निंदक नियरे राखिये, आँगन कुटी छवाए ,
बिन पानी साबुन बिना , निर्मल करे सुभाय ।
अरे भाई हम क्या ख़ाक कुटी छावायेंगे, ये तो स्वयं ही यत्र-तत्र अपनी कुटिया डाले कालोनी बसाये मिल जायेंगे। एक ढूंढो चार मिलेंगे। पिछली पोस्ट पर पाठक बंधुओं ने कहा की निंदक ही सच्चे अर्थों में हमारे मित्र हैं। अरे अगर ये हमारे मित्र हैं और हमारा भला कर रहे हैं तो फिर हमारे गुरु , माता पिता और शुभ-चिंतकों का क्या होगा जो बिना निंदा रुपी हथियार का इस्तेमाल किये ही हमारे आत्मिक विकास का कारण होते हैं।
अब कबीरदास जी को कौन समझाए की दो विरोधाभासी दोहा लिखने की क्या आवश्यकता थी । कबीरदास जी ने ये नहीं सोचा की वे स्वयं तो संत हैं , लेकिन मनुष्य जाति तो पैदायशी निंदक है , खुद ही तत्पर रहती है हर दुसरे की निंदा करने के लिए , एक निंदक दुसरे कों भला क्यूँ बर्दाश्त करेगा । वैसे भी वामपंथी ज्यादा हैं। खैर हम तो कबीरदास जी के भक्त हैं और विश्वास करते हैं उनके दक्षिणपंथी दोहे में -
ऐसी बानी बोलिए, मन का आपा खोये,
औरों को सीतल करे, आपहुं सीतल होए।
निंदकों की विशेषताएं-
निंदक से होने वाले सामाजिक लाभ-
यदि ये Constructive criticism करें , तथा सही व्यक्ति की निंदा करें [जहाँ वास्तव में जरूरत है] तो समाज में सुधार ला सकते हैं ये लोग। लेकिन अफ़सोस ये लोग सुधरे हुए लोगों को सुधारने में अपनी ऊर्जा व्यय करते हैं।
निदा करने से होने वाली हानियाँ -
एक निंदक को सदैव निम्न रोगों के होने का खतरा बना रहता है -
बिन पानी साबुन बिना , निर्मल करे सुभाय ।
अरे भाई हम क्या ख़ाक कुटी छावायेंगे, ये तो स्वयं ही यत्र-तत्र अपनी कुटिया डाले कालोनी बसाये मिल जायेंगे। एक ढूंढो चार मिलेंगे। पिछली पोस्ट पर पाठक बंधुओं ने कहा की निंदक ही सच्चे अर्थों में हमारे मित्र हैं। अरे अगर ये हमारे मित्र हैं और हमारा भला कर रहे हैं तो फिर हमारे गुरु , माता पिता और शुभ-चिंतकों का क्या होगा जो बिना निंदा रुपी हथियार का इस्तेमाल किये ही हमारे आत्मिक विकास का कारण होते हैं।
अब कबीरदास जी को कौन समझाए की दो विरोधाभासी दोहा लिखने की क्या आवश्यकता थी । कबीरदास जी ने ये नहीं सोचा की वे स्वयं तो संत हैं , लेकिन मनुष्य जाति तो पैदायशी निंदक है , खुद ही तत्पर रहती है हर दुसरे की निंदा करने के लिए , एक निंदक दुसरे कों भला क्यूँ बर्दाश्त करेगा । वैसे भी वामपंथी ज्यादा हैं। खैर हम तो कबीरदास जी के भक्त हैं और विश्वास करते हैं उनके दक्षिणपंथी दोहे में -
ऐसी बानी बोलिए, मन का आपा खोये,
औरों को सीतल करे, आपहुं सीतल होए।
निंदकों की विशेषताएं-
- निंदक जो रस निंदा करने में लेते हैं, वही रस उन्हें अपनी निंदा सुनने में नहीं आता।
- ये अच्छे -भले व्यक्ति का आत्म-विश्वास तोड़ने में सक्षम होते हैं
- ये अक्सर थोडा सा फ्रसटेटेड जंतु होते हैं।
- इनके अन्दर गुस्सा या आक्रोश काफी मात्रा में भरा होता है
- ईर्ष्या भी इनके व्यक्तित्व का अभिन्न अंग होती है
- ये थोड़े possessive या obsessed भी होते हैं।
- किसी भी क्षेत्र में असफलताओं के चलते निंदकों का जन्म होता है [कोई भी जन्म-जात निंदक नहीं होता]
- प्रायः निंदक स्वयं को Mr Perfect या फिर Ms Perfect समझते हैं।
- इन्हें लगता हैं की बुद्धि का अक्षय पात्र इन्हीं के पास है। और समाज में यदि क्रांति आ सकती है तो सिर्फ इनके कारण ।
- कुछ अपवाद को छोड़कर , ज्यादातर निंदक Destructive criticism में लिप्त पाए जाते हैं।
- आजकल के निंदक , ईर्ष्या से युक्त होकर दूसरों में कमियां ढूंढते हैं और अपने प्रतिद्वंदी को नीचा दिखाने की कोशिश करते हैं ।
- अगर कोई ज्ञानी व्यक्ति निंदा करे तब तो बात समझ आती है , लेकिन आजकल तो जिसे देखो वही मुह उठाये निंदा करने चला आता है ।
निंदक से होने वाले सामाजिक लाभ-
यदि ये Constructive criticism करें , तथा सही व्यक्ति की निंदा करें [जहाँ वास्तव में जरूरत है] तो समाज में सुधार ला सकते हैं ये लोग। लेकिन अफ़सोस ये लोग सुधरे हुए लोगों को सुधारने में अपनी ऊर्जा व्यय करते हैं।
निदा करने से होने वाली हानियाँ -
एक निंदक को सदैव निम्न रोगों के होने का खतरा बना रहता है -
- Insomnia [अनिद्रा]
- Constipation [कब्ज़]
- Anxiety [व्यग्रता]
- Hypertension [उच्च रक्तचाप]
- निंदक और ऊर्जा संरक्षण -
- निदकों के पास इतनी ऊर्जा होती है की यदि इनकी ऊर्जा का उचित इस्तेमाल किया जाए तो कई विद्युत् ऊर्जा संयंत्र बनाए जा सकते हैं तथा पवन-चक्की को replace भी किया जा सकता है।
- एक दिन मैंने अपनी आभासी सखी -'सजनी' से पूछा निंदकों का निदान क्या है ? सजनी बोली - " अरी दिव्या , ये निंदक ही तो असली मैडल हैं सफलता के। जितना सफल व्यक्ति, उतने ही ज्यादा निंदक । ये निंदक ही तो व्यक्ति की सफलता के मापक हैं। आम आदमी की निंदा करने भला कौन जाएगा। "
मैंने सजनी को कौतुक से देखा फिर पूछा - " यदि निंदक ही सफलता की पहचान हैं , तो फिर कोई गांधी और विवेकानंद की निंदा क्यूँ नहीं करता ? "
सजनी बोली - " उनके बहुत से निंदक थे , जो समय के साथ पंचतत्व में विलीन हो गए , लेकिन चमकने वाले सितारे आज भी जगमगा रहे हैं "
खैर सजनी कुछ ज्यादा ही विद्वान् है, उसकी बातें वो ही जाने , मैं तो निंदकों के लिए चिंतित हूँ। इसलिए निंदकों के Rehabilitation का उपाय बता रही हूँ - - निंदकों को चाहिए की वो एक दिन में , दो से ज्यादा की निंदा ना करें
- क्रमशः टेपरिंग डोज़ में सप्ताह में दो बार , फिर मॉस में दो बार और फिर छोड़ दें इस लत को
- शनैः शनैः जब लत छूट जाए तो पुनः टेपरिंग डोज़ द्वारा प्रशंसा की आदत डालें
- किसी की प्रशंसा से मिलने वाला रस, निंदा के रस से कहीं अधिक मीठा और सुकूनदायी होता है। [ गंभीर पाठक कृपया , प्रशंशा को चाटुकारिता से Confuse न करें ]
हुज्जत मैंने बहुत सी की, उनको यहाँ बुलाने की
बार-बात सहमत भी हुई कोशिश में उन्हें रिझाने की
कुटिया भी मैंने बहुत छवाई , उन्हें यहाँ ठहराने की
लेकिन वो तो तेरे दीवाने, कदर नहीं आशियाने की
सजनी का दुःख देख पसीजा , भावुक दिल इस ज़ील का
निंदक को कुछ कम न समझो, पत्थर है वो मील का
हमें 'निंदक' नहीं रोल-मॉडल्स' चाहिए ! निंदा का काम तो सड़क किनारे बैठा एक निठल्ला भी कर लेगा, इसमें मज़ा जो आता है सबको। लेकिन रोल-मॉडल बनना किसी ऐरे गैरे के बस की बात नहीं है!
आभार।