एक फिल्म देखी थी - "दो आँखें बारह हाथ "....इसमें समाज का हित चाहने वाला जेलर छः कैदियों को सुधारने की कोशिश में अनेक कष्ट झेलता है। अंत तक लड़ता है , सफलता भी मिलती है ।
लेकिन प्रश्न यह है आज कल कौन है जो गुनाहगारों, कातिलों , बलात्कारियों , लुटेरों , भ्रष्टाचारियों और अज्ञानियों को सुधारना चाहता है ? क्यूँ ज्यादातर लोग उनको ही सुधारने की चेष्टा में लगे होते हैं , जो सुधरा हुआ है , जो स्वयं ही एक पवित्र उद्देश्य के तहत समाज के लिए कुछ करना चाहते हैं ।
यदि अन्ना आगे आयेंगे, तो विद्रोह
यदि रामदेव आवाज़ उठायेंगे , तो विद्रोह
यदि किरण बेदी एक रेफोर्म लाना चाहेंगी , तो उनकी तरक्की पर रोक ।
यदि भूषण-द्वय आगे आयेंगे तो उनके खिलाफ सीडी तैयार।
यह प्रश्न मन में इसलिए आया , क्यूंकि जबसे लिखना शुरू किया , तो उद्देश्य सिर्फ इतना था, जो कुछ आज तक सीखा है या अनुभव किया है , उसे समाज के उस वर्ग तक पहुंचा सकूँ जिसे मेरे लेखों से लाभ मिल सकें । लेकिन अफ़सोस बढ़ता गया ये देखकर की जो मेरे बहुत अपने थे , उन्होंने हर संभव तरीके से मनोबल तोड़ने की कोशिश की । किसी ने कहा - 'ब्लौगिंग बकवास है , खासकर हिंदी ब्लौगिंग" , "इससे कोई बदलाव आना वाला नहीं "
क्या अति निकटता द्वेष को जन्म देती है । क्या वजह है की जिनसे ज्यादा अपेक्षाएं होती हैं वो हमारे सार्थक उद्देश्यों में साथ देने के बजाये हमें हमारे मार्ग से भटकाने में प्रयासरत हो जाते हैं ?
और कुछ लोग जिनसे कभी मुलाक़ात नहीं , और जान पहचान भी नहीं वो धमकी देते हैं , और कहते हैं की शिद्दत से नफरत निभायेंगे और मुझे जीने नहीं देंगे। यदि मैं अपने लेखों में किसी प्रेरणादायी सत्य घटना का उल्लेख करती हूँ तो उसे भी कुछ लोग तोड़-मडोरकर अत्यंत घृणास्पद रूप में अपने ब्लॉग पर कहानी बनाकर लिख देते हैं। आखिर क्यूँ ये सब ? लोग दो कदम साथ तो चल नहीं पाते , फिर दुश्मनी क्यूँ ?
जो करीबी थे , उनसे अनायास ही अपेक्षाएं हो गयीं , उन्होंने भी अच्छा मौक़ा देखकर खूब मनोबल तोडा। और जो अनजान थे , उन्होंने नफरत निभायेंगे , ऐसी धमकी दे डाली । दोनों ही परिस्थितियों ने बहुत असहज कर दिया।
हाँ कुछ लोग ऐसे भी हैं , जो मेरी कमियों [भाषा का अथवा विषय का कम ज्ञान ], के कारण मेरा मज़ाक न बनाकर , मुझे प्रेरणा ही दी । शायद इन्हीं चंद लोगों के कारण हिम्मत अभी भी बची है लिखने की।
मैं जानती हूँ की बहुत अच्छी नहीं , बहुत ज्यादा ज्ञान भी नहीं , बहुत ज्यादा अनुभव भी नहीं , लेकिन क्या इतनी बुरी हूँ की की बात-बात मुझे ही सुधारा जाये ? जिस पवित्र उद्देश्य को लेकर यथा-सामर्थ्य आगे बढ़ रही हूँ उसका कोई अस्तित्व नहीं ?
यदि मुझमें ही सुधार ही इतनी गुंजाइश है तो मन में एक प्रश्न है ..क्या मुझे लिखना छोड़ देना चाहिए ? मेरे लेखों से समाज पर कहीं कोई दुष्प्रभाव तो नहीं ? निसंकोच बताइए , ताकि मैं सही निर्णय ले सकूँ ।
73 comments:
आप के लेख तो सबका हौंसला बढाते है, फ़िर क्यों आप के मन में ऐसे बेकार के ख्याल आ जाते है,
इन नकारात्मक विचारों को बाहर निकाल फ़ेकों फ़िर देखो क्या होता है
"नर हो ना निराश करो मन को " ये पंक्तियाँ तो सभी ने पढ़ी होगी . जीवन में इनका उपयोग हो जाए तो जीवन सफल . मै समझता हूँ की समाज के हित में लिखी गयी दो पंक्तियाँ भी उपयोगी होती है . आप यू ही लिखते रहो . राग और द्वेष तो अपना कार्य करते रहेंगे उनसे क्या घबराना . इति शुभम..
मुझे लिखने में कोई संकोच नहीं कि आपके लेख मेरे लिए ज्ञान वर्धक व प्रेरक रहे हैं। विचारों की भिन्नता अलग बात है। आज की पोस्ट भी नकारात्मक सोच को ही प्रदर्शित करती है। हम दूसरों से इतने हतोत्साहित क्यों हों ? हर बिंदु पर तो घर में भी विचार नहीं मिलते, पूरे समाज में कैसे मिलेंगे ? आपके लेखों से लोग प्रभावित न होते तो इतना पढ़ते क्यों ?
सुधार एक अनवरत चलने वाली प्रक्रिया है ज्ञानी मनुष्य में भी सुधार की गुंजाईश होती है..
यदि कोई भी लेख प्रतिक्रिया स्वरुप न लिखा गया हो तो वो सार्थक होगा...मन चंचल होता है ज्ञान का इस्तेमाल प्रतिक्रियात्मक रूप में करने एवं कराने का प्रयास करता है...
इसी बिंदु पर हमारी अंतरात्मा का निर्धारण महत्त्वपूर्ण होता है की कौन से उद्गार अपने निजी हैं कौन से किसी प्रतिक्रिया के..
आपका हौसला तोड़ते होंगे वे हार्मोनजीवी , जिन्होंने आपसे कोई उम्मीद ख़ामख़्वाह पाल ली होगी ।
मैं तो ऐसे लोगों को अपनी ब्लॉग रूपी फ़सल में खाद की तरह इस्तेमाल करता हूँ।
भाग जाते हैं सब, जो आते हैं मेरा हौसला तोड़ने । वे बेचारे ख़ुद ही अपना हौसला तोड़-छोड़ बैठते हैं।
मेरा अनुसरण कीजिए और 'मार्ग' पर चलिए। विरोधी खुद मार्ग पर आ जाएँगे ।
विरोधी कुछ भी नहीं हैं बल्कि उल्टे वे तो आपकी गरिमा का सामान हैं ।
जो आपको चित करने आएगा और ख़ुद ही चित हो जाएगा तो आपकी शान बुलंद होना तय है ।
मैं तो इंतज़ार ही नहीं बल्कि दुआ भी करता हूँ कि मालिक आज तो किसी को भेज दे !
...लेकिन कोई आने-गाने के लिए तैयार ही नहीं होता । इस मामले में आप ख़ुशनसीब हैं और फिर भी गिला-शिकवा कर रही हैं ?
अल्लामा इक़बाल फ़रमाते हैं कि
बादे मुख़ालिफ़ से न घबरा ऐ उक़ाब
ये हवाएं तुझे ऊँचा उठाने के लिए हैं
......
शब्दार्थ ,
बादे मुख़ालिफ़-विपरीत हवा , उक़ाब-बाज़
आपका हौसला तोड़ते होंगे वे हार्मोनजीवी , जिन्होंने आपसे कोई उम्मीद ख़ामख़्वाह पाल ली होगी ।
मैं तो ऐसे लोगों को अपनी ब्लॉग रूपी फ़सल में खाद की तरह इस्तेमाल करता हूँ।
भाग जाते हैं सब, जो आते हैं मेरा हौसला तोड़ने । वे बेचारे ख़ुद ही अपना हौसला तोड़-छोड़ बैठते हैं।
मेरा अनुसरण कीजिए और 'मार्ग' पर चलिए। विरोधी खुद मार्ग पर आ जाएँगे ।
विरोधी कुछ भी नहीं हैं बल्कि उल्टे वे तो आपकी गरिमा का सामान हैं ।
जो आपको चित करने आएगा और ख़ुद ही चित हो जाएगा तो आपकी शान बुलंद होना तय है ।
मैं तो इंतज़ार ही नहीं बल्कि दुआ भी करता हूँ कि मालिक आज तो किसी को भेज दे !
...लेकिन कोई आने-गाने के लिए तैयार ही नहीं होता । इस मामले में आप ख़ुशनसीब हैं और फिर भी गिला-शिकवा कर रही हैं ?
अल्लामा इक़बाल फ़रमाते हैं कि
बादे मुख़ालिफ़ से न घबरा ऐ उक़ाब
ये हवाएं तुझे ऊँचा उठाने के लिए हैं
......
शब्दार्थ ,
बादे मुख़ालिफ़-विपरीत हवा , उक़ाब-बाज़
यदि अन्ना आगे आयेंगे, तो विद्रोह
यदि रामदेव आवाज़ उठायेंगे , तो विद्रोह
.
बात आप की सही है लेकिन अन्ना आगे आएंगे तो रामदेव उनकी तंग खींच लेंगे और रामदेव हक की बात करेंगे तो अन्ना अपने साथ उनको नहीं लेंगे. ऐसा जिस कारण से हो रहा है उसी कारण से लोग बुरे को सुधारने की जगह अच्छों को ही सुधार देते हैं.
'मैं जानती हूँ की बहुत अच्छी नहीं , बहुत ज्यादा ज्ञान भी नहीं , बहुत ज्यादा अनुभव भी नहीं , लेकिन क्या इतनी बुरी हूँ की की बात-बात मुझे ही सुधारा जाये ? जिस पवित्र उद्देश्य को लेकर यथा-सामर्थ्य आगे बढ़ रही हूँ उसका कोई अस्तित्व नहीं ?'
यदि मै कहूँ आप बहुत अच्छी हैं,आपको बहुत ज्ञान और अनुभव है पर भावुक ज्यादा हैं तो बुरा तो न मानेंगीं.
पर आपकी भावनाएं ही तो लिखने पर मजबूर कर रहीं हैं आपको. सुन्दर भावनाएं , सुन्दर विचार और सुन्दर उद्देश्य यही तो चाहिये सभी को.
सूर्य में प्रकाश है तो वह सर्वत्र फैला रहा है.अब कोई उससे लाभ
उठाये या उसे कोई कोसे,उसपर क्या फर्क पड़नेवाला है.क्या कोसने पर उसे प्रकाश फैलाना रोक देना चाहिये ?
आप अपनी पूरी निष्ठा से कर्तव्य कर्म करें,फल की चिंता न करें.यानि किसी को बुरा लगे या अच्छा पर जिन बातों से यदि कोई सीख मिलती हों तो सीख ले आगे बढ़ें.
सुधरे को सुधारना नहीं चाहते , सुधरे के पास ही जुबां खुलती है ... बिगड़े के पास तो हिम्मत ही नहीं
शायद सुधरे हुए में ही संभावनाएं दिखाई देती हैं न :)
मैं तो बस यही कहूंगा
यदि तोर डाक शुने केऊ न आसे
तबे एकला चलो रे।
एकला चलो, एकला चलो, एकला चलो रे!
*** और ‘उनके’ लिए यही कि
‘किसी दूसरे व्यक्ति की आलेचना करने से पहले हमें अपने अन्दर झॉंक कर देख लेना चाहिए।’
पर ऐसे लोग ...
‘दर्पण में आप अपना चहेरा देख सकते र्हैं चरित्र नहीं।’
*** and फाइनली
‘स्वयं को सिद्ध करने का प्रयास क्यों किया जाए? आपकी निर्दोषिता दूसरे लोग स्वत: ही समझ जाएंगे।’
दिव्या जी यह नाकारात्मक भाव आपके मन में आया कैसे? अजी यह तो समाज का चलन है। बचपन की से लेकर आज तक रोज व रोज यही सब तो झेलते है। स्कूल के समय मे साथी शराब और सिगरेट पीने लगे थे और कितनी बार पीने की जिदद की और नहीं माना तो झूठ का घर में कह दिया कि सिगरेट पीता हूं।
आज से कुछ साल पहले जब अखबार से जुड़ा तो यहां चलन थी कि लिफाफे में समाचार के साथ नोट जरूरी है तभी खबर छपेगी और मैंने इस तंत्र को तोड़ा पर तंत्र ने मुझे तोड़ने की कोई कोर कसर नहीं छोड़ी।
जीवन का यह सब एक अंग है। बुरे लोग दूसरे को भी बुरा बनाना बताना चाहते है तो फिक्र कैसा। भूषणजी और अन्नाजी के साथ हीं नहीं यह तो गांधी जी के साथ भी हुआ... डोंट वरी....
नहीं दीदी आप ऐसा नहीं कर सकती...किसी भी परिस्थिति में आपकी कलम चलना बेहद आवश्यक है...आपकी कलम से हमें मार्गदर्शन मिलता है...
अब आप ही सोचें कि कुछ तो जादू है आपकी कलम का जो सभी इतने कायल हैं आपके...हाँ यह भी सत्य है कि जहाँ नाम हुआ है वहां शायद कुछ बदनामी भी मिलेगी...संसार में भाँती भाँती के लोग और भाँती भाँती की विचारधाराएं मिलती हैं...उनसे आप विचलित नहीं हो सकती, यह आपकी ताकत है और इसका हमें ज्ञान है...
बोलने वाले बहुत कुछ बोलते रहेंगे, किन्तु आप इन छिटपुट लोगों पर ध्यान न दें...ये सब कुंठित हैं शायद...
सज्जनों को सदैव अपने मार्ग पर अग्रसर रहना चाहिए...
आचार्य विष्णु गुप्त (चाणक्य) का एक कथन बहुत अच्छा लगा-
"जितनी हानि इस राष्ट्र को दुर्जनों की दुर्जनता से हुई है, उससे कहीं अधिक हानि इस राष्ट्र को सज्जनों की निष्क्रियता से हुई है|"
वे तो दुर्जन है जो अपना काम (दुर्जनता फैलाना) कर हैं, किन्तु आप सज्जन हैं, अत: आपको निष्क्रिय हो जाने का अधिकार नहीं है| आपको अपनी सज्जनता से सभी को लाभान्वित करते रहना है...
हम आपसे मार्गदर्शन की अपेक्षा रखते हैं, अत: कृपया लेखन का यह कार्य कभी ना छोड़ें...
कुछ अपनी और से अतिरिक्त भी कहना चाहूँगा-
इस ब्लॉग जगत में मिली एक बड़ी बहन को मैं नहीं खोना चाहूँगा...क्यों कि अभी आप लिख रही हैं तो हम से जुडी हुई भी हैं, लिखना बंद कर दिया तो.............
अत: सभी विवादों को भूलकर कृपया इसी आनंद के साथ लिखती रहें...
आशा है निराशा नहीं मिलेगी...
धन्यवाद...
सादर...
दिवस...
डॉ.दिव्या श्रीवास्तव जी, मैं अब पांच व्यक्तियों द्वारा की टिप्पणियों से सहमत हूँ.आप खुद विचार करें आप मलेशिया की राजधानी में रहती हैं और भारत देश में आपके ब्लॉग को फ़िलहाल 338 लोगों द्वारा "अनुसरण" किया जा रहा है. फिर अगर कोई आपको तर्क के साथ कोई बहुमूल्य सुझाव बिना किसी प्रकार की द्वेष भावना के देता तब उसका सुझाव मानने में कोई बुराई भी नहीं मानता हूँ. मुझे आपके ब्लॉग पर हिंदी का विजेट न होने के कारण टिप्पणी करने में परेशानी होती हैं. क्या आप इस बात को स्वीकार करेंगी. आपके स्थान पर मैं खुद को रखूं तब उस व्यक्ति के परिवेश को समझते हुए. तुरंत हिंदी का विजेट लगाने की व्यवस्था करूँगा.अगर आपने सुझाव पर गंभीरता से सोचा होता तब आप समझ पाते कि-यह सुझाव क्यों दिए गए हैं? अपनी बात एक छोटी-सी बात से ख़त्म कर रहा हूँ कि-मुझे भी अपने खुद के ब्लोगों में कमी नहीं दिखाई देती हैं मगर जब किसी पाठक को परेशानी होती है और उसका जिक्र करता है. तब उस और ध्यान देना चाहिए.फूलों के साथ काँटों का होना स्वाभाविक है और अच्छाइयों के साथ बुराइयों का होना भी स्वाभाविक है.मगर बुराईयों को जानकार उन्हें दूर करना भी हमारा फर्ज बनता है और जिम्मेदारी भी. अब हमारी इस गुस्ताखी पर आप कोई खूबसूरत-सी सजा दें दीजिये और कृपया हमें नाचीज़ को zeal का हिंदी में अर्थ बता दें और अगर संभव हो तो कृपया इसको अपने ब्लॉग पर हिंदी में भी लिखे. आप आलोचनाओं से घबराये बल्कि संत कबीर की वाणी पर अमल करते हुए उन्हें प्रमुख्यता से प्रकाशित करें. मेरी अपनी विचारधारा है कि-आपकी तारीफ स्वार्थी (एकाध अपवाद छोड़ दें) व्यक्ति करेंगे और आलोचनात्मक टिप्पणी करने वाले आपके सच्चे(एकाध अपवाद छोड़ दें)हितेषी होंगे. आप कोई आज निर्णय ही लेना चाहती हैं तब आपको नीचे भेजे लिंकों को पढ़कर निर्णय लें. मुझे उम्मीद ही नहीं पूरा विश्वास है आप कभी भी दिशाहीन नहीं होंगी और आप जब तक अपने लक्ष्य को प्राप्त नहीं कर लेंगी.तब तक रुकेंगी नहीं. अब बहुत सारा उपदेश दे दिया और आपका सरदर्द हो नहीं सकता हैं क्योंकि आप स्वंय डाक्टर है. बीमारियाँ तो हम जैसे "सिरफिरों" को होती हैं.
दोस्तों,क्या सबसे बकवास पोस्ट पर टिप्पणी करोंगे.मत करना,वरना..... भारत देश के किसी थाने में आपके खिलाफ फर्जी देशद्रोह या किसी अन्य धारा के तहत केस दर्ज हो जायेगा. क्या कहा आपको डर नहीं लगता? फिर दिखाओ सब अपनी-अपनी हिम्मत का नमूना और यह रहा उसका लिंक प्यार करने वाले जीते हैं शान से, मरते हैं शान से
हिंदी के प्रचार-प्रसार हेतु सुझाव:-आप भी अपने ब्लोगों पर "अपने ब्लॉग में हिंदी में लिखने वाला विजेट"लगाए.मैंने भी लगाये है.इससे हिंदी प्रेमियों को सुविधा और लाभ होगा.आज सभी हिंदी ब्लॉगर भाई यह शपथ लें
क्या आप हिंदी से प्रेम करते हैं? तब एक बार जरुर आये.मैंने अपने अनुभवों के आधार आज सभी हिंदी ब्लॉगर भाई यह शपथ लें हिंदी लिपि पर एक पोस्ट लिखी है.मुझे उम्मीद आप अपने सभी दोस्तों के साथ मेरे ब्लॉग एक बार जरुर आयेंगे. ऐसा मेरा विश्वास है.
क्या ब्लॉगर मेरी थोड़ी मदद कर सकते हैं अगर मुझे थोडा-सा साथ(धर्म और जाति से ऊपर उठकर"इंसानियत" के फर्ज के चलते ब्लॉगर भाइयों का ही)और तकनीकी जानकारी मिल जाए तो मैं इन भ्रष्टाचारियों को बेनकाब करने के साथ ही अपने प्राणों की आहुति देने को भी तैयार हूँ.
अगर आप चाहे तो मेरे इस संकल्प को पूरा करने में अपना सहयोग कर सकते हैं.आप द्वारा दी दो आँखों से दो व्यक्तियों को रोशनी मिलती हैं. क्या आप किन्ही दो व्यक्तियों को रोशनी देना चाहेंगे?
नेत्रदान आप करें और दूसरों को भी प्रेरित करें क्या है आपकी नेत्रदान पर विचारधारा?
यह टी.आर.पी जो संस्थाएं तय करती हैं, वे उन्हीं व्यावसायिक घरानों के दिमाग की उपज हैं. जो प्रत्यक्ष तौर पर मनुष्य का शोषण करती हैं. इस लिहाज से टी.वी. चैनल भी परोक्ष रूप से जनता के शोषण के हथियार हैं, वैसे ही जैसे ज्यादातर बड़े अखबार. ये प्रसार माध्यम हैं जो विकृत होकर कंपनियों और रसूखवाले लोगों की गतिविधियों को समाचार बनाकर परोस रहे हैं.? कोशिश करें-तब ब्लाग भी "मीडिया" बन सकता है क्या है आपकी विचारधारा?
लोग अक्सर सुधरे को सुधारना नहीं बल्कि अपने रंग(सोच)में रंगना (ढालना)चाहते है।
यह एक सामान्य सी बात है कि सभी को अपना दृष्टिकोण ही उत्तम लगता है, और अन्य का गडबड।
यह सोच सभी को अपने तंबु में खड़ा देखना चाहती है। यहाँ अनेकांत दृष्टि या सम्यग दृष्टि का अभाव होता है।
डटी रहिए,अपनी सोच का विश्लेषण स्वयं किजिए और स्वयं स्फूर्त सुधार ही लागू किजिये।
मुझे तो आप बहुत ही प्यारी लगती हो ज़ील जी।
बाकी कौन आपके साथ कैसा व्यवहार करता है, इन बातों में आखिर रक्खा ही क्या है?
यू कैरी आन विथ यौर स्टाइल। इट्स परफ़ेक्ट मैम।
डोण्ट टेक टेन्शन ओ.के.। बाय।
कौन बिगड़ों को सम्हालेगा,
चलो, सुधरों को सुधारा जाये।
ऐसा ही होता है दिव्या जी. ठीक उसी तरह जैसे घर में सबसे ज़्यादा काम करने वाले के काम में ही मीन-मेख निकाला जायेगा, जो कभी काम न करता हो, वो अगर एक काम कर ले तो उसकी वाह वाही होने लगती है.
आज दिव्या जी भी कुछ नाराज़ सी लगती हैं ।
ब्लोगिंग का एक ही फायदा है कि यहाँ कोई बंधन नहीं है । जो पसंद आए , लिखिए , पढ़िए , टिप्पणी दीजिये या न दीजिये , आपकी इच्छा है ।
फिर भी जाने क्यों विवाद पैदा हो जाते हैं ।
शायद इसका हल यही है कि टिप्पणी को व्यक्तिगत रूप न दिया जाये ।
बहुत दुःख हुआ की आप लोगों के बुरे सन्देश से डर कर लिखना बंद करने की सोच रही हैं .ये तो पलायन हो गया .अगर लोगों के डर से गांधीजी,आन्नाहजारेजी जैसे लोग पीछे हट जाते तो सोचिये आज अहिंसा परमोधर्म पर कोंन विस्वास करता.आप के इतने सारे प्रसंसक हैं कुछ लोग अगर आपके विचारों से तालमेल नहीं रख रहें तो आप इतनी दुखी क्यों हो रहीं हैं.आप अपनी लेखनी जारी रखिये.सच लिखने मैं डर कैसा .हम आपके साथ हैं /
राग कभी नहीं फूटता बिन छुए वीणा के तार
बिन उड़े परिंदा क्या जाने क्या रचा बसा उस पार !!
आगे बढ़ तू मन से कर ले होंसला अफ़जाई
बिन किये कुछ हाथ न आये
यही है किस्मत यही खुदाई !!
Dr.Divya meri in panktiyon me aapka uttar chipa hai.apne uddeshye path par chlte rahna.raaste me patthar to aate jaate rahte hain.SAANCH KO AANCH NAHI.
डॉ. दिव्या, यह एक सनातन खेल है। आप तो अच्छा मनो-विश्लेषण कर लेती हैं। क्यों न इसे अपने ब्लाग के लिए उचित सामग्री बनाएँ। आप बहुत अच्छा लिखती हैं, जैसे कि यह वर्तमान पोस्ट।
वर्षों पहले अचला नागर जी का एक लेख पढ़ा था कि "प्रत्येक इन्सान में कुछ न कुछ दुर्बलता होती ही है". आपका यह लेख बहुत कुछ सोचने पर बाध्य करता है, इतना व्यापक अनुभव, इतना अधिक आत्मविश्वास, इतनी सुगढ़ भाषा और सार्थक रचनात्मकता के बूते ही सैकड़ों प्रशंसक व शुभचिंतक आपके पास है. फिर भी आपका मायूसी भरा यह लेख! 'आयरन लेडी' को यह शोभा नहीं देता दिव्या जी, आपसे तो बहुत कुछ सीखने को मिलता है. आप निरंतर सृजनशील रहें यही कामना है मेरी और सभी ब्लोगेर्स की भी ........ अनेकानेक शुभकामनायें.
अरे यह दुनिया का दस्तूर है..इनकी क्या परवाह करनी.आप बस अपना कर्म निभाइए और लिखती रहिये.
जॉनसन ने जब अंग्रेज़ी शब्दकोश तैयार किया तो उन पर बहुत आरोप लगे. वे कोई जवाब नहीं देते थे. उनके साथियों ने कहा कि जब आप इतनी मेहनत से कार्य कर रहे हैं तो आप उत्तर क्यों नहीं देते. उन्होंने कहा था कि यदि मैं उत्तर देने में ही लग जाऊँ तो यह कार्य कौन करेगा.
अपने जिस कार्य को आप ठीक समझती हैं उसमें लगे रहना चाहिए.
आप लिखना बिलकुल न छोड़ें. ये दुनिया है, ऐसे ही चलती रहेगी.
हाँ,शुभचिंतकों को पहचानने में कभी कभी इन्सान से गल्ती हो जाती है,बस इस मामले में alert रहने की ज़रुरत है.
Dr Divya ji,
you are doing a nice job by writting such blogs. Please dont care what people say about your work just listen the voice of your soul. An Iron lady can,t be so soft that she will think to be mold her goodness in weekness. Dar chahe samaj ka ho ya logoa ki alochana ka us ka smile or peace ke sath nibhay ho kar samna karo wo apko darna band kar dega. An elephent keep on going his way without looking towards barkings dogs. So please keep it up & On.......
‘गुनाहगारों, कातिलों , बलात्कारियों , लुटेरों , भ्रष्टाचारियों और अज्ञानियों को सुधारना चाहता है ’
मार खानी है क्या ? :)
अरे लिखिये, लिखना मत छोड़िये। लोगों का काम है कहना - कुछ तो लोग कहेंगे।
"लेखन यदि आपका स्वभाव बन गया है तो वह किसी भी सूरत-ए-हाल में नहीं छूट सकता और यदि यह विवशता है तो बहुत जल्द छूट जायेगा."
लेकिन सभी मानते हैं और जानते हैं कि आपके लेखन से न केवल मार्गदर्शन मिलता है.. अपितु जंगियाये दिमाग में वैचारिक तेल पड़ता है.. वह चलने लगता है. बेशक द्वेषवश आपके खिलाफ ही षडयन्त्र क्यों न रचने लगे.
जाट देवता जी की बात और बुजुर्ग देवता श्री 'भूषण' जी का दृष्टांत गाँठ बाँध लें.
आपको जो लगता है वह निडर होकर लिखिए .दुनिया में सब तरह के लोग होते हैं और ?यह तो पुरानी रीति है कि खोटे ग्रहों की संतुष्टि के लिए सारे दान-अनुष्ठान होते हैं ,अच्छे तो बेचारे उपेक्षित ,क्या बिगाड़ लेंगे किसी का !
ऐसा क्यूँ होता है की लोग सुधरे हुए को हो सुधारना चाहते है ?
@ जो काम सबसे आसान लगेगा ... वही तो करना चाहेंगे.
aap likhte rahiye.....ham padhte rahenge,bahut achcha likhtin hain aap.
आदरणीय डॉ.दिव्याजी मै कहना चाहाता हु की आप बहुत ही अच्छा लिखतीे है और इसी तरह लिखते रहिए मेरी नजर आपके लेख से सभी को लाभ होता है और मेरा मानना है आप जैसे लेखिका से सदैव मार्ग दर्शन की उम्मीद मुझे रहेगी आपका सवाई
"गुणों से ही मनुष्य महान होता है, ऊँचे आसन पर बैठने से नहीं ! महल के ऊँचे शिखर पर बैठने मात्र से कौवा गरुड़ नहीं हो सकता" :- चाणक्य
आप बहुत ज्ञानी हैं और आप भी गुणों से महान है
गुणी जनों ने ऊपर काफी बातें सही कहीं हैं. मैं तो सिर्फ़ इतना कहूँगा..
just ignore and move ahead
क्योंकि ज़िंदगी चलने का ही नाम है
आप और लिखें खूब लिखें और हम पढ़ कर निर्मल आनन्द पाते रहें.
मनोज
meri rahon par kante bichhane valon ko maloom nahin.
kal shayad unhe bhi inhi rahon se gujarana pade..
mai to jaise taise pa loonga apni manzil parwardigar...
afsoso hoga unhen in rahon par ladkhadata dekhkar....
मुझे तो आज की ’दिव्या’एक छोटी सी बच्ची लग रही है :)अब पहले थोड़ा हंस लो ....अब ठीक है ...मेरा एकमात्र सिद्धान्त है चाहो तो अपना लेना -जो तुम्हे अपनी काबिलियत से पीछे नहीं कर सकते सिर्फ़ वही ऐसा करते हैं और इस को ही इनफ़ीरियारिटी काम्प्लेक्स कहते हैं ,फ़िर ऐसे लोगो का क्या सोचना -तो बस लिखती रहो और खुश रहो...हो सकता है तुम्हारा नाम लेने से ही कुछ दुकान चल जाती हो ....
.यह बात तो है कि यहाँ सभी समझदार है ।
ऎसे ज्ञानियों को ज्ञान बाँटने में दिक्कतें तो आयेंगी ।
आप स्वयँ ही इस आत्ममँथन से नवनीत निकाल सकती हैं ।
"जिनसे ज्यादा अपेक्षाएं होती हैं वो हमारे सार्थक उद्देश्यों में साथ देने के बजाये हमें हमारे मार्ग से भटकाने में प्रयासरत हो जाते हैं ?"
अपेक्षाएं रखी ही क्यूँ जाएँ??...ठीक है...मानव- मन है...कोई संत नहीं...पर इतना परिपक्व तो है कि कुछ दिनों में समझ जाए कि कौन हितैषी है...और कौन बस मीन-मेख निकालनेवाला. बस वहीँ किनारा कर लेना चाहिए
और हम लिखते इसलिए हैं क्यूंकि हमें लिखना अच्छा लगता है...बस अपने मन का लिखते जाएँ..स्वतः ही unwanted ppl...हतोत्साहित करनेवाले लोग छंट जाएंगे या फिर दोष निकालते हुए थक जाएंगे....बस उनका अस्तित्व ही नकार देना चाहिए.
अरे यह दुनिया का दस्तूर है..इनकी क्या परवाह करनी.आप बस अपना कर्म निभाइए और लिखती रहिये.
अरे लिखिये और लिखना मत छोड़िये।
जिस उद्देश्य से आप लिखती हैं वो तो बहुत अच्छा है फिर क्यूँ छोड़ना ये लिखना ! शुभकामनाएँ !
डॉ० दिव्या जी डॉ० कुंवर बैचैन जी का एक शेर है
जिसमे दम है वो विरोधों में और चमकेगा
किसी दिये पे अँधेरा उछालकर देखो |
आप किरन बेदी की पुस्तक हिम्मत है या i dareपढ़िये देखिए कितनी दिक्कतें उन्हें झेलनी पड़ी इंदिरा जी का जीवन देखिए उन्हें भी दिक्कतें हुई आप हिम्मत से अपना कार्य करिये कुछ अच्छे लोग भी हैं जो आपके कार्य को सराहेंगे उनमें मुझे भी आपका लेखन अच्छा लगता है |बधाई और असीम शुभकामनाएं |
दिव्या जी,
-हर किसी को संतुष्ट नहीं किया जा सकता।
-आजकल का चलन यह है कि जो कोई प्रसिद्धि पाने लगता है उसकी आलोचना भी शुरू हो जाती है।
-आप व्यर्थ की बातों की ओर ध्यान मत दीजिए और लिखते रहिए।
logon ka kya hai ye to kuchh-n-kuchh kahenge
आप जुते तो पहती ही होंगी ना:) तो सब से ऊंची ऎडी का जुता जो पुराना हो ओर फ़ेकने वाला हो, उसे एक तरफ़ रख ले, ओर फ़िर जो लोग आप को गालिया देते हे, रोकते हे, धमकिया देते हे उन सब का नाम एक कागज पर लिख कर इस जुते से दे दनादन सेवा करे, ओर पति देवता से बोले इन इस की एक विडियो बनाये ओर उसे नेट पर डाल दे.... ताकि इन सुअरो को इन की आसलियत का अहसास हो जाये, अजी निडर हो कर लिखे, ऎसे लोगो की टिपण्णियां ओर मेल को सपेम मे डाल दे. भाड मे जाये.
अगर यह हिन्दी ब्लागिंग को बकवास कहते हे तो इन के मां बाप भी तो हिन्दी वाले हे, फ़िर तो वो भी.....
आप जुते तो पहती ही होंगी ना:) गलती सुधार **आप जुते तो पहनती होंगी ना** इस लाईन को ऎसा पढे
गुरू नानक देव जी की शिक्षा पर अमल कर रहे हैं जी!
दिव्याजी,
कर्म केवल अपने लिए ही नहीं ,लोक हितार्थ भी किया जाता है,स्तुति -निंदा से परे होकर.
लगता है आप इस पोस्ट के माध्यम से सभी की परीक्षा ले रहीं हैं.
वर्ना तो मेरी समझ में स्वयं में ही आप बहुत परिपक्व हों चुकीं हैं अब तक.आप तो उन लोगों को रास्ता दिखाने में समर्थ हैं जो जरा जरा सी बातों से विचलित हों जाते हैं.एक एक मिलकर कारवां बनाने की बात भी तो आपने ही बताई थी.
आभार इस जानकारी के लिये।
ब्लॉग का आशय ही है की उन लोगों को जुबान देना...जो कुछ कहना चाहते हैं...बोलने का अधिकार...इसी तरह सबके पास ना पढ़ने का अधिकार भी है...आप उनके लिए लिखिए जो आपको पढना चाहते हैं...मुझसे पूर्व ५४ कॉमेंट्स ये ही दर्शाते हैं...
हूँ ......तो आखिर आज मौक़ा मिल ही गया दिव्या को डाँटने का. पहले तो यह बताओ कि "निंदक नियरे राखिये आँगन कुटी छवाय" किसके लिए लिखा गया है ? मार्गावारोध ही हमारे अन्दर साहस और नयी ऊर्जा संचार का कार्य करते हैं. फिर दिव्या क्यों इन चक्करों में पड़कर अपनी ऊर्जा नष्ट करती है. यह आत्म विश्वास की कमी क्यों आ रही है तुम्हारे अन्दर ? अच्छा चलो, मैं कहा रहा हूँ कि मुझे दिव्या के होने से बहुत परेशानी है ....बड़ा कष्ट है मुझे ...क्या मेरे कष्ट के निवारण के लिए दिव्या को कुएं में कूद पड़ना चाहिए ? करोगी ऐसा ? अभी तक बचपना गया नहीं तुम्हारा. अवरोधों को ..प्रतिरोधों को अपनी शक्ति बनाना कब सीखोगी ? क्या यह सब किसी चिकित्सक को बताने की आवश्यकता है ? आज के बाद कभी ऐसी बात की तो मैं वाकई नाराज हो जाऊंगा .हे आर्य पुत्री ! वीर्यवान बनो और असुर मानसिकता का पूरी रचनात्मक शक्ति के साथ सामना करो. स्मरण करो अपने ऋषियों-मुनियों का और उनके तेज का जिन्होंने अपने आत्म बल पर पूरे विश्व में कभी अपनी संस्कृति और ज्ञान की पताका फहराई थी. आर्य पुत्री के मुंह से निर्बलता के शब्द शोभा नहीं देते. अपनी दिव्यता को एक्सप्लोर करो. दिव्या दिव्य है बस ..."अहं ब्रह्मास्मि" का मन्त्र दिव्या के लिए ही है. कलम की तलवार उठाओ और निर्बलता का शिरोच्छेद कर दो.
For Divya..
" Woods are lovely dark n deep, but I have some promises to keep,miles to go before I sleep,miles to go before I sleep.." -Frost.
Don't stop Divya.. Carry on...... Enjoy criticism n keep writing..
यह सच है कि करीबी से करीबी व्यक्ति भी आपकी सफलता से ईर्ष्या करता है, भले ही वह उसे उजागर न करे। लेकिन यहां फिल्म 'गुरु' में अभिषेक बच्चन का बोला हुआ संवाद दोहराना चाहूँगा, ''जब दोस्त लोग तुम्हारे खिलाफ बोलने लगें न, तो समझ लो तरक्की कर रहे हो।''
आज ये मन रुपी पक्षी इतना परेशान क्यों है?
निंदक नियरे राखिये आगन कुटी छ्वाय.
आप अपना काम करिये उन्हें अपना करने दीजिए.
दिव्या जी , लिखिए और बेबाक लिखिए. आप के पास विचारों की बहुलता और परिपक्वता के साथ साथ सम्प्रेषण की भी अद्भुत क्षमता है . हाँ, एक सुझाव अवश्य देना चाहूँगा , मतभेद की स्थिति में प्रतिक्रिया पर अपनी प्रतिक्रिया संक्षिप्त ही रखें. आपको अपने विचार व्यक्त करने का पूर्ण अधिकार है , किसी justification की अधिक आवश्यकता न है !
मेरी शुभकामनाएं ... आप यूं ही हमेशा-हमेशा लिखती रहें ...।
नहीं !!
आप ऐसा नहीं कर सकती...
किसी भी परिस्थिति में आपकी कलम चलना बेहद आवश्यक है...
आपकी कलम से हमें मार्गदर्शन मिलता है..
कहीं-कहीं वैचारिक मतभेद हो सकते हैं पर लिखती आप अच्छा हैं...
यूं ही लिखती रहिए...
किसी को कोई न सुधार सका है ... न ही कोई सुधरता है किसी के कहने से ... अपना काम करे जाना चाहिए ... डरना माना है ...
इस युग में
सज्जनों को हो रहा है नुक्सान परिचय से,
घनिष्ट परिचय से---
दोस्तों कि दुश्मनी घातक रही खुब ,
लम्बे अरसे से----
दुर्जनों ने आज भी सौदे किये, खुब लाभ पाया
सज्जनों के हाथ बस नुक्सान आया
सफलता से आज बस परचित जलें,पग-पग छलें
जो अपरचित, वे बेचारे, क्यूँकर खलें ??
.
इस कठिन घडी में , मन में उपजे इस प्रश्न का सार्थक उत्तर देकर आप सभी टिप्पणीकारों ने मुझे उपकृत किया है। आप द्वारा किये गए मार्गदर्शन के लिए , ह्रदय में आप सभी के लिए कृतज्ञता के भाव हैं।
पुनः आभार ।
.
दिव्या जी ,
आप किसी भी विषय पर निस्संदेह पूरी निर्भीकता और बेबाकी से अपनी लेखनी चलाती हैं | अब यदि कोई बिना किसी कारण के - बेवजह कमी निकालता है ,हतोत्साहित करता है या धमकी देता है तो इसे आपको उसकी दुराग्रही सोच ही समझना चाहिए | इसे कत्तई गंभीरता से न लें और अपना लेखन अबाध जारी रखें |
आपके अच्छे खासे समर्थक हैं , काफी संख्या में लोग पढ़ते भी हैं और बहुसंख्य की राय में आपका लेखन समाज को बहुत कुछ दे ही रहा है |
अतः आप अपना लेखन और अधिक उत्साह से जारी रखें , मेरा तो यही विचार है और आग्रह भी |
hai ye vaani budh ki
kya dekhen pardosh ko
dekhen apne dosh
dosh dekhte dekhte
chitt bane nirdosh
apne hi mujhse aparchit rah gaye---
बंजर धरती से मैंने सोना उपजाया
कूप और नलकूपों का इक जाल बिछाया
जीवन भर ढोया पानी, फिर भी प्यासा मै
जीवन-संध्या की हूँ , घनघोर निराशा मै
देख-भाल कर मैंने हर कदम उठाया
भटक रहे हर राही को, सदमार्ग दिखाया
कस्मे-वायदे-प्यार-वफ़ा की करी बंदगी
पर-सेवा,पर-हितकारी यह रही जिंदगी
फिर भी कोई कमी काल सी कसक रही है
अंतस में अन्जानी चाहत सिसक रही है
apne aparchit rah gaye-----
बंजर धरती से मैंने सोना उपजाया
कूप और नलकूपों का इक जाल बिछाया
जीवन भर ढोया पानी, फिर भी प्यासा मै
जीवन-संध्या की हूँ , घनघोर निराशा मै
देख-भाल कर मैंने हर कदम उठाया
भटक रहे हर राही को, सदमार्ग दिखाया
कस्मे-वायदे-प्यार-वफ़ा की करी बंदगी
पर-सेवा,पर-हितकारी यह रही जिंदगी
फिर भी कोई कमी काल सी कसक रही है
अंतस में अन्जानी चाहत सिसक रही है
मैं 15 तारीख को शहर से बाहर थी इसलिए आपकी इस पोस्ट का अभी पढ़ रही हूँ और इसके बाद एक पोस्ट और भी आ गयी है। एक विद्वान ने एक विचार लिखा था कि "ईर्ष्या कमानी पड़ती है और चापलूसी खरीदी जाती है"। शायद समझ आ गयी होगी मेरी बात। वैसे मैं ब्लाग जगत में कुछ अच्छा पाने के उद्देश्य से आयी हूँ और जहाँ भी कुछ सीखने को मिलता है, उसे अवश्य पढ़ती हूँ और यथा सम्भव अपने विवेक से टिप्पणी भी करती हूँ।
mam aapne abhi tak jo likha hai wo sahai likha hai..... aasha karta hun ki ese hi likhti rahengi.. subhkamnayeeeen.......... jai hind jai bharat
दिव्या ! अपने लक्ष्य की और बेबाकी और साफगोई से बढ़ती रहें !
आशीर्वाद!
शुभकामनाएँ !
औरन की फुल्ली लखैं , आपन ढेंढर नाय
ऐसे मानुष ढेर हैं, चलिए सदा बराय
चलिए सदा बराय, काम न अइहैं भइया
करिहैं न सहयोग, जरुरत परिहै जेहिया
कह 'रविकर' समझाय, ठोकिये फ़ौरन गुल्ली
करिहैं न बकवाद, देख औरन की फुल्ली
फुल्ली = बहुत ही छोटी गलती
ढेंढर = ढेर सारा दोष
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