Wednesday, January 4, 2012

चोरी, ऊपर से सीनाजोरी ? -- कुछ शर्म कीजिये

आयुर्वेद कितना पुराना है , ये अमरीका और ब्रिटेन को भले ही पता हो लेकिन समस्त भारतवासी ये जानते हैं की आयुर्वेद , अथर्ववेद का एक उपवेद है जो सृष्टि की उत्पत्ति के समय ब्रम्हा जी के मुख से निकला है ! समुद्र मंथन के दौरान निकले रत्नों में से निकले धन्वन्तरी , जिनके नाम पर हम 'धनतेरस' मनाते हैं , को "Father of medicine" कहा गया है , तथा आचार्य सुश्रुत को "Father of surgery" कहा गया है !

सदियों पूर्व लिखे गए ग्रंथों के पृष्ठ यदि पलटें जाएँ , तो आसानी से देखा जा सकता है उस समय की चिकित्सा एवं शल्य-क्रिया कितनी उन्नत अवस्था में थी ! लेकिन अफ़सोस है कि भारत एक 'ब्लैक-एज' के दौर से गुजरा है , जिस दौरान भारत कि धरोहर, अनेक ग्रंथों को चोरी कर लिया गया और अनेक ग्रंथों को नष्ट कर दिया गया ! ये अमेरिका और ब्रिटेनवासी तो पक्के चोर हैं इन्होने हमारे ग्रंथों को चुराया फिर उसमें लिखित एवं वर्णित बातों को अपने नाम से पेटेंट करते हैं!

सन २००१ में अमेरिका ने हमारी हल्दी और नीम को अपनी खोज बताकर उसे अपने नाम से पेटेंट करा लिया और हम देखते रह गए ! हमारे आयुर्वेद में शताब्दियों पूर्व लिखे गए ग्रंथों में ही इनका उल्लेख हो चुका है ! ये उन्नीसवी शताब्दी में पैदा हुए एलोपैथ तो सिर्फ चोरी ही कर सकते हैं ! नया क्या करेंगे !

सन २००७ में चाइना ने दावा किया कि उसने 'एवियन-फ्लू' का इलाज 'कालमेघ' नामक औषधि द्वारा ढूंढ लिया है ! हमारे "AYUSH" [Department of Ayurveda, Yoga and naturopathy, unani, siddha and homeopathy ] विभाग ने अपने ग्रंथों का विवरण देकर, जिसमें कालमेघ आदि का सम्पूर्ण विवरण है , सन २०१० में चाइना से ये केस जीता और उसका पेटेंट वापस लिया !

आज के ताजा समाचार के अनुसार , ब्रिटेन ने दावा किया है कि 'अदरख' और 'कुटकी' द्वारा जुखाम (नजला, cold) का सफल इलाज इन्होने ढूंढ लिया है , और पेटेंट का दावा ठोंक दिया ! एक बार फिर 'AYUSH ', ने अपने पुराने ग्रंथों में वर्णित इन सभी औषधीय 'द्रव्यों' को प्रस्तुत करके ब्रिटेन के दावे को ख़ारिज किया !

ये विदेशी क्या जानें कि आज का AIDS, SARS और conjunctivitis जैसी अनेक व्याधियां तो सदियों पूर्व ही हमारे ग्रंथों में उल्लिखित हैं

धन्य हैं ये चोर देश जो हमारे देश से ग्रन्थ चोरी करके उसका अनुवाद करने के बाद उसे अपने नाम से पेटेंट कराते हैं। और शर्म आती है अपने ही देश के उन लोगों पर जो अपनी इस मूल्यवान धरोहर का सम्मान नहीं करते ! हमारी धरती वीरों और विद्वानों कि धरती रही है ! गणित से लेकर चिकित्सा तक , सभी विषयों पर मूल्यवान ग्रंथों कि रचना हमारे ऋषि और मनीषी पहले ही कर गए हैं ! ज़रुरत है तो स्वयं में स्वाभिमान पैदा करने कि और अपनी इस अनमोल धरोहर को सुरक्षित करने कि , ताकि ये विदेशी हमारी ओर अपनी गिद्ध दृष्टि कर सकें !

आइये एकजुट हो जाएँ और अपनी इस गौरवशाली सम्पदा कि रक्षा करें !

Zeal

62 comments:

प्रवीण पाण्डेय said...

जब संस्कृति के रक्षक ही न हों तो लूट मचेगी ही।

kshama said...

Is sampdakee raksha karna waqayee bahut zarooree hai!

Unknown said...

बिलकुल सही और सटीक कहा आपने. सदियों से विस्व भर के लोग भारतवर्ष से सम्पदाएँ चुराते रहे और अपनी कहते रहे और हम रह गए सिर्फ भूंखे और नंगे यदि कोई उपाधि मिली तो सपेरों और जादू टोने का देश होने की. जरूरत है व्यापकता के साथ भारतीयता को समुचित सम्मान दिलाया जाये और ये मुश्किल काम नहीं बस एक जुट होने की बात है और बात विश्व समुदाय को ताकत दिखाने की है.

Rakesh Kumar said...

बेहद शोचनीय स्थिति है.
कारण हम खुद ही अपनी सम्पदा को
नही पहचानेगें तो दूसरे इसका लाभ उठायेंगें ही.

आपका सुन्दर लेख आँखें खोलता है.

चंद्रमौलेश्वर प्रसाद said...

शोध एक निरंतर चलने वाली प्रक्रिया है जिसकी पहली सीढी पिछला ज्ञान ही होता है। यद इस देश की बदनसीबी ही है कि हम ने अपने धरोहर को सम्भाल कर नहीं रखा और अन्य लोग उसका लाभ उठा रहे हैं। आज भी हमारे ग्रंथों में शोध के लिए सामग्री भरी पडी है और हम उसके प्रति उदासीन हैं।

अरुण कुमार निगम (mitanigoth2.blogspot.com) said...

स्वाभिमान जगाता बढ़िया आलेख.जरूरी यह भी है कि अपनी धरोहर के मोल को जाने, अपने पूर्वजों के ज्ञान को माने.

Kajal Kumar's Cartoons काजल कुमार के कार्टून said...

डाकुओं के इलाक़े में आंखे बंद किये परम आनंद पीने की बात ही कुछ और है...

मनोज कुमार said...

आपकी आह्वान पर गंभीरता से विचार करने की आवश्यकता है। हम तो इसमें अपना मत शामिल करते हैं।

udaya veer singh said...

very-2 appreciable work ,its very shameful, who ignore the ayurved or indigenous exploration , thanks ji
heartily Congratulation on eve of GURU-PARV .

दिलीप said...

baat to tab hogi jab ek din hamari sanskriti patent ho jaayegi..aur ham bas dekhte rahenge..pata nahin dekhenge bhi ya nahin...

Bikramjit Singh Mann said...

jisne ki sharam uske foot karam

aajkal issi ka zamanaa hai

Bikram's

P.N. Subramanian said...

बहुत सार्थक बातें हैं. विश्व भर में जहाँ जहाँ भी हमारे प्राकृतिक उत्पाद को अपना बताकर कॉपी राईट करने की कुचेष्टा को समय रहते विफल करना ही होगा.

धीरेन्द्र सिंह भदौरिया said...

पुरानी संपदा धरोहर को बचाना हमारा कर्तव्य ही नही
फ़र्ज़ है,
"काव्यान्जलि":

डॉ.मीनाक्षी स्वामी Meenakshi Swami said...

आपके विचारों से पूर्णतया सहमत हूं। हमारे मनीषियों की खोजें जब विदेशी अपनी बताते हैं तो बहुत दुख होता है। जरुरत है कि हम अपने गौरवशाली अतीत के स्वर्णि पृष्ठों को सहेजें।
शुभकामनाएं।

दिवस said...

ये गोरी चमड़ी हमेशा चोरों की निशानी रही है| पूरी दुनिया में इन चोरों ने इतनी चोरियां कीं है और अब स्वयं को सभ्य बता रहे हैं| हकीकत तो ये है कि ये लोग आज भी चोर हैं| हमारी वर्षों पुरानी शिक्षा व ज्ञान को ये चोर खुद के नाम से बेच रहे हैं| जब इनके बाप-दादा जंगलियों की तरह अपना जीवन बिता रहे तब यहाँ ज्ञान का अथाह सागर था| इनके पास गिने-चुने प्राकृतिक संसाधन हैं, उनसे केवल कुछ जहरीली एलोपैथिक दवाइयां ही बन सकती थीं| किन्तु हमारे पास तो प्रकृति प्रदत्त अद्भुद व अथाह सम्पदा हमेशा से मौजूद रही है व आज भी है और हमेशा रहेगी|
आयर्वेद न केवल एक चिकित्सा शास्त्र है अपितु जीवन शास्त्र है| जीवन कैसे जीना चाहिए, कैसी दिनचर्या अपनानी चाहिए यह आयुर्वेद बताता है|
यूनानी चिकित्सा पद्धति केवल एक बीमारी पर वार करती है| शरीर में कोई बीमारी है तो एक ऐसा तत्व दिया जाएगा जो उस बीमारी से लड़ने का प्रयास करेगा किन्तु साथ ही साथ अपने अन्य विपरीत असर भी दिखाएगा| जो हानिकारक हो सकते हैं| किन्तु आयुर्वेद में शरीर को इस काबिल बनाया जाता है कि वह स्वयं उस बीमारी से लड़े| जिसका कोई विपरीत प्रभाव शरीर पर नहीं होगा|
आयुर्वेद तो कहता है कि बीमार ही मत पड़ो|
हमारे आज के कथित आधुनिक लोग भी तभी आयुर्वेद की सार्थकता को मानते हैं जब यह अमरीका रिटर्न हो जाता है| अब हल्दी के साथ साथ अदरक व कुटकी का इस्तेमाल ज़रूर होगा क्योंकि अमरीका ने कह दिया|
यह भी एक प्रकार की गुलामी है, मानसिक गुलामी|
आपकी पोस्ट पढ़कर बहुत ख़ुशी हुई| सार्थकता के पैमाने पर शीर्षक बिलकुल सटीक बैठता है, "चोरी, ऊपर से सीनाजोरी" वाह...

Ramakant Singh said...

chori inka bahut purana dharam hai
jagdish chandra basu ji ke mool koj ko markoni ne apane nam darj karwaya hai.chintniy hai .

Atul Shrivastava said...

बढिया और प्रेरक लेख।

Ramakant Singh said...

chintniya wishay par sarthak lekh dhanywad

Ramakant Singh said...

chintniya wishay par sarthak lekh dhanywad

Ramakant Singh said...

sargarbhit lekh

राज भाटिय़ा said...

जब तक हम इन गोरो की चाप्लुसी करते रहेगे तब तक ऎसा ही होता रहेगा,हर बात पर हम इन गोरो की नकल करते हे, इन की भाषा बोलते हे,इन के जेसे कपडे कपडे पहनते हे, अपनी भाषा, अपने लोगो को इन गोरो के समाने तुच्छ समझते हे ओर यह हमारी इन्ही कमजोरियो का लाभ उठाते हे, वैसे मैने कम से कम द्स जर्मनो को पिछले २० सालो से अदरख की चाय का चस्का लगा दिया हे, ओर उन्हे इस आदरख के गुण भी बता दिये हे

चन्द्र भूषण मिश्र ‘ग़ाफ़िल’ said...

सराहनीय प्रस्तुति

जीवन के विभिन्न सरोकारों से जुड़ा नया ब्लॉग 'बेसुरम' और उसकी प्रथम पोस्ट 'दलितों की बारी कब आएगी राहुल ...' आपके स्वागत के लिए उत्सुक है। कृपा पूर्वक पधार कर उत्साह-वर्द्धन करें

Arun sathi said...

दिव्या जी भारत की यही तो विशेषता है कि इसके पास इतनी पौराणिक संपदा है जिसको अर्जित करते करते इन चोरों का युग वित जाए पर यह बहुत दुखद है इसके लिए सरकार को पहल करनी चाहिए।

Rajesh Kumari said...

sachet karne vaala aalekh apni sanskrati apne poorvajon ke shodh kaarya ki hume raksha karni chahiye aur samay samay par ese hi inko muh tod jabaab dena chahiye.najle jukam ka ilaaj dhoond rahe hain inko koi kahe ki canser aur aid jaisi ghaatak bimaariyon ka ilaaj dhoond kar bataayen duniya ko.ramdev ji ke aashram me kyun itne videshi aate hain agar ye sab gyaan unke paas hai to.humaari adrak ki chaay aur tajmahal tea chuski le le kar peete hain un logon ke yahan ki to chaay bhi gale ke andar nahi jaati.any way aapka aalekh vicharniye hai.

पद्म सिंह said...

जब संस्कृति के रक्षक ही न हों तो लूट मचेगी ही।... बक़ौल प्रवीण पाण्डेय

भारतीय नागरिक - Indian Citizen said...

हमारी संस्कृति, इतिहास और धरोहरों को लेकर कोई गंभीर नहीं है. सब कुछ लुटाकर भी होश में नहीं आये हम.

श्याम जुनेजा said...

शर्म का पेटेंट हमने जो करा रखा है ...वे बेचारे कैसे करें !

Homeopathy and Social Responsibility said...

भ्रष्टाचार को खत्म होने से रोकने के लिए जो सरकार प्रयास कर रही है उसके रहते ये ही होना है ,जब की सरकार को तो भ्रष्टाचार खत्म करना चाहिए ,इसी की बुंदिया विदेशी लूट रहे है

Homeopathy and Social Responsibility said...

भ्रष्ट हो जहा की सरकार ,बाहर वाले करते है अधिकार

Anil Arora said...

Hume to Apno Ne Loota...Gairon Mein Kahan Dum Tha...........Ab to Bahut hain , Tab to Ek bhi JAICHAND Kam Tha???????

पूर्णिमा वर्मन said...

दिव्या जी, आप जिस जोश के साथ भारतीयता का सिर उठाने में लगी हैं उसको मेरा सादर नमन। यह काम जारी रहे ताकि हम सब अपने देश और संस्कृति पर गर्व कर सकें।

सदा said...

बिल्‍कुल सही कहा है ... आपकी यह पोस्‍ट बेहद सराहनीय है ..सार्थक व सटीक प्रस्‍तुति के लिये आभार ।

अनुपमा पाठक said...

बेहद सटीक और सुन्दर!
जय हिंद!

Seema Sharma said...

Ham khali yahi kahte rahte he ki jo hamare pas sadiyo pahle se he vo aap ko aaj malum ho rahahe jab tak in chijo ka Vyavsayik upyog nahi hoga tabtak is poranik darohar ki rakha ke se ho sakti he hame in sab ke utpad banakar unka prachar kar vyavsayikar kar ke hi he apni is purani darohar ko bacha sakte he nahi to ye grath matra poranid darohar bankar hi rah jaye gi jis prakar hamare Baba Ramdevji ne Utpadan to banaye par unka prayapt vyavsayi pracha prasar karna bhi jaruri he

vidha said...

धरोहरों की सुरक्षा और विकास के लिए जागरूक होना ही होगा. जागरूक करता आलेख.

प्रतुल वशिष्ठ said...

आपके विचार राष्ट्रीयता से ओतप्रोत हैं..... और राष्ट्रीय धरोहर के प्रति अगाध प्रेम को दर्शाता है....
चोरी, मक्कारी और झूठे दावों की पोल भी खोल कर रख देते हैं... आप.

लेकिन फिर भी कभी-कभी मन में एक अन्य विचार भी आता है.... जिस कारण पूरे विश्व को एक छत तले पाता हूँ.
"जब भारत देश में वैदिक ज्ञान अपने उत्कर्ष पर था... तब क्या केवल भारतवर्ष [आर्यभूमि] पर ही विद्वान् उपस्थित थे....या फिर पूरे विश्व में रहे होंगे?
— 'हरिवर्ष [बैकुंठ, वर्तमान ब्रिटेन] अथवा
— शबरी प्रदेश [वर्तमान साइबेरिया],
— भल्लूक जाति के [बलूचिस्तान], जामवंतजी (Afgani) विद्वान् थे... जो निःयुद्ध (कुश्ती) के बड़े जानकार थे.
— वानर जाति के योरोपियन ... बाली, सुग्रीव, हनुमान न केवल बाहुबल में सर्वश्रेष्ठ थे अपितु बुद्धिबल में भी उनका कोई सानी नहीं था.... नल और नील (England) अपने समय के श्रेष्ठ इंजीनियर थे.
.... इस तरह के तमाम उदाहरण हैं... जो हमारे विश्व की धरोहर हैं लेकिन इन सभी को हम अपने देश तक सीमित कर लेना चाहते हैं.....

लेकिन यहाँ आप जिस कुटिल नियत को इंगित कर रहे हैं... वह बेहद शर्मनाक है... जिसपर जगतीभर का अधिकार हो उस विद्या को अपनी खोज बताकर उसका पेटेंट लेने का खेल खेलना मानसिकता का छिछलापन है, घटियापना है....
... आपके जागृति मिशन को साधुवाद.

दिलबागसिंह विर्क said...

आपकी पोस्ट आज के चर्चा मंच पर प्रस्तुत की गई है
कृपया पधारें
चर्चा मंच-749:चर्चाकार-दिलबाग विर्क

धीरेन्द्र सिंह भदौरिया said...

पुरानी सम्पदा हमारी धरोहर है उसे हर हाल में सुरक्षित रखना हमारा कर्तव्य है

नई रचना --जिन्दगीं--

Man said...

वन्देमातरम दीदी ,
विडम्बना और कंही नही विडम्बना यंही हे @मेकाले की शिक्षा के प्रभाव से उसे तब ही सच मना जाता हे जब उस पर पश्चिम की सील लगे और उसे इन देशो में मान्यता मिले

Unknown said...

sharm ?
chhodo yaar..
sharm hi hoti toh
ye chori karte hi kyon ?

sharm aur chori me
36 ka aankda hai ji zeal ji !

प्रतिभा सक्सेना said...

अपनी धरोहर के प्रति उदासीनता के कारण ही इस प्रकार के बहुत से महत्वपूर्ण और उपयोगी इलाज जो हमारी वन-संपदा पर आधारित और अति सुगम हैं विस्मृत होते जा रहे हैं ,उन्हें भी खोजने और संकलित करने की आवश्यकता है .

राजा कुमारेन्द्र सिंह सेंगर said...

समस्या तो यही है कि कब होंगे एकजुट???

जय हिन्द, जय बुन्देलखण्ड

Unknown said...

आपने एक जाग्रतिप्रेरक विषय उठाया है, हमारी धरोहर की रक्षा अब अनिवार्य है।


निरामिष शाकाहार प्रहेलिका 2012

महेन्‍द्र वर्मा said...

आयुर्वेद प्राचीन भारत की समृद्ध वैज्ञानिक धरोहर है। प्लास्टिक सर्जरी भी भारत की ही देन है।
औषधिशास्त्र और शल्यचिकित्सा के अतिरिक्त प्लास्टिक सर्जरी अर्थात अंगसंधान भी यूरोपीय देशों ने भारत से ही सीखीं। सुश्रुत ने नाक , कान आदि की प्लास्टिक सर्जरी का विस्तृत वर्णन सुश्रुत संहिता में किया है।
पश्चिमी देशों के तथाकथित वैज्ञानिकों ने न केवल चिकित्सा शास्त्र बल्कि रसायन विज्ञान, भौतिक विज्ञान, वनस्पतिशास्त्र, गणित आदि विषयों के बहुत से महत्वपूर्ण तथ्यों और सिद्धांतों की चोरी की है।

आपका लेखन केवल स्वांतः सुखाय नहीं बल्कि देशहित और जनहित से संबंधित मुद्दों पर केंद्रित होता है। इसकी आवश्यकता भी है।

dinesh aggarwal said...

आपने चिंतनीय विषय पर एक अच्छा आलेख
लिखकर,पाठकों को जागृत करने का जो प्रयास
किया, वो निश्चित ही अत्यधिक सराहनीय है।
काश आपके आलेख की तरफ हमारे राजनेताओं
का ध्यान आकर्षित होता। किन्तु उन्हें कहाँ
फरसत है भ्रष्टाचार करने से।

धीरेन्द्र सिंह भदौरिया said...

बहुत बढ़िया प्रस्तुति,प्रेरक सुंदर रचना......
welcome to new post--जिन्दगीं--

मुकेश कुमार सिन्हा said...

achchhi jaankari!!

Pragya Sharma said...

sahmat.

Pragya Sharma said...

हम अपने पूर्वजों की महान विरासत की रक्षा ढंग से नहीं कर पा रहे हैं। हम तब जागते हैं जबकि दूसरा हमारी चीज़ों पर अपना क़ब्ज़ा जमा चुका होता है। हमारी कई जड़ी बूटियों को पश्चिमी वैज्ञानिक अपने नाम से पेटेंट करा चुके हैं। ताज़ा ख़बर के मुताबिक़ ब्रिटेन की नज़र हमारे अदरक और कुटकी पर है। उसने इनके ज़रिये नज़ले ज़ुकाम का इलाज ढूंढने का दावा किया है। यह लम्हा हमारे लिए आत्मविश्लेषण का है।

अभिमान वास्तव में ही बहुत बुरा होता है। ज्ञान का हो तो और भी ज़्यादा बुरा होता है। इन लोगों से भी बढ़कर नुक्सान देने वाले वे तत्व होते हैं जो कि अपने इतिहास और अपनी परंपराओं को जानने के बावजूद भी भुला देना चाहते हैं। ऐसे लोगों के कारण ही आज प्राचीन पूर्वजों के बहुत से कारनामे भुला दिए गए हैं।
Please see
http://aryabhojan.blogspot.com/2012/01/impotency.html

उपेन्द्र नाथ said...

desh so raha hai divya ji. hamre karndharon ko sone dijiye.inhen apni tijori bharne se fursat kahn.ye sonyege aur aur vo lutenge . yahi is desh ka bhavisya hai............

vidya said...

अच्छी रचना...
सच है..बासमती चावल का किस्सा भी हम जानते हैं...
दुखद है.

Manish.. said...

hello divya ji...
Aap achcha likhti rahe
isi kamna ke saath
main aapko ek achchi post ke liye
dhanywaad deta hun...

DR. ANWER JAMAL said...

हमारे आयुर्वेद में सबके कल्याण के लिए प्रयास किया गया है। जिसकी जैसी ज़रूरत हो, वह आयुर्वेद से अपनी ज़रूरत पूरी कर सकता है। दुख की बात यह है कि आयुर्वेद पर हमें जैसे ध्यान देना चाहिए, हम नहीं दे पा रहे हैं और अंग्रेज़ हम से बढ़कर इस पर रिसर्च कर रहे हैं।

सुरेन्द्र सिंह " झंझट " said...

राष्ट्रप्रेम से भरा , स्वाभिमान से परिपूर्ण यथार्थपरक लेख के लिए साधुवाद दिव्या जी !
आपसे पूर्णतया सहमत हूँ |

G.N.SHAW said...

शादियों से भारत लूटता रहा है और आज हमारे अपने ही लूटने में व्यस्त है ! भला वे धरोहर की सुरक्षा कैसे करेंगे ! चिंताजनक स्थिति उतपन्न हो गयी है !

mridula pradhan said...

zaroori hai.....

देवेन्द्र said...

भावनात्मक दृष्टिकोण तो अपनी जगह ठीक है, किंतु आज के अंतर्राष्ट्रीय इंटेलेक्टुअल प्रापर्टी राइट्स की अपनी जटिलतायें व बाध्यतायें हैं। जब तक इनका कानूनी रूप से कुशल प्रबंधन हम नहीं कर पाते हमारे ज्ञान के धरोहर इसी तरह दूसरे ज्यादा सक्षम देशों द्वारा हथियाते जाते रहेंगे।

Rohit Singh said...

दिव्या जी आपको नव वर्ष की देर से बधाई ...माफी चाहूंगा देर से आने के लिए.....बात आपने एकदम दुरुस्त कही है......अपने लोग धीरे धीरे जड़ों की ओर लौट रहे हैं...पर अभी बहुत काम बाकी है....पर एक बात की खुशी है कि सरकार का एक विभाग अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अपनी धरोहर की लड़ाई लड़ रहा है। इसमें लगे अधिकारी सराहना के पात्र हैं.....हालांकि बहुत कुछ करना बाकी है....

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

यही तो हो रहा है आजकल!

Bharat Bhushan said...

बौद्धिक संपदा के नियम विदेशों में पहले बने और हमारी सरकारें बाद में जागीं जब नीम का पेटेंट हो गया. अब पहले के मुकाबले जागरूकता अधिक है. तथापि अंतर्राष्ट्रीय फार्मास्यूटिकल कंपनियों काफी चालाक हैं और चुपचाप विभिन्न औषधियों के मिक्सचर तैयार करके उनका पेटेंट करा लेती हैं चाहे उनके उपचार क्षमता कितनी ही सामित क्यों न हो और उनकी दवाएँ बेचने की क्षमता तो है ही. WHO और कई देशों की सरकारें इन कंपनियों के लिए ही नियम बनाती हैं. हम अपनी रक्षा करने में कामयाब हों उसके लिए प्रयास सशक्त होने चाहिएँ. हम जाग गए तो अरबों डालर देश के बचेंगे.
बहुत ही बढ़िया और सामयिक पोस्ट के लिए बधाई.

Bharat Bhushan said...

मेरा स्वास्थ्य अब पहले से बहुत अच्छा है. आपका आभार दिव्या जी.

निर्झर'नीर said...

aap ka priyas sarahniy hai ..aap hamesha hi sarthak or vicharniiy lekh likhti hai ...exceelent ,
aap jaise logon ki aaj is desh ko sakht jarurat hai .