Saturday, January 28, 2017

अवन्तिका चल बसी

मानव ने उसको मार कर फेंक दिया
वीरान से एक गंदे पड़े मैदान में
फिर भी लाश ज़िंदा थी, जीना चाहती थी 
दिल ने धड़कना नहीं बंद किया
गिद्ध नोच नोच कर उसे खाते ..
मानव हर सुबह उसको देखने आता
अवन्तिका के बहते आंसू और
मांस से रिस्ता खून , उसके बेचैन मन को
दो पल का सुकून दे देते और वो लौट जाता
अवन्तिका पीछे से पुकारती रहती
मानव कभी मुड़कर नहीं देखता
प्रतिदिन का नियम
एक का इबादत के लिए आना
दुसरे की लाश का रिसना
और गिद्धों द्वरा नोचकर
खाया जाना जारी था
कहीं कुछ था जो अभी
मुकम्मल नहीं हुआ था
वो सोचती थी कि मानव
उसकी याद में यहाँ आता है
लेकिन जब वो बेरुखी से मुंहमोड़कर
लौट जाता तो वो हैरान हो जाती
क्यों आता है वो
क्या चाहिए उसे
गिद्धों ने अपना काम
वफादारी से जारी रखा
मांस का एक टुकड़ा भी
अब शेष न था
सूखे बचे पिंजर में
बस दो आँखें थीं और
एक लाल धड़कता दिल
वो बहती थीं , वो रिस्ता था
अवन्तिका को अपने प्रश्न का
उत्तर मिल गया था
वो जान गयी थीं कि
मानव अपनी जीत के
बेहद नज़दीक आ चुका है
धीरे से अवन्तिका ने
अपनी आँखें बंद कर लीं
और मानव कि जीत को
मुकम्मल कर दिया !!

1 comment:

प्रतिभा सक्सेना said...

कितनी बड़ी विडंबना मानव-जीवन की !