आज तक यही देखा सुना की हिन्दू विवाह में कन्या की उम्र , दुल्हे की उम्र से कम होनी चाहिए । लेकिन इसके पीछे logic [ तर्क] क्या है ? ऐसा तो किसी संहिता , वेद, पुराण या फिर उपनिषदों में नहीं लिखा है।
यदि प्रेम विवाहों की बात छोड़ दी जाए तो निश्चय ही लोग यही चाहते हैं की कन्या की उम्र कम हो । क्या कम उम्र होने से पत्नी अपने पति का ज्यादा सम्मान करती है या फिर पति अपनी पत्नी का ज्यादा ध्यान रखता है।
क्या नियम बनाने वालों ने ये सोचकर नियम बनाए की कम उम्र होने से ज्यादा समय तक पति की सेवा कर सकेगी अथवा घर में दब कर रहेगी । छोटे होने के नाते सदैव पति और घरवालों का सम्मान करेगी ।
एक तर्क ये सुनने में आया की लडकियां जल्दी mature होती हैं लड़कों की तुलना में । लेकिन व्यवहारिक बुद्धि अधिक होने से विवाह में उम्र का अंतर क्यूँ ? उससे क्या लाभ है ? पत्नी यदि छोटी होने के बजाये हमउम्र हो तो बेहतर ही संभालेगी घर परिवार को।
यदि मताधिकार के लिए , ड्राइविंग के लिए दोनों की उम्र १८ वर्ष स्वीकृत है तो फिर विवाह के लिए लड़की एवं लड़के की उम्र में अंतर को इतनी तवज्जो क्यूँ ?
किस धर्म ग्रन्थ में ऐसा लिखा है और इसके पीछे तर्क क्या हैं ?
पाठकों की जानकारी के लिए संक्षिप्त में चिकित्सकीय सन्दर्भ नीचे दे रही हूँ।
लड़की तथा लड़के की puberty की age क्रमशः १० और १२ वर्ष से प्रारम्भ होती है [ जो विभिन्न climate तथा परिवेश में थोडा भिन्न भी हो सकती है.] । लड़की में puberty १० वर्ष से प्रारभ होकर १५-से १७ वर्ष की आयु तक पूर्ण हो जाती है। जबकि लड़के में ये १२ वर्ष की आयु से प्रारम्भ होकर १६ से १८ वर्ष तक पूर्ण हो जाति है।
puberty का अर्थ है लड़की तथा लड़के में होने वाले शारीरिक बदलाव जिसके पूर्ण होने प़र बच्चा पूरी तरह से Adult बन जाता है तथा संतानोत्पत्ति के योग्य हो जाता है।
अतः १८ वर्ष के बाद स्त्री अथवा पुरुष दोनों ही सामान रूप से संतानोत्पत्ति के योग्य हो जाते हैं।
पाठकों की जानकारी के लिए एक और बात -- Law commission द्वारा विवाह की उम्र [ लड़का और लड़की], दोनों की , एक जैसी अर्थात १८ वर्ष , करने का प्रस्ताव रखा गया है।
आभार ।
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