Wednesday, March 20, 2013

शालू और टिंकू..


विश्व गोरैय्या दिवस है आज --

विलुप्त होती पक्षियों की प्रजाति को बचाईये! गर्मी के मौसम के आगमन पर अपनी छतों और बागीचे में पक्षियों के लिया दाना और पानी रखिये!

बचपन में हमारे पुराने घर में , छतों के नीचे लकड़ी की बल्लियाँ लगी रहती थीं। उन्हीं बल्लियों में गौरैय्या का एक जोड़ा रहता था ! माँ ने उनका नाम शालू और टिंकू रखा हुआ था ! हम भाई बहन शालू-टिंकू के साथ ही पले बढे।

आज सबसे दुखद ये है की गौरैय्या अब विलुप्त होती जा रही है!




41 comments:

रविकर said...

आवश्यक आवाह्न-
शुभकामनायें आदरेया-

Unknown said...

ये जो गौरैया होती है न बहुत अपनी सी लगती है एकदम हमारे परिवार की तरह. और अपने परिवार को कौन नहीं बचाना चाहेगा .. कुछ छोटे से प्रयास से इस लुप्त होती खुशी को बरकरार रख सकते है हम .. गंभीर प्रयास की आवश्यकता है

पी.सी.गोदियाल "परचेत" said...

इंसान प्रजाति का बहसी जानवर जो फलफूल रहा है इसलिए बाकी प्रजाति के पशु-पक्षी तो विलुप्त होंगे ही !

पूरण खण्डेलवाल said...

विलुप्त हो रहे जीव जंतुओं को बचाना चाहिए !!

Maheshwari kaneri said...

सच है चिन्ता की बात तो है..

Kajal Kumar's Cartoons काजल कुमार के कार्टून said...

काश समय रहते चेत जाएं हम

दिवस said...

सच में। गर्मी के इस मौसम में पानी की प्यास बहुत बुरी है। भोजन के बिना जीना फिर भी सरल है किन्तु पानी के बिना असंभव। पक्षियों व जानवरों को भी पानी की उतनी ही ज़रूरत है जितनी कि हमे।
हमारे घर पर भी पक्षियों के लिए छ पर पानी की ऐसी ही व्यवस्था है। साथ ही जानवरों के लिए घर के बाहर १५-२० ईंटों की सहायता से एक छोटी सी टंकी बना रखी है। जिससे बाहर घूमने वाले कुत्ते पानी पी सकते हैं।
पहले नालियां होती थीं तो कुत्तों को पीने का पानी मिल जाता था। किन्तु अब सीवर लाइन के कारण इन बेचारे कुत्तों को पानी की बहुत किल्लत है। पानी की बहुत ज़रूरत है इन बेजुबान जानवरों को।
गौरैया की लुप्त होती प्रजाति को बचाने के लिए अपने घरों की छत पर पानी की व्यवस्था करें व घर के बाहर इन कुत्तों के लिए थोडा सा पानी इन जानवरों को जीवन दे सकता है।
याद रखिये, प्यास बहुत बड़ी तकलीफ है। इसे झेल पान आसान नहीं। इन बेजुबान जानवरों का दर्द समझें।

Rajendra kumar said...

बहुत ही सार्थक आह्वान,हमारे गैर जिम्मेदराने कार्य से पर्यावरण दूषित हो रहा है.

Aruna Kapoor said...

...चिडियों की चहचहाहट से जागने वाले हम लोग!...कभी सोचा भी नहीं नहीं था कि एक दिन ऐसा भी आएगा कि ...कि गोरैया(चिडिया) को ले कर 'दिन' भी मनाना पडेगा!..आपकी यादों के साथ हम भी जुड़े हुए है दिव्या जी!

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...


आज विश्व गौरय्या दिवस है!

खेतों में विष भरा हुआ है,
ज़हरीले हैं ताल-तलय्या।
दाना-दुनका खाने वाली,
कैसे बचे यहाँ गौरय्या?

Bhola-Krishna said...

दुखती रग पर हाथ रख दिया तुमने दिव्या ,याद दिला दी अम्मा औ प्यारी गौरैया!
अस्सी वर्ष पूर्व कानपुर सी नगरी में
हम जगते थे जब जग जाती थी गौरेया!

वो आती थी आंगन में चुनने को दाने
जिन्हें डाल अम्मा जातीं थीं 'गंगनहाने
घंटों बिस्तर पर चुप लेटे हम सुनते थे
उनकी चूँ चूँ में "हरिनामी" मधुर तराने

धन्यवाद ,शुभ कामनाएं

प्रवीण पाण्डेय said...

हमारा भी बचपन इन्हें घन्टों फुदकते हुये देखने में बीता है।

डॉ. दिलबागसिंह विर्क said...

आपकी पोस्ट 21 - 03- 2013 के चर्चा मंच पर प्रस्तुत की गई है
कृपया पधारें ।

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प्रतिभा सक्सेना said...

कहते हैं जिस घर में गौरैया निवास करती है वह सौभाग्यशाली होता है !

Madan Mohan Saxena said...

बेह्तरीन अभिव्यक्ति .शुभकामनायें.

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रश्मि शर्मा said...

जरूरी है यह संदेश देना..

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शोभना चौरे said...

holi bhut bahut shubhkamnaye

Harash Mahajan said...

सच कहा आपने zeal जी

Harash Mahajan said...

दिव्या जी एक दम सच कहा आपने.....ये चिड़िया सच मे लुप्त होती जा रही है.....आपको यद् होगा आज से 10 साल पहले भी ये लुप्त हुई थी...फिर इनका अम्बार शुरू हुआ......मुझे बड़ा अफ़सोस हुआ था उस वक़्त भी......कुछ दिनों से यही प्रश्न फिर मन में गून्ह्जा..के ये सुंदर चिड़िया कहीं दिखाई नहीं दे रही......कई दिनों में दूंदने के बाद तीन दिन पहले द्वारका दिल्ली में एक पार्क में नर-चिड़िया मैंने खुद अपनी आँखों से देखि....और तब तक देखि...जब तक वो वहां से उडी नहीं...कितना सुख प्राप्त हुआ था .....शुक्रिया आपने भी इस ओर ध्यान दिलाया.....इसका मतलब ..ऐसा सोचने वाला मैं अकेला नहीं हूँ ||

साभार

हर्ष महाजन |

गजेन्द्र कुमार पाटीदार said...

गौरैया तो दिल्ली की राज्य पक्षी है क्या महानगरो मे इनके साथ मानवीय व्यव्हार होता है? या मोब. टॉवर के रेडिएशन इनका खतरा बने रहेंगे।

Bharat Bhushan said...

पशु-पक्षियों का अस्तित्व पृथ्वी पर मनुष्य के जीने की संभावनाओं का पैमाना है. कुछ वर्ष पूर्व अपने जीवन काल के दौरान मैंने गिद्धों को समाप्त होते देखा है. अब चिड़िया (गौरैया) कम ही दिखती है.

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