Monday, March 4, 2013

अपना-अपना झरोखा ..

अजीत जी का एक आलेख पढ़ा , बहुत बढ़िया लिखा है, बस एक ही बात खटकी --"चिड़ियाघर"...मन तैयार नहीं ये मानने को की ब्लौगजगत एक चिड़ियाघर है और ब्लॉगर्स उस चिड़ियाघर का हिस्सा।

वाणी जी का तर्क बहुत अच्छा लगा- "अपने दिल की बात सच्ची-सच्ची लिखने का दम होना चाहिए बस "

एक दशक पूर्व तक हिंदी ब्लौगिंग का कोई नामो-निशान नहीं था ! लोग अपने मन की बात न कह पाते थे , ना ही लिख पाते थे!  लेकिन अब ये लाचारी नहीं है हमारे सामने। हिंदी ब्लौगिंग ने एक नया आयाम दिया है! आम जनता अपने मन की बात और अपने विचारों को सबके समक्ष रख सकती है।

हर व्यक्ति अपनी रूचि और ज़रुरत के अनुसार विभिन्न विषयों पर अपनी लेखनी चला रहा है, और इसी से लेखन में विविधता का भी कोई अभाव नहीं महसूस होता और पूरा ब्लॉगजगत इन्द्रधनुषी रंगों से सजा हुआ दिखता है।

किसी भी ब्लौग पर क्लिक करो, लोग अपनी-अपनी मासूम सी भाषा में अपने ह्रदय के भावों को निचोड़ कर रखे होते हैं। सभी को पढने में अलग ही आनंद आता है।

राजनीति पर पढना और लिखना सबसे ज्यादा अच्छा लगता है---

जो भरा नहीं है भावों से , बहती जिसमें रसधार नहीं,
वो ह्रदय नहीं है पत्थर है, जिसमें स्वदेश का प्यार नहीं।

Zeal

14 comments:

virendra sharma said...


असल बात है अभिव्यक्त होना अपनी सी कह पाना .जो अन्दर है वह बाहर .यमक और श्लेष अलंकरण के लिए संसद ही बहुत है .फिर चिड़िया- घर तो है भी संरक्षणगृह विलुप्त प्राय प्राणियों का .यहाँ

भी क्रोकोडाइल से लेकर डोल्फिन तक सब कुछ है शार्क भी हैं .अनामदार भी .बे -नामी चिठ्ठे भी हैं .

रविकर said...

सुन्दर प्रस्तुति है आदरेया-
आभार ||

भारतीय नागरिक - Indian Citizen said...

बहुत कुछ अच्छा भी है और बुरा भी. उद्देश्य अलग हैं लेकिन प्लेटफार्म बहुत अच्छा है.

Ramakant Singh said...

आपकी बातों से पूर्णतः सहमत

दिवस said...

सबसे पहले तो ब्लॉग जगत में अपने मन कि बात लिखने की स्वतंत्रता है दूसरी बात हमे जो ज़रूरी लगता है वह लिखते हैं।
मेरा देश गर्त में जा रहा है तो मैं क्यों न लिखूं राजनीति पर? मुझे तो लगता है कि आज सबसे ज़रूरी विषय ही यही है। दिल्ली में बैठे लोग राजनीति नहीं कर रहे, वे षड़यंत्र कर रहे हैं। हम किसी भी निगेटिविटी को राजनीति नहीं कह सकते। राजनीति एक बहुत सुंदर शब्द है, उसे गाली की तरह इस्तेमाल करना गलत है।
लिखने वाला वही लिखता है जिससे कुछ अच्छा हो सके। हमने तो कलम को थाम ही इसलिए था कि किसी प्रकार इस देश के लिए कुछ कर सकें। बाकी मनोहर कहानियां लिखने वालों की बात हम नहीं कर रहे।
मेरे लिए ब्लॉगिंग कोई टाइम पास नहीं है। यह कोई एम्बीशन भी नहीं, बल्कि एक मिशन है। देश की समस्याओं को अखबार में पढ़कर भी यदि दिमाग में हलचल न हो, तो हमारा दिमाग ही खराब है। अखबार का इंतज़ार होता ही इसलिए है कि देखें हमारे देश में हो क्या रहा है? कहीं कुछ गलत तो घटित नहीं हुआ? यदि हुआ तो उसे कैसे सुधर जाए, बस यही कोशिश रहती है।
और हाँ जब तक इस देश का गौरवशाली स्वरुप हम नहीं पा लेते, तब तक इस विषय से ज़रूरी कुछ नहीं।

आपकी पोस्ट अच्छी लगी। आपका कहना वाजिब लगा। अजीत गुप्ता जी का लेखन अच्छा है किन्तु वही आपत्ति मेरी भी है जो आपकी है।

Tamasha-E-Zindagi said...

सार्थक प्रस्तुति |


कभी यहाँ भी पधारें और लेखन भाने पर अनुसरण रूप में स्नेह प्रकट करने की कृपा करें |
Tamasha-E-Zindagi
Tamashaezindagi FB Page

अज़ीज़ जौनपुरी said...

sach likha hai ,sundar likha hai,agar aap khul kar bol aur likh
nahi sakte to jine ka arth hi kho jayga,"sach kahna agar bagavat hai to samjho ham bhi bagi hai.....

प्रवीण पाण्डेय said...

सबको अपनी बात रखने का अधिकार है, यही क्या कम है?

वाणी गीत said...

ब्लॉग यह स्वत्रता तो देता ही है !
आपको अच्छा लगा , जानकर और भी अच्छा लगा !

Shah Nawaz said...

सहमत हूँ आपसे...

vandana gupta said...

ब्लोग तो है ही स्व अभिव्यक्ति का स्वतंत्र माध्यम और क्या चाहिये :)

Asha Joglekar said...

चिडिया घर तो नही है ये । एक समाज है यह भी समाज के भीतर समाज । गणतांत्रिक समाज जहां पर आजादी है अभिव्यक्ति की ।

Prabodh Kumar Govil said...

kuchh kahne pe toofaan utha leti hai duniya, chup rahne pe kahte hain ki ham kuchh nahin kahte.

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