दो अनशन -
- बाबा रामदेव का अनशन भ्रष्टाचार और काले धन की वापसी के लिए
- स्वामी निगमानंद का अनशन गंगा नदी बचाने के लिए।
एक की मृत्यु हो गयी और दुसरे का अनशन तुडवा दिया गया । क्या दोनों असफल हैं ? क्या अनशन व्यर्थ गया ? क्या सरकार की विजय हुयी ?
मेरे विचार से , कुछ भी व्यर्थ नहीं जाता। विज्ञान की मानें तो ऊर्जा का नाश नहीं होता , ये केवल अपना स्वरुप बदलती है । kinetic से potential , और कभी heat energy तो कभी sound आदि आदि...
इसी प्रकार बाबा के अनशन और स्वामी निगमानंद के अनशन से जो जन चेतना आ चुकी है , वही इस अनशन की सफलता है। सजग तो मनुष्य पहले से ही था, बस एक नेतृत्व की आवश्यकता थी । मार्ग दर्शन की ज़रुरत थी । अब जनता को दिशा मिल गयी है। यही सफलता है इस जन आन्दोलन की।
हार तो सरकार की हुयी है। सरकार ने इस पूरे प्रकरण में निम्न मिसालें कायम की हैं।
- सरकार ने बर्बरता की मिसाल कायम की है।
- इस देश में संतों का कितना अनादर होता है , ये बताया है।
- कायरों का देश है जहाँ सोयी हुई निहत्थी जनता को मारा जाता है।
- कोई भूखा प्यासा , देश के हित में मांग कर रहा है , तो कैसे उसके दम तोड़ने का इंतज़ार किया जाता है।
- जनता के मूल अधिकारों का हनन करती है ।
- लोकतंत्र की हत्या करती है ।
- मानवता जैसी कोई चीज़ नहीं है राजनीतिज्ञों के दिलों में।
- बाबा निगमानंद के ६८ दिन के अनशन पर भी जूँ तक नहीं रेंगी दृष्टिहीन और बधिर राजनीतिज्ञों पर।
- ये सरकार तानाशाह है जो जनता पर शासन कर रही है , जनता के कष्टों से उसे कोई सरोकार नहीं है।
- लोगों को five star होटल में बुलाकर गुप-चुप मंत्रणा करती है फिर धोखा और blackmail करके पत्र लिखवाती है , फिर पब्लिक में जलील करती है और सबके सोने का इंतज़ार करती और फिर निशाचरों की तरह अपनी असलियल दिखाती है।
- इस देश में देशभक्त होना भी गुनाह है।
- सच्चाई के मार्ग पर चलना गुनाह है।
- दुश्मन मुल्कों के साथ नाश्ता पानी करती है।
- आतंकवादियों को शाही दामाद की तरह रखती है , और मासूमों को पीटती है।
- खुद तो दो जून की रोटी भी त्याग नहीं सकती , लेकिन देशहित सोचने वाले संतों और नागरिकों के मरने का इंतज़ार करती है।
- सबसे बड़ी मिसाल तो घोटालों में कायम की है।
- उससे भी बड़ी मिसाल सबकी धन-सम्पति पर आयोग बिठाने में की है
- वाह जनाब वाह ! कमाल हैं आप !
विपक्ष की राजनितिक रोटियां -
विपक्ष में बैठे राजनीतिज्ञ भी अनशन की आंच पर अपनी कुटिल रोटियां सेंकते दिखाई दिए। घायलों का हाल चाल नहीं पूछा , केवल बयानबाजी की और जगह-जगह निरर्थक सत्याग्रह किया।
देशभक्ति के नाम पर अनावश्यक रूप से नाचा-गाया , लेकिन कोई देशभक्त भूख से दम तोड़ रहा है , उस दिशा में नहीं सोचा।
मायावती की सोंधी रोटी -
कांग्रेस की निंदा तो कर दी , लेकिन बाबा को अपने राज्य में घुसने की इज़ाज़त तक नहीं दी । डर किस बात का ? सब एक जैसे हैं । दम्भी और स्वार्थी । चोर-चोर मौसेरे भाई ।
राहुल राजकुमार की राजनीति -
यत्र-तत्र गत्रीबों का झंडा लिए दिखाई दे जायेंगे। सब के दुःख-सुख से नकली सरोकार रखेंगे। देश के युवा को जागृत करते फिरेंगे। लेकिन जब लोग जागृत हो जायेंगे तो ये आँख बंद करके नंदन-कानन में underground हो जायेंगे ।
क्या इस सुकुमार को तंत्र की बर्बरता नहीं दिखी ? स्त्रियों , युवाओं और बुजुर्गों पर अत्याचार नहीं दिखा ? बड़ा selective दिल पसीजता है राजकुमार का।
ईमानदार प्रधानमन्त्री के रहते यदि भ्रष्टाचार पनपता है तो क्यूँ न कोई अत्यंत-भ्रष्ट व्यक्ति को शासन की बागडोर सौंपी जाये , शायद राम राज्य वापस आ जाए ?
क्या ख़याल है आपका ?