Wednesday, January 18, 2017

श्रृंगार

कल मायावती मैम का ओजमयी भाषण सुना ! उनका भव्य स्वरुप अंतर्मन को धीरे से कहीं छू गया । हलके रंग का रेशमी परिधान उस पर बहुत ही हलके रंग का पीच कलर का गर्व से इतराता कोट, फ़िज़ां में एक अलग ही गरम्भीरता पैदा कर रहा था ।कानों के आभूषण किसी भी स्त्री का मन ललचा देने के लिए पर्याप्त थे । बेहद आधुनिक डिज़ाइनर अंदाज़ में । बायें कान में करीब दस इंच लंबे झुमके थे तो दाहिनी कान में मात्र एक छोटा सा गोलाकार टॉप्स चिपका हुआ था । ज़ुल्फ़ों को हवा में उड़ने की मनाही थी , उन्हें संयम से अपने स्थान पर रहने की हिदायत थी । वे अपनी सधी हुयी गरिमामयी वाणी में अपना भाषण पढ़ रही थीं । गलतियाँ उन्हें पसंद नहीं इसलिए झुकी हुयी पलकें कागज़ से किंचित मात्र भी हटती न थीं । जब हमारे नयन इस रूप छटा से थोड़ा मुक्त हुये तो अपने श्रवण यंत्रों को तकलीफ देते हुए सुना हमने की वे बेहद धीमी किन्तु कड़क आवाज़ में मासूम सा क्रोध करते हुए अपने प्रधानमन्त्री से नोटबंदी के पहले और बाद का मित्रवत हिसाब माँग रही थीं । बात तो वाजिब है लेकिन जब नोटों की बात चली तो मन फिर से श्रृंगार पर ही आ अटका । कहीं कुछ अधूरा था ... कंठ में नोटों के हार की कमी खल रही थी .. मन उदास हो चला ..

3 comments:

कविता रावत said...

यानी कि भाषण कम चिंतन ज्यादा हुआ ..
यही दिन है जब जनता को भरपेट भाषण खाने को मिलते हैं क्या करें जनता को भी अपच नहीं होती इनसे ..फिर-फिर वही ..आज इस पार्टी में कल उसमें मिल जाते हैं ..

कविता रावत said...

यानी कि भाषण कम चिंतन ज्यादा हुआ ..
यही दिन है जब जनता को भरपेट भाषण खाने को मिलते हैं क्या करें जनता को भी अपच नहीं होती इनसे ..फिर-फिर वही ..आज इस पार्टी में कल उसमें मिल जाते हैं

PurpleMirchi said...

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