02/blog-post_26.html

kuldeep thakur said...

आप की ये रचना शुकरवार यानी 01-03-2013 को http://www.nayi-purani-halchal.blogspot.com पर लिंक की जा रही है।
सूचनार्थ।

ANULATA RAJ NAIR said...

मन की व्यथा को अच्छी तरह अभिव्यक्त किया है....
वर्तमान परिस्थियों में ऐसे भावों का आना स्वाभाविक है...

अनु

प्रतिभा सक्सेना said...

आप यह क्या कह रही हैं !
आपकी सारी ऊर्जा कहाँ है?
यह क्षणिक निराशा है,क्योंकि दीनता और पलायन आपके स्वभाव में नहीं है.
'उत्तिष्ठ जाग्रत प्राप्य वरान्निबोधत'

अज़ीज़ जौनपुरी said...

bas yahi likhuga " mere sine me nahi to tere sine me sahi,ho kahi bhi aag jalni chahiye..(Dushyant)

Dinesh pareek said...

बहतरीन प्रस्तुति बहुत उम्दा ..भाव पूर्ण रचना .. बहुत खूब

आज की मेरी नई रचना जो आपकी प्रतिक्रिया का इंतजार कर रही है

ये कैसी मोहब्बत है

खुशबू

Dinesh pareek said...

बहतरीन प्रस्तुति बहुत उम्दा ..भाव पूर्ण रचना .. बहुत खूब

आज की मेरी नई रचना जो आपकी प्रतिक्रिया का इंतजार कर रही है

ये कैसी मोहब्बत है

खुशबू

Rajendra kumar said...

मन की व्यथा का सुन्दर भावपूर्ण प्रस्तुतीकरण.

Pratibha Verma said...

बहुत ही सुन्दर और सार्थक प्रस्तुति ...

आप भी पधारें
ये रिश्ते ...

प्रवीण पाण्डेय said...

चाह रहेगी, राह रहेगी, जीने की,
आग रहेगी और बुझेगी सीने की।

दिवस said...

बहुत सुन्दर कविता।
परन्तु कविता में निहित भावों पर प्रसन्न नहीं हुआ जा सकता। आपकी लेखनी में वे सभी गुण हैं जो सोचने पर मजबूर कर दें। बहुत दर्द है इन पंक्तियों में।

कालीपद "प्रसाद" said...

जिंदगी हिम्मत से जीने का नाम है ,क्षणिक निराशा में जीने की इच्छा छोड़ देना उचित नहीं है - लेकिन रचना अच्छी है
latest post मोहन कुछ तो बोलो!
latest postक्षणिकाएँ

ePandit said...

हम वंशज हैं राम-कृष्ण के हिम्मत नहीं हारेंगे,
मुकाबला कर गद्दारों का एक दिन फिर रामराज लायेंगे।

KRANT M.L.Verma said...

दिव्या जी! जब हृदय में, होता हा! हा! कार!
कहें 'क्रान्त' तब फूटती, कविता की रसधार!!

यूँ ही बस लिखती रहिये!
कभी तो "वह" पढ़ लेगा!!