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Wednesday, June 15, 2011

क्या अनशन व्यर्थ गया ?

दो अनशन -

  • बाबा रामदेव का अनशन भ्रष्टाचार और काले धन की वापसी के लिए
  • स्वामी निगमानंद का अनशन गंगा नदी बचाने के लिए।

एक की मृत्यु हो गयी और दुसरे का अनशन तुडवा दिया गया क्या दोनों असफल हैं ? क्या अनशन व्यर्थ गया ? क्या सरकार की विजय हुयी ?

मेरे विचार से , कुछ भी व्यर्थ नहीं जाता। विज्ञान की मानें तो ऊर्जा का नाश नहीं होता , ये केवल अपना स्वरुप बदलती है kinetic से potential , और कभी heat energy तो कभी sound आदि आदि...

इसी प्रकार बाबा के अनशन और स्वामी निगमानंद के अनशन से जो जन चेतना चुकी है , वही इस अनशन की सफलता है। सजग तो मनुष्य पहले से ही था, बस एक नेतृत्व की आवश्यकता थी मार्ग दर्शन की ज़रुरत थी अब जनता को दिशा मिल गयी है। यही सफलता है इस जन आन्दोलन की।

हार तो सरकार की हुयी है। सरकार ने इस पूरे प्रकरण में निम्न मिसालें कायम की हैं।

  • सरकार ने बर्बरता की मिसाल कायम की है।
  • इस देश में संतों का कितना अनादर होता है , ये बताया है।
  • कायरों का देश है जहाँ सोयी हुई निहत्थी जनता को मारा जाता है।
  • कोई भूखा प्यासा , देश के हित में मांग कर रहा है , तो कैसे उसके दम तोड़ने का इंतज़ार किया जाता है।
  • जनता के मूल अधिकारों का हनन करती है ।
  • लोकतंत्र की हत्या करती है ।
  • मानवता जैसी कोई चीज़ नहीं है राजनीतिज्ञों के दिलों में।
  • बाबा निगमानंद के ६८ दिन के अनशन पर भी जूँ तक नहीं रेंगी दृष्टिहीन और बधिर राजनीतिज्ञों पर।
  • ये सरकार तानाशाह है जो जनता पर शासन कर रही है , जनता के कष्टों से उसे कोई सरोकार नहीं है।
  • लोगों को five star होटल में बुलाकर गुप-चुप मंत्रणा करती है फिर धोखा और blackmail करके पत्र लिखवाती है , फिर पब्लिक में जलील करती है और सबके सोने का इंतज़ार करती और फिर निशाचरों की तरह अपनी असलियल दिखाती है।
  • इस देश में देशभक्त होना भी गुनाह है।
  • सच्चाई के मार्ग पर चलना गुनाह है।
  • दुश्मन मुल्कों के साथ नाश्ता पानी करती है।
  • आतंकवादियों को शाही दामाद की तरह रखती है , और मासूमों को पीटती है।
  • खुद तो दो जून की रोटी भी त्याग नहीं सकती , लेकिन देशहित सोचने वाले संतों और नागरिकों के मरने का इंतज़ार करती है।
  • सबसे बड़ी मिसाल तो घोटालों में कायम की है।
  • उससे भी बड़ी मिसाल सबकी धन-सम्पति पर आयोग बिठाने में की है
  • वाह जनाब वाह ! कमाल हैं आप !

विपक्ष की राजनितिक रोटियां -

विपक्ष में बैठे राजनीतिज्ञ भी अनशन की आंच पर अपनी कुटिल रोटियां सेंकते दिखाई दिए। घायलों का हाल चाल नहीं पूछा , केवल बयानबाजी की और जगह-जगह निरर्थक सत्याग्रह किया।

देशभक्ति के नाम पर अनावश्यक रूप से नाचा-गाया , लेकिन कोई देशभक्त भूख से दम तोड़ रहा है , उस दिशा में नहीं सोचा।

मायावती की सोंधी रोटी -

कांग्रेस की निंदा तो कर दी , लेकिन बाबा को अपने राज्य में घुसने की इज़ाज़त तक नहीं दी डर किस बात का ? सब एक जैसे हैं दम्भी और स्वार्थी चोर-चोर मौसेरे भाई

राहुल राजकुमार की राजनीति -

यत्र-तत्र गत्रीबों का झंडा लिए दिखाई दे जायेंगे। सब के दुःख-सुख से नकली सरोकार रखेंगे। देश के युवा को जागृत करते फिरेंगे। लेकिन जब लोग जागृत हो जायेंगे तो ये आँख बंद करके नंदन-कानन में underground हो जायेंगे

क्या इस सुकुमार को तंत्र की बर्बरता नहीं दिखी ? स्त्रियों , युवाओं और बुजुर्गों पर अत्याचार नहीं दिखा ? बड़ा selective दिल पसीजता है राजकुमार का।

ईमानदार प्रधानमन्त्री के रहते यदि भ्रष्टाचार पनपता है तो क्यूँ कोई अत्यंत-भ्रष्ट व्यक्ति को शासन की बागडोर सौंपी जाये , शायद राम राज्य वापस जाए ?

क्या ख़याल है आपका ?