जन्म माँ देती है लेकिन जीवनदान कोई फरिश्ता दे देता है । आजीवन ऋणी हूँ ।
बात जनवरी 2011 की है । सर्द रात और तबियत खराब । संयोग से कोई बड़ा नहीं था घर में , अकेली थी बच्चे छोटे जिनसे मदद की अपेक्षा नहीं की जा सकती थी उस समय । ब्लड प्रेशर बहुत बढ़ा हुआ था । 190 के पार । उत्पन्न स्थिति का सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है। ऐसी अवस्था में अक्सर माँ को फोन लगाया करती थी लेकिन 2007 में वे भी इस दुनिया से विदा ले चुकी थीं । अन्य किसी को रात्रि में परेशान करने की हिम्मत नहीं थी । खैर बच्चों के पास उनके पिताजी और उनकी मौसी का नंबर लिखकर दे दिया और कहा की यदि कोई ज़रूरत पड़े तो इन दो नंबरों पर फोन कर देना ।
संयोग से एक शुभचिंतक मित्र का औपचारिक फोन आ गया उस रात्रि । दुआ सलाम के बाद जब उन्हें अपनी स्थितिजनित भय से अवगत कराया तो वे भी चिंतित हो गए । सैकड़ों किलोमीटर दूर खड़े एक दुसरे प्रांत से वे मेरी कोई मदद नहीं कर सकते थे । असहाय थे किन्तु स्थिति जानने के बाद इस तरह अकेला छोड़ना भी नहीं चाहते थे । उन्होंने कहा , "आप घबराओ मत , हम आपको कुछ सुनाते हैं और सब ठीक होगा "
फिर उन्होंने जाड़े की उस सर्द रात में, सड़क के किनारे खड़े होकर, पूरी हनुमान चालीसा गाकर सुनाई । शेष हमें कुछ याद नहीं लेकिन प्रातः जब नींद खुली तो हम ठीक महसूस कर रहे थे । एक कठिन रात टल चुकी थी ।
ये जीवन ऋणी है उस फ़रिश्ते का । उनका आभार व्यक्त करने के लिए शब्द अपर्याप्त हैं
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