ब्लॉग भ्रमण के दौरान कुछ नन्हे-मुन्ने बालकों को चिंतित देखा! वे कह रहे थे की वे व्यर्थ ही हिंदी ब्लॉगिंग में सेवारत हैं! न तो उन्हें कोई पढता है, न ही टिपण्णी करता है! फिर क्यूँ इस अवयस्क पाठकों के लिए अपना कीमती वक़्त जाया किया जाया ?
हे श्रेष्ठ नर-नारियों एवं मनु की संतानों , श्री कृष्ण ने कहा है, कर्म किये जाओ, फल की इच्छा मत रखो! अतः ब्लौग-लेखन अनवरत जारी रखो !
ब्लौग लेखन निठल्लों का काम नहीं है ! मुझे तो चिराग लेकर ढूँढने पर भी कोई निठल्ला न मिला! सभी लगे हुए है अपने-अपने कर्मों में यथासंभव ! यदि कोई केवल चिकित्सा करे अथवा अभियांत्रिकी अथवा वकालत अथवा टीचिंग अथवा बाल-बच्चे देखे तो वह सार्थक कहा जाएगा ? लेकिन यदि इन्हीं कामों के साथ-साथ कोई अपने विचारों द्वारा समाज को एक सकारात्मक योगदान और अपने अनुभवों द्वारा एक समाधान दे रहा है तो वह निट्ठल्ला कहलायेगा ?
ब्लॉगर्स अपने कर्तव्यों को निष्ठां से निभाने के बाद , अपना कीमती वक़्त लेखन में लगा रहे हैं , अपने खून पसीने से अपने विचारों को लोगों तक पहुंचा रहे हैं और आप हैं की ब्लॉगिंग को निठल्लों का काम कह रहे हैं ?
पशु से भिन्न है इंसान क्यूंकि वह चिंतन करता है ! ये चिंतन यदि मस्तिष्क में ही रह जाए तो व्यर्थ है अतः लेखन के माध्यम से इसे बहुत से लोगों तक पहुंचना ही चाहिए !
हर व्यक्ति अपनी रूचि और ज्ञान के अनुसार लिख रहा है! पाठक भी अपनी रूचि के अनुसार विषय ढूंढ लेते हैं ! यही विविधता ही तो ब्लॉगिंग की रोचकता बनाए रखती है ! लोग एक-क्लिक में ही देश विदेश , राजनीति और कुटिल नीति से रूबरू हो जाते हैं ! अन्य लोगों के विचार पढ़कर हमारे विचारों को भी आयाम मिलता है !
अतः ब्लॉगिंग निठल्लों का काम है ऐसा लिखकर ब्लॉगर भाई-बहनों को अपमानित न करें !
जिन्हें लगता है की ब्लॉगिंग व्यर्थ है वे शायद अपने लिखे आलेखों से ही बोर हो गए होंगे! जब स्वयं का लिखा व्यर्थ लगने लगे तो निसंदेह ब्लॉगिंग बंद कर देनी चाहिए , लेकिन साथी ब्लौगर जो एक ऊर्जा के साथ ब्लॉगिंग कर रहे हैं उन्हें निठल्ला कहकर उनका अपमान न करें ! अपितु उनके योगदान को सराहें!
हिंदी ब्लॉगिंग तो हमारे देश में एक ज़ोरदार क्रान्ति की तरह है , जिसके माध्यम से आज सरकार गिराई जा सकती है और नेताओं की नाक में नकेल डाली जा सकती है! इस ब्लॉगिंग के माध्यम से , फेसबुक आदि से , ट्विटर से सिब्बल महोदय तक घबरा गए हैं तो आप खुद ही समझिये इसकी महिमा !
मेरे विचार से ब्लॉगिंग बुद्धिजीवियों का काम है! इंसानों का काम है जो चिंतन करता है! पशु एवं निठल्ले इस महती कार्य को अंजाम नहीं दे सकते!
अपने विचारों को एक बड़े समुदाय को प्रेषित करने में बहुत उपयोगी सिद्ध हुआ हैं ब्लॉगिंग का माध्यम ! अब हम अखबारों और पत्र-पत्रिकाओं के मोहताज नहीं हैं अपने विचारों को संप्रेषित करने के लिए!
बड़े-बड़े विमर्श के लिए यह एक सस्ता एवं सुलभ माध्यम बन गया है! इसके फायदे अनेक हैं ! और फिर यदि फायदों को परे रख कर निस्वार्थ ब्लॉगिंग की जाए तो हम कर्मशील भी रहेंगे और फल न लगने की अवस्था में निराश भी नहीं होंगे !
अतः निराश ब्लॉगर्स को हताश न होने की सलाह दी जाती है तथा ऊर्जावान ब्लॉगर्स के लिए "Hats off "
जय ब्लॉगर्स !
जय हिंदी-ब्लॉगिंग !
48 comments:
ब्लोगिं हमें अपने बिचार प्रकट करने में सहजता होती है हम अपने विचारो के द्वारा समाज को सहयोग कर सकते है .यह एक अच्छी परंपरा है और लोकतंत्र में इसकी आवश्यकता भी है.
सही कहा आपने झील!..ब्लोगिंग निरर्थक या निठल्लो का नहीं है....दिमागी सोच और मनन-चिंतन में रूचि रखने वालों का काम है!..अपना कर्म करते रहना ही मनुष्य का धर्म है!
वाह
क्या बात है...
अब कुछ लोगों को ब्लॉगिंग निठल्लों का काम भी लग रही है| तो ज़रा पूछिए इन नन्हे-मुन्नों से की क्यों करते हैं ब्लॉगिंग? यदि निठल्ले हैं तो क्यों हैं निठल्ले?
सबसे पहले तो अपने एक शीर्षक मात्र से समस्त हिंदी ब्लॉगरों का अपमान करने वाले इन नन्हे-मुन्नों का बहिष्कार तो सभी स्वाभिमानी हिंदी ब्लॉगरों को कर देना चाहिए| जो नहीं करता, उसे अपना अपमान करवाने में ही मज़ा आ रहा है, यही समझा जाए| होते हैं कुछ जिन्हें अपने बलात्कार में भी आनंद का अनुभव होता है|
अब ज़रा बात करते हैं इन नन्हे-मुन्नों की| क्या ये सब सावन के अंधे हैं? खुद निठल्ले तो क्या पूरी ज़मात को ही निठल्ला घोषित कर देंगे? हम तो निठल्ले नहीं हैं| यदि ये निठल्ले हैं तो धरती पर बोझ हैं|
ब्लोगिंग के द्वारा अपने विचारों से देश व समाज को जागृत करने वाला निठल्ला कैसे हुआ? निठल्ला तो वही है जो अपने काम को भी निठल्लों का काम बता रहा है| निठल्ला तो वही है जो टाइम पास के लिए ब्लॉगिंग कर रहा है| ये नन्हे-मुन्ने जो भी हैं, शायद वही कर रहे हैं|
यदि हिंदी ब्लॉगरों में ज़रा सा भी स्वाभिमान है तो आज से ही इन नन्हे-मुन्नों का बहिष्कार कर दें|
"बेहद सार्थक व सटीक लेखन"....
जैसी टिप्पणियाँ यहाँ भी आने वाली हैं और वहां भी|
फुर्सत के दो क्षण मिले, लो मन को बहलाय |
घूमें चर्चा मंच पर, रविकर रहा बुलाय ||
शुक्रवारीय चर्चा-मंच
charchamanch.blogspot.com
aadeneeya divya jee..aapki baat se main purntay sahmat hoon..blogging ke jariye aaj nahi to kal rachna pathkon tak pahunch he jaati hai...patrikaon me chapi rachnayein padh paana har pathak ke liye sambhav nahi hai ..ye bhee sach hai kee koi padhta nahi hai ye sochkar ham likhna to band nahi kar denge ..lekhan swabhavik prabitti hai..gulab chahe jangal me khila ho ya sunder vatika me..log use dekhe naa dekhein uski sundarta me koi fark nahi padta ..har rachna ka apna saundarya hai.use pathak chahe mile naa milein..har kaam wakai niskam hona chahiye..blooger to apna khoon paseen sirf isliye bahate hai taki nithalle apna nithalapan chodkar kuch padhe hee..kuch naya jaane he..ulte nitthle hee hame nitthala batane lage...bahut mushkil hai dost parcham e sohrat ka fahrana..karwan pahle tha ya ke ant me mila hai
सही कहा आपने
अपने विचारों को व्यक्त करने का एक आसन सा माध्यम है....
.
शहर कब्बो रास न आईल
स्वस्थ सोच ही स्वस्थ समाज को जन्म देती है।
कर्म करो फल की चिंता न करो ... ब्लोगिंग का अपना ही मज़ा है ...
खाली समय को इधर उधर के अनुत्पादक कार्यों में व्यतीत करने से कही अच्छा है अपने मन के उमड़ते-घुमड़ते विचारों को ब्लोगिंग के माध्यम से साझा करना.विचारों का साझा कभी कभी मन की उलझनों को भी सुलझा देता है.
निठल्ले ब्लोगरों के जितनी मेहनत कर सकते हैं ??
he he he :) I like that ..
I pity the ones who think that way .. and all those who think that way please dont waste time reading a blog..
silly stupid people .. what will they say next .. reading a book is NITHAALLON ka kaam
Bikram's
बहुत ही सुन्दर बातें बताई हैं आपने.
करत करत अभ्यास के जड़ मति होत सुजान
कोशिश करेंगें की ब्लोग्गिंग को और भी गंभीरता
से लिया जाये.
मुझे तो ब्लॉगिंग भाती है पढ़ना भी और लिखना भी. काफ़ी निठल्ली भी हूँ किन्तु हूँ तो हूँ.जब निठल्ला व्यक्ति अपने समय का उपयोग लिखने पढ़ने में करने लगे तो शुद्ध निठल्ला कहाँ रह जाता है?
घुघूतीबासूती
यदि कोई निठल्ला ही है तो वह ब्लागिंग भी क्यों करना चाहेगा।
ब्लागिंग सृजनात्मक कार्य है। सृजन वही कर सकता है जिसमें चिंतन-मनन की क्षमता है। चिंतन वही कर सकता है जिनके पास मानसिक उर्जा है। मानसिक उर्जा उनकी बढ़ती है जो सकारात्मक सोच रखते हैं। सकारात्मक सोच उन्हीं की होगी जो सृजनशील होते हैं।
जो सृजनशील होते हैं वे ब्लागिंग भी कर सकते हैं।
इस चिंतन-चक्र में निठल्लों का कोई स्थान नहीं है। जिनमें सृजनात्मकता नहीं होती वे ही दूसरों के अच्छे कार्यों की आलोचना करते है। इन्ही के लिए कहा गया है- नाच न आवे आंगन टेढ़ा !
Bilkul theek....lage raho apne apne kaary me!
sakaratmak achchi soch ek doosron me baate to isme bura kya hai isi bloging ke maadhyam se kitne achche dost bhi ban gaye ek paivaar ki tarah ho gaye.jisko jo kahna hai kahe karm karte raho vichar baantte raho.
आनंद बजार पत्रिका (?) की एक साप्ताहिक पत्रिका प्रकाशित होती थी "रविवार" उसमे किट्टू का एक आलेख हर अंक में होता था "निठल्ला चिंतन" पर वह चिंतन निठल्ला न होकर बहुत कुछ होता था. अभिप्राय यह कि निठल्ला भी बहुत कुछ होता है. ...... और कुछेक अपवाद छोड़कर ब्लॉग पर अवश्य ही कुछ न कुछ होता है........ और आपके जैसे विद्वान ब्लोगेर्स के ब्लॉग पर तो प्रेरक और सारगर्भित लेख होते हैं, जो संग्रहणीय हैं...... और माना कि किसी ब्लॉग पर यदि कुछ भी न हो तो यही क्या कम है कि वगैर किसी रिश्ते, वगैर किसी जान-पहचान के सैकड़ों मील दूर रहते हुए भी हम एक दूसरे से संवाद बने रहे हैं. एक दूसरे से भावनात्मक जुड़ाव है, आत्मीयता बनी हुयी है, निस्वार्थ, निरपेक्ष.
दुनिया मे लोगो के कहने से कुछ होना जाना नही है ,अगर आप सही है तो कोइ न कोइ जरूर आपको समझेगा ।आपका ब्लाग अच्छा है ।
बिलकुल सही कहा है आपने !
ब्लोगिंग के लिए तो सारा समय भी कम पड़ता है !
nitthalla chintan bhi bahut achchha hota hai... n maniye to purane .... akhbaar me kittu ka nithalla chintan paddhkar dekhiye.. :)
vaise nitthalla kuchh bhi nahi kar sakta..
निठल्ले ही तो नशेड़ी होते हैं।
मुझे भी बुद्धीजिवी कहने के लिए धन्यवाद.
विचारों का आदान प्रदान करना भी काम ही है... फिर इसे करने वाले निठल्ले कहां रहे..... वैसे जो ये कहते हैं वो नादान हैं, उन्हें माफ करना ही बेहतर।
आपके नारे में हम भी सम्मिलित हैं---
जय ब्लॉगर्स !जय हिंदी-ब्लॉगिंग !
ब्लोगिंग हो सकता है कुछ निठल्लों का काम हो मगर ये कदापि नहीं कह सकते की बुद्धिजीवी इस ब्लॉग्गिंग में नहीं हैं हाँ कुछ तथाकथित स्वघोषित बुद्धिजीवी भी है उन्हें खुद को छोड़ बाकी सब निठल्ले नज़र आते होंगे. लेखन कार्य एक दुरूह कार्य है और अच्छा लेखन बिना अच्छा पढ़े नहीं किया जा सकता और पढने के लिए समय चाहिए. हो सकता है जिसके पास समय हो उसे ये तथाकथित बुद्धिजीवी निठल्ला कह रहे हों
दिव्या जी, यदि 'सत्य' जानले कोई जैसे हमारे पूर्वज सिद्ध पुरुषों ने जाना तो 'हम' सभी निठल्ले हैं - सिनेमा हौल में निठल्ले हाथ पर हाथ धरे अपनी अपनी सीट पर बैठे पर्दे पर उभरते मनपसंद दृश्यों को देख आनंद उठाते अथवा मन पसंद न होने पर दुखी होते :) कहावत भी है अंग्रेजी में, "He also serves who just stares"!
जय हो...
very true!!!
सही कहा आपने,कर्म किये जांय,फल की चिंता ना करें.वैसे तो हर कर्म फल में ही परिणित होता है. मेरा भी ब्लागर्स के जगत को नमन.
सही कहा आपने,कर्म किये जांय,फल की चिंता ना करें.वैसे तो हर कर्म फल में ही परिणित होता है. मेरा भी ब्लागर्स के जगत को नमन.
बहुत सुन्दर प्रस्तुति--- मैं दीघतमा जी की टिप्पड़ी से पूर्णतः सहमत हूँ- 'ब्लोगिं हमें अपने बिचार प्रकट करने में सहजता होती है हम अपने विचारो के द्वारा समाज को सहयोग कर सकते है .यह एक अच्छी परंपरा है और लोकतंत्र में इसकी आवश्यकता भी है.'
कितनी सहजता से बेहतरीन विचारणीय बातें कहीं हैं आपने ..शुभकामनाएं ।
कुछ तथाकथित अनुसंधानकर्ता और स्वयं को वैज्ञानिक कहने वाले लोग तो 'साहित्य' पढने और लिखने को भी निठल्लों का काम कहते हैं और 'अनप्रोडक्टिव' कहकर इसका मजाक उड़ाते हैं। वे यह भूल जाते हैं कि साहित्य ही विज्ञान को प्रेरणा देता रहा है।
लेखक का लोकतंत्र है ब्लोगिंग .खुद का खुद से औरों से संवाद है ब्लोगिंग .स्वयं संपादित सद्य प्रकाशित अखबार है रिसाला है चिठ्ठाकारी .जो लिख लेता है वह मुक्त हो जाता है दिन बहर के तनाव से और टिपण्णी नसीब हो जाएं तो पुनर बलित महसूस करता है .अच्छा मुद्दा उठाया है आपने .
सही कहा आपने....
सार्थक आलेख...
सादर...
यही तो ख़ासियत है अपने भारत की
बहुत मुश्किल है लोगो के दिमाग को बदलना , उनकी सोच को बदलना
वाह भाई वाह क्या नजारा है .....जो खुद निठल्ले हैं आज वही पूरी जमात को निठल्ले कह रहे हैं ........ शायद उन्हें जमीनी हकीकत नहीं पता ..... उनकी नज़रों में यदि वे बे सर पैर की बातें लिखतें हैं तो सभी ब्लोगर भी ऐसा ही करते होंगे ......... काश उनमे थोड़ी सी भी समझ होती .......पर वो भी क्या करें .......... सारी समझदारी का ठेका उन्होंने ही तो ले रखा है
मुझे तुमसे कुछ भी ना चाहिए मुझे मेरे हाल पे छोड़ दो
मेरा दिल अगर कोई दिल नहीं उसे मेरे सामने तोड़ दो, उसे मेरे सामने तोड़ दो.........
मै ये भूल जाउंगा जिन्दगी कभी मुस्कराई थी प्यार में
मै ये भूल जाउंगा मेरा दिल कभी खिल उठा था बहार में
जिन्हें इस जहां ने भुला दिया मेरा नाम उन में ही जोड़ दो
मुझे तुमसे कुछ भी ना चाहिए मुझे मेरे हाल पे छोड़ दो !!!!!!!
bahut khub kaha ji aapne bhagwan shri krishan ki un baton ko ya updeshon ko hun or hmare desh wasi samjhte to keval karm karne per hi vishwas rakhte na ki betuki baton me apna vakt barbad na karte. bahut khub likha he divya ji ...........
मेरी समझ से कोई विचार निठल्ला नहीं हो
सकता ।
हां पाठकेां तक न पहुच पाने की टीस अवश्य कभ्ज्ञी कभार निराश करती है वरना लिखना तो एक नशे जैसा ही है
धन्यवाद डा0 दिव्या जी आपने यह
सार्थक आलेख लिखकर कम पाठकों तक पहुंचने वाले ब्लागरों की हौसला अफजाई की
ब्लाग टिप्पणियों के लिए नहीं भावी पीढी की धरोहर के तौर पर देखा जाना चाहिए।
फ़ालतू बातों पर ध्यान मत दीजिये !
all kudos to blogging and bloggers.
चिठ्ठा कारी के इस लोकतंत्र में विमत को भी स्थान मिलना ही चाहिए .जिन खोजा तिन पाइयां .....
ब्लॉगिंग के लिये व्यस्त जीवनचर्या से बड़ी मुश्किल से समय निकल पाता है, यह निठल्लों का काम भला कैसे हो सकता है.महेंद्र वर्मा जी ने बिल्कुल सही कहा है:-
"इस चिंतन-चक्र में निठल्लों का कोई स्थान नहीं है। जिनमें सृजनात्मकता नहीं होती वे ही दूसरों के अच्छे कार्यों की आलोचना करते है।"
हर ब्लॉगर की ब्लॉग लिखने की अपनी मंशा होती है. वही उसके चिट्ठों की सार्थकता और निरर्थकता निर्धारित करती है. यदि कोई मिशनरी उत्साह के साथ सोद्देश्य लिख रहा है और उसे लक्ष्य समूह तक पहुँचा भी रहा है तो उसे निठल्ला कहने वाले के बारे में ही सोचना पड़ेगा.
मेरी पोस्ट पर आपकी टिप्पणी के लिए बहुत-बहुत आभार.
चलो दुनिया निठल्ला माने तो माने, कोई पढ़े ना पढ़े, पर अगर दिल को अच्छा लगता है लिखना तो लिखते रहो।
बरसों पहले महात्मा गाँधी के विचार पढ़े थे " अहिंसा कायरों का भरोसा नहीं, वीर ह्रदय की प्राण वायु है " इन शब्दों में थोडा परिवर्तन करके यह कहा जा सकता है कि- ब्लॉग्गिंग निठल्लों का काम नहीं, अपितु रचनाकार
लोगो का एक मंच है, जहाँ विचारों को शब्द मिलते हैं और शब्दों से ही अपनी बात अधिकाधिक लोगों तक पहुँचाने का एक सुअवसर ! परन्तु यह देख कर क्षोभ भी होता है कि ब्लोगिंग का प्रयोग करते समय कुछ व्यक्ति न भाषाई स्तर का ध्यान रखते हैं न मर्यादा का. कुछ आलेख तथा टिप्पणियां तो ऐसे शब्दों से लैस होती हैं कि मानो " दिल्ली बैली " फिल्म से उठा कर रख दियें हों. इन सब बातों की ओर ध्यान देने की आवश्यकता है. मर्यादा में रह कर भी मतभेद ज़ाहिर किया जा सकता है. व्यक्तिगत आक्षेपों से भी बचने की आवश्यकता है !
कोई कुछ कहे ब्लोगिंग बंद नहीं होने वाली और न ही होनी चाहिए !
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