Wednesday, June 8, 2011

आज इस विषय पर चर्चा बहुत जरूरी समझी --एक विमर्श.

जब हम किसी से कोई व्यक्तिगत बात करना चाहते हैं , जो ज़रूरी भी है और हम पब्लिक में उसे लिखकर नहीं पूछ सकते , अथवा व्यक्त कर सकते तो हम मेल लिखकर संवाद करते हैं। आवश्यकता महसूस होने पर हम उस व्यक्ति के साथ फोन पर भी बात करते हैं

ऐसा तभी होता है , जब हम उस व्यक्ति पर अन्यों की तुलना में अधिक विश्वास करते हैं। तभी हम उसे मेल लिखते हैं अथवा उसके साथ फोन पर बात करते हैं।

लेकिन ऐसा क्यूँ होता है की द्वेष होने की अवस्था में व्यक्ति उसकी मेल को सार्वजनिक करने की धमकी देता है। अथवा ये कहकर धमकाता है की फलाँ का फोन नंबर मेरे पास है और उसने मुझसे फोन पर बात की

यदि कोई स्त्री किसी मित्र पर , अथवा आफिस के सहयोगी पर , अथवा आभासी दुनिया के लोगों पर विश्वास करके उससे दूरभाष पर संवाद करती है तो क्या ये गुनाह है ? मर्यादा विरुद्ध है ?

इतनी तेज़ी से विकास की और अग्रसर ज़माने में इस तरह का रूढ़िवादी रवैय्या खेदपूर्ण है यदि हम किसी पर विश्वास करते हैं तो मित्र को भी उसकी निजता का सम्मान करना चाहिए।

आपके अमूल्य विचारों का स्वागत है।

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59 comments:

Shah Nawaz said...

आपकी विचार से पूर्णत: सहमत हूँ... यह तो सरासर धोखा देना हुआ...


प्रेमरस

Irfanuddin said...

I agree with you Divya ji... "किसी भी संबंध में एक दूसरे की निजता का सम्मान करना ज़रूरी होता है"।

रविकर said...

विश्वासघाती, विश्वासघात ||
ये नहीं समझते हमारे दिल की बात ||
सचमुच, ऐसे लतखोरों को
लगनी चाहिए लात ||

रचना said...

सबसे पहले हमें व्यक्ति को पहचानने की अपनी क्षमता को बढ़ाना होगा . जिनको हम केवल ब्लॉग / आभासी दुनिया की वजह से जानते हैं उनसे अपनी व्यक्तिगत बात लिखित में मेल पर देने का मतलब होता है की हम "ना समझा हैं " या हमारे जीवन में रियल रिश्तो की कमी हैं .
जहाँ भी विपरीत लिंग की मित्रता होती हैं वहाँ संबंधो में खटास बहुत जल्दी आती हैं क्युकी मित्रता करने वाले एक दूसरे को महज विपरीत लिंग का समझते हैं , मित्र नहीं
किसी आभासी मित्र पर भरोसा करना , रियल मित्र पर भरोसा करने से ज्यादा खतरनाक हैं क्युकी रियल दुनिया मै आप कम से कम उस व्यक्ति से आमने सामने मत स्पष्ट करने को तो कह सकते हैं हैं .
ये सही हैं की हम बहुत आगे हैं और हमको खुल कर विमर्श करना चाहिये पर
अपनी बातो को केवल और केवल उन से बाटे जो " आप की मित्रता के लायक हैं "
भरोसा तब करे जब आप परख ले और परखने के लिये एक उम्र भी काफी नहीं होती
हां अगर बार बार हम नये मित्र बनाते हैं और उनसे धोखा खाते हैं तो हम को अपने आप को विश्लेषित करना चाहिये
कमी हमारे अन्दर हैं बाहर नहीं

निजता का सम्मान जरुरी हैं पर उस से भी ज्यादा जरुरी हैं की हम जिनसे ये उम्मीद कर रहे हैं वो निजता को समझने लायक भी हैं या नहीं

we need to learn to contain ourselfs in mist of strangers and not share our personal tidings with everyone

रचना said...

"ना समझा हैं " = "नासमझ हैं "

Unknown said...

विश्वास की हत्या अक्षम्य है

DR. ANWER JAMAL said...

विकास संसाधनों का हुआ है स्त्री पुरुष की मानसिकता का नहीं । इनमें आज भी वही हॉमोन्स बनते हैं जो कि हज़ारों साल पहले बनते थे। एहतियात बेहतर है ।
संबंध उससे बनाए जाएं जो सच्चा हो चाहे तीखा हो । जिसने इंद्रियों पर क़ाबू पा लिया हो चाहे कुछ कुछ ही सही । जो महिला मित्रों को प्रायः माँ और बहन मानता और कहता हो।
ऐसा जो हो वह बड़ा ब्लॉगर है और यदि महिला एक बड़ी ब्लॉगर है । तो वह अपने स्तर के ब्लॉगर से बात किया करे चाहे चैट पर और चाहे फ़ोन पर । बेउसूले रूप लोलुप मरभुक्खे ब्लॉगर्स से हर हाल में बचना चाहिए ।
ऐसा हमारा नज़रिया है ।

सुरेन्द्र सिंह " झंझट " said...

दिव्या जी ,

किसी भी व्यक्ति से कुछ अपनत्व या लगाव होने पर अथवा आवश्यकता होने पर कोई भी महिला , पुरुष के साथ या पुरुष महिला के साथ पत्राचार अथवा फोन पर बात करता है , यह बिलकुल सामान्य सी बात है | अब यदि कोई पुरुष ,मेल सार्वजनिक करने या फोन न० अपने पास होने की धमकी देता है तो पहले यह देखना है कि वह ऐसा क्यों करना चाहता है ? क्या वह अपने किसी स्वार्थ की पूर्ति के लिए ब्लेक मेल करना चाहता है या प्रतिष्ठा पर आघात करना चाहता है ? दोनों स्थितियों में यह विश्वासघात ही कहा जाएगा |

निकटता (पत्राचार या फोन द्वारा ) बढाने से पहले सामने वाले व्यक्ति को भलीभांति परख लेना एहतियातन जरूरी होता है | अब यदि वह व्यक्ति पूरी तरह इसी पर आमादा हो जाता है तो डरने की कोई जरूरत नहीं | मानसिक पीड़ा झेलने से बेहतर है कि उसका सामना करें |

गगन शर्मा, कुछ अलग सा said...

आज के समय में कौन, कहां, कब अपने मतलब के लिए अपना असली चेहरा दिखा देगा पता नहीं। मुश्किल यह है कि ऐसे चरित्रों की सरल ह्रदय-जन पहचान भी नहीं कर पाते। वैसे सारे लोग ऐसे नहीं होते कयी बार तो सामने वाले को और सहानुभूति दिलवाने की मंशा से भी बात आम हो जाती है। पर फिर भी सिर्फ रौ में ना बह कर परिक्षित साथी को ही हमराज बने तभी दुख कम हो पाता है।
अब और क्या कहूं मैं तो खुद भुग्त-भोगी हूं।

aarkay said...

आंख मूँद कर किसी पर विश्वास कर लेना तो नादानी ही होगी . विश्वास पात्र तो उसी व्यक्ति को बनाया जा सकता है जो time tested हो , अन्यथा किसी सुखद परिणाम की आशा व्यर्थ है !
महत्त्व पूर्ण प्रश्न उठाया है आपने, दिव्या जी !

रविकर said...

ये जिन्दगी इतनी आसान नहीं प्यारे |
गैर तो गैर अपने भी मेहरबान नहीं प्यारे ||

वे रिश्ते जब अपनी कीमत तय कर ले |
मोल चुका देने में, नुकसान नहीं प्यारे ||

रश्मि प्रभा... said...

samman vishwaas per hi sabkuch sahi hai, aajkal to apmanit kerne ke liye log baithe hote hain ...

vandana gupta said...

सुन्दर विचार्।

रचना दीक्षित said...

विश्वास फिर अंधविश्वास और उसके बाद विश्वास घात के आसार ज्यादा रहते हैं. वो जो कहते हैं की जबान से निकली बोली और बन्दुक से निकली गोली वापस नहीं जाती. सो किसी से कुछ भी बोलने के पहले चाहें वो जान पहचान वाला हो य अनजान दस बार सोच ही लेना बेहतर है.

Anonymous said...

sahi kaha aapne

Jyoti Mishra said...

I agree we should keep the confidentiality and trust which is bestowed upon us, but as always exceptions are always there !!

Bharat Bhushan said...

जो व्यक्ति विश्वास नही निभा सकता वह कमतर मानव होता है.

ashish said...

विश्वास तोड़ने से बुरा और कुछ नहीं हो सकता . निजता का सम्मान करना चहिये .

upendra shukla said...

दिव्या जी में आपकी बात से सहमत हू! पर् क्या करे कुछ लोगो के मन में ना जाने क्या चलता रहता है !मेरे ब्लॉग पर् भी आये -"samrat bundelkhand"

upendra shukla said...

दिव्या जी आप अपने ब्लॉग में follo by email वाला विकल्प भी जोर ले !

Dr (Miss) Sharad Singh said...

बेशक निजता का सम्मान किया जाना चाहिए...इसी में मित्रता की गरिमा है.

वाणी गीत said...

गोपनीयता का सम्मान होना ही चाहिए , दोनों ओर से ... !
गोपनीयता भंग हुई है तो भी मित्र पर अविश्वास करने से पहले चेक कर लेना चाहिए क्योंकि अंतरजाल में असली- नकली का भेद इतना आसान नहीं है !

shikha varshney said...

विश्वास तोड़ने से बड़ा अपराध शायद कुछ नहीं होता.पर हर तरह के लोग होते हैं.हमें उन्हें परखने का दायरा बढ़ाना चाहिए.

मदन शर्मा said...

विश्वास तोड़ने से बड़ा अपराध शायद कुछ नहीं होता.
विश्वास भी एक चीज है आखिर आज हम किसपे विश्वास करें ? हे...... भगवान् ! सदबुद्धि दो ऐसे लोगों को !!

Bikram said...

yes very true. but the thing is trust is something that can be broken anytime, people use it to take that next step we dont know when that tust becomes UNTRUST...

people come in all shapes and sizes yes we trust them but what they do towards us we cant change that .. so in this unjust world we all have to become very suspicious..
I can fully understand what you are saying , I sometimes feel that there is no place for the likes of me in this world I got born at the wrong time ... I seriously do want to learn the art of Lieing .. I am not aying this because i am a good human or anything like that its just that people who are expert liars and bad at heart are the ones who succeed and YES I want to succeed toooo ...

I hope that when people tell us they will make public or this and that then atleast we know how good a friend they are .. and hopefully next time we wont be in sucha situation ..


Bikram's

संतोष त्रिवेदी said...

इस तरह के लोग मित्रता की कोटि में नहीं आते....जो हुआ उसे भूलकर आगे के लिए सबक लिया जा सकता है !

अशोक सलूजा said...

निजता का सम्मान जरुरी हैं पर उस से भी ज्यादा जरुरी हैं की हम जिनसे ये उम्मीद कर रहे हैं वो निजता को समझने लायक भी हैं या नहीं ...
दिव्या , मैं 'रचना' जी की टिप्पणी का पूरा समर्थन करता हूँ |

शुभकामनाएँ!

Akshitaa (Pakhi) said...

यह तो गलत है...
___________________

'पाखी की दुनिया ' में आपका स्वागत है !!

Indranil Bhattacharjee ........."सैल" said...

आभासी दुनिया में सावधानी बरतना बहुत ज़रूरी है ! गलती करके पछताने से अच्छा है गलती न करो ...

S.M.Masoom said...

यदि कोई स्त्री किसी मित्र पर , अथवा आफिस के सहयोगी पर , अथवा आभासी दुनिया के लोगों पर विश्वास करके उससे दूरभाष पर संवाद करती है तो क्या ये गुनाह है ? मर्यादा विरुद्ध है ?
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दोनों संभव है. हो सकता है मर्यादा के विरुद्ध ना हो और विरुद्ध हो भी सकता है. निर्भर करता है संबंधों पे. हाँ भरोसा तोडना सही नहीं. ना काबिल ए माफी अपराध है

डॉ. नूतन डिमरी गैरोला- नीति said...

ham kisi kaa bharosa tod kar agar aisee mitrtaa ko hawa dete hai to vo bhi vishwasghaat hai..... aur ham kisi par itna bharosa karte hai...aur vah vyakti bhi apna bharosa deta hai...kintu samay ke badlte hee girgit kee tarah rang badle to vah vyakti kshmaa karne yogy nahi.......aur yah baat sabhi ko samjh bhi leni chahiye keee agar koi vyakti(A) kisi kaa naam(b) uchhale to uske pichhe us vyakti(A) kee kharaab niyat hai..yah ghosit hota hai...

संजय भास्‍कर said...

दिव्या जी में आपकी बात से सहमत हू!

मनोज कुमार said...

विश्वास के धरातल पर ही मानवता टिकी है। जिसमें यह नहीं वह मानव कहलाने का अधिकारी नहीं है।
स्नेह. शांति, सुख, सदा ही करते वहां निवास
निष्ठा जिस घर मां बने, पिता बने विश्वास।

डॉ टी एस दराल said...

गलत आदमी पर विश्वास करना या मित्र समझना --यानि धोखा खाना ।
इसीलिए समझ बूझ ज़रूरी है ।

निर्मला कपिला said...

बिलकुल विश्वास को बनाये रखना चाहिये जब तक कि उस आदमी की नीयत मे खोट न हो\ मतलव कि वो स्पष्त बात केवल उसकी राइ लेने के लिये अथवा विमर्श के लिये कर रहा हो। शुभका.

Suman said...

यह बिलकुल सही है ! मित्र को अपनी मित्र की निजताका
सम्मान करना चाहिए !

Dr Varsha Singh said...

मित्रता में निजता का सम्मान करना जरूरी है.

प्रवीण पाण्डेय said...

बातचीत में कोई आपत्ति नहीं होनी चाहिये।

चंद्रमौलेश्वर प्रसाद said...

यह याद रखना होगा कि आभासी दुनिया असली संसार से अलग है। तभी तो इतने अंतरजाल प्रेम प्रसंग आभासी से असली दुनिया में सामने आते हैं॥

मनोज भारती said...

किसी बात को समझने के लिए हर कोई पात्र नहीं होता। किसी से भी कोई बात निजी या विशिष्ट करने से पूर्व,यह जरूरी है कि हम सामने वाले व्यक्ति को परख लें...कि क्या हमारे द्वारा कही गई बात सामने वाला इंसान पचा पाएगा या नहीं। यदि किसी बात से किसी व्यक्ति के अहम् को ठेस पहुँचती है...वह बात तो बहुत ही समझदारी से कहने की आवश्यकता होती है। जब कभी किसी बात से किसी व्यक्ति का अहम् टूटता है या छवि खराब होती है...ऐसी बातें कहने से पूर्व तो निश्चित कर लेना बहुत जरूरी होता है कि सामने वाला व्यक्ति हमारी आलोचना को सही ढ़ग से लेने की पात्रता रखता है या नहीं। जो व्यक्ति बात-बात पर खिज़ जाता है या अपनी थोड़ी सी भी आलोचना सहन नहीं कर पाता...बेहतर है उसे इस तरह की बातें न ही कहें।

किसी भी संबंध को बनाए रखने के लिए आज लोग सर्वप्रथम अपना स्वार्थ देखते हैं...आभासी(ब्लॉग-जगत)दुनिया के अपने स्वार्थ हैं...वास्तविक जिंदगी के अपने स्वार्थ हैं। कुछ लोगों के स्वार्थ अल्प-कालीन होते हैं तो कुछ लोगों के दीर्घ कालीन। जिन लोगों के स्वार्थ दीर्घ-कालीन होते हैं,उन्हें परखने में समय लगता है जबकि अल्प-काल के स्वार्थों को पूरा करने वाले व्यक्ति का वास्तविक चेहरा जल्दी दिखाई दे जाता है।

महेन्‍द्र वर्मा said...

जिस पर हम विश्वास करते हैं, उसे हमारी निजता का सम्मान अवश्य करना चाहिए।
किसी पर विश्वास करने से पहले यह परखना जरूरी है कि वह विश्वास करने लायक है या नहीं।

ज्यादा मीठा बोलने वाले लोग प्रायः अविश्वसनीय होते हैं।

udaya veer singh said...

भई खता मुआफ एक आपके ब्लॉग से झंडा चुराया है , ....
रही बात संबंधों की तो उनमें निजता का होना ,
स्वीकार्यता का होना ,नितांत आवश्यक है ,
अन्यथा सम्बन्ध एक ढोंग है ,छद्म है /

भारतेन्दु said...

अगर ऐसा मित्र हो तो दुश्मन कि दरकार क्या है? लेकिन क्या मालूम कौन सा मित्र भेड कि खाल में छिपा भेडिया हो, बेहतर है सजग रहना । पर दुख तो यह है कि अगर मित्र से न कहें तो किससे कहें ???

JC said...

दिव्या जी, क्षमा करना यह मेरी प्रकृति है कि मैं पहले भूमिका बांधता हूँ... मैं फिल्म को इंटरवल के बाद देख उस पर चर्चा में भाग लेना अपनी मूर्खता समझता हूँ, इसलिए मूल अथवा जड़ में पहुंचना, यानि जानना कि इंटरवल से पहले क्या क्या हो चुका था आवश्यक मानता हूँ अपने विचार प्रगट करने से पहले, यानि भूत कि गहराई में जाना, जिसके लिए समय निकालना अत्यावश्यक है...

'हिन्दू मान्यतानुसार', नौ ग्रहों के सार से बने विभिन्न मानव रूपों की क्षमता समय के साथ उत्तरोत्तर घटती तो जाती ही है, किन्तु किसी एक क्षण में भी वो उस काल से सम्बंधित न्यूनतम और उच्चतम स्तर तक ही हो सकती है, और जिसे पुरुषोत्तम (हीरो) कहा जाता है...और २५ से ५० प्रतिशत कार्य क्षमता वाले द्वापर युग के हीरो सुदर्शन-चक्र धारी, बहुरूपिया, कृष्ण माने जाते हैं, ५० से ७५ प्रतिशत कार्य क्षमता वाले त्रेता युग में त्याग मूर्ती धनुर्धर राम, और अंत में ७५ से १०० प्रतिशत कार्य क्षमता वाले सतयुग में निराकार के साकार प्रतिरूप शिवलिंग द्वारा पूजित त्रिमूर्ति ब्रह्मा-विष्णु-महेश (प्रकाश और शक्ति के स्रोत, साकार सूर्य- सभी साकार पिंडों और पृथ्वी के केंद्र में भी केन्द्रित शक्ति- और साकार पृथ्वी जिसके मानव रूप और अन्य अनंत प्राणी सम्बन्धी है)... और वर्तमान, ज़ीरो से २५ प्रतिशत कार्य क्षमता वाला कलियुग माना गया है, यानि हम 'सागर मंथन' के पहले चरण का अनुभव कर रहे हैं, और वो भी घटते हुए, न कि बढ़ते हुए चरण का, जब चारों और विष व्याप्त था...और वो विष आज हम खाद्य पदार्थ, वायु, जल आदि सभी में, यहाँ तक कि मानव मस्तिष्क में भी, यानि उसकी सोच में भी देख सकते हैं...

किन्तु फिर भी जो शिव से जुड़ा हो वो ही सब बाधाओं को पार करने में ('माया जाल को तोड़ने' में) सक्षम हो सकता है, क्यूंकि वो ही केवल आरम्भ में हलाहल को अपने कंठ में रख पाने में सक्षम थे ! कृष्ण भी कहते हैं कि जो उन पर आत्म समर्पण करे (दुःख-सुख में पूर्ण आस्था अथवा विश्वास के साथ) तो वो उसे अपने सर्वोच्च रूप विष्णु तक ले जायेंगे (जैसे उन्होंने अर्जुन को दिव्य-चक्षु दे किया था, और माँ यशोदा को भी सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड अपने मुंह में दिखाया था)... किन्तु आज काल के प्रभाव से सोलह वर्षीय जवान तोते समान दोहराता है कि वो भगवान् को नहीं मानता :) "घोड़े को कोई पानी तक पहुंचा सकता है किन्तु सोलह व्यक्ति भी उसे जबरदस्ती पानी नहीं पिला सकते" :)

Unknown said...

दिव्या जी प्रश्न बेहद गंभीर है और इसे गंभीर होकर समझना भी जरूरी है, जब जाने पहचाने रिश्ते दरक जाते है और कही न कही स्वार्थी प्रतीत होने लगते है इस बेहद उपभोक्तावादी समाज में तो एक आभासी सम्बन्ध भले ही मित्रता का हो ठोंक बजाकर बनाना ही उचित होता है उथले तौर पे नहीं , और ऐसा सम्बन्ध जो फ़ोन और मेल तक पुख्ता हो गया हो, उसमे भय कहा से आया, सार्वजानिक होने का भय क्यों ? अगर भय है तो कही ना कही वो सम्बन्ध ही पारदर्शी नहीं jऔर वहीं निजता का सवाल भी उठता है . खुला हृदय, पारदर्शी अभिव्यक्ति कही भी हो उसे किसी का कोई भय नहीं होता. बेफिक्र होकर कहने दीजिये , बताने दीजिये समाज को मैं तो यही समझता हूँ .

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

अच्छी पोस्ट हो तो सहमत होना ही पड़ेगा!

डा० अमर कुमार said...

.जब अत्यधिक आत्मविश्वास में परस्पर विश्वास को अहम के बैट बल्ले से उछाला जाने लगे...
तो ऎसे झँझावातों के रुकने की प्रतीक्षा करना ही बुद्धिमानी है ।
यहाँ जनमत विश्वास पर टिकी अपेक्षाओं की अनापूर्ति से उत्पन्न स्थिति एवँ विश्वासघात को अलग करने में चूकता हुआ दिख रहा है ।
फिलहाल अन्य विज्ञ जनों के मतों की भी प्रतीक्षा है ।
अतिवादांस्तितिक्षेत नावमन्येत कंचन
न चेमं देहमाश्रित्य कुर्वीत केनचित्त ॥
( श्रीमदभागवत से )

भारतीय नागरिक - Indian Citizen said...

दुर्भाग्यशाली है वह जो धोखा देता है...

VIVEK VK JAIN said...

sahmat.....

दिवस said...

इस विषय पर थोडा गंभीर रूप से सोचना पड़ेगा...दरअसल मुझे मालुम नहीं ऐसे समय में क्या करना चाहिए...
वैसे इस प्रकार के संबंधों को मैं गलत नहीं मानता पर इसके लिए बहुत विश्वास की आवश्यकता है...आज के समय में जब सामने वाले बन्दे पर विश्वास करना कठिन है तो आभासी संसार में तो और भी कठिन होगा...
इस प्रकार के संबंधों में एहतियात तो बरतना ही होगा, और वो भी विशेषत: स्त्री-पुरुष संबंधों में...पुरुष-पुरुष अथवा स्त्री-स्त्री में अधिक समस्या नहीं होती...अब जैसे की दिल्ली में आन्दोलन में जाने से पहले कुछ ब्लोगर मित्रों, व कुछ फेसबुक मित्रों ने अपना फोन नंबर मुझे दिया था, हालांकि वे सब पुरुष ही थे...वहां जाने से पहले ही उनसे बात हो गयी थी...वहां जाकर उनसे मिलना भी हो गया...और अब तो ऐसे सम्बन्ध बन गए हैं जैसे की परम मित्र अथवा बंधू हों...एक ब्लोगर मित्र भाई संजय राणा जी से तो वहां जीवन की बहुत सी व्यक्तिगत बातें भी की, जैसे कि वे भी जीवन में विवाह नहीं करना चाहते व मैं भी आजीवन अविवाहित रहना चाहता हूँ...दिल्ली से आने के बाद उनसे रोज़ ही फोन पर बात होती है...वे मेरे अग्रज तुल्य हो चुके हैं...इसी प्रकार एक और ब्लोगर मित्र भाई तरुण भारतीय भी थे, जिनसे वहां मिलना तो न हो सका किन्तु फोन पर रोज़ बात होती है...हमारी बातचीत मुख्यत: इस आंदोलन के सम्बन्ध में अधिक होती है किन्तु व्यक्तिगत विषयों पर भी हम बात करते हैं...एक फेसबुक मित्र भाई अंकित भी हैं...
कहने का अर्थ है कि यहाँ विश्वास का अस्तित्व है, इसीलिए ये मधुर सम्बन्ध बने...
इसी प्रकार आपने मुझे जीवन भर भाई बहन का सम्बन्ध निभाने का वचन दिया था...आपसे यदि जीवन में कभी बात न भी हो अथवा कभी आपसे मिलने का सौभाग्य नहीं भी मिले तब भी आपके मेरे संबंधों में किसी प्रकार की कोई कमी नहीं आएगी, आप सदैव मेरे लिए सम्माननीय मेरी बड़ी बहन रहेनी...हाँ आपसे मिलने की इच्छा अवश्य है किन्तु यह प्रेम व सम्बन्ध मिलने या फोन पर बात करने का मोहताज नहीं है...
ऐसे संबंधों में गलत कुछ नहीं है केवल सावधानी की आवश्यकता है...ऐसे ही हर किसी पर विश्वास नहीं किया जा सकता...किन्तु एक बार जब विश्वास हो जाए तो उसे तोडना भी कठिन है...
अत; आवश्यकता इस बात की है कि किसी से घनिष्ठ सम्बन्ध बनाने से पहले पूरी जांच कर लें...यदि कोई आपका विश्वास तोड़े व इसमें सामने वाले का कोई गलत स्वार्थ है तो उससे किनारा कर लेना ही उचित है...
दीदी मेरे मन की तो यही बात है...हालांकि ऐसा कोई अनुभव नहीं रहा लेकिन आस पास की स्थिति व अपने दिमाग की उपज से मैंने यह विचार रखा...
यदि आपके कुछ कटु अनुभव हों तो आपको थोड़ी सावधानी बरतनी होगी...

Amrit said...

Right advice.

Urmi said...

आपने बिल्कुल सही फ़रमाया है! मैं आपकी बातों से पूरी तरह सहमत हूँ! सुन्दर विचार!

ZEAL said...

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सभी सम्मानित पाठकों की राय जानकार बहुत प्रसन्नता हुई है। मैं यही चाहूंगी की कोई किसी का विश्वास न तोड़े , किसी भी परिस्थिति में।

जब हम किसी से संवाद करते हैं पत्राचार द्वारा अथवा फोन से , तो उस व्यक्ति पर पूर्ण विश्वास करके ही करते हैं । अतः कैसी भी परिस्थिति क्यूँ न बन जाए , इस विश्वास का मान रखना ही चाहिए।

मैंने आज तक जिन लोगों पर विशवास किया है , वे सभी अति आदरणीय , सम्मानित एवं विश्वसनीय लोग हैं और उन्होंने सदैव मेरे विश्वास का मान भी रखा है।

मैं ईश्वर से यही प्रार्थना करुँगी की वे हम सभी को इतनी शक्ति दें की हम विपरीत परिस्थियाँ उत्पन्न होने पर भी एक दूसरे के विश्वास का मान सकें और कभी किसी के साथ विश्वासघात न करें।

इतनी शक्ति हमें देना दाता ,
मन का विश्वास कमज़ोर हो ना।
भूल कर भी कोई भूल हो ना।

आप सभी का आभार।

.

सदा said...

इतनी शक्ति हमें देना दाता ,
मन का विश्वास कमज़ोर हो ना।
भूल कर भी कोई भूल हो ना।

यह पंक्तियां मुझे भी बेहद पसन्‍द हैं ... एक बार फिर सुन्‍दर एवं सार्थक लेखन ..शुभकामनाओं के साथ आभार ।

अजित गुप्ता का कोना said...

बात पूरी तरह से समझ नहीं आयी।

G Vishwanath said...

जैसा अजीत गुप्ताजी ने कहा, बात मुझे भी समझ में नहीं आई।
अवश्य कोई बैकग्रौन्ड है जिसका हमें पता नहीं।
क्या आपने विश्वास करके किसी से कुछ कह दिया था या लिख दिया था जो आपको नहीं करना चाहिए था?
क्या वह व्यक्ति उस बात का नाजायज फ़ायदा उठा रहा है?
आशा करता हूँ कि ऐसा कुछ नहीं हुआ ।
हाँ वैसे, breach of trust and confidence निन्दनीय अवश्य है लेकिन इस मामले में आप कुछ कर भी नहीं सकेंगी।
बस भविष्य में खयाल रखिएगा।
शुभकामनाएं
जी विश्वनाथ

प्रतुल वशिष्ठ said...

यदि व्यक्तिगत बातों से सर्व कल्याण सधता हो तो बहुत सोच-विचार कर अभिधा भाषा के साथ लाक्षणिक शैली का प्रयोग करके सार्जनिक कर देनी चाहिए.
यदि व्यक्तिगत बातों से मित्रों या आत्मीयों के बीच का विश्वास खंडित होता हो और किसी एक का क्षुद्र स्वार्थ ही सधता हो तो कभी भी तीसरे से नहीं कहना चाहिए.
संकुचित सोच के और सीमित दायरे के लोग ही स्त्री-पुरुष के समय-असमय बात करने को अनैतिक करार देते हैं..... कुछ हद तक मैं भी इसी परिपाटी का पोषक रहा हूँ.

Atul Shrivastava said...

आपकी बात सही है.... पर अक्‍सर लोग किसी दूसरे माहौल के दौरान किसी दूसरे परिप्रेक्ष्‍य में की गई बातों का गलत फायदा उठाने की कोशिश करते हैं।
ऐसे लोगों का क्‍या कहिए.... उनकी फितरत ही ऐसी होती होगी....

बस्तर की अभिव्यक्ति जैसे कोई झरना said...

खरे चौबीस कैरेट के सम्बन्ध यूं ही नहीं मिल जाते ...खोजबीन में कुछ तो ठोकरें लगना स्वाभाविक है न ! कुछ धोखों-विश्वासघातों के मूल्य पर यदि कोई एक भी विश्वास पात्र मिल जाय तो धोखे को ही उसका मूल्य समझ लेना.