पूड़ी, पुलाव, दाल मखनी, मटर पनीर , खीर और सिवयीं खाएं, निरीह चौपायों की लाश न खाएं। त्योहारों में खुशियों भरी किलकारियां गूंजनी चाहिए, भय मिश्रित हलाल होते पशुओं की चीखें नहीं। खेलना ही है तो रंगों की होली खेलिए। खून की होली क्यूँ ? धर्म के नाम पर निरीह पशुओं की बलि क्यूँ ? बदलते वक़्त के साथ अपनी सोच बदलिए। जबान के चटोरेपन के कारण देश और विश्व भर में कितनी कुर्बानियां दी जायेंगी आज ?
त्यौहार की शुभकामनाएं।
Zeal
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यह कोई बहस का मुद्दा नहीं है। यदि आप मेरी बात समझेंगे तो ज़रूर खुद को बदलेंगे, अन्यथा जिरह करेंगे अनायास ही । अतः कमेन्ट ऑप्शन बंद है।
आभार।