मारो , पीटो , बंदी बनाओ - यही है भारतीय सरकार की रणनीति ! कुचल दो , दमन कर दो , बुझा दो लोगों के दिलों में धधकती आग को , दबा दो जागरूक होती आवाजों को - यही है पहचान , भारतीय लोकतंत्र की !
कितने अन्ना और रामदेव को मारोगे, जिन्होंने अपने जैसे करोड़ों तैयार कर दिए हैं । भारत-भूमि , देशभक्तों , सत्याग्रहियों , अहिंसावादियों , सत्यवादियों और स्पष्ट्वादियों से अभी खाली नहीं हुयी है । आन्दोलन जारी रहेगा। दमन की नीति कारगर नहीं हो सकेगी । लोकतंत्र सही अर्थों में बहाल होगा ।
गरीब जनता बढती महंगाई और भूखमरी से त्रस्त होकर आत्महत्या का विकल्प चुन रही है , जिसके लिए सरकार जिम्मेदार है। हमारी सरकार तानाशाही की मिसाल कायम कर रही है। छोटे से लेकर बड़े , हर स्तर पर भ्रष्टाचार व्याप्त है। ऐसे में अन्ना की मांग जायज है और बहुत जरूरी भी है। जनता की हर इकाई की यही मांग है। लोकपाल बिल के दायरे में सभी को होना चाहिए। आखिर डर किस बात का ? डर तो सिर्फ चोरों को लगना चाहिए। जो सही है उसे भय किस बात का?
वैसे हमारी सरकार इतनी भी कमज़ोर नहीं। आजादी के ६४ वर्षों में बड़ी उस्तादी से कुर्सी बचाए हुए है। एक अरब जनता को मूर्ख बनाना कोई मामूली काम नहीं है। अन्ना , रामदेव और उनके साथ उठती लाखों आवाजों का दमन करना कोई हमारी सरकार से सीखे।
लोगों का कहना है कि सभी राजनीतिक पार्टियाँ एक सी ही हैं , सरकार बदलने से कोई लाभ नहीं । यदि यह सच है तो भी तख्ता पलटना चाहिए और यह सिलसिला तब तक जारी रहना चाहिए जब तक हम पर शासन करने वाली सरकारें अपनी जनता के हित में सोचना न सीख जाएँ ।
हमारे बेशकीमती मतों का लाभ स्वार्थी सरकार आराम से ले रही है। हमारी सरकार कमज़ोर है, डरपोक भी। स्वार्थी और अलोकतांत्रिक भी। भ्रष्ट भी और असंवेदनशील भी। जो जनता कि आवाज़ का दमन करे , वह असंवैधानिक और अनैतिक भी है।
Zeal