Sunday, October 17, 2010

प्रति प्रसव -- पूर्व जन्म पुनरागमन -- past life regression.

प्रायः ऐसा देखा गया है की कुछ लोगों में कुछ मानसिक रोग ऐसे होते हैं जो किसी भी प्रकार की चिकित्सा से नहीं ठीक हो पाते हैं। इसके लिए चिकित्सकों ने सम्मोहन का सहारा लिया। सम्मोहन के द्वारा व्यक्ति को उसके पूर्व जन्म में लेजाकर उसके साथ हुई घटनाओं का विश्लेषण करते हैं और उसके अनुसार , वर्तमान जन्म की समस्या का निदान ढूंढते हैं। इस चिकित्सा पद्धति से बहुत ही आंशिक सफलता मिली है आज तक ।


अनेकानेक जन्म लेने के साथ कभी कभी आत्मा भी बोझ तले दब जाती है । ओवर-बर्डएंड हो जाती है । जिसके कारण मनुष्य के वर्तमान जीवन में कुछ अनसुलझी सी उलझने हो जाती हैं। इस स्थिति से निपटने के लिए मनोवैज्ञानिक , मनोचिकित्सक तथा माध्यमों ने इसका उपयोग करना शुरू किया।

सम्मोहन से पूर्व जन्म में ले जाने को प्रति प्रसव भी कह सकते हैं। इसमें जाकर व्यक्ति , कुछ धुंधली सी , अस्पष्ट सी, बातों का विवरण देता है। जो सत्य कम होती हैं, बल्कि उसकी पूर्व की यादें, बचपन की , तथा टी वी पे दखा हुआ कुछ या सुना हुआ कुछ , जो उसके मष्तिक पटल पर अंकित है , उसे बतलाता है।

व्यक्ति के द्वारा दिए गए विवरण सत्य न होने के कारण इसका चिकित्सकीय लाभ भी नहीं मिल पता। उलटे इस प्रक्रिया से गुजरने के बाद व्यक्ति को कुछ और भी परेशानियों का सामना कर पड़ सकता है।

सम्मोहन द्वारा प्राप्त निष्कर्ष यही है की व्यक्ति , अपने अवचेतन मन में बैठे हुए विचार , श्रुत एवं अनुभूत धारणाओं को ही मूर्त रूप देता है। उसके बताये हुए विवरण की जांच करने पर ये पाया गया की , ज्यादातर बातें सत्य नहीं हैं।

इसलिए यदि कोई इस प्रक्रिया से चिकित्सा की उत्सुकता रखता है , तो वो उपचार की उम्मीद कम रखे , बल्कि अनजानी मुश्किलें उसके गले पड़ सकती हैं।

आभार।

91 comments:

Coral said...

Dear Divya

Happy to see your snap back in its position...its good that you have decided not to remove it. I believe in women power ...

मै हमेशा ही आपके पोस्ट पढ़ती हू और सराहती हूँ .... क्यूंकि मुझे उसमें आपका गहन चिंतन दीखता है ...
पर आज कुछ बाते खटक रही है...शायद मै इस विषय से अवगत नहीं हूँ .... फिरभी एक विज्ञानं कि छात्रा होने के नाते एक सवाल है ... कृपया आपके निम्नोक्त वाक्यों को विस्तारित कीजिये:

अनेकानेक जन्म लेने के साथ कभी कभी आत्मा भी बोझ तले दब जाती है । ओवर-बर्डएंड हो जाती है ।
जिसके कारण मनुष्य के वर्तमान जीवन में कुछ अनसुलझी सी उलझने हो जाती हैं।

भारतीय नागरिक - Indian Citizen said...

सम्मोहन से लोगों को ठगे जाते तो सुना है..

G Vishwanath said...

Welcome back Iron Lady!
That's the spirit!
Keep it up!

Now this time you have come up with a really weighty and serious post.
Let us see how many comments you get.
I am sure the butterflies and bees will fly away in fear!

Hypnotism, faith healing, and various therapies like these have always fascinated us. When all else fails people are so desperate that that they are willing to try anything.

I am not knowledgeable about this subject and will not attempt to make a relevant comment.
I am happy to state that you reviewed your decision and are back in the fray with renewed determination.


Thanks for some serious reading matter this Sunday morning.

Best wishes
G Vishwanath

Bharat Bhushan said...

पुनर्जन्म एक छलावा है. सात जन्म का साथ एक तरह की भावनात्मक संतुष्टि देता है. शायद इसी लिए पुनर्जन्म की अवधारणा को प्रसिद्धि प्राप्त हो गई. पोस्ट ने इसके एक अन्य पक्ष को उद्घाटित किया है. Thanks Dr.

ethereal_infinia said...

Dearest ZEAL:

Did not get the drift of the post.

But I am a firm believer in the occult so I have faith in re-births.


Arth Desai

Anonymous said...

आपका नाम और तस्वीर देख कर ख़ुशी हुई...सच में... :)
माफ़ कीजियेगा दिव्या जी यह विषय अपने पल्ले नहीं पड़ा....पुनर्जन्म में तो मैं विस्वास नहीं करता...जो इस पद्धति से इलाज करवाते हैं उनसे सादर अनुरोध है कृपया ऐसा ना करें.....
दिव्या जी आपको दशहरा की शुभकामनाएं, उम्मीद है थाईलैंड में होता होगा दशहरा ...हिन्दुस्तानी कहाँ नहीं है....

मनोज भारती said...

"अनेकानेक जन्म लेने के साथ कभी कभी आत्मा भी बोझ तले दब जाती है । ओवर-बर्डएंड हो जाती है । जिसके कारण मनुष्य के वर्तमान जीवन में कुछ अनसुलझी सी उलझने हो जाती हैं। इस स्थिति से निपटने के लिए मनोवैज्ञानिक , मनोचिकित्सक तथा माध्यमों ने इसका उपयोग करना शुरू किया।"

क्या विज्ञान ने पुनर्जन्म के सिद्धांत को मान्यता दे दी है ?
"अनेकानेक जन्म लेने के साथ कभी कभी आत्मा भी बोझ तले दब जाती है । ओवर-बर्डएंड हो जाती है ."
क्या डाक्टर अनेक जन्मों में विश्वास रखते हैं ? क्या आत्मा है ? और क्या आत्मा भी ओवर-बर्डएंड होती है ?

सम्मोहन चिकित्सा परिणाम देती है । लेकिन इसका अभ्यास हर कोई नहीं कर सकता । चिकित्सक और साधक दोनों को ही बहुत सजग रहने की जरूरत होती है । निश्चित रूप से बहुत बार सम्मोहन उपचार से जीवन में जटिलताएँ बढ़ जाती हैं ।

डा० अमर कुमार said...
This comment has been removed by the author.
महेन्‍द्र वर्मा said...

सम्मोहन से मनुष्य के वर्तमान जन्म की दमित इच्छाओं को जाना जा सकता है। सम्मोहन के द्वारा पूर्वजन्म के तथ्य जानना संभव नहीं है। हर मनुष्य के निजी जीवन में कुछ ऐसी घटनाएं घटित होती रहती हैं जिसे वह दूसरों के सामने व्यक्त नहीं कर पाता। यही घटनाएं उसके अवचेतन मन पर एकत्रित होती रहती हैं, जिसका ज्ञान उस व्यक्ति को भी नहीं होता। यदि इनमें से कुछ घटनाएं नकारात्मक हुईं तो व्यक्ति कुंठित हो जाता है जो प्रायः मनोविकार या मनोरोग का रूप ले लेती हैं। एक मनोविश्लेषक ऐसे मनोरोगी को सम्मोहन में ले जाकर उसके अवचेतन मन में एकत्रित उन दमित भावनाओं को जान लेता है जिसके कारण वह मनोरोगी हुआ है, तदनुसार चिकित्सक काउंसलिंग या परामर्श के द्वारा उसकी चिकित्सा करता है। सम्मोहन से पूर्वजन्म के तथ्यों को जान लेने की धारणा एक भ्रम के सिवाय कुछ नहीं है।

महेन्‍द्र वर्मा said...

विजयादशमी पर्व की हार्दिक शुभकामनाएं।

प्रवीण पाण्डेय said...

Brian Weiss ने इस विषय पर कई पुस्तकें लिखी हैं, 3 मैंने पढ़ी हैं। स्वयं पर पूर्णतया विश्वास करने की आवश्यकता और साहस भले ही न हो पर इस प्रक्रिया को अवैज्ञानिक कह देना भी उचित न होगा। यह पुनर्जन्म के सिद्धान्तों की वैज्ञानिक संस्तुति है।

अंकित कुमार पाण्डेय said...

दिव्या मैम,
हम भी प्रतीक्षा में हैं "Coral ","Bhushan", "Shekhar Suman"तथा "मनोज भारती" के प्रश्नों / तर्कों / आरोपों के उत्तर की

विजयादशमी की हार्दिक शुभकामनाये

ZEAL said...

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@ Coral ,

जैसा की हम जानते हैं , की आत्मा मरती नहीं है , तथा बहुत बार शारीर बदलती है , कई योनियों से भी होकर गुजरती है। निश्चय ही आत्मा भी बहुत से अनुभव करती है। इन्हीं अनेकानेक अनुभवों से गुजरते हुए एक आत्मा कभी न कभी क्लांत भी हो जाती है। यही तात्पर्य है मेरा ।

प्राचीन भारत में प्रति-प्रसव का उल्लेख उपनिषदों में मिलता है। इसका विस्तृत वर्णन पतंजलि रचित 'तोग-सूत्र' में मिलता है। आत्मा के क्लांत होने की बात पतंजलि द्वारा कही गयी है। लेकिन ऊपर जो व्याख्या है वो मैं अपनी समझके अनुसार लिख रही हूँ।

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ZEAL said...

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पतंजलि में 'प्रति-प्रसव' का उल्लेख है। बात में सन १९५० से ये " Past life regression " के तौर पर पनपा।

कुछ शोधकर्ताओं का दावा है की , उन्होंने मरीज को पूर्व जन्म में ले जाकर उसकी व्याधि को समझा है और उसका सफल उपचार भी किया है। लेकिन मेरी समझ से इसके लिए सम्मोहन की सहायता न लेकर , मनोवैज्ञानिक तरीकों का इस्तेमाल किया जाना चाहिए।

मनोविज्ञान में एक शब्द है, Confabulation जिसके अंतर्गत मरीज एक सिलसिलेवार गलत विवरण देता है, घटनाओं का तथा अपने अवचेतन मन में दबी हुई बातों, इच्छाओं अथवा जिज्ञासाओं का। ऐसा प्रायः ब्रेन -इंजुरी के कारण होता है। लेकिन जो लोग न्युरोलोजिकाली बिलकुल सामान्य हैं, उनके अन्दर भी मेमोरी कन्फ्यूज़न सम्बन्धी गड़बड़ियाँ हो सकती हैं, जो निर्भर करती हैं , उनके जीवन में हुए हादसों और घटनाओं पर।

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ZEAL said...

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प्रवीण जी,

आपसे सहमत हूँ की इसे अवैज्ञानिक नहीं कहा जा सकता। लेकिन इसमें बहुत शोध की आवश्यकता है। इस विषय पर उपलब्ध जानकारी अपनी शैशव अवस्था में है , जो मनुष्य के लिए हानिकारक ही है फिलहाल ।

Brian Weiss ने दावा किया है उसने एक महिला मरीज को उसके पिछले ८४ जन्मों में ले गया तथा वापस उसे इसी जन्म में लाया।

प्रश्न यह है की उसके द्वारा दावा किये गए ८४ जन्मों का प्रमाण क्या है ? इस तरह के प्रयोग करने वाला ही कोई दशानन के सामान दस सरों की मेधा रखने वाला होना चाहिए। फिर जिस स्त्री ने सम्मोहन में अपने ८४ जन्मों का ब्यौरा दिया , उसकी वैज्ञानिक जांच कैसे संभव हो सकती है ?

यदि Brian Weiss को अति मेधावी तथा विशिष्ट शक्तियों से पूर्ण मान भी लें, तो उनकी तरह की विशिष्ट क्षमता रखने वाले मनोचिकित्सक विरले ही होंगे। अतः Brian Weiss द्वारा लिखी पुस्तकों के आधार पर जो हो रहा है वो कहीं न कहीं मरीज के लिए मुश्किल पैदा करने वाला ही है।

सम्मोहन के दौरान दिए गए विवरण की वैज्ञानिक जाचों ने उसे पूर्व जन्म से सम्बंधित नहीं पाया अपितु उसके अवचेतन मन में बैठे हुए विचार, धारणाएं, स्वप्न , श्रुत और अनुभूत विषयों का संग्रह पाया।

सबसे अहम् ये है की , सम्मोहन से वापस लौटने के बाद , मरीज या उस व्यक्ति की मानसिक अवस्था पर क्या प्रभाव पड़ा है। काफी हद तक संभव है की उसके अवचेतन मन में कुछ और धुंधली अवधार्नाएं अपना स्थान बना लें। और एक कन्फ्यूज्ड मेमोरी Confabulation को जन्म दें।

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ZEAL said...

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अंकित जी,

मैं कोशिश करुँगी यथासंभव अपनी बात तर्क के साथ रख सकूँ।

आपको एवं सभी को विजयदशमी की शुभकामनाएं।

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डा० अमर कुमार said...


@ प्रवीण पाण्डेय said...
Brian Weiss ने इस विषय पर कई पुस्तकें लिखी हैं, 3 मैंने पढ़ी हैं।...........| यह पुनर्जन्म के सिद्धान्तों की वैज्ञानिक संस्तुति है ।

At this context
I would suggest you to Please grab a copy of " Gods Demons and Spirits by- Dr. Abraham Kovoor

and...
Abnormal psychology in Modern Life - James Coleman

Some books by Dr. Tuesday Lobsang Rampa, including 'The Third Eye' gives an interesting reading over man made such innovations.

ZEAL said...

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सम्मोहन द्वारा मनोरोगी से उसके अवचेतन मन में उपलब्ध जानकारी लेकर उसका मनो चिकित्सा करना तो संभव है, लेकिन वो उसके पूर्व-जन्म को जान रहा है, ये बात कुछ उचित नहीं लगती है। अभी ये सम्मोहन का सिद्धांत बहुत कुछ हिपोथिसिस पर निर्भर कर रहा है। वैज्ञानिक पुख्ता प्रमाणों के लिए इसमें प्रयोग की बेहद आवश्यकता है।


एक प्रयोग में एक महिला ने बताया की पूर्व जन्म में वो एक आयरिश महिला थी । जो स्थान उसने बताया वहां जांच के बाद पता चला की वो उसके बचपन की यादें थीं और एक आयरिश महिला उसकी पडोसी थी।

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Indranil Bhattacharjee ........."सैल" said...

सबसे पहले तो आपको विजया दशमी की हार्दिक शुभकामनायें ...

अब आते हैं आपके पोस्ट पर ...
संमोहन द्वारा पिछले जनम की बातों का पता लगाना, फिर आत्मा का अस्तित्व तक बात जाना ... हम इन सबके पीछे ये मान बैठे हैं कि ये सब सच है क्यूंकि इस बात का उल्लेख उपनिषदों में मिलता है और इसका विस्तृत वर्णन पतंजलि रचित 'तोग-सूत्र' में मिलता है ।

माफ करियेगा ... मैं आपसे सहमत नहीं हो पा रहा हूँ ... मैं न तो उपनिषद पढ़ा हूँ, नहीं पतंजलि ... पर मेरा साधारण ज्ञान ये कहता है कि अगर कोई ये कहता है तो गलत है ... विज्ञानं में कहीं भी इन बातों को माना नहीं गया है ... हाँ पराविज्ञान का नाम देकर बहुत कुछ कहा जा रहा है ... दरअसल ये सब अन्धविश्वास का ही नाम है जो पराविज्ञान के नाम से प्रचलित किया जा रहा है ...
हो सकता है मेरा ज्ञान आपसे कम हो ... मै तो बस अपना वक्तव्य रख रहा था ...

ZEAL said...

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इन्द्रनील जी,

यहाँ सहमत और असहमत होने का प्रश्न ही नहीं है। यहाँ तो हम जितना जानते हैं , उसके आधार पर तार्किक रूप से अपनी बात ही रख रहे हैं। मेरा ज्ञान भी सिमित है। अपने ज्ञान के विस्तार के लिए ही तो ये लेख यहाँ प्रस्तुत किया है। आपसी विमर्श से हम सभी कुछ न कुछ लाभान्वित ही होंगे।

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Anonymous said...

मेरे ख्याल से सम्मोहन, कोई जादू टोना या तंत्र मंत्र नहीं, यह तो विज्ञान है... कई तरह के म्यूजिक therapie से भी सम्मोहन किया जाता और इसके तो काफी मान्यता प्राप्त डॉक्टर भी हैं...

उस्ताद जी said...

4/10

ठीक है
भारी विषय पर हल्का लेखन
ज्यादा विश्लेषण की आवश्यकता

Aruna Kapoor said...

vyakti ko sammohan ki sthiti mein aap le jaa sakte hai...lekin bimaarion ka sambandh punarjanm se jodna kaha tak sahi hai?...vichaarniy aalekh!

BrijmohanShrivastava said...

एक गंभीर विषय एक गंभीर चिंतन । पुनर्जन्म और आत्मा की अमरता क्या सीमित लोगों का चिंतन नहीं है? ओशो ने मजाक में कहा था जो मरने से डरते हैं वे आत्मा की अमरता में विश्वास करते है। तर्क और कुतर्क । आपने इस उददेश्य से यह आर्टीकल लिखा ही नही है आपका तो यह संदेश है कि जो इस चिकित्सा का आकांक्षी है वह सफलता की उम्मीद कम रखे । और सही भी लोग तो स्वप्न कैसे आते है इस आधार पर भी चिकित्सा करते है। संगीत चिकित्सा , रंग चिकित्सा और एरोमा थैरेपी, रेकी वल्कि एक्युप्रेशर भी कम ही विश्वसनीय है और गम्भीर और तुरंत चिकित्सा की आवश्यकता पर तो यह विल्कुल ही कारगर नहीं है ।विषय अच्छा था संदेश भी उत्तम था लेकिन टिप्पणी के रुप में प्राप्त कुछ तर्क लाखों वर्षो से चलंे आरहे है और लाखों वर्ष चलेंगे

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

उपयोगी पोस्ट!
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असत्य पर सत्य की विजय के प्रतीक
विजयादशमी पर्व की शुभकामनाएँ!

amar jeet said...

विजयादशमी पर्व की बहुत बहुत शुभकामनाये !पुरानी बातो को भूलकर आप वापस अपने उसी स्वरूप में लौटी है ऐसा देखकर अच्छा लगा आपके लेख में बहुत सी ऐसी बाते है जोकि उस विषय का सम्बंधित ज्ञाता ही जन सकता है ! पुनर्जन्म या फिर पिछले जन्म में ले जाना ये सब टी वी सीरियल या फिल्मो में ही देखा और सुना है ! ऐसा होता भी है की मुझे यकीन नहीं है !

vijai Rajbali Mathur said...

दिव्या जी

नमस्ते

आप सब को विजय दशमी पर्व बहुत बहुत मुबारक हो.



आप के नए आलेख पर एक टिप्पणीकार जो स्वयं को विषय से अनभिज्ञ भी बता रहे हैं और दूसरे टिप्पणीकारों के लिए मधुमक्खी और तितली शब्द का प्रयोग भी कर रहे हैं.यह उनके ज्ञान, अध्ययन और संस्कारों को उजागर करता है.प्रस्तुत विषय काफी लम्बी चर्चा का है दो शब्दों में टिप्पणी संभव नहीं है.विस्तार से प्रकाश डाल रहा हूँ चाहे तो आप बाद में डिलीट करें या summerise .



आत्मा होती है-जो अमर है नष्ट नहीं होती और मोक्ष प्राप्ति तक विभिन्न शरीरों में जन्म लेती रहती है.चाहे एलोपैथिक चिकित्सा शास्त्र माने या न माने-हमारा आयुर्वेद जो कि अथर्ववेद का उपवेद है इसे मानता है.आत्मा,परमात्मा,प्रकृति से सृष्टी चलती है.आत्मा और परमात्मा सखा हैं और अनश्वर हैं;प्रकृति नश्वर है और उसका लगातार रूपांतरण होता रहता है.
प्रकृति से विभिन्न वनस्पतियाँ,शरीर आदि आदि बनते बिगड़ते हैं. शरीर और आत्मा का सम्बन्ध लंगड़े अंधे जैसा है.शरीर अँधा होता है और आत्मा लंगड़ा.एक के बिना दूसरा नहीं चल सकता.मनुष्य या कोई भी प्राणी अपने -सद्कर्म,दुष्कर्म,अकर्म का फल भोगता है और जो अवशेष इस जन्म में बच जाता है वो शरीर त्यागने पर आत्मा के साथ साथ कारण और सूक्ष्म शरीर के साथ चला जाता है,जोकि गुप्त रूप से चित्त पर अंकित होता रहता है.इसी को दन्त कथाओं में चित्रगुप्त नाम दिया गया है.
अगले जन्म में पूर्व जन्म के संचित कर्मों का फल भाग्य के रूप में रहता है(जिसे ज्योतिष विज्ञान द्वारा जाना जाता है).अच्छे को बुरा ,और बुरे को अच्छा केवल मनुष्य (मनन करने के कारण) बदल सकता है.
मनुष्य कर्म करने के लिए स्वतंत्र है फल भोगने के लिए परमात्मा के अधीन है.ये संसार एक परीक्षालय है और यहाँ निरंतर परीक्षाएं चलती रहती हैं.परमात्मा एक निरीक्षक के रूप में देखते हुए भी चुप रहता है लेकिन एक परीक्षक के रूप में कर्म के अनुरूप फल देता है.कोई भी चाह कर भी अपने किये कर्मों के फल से बच नहीं सकता है.
अगले जनम में कौन क्या बनेगा वो मनुष्य इसी जनम में खुद तय कर लेता है.उदहारण के लिए - (अ)जो लोग पर्यावरण प्रदूषित करते हैं वातावरण शुद्ध नहीं रखते उन्हें अगले जन्म में सूअर बन कर गंदगी साफ़ करनी पड़ती है.(ब)जो लोग अपने हाथ पाँव का दुरूपयोग करते हैं उनसे नेक कर्म नहीं करते या ज़मीन पर दंडवत करते हुए परिक्रमा लगाते हैं उनका अगले जन्म में सांप बनना तय है जिसका न हाथ होता है न पाँव.(स)जो लोग अपने हाथ पाँव से दूसरों को सताते हैं वे अगले जन्म में अंग भंग का शिकार होते हैं.(द) जो लोग मानसिक रूप से दूसरों को कष्ट देते हैं उन्हें पीड़ा पहुंचाते हैं वे अगले जन्म में मनोरोगी बनते हैं जिनका उपचार आपने सम्मोहन से करने की बात कही है.
आयुर्वेद में मनो चिकित्सा द्वारा ऐसे लोगों का उपचार संभव है परन्तु साधारण तौर पर ऐसे लोगों को यदि वैज्ञानिक विधी से अश्वगंधा को सामग्री में मिलवाकर हवन करवाएं तो निदान अवश्य होगा.प्रत्येक जन्म उसके पूर्व में किये गए कर्मों पर निर्धारित रहता है.कोई पूर्व जन्म को माने या न माने;आत्मा को माने या न माने इससे सृष्टि क्रम में कोई फर्क नहीं पड़ता.वो तो अपने नियमों के अनुसार ही चलती है-चलती रहेगी.



धन्यवाद!



विजय माथुर

ashish said...

मुझे इस विषय पर अपनी अल्पज्ञता जताने में कोई हिचक नहीं है . मै विद्व जनो से कुछ सिख रहा हूँ . मेरे लिए नयी जानकारियों वाली पोस्ट .

चंद्रमौलेश्वर प्रसाद said...

.......पर उनका क्या जो पुनर्जन्म में विश्वास नहीं रखते? :)

ZEAL said...

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विजय जी,

आत्मा अमर है की नहीं , इसके प्रमाण विज्ञान के पास नहीं हैं। पूर्व जन्म एक ऐसा विषय है जो दर्शन शास्त्र से सम्बन्ध रखता है। और सभी शास्त्रों में पुनर्जन्म को माना गया है।

विज्ञान सिर्फ प्रयोग करता है और प्रमाण उपलब्ध कराता है।

विज्ञान की मानें तो आत्मा का क्षय होता है। जैसे किसी के जीवन में कोई घटना जो उसके मस्तिष्क पर बहुत प्रभाव डालती है और व्यक्ति को गहें दुःख का अनुभव कराती है , वो आत्मा के क्षय का कारण बनती है।

किसी के माता -पिता की मृत्यु अथवा डिवोर्स के बाद व्यक्ति पर जो प्रभाव होता है-उससे अक्सर वो यह कहता मिलेगा की - " सब कुछ बदल गया " , पहले जैसा नहीं है। यह वाक्य भी आत्मा के क्षय को बताते हैं।

कोई भी पैदायशी नास्तिक नहीं होता। कुछ घटनाएं व्यक्ति को इतना निराश करती हैं , की वह इश्वर में भी विश्वास खो बैठता है। यह भी आत्मा के क्षय का एक उदाहरण है।

किन्हीं घटनाओं और निरंतर असफलताओं के चलते , अवसाद से ग्रसित मनुष्य की आत्मा का बड़े अनुपात में क्षय होता है , जिसके कारण इनके अन्दर प्रायः suicide करने की टेंडेंसी आ जाती है।

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ABHISHEK MISHRA said...

@विजय माथुर जी ,
आप ने कहा
'' आत्मा,परमात्मा,प्रकृति से सृष्टी चलती है.आत्मा और परमात्मा सखा हैं और अनश्वर हैं;.''

चलिए आप की बात मान लेते है की आत्मा और परमात्मा सखा है . अर्थात वो एक नही दो है .
और यदि वे नश्वर है तो वे स्वतः अनन्त भी सिद्ध हो जाते है क्यों की जिस का भी आकार है वो नश्वर है .जिस का कोई आकार न हो वही वस्तु अनश्वर है .अर्थात अनन्त ही अनश्वर है.
क्या अनन्त दो हो सकते है ???????????????????????
अतः आत्मा परमात्मा का अंश है न की सखा

ZEAL said...

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तेज़ बुखार के कारण, ज्यादा देर बैठ नहीं पा रही हूँ । आती हूँ थोड़े देर में, और भी बहुत कुछ शेयर करने के लिए।

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Anonymous said...

if u have fever then why r u so keen to sit on internet..plz take care of ur health and take rest...
samay to bahut hai share karne ke liye...

ABHISHEK MISHRA said...

@विजय माथुर जी ,
आप ने कहा
'' आत्मा,परमात्मा,प्रकृति से सृष्टी चलती है.''
यह श्रष्टि कार्य और कारण की अनन्त श्रंखला से चलती है . इसी लिए करनी के अनुसार ही फल मिलता है . कोई ईश्वर स्वर्ग के सिंघासन पर कर्मो का फल देने के लिए आसीन नही है.
जब ब्रह्म निराकार है तो न तो वह किसी की सहायता कर सकता है और न ही किसी को दण्डित !
जड़ हो या चेतन सब का प्रयास उसी विश्राम की अवस्था में जाना है जहा पर कुछ भी घटित न हो

vijai Rajbali Mathur said...

@ Divya ji
@ Abhishek1502

Please view my previous posts on -krantiswar.blogspot.com;All the things have already been explained cleary.

anyone has any openion but SRISHTI will function according to the Law of Nature.

Modern science is totaly incomplete till date.our anciant science was too ahead.ATMA is not the MATTER of PHILOSOPHY,it is already prooved by our science.

Get well soon!

ABHISHEK MISHRA said...

@विजय माथुर जी ,
आप ने कहा
''अगले जनम में कौन क्या बनेगा वो मनुष्य इसी जनम में खुद तय कर लेता है.उदहारण के लिए - (अ)जो लोग पर्यावरण प्रदूषित करते हैं वातावरण शुद्ध नहीं रखते उन्हें अगले जन्म में सूअर बन कर गंदगी साफ़ करनी पड़ती है.''
इस बात से पूर्णतया असहमत
मनुष्य का अगला जन्म इस पर निर्भर होता है की पूर्व जन्म में मरते वक्त उस का अंतिम मनोभाव क्या था .क्यों की मरने पर सही गलत आदि निर्णय की छमता ( तार्किक शक्ति ) समाप्त हो जाती है और वह अंतिम समय के मनो भाव पर स्थिर हो जाता है और उसी के अनुसार अगला जन्म लेता है .वहा पर वो पूर्व जन्म का अच्छा और बुरा दोनों का फल प्राप्त करेगा .
भारत मुनि ब्रह्म ज्ञानी थे पर जीवन के अंतिम समय उन हो ने अपनी माँ के बिछुड़ा हुआ एक मृग का बच्चा पाल लिया और मोह ग्रस्त हो कर मरते समय उस में ही उन का चित्त था और अगला जन्म उन्हें मृग के रूप में मिला .
यही कारण है मरते समय गीता का पाठ करते है .जिस से अंतिम मनोभाव मोछ प्राप्ति का हो .
अजामिल की कहानी सब जानते है

सूबेदार said...

आपने गंभीर चिंतन क़ा विषय निकाला है वैसे आपका लेख हमेसा ही गंभीर रहता है लेकिन पुनर्जन्म सत्य है आत्मा अजर-अमर है यह केवल शरीर बदलती है भगवान कृष्ण ने भी गीता में इसे ठीक प्रकार से समझाया है ---वैसे जहा तक जिसकी बुद्धि जाति है वह वहा तक सोचता है मेरा अटूट विस्वास है की पुनर्जन्म होता है यह शास्त्र सम्मत है

सूबेदार said...

विजय दशमी पर हार्दिक शुभकामनाये.

ZEAL said...

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Sigmund Freud जो की Psychoanalysis के जन्मदाता हैं , ने काफी जोर-शोर से इसका अध्यन किया और किताबों की एक सिरीज़ लिखी - "Studies on hysteria [ 1895 ] जो आधार बनी 'Hypno-analysis ' और 'Regression therapy ' की।


लेकिन एक लम्बे अरसे के शोध एवं प्रयोग के बाद उन्होंने इस मान्यता को ख़ारिज कर दिया॥ इस चिकित्सा पद्धति से मिलने वाला लाभ बहुत आंशिक था इसलिए उन का स्वयं ही इस पर से विश्वास उठ गया। उन्होंने इसे बाद में Hypnotic regression , Hypno progression तथा Hypnoanalysis का नाम दिया।

आज प्रश्न यह है की क्या आत्मा को सम्मोहित किया भी जा सकता है ? क्या आत्मा नियंत्रण में आ सकती है ? जो सम्मोहित होता है, वो व्यक्ति का मष्तिष्क है , जो सम्मोहन की अवस्था में अर्ध-जागृत होता है। सम्मोहन द्वारा पूर्व जन्म में जाना संशयात्मक है। केवल अवचेतन मन को समझा जा सकता है।

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ZEAL said...

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According to American medical association and American psychoanalysis center says that, this procedure is close to " modern cognitive behavioral therapy ". They cautioned us against 'repressed memory therapy ' , in case of childhood trauma , stating that- " It is impossible to distinguish true and false memory without corroborative evidences.

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ZEAL said...

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जब सही और गलत स्मृतियों का विभेद ही नहीं हो सकता तो कैसे निश्चय करें की सम्मोहित व्यक्ति द्वारा दिया गया विवरण पूर्व- जन्म का है अथवा उसके अवचेतन मन में स्थित अवधार्नाओं और अनुभवों का।

नोट- आत्मा अमर है अथवा नहीं, यह विषय नहीं है आज का। कृपया विषयांतर न करें।

आभार।

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निशांत मिश्र - Nishant Mishra said...

दिव्या, आप क्वालिफाइड मेडिकल प्रोफेशनल हैं और आपको न्यूरोफिज़िक्स की अजीबोगरीब उलझनों का पता होगा जिनमें मष्तिष्क में न्यूरोट्रांसमीटर में आने वाले बदलाव या किसी क्षति के कारण अनूठे और कभी-कभी चमत्कारिक लक्षण पैदा होते हैं जैसे काटने पर दर्द न होना, बुद्धि कम होने पर भी अद्भुत स्मृतिशक्ति का होना, या समाधी जैसी अवस्थाओं में पहुँच जाना या मूढमति होते हुए भी गणित में असाधारण प्रतिभा दिखाना.

मुझे लगता है की मानव मन के शायद ही कुछ ऐसे व्यवहार या लक्षण हैं जिन्हें वैज्ञानिक पद्धति से आंकना संभव नहीं है. पुनर्जन्म या पराजीवन से जुडी बातें भी न्यूरोफिज़िक्स के कुछ पहलुओं द्वारा समझाई जा सकती हैं.

आप अपने एक कमेन्ट में कहती हैं - "जैसा की हम जानते हैं , की आत्मा मरती नहीं है , तथा बहुत बार शारीर बदलती है , कई योनियों से भी होकर गुजरती है। निश्चय ही आत्मा भी बहुत से अनुभव करती है। इन्हीं अनेकानेक अनुभवों से गुजरते हुए एक आत्मा कभी न कभी क्लांत भी हो जाती है। यही तात्पर्य है मेरा ।" आप इतना कैसे जानती हैं? क्या यह सब रटा-रटाया औकल्ट नहीं है?

बहुत से ज्ञानी जन इस फिराक में रहते हैं की इन बातों पर प्रश्न चिन्ह लगनेवाले की आननफानन में मट्टी पलीद कर दें, जबकि उनका अपना कोई निजी अनुभव नहीं होता जिसके दम पर वे संदेह्वादियों को धता बता सकें.

एक नवजात शिशु जो असाध्य कैंसर या थैलासीमिया के साथ जन्म लेता है और जो कुछ साल से ज्यादा नहीं जीवित रह पायेगा, कर्म-सिद्धांत के ज्ञानियों के अनुसार वह पूर्वजन्म के अपने किन पापों का फल भोगता है? इसका टका सा जवाब वे ये कहकर देते हैं की पाप तो बच्चे के माँ-बाप ने किये थे. तो फिर बच्चा इतने दारुण कष्ट में क्यों कर पड़ा?

निशांत मिश्र - Nishant Mishra said...

दिव्या, आप क्वालिफाइड मेडिकल प्रोफेशनल हैं और आपको न्यूरोफिज़िक्स की अजीबोगरीब उलझनों का पता होगा जिनमें मष्तिष्क में न्यूरोट्रांसमीटर में आने वाले बदलाव या किसी क्षति के कारण अनूठे और कभी-कभी चमत्कारिक लक्षण पैदा होते हैं जैसे काटने पर दर्द न होना, बुद्धि कम होने पर भी अद्भुत स्मृतिशक्ति का होना, या समाधी जैसी अवस्थाओं में पहुँच जाना या मूढमति होते हुए भी गणित में असाधारण प्रतिभा दिखाना.
मुझे लगता है की मानव मन के शायद ही कुछ ऐसे व्यवहार या लक्षण हैं जिन्हें वैज्ञानिक पद्धति से आंकना संभव नहीं है. पुनर्जन्म या पराजीवन से जुडी बातें भी न्यूरोफिज़िक्स के कुछ पहलुओं द्वारा समझाई जा सकती हैं.
आप अपने एक कमेन्ट में कहती हैं - "जैसा की हम जानते हैं , की आत्मा मरती नहीं है , तथा बहुत बार शारीर बदलती है , कई योनियों से भी होकर गुजरती है। निश्चय ही आत्मा भी बहुत से अनुभव करती है। इन्हीं अनेकानेक अनुभवों से गुजरते हुए एक आत्मा कभी न कभी क्लांत भी हो जाती है। यही तात्पर्य है मेरा ।" आप इतना कैसे जानती हैं? क्या यह सब रटा-रटाया औकल्ट नहीं है?
बहुत से ज्ञानी जन इस फिराक में रहते हैं की इन बातों पर प्रश्न चिन्ह लगनेवाले की आननफानन में मट्टी पलीद कर दें, जबकि उनका अपना कोई निजी अनुभव नहीं होता जिसके दम पर वे संदेह्वादियों को धता बता सकें.
एक नवजात शिशु जो असाध्य कैंसर या थैलासीमिया के साथ जन्म लेता है और जो कुछ साल से ज्यादा नहीं जीवित रह पायेगा, कर्म-सिद्धांत के ज्ञानियों के अनुसार वह पूर्वजन्म के अपने किन पापों का फल भोगता है? इसका टका सा जवाब वे ये कहकर देते हैं की पाप तो बच्चे के माँ-बाप ने किये थे. तो फिर बच्चा इतने दारुण कष्ट में क्यों कर पड़ा?

ZEAL said...

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@ निशांत मिश्र -

रोगों को पूर्व जन्म के पाप और कर्म की चर्चा हम इस लेख में नहीं कर सकते नहीं तो विषय बहुत उलझ जाएगा।

विषय है , व्यक्ति को सम्मोहित कर पूर्व जन्म के तथ्यों को जान लेना । जो वैज्ञानिक खोज और तर्कों पर सही नहीं साबित हो रहे हैं।

जब सही और गलत स्मृतियों का विभेद ही नहीं हो सकता तो कैसे निश्चय करें की सम्मोहित व्यक्ति द्वारा दिया गया विवरण पूर्व- जन्म का है अथवा उसके अवचेतन मन में स्थित अवधार्नाओं और अनुभवों का।

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ZEAL said...

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Hypnotherapy is successfully used in following diseases.--

1-Irritable dowel syndrome
2-Pain management
3-Weight loss
4-Skin diseases
5-Soothens anxious surgical patients.
6-To fight habitual addictions
7- Sports performances.

But unfortunately this therapy has little or no success so far in knowing the past life experiences and treating a patient based on such observations.

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मनोज भारती said...

सम्मोहन व्यक्ति के स्व (self ) के अध्ययन में सहायक है । व्यक्ति का मन चेतन, अचेतन और अतिचेतन में विभाजित करके देखा गया है । व्यक्ति का मन एक नहीं है, वह खंडों में विभाजित है...वह बहुत से कारणों से एक नहीं है । चेतन मन वह है जिससे व्यक्ति सोचता-विचारता है । अचेतन मन स्मृतियों का स्टोर-हाउस है । चेतन मन को जब किसी विषय की जरूरत होती है,जिसके संबंध में उसने पहले कभी जाना था, तो वह अचेतन मन के द्वार खटकटाता है । वहाँ से बीती चीजों को पुनर्स्मरण से निकाल लाता है । लेकिन अतिचेतन मन के संबंध में व्यक्ति अनभिज्ञ रहता है, उसके बहुत सारे अज्ञात भय और असुरक्षा की भावना आदि से दमित किए गए विषय अतिचेतन मन में चले जाते हैं । सम्मोहन द्वारा इन्हीं दमित विचारों से उत्पन्न रोगों का ईलाज किया जाता है ।

यदि हम आत्मा को न स्वीकार करें और आत्मा व परमात्मा को न माने, तब भी मन और स्व को तो स्वीकार करना ही होगा । स्व में पैदा हुए मानसिक रोगों का ईलाज हिप्पनोसिस से संभव है ।

डा० अमर कुमार said...


मैं अपनी पिछली टिप्पणी के इस अँश को पुनः दोहराऊँगा कि,
" अमरत्व की कल्पना ने आदमी को कहीं का न छोड़ा, देह के क्षरण को मृत्यु में परिवर्तित होते देखना उसे ग्राह्य न हुआ, और ... फलस्वरूप उसने अपने लिये एक ईश्वरीय साँत्वना पुरस्कार यानि आत्मा के अमत्व का सँतोष गढ़ लिया । यह ठीक भी है, आत्मा के प्रति ज़वाबदेही ने मनुष्यता पर बहुत-कुछ अँकुश रखा है, अन्यथा हम एक बेखौफ़ अराजकता के शिकार हो जाते ।
आत्मा के ऎसे अमरत्व को आधार बना कर सम्मोहन, प्रति-प्रसव सहित कई चिकित्सा पद्धतियाँ का यूँ गढ़ लिये जाना आश्चर्यचकित नहीं करता । पर जब तक अज्ञानता अस्तित्व में है, ऎसी पद्धतियाँ भी जीवित रहेंगी । यह एक कटु सत्य है । सबसे बड़ी अज्ञानता है मोक्ष में अँधविश्वास...
इस अँधविश्वास के टूटने तक तो प्रति-प्रसव की इनकी दुकानदारी चलनी ही है ।"

यहाँ इतनी चहल-पहल देख कर मुझे कुछ लाइनें और जोड़ लेने दीजिये ।

अवश्यमेव भोक्तव्यँ कृतं कर्म शुभाशुभम
मैं समझता हूँ रिग्रेशन थेरैपी के प्रणेता ने यही सूत्र पकड़ लिया है, कि सभी जीवों को अपने पूर्वजन्मना प्रारब्ध के अनुसार उद्भिज्जं योनि का रोग-शोक सुख-दुःख भोगना पड़ता है ।
मोक्ष की मारकेटिंग का अविष्कार है, पुनर्जन्म ! क्या पुनर्जन्म होता भी है ? दत्तात्रेय ने उत्तर दिया, " मूलं नास्ति कुतः शाखा ! " मूल का ही पता नहीं, तो बाकी सँदर्भ ( शाखायें ) के सवाल ही कहाँ ?
स्वयँ में या थेरैपी देने वाले कर्ता में विश्वास कुछ फल दे सकता है, पर ऎसा विश्वास और उसकी दृढ़ता तो स्वयँ आपके अंतः में ही निहित होती है । अब यह न कहियेगा कि ऎसी इच्छाशक्ति पूर्वजन्मों की फसल है ।

यदि ऎसा ही है तो, पूर्वजन्मों की कौन सी फसल किसी ब्लॉगर को तेज बुखार में अपने को शहीद होने को प्रेरित कर रही है ? देख लीजिये शास्त्रों में यह भी कहीं न कहीं अवश्य लिखा होगा । फुटनोट में सँभवतः यह भी दर्ज़ हो कि, ब्लॉगिंग जैसा कार्य पिछले जन्म के सुकर्मों का फल है, या कुकर्मों का दँड ?
मैं विषयांतर नहीं कर रहा, मैं पूर्व जन्म पुनरागमन ( past life regression ) की मूल अवधारणा पर ही प्रश्न उठा रहा हूँ । इससे पहले कि कोई सवाल उठाये, प्रसँगतः मैं बता दूँ कि मेरी प्रकृति के नियमों, परमपिता एवँ आदिशक्ति में पूर्ण आस्था है, और मैं उनका पालन करता हूँ । यह मेरे स्वयँ से किये जाने वाले तर्क हैं । मैंनें चार्वाक दर्शन न तो कभी पढ़ा और न ही पढ़ने की इच्छा है ।
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डॉ.रूपेश श्रीवास्तव(Dr.Rupesh Shrivastava) said...

मैं हूँ
तबियत सम्हालिये बहन
बुखार-बुखार के बाद ब्लॉगिंग-ब्लॉगिंग खेलिये
भइया
डॉ.रूपेश श्रीवास्तव

शरद कोकास said...

लेकिन मनोचिकित्सक आत्मा को कहाँ मानते हैं ?

बाल भवन जबलपुर said...

शरीर-यंत्र होकर भी नहीं है.यदि उस शरीर के संचालन में प्राण न हो तो प्राण भी एक उर्ज़ा-पिण्ड ही तो है. जब उसमें देह यंत्र को संचालित करने की क्षमता है तो उसकी अपनी माइक्रो मेमोरी में घटनायें अंकित भी होती ही हैं. जिसका पुनर्संचरण सम्भव है. पुनर्जन्म तय है होता भी है.ये अलग बात है कि हर नये को अपना पिछला याद नहीं रहता.

ABHISHEK MISHRA said...

@डा. अमर कुमार जी
ये देख कर अच्छा लगा की आप के विचारो में जड़ता नही है ,प्रगतिशील है आप ,किसी विचार को पकड़ कर बैठ नही जाते क्यों की ऐसा करने वाले नए विचारो पर रोक लगा कर अपने ज्ञान प्राप्ति के स्रोत स्वयं ही बंद कर देते है और अधिकतर कट्टर धर्माविलाम्बियो को ऐसा ही करते देखा गया है .
ठीक है आप की बात मान लेते है की पूर्व जन्म नही होता .अर्थात हम शून्य से आये है फिर शून्य होजायेगे .
जब पहले कुछ भी नही था तो उस से न तो ऊर्जा (आत्मा ) और न ही प्रदार्थ(शरीर) निर्मित हो सकते है .अर्थात जन्म ही संभव नही है .कुछ तो था जो आया ?????
बस यही आत्मा है .
आत्मा वह ऊर्जा है जो प्रदार्थ से संयोग कर उस से जीवन की उत्त्पत्ति करती है जब तक ये संयोग है हम जीवित और अलग होते ही फिर जड़
किसी भी प्रकार की गति के लिए ऊर्जा ही उत्तरदाई है .
क्यों की ऊर्जा नश्वर है अतः आत्मा नश्वर है .

डा० अमर कुमार said...


@ Dear abhishek1502 Ji ,

Energy is neither created nor destroyed " or in other words "Energy is Conserved in the universe to eternity".
It can change its form, behave in different nature and infact governs the eternity of universe.
Have you ever heard of black holes, tremendous energy concentrated to tiny emptyness.. ? That way energy hidden in nothingness can only be a guess of human imagination, since men are yet to define an unit of such a magnitude.
It is better understood by going through Taoist Belief of Yin,Yang and Chi.. By some Tibetan references ( At the moment I am unable to recall them ). I can pull along this topic but I would not .. lest the main debate may drift to a wrong way, unneccessarily earning me wrath of Divya Ji, the Blog Owner |
I really felt delighted to get an certification from you for being open minded ( You meant it.. so ? ), Thanks you !

Mumukshh Ki Rachanain said...

ज्ञानवर्धक लेख.............आभार
हार्दिक बधाई .........



चन्द्र मोहन गुप्त

प्रवीण said...

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@ डॉ० अमर कुमार,

" अमरत्व की कल्पना ने आदमी को कहीं का न छोड़ा, देह के क्षरण को मृत्यु में परिवर्तित होते देखना उसे ग्राह्य न हुआ, और ... फलस्वरूप उसने अपने लिये एक ईश्वरीय साँत्वना पुरस्कार यानि आत्मा के अमत्व का सँतोष गढ़ लिया । यह ठीक भी है, आत्मा के प्रति ज़वाबदेही ने मनुष्यता पर बहुत-कुछ अँकुश रखा है, अन्यथा हम एक बेखौफ़ अराजकता के शिकार हो जाते ।
आत्मा के ऎसे अमरत्व को आधार बना कर सम्मोहन, प्रति-प्रसव सहित कई चिकित्सा पद्धतियाँ का यूँ गढ़ लिये जाना आश्चर्यचकित नहीं करता । पर जब तक अज्ञानता अस्तित्व में है, ऎसी पद्धतियाँ भी जीवित रहेंगी । यह एक कटु सत्य है । सबसे बड़ी अज्ञानता है मोक्ष में अँधविश्वास..."


नक्कारखाने में तूती की सी ही सही...पर एक संयत व Sane आवाज हैं आप, सर जी...आभार आपका!

@ दिव्या जी,

"अनेकानेक जन्म लेने के साथ कभी कभी आत्मा भी बोझ तले दब जाती है । ओवर-बर्डएंड हो जाती है । जिसके कारण मनुष्य के वर्तमान जीवन में कुछ अनसुलझी सी उलझने हो जाती हैं।"

:)

कोई भी पैदायशी नास्तिक नहीं होता। कुछ घटनाएं व्यक्ति को इतना निराश करती हैं , की वह इश्वर में भी विश्वास खो बैठता है। यह भी आत्मा के क्षय का एक उदाहरण है।

:))

(क्या करें, यह सब पढ़कर एक क्षय हुई आत्मा(???) बरबस मुस्कुरा तो सकती ही है!)


...

राजभाषा हिंदी said...

यह तो विज्ञान है!बहुत अच्छी प्रस्तुति। राजभाषा हिन्दी के प्रचार-प्रसार में आपका योगदान सराहनीय है।
बेटी .......प्यारी सी धुन

वीरेंद्र सिंह said...

Very nice post. I also read comments on this post ,which are very informative. Thanks.

ZEAL said...

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भाई, डॉ रुपेश,
ये आश्वासन ही काफी है। आज काफी बेहतर हूँ। आभार।

डॉ अमर,
शहीद होने का मज़ा तो शहीद होने वाले ही जानते हैं। वैसे जरूरत से ज्यादा आराम नियति में होने का अभिशाप वही समझते हैं , जो इस कष्ट को झेल रहे हैं।

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G Vishwanath said...

Diyvaa,
Take a break.
Get well soon.
Don't worry.
We wont go away.
Your health is important.
We will wait.
Blogging is addictive.
Your fever may get worse if you strain yourself.
As a Doctor, you know this better.
We are concerned about your health.

Regards
G Vishwanath

पी.एस .भाकुनी said...

असत्य पर सत्य की विजय के प्रतीक
विजयादशमी की शुभकामनाएँ!
thought of the day------------------
yadi aapkey alochakon ki sankhya bad rahi hai to jahir hai aap taraqui kr raheyn hai, arthat aapki safalta, or aapki yogyta ne hi aapke alochak paida kiye hain
regard.

सञ्जय झा said...

pl. take care.......

we, the reader have a lot of aspects to you.....

pranam.

सदा said...

सुन्‍दर एवं ज्ञानवर्धक प्रस्‍तुति, बधाई,इन सबके साथ अपने स्‍वास्‍थ्‍य पर भी ध्‍यान दीजिये, जल्‍द ही आप स्‍वस्‍थ्‍य हों इन्‍हीं शुभकामनाओं के साथ ।

ZEAL said...

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प्रक्रिया के दौरान एक महिला ने बताया की वह पूर्व जन्म में पुरुष थी। इसका कोई प्रमाण मिल सकता है ? सच क्या है ? गीता में एक स्थान पर बताया गया है , की विभिन्न जन्मों में योनियाँ तो बदल सकती है , मनुष्य से पक्षी और पशु बन सकते हैं, लेकिन लिंग नहीं बदलता। फिर उस महिला की बात की सत्यता क्या है ? क्या ये उसके मन की कोई दमित भावना नहीं ? या अवचेतन मन का कोई विचार ?

--------

विश्वनाथ जी अब मैं पूर्णतया स्वस्थ हूँ। ये ब्लोगिंग ही हमारा मर्ज भी है , और दवा भी। वो तो वायरल की इज्ज़त रखनी थी इसलिए हम भी एक दिन बीमार रह लिए। पति के हाथ की चाय भी तभी नसीब होती है , जब तेज़ बुखार हो। एक दिन से ज्यादा
बीमार रहना अपनी शान के खिलाफ है।

Smiles..

.

ZEAL said...

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प्रश्न यह है की क्या आत्मा को सम्मोहित किया जा सकता है ?

सम्मोहन व्यक्ति की अर्ध निद्रा की अवस्था है। जिसमें व्यक्ति का मस्तिष्क अर्ध जाग्रत अवस्था में होता है। किसी के मस्तिष्क को सम्मोहित करना तो समझ आता है , लेकिन आत्मा को कोई कैसे सम्मोहित कर सकता है ? क्या आत्मा सोती है ? अथवा अर्ध जाग्रत अवस्था में होती है ? यदि नहीं तो सम्मोहन द्वारा आत्मा को पूर्व जन्म में कैसे ले जा सकते हैं ?

सिर्फ दिमाग को सम्मोहित करना संभव है , और इस दिमाग द्वारा सम्मोहित अवस्था में , केवल इसी जन्म का विवरण मिल सकता है, पूर्व जन्म का नहीं।

..

Anonymous said...

इस बार मेरे नए ब्लॉग पर हैं सुनहरी यादें...
कृपया जरूर आएँ...

सुनहरी यादें ....

Anonymous said...

दिव्या जी इस आत्मा परमात्मा के चक्कर में उलझ गया हूँ....इतने सारे विचार और ज्ञान प्राप्त होने के बाद भी मुझे इन सब चीजों में विस्वास नहीं..

ABHISHEK MISHRA said...

त्रुटी सुधार
क्यों की ऊर्जा अनश्वर है अतः आत्मा अनश्वर है .

ABHISHEK MISHRA said...

@डा . अमर जी
शायद आप का नाम रखते समय बुजुर्गो से गलती हो गयी . शायद वो अल्प ज्ञानी थे वे नही जानते थे की कोई व्यक्ति अमर नही हो सकता . आप को ये काल्पनिक नाम शोभा नही देता . कुछ वास्तविक नाम रख लीजिये .
इस दुनिया में ६ अरब से भी अधिक लोग है . और प्रथ्वी पर कुल जीवन तो जानन असंभव है.
क्या आप सब को जानते है ???????????
जिस को आप जानते ही नही तो क्या उस का अस्तित्व ही नही है ?????
जहा तक पूर्व जन्म की बात है तो ऐसे अनेक प्रमाण है जिस का विज्ञानं के पास जवाब ही नही है .
ऐसा ही एक कार्यक्रम discovery चैनल पर भी प्रसारित हो चुका है .
मेरे चाचा जी डा. राम जी मिश्रा इस समय भारतीय थल सेना में चिकित्सक है . उन हो ने जब बोलना प्रारम्भ किया तो अपने को डाक्टर बताया और अपने परिवार के बारे में बताने लगे और दुर्घटना में म्रत्यु की बात कहते थे .
मेरे दादा जी जो की शिक्षक थे इस बात घबरा गए और चाचा जी से कुछ भी पूछने पर औरो को कड़ी डाट लगाने लगे .
जैसे जैसे बड़े हुए पुरानी बात भूलने लगे , मुंडन और कर्ण छेदन के बात स्मृति पूर्णतया लुप्त हो गयी .

Jyoti Prakash said...

गीता में एक स्थान पर बताया गया है , की विभिन्न जन्मों में योनियाँ तो बदल सकती है , मनुष्य से पक्षी और पशु बन सकते हैं, लेकिन लिंग नहीं बदलता।
..................
कृपया श्रीमत्-भगवत्-गीता का उपरोक्त श्लोक उद्धरित करें | Please provide reference.
http://gitapress.org/BOOKS/GITA/18/18_Gita.pdf

डा० अमर कुमार said...

@शिरिमान अभिषेक 1502 जी,
मैंनें अपनी जानकारी यहाँ रखी, आपको स्वीकार्य नही.. हर व्यक्ति अपनी धारणाओं में जीने को स्वतँत्र है । इसलिये मुझे भी आपसे शिकायत करने भी अधिकार नहीं ।
यह मैं इस बिना पर कह सकता हूँ, कि दुनिया में असँख्य चमगादड़ अँधेरे में उल्टे लटके हुये हैं... आखिर मैं किस किस को सीधा करके ज्ञान का प्रकाश देता रहा रहूँगा ! और मुझे इसकी ज़रूरत भी नहीं है, क्योंकि वह अपनी नियति भोगने को अभिशप्त हैं ! आप भी अपनी दुनिया में रमे रहिये, आपको कौन पूछने जाता ही है ?
आइये अब हम थोड़ा व्यक्तिगत-व्यक्तिगत खेल लें ! हालाँकि इसकी आवश्यकता न के बराबर है, पर मैथिल वँशावली और मेरे कनपुरिया मिज़ाज़ के ठाठ अभी जीवित हैं, इसलिये अपने बुज़ुर्गों का मान रखने को यह अपरिहार्य है । कृपया ध्यान दें कि आपने लिखा है कि, शायद आप का नाम रखते समय बुजुर्गो से गलती हो गयी . शायद वो अल्प ज्ञानी थे वे नही जानते थे की कोई व्यक्ति अमर नही हो सकता . आप को ये काल्पनिक नाम शोभा नही देता . कुछ वास्तविक नाम रख लीजियेइसका उत्तर केवल इतना ही हो सकता है कि ज़ार्ज़ पँचम षष्टम केनेडी सीनियर जूनियर सुना तो था किन्तु अभिषेक 1502 देख यह भान होता है कि आप अपने इस नामकोटि के 1502 वें अवतार हैं ।
रामजी मिश्र के ऎसे सत्यनिष्ठ पूर्वजन्म स्मृति एवँ व्यवहार पर आपके शिक्षक दादा जी को घबड़ाना क्यों पड़ा, भला ?
इस परिप्रेक्ष्य में तो आपके डॉक्टर चच्चा जी, अपने मरीज़ों को दर्द से छटपटाते हुये, बुखार में तपते हुये, घायलावस्था में जीवन-मृत्यु से जूझते हुये अवश्य ही छोड़ देते होंगे । आख़िर वह क्यों दौड़ें, उनके सभी मरीज़ तो पूर्वजन्मों के फलादेश से अपने अपने प्रारब्ध का फल भोग रहे हैं । भोग लेने दीजिये, जो जितना भोग लेगा उसका उतना ही पाप कट जायेगा । वह उनके पुनरागमन की पीड़ा को कम करके उसमें बाधक क्यों बनें । है कि नहीं, अभिषेक 1502 जी ?
और भी भली प्रकार समझाने का कोई अन्य ज़रिया भी हो, तो अवश्य बतायें । आपके लिये मैं वह भी अपना सकता हूँ, अभिषेक 1502 जी !

@जिस को आप जानते ही नही तो क्या उस का अस्तित्व ही नही है ?
है क्यों नहीं, मूर्खों और जड़बुद्धियों का अस्तित्व क्यों नहीं है, वह तो अवश्य रहेगा.. और मैं उनको जानूँ या न जानूँ यह आपका प्रसँग नहीं होना चाहिये । और कुछ ?

शोभना चौरे said...

ब्रह्मकुमारी (माउन्ट आबू )के अनुसार जिस योनी में कोई भी प्राणी है उसी में वो जन्म लेता है जैसे अगर इन्सान है तो अगली बार भी उसी योनी में जन्म होगा मनुष्य और कोई पशु .कीड़े मकोड़े इत्यादि में नहीं जन्मता |जब भी इनके शिबिर लगते है चित्रों के द्वारा समझाया जाता है |और पूर्व जन्म के आधार पर चिकित्सा के बारे मे भी पढ़ा तो hai किन्तु कही वैज्ञानिक आधार नहीं मिलने पर सहज मन नहीं मानता |
वैसे आपकी चर्चा और सभी लोगो के अनुभव ,विचार पढ़कर ज्ञानवर्धन हो रहा है |
अब आपकी तबियत कैसी है ?ईश्वर आपको हमेशा ऐसा ही उर्जावान बनाये रखे \
शुभकामनाये |

ABHISHEK MISHRA said...

@डा . अमर जी ,
ज्यादा गुस्सा सेहत के लिए ठीक नही होता .आप तो डाक्टर है तो आप ये बात तो जानते होंगे ऐसा न हो की सर के रहे सहे बाल भी चले जाये . मैंने क्या गलत कहा , आप के विचार से अगर कोई चीज अमर नही है तो आप के बड़ो ने आप का नाम ही गलत रक्खा एक नश्वर प्राणी को अमर बना दिया ,जहा तक मेरी बात है तो १५०२ मेरी जन्म तिथि १५ फरवरी का सूचक है . मेरी सारी मेल i.d. में १५०२ है.
जहा तक पूर्व जन्म की बात है गीता में भगवान श्री कृष्ण कहते है
बहूनां जन्मनामन्ते ज्ञानवान्मां प्रपद्यते।
वासुदेवः सर्वमिति स महात्मा सुदुर्लभः॥७- १९॥

बहुत जन्मों के अन्त में ज्ञानमंद मेरी शरण में आता है। वासुदेव ही सब कुछ हैं, इसी भाव में
स्थिर महात्मा मिल पाना अत्यन्त कठिन है।

आप के हिसाब से गीता ही झूठी है गढ़ी गयी है क्यों की गीता पुनर्जन्म और आत्मा की पुष्टि करती है . शायद आप के बड़ो ने गीता पढ़ कर आप का नाम रक्खा है .अब ये मिथ्या नाम बदल ही डालिए .
जहा तक आप डाक्टर के द्वारा मरीज को तड़पता छोड़ने की बात कर रहे है तो सब का अपना अपना कर्तव्य है डाक्टर का जो कर्त्तव्य है वो उसे करना चाहिए क्यों की ईश्वर की ही इच्छा से वो वहा है .बाकि जो होना है वो तो हो कर ही रहता है .
क्यों की मैं भी चिकित्सा क्षेत्र से ही जुड़ा हू तो u.p. के अधिकतर डाक्टर कितने भ्रस्त है ये मैं अच्छी तरह जनता हू . एक दम निरंकुश . अब ये भगवान के दूसरे रूप की बजाये लुटेरे है .बेचारा गरीब मरीज डाक्टर के पास ठीक होने आता है और ये मोनोपोली और जेनरिक दवाई उस को लिख कर बिना हथियार ही उसे लूट लेते है .सेवा भाव से कर्तव्य करने की बजाय अपनी अपनी दुकाने चला रहे है.डाक्टर अजर अमर जी आशा करता हू की आज से आप मोनोपोली और जेनरिक दवाए नही लिखेंगे.
आप ने एक ही बात सही कही
''है क्यों नहीं, मूर्खों और जड़बुद्धियों का अस्तित्व क्यों नहीं है, वह तो अवश्य रहेगा.''

ABHISHEK MISHRA said...

आशा करता हू की ये बात यही समाप्त हो जाएगी .

ZEAL said...

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पिछली पोस्ट पर जिन विद्वान् पाठकों ने ये वक्तव्य दिया था की -- " अच्छी पोस्ट्स पर ज्यादा टिप्पणियां नहीं होती , उन्होंने यहाँ ना आकर , ये सिद्ध कर भी कर दिया है "

ये तो निश्चित है, जिस पोस्ट पर लोगों को दिमागी कसरत करनी होती है , लोग उससे बचने लगे हैं। ये निसंदेह ही चिंता का विषय है।

एक और चिंता का विषय है की - महिलाएं हलके-फुल्के विषयों पर ही लिखना पसंद करती हैं , और हलके विषयों पर ही टिप्पणियां भी ज्यादा करती हैं।

कभी कभी मन में ये अफ़सोस होता है की महिलाएं अपने चिंतन को और अधिक विस्तार क्यूँ नहीं देना चाहतीं ?....क्यूँ सिमित कर लिया है खुद को आलू , गोभी और मकान के किराए तक ? क्या राशन पानी से से आगे कोई जिंदगी नहीं ?

कुछ ब्लोग्स पर जाकर तो बोर ही हो जाती हूँ---वही एक राग---- पता नहीं किस `अनजाने को संबोधित कर कविता में डांट दिया , या फिर दुलार दिया, या फिर सदियों का इंतज़ार उसका ।

अरे भाई-बहन - कुछ हटके तो लिखो । अगर लिखो नहीं तो पढो तो कम-से-कम ।

भागो मत गूढ़ विषयों से।

बाहर निकलो स्वप्निल जिंदगी से। हर विषय पर सोचो और मनन करो, मन में आने वाले सभी विचारों को बांटो हमसे।

गूढ़ विषय सिर्फ पुरुषों की जागीर नहीं है...आप भी आगे आओ।

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ethereal_infinia said...

Dearest ZEAL:

Saddening to read your above comment.

It is as inherent a right of the readers to prefer or not to prefer a particular topic, as it is the right of the writer to write on one particular topic and scorn the ones written by others.

One can not individually determine for the entire universe as to the quality of a blog. What I may like strongly, many may dislike vehemently and vice versa.

Everyone writes with the belief that what is written by him/her is the best.

But, the reader has a point of view too.

Ridiculing fellow bloggers or holding the thought that others write cursorily, is quite fallacious.

Often I see here that people keep asking others to come to their blogs. It is the worst form of hawking.

Solicitation - either by inviting, urging, triggering, ridiculing, praising, lamenting - of people on others' blog or even on one's own blog - is ethically wrong.

The adage will always hold true - You can take a horse to the water, but you can not make it drink.

A writer must have pure passion for writing and should not be consumed by the statistical count of people who visited the previous blog and not the current one - or the other way round.

Definition of a topic being 'deep, thought-provoking' is essentially very subjective and it is said "Tunde-Tunde Mati BhinnaA".

Why talk of others or in general. Let me speak for my own self.

Of this very particular post, I did not get the drift and hence I was not able to participate. It is no reflection on my preferring 'shallow topics' nor should it hold me accountable for my lack of comprehension on more 'esoteric topics' - as deemed by the writer or others.

In my mind, the topic did not click. As simple as that. Also, this is not the first post, where I have not been able to participate. And, equally, there are many posts where I have indulged deeply.

Without any prejudice or favoritism, I have spoken here and if I incur wrath for it, so be it.

Ghalib, as we all know, is considered one of the most esteemed Urdu poets ever known.

The line of thought of this comment can be suitably percieved in the following couplet of his -

Rekhtaa ke tum hi ustaad nahi ho 'Ghalib'
Sunte hain agle zamaane mein koi 'Meer' bhi thaa

[Rekhtaa = Old Name Of Urdu, 'Meer' = Reference With Obeisance to the Poet Meer Taqi Meer]

Ghalib knew he was very good at Urdu as a language and also in expressing himself through that language.

And yet, he pays here reverential homage to Meer Taqi Meer who was a poet of huge stature before Ghalib's time.

Here a couple of couplets from Meer comes to mind -

Guftagu rekhte mein hum se naa kar
Yeh hamaari zubaan hain pyaare

Ishq ki daastaan hain pyaare
Apni-apni zubaan hain pyaare


Arth Desai

Satish Saxena said...
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Satish Saxena said...

@ डॉ अमर कुमार,
अभिषेक के बारे में आपकी टिप्पणी कम से कम मेरी नज़र में निराशाजनक है ,
केवल सूचना हेतु !
खेद सहित

डा० अमर कुमार said...

@ सतीश सक्सेना said...
अभिषेक के बारे में आपकी टिप्पणी कम से कम मेरी नज़र में निराशाजनक है ,

.आप व्यर्थ ही मँहगे घी का अपव्यय कर रहे है,
मुझे तो यहाँ कोई आग दिख नहीं रहा,
केवल सूचना हेतु
आभार आपका

वह नफ़रत बाँटते चलते हैं, हम प्यार लुटाने बैठे हैं
:)

Satish Saxena said...

@ डॉ अमर कुमार ,
आज से " अमर कुमार " नाम कभी प्रयुक्त नहीं करूंगा
" अफ़सोस है कि मैं आपको पहचान नहीं सका डॉ अमर कुमार "

Satish Saxena said...

डॉ अमर कुमार के बारे में मेरे विचार ...
http://satish-saxena.blogspot.com/2010/08/blog-post_30.html

डा० अमर कुमार said...

क्यों की मैं भी चिकित्सा क्षेत्र से ही जुड़ा हू तो u.p. के अधिकतर डाक्टर कितने भ्रस्त है ये मैं अच्छी तरह जनता हू . एक दम निरंकुश . अब ये भगवान के दूसरे रूप की बजाये लुटेरे है .बेचारा गरीब मरीज डाक्टर के पास ठीक होने आता है और ये मोनोपोली और जेनरिक दवाई उस को लिख कर बिना हथियार ही उसे लूट लेते है .सेवा भाव से कर्तव्य करने की बजाय अपनी अपनी दुकाने चला रहे है.डाक्टर अजर अमर जी आशा करता हू की आज से आप मोनोपोली और जेनरिक दवाए नही लिखेंगे


जिज्ञासा
क्या यहाँ पर मोनोपोली और जेनरिक दवाओं पर बात हो रही है ?
थोक दवा व्यवसाई - चिकित्सा क्षेत्र में कब से गिना जाने लगा ?

समाधान
आपकी अपनी व्यक्तिगत कुँठा का प्रकार मोनोपोली है या जेनेरिक ?
यह कोई नहीं जानना चाहता, क्योंकि आपके अनुसार ईश्वर की ही इच्छा से जो होना है वो तो हो कर ही रहता है .
और देखिये वह हो भी रहा है ! अवसरवादियों से मेरा तकरार होते रहना शायद मेरे पूर्वजन्म की प्रेरणा ही हो !
जो स्वयँ वर्तमान आत्मा ( Inner Self ) को तो सँभाल नहीं पाते... परमात्मा ( Divine Soul ) को खँगालने बैठ जाते हैं, हद है ! और देखिये परमात्मा के ठेकेदार यही कर रहे हैं । यह भी उनके पूर्वजन्मों के पुण्य का फल ही होगा ! चलिये यह मान लेने में कोई बुराई नहीं है !

उस्ताद जी said...

पुनर्मूल्यांकन
6.5/10

महत्वपूर्ण प्रतिक्रियायों के पश्चात पोस्ट का काफी महत्व बढ़ गया है

सम्वेदना के स्वर said...

दूसरी बार कमैंट का प्रयास कर रहा हूं क्योकिं कल कमैंट पोस्ट नहीं हो सका था। बहरहाल, पोस्ट पर निरंतर टिप्पणीयों का मज़ा लेता रहा।

मेरी राय में, आत्मा के अस्तित्व की बात तर्को से सिद्ध नहीं की जा सकती, भाषा और तर्कों की एक सीमा है। "Part can not understand the whole!"

हम क्या हैं : इसे शायद विज्ञान समझा सकें, कभी!
हम क्यों हैं : इसके लिये क्षुद्र को विराट होना होगा, एक साधक हुये बगैर मात्र बौद्धिक स्तर पर इसे समझा नहीं जा सकेगा शायद!

सम्वेदना के स्वर said...

हाँ,आपका स्वास्थ कैसा है,अब?

ABHISHEK MISHRA said...
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ABHISHEK MISHRA said...

@अमर जी ,
मैं ये बात यही ख़त्म करना चाहता हू . आप अपने भौतिकवादी विचारो के साथ रहिये .
जहा तक कुंठाओ की बात है तो हमारी और आप की दोनों की ही टिप्पड़ी यहाँ पर है .ये निर्णय पाठक स्वयं कर लेंगे .
अध्यात्म में होने वाले अनुभव क्या होते है ये जानना आप के बस की बात नही है क्यों की इस के लिए बुद्धि की नही समर्पण की अवश्यक होती है .

Jyoti Prakash said...

१) जो व्यक्ति अपने को 'आत्मा' जान श्रीमत अनुसार कर्म करता है उसका पुनर्जन्म नही होता है , वह् आत्मा है शरीर नही ॥ शरीर तो बदलेगा आत्मा नही ॥
२) उन व्यक्तियो को जो झूठ का सहारा कदापि नही लेते वे ही अपने पूर्व जन्म का बयान सही दे सकते हैं ॥ वे सच और dynamic सत्य की पहचान रखते हैं ॥
३) Zeal का कथन कि ' गीता में एक स्थान पर बताया गया है , की विभिन्न जन्मों में योनियाँ तो बदल सकती है , मनुष्य से पक्षी और पशु बन सकते हैं, लेकिन लिंग नहीं बदलता ' मान्य नही है ॥ श्रीमत्-भगवत्-गीता में ऐसा नही मिला ॥
http://gitapress.org/BOOKS/GITA/18/18_Gita.pdf
४) ब्रह्माकुमारिस कि मुरलिओन से श्रीमत्-भगवत्-गीता के श्रीभगवानुवाच की पालना होती है ॥

ZEAL said...

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ज्योति प्रकाश जी,

इसका गीता में उल्लेख है की मनुष्य की मृत्यु के उपरान्त उसका लिंग परिवर्तित नहीं होता। जो स्त्री है , वो स्त्री ही रहेगी।

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Jyoti Prakash said...

कृपया बताएं श्रीमत्-भगवत्-गीता के किस श्लोक में श्रीभगवान ने ऐसा कहा है |
http://gitapress.org/BOOKS/GITA/18/18_Gita.pdf

Jyoti Prakash said...

ZEAL प्रति : भूल-सुधार
देखें श्रीमत्-भगवत्-गीता (http://gitapress.org/BOOKS/GITA/18/18_Gita.pdf )
अध्याय (श्लोक) : 14 (18) : १४ (१८)
अधोगच्छति का शब्दार्थ अधोगति से है |
हिंदी में इसका 'अर्थात' द्वारा रूपांतर गीता - प्रेस की श्रीमत्-भगवत्-गीता में क्षमितव्य जड़तावश हो गया है | कृपया संस्कृत का श्लोक पढ़े | पदच्छेद अन्वय वाली किताब सहायक है | 'अर्थात' द्वारा भूल [ दूसरे शास्त्रों के प्रभाव में आकर ] हो जाना आम बात है | आप उदारचित्त , तीव्र पुरुषार्थी , सर्व सत्कारी Philanthropist हैं | ॐ शांति |

ZEAL said...

.

ज्ञान प्रकाश जी,

गीता को पढ़ा तो शायद बहुत लोगों ने होगा, लेकिन आपने तो उसको आत्न्सात ही कर लिया है। श्रद्धा से नतमस्तक हूँ आपके ज्ञान के आगे।

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Jyoti Prakash said...

ZEAL प्रति ( contd...):

धन्यवाद !

भूल-सुधार

उसी प्रकार
अध्याय (श्लोक) : 14 (15) : १४ (१५)
में ' प्रलीन' एवं 'मूढ़' का शब्दार्थ ही लेवें