आजादी मिले ६४ वर्ष बीत गए और संविधान बने ६२ वर्ष। लेकिन क्या भारतवर्ष में तरक्की हुयी है? हम जहाँ थे वहीँ हैं या फिर और पीछे चले गए हैं ? इतने वर्षों में क्या तरक्की की है हमने ?
अशिक्षित बच्चों की संख्या दिनों दिन बढ़ रही है , ये नहीं जानते की 'गणतंत्र दिवस' और स्वतंत्रता दिवस क्या है । उनके लिए तो इस दिन लड्डू मिल जाते हैं बस यही है इसकी अहमियत।
आधी आबादी जो भारत की सड़कों पर पैदा होती है और फुटपाथ किनारे दम तोड़ देती है क्या ये गणतंत्र दिवस उनके लिए भी है ?
ये झंडा रोहण बड़े-बड़े आफिस , दफ्तरों और संस्थानों तक सीमित है। क्या लाभ इस दिवस का ,जब तक हर नागरिक खुशहाल न हो , स्वस्थ न हो , निर्भय न हो और अनेक अधिकारों से वंचित न हो तब तक।
आजादी के समय नेहरू ने देश को हिन्दुस्तान और पाकिस्तान में बांटा। आज ये विदेशी सरकार अल्पसंख्यकों और बहुसंख्यकों के नाम पर देशवासियों को बाँट रही है।
देश के लिए जज्बा ही कम हो गया है ,
लोगों के दिलों में स्वाभिमान भी मर रहा है,
अपने अधिकारों के लिए लड़ना भी छोड़ दिया है,
आवाज़ ऊंची करने में भी सहमने लगे हैं देशवासी,
अब ये कहने में भी डरते है की 'आजादी हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है',
अब सरकार के अत्याचार से डरकर 'खिलाफत' और "असहयोग आन्दोलन" भी नहीं करते,
एक विदेशी महिला २ अरब जनता को अपने इशारों पर नचा रही है और हम "भारत छोडो" कहते हुए भी डरते हैं,
रामलीला मैदान में 'जलियावाला बाग़ काण्ड' दोहराया जाता है और हम चुप रह जाते हैं।
मीडिया बिकी हुयी है , लोगों की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता छिनी जा रही है , क्या हम वाकई आजाद भारत में रह रहे हैं ?
अशिक्षित बच्चों की संख्या दिनों दिन बढ़ रही है , ये नहीं जानते की 'गणतंत्र दिवस' और स्वतंत्रता दिवस क्या है । उनके लिए तो इस दिन लड्डू मिल जाते हैं बस यही है इसकी अहमियत।
आधी आबादी जो भारत की सड़कों पर पैदा होती है और फुटपाथ किनारे दम तोड़ देती है क्या ये गणतंत्र दिवस उनके लिए भी है ?
ये झंडा रोहण बड़े-बड़े आफिस , दफ्तरों और संस्थानों तक सीमित है। क्या लाभ इस दिवस का ,जब तक हर नागरिक खुशहाल न हो , स्वस्थ न हो , निर्भय न हो और अनेक अधिकारों से वंचित न हो तब तक।
आजादी के समय नेहरू ने देश को हिन्दुस्तान और पाकिस्तान में बांटा। आज ये विदेशी सरकार अल्पसंख्यकों और बहुसंख्यकों के नाम पर देशवासियों को बाँट रही है।
देश के लिए जज्बा ही कम हो गया है ,
लोगों के दिलों में स्वाभिमान भी मर रहा है,
अपने अधिकारों के लिए लड़ना भी छोड़ दिया है,
आवाज़ ऊंची करने में भी सहमने लगे हैं देशवासी,
अब ये कहने में भी डरते है की 'आजादी हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है',
अब सरकार के अत्याचार से डरकर 'खिलाफत' और "असहयोग आन्दोलन" भी नहीं करते,
एक विदेशी महिला २ अरब जनता को अपने इशारों पर नचा रही है और हम "भारत छोडो" कहते हुए भी डरते हैं,
रामलीला मैदान में 'जलियावाला बाग़ काण्ड' दोहराया जाता है और हम चुप रह जाते हैं।
मीडिया बिकी हुयी है , लोगों की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता छिनी जा रही है , क्या हम वाकई आजाद भारत में रह रहे हैं ?
अब देश में वालमार्ट लाया जाएगा , अब 'दांडी मार्च' नहीं होते। स्वदेशी से किसी को कोई लगाव नहीं ।
अब साधू संतों और भगवा का अपमान किया जाता है।
अब हमारे पवित्र ग्रंथों पर को बैन लगाने की जुर्रत करते हैं कुछ देश।
भारत में आतंकवादियों को सजा नहीं दी जाती।
हाथी ढकने पर करोड़ों व्यय पर गरीबों को कम्बल नहीं दी जाती ।
किसान आत्महत्या कर रहे हैं लेकिन प्रधानमंत्री के चेहरे पर शिकन नहीं आती ।
६२ सालों का गणतंत्र !! गजब है हमारी उपलब्धियां !
धन्य है भारत ! धन्य हैं भारतवासी!
कभी-कभी देश के बारे में सोचा भी कीजिये ...
"गणतंत्र की शुभकामनाएं" कहकर खानापूर्ति न कीजिये...
Zeal
अब हमारे पवित्र ग्रंथों पर को बैन लगाने की जुर्रत करते हैं कुछ देश।
भारत में आतंकवादियों को सजा नहीं दी जाती।
हाथी ढकने पर करोड़ों व्यय पर गरीबों को कम्बल नहीं दी जाती ।
किसान आत्महत्या कर रहे हैं लेकिन प्रधानमंत्री के चेहरे पर शिकन नहीं आती ।
६२ सालों का गणतंत्र !! गजब है हमारी उपलब्धियां !
धन्य है भारत ! धन्य हैं भारतवासी!
कभी-कभी देश के बारे में सोचा भी कीजिये ...
"गणतंत्र की शुभकामनाएं" कहकर खानापूर्ति न कीजिये...
Zeal
28 comments:
Hamaree sabse badee samasya beshumaar loksankhya hai....hamaree koshishen isee dishame honee chahiyen.
आपका कहना सही है मगर यहाँ तो बस यही रीत बना ली है बधाई तो और कर्तव्य की इतिश्री कर लो………
ज्वलंत समस्या देश के सामने . समुचित सवाल उठाता आलेख . उम्मीद है सरकार के कान में जू रेंगेगी .
कुछ प्रोविजन्स में तो अत्यंत आवश्यक हो गए हैं बदलाव.
अयाज़ अहमद...तुम्हारी गन्दगी पब्लिश नहीं की गयी है । यहाँ व्यर्थ आते हो तुम। बेशर्मों और सिरफिरों के कमेंट्स मॉडरेट कर दिए जाते हैं ।
स्वतंत्रता का दुरुपयोग सब कर रहे हैं - ऊपर से ले कर नीचे तक !
Badlav ki jagah isko theek se laagoo karne ki jaroorat hai ... aur maansik badlaav laane ki jaroorat hai ...
मुझे कोई मतलब नहीं इस 26 जनवरी से, न ही 15 अगस्त से। मुझे दुःख होता है यह कहते हुए कि भारत न तो स्वतंत्र है और न ही गणतंत्र।
इससे अच्छी परिस्थितियाँ तो अंग्रेजों के समय थीं। कम से कम भारतीय एक तो थे। कहाँ जा रहा है ये देश? हमारा तिरंगा जलाया जा रहा है, फिर कैसा गणतंत्र? फेसबुक व ब्लॉग पर हमारे विचारों पर प्रतिबन्ध लगाया जा रहा है, फिर कौन है स्वतंत्र? हम सरकार की चापलूसी करते रहें, उनकी हाँ में हाँ मिला लें, क्या इतनी ही स्वतंत्रता के लिए शहीद हुए थे हमारे वीर? हमे आवाज़ उठाने तक का अधिकार नहीं तो क्या अंतर है अंग्रेज़ और कांग्रेस में? एक साला आम भारतीय मानसिक रूप से गुलाम बन चूका है। अरे अंग्रेजों ने तो हमारे शरीर को गुलाम बनाया था, विचारों पर वे फतह नहीं कर पाए, किन्तु उनकी योजना को पूर्ण किया उनकी नाजायज़ औलाद कांग्रेस ने। कितने कम समय में उसने भारतीयों को अपना गुलाम बना लिया। दुनिया के बड़े से बड़े तानाशाह भी इनके सामने छोटे लगते हैं। चाहे हिटलर हो या मुसोलिनी, सद्दाम हो या गद्दाफी, इन्होने खुद को तानाशाह कहकर तानाशाही की। किन्तु ये कांग्रेस ज़मात तो लोकतंत्र की आड़ में तानाशाही रचा रही है।
जा जाओ, मूर्खों, इससे पहले कि हमेशा के लिए सोना पड़े।
जब तक अखंड भारत नहीं बनेगा, जब तक भारत सही अर्थों में स्वतन्त्र नहीं होता, जब तक भारत गणतंत्र नहीं हो जाता, तब तक न कोई स्वतंत्र दिवस, न ही कोई गणतंत्र दिवस, न ही कोई 15 अगस्त, न ही कोई 26 जनवरी।
62 साल का हो गया है गणतंत्र पर आजादी के दीवानों ने देश के लिए जो ख्वाब देखा था वो यकीनन पूरा नहीं हो पाया है... गणतंत्र अधूरा सा है पर फिर भी देशभक्ति का जज्बा कुछ हद तक तो कायम है वरना क्या हो जाता इसकी कल्पना की जा सकती है।
बहरहाल, सार्थक और विचारणीय पोस्ट।
गणतंत्र दिवस की शुभकामनाएं....
जय हिंद... वंदे मातरम्।
कानून भले ही कितने मज़बूत हो उन्हें लागू करने वालों का भी मज़बूत होना ज़रूरी है. वैसे 1973 से तय हो गया था कि संविधान को मूलत: नहीं बदला जा सकता. यूं भी संविधान में कमियां कहां है...हों भी तो संशोधन हैं न
सोचते तो सभी हैं पर कर कुछ नहीं कर सकते... हज़ारे जी और रामदेव जी की हालत तो देख ही रहे हैं :)
गणतंत्र तो कहीं नहीं दिखता, यहां तो केवल नेतातंत्र है या अफसरतंत्र । इन्हें नियंत्रित करने के लिए संविधान में बस ये संशोधन करने की जरूरत है कि चुने गए नेताओं और अफसरों को वापस बुलाने और अमान्य करने का अधिकार जनता को दे दिए जाएं, तभी सच्चे अर्थों में जनतंत्र स्थापित हो सकेगा।
जब तक धर्म और राजनीति देश से ऊपर होगी...देश पीछे ही जायेगा...
Aderneeya divya jee.. dawa fayada karti hai magar kadwi hoti hai...lekin ant me wahi kaam aati hai...aapka prayas vyjarth nahi bjaayega...sacchi baat ,,sacche sawal..sadar badhayee aaur aamantran ke sath
there must be change according to positive lable.
YESTERDAY TODAY AND TOMORROW are
variable so each moment we need change to be positive.thanks
its ridiculous we won freedom from british only to be taken over by another set of looters and cheats.
WE need another revolution and throw these people out of our nation again or rather maybe we shud ask the british to come back.. at least we knew who the enemy is .. now we dont know as our own are raping us each day and all we do is TALK.
Bikram's
संस्कृति पर तो गर्व कर सकते हैं, वर्तमान देख क्षोभ होता है।
63वें गणतन्त्रदिवस की शुभकामनाएँ!
कब तक भुगते देश, इन नेताओं के कारनामों को
जनता मौक़ा देख रही है,अबकी सबक सिखाने को
बहुत सुंदर प्रस्तुति,विचारणीय आलेख,....
WELCOME TO NEW POST --26 जनवरी आया है....
गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनाए.....
आज के चर्चा मंच पर आपकी उत्कृष्ट प्रस्तुति
का अवलोकन किया ||
बहुत बहुत बधाई ||
भारत की आज़ादी यहाँ की ग़रीब जनता की शिक्षा के पीछे-पीछे है. जैसे-जैसे शिक्षा का प्रसार होगा लोग स्वतंत्रता का अर्थ समझने लगेंगे. इसके पीछे दो महत्वपूर्ण फैक्टर कार्य करेंगे. सरकार उन्हें क्या पढ़ाती है और पढ़ाने का कितना शुल्क वसूल करती है. आज की तारीख में ये दोनों फैक्टर ग़रीब के पक्ष में नहीं जाते और उसके मानवाधिकारों का हनन आसान है. इसी लिए आपसे सहमत हूँ कि हम अभी आज़ादी का अर्थ तक नहीं जानते हैं.
स्वतंत्रता दिवस और गणतंत्र दिवस क्या मनाये जाने चाहिए? यदि ये दोनों मनाये भी जाएँ तो किस रूप में मनाये जाने चाहिए?
क्या अखंड भारत के समय कोई पर्व ऐसा था जब हम (राष्ट्र) अपना शक्ति-प्रदर्शन करता था?.... ये सभी प्रश्न विचारणीय हैं...
इस संबंध में मेरा विचार है -
राष्ट्र के प्रमुख नागरिकों को चाहिए कि आम नागरिक खुशहाल हो, देश के स्वाभिमान के लिये 'गुलामी' को याद रखने वाला दिवस न मनाकर 'वीरता' का गान करने वाला वार पर्व अर्थात 'दशहरा पर्व' मनाये... लेकिन उस पर्व को भी कुरूपता दी जा चुकी है.... 'रावण दहन' तक सीमित करके उसे बाल मनोरंजन से जोड़ दिया गया है... जबकि यह पर्व कभी देश के युवाओं और युवराजों की वीरता के प्रदर्शन हेतु हुआ करता था.
'परशुराम जयंती' जिसे अक्षय तृतीया के रूप में आज मनाया जाता है.... वह कभी प्रजातंत्र स्थापना के रूप में मनाया जाता था... जिसे आज हम 'गणतंत्र-दिवस' के रूप में मनाते हैं.... उसका सनातन रूप 'परशुराम जयन्ती' के रूप में रहा था... लेकिन आज वह भी एक वर्ग-विशेष का सिकुड़ा हुआ 'पर्व' मात्र बन कर रह गया है....
...सही में संविधान में बदलाव की जरुरत है!...महत्वपूर्ण विषय!
बिलकुल सही चिंतन ! मेरी नयी पोस्ट आपके विचार के लिए उत्सुक है
जी मै सहमत हूँ
तरक्की तो की है हिन्दुस्तान ने -मुंबई में 'एन्तिला 'अब उससे भी बड़ी इमारत बन रही है .गंदा घिनौना मच्छी बाड़ा भी यहीं हैं .प्रधान मंत्री की नींद भी उडती है लेकिन तब जब कोई डॉ करीम (नाम फर्जी )आतंकी होने के जुर्म में विदेश में धर लिया जाता है .
सही कहा.. .विचारणीय आलेख,...
wakayee.....
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