आज तक यही देखा सुना की हिन्दू विवाह में कन्या की उम्र , दुल्हे की उम्र से कम होनी चाहिए । लेकिन इसके पीछे logic [ तर्क] क्या है ? ऐसा तो किसी संहिता , वेद, पुराण या फिर उपनिषदों में नहीं लिखा है।
यदि प्रेम विवाहों की बात छोड़ दी जाए तो निश्चय ही लोग यही चाहते हैं की कन्या की उम्र कम हो । क्या कम उम्र होने से पत्नी अपने पति का ज्यादा सम्मान करती है या फिर पति अपनी पत्नी का ज्यादा ध्यान रखता है।
क्या नियम बनाने वालों ने ये सोचकर नियम बनाए की कम उम्र होने से ज्यादा समय तक पति की सेवा कर सकेगी अथवा घर में दब कर रहेगी । छोटे होने के नाते सदैव पति और घरवालों का सम्मान करेगी ।
एक तर्क ये सुनने में आया की लडकियां जल्दी mature होती हैं लड़कों की तुलना में । लेकिन व्यवहारिक बुद्धि अधिक होने से विवाह में उम्र का अंतर क्यूँ ? उससे क्या लाभ है ? पत्नी यदि छोटी होने के बजाये हमउम्र हो तो बेहतर ही संभालेगी घर परिवार को।
यदि मताधिकार के लिए , ड्राइविंग के लिए दोनों की उम्र १८ वर्ष स्वीकृत है तो फिर विवाह के लिए लड़की एवं लड़के की उम्र में अंतर को इतनी तवज्जो क्यूँ ?
किस धर्म ग्रन्थ में ऐसा लिखा है और इसके पीछे तर्क क्या हैं ?
पाठकों की जानकारी के लिए संक्षिप्त में चिकित्सकीय सन्दर्भ नीचे दे रही हूँ।
लड़की तथा लड़के की puberty की age क्रमशः १० और १२ वर्ष से प्रारम्भ होती है [ जो विभिन्न climate तथा परिवेश में थोडा भिन्न भी हो सकती है.] । लड़की में puberty १० वर्ष से प्रारभ होकर १५-से १७ वर्ष की आयु तक पूर्ण हो जाती है। जबकि लड़के में ये १२ वर्ष की आयु से प्रारम्भ होकर १६ से १८ वर्ष तक पूर्ण हो जाति है।
puberty का अर्थ है लड़की तथा लड़के में होने वाले शारीरिक बदलाव जिसके पूर्ण होने प़र बच्चा पूरी तरह से Adult बन जाता है तथा संतानोत्पत्ति के योग्य हो जाता है।
अतः १८ वर्ष के बाद स्त्री अथवा पुरुष दोनों ही सामान रूप से संतानोत्पत्ति के योग्य हो जाते हैं।
पाठकों की जानकारी के लिए एक और बात -- Law commission द्वारा विवाह की उम्र [ लड़का और लड़की], दोनों की , एक जैसी अर्थात १८ वर्ष , करने का प्रस्ताव रखा गया है।
आभार ।
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143 comments:
कभी इस पहलू पर विचार तो नहीं किया.. पर और लोगों की प्रतिक्रिया जानने में अच्छा लगेगा..
रजनी चालीसा का जप करने ज़रूर आएं ब्लॉग पर.. :)
मेरी पत्नी उम्र में मुझ से लगभग सात वर्ष छोटी हैं पर फिर भी कुछ दिन पहले जब हम सब्जी मंडी में थे तो सब्जी बेच रहे एक छोटे बच्चे ने मेरी पत्नी को आंटी और मुझे भैय्या कह कर पुकारा तो मेरी पत्नी को बहुत बुरा लगा था. शायद पत्नियाँ अपने पति से मानसिक रूप से ज्यादा मेच्योर हों या ना हों पर शारीरिक रूप से ज्यादा उम्रदार दिखाने लगती हैं इसलिए पति पत्नी के मध्य उम्र का अंतर रखा जाता हो. यहाँ ये भी स्पष्ट कर दूँ की मेरे बाल अधपके हैं और मैं उन्हें नहीं रंगता पर फिर भी अपनी पत्नी से कम उम्र का दिखता हूँ .
पता नहीं..
Is age of such significance, does it matter? My view is it should not. But the reality is different. It does and how? In which ever form you fill up, there are columns for both the wife and husband with the age related details. Fill it up with a elder age, and you are bound to see a few eyebrows raised. It is more of a mental block than anything else. One logic which you have given is more mature, may be true, but not necessarily so. Bringing up kids needs a certain maturity which comes with time. The other practical reason could be that the biological clock ticking, so if the woman is younger it does give more time. It would be interesting to see what the readers comment.
हमारे यहा तो कहावत है बडी बहु बडे भाग्यवाली .
तर्क क्या है मुझे नहीं मालूम।
किस ग्रन्थ में ऐसा लिखा है, वह भी मुझे नहीं मालूम।
बस इतना जानता हूँ कि मेरी पत्नि मुझ से पाँच साल छोटी है।
पर बात करने का लहजा ऐसा है मानो मुझ से दस-पन्द्रह साल बडी हो!
यदि सचमुच उम्र में मुझसे बडी होती तो मेरा तो और भी बुरा हाल होता।
आज कल तो मेरी बेटी भी मुझसे ऐसी बात करती है मानो वह मेरी बेटी नहीं, दादी है।
Jokes apart : Age difference is not as important as compatibility.
However, I would be uncomfortable with too much of an age gap.
As a young man, I would never have married a girl older than I was simply because I have seen that older girls, while being affectionate and protective, still bully their younger brothers into submission and "mother" them and I would not like to be in that situation.
My opinion is that either the wife should be upto to 5 years younger or upto two years older. Not more. Just a gut feeling. I cannot back this up with any logic.
I have known happy couples where the wife was 10 years younger. No hard and fast rules can be applied. The difference in age will soon lose it's significance as the couple adjust and get used to each other.
Regards
GV
Aap ka jabab nahi .. I was thinking how and why this topic rose. What was the trigger point.
उम्र का अन्तर आवश्यक नहीं पर विवाह की समझ होना आवश्यक।
ढेरों संभव कारण हो सकते हैं, विषय परिचय तो कराया आपने, लेकिन प्रवर्तन के लिए विस्तार आवश्यक है.
ऐसा कोई भी नियम नहीं है ,अभिशेक बच्चन से ऐस्वर्या राय 4 साल बड़ी है,बहुत सारे मुद्दों के आब्सर्वेशन के बाद एक परंपरा बनी है, एक लोजिक तो आपने दिया है कि फ़िमेल मेल से पहले मेच्युर हो जाती है इसके अलावा भी और भी तर्क हो सकते हैं , फिर इससे किसी को तकलीफ़ नहीं है ना ही ये फ़िमेल पर मेल के अत्याचार के रूप में लिया जाता है।
ठीक है जी बड़ी लड़की से कर दो शादी
झगड़ा काहे का
जो भी नियम पहले लोगों ने बनाये थे उनमें तथ्य तो ज़रूर होता है ..जिनकी जानकारी से हम वंचित रहते हैं ...और आज हर बात को तर्क की कसौटी पर कसना चाहते हैं ...हो सकता है मानसिक और शारीरिक दोनों ही दृष्टि से लड़कियों की उम्र विवाह के लिए लडके से कम रखी गयी हो ....आप तो डॉक्टर हैं ..कुछ आप ही उस बात पर प्रकाश डालें ..
विषय बहुत अच्छा बहस का है कभी इस पर सोचा नहीं लेकिन मै इस विषय अपने साहित्य पढता हु ,जानकारी का अभाव भी है अपने ग्रन्थ पढने होगे.
काम-वासना उम्रजनित होती है,इसलिए,समाज पुरुष प्रधान होने के कारण,संभव है,पुरुषों की भोगवृत्ति अधिक समय तक बनाए रखना एक उद्देश्य रहा हो। पुरूष काफी उम्र में भी संतानोत्पत्ति की क्षमता रखता है जबकि रजोनिवृत्ति के पश्चात् महिलाएं गर्भधारण में सक्षम नहीं रह जातीं । यह एक अन्य कारण हो सकता है।
मेरे ख्याल मे नारी जल्द बुढापे की ओर जाती हे, इस लिये लोग अपने से छोटी उम्र की नारी से शादी करते हे,यह मेरा ख्याल हे पक्का मुझे भी नही पता, धन्यवाद इस अच्छॆ सवाल के लिये
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मेल से प्राप्त टिपण्णी -
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Ravindra N. Koshti दिव्याजी, इसके पिछे राज कोई खास नाही. लेकिन हम थोधा ध्यान से देखे तो पता चलता है की लडकी और लडके की उम्र समान होती हो तब भी लडकी लडके से पहले मचुअर हो जाती है. लडकी हमउम्र लडके से बड़ी दिखती है. यदि दुल्हन दुल्हे से बड़ी हो तो कुछ सालो बाद लड़का छोटा और लडकी बड़ी दिखाई देती है.और उस वक्त उस लडके को मतलब आदको को गिल्टी फिल होता है. यही कारन है की हमारे पूर्वजो ने उः कायदा बनाया है.
7 hours ago · Like
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@ AS -
किसी भी विषय के लिए कुछ trigger हो ये जरूरी तो नहीं। बस मन में एक प्रश्न आया जो अभी तक अनुत्तरित है इसलिए अपनी जिज्ञासा आप सभी के सामने रखी।
मुझे ये नियम खोखला लगता है और लोग इसे भेड़-चाल की तरह follow करते पाए जाते हैं तो सोचा क्यूँ का सबके विचार जानू इस विषय पर।
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विचार शून्य जी ,
आपकी पत्नी आपसे बड़ी दिखती है , जानकार दुःख हुआ। लेकिन दोनों में से कोई ना कोई तो बड़ा दिखेगा ही । क्या ये जरूरी है की पत्नी सदैव पति के छोटी नज़र आये ? मात्र इस बात के लिए विवाह के समय लड़की की उम्र कम रखी जाती है ?
बात कुछ हजम नहीं हुई !
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@ Indian citizen -
" I do not know " is not an answer , nor a solution .
It is escapism !
Mind exercising your brain a bit ?
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@ दीर्घतमा जी -
जवाब मिले तो हमें भी सूचित कीजियेगा। जानकारी का अभाव मात्र इसीलिए है क्यूंकि इतने बे-सर पैर की बात कहीं किसी ग्रन्थ में लिखी ही नहीं है। लेकिन अफ़सोस पढ़े-लिखे लोग बिना इस विषय पर बिना सोचे बस इसको मुद्दा बनाए रखते हैं विवाह के दौरान।
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ज्यादातर प्रेम विवाहों में लड़की या तो बड़ी होती है या फिर हमउम्र । वहां ये नियम क्यूँ कोई मायने नहीं रखते ?
* सुनील दत्त और नर्गिस
* अभिषेक , ऐश्वर्या।
इसके अतिरिक्त जितने प्रेम विवाहों को अपने परिवार, मित्रों तथा अपने परिवेश में देखा, सभी जगह इस नियम का अपवाद ही देखा ।
कोई फरक तो नहीं पड़ता लड़की के छोटी अथवा बड़ी होने से।
* घर की मालकिन वही रहेगी।
* छोटी हो या बड़ी , पति पर रौब जरूर जमाएगी।
* आप लाख चाहें, यदि बड़ी दिखना होगी तो बड़ी ही लगेगी आपसे । आपको उसी में प्रसन्न रहना पड़ेगा।
* बच्चे और परिवार का ख़याल वो दोनों स्थिति में रखेगी ।
* छोटी हो या बड़ी , अपने माइके का गुणगान जरूर करेगी ।
फिर लड़की सिर्फ छोटी ही क्यूँ ? बराबर क्यूँ नहीं ?
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संगीता जी ,
मेडिकल में भी कहीं नहीं लिखा की विवाह के लिए लड़की की उम्र लड़के से कम होनी चाहिए। १८ साल के बाद एक लड़की और एक लड़का दोनों ही शारीरिक और मानसिक रूप से परिपक्व हो जाते हैं विवाह और संतान की जिम्मेदारी उठाने के लिए।
लड़की की गर्भ धारण की उम्र का तो उल्लेख है लेकिन विवाह के लिए उसको लड़के से छोटा होना चाहिए ऐसा कहीं नहीं जिक्र है । न ही इसके पीछे अनुकरणीय तर्क ही मिले आज तक।
न धर्म में कहीं लिखा है , न ही विज्ञान में ऐसा कुछ लिखा है । और फिर प्रेम विवाह में इस नियम के अपवाद भी इस नियम को अनावश्यक सिद्ध कर रहे हैं।
आप ही कुछ बताइए इस नियम को बनाने के पीछे समाज की क्या मानसिकता हो सकती है?
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प्रवीण जी ,
मुझे तो लगता है एक उम्र के व्यक्तियों में एक जैसी ही समझ होनी चाहिए। फिर भला अपने से छोटी लड़की से विवाह करके अपने से कम बुद्धि वाली लड़की लाने पीछे क्या औचत्य है ?
क्या इसमें भी पुरुषों का कोई अहम् है की यदि लड़की की बुद्धि मुझसे ज्यादा निकली तो जीना दुश्वार हो जाएगा ?
मुझे तो इसमें पुरुषों का सर्वथा अपमान दिखाई दे रहा है । या फिर पुरुषों के अन्दर की insecurity ।
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समाज के बनाए नियम मोटे रूप से हमारी सुविधा को ध्यान में रखकर बनाए गए हैं, लेकिन इन नियमों में समय समय पर परिवर्तन या फिर लचीलापन आता रहा है. इसका शायद एक कारण मुस्लिमों द्वारा किये गए अत्याचारों से जोड़कर देखा जाता है. जब तानाशाहों ने घर से बहु बेटियों को उठान शुरू कर दिया तो उनका विवाह भी जल्दी ही कर दिया जाने लगा. दूसरा कारण रहा है हमारे समाज, सही मायनों में तो समाज है ही नहीं, उसमें जब बेटी बड़ी हो जाती है तो वास्तव में वो परेशानी का सबब बन जाती है, इसमें उसकी कोई गलती नहीं, इस कारण उसे जल्दी से जल्दी दूसरे घर का रास्ता दिखाना ही सही रहता है.
अब में ज्यादा तो नहीं कहना चाहता लेकिन एक बात है की किसी ग्रन्थ में ऐसा नहीं लिखा है, जितने मैंने पढ़े हैं. ये तो हमारी सुविधा का ही नतीजा हैं.
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विश्वनाथ जी ,
आपकी बात उचित प्रतीत हो रही है । उम्र को तवज्जो न देकर , compatibility पर फोकस होना चाहिए। लड़की दो साल बड़ी हो या फिर दो साल छोटी , कोई फरक नहीं पड़ता।
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@--नारी जल्द बुढापे की ओर जाती हे, इस लिये लोग अपने से छोटी उम्र की नारी से शादी करते हे....
मुझे तो नहीं लगता की नारी जल्दी बूढी होती है । ३०, ४०, ५० , ६०, ७० ....उम्र के हर पड़ाव पर पुरुष और स्त्री शारीरिक और मानसिक रूप से एक जैसा ही बढ़ते हैं और एक जैसा ही क्षय होते हैं।
स्त्री हो अथवा पुरुष , जो स्वयं को पूरी तरह फिट से फिट रखता है [ शारीरिक, मानसिक] व्यायाम द्वारा , वही चिर युवा बना रह सकता है ।
इसके लिए कम उम्र की लड़की तलाशना कुछ अनावश्यक सा प्रतीत होता है।
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Dearest ZEAL:
A nice pondering.
Societal practices are not laid down norms in some text.
Rather, it is the other way round, in most cases. Practices become so prevalent that they become the unsaid law, unwritten word of custom.
The age is a determinant of authority in a traditional fashion. We usually are brought up to pay respect to elders.
Our marriage institution works along the same lines. Since the male is deemed to be the 'leader' of the family, it is deemed proper that he be elder than the one he betroths.
Evolution takes its own course and these barriers are slowly dropping their stance in our society.
The process of change is quite gradual but surely it is there.
Also, earlier the average life-span of people was shorter and may be that also pyschologically played on the minds to have a younger mate so that the progeny has someone to look after them longer. In fact, early-age marriages were also for the same reason. Today, they are passe.
And you yourself mentioned an important fact - Girls mature earlier. So, an elder girl or even one of the same age, may cause compatibility issues in marriage.
These are some thoughts I had on the topic. Hope it sees the light of the day.
Semper Fidelis
Arth Desai
... yah vishay uthaa-patak karne jaisaa jaan padtaa hai ... iss mudde par saare tark nirthak hi saabit hone ki sambhaavanaa jaan pad rahee hai ... shaandaar post !!!
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राधारमण जी ,
आपकी यही बात उचित लग रही है की पुरुष प्रधान समाज में पुरुषों की भोगवृत्ति अधिक समय तक बनाए रखना एक उद्देश्य रहा हो। निश्चय ही स्वार्थी होकर ये नियम बनाया गया लगता है । अपनी काम वासना की शांति के लिए ही ऐसा बेतुका नियम प्रचलन में आया लगता है ।
गर्भ धारण की उम्र को विवाह के इस नियम से जोड़ना कुछ तर्क संगत नहीं है। विवाह की उम्र १८ के बाद उपयुक्त है और गर्भधारण के लिए बहुत समय है। फिर लड़की को कुछ वर्ष छोटा रखकर कौन सा फायदा उठाया जा सकता है ? सारी उम्र तो बच्चे नहीं पैदा करने होते ? फिर माहवारी बंद होने के बाद गर्भ न धारण कर पाने की इतनी चिंता नहीं होनी चाहिए।
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@ संजय दानी जी ,
मैंने ये तर्क नहीं दिया की स्त्रियाँ जल्दी mature होती हैं। सिर्फ समाज में फैले एक भ्रम का उल्लेख किया है ।
स्त्री हो या पुरुष , अपनी उम्र के साथ शिक्षा तथा परिवेश के अनुसार विकास करते है। स्त्रियाँ पुरुषों से पहले " puberty " प्राप्त करती हैं । जिसका सम्बन्ध secondary sex organs से है न की maturity से।
फिर इसका सम्बन्ध विवाह-नियम से कैसे ?
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@ राहुल जी ,
विस्तार दीजिये। आपसे अपेक्षाएं हैं।
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रविन्द्र कोष्टी जी ,
कम उम्र होने मात्र से कोई छोटा नहीं दीखता । कुछ लोग उम्र अधिक होने पर भी कम ही दीखते हैं। केवल इस कारण से की लड़की बड़ी ना लगे लड़के से, विवाह में उसकी उम्र कम होनी चाहिए ये बात कुछ हजम नहीं हुई।
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अरविन्द जांगिड जी ,
आपसे २०० प्रतिशत सहमत हूँ। समाज में ये नियम सिर्फ अपने स्वार्थ और सुविधा को ध्यान में रखकर बना दिया है। खासकर पुरुष प्रधान समाज ने अपनी सुविधाओं और इच्छाओं का विशेष ध्यान रखा है।
उम्मीद है समय के साथ लोग जागरूक होंगे और ऐसे नियमों के प्रति मन में कोई संशय या पूर्वाग्रह नहीं रखेंगे।
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According to the popular belief in India, marriages are made in heaven but solemnized on earth. However, in the fast paced modern world, the definitions are varying drastically. In the contemporary world, marriages are more so ‘man made’. At the same time the age difference in marriage, which used to be a big issue in the earlier times, does not seem to be an issue at all. As the society is experiencing a change, there are many unconventional practices, coming to the fore front and age disparity is one of them.
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There are a number of reasons, such as women empowerment, societal advancement and bold sexual preferences, responsible for the prevalent phenomena in which age difference between couples has ceased to be an issue.
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मै तो इस बात को कई बार लिख चुकी हूँ कि पुरुष ने अपने फायदे के लिए समाज में ऐसी परम्परा को जन्म दिया है जिससे वह हमेशा सुरक्षित रहे। अपनी उम्र से छोटी, लम्बाई में छोटी, पढ़ाई में कम। मतलब रौब मारने का पूरा काम। फिर भी अधिकतर पति अवसाद या हीनभावना के शिकार रहते हैं। यदि उन्हें अपने से योग्य पत्नी मिल जाती है तो वे मानसिक रोगी हो जाते हैं। लेकिन वर्तमान में समय बदल रहा है, अब ऐसी स्थितियां तेजी से बदल रही हैं। मैं तो मजाक में कई बार कहती हूँ कि हरियाणा की लड़कियों को पूर्वांचल के लड़को से शादी करनी चाहिए फिर देखें कि कैसे होती है घरेलू हिंसा।
ह्म्म्म मै देर से पहुंचा बहुत सारे बाते हो चुकी है . मुझे लगता है की कन्या छोटी होनी चाहिए वर से ऐसी धारणा समाज में चिर प्रचलित है . रोचक बहस चल रही है पढता रहूँगा . वैसे प्रेम विवाहों के बढ़ते प्रचलन से ये धारणा टूट रही है .
जो भी नियम पहले लोगों ने बनाये थे उनमें तथ्य तो ज़रूर होता है ..जिनकी जानकारी से हम वंचित रहते हैं ...और आज हम हर बात को तर्क की कसौटी पर कसना चाहते हैं ...हालाँकि कुछेक सामाजिक परम्पराओं और मान्यताओं में आज आंशिक रूप में बदलाव की गुंजाईश हो सकती है लेकिन पूर्णत: इनको नाकारा नहीं जा सकता है , सादी-व्याह के लिए पति-पत्नी की सही उम्र क्या होनी चाहिए ? इस बात पर हर किसी की अलग-अलग राय हो सकती है लेकिन उनमें से एक राय ऐसी भी सामने आएगी जो सर्वमान्य होगी , शायद कुछ ऐसे ही फार्मूले तब अपनाये गए होंगे , अर्थात नियम कानून बनाने में अनुभवो को प्राथमिकता दी गई होगी ....
आभार..............
@- अजित गुप्ता जी,
आपने बहुत सही बात कही, पुरुष प्रधान समाज ने ऐसे नियम अपनी सुविधाओं को ध्यान में रखकर बनाए हैं, इनका किसी के हित से कोई सरोकार नहीं है। इन नियमों के पीछे कोई लाभकारी तर्क भी नहीं है।
एक बार मैंने एक पंडित जी से इस विषय पर बात की , उन्होंने बताया की पुरुष , हर तरह से अपने से हीन पत्नी ही ढूंढता है। यहाँ तक की पत्रिका मिलाते समय , पुरुष यदि देव-गण का है तो कन्या को मनुष्य या फिर राक्षस गण का ही होना चाहिए तभी शादी निभेगी।
क्या ये पुरुष के अन्दर की insecurity है जिसनें गहरी जडें जमा ली हैं ?
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I have read most of the comments and responses. The one fact is clear, that at least as a society we are calling a spade a spade at last. A good start for a change. But the sad fact is even after knowing it we do not change our subconscious, for our actions are still the same. Why in love marriages, the age factor does not come into picture, because the power of love rules over the subconscious. At times the rational brain and the thinking power can be a determental in taking the right decision.
May our subconscious grow in leaps and bounds to take up the challenge.
एकबार फिर विचारणीय प्रश्न है आपके इस आलेख में सिर्फ विचारणीय ही नहीं रूचिकर बातें भी सामने आ रही हैं ...यह नियम किसने बनाया यह तो पता नहीं परन्तु सही इसे ही माना जाता है कि लड़की की उम्र कम होनी चाहिए लड़के से चाहे वह एक वर्ष हो या दो वर्ष ...और फिर आपको तो पता ही है कि भारतीय समाज में परम्परा का पालन किस तरह किया जाता है ....आज भी उसी का पालन हो रहा है ...सुन्दर लेखन के लिये बधाई
कहीं लिखा तो नहीं पढा आज तक। हां यह ज़रूर सुना था कि शारीरिक बनावट में फ़र्क़ होता है दोनों में। अब इस बात को आपसे (मेडिकल क्षेत्र से हैं) बेहतर कौन बता सकता है।
हां एक प्रथा रही है। आज कल तो लड़के अपने क्लास या बैच मेट से दोस्ती फिर शादी कर रहे हैं। तो उम्र तो बाधा तो नहीं ही होती होगी। कुछेक नामी लोगों के उदाहरण भी हैं, जैसे एक प्रसिद्ध फ़िल्मी जोड़ी और एक प्रसिद्ध क्रिकेट खिलाड़ी जहां पत्नी अधिक उम्र की हैं/रही हैं, और दाम्पत्य जीवन मधुर रहा है। बहुत अच्छी प्रस्तुति। हार्दिक शुभकामनाएं!
आज की कविता का अभिव्यंजना कौशल
मुझे तो इसमें विशेष तर्क नजर नहीं आता! और हर विषय में पुरुष प्रधान समाज यह कह कर दोष दे उचित प्रतीत नहीं होता ! कई बातो को हम एक पक्षीय दोष मानकर चलते है !जैसे स्त्री का सर में पल्ला लेना या मुस्लिम रीती के हिसाब से बुरका ओढ़ना! अब हम ये सोचे की ये पुरुष प्रधान समाज की देन है! परन्तु हमारे शहर रायपुर में पिछले दिनों ट्राफिक पुलिस ने लडकियों के स्कार्फ बांधने को लेकर स्कार्फ हटाने अभियान चलाया! परन्तु इस अभियान का लडकियों ने ही विरोध किया और तर्क दिया की अस्थमा या धुल से बचाव धुप से बचाव आदि! परन्तु पुलिस के तर्क को नजर अंदाज कर दिया की बैंक डकैती चैन खीचने जैसी घटनायो में लडकियों का होना पाया है यहाँ तक की जिस्म के धंदे में लिप्त लडकिया भी स्कार्फ बांधती है!
अब आप ये मत कहियेगा की विवाह में उम्र के अंतर के विषय पर यहाँ चर्चा हो रही है और मैंने सर में पल्ला लेने वाले विषय की चर्चा की है! सिर्फ पुरुष प्रधान समाज ऐसा कह कर नकारात्मक सोच हमें नहीं रखना चाहिए !
जहा तक पुरुष की उम्र अधिक और स्त्री की उम्र कम विषय का सवाल है तो एक तर्क ये भी हो सकता है की पुरुष को विवाह से पहले अपने पैरो में खड़ा होने या कमाने लायक होने वाली बात होगी जिससे उनकी उम्र निश्चित ही ज्यादा हो जाती है क्योकि कोई भी लड़की या उनके माता पिता बेरोजगार लड़के से विवाह हेतु सहमत नहीं होंगे !
डा दिव्या, आप जानती होंगी कि शिशु व मां वेल्फ़ेयर विभाग( (परिवार नियोजन) गर्भ धारण की उम्र मां के लिये १८ से कम न हो व पिता के लिये २१ से कम न हो---कहता है, शायद कानून में भी ( सही तो वकील लोग बतायें) विवाह की वैध उम्र--२१ व १८ है( ऊपरी सीमा तो नहीं है जिसका मूल प्रश्न है) --पर फ़िर भी यह अन्तर क्यों...आखिर यूं ही तो नहीं रखा होगा...अवश्य ही यह चिकित्सा विग्यान के अनुसार स्त्री-पुरुष दोनों के परिपक्व होने की अलग अलग उम्र के कारण ही होगा...
....शायद किसी शास्त्र के कहीं गहन अध्ययन से यह मिल भी जाय पर तब तक वर्तमान नियम पर चल सकते हैं..
अगर दोनों mature हैं और ज़िम्मेदारी उठा सकते हैं तो १-२ साल कोई किसी से बड़ा हो ज़ियादा फर्क नहीं पड़ता
@- AS ,
आपकी बात से पूरी तरह से सहमत हूँ। प्यार में वो शक्ति है जो भेंडचाल -मानसिकता को भी बदल कर रख देती है । कम से कम लोग अपनी बुद्धि को तो इस्तेमाल करते हैं । अन्यथा पिटी-पिटाई लीक पर चलने में महानता का अनुभव करते हैं।
@--At times the rational brain and the thinking power can be a deciding factor in taking the right decision.
May our subconscious grow in leaps and bounds to take up the challenge.
Yes, i completely agree with you at this point. We need to think and rationalize things before blindly following a custom.
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अमरजीत जी,
कब से आपको मेरी सोच नकारात्मक लगने लगी है ? सभी की अपनी अपनी सोच है , कैसे आप नकारात्मक का दोष लगा सकते हैं किसी पर ? यहाँ तो एक विमर्श चल रहा है। सभी अपनी अपनी समझ और अनुभवों के आधार पर अपने विचार रख रहे हैं। मुझे तो किसी की सोच नकारात्मक नहीं लगी अभी तक ।
और उम्र में अंतर रखने से बेरोजगारी कैसे दूर होगी ये समझ नहीं आया। लड़की छोटी हो बड़ी या फिर बराबर, विवाह तो रोजगार व्यक्ति से ही किया जाएगा। इसलिए रोजगार होने को मुद्दा बनाया जाए, ये तो समझ में आता है , लेकिन लड़की की उम्र कम हो इसके लिए कोई संतोषप्रद उत्तर देने की कोशिश कीजिये तो आभारी रहूंगी।
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डॉ श्याम गुप्ता,
यही तो प्रश्न है की क्या सोचकर १८ और २१ का विभेद किया गया ? शायद आपने मेरी टिप्पणियां नहीं पढ़ीं । मैंने कानूनी पक्ष, मेडिकल पक्ष और वैज्ञानिक पक्षों पर अपने विचार रखे हैं। यदि १८ साल की लड़की उपयुक्त है २१ साल के लड़के लिए तो २१ साल के लड़के के लिए २१ या २२ साल की लड़की अनुपयुक्त कैसे हुई ? व्यवहारिक दृष्टि और गर्भधारण दोनों ही दृष्टि से बेहतर होगी।
प्रश्न अभी भी अनुत्तरित है।
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इस बारेमें कभी सोचा तो नहीं पर मेरी पड़-दादीजी मेरी पड़-दादाजी से छ: महीने बड़ी थी...............और मैं मेरी पत्नीजी से एक साल छोटा हूँ :)
अमित जी,
आपके परिवार में पूर्वाग्रहों से रहित एक स्वास्थ्य परम्परा दिखाई दे रही है। अब मुझे आपके बुद्धिमान होने का रहस्य भी समझ आ रहा है।
Smiles.
koi jaroori nahi ladki ki umra ladke se kam ho.
iska ullekh na to kisi granth me hai aur na kisi tarah se iska auchitya hi hai.
purush-pradhan samaj me nari ke sath bahut se bhedbhav hote aa rahe hain,isi ka ek hissa yah bhi hai.
ऐसा तो किसी संहिता ,वेद, पुराण या फिर उपनिषदों में नहीं लिखा है।
माना कि जीवनोदेश्य के प्राप्त करने में स्त्री-पुरूष दोनों एक समान है परन्तु दोनों के कार्य पृथक-पृथक हैं और दोनों की योग्यताओं में भी असमानताएं हैं. पुरूष-स्त्री की प्रकृति पर गहन दृष्टि डालनेवाले प्राचीन परीक्षक व समीक्षक विद्वानों नें यह निश्चय किया था कि (चाहे आयु के किसी उचित भाग में विवाह किया जाए) विवाह समय पुरूष की आयु स्त्री से कम से कम डयोढी होनी चाहिए...नहीं तो न्यूनतम 7 वर्ष का अन्तर तो अवश्य होना ही चाहिए. क्योंकि जहाँ स्त्री 16 वर्ष की आयु में सन्तान उत्पन करने के योग्य हो जाती है, वहीं पुरूष सही रूप में 25वें वर्ष की आयु में इस योग्यता को प्राप्त करता है---
यदि आप शास्त्रों को ही प्रमाण मानती हैं तो मैं इस विषय में आपको अभी बीसियों ग्रन्थों के हवाले दे सकता हूँ...जिनमें इस विषय पर भरपूर प्रकाश डाला गया है. मुख्यत: स्मृतियों में मनुस्मृति, वेदों में यजुर्वेद, वैद्यक ग्रन्थ एवं महर्षि धन्वन्तरि कृत सुश्रुत संहिता, आधुनिक काल में महर्षि दयानन्द कृत सत्यार्थ-प्रकाश...कहें तो मैं कुछ ओर ग्रन्थों के नाम भी बता सकता हूँ.
महर्षि धनवन्तरि सुश्रुत संहिता में इस विषय में इस प्रकार लिखते हैं:----
पंचविशे ततो वर्षे पुमान्नारीतु षोडशे
समत्वागत वीर्य्यो तौ जानीयात कुशलोभिषक!!
अर्थात "जितनी सामर्थ्य 25वें वर्ष में पुरूष के शरीर में होती है, उतनी ही सामर्थ्य 16वें वर्ष में कन्या के शरीर में हो जाती है---इसलिए वैद्य लोग पूर्वोक्त अवस्था में दोनों को समवीर्य अर्थात तुल्य सामर्थ्य वाले जानें"
** अब एक सवाल आपसे..कि आप स्त्री और पुरूष दोनों की युवावस्था का आरम्भ आयु के किन वर्षों से मानती हैं ?
मेडिकल में भी कहीं नहीं लिखा की विवाह के लिए लड़की की उम्र लड़के से कम होनी चाहिए"
sexual physiology.....by Dr. Trall
marrige and parentage...by Dr. HENRY. C. WRIGHT
ज़रोरी तो नहीं लेकिन लड़की की उम्र कम हो तो बेहतर है.और यह केवल हिन्दू विवाह का सवाल नहीं,सभी इंसानों के विवाह का मसला है,
मुझे लगता है उम्र के इस फासले का कोई मतलब नहीं...
'सप्तरंगी प्रेम' के लिए आपकी प्रेम आधारित रचनाओं का स्वागत है.
hindi.literature@yahoo.com पर मेल कर सकती हैं.
समाज में वहुत सारे नियम , रीती रिवाज अलिखित हैं किन्तु उनके कुछ न कुछ वज्ञानिक, बौधिक तर्क जरूर हैं कई नियम लिखित होने के बाद भी हमारी जानकरी से दूर होते हैं और हम भ्रम में रहते हैं इसके पीछे भी कोई न कोई धर्म शाश्त्र कुछ न कुछ तो जरूर कहता होगा अब आवश्यकता इस बात की है आधुनिक मेडिकल विज्ञानं के युग में इस तर्क को पुष्ट और अपुष्ट करने के लिए शोध किया जाय. यदि भारत में शुन्य की खोज हो सकती है तो इस विषय पर भी अवश्य तर्क होगा . प्रश्न है कि प्रेम विवाह में इसे लागू नहीं माना जाता हर नियम में कुछ अपवाद होते हैं
आपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
प्रस्तुति कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
कल (16/12/2010) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
अवगत कराइयेगा।
http://charchamanch.uchcharan.com
ये समाज के बनाए हुए नियम ही हैं वर्ना विवाह के लिए आपसी समझदारी होना ज्यादा आवश्यक है न कि उम्र....
.
@ डी के शर्मा वत्स जी ,
आपने काफी मेहनत से ग्रंथों के नाम जुटाए हैं। इसके लिए आभार ।
आपने लिखा है की सुश्रुत के अनुसार कन्या १६ वर्ष में तथा पुरुष २५ वर्ष में संतान उत्पन्न करने की योग्यता पाता है जिससे मैं सहमत नहीं हूँ।
चूँकि यह चिकित्सकीय सन्दर्भ आ गया है इसलिए मैं पाठकों की जानकारी के लिए इस पर विस्तार से लिखूंगी अगली टिपण्णी में तथा पोस्ट को एडिट कर चिकित्सकीय सन्दर्भ को वहां जोड़ दिया जाएगा।
.
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लड़की तथा लड़के की puberty की age क्रमशः १० और १२ वर्ष से प्रारम्भ होती है [ जो विभिन्न climate तथा परिवेश में थोडा भिन्न भी हो सकती है.] । लड़की में puberty १० वर्ष से प्रारभ होकर १५-से १७ वर्ष की आयु तक पूर्ण हो जाती है। जबकि लड़के में ये १२ वर्ष की आयु से प्रारम्भ होकर १६ से १८ वर्ष तक पूर्ण हो जाति है।
puberty का अर्थ है लड़की तथा लड़के में होने वाले शारीरिक बदलाव जिसके पूर्ण होने प़र बच्चा पूरी तरह से Adult बन जाता है तथा संतानोत्पत्ति के योग्य हो जाता है।
अतः १८ वर्ष के बाद स्त्री अथवा पुरुष दोनों ही सामान रूप से संतानोत्पत्ति के योग्य हो जाते हैं।
.
.
पाठकों की जानकारी के लिए एक और बात -- Law commission द्वारा विवाह की उम्र [ लड़का और लड़की], दोनों की , एक जैसी अर्थात १८ वर्ष , करने का प्रस्ताव किया गया है।
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दिव्या से आपके विषय बहुत ही अच्छे चुने होते है.. मेरे ख्याल से ये तो एक परंपरा रही है. वैसे अब बदलाव भी दिख रहे है क्योंकि अब लोग अपने ऑफिस या साथ कम करने वाले को ही अपना जीवन साथी चुने लगे है तो इसमें कोई भी बड़ा या छोटा हो सकता है.कोई हार्ड एंड फास्ट रूल नहीं है. मेरे भाई की ही शादी होने जा रही है , जो दोनों नवोदय विद्यालय में प्रवक्ता है मगर लड़की १ साल बड़ी है... इससे किसी को एतराज भी नहीं है.
Namaste !!!!
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Jai Hind
Sanjay Sharma
किसी समय यह नियम इसलिए रहा होगा कि वह अधिक से अधिक बच्चे दे सके [क्लैमेट्रिक के पहले] पर आज न यह कोई नियम है और न ऐसा हो रहा है। अक्सर क्लासमेट से मेट करके रिश्ते तय हो रहे हैं :)
यह कोई नियम या कानून नहीं है । पसंद की बात है ।
लड़का लड़की से लम्बा अच्छा हो तो अच्छा लगता है ।
इसी तरह उम्र में भी बड़ा होने से संतुलन बेहतर रहता है ।
चिकित्सीय दृष्टि से देखें तो महिलाओं में मीनोपौज ४५-५० की आयु में होता है । लेकिन पुरुषों में एन्ड्रोपोज जैसी कोई चीज़ होती ही नहीं ।
वैसे किस ने किस को रोका है , जो पसंद हो सब वही करते हैं ।
ऊपर शब्द सुधार ..... दिव्या जी ,आपके विषय बहुत ही अच्छे चुने होते है..
मातृसत्तात्मक समाज में संभवतः पत्नी की उम्र पति से बड़ा या बराबर होता रहा होगा। जब से पितृसत्तात्मक समाज का प्रचलन प्रारंभ हुआ तब पुरुषों ने स्त्रियों पर वर्चस्व स्थापित करने के उद्देश्य से विवाह के समय लड़की की आयु को लड़के से कम रखने की प्रथा का सूत्रपात किया हेगा।
कुछ सामाजिक परंपराएं धर्मिक नियमों के भय से प्रचलित हो जाती हैं। ऐसा ही एक भय पाराशरी ग्रंथ्, जो ऋग्वेद की तृतीय शाखा है, के इस श्लोक में वर्णित है-
अष्टवर्षा भवेद् गौरी, नववर्षा च रोहिणी,
दशवर्षा भवेत्कन्या, तत्उर्ध्वं रजस्वला।
माता चैव पिता तस्या, ज्येष्ठो भ्राता तथैव च,
त्रयस्ते नरकं यान्ति, दृष्ट्वां कन्यां रजस्वलाम्।
अर्थ- कन्या की आठवें वर्ष में गौरी, नवमें वर्ष राहिणी, दसवें वर्ष कन्या और उसके आगे रजस्वला संज्ञा हो जाती है। दसवें वर्ष तक विवाह न करके रजस्वला कन्या को माता, पिता और उसका बड़ा भाई ये तीनों देख के नरक में गिरते हैं।
ये तो पौराणिक संदर्भ की बात हुई।...लेकिन आधुनिक वैज्ञानिक युग में ऐसी अतार्किक बातें निरर्थक हैं। मैं इन्हें नहीं मानता।
मघ्यममार्ग यह अपनाना चाहिए कि विवाह योग्य लड़का-लड़की की उम्र लगभग बराबर हो।
उम्र में अंतर का विवाह की सफलता से कोई सम्बन्ध नहीं. आपसी सामंजस्य की सम्भावना समान आयु के पति पत्नी में ज्यादा होती है.हमारे पुरुष प्रधान समाज में यह भी उन्ही रूढियों में से एक है जिसका कोई औचित्य या वैज्ञानिक कारण नहीं है.आज के समाज में प्रेम विवाह के प्रचलन बढ़ने के साथ, यह प्रश्न वैसे भी इतिहास के पन्नों में सरकता जा रहा है.आज हरेक ऐसा जीवन साथी चाहता है जो जिंदगी की राह में कंधे से कंधा मिला कर चल सके,इस लिए पत्नी की उम्र ज्यादा या कम होना कोई मायने नहीं रखता.
I read Dr Daral's comment and noted his reference to height.
So true.
It is not just age.
Why should a boy always be taller than the girl he marries?
Why should he always earn more than the girl he marries?
It is not just men who have this mindset.
Girls also willingly go along with this custom.
How many girls are willing to marry a boy shorter than she is or who earns less than her or who is educationally less qualified?
Society is conditioned to somehow accept that Male is superior to Female and women seem to cooperate in maintaining this belief.
Regards
GV
ये पोस्ट कब आई और कब इसमें ७० टिप्पणियाँ हो गयीं पता ही नहीं चला....इतने नए विषय पर चर्चा करने से चूक गया...
लेकिन सारी टिप्पणियाँ पढने के बाद अधिकतर में एक ही मुद्दा उठाया गया है....पुरुष प्रधान समाज..
क्या दुनिया के सारे नियम कानून का ठेका पुरुष के सर ही फूटेगा....
मानता हूँ एक ज़माने में महिलाओं पर अत्याचार होते थे... लेकिन आज कल पुरुष प्रधान समाज कहीं नहीं दीखता ...
१. अगर सड़क चलते चलते कोई लड़की या महिला किसी लड़के पर ये आरोप लगा दे की उसने उसके साथ छेड़खानी की है तो बंद लाख कोशिश करने के बाद भी साबित नहीं कर सकता जबकि महिला को कोई भी सबूत नहीं देना....
२. अगर कोई शादी शुदा महिला अपने पति या ससुरालवालों पर दहेज़ लेने का आरोप लगाती है तो आरोप झूठा होने के बावजूद भी वो बेचेरे अदालत के चक्कर काटते रहते हैं...
आज भी अदालत में ऐसे कई मामले दर्ज हैं जिनमे उनका गुनाह साबित नहीं हो पाया है लेकिन अपने पक्ष में कोई सबूत न होने के कारण वो अब भी पीड़ित हैं....
continued
फ्रॉम previous कमेन्ट २....
रही बात विवाह में उम्र के अंतर की तो इसका एक कारण मेरे हिसाब से वही हो सकता है जो अमरजीत जी ने दिया है...
%%%% पुराने ज़माने में शादियाँ जल्दी हो जाती थीं खासकर लड़कियों की... सर का बोझ समझकर(बेवकूफी)...
लेकिन लड़के तभी शादी करते थे जब वो अपने पैरों पर खड़े हो जायें तो उम्र में स्वतः अंतर हो गया न?????
फिर ये बात एक नियम ही बन गया ....
अब तो यह नियम की ऐसी की तैसी हो रहीहै...समाज के वो सारे नियम टूट रहे हैं जो किसी ज़माने में बनाये गए थे...
सही हो रहा है या गलत इसका उत्तर एक नयी चर्चा को जन्म देगा....
umeed hai abhi aapki nayi post nahi aayegi...kripya is charcha ko chalne dein....
dr. daral sir se bhi sahmat hoon... ab kahin ye sawal bhi na uthne lage ki ladka , ladki se lamba hi kyun ????
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@ शेखर सुमन -
कोशिश करनी चाहिए की किसी के लेख पर कभी विषयांतर ना किया जाए । ऐसा करने से लेख की आत्मा का दम घुट जाता है। मैंने इतनी मेहनत से पूरी चर्चा के दौरान अनेकों तर्क रख रखे और चिकित्सकीय तथा वैज्ञानिक और बैधानिक बातें रखीं , उसे आपने पढना जरूरी नहीं समझा बल्कि पुरुषों पर हो रहे अत्याचार को मुद्दा बनाकर लिखना आपने उचित समझा।
जब भी कोई ये लिखता है की पुरुष प्रधान समाज के बनाए हुए नियम , तो आपको क्यूँ लगता है है पुरुष होने के नाते ये ठीकरा आपके सर पर फोड़ा जा रहा है ? आप पुरुष हैं लेकिन आप समाज नहीं हैं। समाज बहुत लोगों से मिलकर बना होता है। जिसमें स्त्रियाँ भी शामिल हैं । लेकिन समाज अभी भी पुरुष प्रधान ही है। पहले तो आपके लिए ये समझना बहुत जरूरी है।
जिस समय में ये नियम बने , उस समय आप नहीं थे , इसलिए आप निश्चिन्त रहे आप इन नियमों के जिम्मेदार नहीं हैं। दूसरी बात आप जिस परिवेश में रह रहे हैं वो एक उन्नत समाज है , जो दकियानूसी नियमों से काफी आगे आ चुका है , वो स्वयं अपनी बुद्धि का इस्तेमाल करके सही-गलत का निर्णय करता है ।
कभी गावों में जाकर वहां की स्त्रियों की हालत देखिये । भेड़-बकरी जैसी जिंदगी है उनकी , उनके भाई , पति , पिता , दादा, चौधरी , सभी उनकी एक-एक सांस पर अख्तियार रखते हैं । सदियाँ लगेंगी अभी भारत की ८० फीसदी महिलाओं को , पुरुषों के चंगुल से निकलने में।
पुरुष समाज के बारे में जब लिखा जाता है तो सिर्फ महिलाएं ही नहीं लिखतीं बल्कि संवेदनशील पुरुष इस बात को महसूस करते हैं और लिखते हैं। इसलिए व्यग्र होने से पहले ये सोचा करिए की महिलाएं आपकी दुश्मन नहीं हैं। कोई महिला आपकी माँ होगी, पत्नी होगी , दोस्त होगी , बेटी होगी ।
इसलिए पुरुषों का दर्द समझने के साथ साथ महिलाओं से सहानुभूति रखिये जैसे महिलाएं पुरुषों में अपने भाई, पिता , मित्र , शुभ चिन्तक देखकर अक्सर उनके बनाए नियमों को आत्मसात कर लेती हैं और समाज का हिस्सा होने के कारण जाने अनजाने वो भी इन नियमों को मानने के लिए बाध्य होती हैं।
इसमें कोई दो राय नहीं की समाज में नियम पुरुष-प्रधान होने के कारण पुरुषों ने ही बनाए और अपनी सुविधा के अनुसार बनाए , जिसे मानने के उनकी माँ , बहन , बेटी , ख़ुशी अथवा मजबूरी में मानने के लिए कटिबद्ध हैं।
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शेखर सुमन जी ,
कभी गाँव में जाकर स्त्रियों की स्थिति देखिये । यदि बाप ने १५ साल की बेटी का ब्याह ४५ साल के युवक के साथ कर दिया तो भी भी वो कुछ नहीं बोल सकती क्यूंकि उसकी जिंदगी खूंटे से बंधे चौपायों की तरह है । कभी कभी माँ इसका विरोध भी करेगी तो उसकी आवाज़ का गला घोंट दिया जाएगा । सब मजबूर हैं। मजबूरी में माँ और बेटी की सहमती उस पुरुष पिता के मिल जायेगी और समाज के भोंडे नियम पुख्ता होते जायेंगे।
ब्लोगिंग की महिलाएं और जो देश विदेश में उच्च पदों पर काम कर रही हैं , उन्हें भारत की आम महिला मत समझिये , वो शिक्षित हैं तथा अपने अधिकारों को एवं उनके लिए क्या बेहतर है , ये समझती हैं और वो इसका निर्णय ले सकती हैं क्यूंकि वो सक्षम हैं।
चिंता तो उस मध्यमवर्गीय महिला की है , जो कम शिक्षित हैं , जो जागरूक नहीं हैं, जो दमित हैं, जो लाचार हैं, जो गरीब हैं , जो अपने अधिकार ही नहीं जानतीं, जो अपने अस्तित्व तक को नहीं पहचानतीं, जो गाय की तरह हाँक दी जाती हैं ।
एक शिक्षित पुरुष और एक शिक्षित महिला की ये नैतिक जिम्मेदारी है की वो अपने के कमतर लोगों की मदद करे और उसके साथ सहानुभूति का रवैय्या रखे ।
आभार।
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मेरी जानकारी में है कि सौ-दो सौ वर्ष पूर्व भी लड़के से दो-एक साल बड़ी लड़की से शादी कर दी जाती थी. Puberty कोई आधार नहीं लगता. पाँच साल छोटी लड़की नए परिवार में थोड़ा डरेगी और शुरूआत में ही थोड़ा दब जाएगी और घर के अनुकूल होने की कोशिश करेगी. यह एक बड़ा कारण दिखाई देता है. लड़कियों को दबा कर रखना समाज में एक तरह की संस्थागत प्रक्रिया रही है.
umra maayne hi kahan rakhti hai....
kab rakhti hai........
vivekanand ji ne 30-35 saal ke umra me gyan ki alakh jalayi....
therefore it's not the age but the thought in the right direction that matters...
i dont think that science will have different view too...
because science is itself the thought in the right direction....
the thought is not governed by the age but the enlightenment of the soul....and for living a life ,age is not but the enlightenment is necessary...........
I don't believe in age...whether wife is elder,husband is older or of the same age ...it does not matter for living a good life ...
but at the same time I am not encouraging the child marriage(it is an evil)...
माफ़ कीजिये दिव्या जी...
अगर मैं विषय से भटक गया ..
एक इंसान(पुरुष ही सही )होने के नाते मैं सभी के दर्द को समझता हूँ, मैंने स्त्रियों की स्थिति के ऊपर एक कविता भी लिखी थी अगर आपको याद हो..और आज के समय में पुरुष कितना असुरक्षित महसूस करते हैं उसपर भी एक लेख आया था...
वैसे मैं अपनी दूसरी टिपण्णी आपके विषय पर ही दी थी..शायद आपने गौर नहीं किया...
और दिव्या जी मेरी आधी ज़िन्दगी तो गाँव में ही गुजरी है और यकीन मानिये वहां सिर्फ लड़कियों को ही नहीं लड़कों को भी समाज के उन दकियानूसी नियमो का पालन करना पड़ता है जिसका कोई औचित्य नहीं है... उम्मीद है जल्दी ही हम पुरुष प्रधान या महिला प्रधान समाज की बजाय एक इंसानियत प्रधान समाज की स्थापना कर पाएंगे...और ऐसा करने के लिए हम और आप जैसे शिक्षित और जागरूक इंसानों की ज़रुरत होगी....
मुझे आपके प्रश्न का जो जवाब समझ में आया वो अपनी दूसरी टिपण्णी में दिया था...
बहुत खुब प्रस्तुति.........मेरा ब्लाग"काव्य कल्पना" at http://satyamshivam95.blogspot.com/ जिस पर हर गुरुवार को रचना प्रकाशित...आज की रचना "प्रभु तुमको तो आकर" साथ ही मेरी कविता हर सोमवार और शुक्रवार "हिन्दी साहित्य मंच" at www.hindisahityamanch.com पर प्रकाशित..........आप आये और मेरा मार्गदर्शन करे..धन्यवाद
आपने पोस्ट में शारीरिक आधार पर जो कहा और राधारमण जी तथा वत्स जी ने जो टिपण्णी की ,मुझे लगता है दोनों को मिलकर बात पूरी होती है...
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देखिये में इस बिषय पर बोलना नही चाहता मेरा दिमाग इस बिषय पर मेरे मन को रोक रहा हैं बराबर सचेत कर रहा कि सिर्फ लोगो के कॉमेंट्स को सिर्फ पढ़ो और समझने की कोशिश करो मगर जिस का भी कॉमेंट पढा वह ये ही कहता मिला कि पुरुषों का ये अत्याचार हैं
मैडम जी शास्त्रो मे पत्नी का गुरु हमेशा उसका पति बताया गया है इसलिए उसके पति की उम्र और ग्रह स्त्री से ज्यादा ही होना चाहिए
Right dii meri v gf 3 saal badi h fhir bhi hum unse shadi krege
मन को प्रसन्न कर दिए साब जी
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