Saturday, November 26, 2011

तुम कान्हा हो मैं मीरा हूँ, हर युग में तुमको अपना मानूँ...

द्वापर के हो या त्रेता के,तुम किस युग के हो ,मैं क्या जानूं
हर युग में करूँ मैं प्रेम तुम्हें , बस तुमको ही अपना मानूँ

सुन कान्हा सुन , तुम मेरे हो ,
तुम मेरे हो , तुम मेरे हो
मैं गोपी हूँ , मैं मीरा हूँ, मैं राधा भी और मुरली भी
मन मंदिर में हो तुम ही बसे ,हो कान्हा तुम और मोहन भी

हैं रास तुम्हारे देख सभी, स्त्री मन सारे खिल जाते
और ज्ञान की अद्भुत गंगा में गांडीव हज़ारों उठ जाते
हो चीर हरण गर नारी का, संरक्षक बन तुम आ जाते
दुष्टों का मर्दन करने को , हैं चक्र सुदर्शन चल जाते.

कर्म है करना सीखा तुमसे, हर पग पे है लड़ना सीखा तुमसे,
कर्तव्य का बोध करा हमको , सन्मार्ग का बोध करा डाला,
हे गोविंदा , हे गोपाला , हे कृष्ण-सखा, हे नंदलाला,
तुम अद्भुत हो तुम श्रेष्ठ बहुत , पहनो मेरी तुम वरमाला.

सतयुग के हो या द्वापर के, तुम किस युग के हो, मैं क्या जानूँ
तुम कान्हा हो मैं मीरा हूँ, बस तुमको ही अपना मानूँ

Zeal

37 comments:

कुमार संतोष said...

सुंदर अतिसुंदर गीत सुबह सुबह पढ़ कर मन भी पावन हो गया ...!

विशाल said...

बहुत ही खूब.
आपके व्यक्तित्व के एक नए रूप को दिखलाता यह भक्ति गीत बहुत ही अच्छा लगा.

kshama said...

Kya gazab kee badhiya rachana hai!

Deepak Shukla said...

Wah ji...

Subah savere kavita sundar..
Sukhad, saras si laye aap..
Man main KRISHN samaye sabke..
Door hue man ke santaap..

Meera, Radha, gopi ke sang.
Jisne Krishn se pyaar kiya..
Jivan jatil, visham ho kitna..
Bhav saagar se paar kiya..

Meera sa jo pyaar dikhaye.
Wo hi KRISHN ko paayenge.
Kalyug main bhi KRISHN swyam hi..
Man ke ghar main aayenge..

Bahut sundar kavita...man ko satvik aanand ki anubhuti hui..

Dhanyawad..subah savere KRISHN ka brahm naam sunane ke liye..

Deepak Shukla..

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

शुभकामनाएँ!
सुन्दर अभिव्यक्ति!

प्रवीण पाण्डेय said...

बहुत अच्छा, आप कविता नियमित लिखा करें।

सूबेदार said...

दिब्य जी बहुत सुन्दर आपको तो बराबर पढता हु लेकिन अपने भगवन से जुडी हुई कबिता लिखकर मन को मुग्ध कार दिया.
बहुत-बहुत धन्यवाद.

Unknown said...

sunder rachna.........

केवल राम said...

कर्म है करना सीखा तुमसे, हर पग पे है लड़ना सीखा तुमसे,कर्तव्य का बोध करा हमको , सन्मार्ग का बोध करा डाला,हे गोविंदा , हे गोपाला , हे कृष्ण-सखा, हे नंदलाला,तुम अद्भुत हो तुम श्रेष्ठ बहुत , पहनो मेरी तुम वरमाला.

भक्ति भाव और पेम का अनमोल मिश्रण है इस रचना में .....आपका आभार ...!

DUSK-DRIZZLE said...

BAHUT SUNDAR

समयचक्र said...

bahut badhiya bhav abhivyakti....abhaar

देवेंद्र said...

सतयुग के हो या द्वापर के, तुम किस युग के हो, मैं क्या जानूँ
तुम कान्हा हो मैं मीरा हूँ, बस तुमको ही अपना मानूँ।
सुंदर पंक्तियाँ।

सदा said...

वाह ... बहुत बढि़या .. ।

aarkay said...

सोलह कला परिपूर्ण भगवान श्री कृष्ण की भक्ति से ओत-प्रोत आपकी यह रचना मन को छू गई.

Kailash Sharma said...

भक्ति भाव से ओतप्रोत अप्रतिम प्रस्तुति...

रविकर said...

बहुत खूब ||

अद्भुत ||

महेन्‍द्र वर्मा said...

सतयुग के हो या द्वापर के, तुम किस युग के हो, मैं क्या जानूं,
तुम कान्हा हो मैं मीरा हूं, बस तुमको ही अपना मानूं।

एक पवित्र हृदय में ही ऐसी भक्ति-भावना का वास हो सकता है।
बार-बार पढ़ने और गाने योग्य सुंदर गीत।

Bharat Bhushan said...

भक्तिभाव से आगे की कविता है यह. बहुत ही सुंदर.

प्रतिभा सक्सेना said...

बहुत मगन-मन से रची हैं आपने ये पंक्तियाँ - साधु !

अरुण कुमार निगम (mitanigoth2.blogspot.com) said...

निर्मल-पावन भाव,शब्दों का कलकल प्रवाहित निर्झर,
वाह!!!! कान्हा का अभिषेक हो गया.
प्रवीण जी ने ठीक ही कहा है,नियमित कविता लिखा करें

Atul Shrivastava said...

सुंदर रचना।

धीरेन्द्र सिंह भदौरिया said...

बहुत सुंदर भक्ती गीत,
आपकी रचनाओ में दिन प्रतिदिन निखार आ रहा है....
लिखने की कोशिश नियमित जारी रखें...
मेरे नए पोस्ट पर इंतज़ार है....

Vandana Ramasingh said...

मनभावन रचना

Rajendra Swarnkar : राजेन्द्र स्वर्णकार said...






दिव्या जी
सादर जय श्री कृष्ण !

आप गीतों सहित छंदबद्ध काव्य-सृजन की ओर उन्मुख हो रही हैं … यह बहुत सुखद है …
छंद-सृजन का सुख रचनाकार ही अनुभव करता है …
बहुत बहुत शुभकामनाएं हैं ।

प्रस्तुत गीत अच्छा लगा -

मैं गोपी हूं , मैं मीरा हूं , मैं राधा भी , मैं मुरली भी
अति सुंदर !

बधाई और मंगलकामनाओं सहित…
- राजेन्द्र स्वर्णकार

vandana gupta said...

बहुत सुन्दर भावो को संजोया है।

Anonymous said...

bahut khoob

चंद्रमौलेश्वर प्रसाद said...

मीरा और राधा के प्रेंम में अंतर है !

ZEAL said...

@ चन्द्र मौलेश्वर जी ,
प्रेम तो प्रेम ही है. ..राधा हो या मीरा , या फिर कोई गोपिका अथवा कृष्ण से प्रेम करने वाली आज की दिव्या.....कहीं कोई अंतर नहीं है...हाँ देखने वाले की दृष्टि पृथक-पृथक हो सकती है ...

Maheshwari kaneri said...

बहुत सुन्दर ,,्सच कहा प्रेम तो प्रेम होता है...

AK said...

निस्संदेह कृष्ण का चरित्र अत्यंत ही विविध है . सबरंग सर्व भाव . बाल गोपाल. बाल बल गोपाल . बाल सखा . बाल योद्धा . चंचल किशोर . अद्भुत अलौकिक प्रेम भाव . रन छोड़ की कूटनीति . दिव्य चिन्तक और विचारक. क्या आश्चर्य है कि कलियुग में मीरा को श्री कृष्ण ही भाए. राधा तो एक प्रतीक मात्र है - वह तो एक शाश्वत परंपरा है , प्रेम में विलीन हो सब पा लेने की.

दरया प्रेम का , उलटी व की धार ,
जो उतरा सो डूब गया , जो डूबा सो पार

बस इस रंग में डूबने की जरूरत है , फिर तर्क वितर्क , प्रश्न उत्तर , शक शुबहा , शंका आशंका कुछ भी शेष नहीं रहता . कान्हा नाम सच्चा

Mansoor ali Hashmi said...

'प्रेम तो प्रेम ही है' आपकी बात से सहमत.

पद्य में अभिव्यक्ति निर्मल और पावन ही होती है,इसी विधा को जारी रख कर प्रेम निर्झर ही प्रवाहित करती रहे.
जैसा कि भाई राजेन्द्र स्वर्णकार जी ने कहा, काव्य सर्जन सुखद ही होता है.
http://aatm-manthan.com

P.N. Subramanian said...

बहुत ही सुन्दर.

Always Unlucky said...

I LOVE THIS POST!!!

From everything is canvas

ZEAL said...

.

@ Ak Sir,

There is no man on earth like King Krishna. Any girl may fall in love with him. No matter what the 'Yuga' is or the 'Era' is.

.

S.M.HABIB (Sanjay Mishra 'Habib') said...

बहुत सुन्दर भावाभिव्यक्ति....
सादर बधाई....

Yashwant R. B. Mathur said...

बहुत ही बढ़िया।


सादर

Rakesh Kumar said...

बहुत ही भाव और भक्तिपूर्ण प्रस्तुति.
पढकर भाव विभोर हो गया है मन.
बहुत बहुत आभार.