गर्भधारण करना अर्थात गर्भ का , गर्भाशय में ठहरना , पलना, तथा आकार पाना । इसे ही हम सामान्य भाषा में प्रेगनेंसी कहते हैं। गर्भवती स्त्री को चिकित्सकीय भाषा में 'ग्रेविड़ा ' कहते हैं। गर्भकाल की अवधी ३८ से ४२ हफ़्तों की हो सकती है। लेकिन सामान्तया यह अवधी ३८ हफ़्तों की होती है। इसे 'जेस्टेशन पीरियड' कहते हैं । गर्भकाल की गणना स्त्री के अंतिम मासिक स्राव की पहली तारीख [Last menstrual period - LMP ] से करते हैं। प्रसव की तारिख [Expected date of delivery - EDD] ३८ हफ़्तों के बाद की दी जाती है । प्रसव , दी हुई तारिख से १४ दिन पहले या बाद में भी हो सकता है।
गर्भाशय में पल रहे गर्भ को , प्रथम आठ हफ़्तों तक 'एम्ब्रियो' कहते हैं तथा उसके बाद से
लेकर प्रसव होने तक इसे 'फीटस' कहते हैं।
डायग्नोसिस -
- मासिक स्राव का रुक जाना [मिस्ड पीरियड या एमिनोरिया]
- रात्रि के समय मूत्र त्याग की आवृति बढ़ना।
- लैब जांच- सुबह की मूत्र सैम्पल में 'ह्युमन कोरिओनिक गोनैड़ोत्रोपिन ' नामक हार्मोन की उपस्थिति गर्भ ठहरने की पुष्टि करती है।
गर्भकाल को तीन हिस्सों में विभाजित किया गया है।
प्रथम ट्राईमेस्टर
द्वितीय ट्राईमेस्टर
तृतीय ट्राईमेस्टर
प्रथम ट्राईमेस्टर -
- प्रथम ट्राईमेस्टर , में भ्रूण की स्वाभाविक मृत्यु [मिस्केरिअज ] का खतरा अधिक रहता है।
- प्रथम बारह हफ़्तों में हारमोंस की अधिकता के कारण निपल्स तथा एरियोला का रंग गहराने लगता है।
- इस अवधी के अंत तक , भ्रूण की लम्बाई तकरीबन ३ इंच तथा वजन एक औंज हो जाता है।
द्वितीय ट्राईमेस्टर-
- १३ से २४ हफ्ते तक की अवधी द्वितीय ट्राईमेस्टर कहलाती है।
- इस समय तक मोर्निंग सिकनेस भी समाप्त हो जाती है।
- इस अवधी में २० हफ़्तों के बाद भ्रूण का घूमना महसूस किया जा सकता है । इसे 'क्विकनिंग ' कहते हैं।
- २५ से ३६ हफ़्तों की अवधी तृतीय ट्राईमेस्टर कहलाती है।
- इसमें तेज़ी से वजन बढ़ता है। गर्भ तकरीबन ३० ग्राम प्रतिदिन के अनुपात में वजन ग्रहण करता है।
- इस काल के अंत तक , गर्भ का हेड-एंगेजमेंट हो जाने से उदर थोडा relax हो जाता है तथा गर्भिणी को स्वसन सम्बन्धी आराम पुनः मिल जाता है।
- इस अवधी में जन्मा प्रीटर्म बच्चा , इंटेंसिव केयर द्वारा जीवित रह सकता है।
- एनीमिया [खून की कमी]
- कमर में दर्द
- कब्ज़
- ब्लड प्रेशर
- हार्ट-बर्न
- hemorrhoids
- urinary tract infection
- varicose veins
- postpartum depression
- गर्भकाल के दौरान सामान्यता ११ से १५ किलो वजन बढ़ता है।
- चौथे तथा पांचवे माह में , एक मॉस के अंतर से दो टिटनेस के इंजेक्शन लगवा लेने चाहिए।
- प्रथम सात महीने तक महीने में एक बार, आठवें महीने में १५ दिन पर तथा नवां महिना लगने पर हर हफ्ते चिकित्सकीय जांच एवं परामर्श के लिए , जाना चाहिए।
- प्रथम तथा तृतीय ट्राईमेस्टर में रेल यात्रा तथा सेक्स से बचें।
- गर्भवती स्त्री के स्वास्थय का समुचित ध्यान रखने के लिए उसे पोषक आहार, विटामिन, आयरन तथा कैल्शियम देते रहना चाहिए।
- नियमित एक्सेरसाइज़ [ थोडा घूमना अथवा तैरना ] लाभदायक है।
यदि कोई जिज्ञासा अथवा शंका हो या कुछ जानना चाहते हों तो निसंकोच पूछें।
आभार।