मासूम सपना जीवन से निराश होकर आत्महत्या करने जा रही थी। इससे पहले की नदी की उफनती लहरों में वो छलांग लगाती , दो मज़बूत बाँहों ने उसे थाम लिया। मुड़कर देखा तो विराट ने उसके गाल पर एक ज़ोरदार चांटा मारा और कहा-- "निराशा कभी इतनी गहरी मत होने दो की आत्महत्या करनी पड़े"
सपना ने कहा --"इतनी विशाल दुनिया में एक अकेली लड़की , कहाँ तक लड़ सकती है? , निराश तो होना ही था एक दिन । और फिर मृत्यु तो अंतिम परिणति है ही जीवन की , तो थोडा पहले ही मर जाने में बुराई क्या है , सब दुखों का अंत तो हो जाएगा। "
विराट ने कहा- तुम अकेली नहीं हो , मुझे अपना भाई समझना आज से। तुम्हारे जीवन में खुशहाली आये , ये मेरी जिम्मेदारी होगी अब से।
फिर सपना और विराट साथ साथ रहने लगे । सब तरफ खुशहाली छा गयी । ऐसा लगता था मनो सारी प्रकृति ही उनके साथ हो चली हो। एक छोटा सा सुखी परिवार बन गया था। बहन सुरुचिपूर्ण भोजन बनाती थी और अपने भैया की हर छोटी बड़ी हर ज़रुरत का ध्यान रखती थी। बहन होने का पूरा फ़र्ज़ निभाती रही।
वो अपने भैया की विद्वता और गुणों का बहुत आदर करती थी। लेकिन उनके गुस्से से बहुत डरने लगी थी। क्यूंकि विराट सभी के साथ नरमी से पेश आता था , लेकिन सपना के साथ बहुत सख्त ही रहता था।
एक लम्बी अवधि तक सपना ने इस गुत्थी को सुलझाने की बहुत कोशिश की , लेकिन वो समझ नहीं पायी भैया की इस सख्ती को। उसको यही अफ़सोस सालने लगा की वो इतना मान करती है भैया का फिर भी वे उसके साथ रुखाई बरतते हैं , जबकि औरों के साथ इतनी नरमी।
जब सपना के बर्दाश्त की हदों के बाहर हो गया तो वो चुपचाप एक दिन घर छोड़कर चली गयी। उसे अपने भैया के स्नेह का पूरा भान था , लेकिन उनकी कडवी ज़बान इस दूरी का कारण बन गयी । सपना ने सोचा की वो खुद को इतना मज़बूत करेगी की प्यार करने वाले भैया की कडवी ज़बान भी उसे मीठी लग सके, और तब तक वो उनसे दूर ही रहेगी।
अब उधेड़बुन की बारी थी विराट की । बहन से जुदाई , सब दुखों पर भारी थी। सोचता रहता , ऐसा क्या गुनाह किया जो बहन नाराज़ हो गयी । बहुत दुखी था वो , उदास भी । लेकिन क्या वो कभी समझ पायेगा की क्या गलती कर रहा था वो ?
सपना ने कहा --"इतनी विशाल दुनिया में एक अकेली लड़की , कहाँ तक लड़ सकती है? , निराश तो होना ही था एक दिन । और फिर मृत्यु तो अंतिम परिणति है ही जीवन की , तो थोडा पहले ही मर जाने में बुराई क्या है , सब दुखों का अंत तो हो जाएगा। "
विराट ने कहा- तुम अकेली नहीं हो , मुझे अपना भाई समझना आज से। तुम्हारे जीवन में खुशहाली आये , ये मेरी जिम्मेदारी होगी अब से।
फिर सपना और विराट साथ साथ रहने लगे । सब तरफ खुशहाली छा गयी । ऐसा लगता था मनो सारी प्रकृति ही उनके साथ हो चली हो। एक छोटा सा सुखी परिवार बन गया था। बहन सुरुचिपूर्ण भोजन बनाती थी और अपने भैया की हर छोटी बड़ी हर ज़रुरत का ध्यान रखती थी। बहन होने का पूरा फ़र्ज़ निभाती रही।
वो अपने भैया की विद्वता और गुणों का बहुत आदर करती थी। लेकिन उनके गुस्से से बहुत डरने लगी थी। क्यूंकि विराट सभी के साथ नरमी से पेश आता था , लेकिन सपना के साथ बहुत सख्त ही रहता था।
एक लम्बी अवधि तक सपना ने इस गुत्थी को सुलझाने की बहुत कोशिश की , लेकिन वो समझ नहीं पायी भैया की इस सख्ती को। उसको यही अफ़सोस सालने लगा की वो इतना मान करती है भैया का फिर भी वे उसके साथ रुखाई बरतते हैं , जबकि औरों के साथ इतनी नरमी।
जब सपना के बर्दाश्त की हदों के बाहर हो गया तो वो चुपचाप एक दिन घर छोड़कर चली गयी। उसे अपने भैया के स्नेह का पूरा भान था , लेकिन उनकी कडवी ज़बान इस दूरी का कारण बन गयी । सपना ने सोचा की वो खुद को इतना मज़बूत करेगी की प्यार करने वाले भैया की कडवी ज़बान भी उसे मीठी लग सके, और तब तक वो उनसे दूर ही रहेगी।
अब उधेड़बुन की बारी थी विराट की । बहन से जुदाई , सब दुखों पर भारी थी। सोचता रहता , ऐसा क्या गुनाह किया जो बहन नाराज़ हो गयी । बहुत दुखी था वो , उदास भी । लेकिन क्या वो कभी समझ पायेगा की क्या गलती कर रहा था वो ?
58 comments:
sundar kathanak,
kushal aur saumye vyavhar se hi logi dil jita ja sakta hai!
prernadayak kahani!
समझ तो गया,
लेकिन अहं हमेशा आडे आ जाता है।
क्या से क्या संदेश दे देती हैं, आप
प्रणाम स्वीकार करें
200वें आलेख की बधाई स्वीकारें ... संदेशात्मक प्रस्तुति बेहतरीन
हमेशा की तरह ... ।
"लेकिन क्या वो कभी समझ पायेगा की
क्या गलती कर रहा था वो ? "
स्नेह और प्यार का प्रकटीकरण भी जरुरी है.
सारे प्राणी एक जैसे विद्वान् नहीं होते
"निराशा कभी इतनी गहरी मत होने दो की आत्महत्या करनी पड़े"
बढिया कथन।
२०० वीं पोस्ट पर हार्दिक बधाई. 'उधेड़बुन' में छुपा सन्देश विचारणीय है. मैरी एक कहानी 'चिकित्सक' का स्त्री पात्र भी आत्महत्या करना चाहती [?] थी ! क्या हुआ देखिये: -
http://mansooralihashmi.blogspot.com/2010/06/blog-post.html
Regards.
mansoor ali hashmi
२०० वीं पोस्ट पर हार्दिक बधाई. 'उधेड़बुन' में छुपा सन्देश विचारणीय है. मैरी एक कहानी 'चिकित्सक' का स्त्री पात्र भी आत्महत्या करना चाहती [?] थी ! क्या हुआ देखिये: -
http://mansooralihashmi.blogspot.com/2010/06/blog-post.html
Regards.
mansoor ali hashmi
यदि वह भाई होगा तो कूट संदेश को समझने कोशिश वह ज़रूर करेगा और अस्ल चीज़ तो प्रेम है न कि उसे व्यक्त करने की शैली और अलंकार। भाई थोड़ा रूखा और अक्खड़ हो तभी अच्छा लगता है मिसाल के तौर पर अरबाज़ ख़ान काजोल के भाई बने थे 'प्यार किया तो डरना क्या' में.
200वीं पोस्ट मुबारक हो ।
Was he really behaving like a brother ?
बहुत मार्मिक आलेख!
200वीं पोस्ट का बधाई!
@"लेकिन क्या वो कभी समझ पायेगा की
क्या गलती कर रहा था वो ? "
नहीं वह कभी नहीं समझ पाएगा कि वह गलत था। उसे यही अहसास सालता रहेगा कि जिस बहन को मैने सहारा दिया अपनाया वह स्वार्थी बनकर चली गई।
दोनो ही अपनी अपनी धारणाओं और समझ के वशीभूत ही मानसिकताएं बनाएंगे।
स्पष्ठ सम्वाद जरूरी है।
बेहतरीन संदेशात्मक प्रस्तुति|200वें आलेख की बधाई स्वीकारें|
किसी भी बात की कोई सीमा होती है जब बात इंसान के बर्दाश्त के बाहर हो जाती है तो सीमा टूट जाती है....
समझ तो गया शायद सुधार भी ले....
ye bilkul sahi laha aapne ki kadavi jabaan saare achche gun ko chupaa deti hai.bahut hi saarthak sikchaprad lekh hai .badhaai sweekaren.
शायद सपना को नारियल के भीतर छुपे स्निग्ध मिठास की पहचान न रही होगी !
200वें आलेख की बधाई स्वीकार करें ..इश्वर से प्राथना है की आप इसी तरह निर्भीक लेखन के पथ पर आगे बढती रहें आपको मेरी हार्दिक शुभ कामनाएं !!
great story in all respect
लाख टके की बात , अपनी कविता की दो पंक्ति.
"कितना भी हो गहरा नैराश्य भाव, जिजीविषा बिखर ना पाए"
२०० सौवे पोस्ट की हार्दिक बधाई . .
kai baar vyakti khud ko nahi samajh paata ki sahi banne ke chakkar me wo kya ker raha hai ...viraat ne yahi ker diya
मिलना व बिछडना क्यों होता है? काश बिछुडना ना होता?
200वें आलेख की बधाई स्वीकारें ..
कड़वी जुबान मधुर संबंधों का सबसे बड़ा शत्रु है।
प्रेरक कहानी।
200वें आलेख की बधाई
"निराशा कभी इतनी गहरी मत होने दो की आत्महत्या करनी पड़े"
निराशा गहराने से पहले ही उसे थाम लेना ही श्रेयकर होता है अब कैसे थामना है ये एक चिकित्सक से बेहतर कोई नहीं जान सकता और जो जानता है उसे इसका प्रचार प्रशार करना चाहिए , शुभकामनाये
डॉ० दिव्या जी भतीजी के विवाह की व्यस्तता के कारण किसी भी ब्लॉग पर जाना नहीं हो सका लेकिन धीरे -धीरे आप सभी को पढ़ने की कोशिश करूँगा |अच्छी पोस्ट बधाई
२०० वीं पोस्ट के लिए बधाई ... और सुज्ञ जी बात से पूर्णत: सहमत ...
दिव्या जी, यह आलेख नहीं बल्कि एक कहानी है...जीवन की गांठों से परिचित करवाती। सपना हमेशा निराश करता है क्योंकि बहुत कम संभावनाएँ होती है उसके पूरा होने की। लेकिन विराट जीवन को जिंदा रखता है...विराट जीवन की अहमियत समझता है, वह जीवन को चलायमान रखने के लिए नम्र है...लेकिन कर्म के बिना वह स्वप्न को पूरा नहीं कर सकता। सपना को विराट होने के लिए कर्म करना ही पड़ेगा...और इस रहस्य को भी समझना पड़ेगा कि जीवन है तो सपना है। विराट भी तब तक साथ देता है जब तक जीने की इच्छा और कर्मण्यता का भाव है।
बहुत सुंदर रहस्यपूर्ण कथा।
२०० वी पोस्ट की बधाई . प्यार का इज़हार तो ज़रूरी है.
यह बात भी बहिना को ही समझानी पड़ेगी, दिव्या जी.
उत्तम आलेख, भावनाओं से ओत प्रोत !
लेख के साथ साथ दोहरे शतक की भी बधाई स्वीकारें !
उधेड़बुन से भरी रहती है जीवन की श्रंखला। आपको 200 वीं पोस्ट की बधाई।
लेकिन क्या वो कभी समझ पायेगा की क्या गलती कर रहा था वो ?
.....वह समझ तो तभी गया जब उसने अपनी प्यारी बहन को खो दिया मगर स्वभाव नहीं बदलता। कहेगा .. फिर भी उसे मुझे छोड़कर जाना नहीं चाहिए था...जाने से पहले अपनी बात बता के तो देखती मैं उसे कितना प्यार करता। .उसने मुझे समाझा नहीं। बहन ने जाकर ही ठीक किया।
काश भाई समझ गया होता..
हा कभी विराट अपने अंदर झाकां तो उसे जरुर एहसास होगा अपनी गलती का, लेकिन हो सकता हे सपना भी कही गलत हो? वो हर पल सहानूभुति ही चाहती हो?
जीवन में कभी - कभी उधेड़बुन भी नए रास्ते सामने ला देती है ..लेकिन इसका मतलब यह कभी नहीं कि हम आत्महत्या जैसे कदम उठा लें ....आपको 200 वीं पोस्ट के लिए हार्दिक बधाई ....!
सुन्दर,
बधाई हो आपको 200 वीं पोस्ट की- विवेक जैन vivj2000.blogspot.com
very intricate !!
really sometimes people ( which involves u and me ) don't realize that our actions are hurting others, and often its too late to realize.
you can sight such intricacies are possible in any kind of relations.
Nice post !!
lots of lots of good wishes for 200nd post....
very smooth and creative "going".
simply keep pouring yourself.
डबल सेंचुरी के लिए बधाई...
पुरुष अपने प्रत्येक रूप में स्त्री के प्रति कठोरता अपनाता आया है. इसे सनातन सत्य मान कर ही उसे पुरुष (कठोर) कहा गया. वह स्त्री के प्रति समानता का व्यवहार करना सीख जाए तो उसे मनुष्य कहा जा सकता है.
आपको 200वें आलेख की बधाई और शुभकामनाएँ.
कुछ अपनी सी लगती है कहानी.
विराट अहंकार लो हुआ पानी-पानी.
"बहुत दिनों से कोई सपना नहीं आया"
विराट को नींद ने आकर धमकाया.
"अब सूनी रहती है पाठशाला हमारी
सपने स्वच्छंद तुम्हें छंद की बीमारी".
jaan bachaa kee aashray diya ,ye bhaqwaan ka madhyaam hai
aur dil se dil jeete jaaten ,ye rishte mom se hote hain bahut sambhaal ke rakhna hota hai
शायद प्यार ही इतना था कि उसे समझ ही नहीं आया कि वह क्या कर रहा है। अक्सर प्यार में ऐसा हो जाता है।
२००वें आलेख की बधाई स्वीकार करें। शानदार लघुकथा। कम शब्दों में बहुत कुछ।
congrats
very thoughtful story and a question on which everyone needs to think
Congratulation on 200th post. Expressing love is equally important as love.
जब विराट इतना समझदार था की उसने सपना को आत्महत्या करने से रोक लिया और भाई बनकर उसे सहारा दिया तो वो अपनी कमजोरियां भी समझता ही होगा.गुस्सा आना तो एक स्वाभाविक प्रक्रिया है.अब देखिये आपको कितना गुस्सा आता है. क्या आपको इसका अहसास नहीं है.
२०० वी पोस्ट की बधाई
.
कुंवर कुसुमेश जी ,
मैं एक लिस्ट बना रही हूँ, जिसमें उन लोगों के नाम दर्ज कर रही हूँ, जो ये आरोप लगाते हैं की मुझे गुस्सा आता है । मैं अब ऐसे लोगों से दूरी ही बना कर रखूंगी , जिनको मैं गुस्सैल लगती हूँ। जब तक मैं स्वयं को सुधार नहीं लूंगी , आपके ब्लौग पर आपको कष्ट देने नहीं आउंगी।
आपको भी शुभकामनाएं।
.
.
मैं उन लोगों लोगों को बहुत पसंद करती हूँ। जो विषय पर टिप्पणी करते हैं , लेखिका पर व्यक्तिगत टिप्पणी नहीं।
आशा है विद्वान् पाठक गण इस बात का ध्यान रखेंगे।
२०० पोस्ट लिखने पर आप सभी के द्वारा मिली बधाई से मन अति हर्षित है।
आप सभी का आभार।
.
अरे, मैंने तो आपकी कहानी के सन्दर्भ में ही इसे जोड़ा.इतना ज़ियादा गुस्सा मत करिये मैडम.
.
कुछ लोगों को लगता है की वे बहुत शान्ति पसंद हैं , जबकि मैं गुस्सैल हूँ। फरक होता है हर व्यक्ति-व्यक्ति में । कोई ५ जून को पर्यावरण पर कविता लिखना prefer करता है तो कोई समाज में शांतिपूर्ण सत्याग्रहियों , महिलाओं , युवाओं , बुजुर्गों पर तानाशाहों द्वारा हो रहे अत्याचार पर आलेख लिखना ज़रूरी समझता है।
मेरा गुस्सा समाज में हो रही अनियमितताओं के खिलाफ है। इसी गुस्से का दूसरा नाम है "सीने में धधकती आग" । मेरी पुरजोर कोशिश रहेगी की ये आग बढती ही जाए । ये आग ठंडी हो , इससे पहले मेरी चिता जल जाए।
मेरे गुस्से को कोई विरला ही समझेगा । सब मुझे समझेंगे, इसकी अपेक्षा भी नहीं।
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२०० वीं पोस्ट की बधाई.मेरे विचार से कथा का सुखांत ही होगा.सपना ने सशक्त होकर पुन: आने का विचार करके ही घर को छोड़ा है,सदा के लिए नहीं. शाश्वत सत्य है कि उपलब्धता में मूल्य ज्ञान नहीं होता.मूल्य ज्ञान तो खोने पर ही होता है.भाई -बहन के स्नेह में अहम् नहीं होता.विराट को बहन के खोने पर दुःख अवश्य होगा.दुःख के क्षणों में मनुष्य अपनी अंतरात्मा को जरुर टटोलता है.विराट इन क्षणों में आत्म विश्लेषण कर अपनी कमी का एहसास जरुर करेगा और सपना को ढूंढ कर जरुर लायेगा.
.
@ सपना निगम जी -
आपकी टिप्पणी पढ़कर आपकी विचारशीलता को नमन।
जो पाठक कहानी पढ़कर , लेखक अथवा लेखिका के उद्गारों को भी समझ ले । वो प्रशंसा का पात्र है।
आपने बिलकुल सही समझा।
कहानी का अंत सुखान्त ही है ।
सपना ने सशक्त होकर पुन: आने का विचार करके ही घर को छोड़ा है,सदा के लिए नहीं।
शाश्वत सत्य है कि उपलब्धता में मूल्य ज्ञान नहीं होता।मूल्य ज्ञान तो खोने पर ही होता है.
भाई -बहन के स्नेह में अहम् नहीं होता
विराट को बहन के खोने पर दुःख अवश्य होगा।दुःख के क्षणों में मनुष्य अपनी अंतरात्मा को जरुर टटोलता है
विराट इन क्षणों में आत्म विश्लेषण कर अपनी कमी का एहसास जरुर करेगा
आपकी टिप्पणी ने कहानी को सार्थक कर दिया ,और सम्पूर्णता प्रदान कर दी।
आपकी analysis के लिए आपको standing ovation
.
दिव्या जी, आपके २०० वें पोस्ट पर बधाई !
मैं मनोज भारती जी से सहमत हूँ कि विराट 'परम सत्य' है तो सपना विभिन्न काल का 'सत्य' है, परम सत्य का काल की प्रकृति पर आधारित अस्थायी प्रतिबिम्ब अथवा सपना (और सत्य कटु होता है, 'सतयुग' के अतिरिक्त किसी भी अन्य काल में, कलियुग में सबसे अधिक कटु!)
JC जी ,
सहमत हूँ आपसे। मनोज भारती जी की टिप्पणी में भी पूरा दर्शन छुपा हुआ है।
200वें आलेख की बधाई स्वीकार करें .
200 वें पोस्ट की बधाई।
पूरी उधेड़बुन के साथ आपने २०० लेख पुरे किये बधाई स्वीकार कीजिये
दिव्या ,
बहुत-बहुत बधाई
और हमेशा खुश रहने के लिये !
बहुत सारी शुभकामनाएँ!
विराट का ऐसा व्यवहार हमें ही समझ नहीं आया तो उसको क्या आएगा ।
२०० वीं पोस्ट की बहुत बधाई ।
२००वीं चिट्ठी - बधाई - लिखती चलिये।
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