Friday, December 9, 2011

आप लोगों को गुस्सा नहीं आता क्या ?

आज प्रातः समाज सेवकों के एक समूह से बात हुयी! वे लोग जाड़े की रातों में अपनी नींद त्यागकर गावों की तरफ निकल पड़ते हैं ! भोर होते ही प्रातः काल बड़ी संख्या में ग्रामीडों एवं किसानों को एकत्र करके उन्हें योगासन कराते हैं , उन्हें फसल उगाने की सही तकनीक से अवगत कराते हैं, खाद कैसे बनानी है और अन्य जानकारियाँ विस्तार से देते हैं ! खेती छोड़कर अन्य कामों की तरफ न भागें इस बात के लिए भी उनका मागदर्शन करते हैं ! किसानों की समस्याओं का हल बताते हैं , उनके हर प्रश्न का जवाब देते हैं , उनकी जिज्ञासाओं का समाधान बताते हैं! गावों की कच्ची सड़कों पर जाड़े की सर्द सुबहों में सफ़र भी कुछ आसान नहीं होता ,लेकिन ये जांबाज सेनानी डटे हुए हैं , निष्ठा के साथ अपने कर्तव्य पथ पर! इस कार्य को ये सेनानी निस्वार्थ रूप से देश और जनता की भलाई के लिए कर रहे हैं ! ये समूह तो गुमनाम ही है ! इनके योगदान न कहीं दिखाया जाता है , न हो कोई जानता है! मिडिया में तो बड़े लोगों के सपूतों को स्वर्णाक्षरों और स्वर्णचित्रों में दिखाया जाता है ! ये अमीर युवराज आखिर करते क्या है ग्रामीण जनता के लिए ? ...बस उनसे पूछते हैं - " आप लोगों को गुस्सा नहीं आता क्या? " ...और फिर चल देते हैं अपने महल की ओर , किसी दलित के घर की रोटी तोड़ने के बाद !

मन में अनायास ही एक प्रश्न आया की यदि निस्वार्थ कर्म करने वाले ये लोग हैं जो की अपने नियमित कामों और नौकरियों के साथ-साथ सर्द रातों में भी गरीबों की भलाई में तत्पर हैं , जो की सरकार को करना चाहिए या फिर पैसा लूटने वाले संगठनों करना चाहिए ! ...तो फिर सरकार किसलिए है ? व्यवस्थाएं किसलिए हैं ?

करे कोई और , मरे कोई और ? और सत्ता में होने का ऐश करे कोई और ? वाह !

खैर ...७० वर्षीय कर्नल साहब , श्रीमती सुनंदा जी, एवं हमारे युवा जो इन महान कार्यों में तत्पर हैं , उन्हें मेरा नमन एवं अभिनन्दन !

Zeal

29 comments:

चन्द्र भूषण मिश्र ‘ग़ाफ़िल’ said...

आता है जी! आता है ‘गुस्सा’

Rajesh Kumari said...

bahut sarahniye kaarya hai unhe mera bhi naman.vaastav me humaare desh me kisaanon ko agar sahi takneeki jaankari kheti ke vishya me di jaaye to desh ka naksha kuch aur hi ho.

अनुपमा पाठक said...

नमन और अभिनन्दन निस्वार्थ सेवियों को और इस बात को प्रकाश में लाने के लिए आपका आभार! सत्ताधारी अगर इन सेवाओं का अर्थ समझ पाते तो हमारे समाज की दिशा ही कुछ और होती...! समाज तमाम विरोधाभासों के बावजूद जिंदा है तो ऐसे ही मुट्ठी भर निस्वार्थ सेवियों के दम पर! समय जब इतिहास लिखता है तो ऐसे अनाम सितारे अवश्य रौशन होते हैं... काश यह आकलन समय रहते सत्ताधीश भी कर पाते!

दिवस said...

दिव्या दीदी
बहुत अच्छा लगा आपकी यह पोस्ट पढ़कर|
सरकार से तो इस प्रकार के कार्यों की अपेक्षा रखना ही व्यर्थ है| ऐसे में ऐसे देशभक्त ही देश व समाज के प्रति अपना कर्त्तव्य निभाते हैं| इन्हें वैभव की भी कोई लालसा नहीं होती|
बिलकुल निस्वार्थ भाव से अपने दम पर काम करने वाले इन महानुभावों को श्रद्धा से नमन करता हूँ| जब तक ऐसे लोग हमारे देश में हैं, सरकार लाख प्रयास करले हमारे देश के आधार, जीवन मूल्य व संस्कृति को मिटा नहीं सकती|
किसान तो इस देश की अर्थव्यवस्था का आधार है| अत: किसानों की सहायतार्थ सर्दी की इन रातों में अपना सुख-चैन त्यागने वाले आदरणीय कर्नल साहब व सुनंदा जी को शत शत नमन|

साथ ही आपको भी नमन जो आपने इन हस्तियों से हमको मिलवाया| ऐसे लोगों को मीडिया में तो स्थान मिल नहीं सकता, किन्तु आपके द्वारा इनका उल्लेख आपके लिए मन में सम्मान को और भी अधिक बढाता है|

JC said...

शिव ने भी सती की मृत्यु पर गुस्सा कर तांडव नृत्य किया था... किन्तु पृथ्वी के टूटने के भय से विष्णु ने उनके कंधे पर रखे सती के मृत शरीर को ५१ भागों में काट उनका गुस्सा पीने पर विवश किया... और कालान्तर में अमृत दायिनी माता पार्वती के साथ विवाह करा, उन्हें देवताओं के हित में विष-पान की शक्ति दे, अन्य देवताओं को भी अमृत बना, धरा (वसुधा) पर विभिन्न साकार जीवों (वसुधा के ही परिवार के सदस्यों) आदि को काल-चक्र में डाल, पशु जगत की सर्वश्रेष्ट कृति मानव को रामलीला, कृष्ण लीला आदि का आनंद उठाने का अवसर दिया...

गुस्सा सभी को आता है, पर 'हिन्दू' को पीना पड़ सकता है - जब, और यदि, गुरु लोगों की गीता की सीख का ध्यान आजाये - कि काम, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार नरक के द्वार हैं, और यदि किसी व्यक्ति ने गीता से यह भी जान लिया हो कि मानव का कर्तव्य केवल निराकार ब्रह्म को और उसके साकार रूपों को जानना मात्र है...

कुमार संतोष said...

Bilkul sahi kaha kaha hai aapne.
Magar sach hai gussa to aata hai .

Rajendra Swarnkar : राजेन्द्र स्वर्णकार said...






दिव्या जी
सादर वंदे मातरम् !

प्रथमतः
निस्वार्थ रूप से देश और जनता के लिए भलाई के कार्य करने वाले हर राष्ट्रभक्त को मेरा सलाम !

रही बात गुस्से की …
हुंहऽऽ… देश के हालात को ईमानदारी से देखने-समझने वाले आम भारतीय को गुस्से के सिवा और क्या आएगा … क्योंकि सिर्फ़ अपनी बेबसी पर हंसने के रास्ते तो खुले हैं … बाकी बंद !

मेरी एक ग़ज़ल के दो शे'र आपके लिए , आपके पाठकों के लिए …
हाथ मारें , और… हवा के नश्तरों को नोचलें
जो नज़र में चुभ रहे , उन नश्तरों को नोचलें

छोड़ कर इंसानियत शैतां कभी बन जाइए
बरगलाते हैं जो ; ऐसे रहबरों को नोचलें




मंगलकामनाओं सहित…
- राजेन्द्र स्वर्णकार

ZEAL said...

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डॉ. नूतन डिमरी गैरोला- नीति has left a new comment on your post "आप लोगों को गुस्सा नहीं आता क्या ?":

sahi kaha ..karne vale kaa naam to kisi ko pataa hee nahi hota ..media me chamakdamak kisi aur kee hoti hai..

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सदा said...

आपकी कलम से आज इनके बारे में जाना ... आभार सहित शुभकामनाएं ।

चंद्रमौलेश्वर प्रसाद said...

सोचना यह है कि क्या हम केवल सरकार और संघटनों पर ही निर्भर रहें या ऐसी संस्थानों का भी निर्माण करें जो समाज की सहायता करे॥

ZEAL said...

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Mahendra Verma ji's comment--

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निस्स्वार्थ भाव से जनसेवा करने वाले ऐसे ही लोगों के कारण यह देश भारत
कहलाने का गौरव हासिल करता है। मैं कामना करता हूं कि ईश्वर इनके नेक
कार्यों में सदैव सहायक हों।
अनुकरण के लिए प्रेरित करती बहुत अच्छी प्रस्तुति।

Mahendra

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राज भाटिय़ा said...

बहुत गुस्सा आता हे, उन हरामियो पर जो देश को लूटते हे, ओर इन नोजवाओ के प्रति मन मे सम्मान जगता हे जो निस्स्वार्थ भाव से जनसेवा करते हे, मै भी यह सब करना चहाता हुं,अगर सेहत ने साथ दिया तो कभी यह सपना भी पुरा होगा, आज इन जैसे युवाओ को जो निस्स्वार्थ भाव से जनसेवा करते हे राजनीति मे आना चहिये ओर वहां की गंदगी को यही नोजवान साफ़ कर सकते हे...

भारतीय नागरिक - Indian Citizen said...

poori vyavastha me aamool-chool badlav ho tabhi tasveer badlegi...

रविकर said...

बहुत खूबसूरत प्रस्तुति |
बधाई स्वीकारें ||

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

गुस्सा तो आता है मगर कर ही क्या सकते हैं!
हमने ही तो उन्हें भारत-भाग्य-विधाता बनाया है!

Kunwar Kusumesh said...

ऐसे अच्छे समाज सेवकों के प्रति नतमस्तक होना चाहिए.

धीरेन्द्र सिंह भदौरिया said...

देश में हो रहे कारगुजारियों को देख कर गुस्सा आता है
अच्छे विषय पर सुंदर आलेख,...उम्दा पोस्ट,...

Atul Shrivastava said...

सलाम कर्नल साहब और उनकी टीम को......
और गुस्‍सा.... भरपूर आता है......

Atul Shrivastava said...

आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा आज के चर्चा मंच पर भी की गई है। चर्चा में शामिल होकर इसमें शामिल पोस्ट पर नजर डालें और इस मंच को समृद्ध बनाएं.... आपकी एक टिप्पणी मंच में शामिल पोस्ट्स को आकर्षण प्रदान करेगी......

Dr.NISHA MAHARANA said...

कथनी और करनी में बहुत अंतर होता है दिव्या जी। अच्छी प्रस्तुति लगी।

tips hindi me said...

अच्छे विषय को चुनकर व उन अनाम के नाम प्रस्तुत करके और लोगो को प्रेरित करने के लिए धन्यवाद | आपकी इस पोस्ट से प्रेरित हो कर यदि एक भी व्यक्ति इस तरह के विचारों पर अमल कर पाया तो ये एक उपलब्धि होगी आपकी पोस्ट की सार्थकता के लिए |

टिप्स हिंदी में

Rakesh Kumar said...

अमीर युवराज को आजकल बहुत गुस्सा आ रहा है
कह रहें हैं जैसे मैं जनता के बीच जाता हूँ आप क्यूँ कुछ
नही कर रहे. पार्टी नेताओं के उनके गुस्से से
सुना पसीने छूट रहें हैं.

सुन्दर सार्थक विचारणीय प्रस्तुति.

कविता रावत said...

amir aur gareeb ke gusse mein jo antar dikhta hai wah kam chintajanak nahi...
jo log niswarth jansewa mein lage rahte hai we hi sachhe samajsewak hote hai.. der sabre we hi log samaj mein samman ke patra hote hai...
saarthak aur chitansheel prastuti hetu aabhar..

Maheshwari kaneri said...

गुस्सा करके भी क्या होगा..? हमेंअपने ठंग से कोई ठोस कार्य करना होगा..दिव्या जी..

मदन शर्मा said...

हमारे नेताओं तथा युवा पीढ़ी को ऐसे लोगों से सबक लेना चाहिए!! धन्य हैं ऐसे लोग इनकी वजह से ही आज भी इंसानियत ज़िंदा है !! आपका बहुत धन्यवाद दिव्या जी ऐसे लोगों को प्रकाश में लाने के लिए !!!

mridula pradhan said...

achcha laga ye post.....

Monika Jain said...

jin logo ko peso pe ash karna hota hai vahi jyadatar rajneeti me pravesh krte hai. sachche sevak bina kisi power ke apna kary krte hai.
aapka mere blog par swagat hai.

aarkay said...

जी हाँ ! गुस्सा आता है दिव्या जी , उतना ही जितना अल्बर्ट पिंटो को ! आक्रोश इस बात का भी है कि आशा की कोई किरण नज़र नहीं आती . सभी रोटियां सेंकने में लगे हुए हैं. लालबहादुर शास्त्री जी के बाद राजनीतिक पटल पर भी लगभग शून्य की स्थिति है ! कर्नल साहिब और सुनंदा जैसे कर्मशील व्यक्ति अपना कर्त्तव्य निभा रहे हैं. उनकी जितनी भी प्रशंसा की जाये कम है !

aarkay said...

जी हाँ ! गुस्सा आता है दिव्या जी , उतना ही जितना अल्बर्ट पिंटो को ! आक्रोश इस बात का भी है कि आशा की कोई किरण नज़र नहीं आती . सभी रोटियां सेंकने में लगे हुए हैं. लालबहादुर शास्त्री जी के बाद राजनीतिक पटल पर भी लगभग शून्य की स्थिति है ! कर्नल साहिब और सुनंदा जैसे कर्मशील व्यक्ति अपना कर्त्तव्य निभा रहे हैं. उनकी जितनी भी प्रशंसा की जाये कम है !