Saturday, December 17, 2011

आजीवन अविवाहित रहने के निर्णय का सम्मान कीजिये

अक्सर कुछ लोग आजीवन अविवाहित रहने का निर्णय लेते हैं ! लेकिन प्रायः ऐसा देखा गया है की उनके मित्र एवं परिजन उन्हें लगातार ये बताते रहते हैं की उनका ये निर्णय गलत है!

आखिर क्यूँ लगता है उन्हें ये निर्णय गलत ?

१- उन्हें लगता है वह अकेला रह जाएगा!

२-उसकी देख-भाल करने वाला कोई नहीं होगा!

३-वह अपने मन की बातें किसी से नहीं कह सकेगा !

४- जीवनसाथी के अभाव में जीवन ही व्यर्थ है!

५- वह जीवन के बहुत से भौतिक सुख भोग करने से वंचित रह जाएगा !

६-समाज से कट जाएगा, असामाजिक हो जाएगा!

७-एकाकी हो जाएगा!

८-वह खुद को बर्बाद कर रहा , अपने पैर पर कुल्हाड़ी मार रहा है!

९-माता-पिता के मरने के बाद कौन उसको देखेगा? वह हमेशा कष्टों में रहेगा.

१० जीवन में कोई तो अपना हो अतः विवाह ज़रूर करना चाहिए......

आदि-आदि भाँती प्रकार के सम्झायिशें मिलती रहती हैं उस व्यक्ति को जो अविवाहित रहने का निर्णय लेता है, चाहे वह स्त्री हो अथवा पुरुष !

लेकिन मुझे एक बात समझ नहीं आती कि क्यूँ नहीं उस व्यक्ति के इस निर्णय का सम्मान किया जाता ! हर व्यक्ति अपना जीवन कैसे जीना है , इस बात का निर्णय लेने के लिए वह स्वतंत्र है! पढ़ा-लिखा बुद्धिमान व्यक्ति जो भी निर्णय लेगा , वह उचित ही होगा, कुछ सोच समझकर ही लिया होगा ! किसी विशेष प्रयोजन से लिया गया हो सकता है ! जरूरी नहीं हर कोई गृहस्थ जीवन में बंधना ही चाहे ! कुछ लोग कुछ बड़ा करना चाहते हैं और उन्हें लगता है कि गृहस्थी कि जिम्मेदारियां उन्हें बांधेंगी और वह अपना समुचित समय न तो परिवार को दे सकेंगे , न ही अपने "संकल्प" को , जिसे वे पूरा करना चाहते हैं!

सिद्धार्थ "गौतम बुद्ध" ने गृहस्थ जीवन त्याग कर संन्यास क्यूँ ले लिया ?
स्वामी विवेकानंद जी अविवाहित थे , जिन्होंने अपने देश और धर्म को गौरवान्वित किया! आखिर उनके निर्णय में क्या अनुचित था ?
गांधी जी ने जीवन के एक पड़ाव पर अपनी पत्नी से विमर्श के बाद उन्हें अपनी बहन बना लिया, क्यूंकि उन्हें लगा कि गृहस्थ जीवन उनके संकल्पों में व्यवधान बन रहा है !
डॉ अब्दुल कलाम और अटल बिहारी बाजपेयी के अविवाहित रहने के निर्णयों में क्या गलत है ? देश के लिए समर्पित हैं !
क्या नरेंद्र मोदी जी का निर्णय गलत है , जिन्होंने पूरे भारत को अपना परिवार बना रखा है !

अपने मिशन को विवाहित रहकर भी पूरा किया जा सकता है, लेकिन इस बात से इनकार नहीं है कि विवाह एक बहुत बड़ा बंधन है जो स्वतंत्र रहकर पूरे समर्पण के साथ कुछ करने में बाधा भी बनता है क्यूंकि परिवार वालों कि अपेक्षाएं और जिम्मेदारियां पूरी करने में उस व्यक्ति का समय और ऊर्जा बंट जाती है !

यदि किसी का कोई 'संकल्प' अथवा मिशन बड़ा हो 'गृहस्थ-जीवन' से तो अविवाहित रहने का निर्णय उचित ही है क्यूंकि विवाह करके परिवार को "गौड़" बना देने में कोई समझदारी नहीं है! गृहस्थ लोगों कि प्रतिबद्धता अपने परिवार के साथ ही होनी चाहिए! लेकिन ऐसी परिस्थिति में व्यक्ति अपने मिशन जिसके लिए वह कृत-संकल्प है , उसे समुचित निष्ठां के साथ नहीं निभा पता !

१-क्या अविवाहित रहकर पति अथवा पत्नी के अभाव में जीवन व्यर्थ कहलायेगा ?

२-क्या माता-पिता और अन्य बड़ों कि सेवा करके जन्म सफल नहीं होगा?

३- क्या समस्त भारत के देशवासी उसका 'परिवार' नहीं बन सकते ?

४- भाई-बहन, माता-पिता मित्र और कलीग के होते हुए भी वह एकाकी हो जाएगा ? क्या सारे रिश्ते फर्जी निकल जायेंगे विवाह के अभाव में ?

५-उसकी देख-भाल कौन करेगा , खाना कौन बनाकर खिलायेगा ? ---क्या विवाह इस उद्देश्य से किया जाता है ? यह तो नौकरी पर एक सेवक रखकर भी पूरा किया जा सकता है!

६- ऐसे व्यक्ति को एकाकी कहना उचित है क्या? अविवाहित व्यक्ति समाज को ज्यादा योगदान करता है और कर सकता है , क्यूंकि वह स्वार्थी होकर केवल 'मेरा-परिवार', मेरे बच्चे' आदि के लिए पतिबद्ध नहीं रहता अपितु अपनों और समाज के लिए बराबर से समर्पित रहता है!

अविवाहित रहने के निर्णय का सम्मान किया जाना चाहिए! निर्णय लेने वाले पर अपने विचार थोपने नहीं चाहिए ! उसकी स्वतंत्रता , उसकी आजादी , किसी भी हालत में समझौते के लिए मजबूर नहीं कि जानी चाहिए ! एक वयस्क व्यक्ति अपना भला-बुरा सोच सकता है!

कुछ लोग अपने माता-पिता कि सेवा करना चाहते हैं आजीवन ,
कुछ लोग देश को ही समर्पित होना चाहते हैं
कुछ लोग विज्ञान एवं शोध में समर्पित होना चाहते हैं

अतः ऐसे बहुत से कारण हो सकते हैं जिसके तहत कोई वयस्क आजीवन अविवाहित रहने का निर्णय लेता है! हमें उसकी भावनाओं , उसकी सोच और निर्णय का सम्मान करना चाहिए !

हम उस व्यक्ति को सबसे बड़ी ख़ुशी , उसके निर्णय का सम्मान करके दे सकते हैं!

अतः हर वयस्क को यह स्वतंत्रता मिलनी ही चाहिए कि वह अपना जीवन कैसे जिए !

Zeal

65 comments:

आशुतोष की कलम said...

आजीवन अविवाहित रहने के निर्णय का सम्मान करना चाहिये ये तथ्य सही है..मगर विवाहित व्यक्ति भी चाहे तो योगदान कर सकता है..एक दुसरे दृष्टीकोण से देखें तो विवाहित व्यक्ति पत्नी,बच्चों और परिवार को साथ ले कर अपनी शक्ति बढाकर ज्यादा सेवा कर सकता है..अगर अविवाहित रह कर सेवाभाव का निर्णय लिया जा चूका है तो समाज द्वारा कही गयी कठिनाइयाँ गौड़ हो जाती है....

प्रवीण पाण्डेय said...

गहन विचारों को बड़े ही व्यवस्थित व ग्राह्य ढंग से प्रस्तुत किया है आपने। जहाँ विवाह आपकी ऊर्जा बाँधता है, वहीं कई विकर्षणों से मुक्ति भी दिला देता है।

मनोज कुमार said...

सही है। यह भी एक बहुत बड़ी तपस्या ही है।

सदा said...

बिल्‍कुल सही कहा है आपने ... बेहद सार्थक सोच व विचारणीय प्रस्‍तुति ..आभार।

AK said...

यदि लोग दूसरों के जीवन के सिद्धांतों और दूसरों के निजी जीवन सह दर्शन का सम्मान करने लगें तो तकरीबन सारी सामाजिक समस्याएं खत्म हो जाएँगी.

हमारी आदत है दूसरों की जिंदगी में अनावश्यक हस्तक्षेप की . अपने मूल्य दूसरों के ऊपर थोपने की .अपने गुरुतर (?) मूल्यों से दूसरों के मूल्यों को पीसने की.
जहाँ गाँवों में अभी भी लड़कियों का जींस पहनना चर्चा का विषय हो, शहरों में किसी लड़की का लड़के द्वारा mobike ya car से शाम में घर drop करना चाय की चुस्की के साथ चटकारे ले कर पीना आम शगल हो , बिना रिश्तेदारी के किसी कुंवारे लड़के का किसी घर में आना जाना पड़ोसियों द्वारा दूरबीन से देखा जाता हो , पड़ोसियों की साड़ी से अच्छी साड़ी agenda no. 1 हो , वहाँ दूसरों के निर्णय का इतना सम्मान !!! किस खुशफ़हमी में हैं आप ?

बड़ी मछली द्वारा छोटी मछली को निगलना एक तथ्य है - जिंदा रहने के लिए !! यहाँ अस्तित्व का संकट तो है नहीं , फिर ये निगलना कैसा ? दिक्कत यह है की हम में से हर कोई जहाँ मौका मिले सामाजिक मूल्यों का स्व नियुक्त पुरोधा बन जाता है - और मूल्यों की चाबुक चलने लगता है.

हर्ष इतना है कि ये सोच बदल रही है . इसके दो कारण हैं .

एक - बढती सहिष्णुता
दो - बढती महानगरीय उदासीनता

दुसरे कारण को आप boon in disguise कह सकती हैं . पर सच है कि महानगर में जहाँ लोग अपने पडोसी क इनाम से नावाकिफ हों वाहन कौन सोचता है कौन क्या कर रहा है . हाँ वहाँ भी ऑफिस में लोग चटकारे लेते हैं पर तब्दील - ऐ - नजरिया वहाँ भी है.
एक छोटा सा वाकया है.
मैं बनारास किसी कार्यवश गया था , अपने एक दोस्त से मैंने पुछा - शादी कर ली ? उसने जब न कहा तो मैंने कहा , चलो फिर शाम में मेरे गेस्ट हाउस में आयो चाय पीते हैं .
उसने कहा - अरे मेरा यहाँ घर है , आप इसे क्वांरे का घर समझ avoid kyon kar rahe hain . मैं फिर शाम में उसके घर गया और मैं चकित रह गया - घर की साज सज्जा किसी भी शादी शुदा के घर से कम नहीं थी. अत्यंत परिष्कृत और परिपूर्ण माहौल था. वह आज तक कुंवारा है पर जब भी मैं उसके शहर जाता हूँ उसके घर जाना नहीं भूलता हूँ. और नहीं उसके जैसे मेरे दर्ज़नो दोस्त के घर
और सबसे जरूरी - मैंने आज तक इनमें से किसी से उनके अविवाहित रहने का कारण पुछा है .
कुछ तो पर्दागिरी होनी चाहिए .

धीरेन्द्र सिंह भदौरिया said...

अविवाहित लोग बिरले ही मिलते है,और उनका सम्मान किया जाना चाहिए सुंदर सटीक आलेख...

मेरी नई पोस्ट केलिए काव्यान्जलि मे click करे

Rakesh Kumar said...

स्वामी विवेकानंद ने अपनी पत्नी के प्रथम दर्शन पर उन्हें "माँ" कहा और उनकी पत्नी ने उन्हें कहा "वत्स" !

क्या स्वामी विवेकानन्द जी शादीशुदा थे?

मुझे लगता है आप उनके गुरू रामकृष्ण परमहंस जी के बारे में बता रहीं हैं यहाँ.

आपका लेख सार्थक और विचारणीय है.

आभार.

AK said...

यदि लोग दूसरों के जीवन के सिद्धांतों और दूसरों के निजी जीवन सह दर्शन का सम्मान करने लगें तो तकरीबन सारी सामाजिक समस्याएं खत्म हो जाएँगी.

हमारी आदत है दूसरों की जिंदगी में अनावश्यक हस्तक्षेप की . अपने मूल्य दूसरों के ऊपर थोपने की .अपने गुरुतर (?) मूल्यों से दूसरों के मूल्यों को पीसने की.
जहाँ गाँवों में अभी भी लड़कियों का जींस पहनना चर्चा का विषय हो, शहरों में किसी लड़की का लड़के द्वारा mobike ya car से शाम में घर drop करना चाय की चुस्की के साथ चटकारे ले कर पीना आम शगल हो , बिना रिश्तेदारी के किसी कुंवारे लड़के का किसी घर में आना जाना पड़ोसियों द्वारा दूरबीन से देखा जाता हो , पड़ोसियों की साड़ी से अच्छी साड़ी agenda no. 1 हो , वहाँ दूसरों के निर्णय का इतना सम्मान !!! किस खुशफ़हमी में हैं आप ?

बड़ी मछली द्वारा छोटी मछली को निगलना एक तथ्य है - जिंदा रहने के लिए !! यहाँ अस्तित्व का संकट तो है नहीं , फिर ये निगलना कैसा ? दिक्कत यह है की हम में से हर कोई जहाँ मौका मिले सामाजिक मूल्यों का स्व नियुक्त पुरोधा बन जाता है - और मूल्यों की चाबुक चलने लगता है.

हर्ष इतना है कि ये सोच बदल रही है . इसके दो कारण हैं .

एक - बढती सहिष्णुता
दो - बढती महानगरीय उदासीनता

दुसरे कारण को आप boon in disguise कह सकती हैं . पर सच है कि महानगर में जहाँ लोग अपने पडोसी के नाम से नावाकिफ हों वहाँ कौन सोचता है कौन क्या कर रहा है . हाँ वहाँ भी ऑफिस में लोग चटकारे लेते हैं पर तब्दील - ऐ - नजरिया वहाँ भी है.
एक छोटा सा वाकया है.
मैं बनारास किसी कार्यवश गया था , अपने एक दोस्त से मैंने पुछा - शादी कर ली ? उसने जब न कहा तो मैंने कहा , चलो फिर शाम में मेरे गेस्ट हाउस में आयो चाय पीते हैं .
उसने कहा - अरे मेरा यहाँ घर है , आप इसे क्वांरे का घर समझ avoid kyon kar rahe hain . मैं फिर शाम में उसके घर गया और मैं चकित रह गया - घर की साज सज्जा किसी भी शादी शुदा के घर से कम नहीं थी. अत्यंत परिष्कृत और परिपूर्ण माहौल था. वह आज तक कुंवारा है पर जब भी मैं उसके शहर जाता हूँ उसके घर जाना नहीं भूलता हूँ. और नहीं उसके जैसे मेरे दर्ज़नो दोस्त के घर
और सबसे जरूरी - मैंने आज तक इनमें से किसी से उनके अविवाहित रहने का कारण नहीं पुछा है .
कुछ तो पर्दागिरी होनी चाहिए .

Rajesh Kumari said...

jis bandhan ko sachche dil se na apnayen use baandhna hi nahi chahiye jo vivaah ko apni unnati me baadhak samjhe aur use apni bhool samajhkar taumra dhota rahe usse to achcha hai vivaah na hi kare aur uske is spasht nirnay ka samman karna chahiye.sabki apni apni soch hai.basharte uski soch swasth mansikta vaali ho.

Amit Sharma said...

सारगर्भित पोस्ट ............... सेवाव्रती के लिए गृहस्त जीवन कोई अड़चन नहीं देता, पर अनन्यव्रती सर्वतोभावेन मुक्त हो आजीवन अविवाहित रहने का भी संकल्प निभातें है, जिससे की सारे विश्व को कुटुंब मानने में किंचित भी व्यतिक्रम ना आने पाए.
*************
पोस्ट में अच्छा चिंतन व्यक्त हुआ है पर अब तक प्रचलित मान्यता और इतिहास के अनुसार तो स्वामी विवेकानंद आजीवन अविवाहित ही रहे थे..... आपने जो प्रसंग दिया है शायद उनके गुरु परमहंस रामकृष्ण से सम्बंधित है.

Unknown said...

सामाजिक मान मर्यादाओं की दुहाई देकर समाज मूल्य दूसरों पर थोपता है जिन्हें स्वयं कही न कहीं छिन्न -भिन्न जरूर करता है मगर दुसरे की कमीज सफ़ेद कैसे की सोच में डूबा समाज कैसे समझ ले आपकी बात. बदलती मनस्थिति के समाज से कुछ आपेक्षाएं नहीं पालनी चाहिए बस .

दिवस said...

दिव्या दीदी
बहुत सही कहा|
सबसे बड़ी समस्या तो यही है कि किसी अविवाहित व्यक्ति को असामाजिक कैसे घोषित कर दिया? यदि किसी पुरुष के पास पत्नी अथव किसी स्त्री के पास पति नहीं है तो क्या वे असामाजिक कहलाएंगे?
क्या पति-पत्नी लाइसेंस हैं?
दूसरी बात सभी माँ-बाप अपने बच्चों की ख़ुशी चाहते हैं| इसी कारण उसका विवाह कर उसका घर बसाते हैं| किन्तु जब किसी बच्चे को विवाह में रूचि ही नहीं है तो जबरदस्ती उसका विवाह कर उसे कौनसी ख़ुशी दी जा रही है? यह तो सीधे सीधे उसके अरमानों का गला घोटना हुआ न|
विवाह नहीं कर के उसने कोई पाप तो नहीं किया, किसी का बलात्कार, किसी की हत्या अथवा किसी के यहाँ चोरी तो नहीं की| विवाह न करना कोई गैरकानूनी भी नहीं है और न ही अधार्मिक| तो इस पर इतनी हाय तौबा क्यों?
किसी भी अविवाहित व्यक्ति को एकाकी क्यों समझा जाता है? क्या केवल पति अथवा पत्नी के होने से ही रिश्ते बनते हैं, क्या बाकी सभी रिश्ते गौण हैं? क्या डॉ. कलाम, अटल बिहारी वाजपेयी, नरेंद्र मोदी, राजिव दीक्षित, बाबा रामदेव, अन्ना हजारे असामाजिक अथवा एकाकी हैं?
सभी व्यक्तियों को अपनी-अपनी सीमाएं पता होती हैं| इसी के अनुसार वह निर्णय लेता है| यदि किसी व्यक्ति को लगता है कि गृहस्थ जीवन में बंधकर वह अपनी गृहस्थी के साथ, पत्नी व बच्चों के साथ न्याय नहीं कर सकता, तो ऐसे में अविवाहित रहने का निर्णय गलत क्यों? क्यों अपने स्वार्थ के लिए किसी को दुःख दिया आए?

आपकी समस्त बातों से पूर्णत: सहमत हूँ| यदि कोई व्यक्ति अविवाहित रहना चाहता है, चाहे कारण जो, उसके निर्णय का सम्मान करना चाहिए|

प्रतिभा सक्सेना said...

दूसरों के सुविचारित निर्णय का सम्मान करना चाहिये !

G.N.SHAW said...

वश विबाह -स्वार्थ है , तो अविबाह -निश्वार्थ ! फिर दोनों को जैसे भी वाक्य में गढ़ लें ! सुन्दर लेख !

Yashwant R. B. Mathur said...

अक्षरशः सहमत।

सादर

vandana gupta said...

गहन शोध के बाद अच्छा निष्कर्ष निकाला है ………सार्थक आलेख्।

Dr.Ashutosh Mishra "Ashu" said...

aaderneeya divya jee ...nishchit roop se hame is nirnay ka samman karna chahiye..lekin hawa ka ek jhonka jeewan ko udas bana deta hai..ek jhonka jindagi ko roomaniyat se bhar deta hai..nirnay lene wale ko nirnay bahut kuch sochkar lena chahiye..aisa na ho apni shapath ke shabd swyam uske hee liye bojh ban jaayein..kyonki phir jeewan vyaktigat aaur samajik dono tareeke se uchit nahi rahega....pran jaayee par bachan naa jayee..ka hamara siddhant sadaiv aanerneeya raha hai..abibahit rahne kee baat karke bibah kar lena bachan jaane jaise hee hoga..yadi nahi to ham to sadiyon se hee is kritya ko sar jhukaate rahe hain..s

JC said...

सन '६२ में अमेरिकन दूतावास में चीफ कल्चरल एफेयर्स ऑफिसर श्री नूनंन हमारे कॉलेज आये थे तो हम कुछेक विद्यार्थियों को उनसे चर्चा का मौक़ा मिला दोनों देशों की व्यव्स्थाओं पर... हमारे दृष्टिकोण से, जो हमें दकियानूसी लगता था, उन्होंने उसी की तारीफ़ की, और हमें बताया कि कैसे हमारे देश में विवाह दोनों परिवार, जो एक दूसरे की पृष्ठभूमि जानते हैं, उन के द्वारा ठहराया जाता है और वर्षों तक दोनों परिवार परंपरागत मान्यताओं को ध्यान में रख अपना अपना दायित्व निभाते हैं...
जबकि अमेरिका में जब तक लड़का-लड़की डेट नहीं करते विवाह नहीं होते, और जो नून-तेल का भाव जान शीघ्र टूट भी जाते हैं... और इस कारण जो लडकियां डेट पर नहीं जातीं (क्यूंकि वो शर्मीली होती हैं), उनके विवाह ही नहीं हो पाते, यद्यपि वो सभी घरेलू काम में निपुण होती हैं... आदि आदि, चर्चा काफी लम्बी चली......
अब भारत में भी लगभग वैसी ही स्थिति आ गयी है - पहले तो शादियाँ देरी से होती हैं,,, और पश्चिम समान कई डिवोर्स होते हैं, और लडकियां मां-बाप के घर में रह रहीं होतीं हैं... और तो और, दहेज़ के ले कर कुछेक बहुएं जलाई जाने के कारण, माता-पिता के मन भी भय बैठ गया है बेटियों की शादी को लेकर...

सम्मान तो सभी का हो, भले ही कोई विवाहित हो अथवा अविवाहित, बच्चा-बूढा, स्त्री-पुरुष... तभी शान्ति रह सकती है...बुद्ध अपने प्रयास में सफल हुए तो उनका परिवार का त्याग भी सही माना जाता है, असफल होते तो इतिहास के पन्नों में भी उनका नाम नहीं आता...

ZEAL said...

.

राकेश जी ,
पूर्व में पढ़ा हुआ मेरी स्मृति में था अतः वह लिखा , लेकिन इसकी सत्यता के प्रति संशय है , अतः आपकी बात को ही सत्य मानकर पोस्ट को एडिट कर दिया है ! आपका आभार !

.

ZEAL said...

.

स्वामी विवेकानंद जी के अविवाहित होने के निर्णय से तो किसी को आपत्ति नहीं होगी फिर किसी अन्य आम व्यक्ति के ऐसे निर्णय पर सभी उसको सम्झायिशें क्यूँ देते हैं ? सभी चाहते हैं स्वामी विवेकानंद और भगत सिंह पैदा हों , लेकिन हमारे घर में नहीं बल्कि पडोसी के घर में पैदा हों! हमारी संतान तो बस लकीर की फ़कीर हो ! विवाह करे और बाल बच्चे पैदा करके सामान्य जीवन व्यतीत करे! यदि हमारी संतान थोडा हटकर कुछ सोचती है तो हम व्यर्थ ही घबराकर उसके निर्णय को अनुचित ठहरा देते हैं!

.

Maheshwari kaneri said...

बहुत गहन सोच है आप की दिव्या जी.मैं आप के विचारो से पूर्णत: सहमत हूँ.ये भी एक बहुत बड़ी साधना होगी....

चंद्रमौलेश्वर प्रसाद said...

देह की कुछ मांगे होती हैं जिन्हें समय पर पूरी न की जाय तो मानसिक विकृतियों का जन्म हो सकता है।

kshama said...

Vivah karna na karna ye bada niji faisla hai.Harek ka apna,apna nazariya hota hai!

महेन्‍द्र वर्मा said...

विवाह करने का निर्णय स्वयं का भी हो सकता है या किसी के दबाव पर लिया गया निर्णय भी हो सकता है। किंतु अविवाहित रहने का निर्णय पूर्ण रूप से स्वयं का होता है। स्वयं की इच्छाशक्ति से लिए गए इस निर्णय का सम्मान किया जाना चाहिए।
ऐसे अनेक महान व्यक्ति हुए हैं जो अविवाहित रहे और जिन्होंने मानवता की सेवा की।
अविवाहित रहकर भी राष्ट्र, समाज और मानवता की सेवा की जा सकती है।

भारतीय नागरिक - Indian Citizen said...

विवाहित-अविवाहित रहना एक व्यक्तिगत निर्णय है, जिसका सम्मान होना ही चाहिए.
हर कोई यदि वो चाहे तो देश के लिए, समाज के लिए अपना योगदान कर सकता है.
और अकेला रहना एक बड़े सब्र का काम है.
कुछ घंटे मौन तो रहकर देखिये, फिर पता चलता है कि एकाकी रहने वाला कितना बड़ा साधक है.

mridula pradhan said...

gahan post.....pasand aayee.

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

सही सलाह!
बढ़िया सुझाव!

अरुण कुमार निगम (mitanigoth2.blogspot.com) said...

आजीवन अविवाहित रहने का निर्णय बहुत कुछ सोचने-समझने के बाद ही लिया जाता होगा.इस विषय में यूँ ही निर्णय नहीं लिया जा सकता.अत: निर्णय का सम्मान होना ही चाहिये.

विभूति" said...

मैं भी सहमत हूँ आपसे....

रेखा said...

आपके विचारों से पूरी तरह सहमत हूँ .....
ऐसे लोग तो मेरी नजर में हमेशा आदरणीय ही रहेंगे .

मदन शर्मा said...

दिव्या जी आपने बिलकुल सही कहा है !
विवाह तो एक ऐसा लड्डू है जो ना खाए वो पछताए, जो खाए वो भी जिंदगी भर पछताए ....
ये तो हमारा खुद का फैसला है की हम क्या चाहते हैं ! यह जरुरी नहीं है की शादी करने पर ही हमारा परिवार बनेगा .....
यहाँ तो एक हाथ से दे तो दुसरे हाथ से ले की स्थिति है
ये तो हमारे व्यवहार पर निर्भर है अर्थात जैसा हम व्यवहार करेंगे वैसा ही हमें परिणाम मिलेगा !
अतः जो अविवाहित हैं वो भी आदर के पात्र हैं !!!!!!!!!!

Kailash Sharma said...

बहुत सटीक विश्लेषण...अविवाहित रहने या न रहने का निर्णय व्यक्ति पर छोड़ देना चाहिए और समाज को इसमें हस्तक्षेप करने का कोई औचित्य नहीं है....

Roshi said...

sunder lekh ......gehan vishay

Bharat Bhushan said...

व्यक्ति अपने बारे में निर्णय लेने के लिए स्वतंत्र है. इस स्वतंत्रता पर प्रश्न चिह्न नहीं लग सकता. जब से दुनिया बनी है कई लोग अविवाहित रहने का निर्णय लेते आए हैं.
आज के संदर्भ में इसे इस प्रकार भी देखा जा सकता है. हमारी समस्याओं के मूल में बेतहाशा बढ़ती आबादी है. यदि कोई व्यक्ति यह संकल्प करके अविवाहित रहने का फैसला करता है कि वह संतानें उत्पन्न न करके देश के लिए अन्न दान कर रहा है तो उसे महादानी होने का फल मिलना चाहिए. बहुत ही बढ़िया आलेख.

कुमार संतोष said...

बिलकुल सही कहा है , हर व्यक्तिबोध को ये पूरी स्वतंत्रता होनी चाहिए !
सुंदर आलेख !

आभार !

Anonymous said...

DIVYAJI SAADAR !
MAHENDRA VARMAJI KE COMENT'S ACHCHHE LAGE.
UDAY TAMHANEY.
BHOPAL.

Bikram said...

I beleive its a individual decision to live alone or get married .. got nothing ot do with anyone ..

Bikram's

Taarkeshwar Giri said...

yanha aake ye lag raha ki log shadi -shuda jindgi se kafi dukhi hain.

Atul Shrivastava said...

विवाह करने या अविवाहित रहने का फैसला किसी व्‍यक्ति का अपना व्‍यक्तिगत मामला होना चाहिए.... वह जो चाहे करे..... दोनो की स्थिति में समाज की....देश की सेवा की जा सकती है.....

सु-मन (Suman Kapoor) said...

ये लगा मेरे खुद के विचार आपने कह दिए ..बहुत बहुत शुक्रिया ...

Rohit Singh said...

बड़े दिन बाद आया..पर सार्थक पोस्ट लगी.....इन सवालों की बौछार मैं हर दिन झेलता हूं...पर हंस कर निकल लेता हूं....हालांकी आपके लेख में जिक्र हो रहा है उन लोगो का जिन लोगो ने अविवाहित रहने का निर्णय लिया है..पर मेरे जैसे कई लोग भी हैं जो अविवाहित हैं....कोई कारण नहीं होता अविवाहित रहने का..बस अविवाहित हैं...तो हैं...मगर मुशिकल ये है कि अगर हमारे जैसे लोग कहते हैं कि हम अविवाहित हैं तो लोग इसमें कुछ कारण ढूंढने लगते हैं....हइस बात पर हंसी भी आती है औऱ झल्लाहट भी होने लगती है कभी-कभी .... न ही मैं स्वामी विवेकानंद हूं, न ही नरेंद्र मोदी(जिन्होंने आरएसएस के प्रचारक के तौर पर विवाह नहीं किया). न ही स्वामी रामदेव, न ही अटल बिहारी वाजपेयी या अब्दुल कलाम....न ही किसी कैरियर बनाने के चक्कर में मैने अब तक विवाह नहीं किया है...न ही मैंने सोच कर ऐसा कोई फैसला लिया है...न ही दिल टूटने की कोई विंडबना मेरे अस्तित्व से बड़ी रही मेरे लिए...न ही अब तक अविवाहित रहना मेरे लिए किसी तरह से एकाकीपन के तौर पर सजा रहा है....मैं अकेला मस्त मलंग रहता हूं शायद ईश्वर प्रदत है..इसलिए अधिकतर इस तरह के निरथर्क सवाल मुझे तंग नहीं करते....कुछ हल्की चुभन होती भी है पर ज्यादा देर के लिए नहीं....अब ऐसे में सवाल ये है कि हमारे जैसे लोग अविवाहित क्यों हैं...इसका एक ही जवाब है कि बस हैं कोई कारण नहीं है इसके पीछे...बस अभी अविवाहित हैं क्योंकि शादी नहीं की है..बस औऱ कुछ नहीं...वैसे एक लंबी पोस्ट बनती है इस पर...पर जब ये सभी प्रश्न एक साथ असर करेंगे तब ही....

Vandana Ramasingh said...

कोई भी व्यक्तिगत निर्णय जो दूसरों के जीवन में बाधा न पहुंचाए ....सम्माननीय है

Rakesh Kumar said...

दिव्या जी, हमारे शास्त्रों में साधारण जनों के लिए जीवन को चार आश्रमों में रखने की व्यवस्था की गई है,ब्रहमचर्य,गृहस्थ,वानप्रस्थ व संन्यास.

परन्तु, असाधारण परिपक्व सुस्थिर जन इनमें गृहस्थ का उल्लंघन कर सकते हैं.जो यदि स्वयं को साध कर जीवन का सदुपयोग कर अपने जीवन को सफल बनाते हैं और समाज को भी दिशा प्रदान करते हैं,वे हमेशा ही सम्माननीय व आदरणीय होते है.

इसके विपरीत अपरिपक्व और अस्थिर जन यदि
ऐसा करें,तो परिणाम विपरीत होते हैं.
सादर

Gyan Darpan said...

यह नितांत व्यक्तिगत निर्णय है और इसका सम्मान करना चाहिए|

प्रेम सरोवर said...

आपके पोस्ट पर आना सार्थक होता है । मेरे नए पोस्ट "खुशवंत सिंह" पर आपका इंतजार रहेगा । धन्यवाद ।

देवेंद्र said...

यह तो व्यक्तिगत ही निर्णय होता है, और अपने निर्णय के कारण के प्रति स्पष्टता हो ते फिर किसी के कहने व दबाव देने से क्या फर्क पड़ता है। हाँ स्वयं का ही मन संशय व दुबिधा में हो तो और बात है।

प्रतुल वशिष्ठ said...

मनुष्य जीवन तीन ऋणों से बंधा है... जिसमें एक ऋण 'पितृ ऋण' है... प्रायः एक ब्रह्मचारी जब गृहस्थ आश्रम में प्रवेश लेता है तभी अमुक ऋण को पूरा कर पाता है... किन्तु नैष्ठिक ब्रह्मचारी इसे अपने व्रत के साथ भी पूरा कर सकता है...

किसी वीतरागी के लिए जरूरी नहीं की वह पितृ ऋण की पूर्ती के लिए औरस संतान से ही कर्तव्य निभाये....

संन्यासी स्वभाव के गुरुजन अपने शिष्यों और भक्तों के चरित्र निर्माण से ही अपने ऋण (कर्तव्य) चुकाते हैं.

एक और प्रकार का ऋण है ... 'प्रेरणा ऋण'... जिससे हमें मामूली सी भी प्रेरणा मिली हो उससे लाख कटुता होने पर भी उसके प्रति विनत भाव बना रहता है.... इस कारण ही हम आपके द्वार पर दस्तक दिया करते हैं... यह बात अलग है की कई बार भिक्षुक-स्वर को महत्व नहीं मिले... फिर भी याच्य-स्वर तो अपना कर्तव्य निभाता चलता है... इस बात से ही संतुष्ट हो जाते हैं.

Anavrit said...

आपके इस लेख को मै केवल एक good प्रयास के रुप मे देखता हू ।मैने कई टिप्पणिया देखी । । मै आपसे यह जानना चाह्ता हू कि आज का एक आम भारतीय नागरिक अपने बच्चो की इडुकेशन के लिये आखिरकर क्या करे ? कहा जाय ? बी.टॆक., एम.बी.ए. ,बी. डी. एस. , एम.सी ए. , एम. बी. बी. एस. ,ना करवाए तो क्या प्लेन बी.ए. ,बी.एस. सी. करवाकर बेरोजगारो की मुख्यधारा मे डाल कर रह जाय ? यदि विदयार्थी कमजोर नही है ,तन्त्र कि व्यवस्था कमजोर है, तो अभीभावक को क्या करना चाहिये ?
मै मानता हू कि यह एक लहर है, लेकिन बिना लहरो के कोइ समन्दर नही होता ।और लहरो के भय से क्या कोइ सागर मे ना जाए ? क्या यही आप देश के युवा वर्ग को अपने लेख मे बताना चाहते है ।फिर विकल्प भी सुझाए अन्यथा इसे मै क्या कहू । यह कैसा जनजागरण है ? लाखो लोगो के बच्चे हायर इडूकेशन से जुडॆ है ,उनकि भावनाओ ko bhi samjhana kya hamra dayitv nahi banata?









































\

Anavrit said...

दिव्या जी आपका यह लेख सार्थक है ,इसके लिये आपको मेरी ओर से धन्यवाद ,
इस भोगवादी समाज मे, ऎसे गूदडी के लाल ,या ललनाये विरले ही पाए जाते है, अत: उनका सम्मान अवश्य करना चाहिये ।विवेकानन्द, दयानन्द ,अन्नाहज़ारे, बाजपेयी साहब, इत्यादि लोगो ने समाज मे रह कर सामाजिक ,समस्याओ के सकारात्मक आयाम पाने के लिए अपनी समस्त उर्जा लगा दी । मानव जाति के उत्थान के लिये , साइन्स डॆवेलेवमेन्ट के रिसर्च के लिये जो अविवाहित रह्ते है , ऎसे लोग अवश्य ही सम्मान के पात्र है ।
परन्तु भारत मे भी , अब अमेरिकी सभ्यता के अनुकरण करने वाले कितने ऎसे आजाद ख्याल के नकाबपोश है ,जिनका मकसद केवल मस्ती करना ,आधुनिकता के नाम पर समाज मे नये विकार पॆदा करना है ।
दुसरा एक और वर्ग है ,जिसमे दायित्वो से जुझने की शक्ती ही नही है ।जिनका मकसद केवल धर्म के नाम पर अपनी दुकान्दारी चलाना हो, ऎसे लोग कि हमे पहचान रखनी चाहिये । दिनकर की याद आती है ।.........
क्षमा शोभती उस भुजन्ग को जिसके पास गरल हो ।
उसको क्या जो दन्तहीन ,विषहीन,वीनित ,सरल हो । ।

ZEAL said...

.

In reference to your first comment---

शिव जी , विद्यार्थियों के हितार्थ ही पिछला लेख लिखा था ! उनके खिलाफ नहीं ! शिक्षा में गुणवत्ता नहीं है तो व्यर्थ है ऐसी शिक्षा! विद्यार्थियों की खेप निकालते रहने से भला किसका हो रहा है ? डिग्री मिल जाए लेकिन नौकरी के अवसर तो सीमित हैं , फिर वे मारे-मारे फिरते हैं ! उनमें फ्रस्टेशन पैदा होता है ! अवसाद होता है और प्रोपर प्लेसमेंट के अभाव में निराशाग्रस्त होकर आत्महत्या भी बढ़ रही है ! योग्य से अधिक सपने देखते हैं फिर निराश होते हैं ! इस भीड़ के` बीच अच्छे और दिसर्विंग विद्यार्थी भी सब धान २२ पसेरी की तरह पिसते रहते हैं !

इन विद्यार्थियों को पहले एडमिशन तो दे देते हैं , पैसा वसूल लेते हैं , फिर इनके अयोग्य होने की स्थिति में इनका बैक पर बैक लगाते जाते हैं ! बड़ी मुश्किल से जब ये डिग्री प्राप्त करते हैं तो इनके लिए नौकरी के अवसर बहुत कम है! सरकार या तो नौकरियां ज्यादा पैदा करे ताकि ये पढ़े-लिखे बेरोजगार इधर-उधर न भटकें , अन्यथा पंजीरी की तरह डिग्रियां न बांटें , क्योंकि इससे एक बहुत बड़ा असंतुलन पैदा हो रहा है समाज में !

.

aarkay said...

व्यक्ति को विवाह करने अथवा अविवाहित रह कर एकाकी जीवन व्यतीत करने का निर्णय लेने का अधिकार तो होना ही चाहिए. यों धर्म शास्त्रों में विवाह को सोलह संस्कारों में एक माना गया है तथा संतानोत्पत्ति को पितरी ऋण से मुक्त होने का उपाय . परन्तु धरम की आड़ में वैय्यक्तिक स्वतंत्रता का बलिदान कदापि नहीं होना चाहिए . अविवाहितों को समाज में हेय दृष्टि से नहीं देखा जाना चाहिए और न ही उनकी नीयत पर संदेह किया जाना चाहिए !

dinesh aggarwal said...

परम उद्देश्य के लिये आजीवन अविवाहित रहने
वाला व्यक्ति उस बुलंदी को छू लेता है, सौ
व्यक्ति मिलकर भी ऐसा सोच भी नहीं सकते।
इतिहास में उदाहरण भरे पड़े हैं। यह सब वर्तमान
में भी नजर आ जायगा। डॉ. अब्दुल कलाम,
अटल जी, मायावती जी. जयललिता जी आदि
अनेकों ऐसे उदाहरण हैं।

सुरेन्द्र सिंह " झंझट " said...

बिलकुल सही बात कही है आपने | अविवाहित रहने की इच्छा रखनेवाले लोगों को सम्मान जरूर मिलना चाहिए |

सुरेन्द्र सिंह " झंझट " said...

बिलकुल सही बात कही है आपने | अविवाहित रहने की इच्छा रखनेवाले लोगों को सम्मान जरूर मिलना चाहिए |

Unknown said...

अविवाहित होना समाज की नज़रो में बुरा है लेकिन मैं बुरा बनना चाहता हूँ।

Unknown said...

अविवाहित होना समाज की नज़रो में बुरा है लेकिन मैं बुरा बनना चाहता हूँ।

Anurag Dubey (अन्नू) said...

अपनी भी यही व्यथा है,
पर अब 51 पार अकेलापन तो महसूस होने लगा है, सांसारिक मोह माया से विरक्त भी स्पष्ट महसूस होने लगी है
अनुराग दुबे
सागर (MP)

Unknown said...

Mai is janm me too door agle 7 janm tak Shashi nhi karunga samaj sala kuch bhi khe I don't care

Unknown said...

Sadi q nahi kiya in sawalo ka hamesha samna karna padta hai Main sadi nahi karne chahta is faisle ko sabhi galat batate hain

Unknown said...

मेरी आयु अभी 28 वषॆ है मैने भी निर्णय लिया है कि मैं अविवाहित रहूँगा
मुझे ये लेख पढकर अच्छा लगा
और भविष्य के लिए प्ररेणा मिला धन्यवाद ।

Shubham said...
This comment has been removed by the author.
Shubham said...
This comment has been removed by the author.
Shubham said...
This comment has been removed by the author.
Shubham said...
This comment has been removed by the author.
Anonymous said...

श्रीमान विवेकानंद जी ने शादी नहीं की थी बल्कि रामकृष्ण परमहंस ने अपनी पत्नी को मां कहा था