नारियों के उद्धार और उत्थान के लिए सदियों से प्रयास जारी हैं। २०११ में भी बेटी बचाओ जैसे सद्प्रयास किये जा रहे हैं। लेकिन क्या वजह है की नारियों की सामाजिक दशा में परिवर्तन की गति बहुत धीमी है।
उसका कारण है की वे स्वाभिमान के साथ जीना ही नहीं चाहती। वे पुरुषों द्वारा रौंदे जाने में ही अपना स्त्री -सुख समझती हैं। ऐसी स्त्रियों के कारण ही स्वाभिमानी स्त्रियाँ भी गेहूं के साथ घुन की तरह पिसती हैं।
यदि नारी शक्ति एक हो जाए तो कहर बरपा सकती है। अपने साथ-साथ दूसरी स्त्री के सम्मान की भी रक्षा कर सकती है। उसके अधिकारों के लिए लड़ सकती है, उसके अधिकार दिला सकती है और उसके स्वाभिमान को वापस ला सकती है।
लेकिन नहीं , ऐसी स्थिति में अक्सर देखा गया है की , कमज़ोर स्त्रियाँ , अपनी बहनों का साथ देने के बजाये दुशासनों का साथ देना ज्यादा पसंद करती हैं। वे सोचती हैं , उनका अपमान तो हुआ नहीं है फिर वे क्यूँ सरदर्द मोल लें। वे उस घृणित इंसान का विरोध अथवा बहिष्कार करना तो दूर , उसके पास अपनी स्वेच्छा से जाती हैं, यह कहते हुए- " उसे भूलो भी , मैं हूँ न!मुझे रौंदो, मुझे कुचलो" ।
आँख के सामने अश्लीलता को घटते हुए देखेंगी , फिर भी वे उस पुरुष का बहिष्कार करने की हिम्मत नहीं जुटा पातीं। वे उससे सम्बन्ध तोड़कर स्वयं को उस स्त्रियोचित सुख से वंचित नहीं करना चाहतीं। वे एक लम्बे अरसे तक उससे जुडी रहती हैं , जब तक की स्वयं उनका नंबर नहीं आ जाता। वे पुरुषों की चिकनी-चुपड़ी फेंकी गयी रोटियों पर अपना बसर करती रहती हैं। अपनी बहनों का अपमान करने वालों को "आदरणीय" कहकर अपने घर निमंत्रित करती हैं।
शर्मनाक है स्त्रियों का ऐसा चरित्र।
कुछ पुरुष जो स्त्रियों को नीचा दिखाते हैं , गाली -गलौज करते हैं , उनका भी बहिष्कार नहीं कर पातीं कुछ स्त्रियाँ। उनसे दूर रहने का लोभ -संवरण नहीं कर पातीं। जुडी रहती हैं उनसे चिरकाल तक । वर्तमान में घट रही घटनाओं से सबक नहीं लेतीं, अपितु ऐसे पुरुषों का बहिष्कार न करके वे इनके कुत्सित मंतव्यों को बल प्रदान करती हैं और भविष्य में अन्य बहुत सी महिलाओं के अपमान का कारण बनती हैं।
पुरुष भी चतुर होते हैं । ऐसे कमज़ोर स्त्रियों को पहचान कर उससे सम्बन्ध साधे रखते हैं ताकि वे महिलाएं आड़े वक़्त में उनके काम आयें । उन्हें ज्यादा कुछ करना भी नहीं पड़ता -- बस दो -चार मक्खन -मलाई वाली बातें और वे आ जाती हैं इनके झांसे में।
जगाओ स्वाभिमान और बचाओ सम्मान अपनी बहनों का भी ।
उसका कारण है की वे स्वाभिमान के साथ जीना ही नहीं चाहती। वे पुरुषों द्वारा रौंदे जाने में ही अपना स्त्री -सुख समझती हैं। ऐसी स्त्रियों के कारण ही स्वाभिमानी स्त्रियाँ भी गेहूं के साथ घुन की तरह पिसती हैं।
यदि नारी शक्ति एक हो जाए तो कहर बरपा सकती है। अपने साथ-साथ दूसरी स्त्री के सम्मान की भी रक्षा कर सकती है। उसके अधिकारों के लिए लड़ सकती है, उसके अधिकार दिला सकती है और उसके स्वाभिमान को वापस ला सकती है।
लेकिन नहीं , ऐसी स्थिति में अक्सर देखा गया है की , कमज़ोर स्त्रियाँ , अपनी बहनों का साथ देने के बजाये दुशासनों का साथ देना ज्यादा पसंद करती हैं। वे सोचती हैं , उनका अपमान तो हुआ नहीं है फिर वे क्यूँ सरदर्द मोल लें। वे उस घृणित इंसान का विरोध अथवा बहिष्कार करना तो दूर , उसके पास अपनी स्वेच्छा से जाती हैं, यह कहते हुए- " उसे भूलो भी , मैं हूँ न!मुझे रौंदो, मुझे कुचलो" ।
आँख के सामने अश्लीलता को घटते हुए देखेंगी , फिर भी वे उस पुरुष का बहिष्कार करने की हिम्मत नहीं जुटा पातीं। वे उससे सम्बन्ध तोड़कर स्वयं को उस स्त्रियोचित सुख से वंचित नहीं करना चाहतीं। वे एक लम्बे अरसे तक उससे जुडी रहती हैं , जब तक की स्वयं उनका नंबर नहीं आ जाता। वे पुरुषों की चिकनी-चुपड़ी फेंकी गयी रोटियों पर अपना बसर करती रहती हैं। अपनी बहनों का अपमान करने वालों को "आदरणीय" कहकर अपने घर निमंत्रित करती हैं।
शर्मनाक है स्त्रियों का ऐसा चरित्र।
कुछ पुरुष जो स्त्रियों को नीचा दिखाते हैं , गाली -गलौज करते हैं , उनका भी बहिष्कार नहीं कर पातीं कुछ स्त्रियाँ। उनसे दूर रहने का लोभ -संवरण नहीं कर पातीं। जुडी रहती हैं उनसे चिरकाल तक । वर्तमान में घट रही घटनाओं से सबक नहीं लेतीं, अपितु ऐसे पुरुषों का बहिष्कार न करके वे इनके कुत्सित मंतव्यों को बल प्रदान करती हैं और भविष्य में अन्य बहुत सी महिलाओं के अपमान का कारण बनती हैं।
पुरुष भी चतुर होते हैं । ऐसे कमज़ोर स्त्रियों को पहचान कर उससे सम्बन्ध साधे रखते हैं ताकि वे महिलाएं आड़े वक़्त में उनके काम आयें । उन्हें ज्यादा कुछ करना भी नहीं पड़ता -- बस दो -चार मक्खन -मलाई वाली बातें और वे आ जाती हैं इनके झांसे में।
जगाओ स्वाभिमान और बचाओ सम्मान अपनी बहनों का भी ।
- बहिष्कार करो दहेज़ लोभियों का
- कन्या -भ्रूण हत्या करने वालों का
- राजीव मेनन जैसे बौसों का
- स्त्रियों को गाली देने वालों का
- अश्लील आलेख लिखने वालों का
स्त्रियों के लिए लड़ने वाली स्त्रियों की संख्या पहले ही काफी कम है , यदि वे भी अपने कर्तव्यों से विमुख हो जायेंगी तो कैसे सुधरेगी स्त्रियों की दशा इस समाज में।
गर कर सको तुम पैदा , स्वाभिमान खुद में कर लो।
हो बहन कहीं अपमानित, सीने में आग भर लो।
लौटा दो मान उसका , तुम स्वार्थ अपना छोडो।
तुम नारी हो , तुम शक्ति हो , कर्तव्य से मुख न मोड़ो।
Zeal
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आभार।