" महिला ब्लॉगरों को, किसी भी विषय पर लिखने पर, प्राय: टिप्पणियाँ अधिक मिलती हैं । कहीं न कहीं यह महिला ब्लॉगरों के प्रति आकर्षण को भी सूचित करता है । "
मैं मनोज जी कि बात से सहमत नहीं हूँ। मुझे नहीं लगता कि एक गंभीर पाठक को इस बात से कोई सरोकार है कि लेख महिला ने लिखा है अथवा पुरुष ने। जो लोग गंभीर लेखन में विश्वास रखते हैं , वो जेंडर -बायस में विश्वास नहीं रखते।
एक पुरुष यदि अच्छी एवं सार्थक टिप्पणियां पाता है तो वह उसकी मेरिट है। और यदि किसी महिला ब्लोगर को सार्थक टिप्पणियां मिलती हैं तो वह उस लेखिका कि मेरिट है। इसमें लिंग-विभेद क्यूँ ?
यदि पुरुष आकर्षित होकर महिला ब्लोगर्स के लेखों पर लिखते हैं , तो फिर शायद महिला ब्लोगर्स भी पुरुष ब्लोगर्स के लेखों पर ज्यादा लिखती होंगी । फिर टिप्पणियों का तराजू तो बराबर ही रहेगा न ?
मेरा अनुरोध है कि कृपया इस तरह के विचारों को मन में स्थान न दें। ये स्वयं में एक पूर्वाग्रह है और महिला ब्लोगर्स के लिए निराशाजनक है।
यदि महिलाएं किसी क्षत्र में आगे आती हैं तो ये कहकर उनका मनोबल मत तोडिये कि जो कुछ उन्हें मिल रहा है वो सिर्फ उनके महिला होने के कारण है। महिलाओं में भी थोड़ी बहुत काबिलियत गलती से आ ही जाती है। और विद्वान् पुरुष अच्छे-बुरे लेखों को परखने कि भरपूर क्षमता रखते हैं।
पाठकों से एक अनुरोध -
यदि लेख पढ़कर मन में विचारों का मंथन हो तभी टिपण्णी कीजिये , केवल मैं या वो एक महिला है, इसलिए मत कीजिये। ये एक महिला के अस्तित्व का सर्वथा अपमान है। भूख नहीं ऐसी टिप्पणियों कि।
आभार।
80 comments:
मेरा तो व्यक्तिगत सोचना है कि टिप्पणी सिर्फ पोस्ट को पढ़कर की जाती है ,महिला या पुरुष देखकर नहीं । ये तो आपके विचारो के सार्वजनिक आदान-प्रदान का मंच है ,यदि कोई ऐसा करता है तो वह उस पोस्ट और चिठ्ठाकार तथा खुद अपने प्रति इमानदार नहीं रह सकता ।
कुछ हद तक तो ठीक हो सकता है मनोज जी का कथन, यद्यपि मैं ऐसा नहीं सोचता...
दिव्या जी टिप्पणियों का मायाजाल स्त्री व पुरुष, अच्छे या बुरे में भेद नहीं करता. इसके पीछे का मनोविज्ञान कुछ और ही है. कभी कभी मुझे तो ये ब्लोग्गेर्स कि भेड़चाल सी लगाती है. कभी कभी मुझे ये बढ़िया नेट वर्किंग का कमाल सा लगता है. कारण जो भी हो टिप्पणियों कि संख्या किसी भी पोस्ट कि गुणवत्ता का पैमाना बिलकुल भी नहीं है. मैंने बहुत अच्छी पोस्टों पर बहुत कम टिप्पणियां और बहुत घटिया पोस्टों पर बहुत ज्यादा टिप्पणियों का जलूस देखा है.
दिव्या, मनोज की टिपण्णी से मैं आंशिक सहमत होने का खतरा उठा ही सकता हूँ. रोज़ मैं महिलाओं की ऐसी कुछ बेकार पोस्टें और कवितायेँ आदि भी देखता हूँ जिनपर 'बहुत सुन्दर, बेहतरीन, बढ़िया, अच्छा लगा, आप बहुत अच्छा लिखती हैं, आपके भाव दिल को छू गए' जैसे अनेक टिप्पणियां होतीं हैं - सब पुरुष टिप्पणीकारों की. इसके साथ ही यह भी देखता हूँ कि उम्रदराज़ और बहुधा लीक से हटकर गंभीर लिखनेवाली महिलाओं को भी कम टिपण्णी ही मिलती हैं.
किसी युवा महिला ब्लौगर का पदार्पण होते ही उसकी औसत या स्तरहीन पोस्टों पर भी टिप्पणियों की बौछार हो जाती है. पुरुष ब्लौगरों के साथ ऐसा नहीं होता.
मैंने यह दृष्टान्त इसलिए नहीं दिए कि मुझे इस बात से कोई समस्या है. मैं इसे नॉर्मल ही लेता हूँ. उतना ही नॉर्मल जितना स्त्री के प्रति पुरुष के मन में अधिक रूचि और उत्सुकता का होना और उनसे निकटता की कामना करना.
महिला होने के कारण टिप्पणी अधिक मिलती हैं यह कुछ प्रतिशत सत्य हो सकता है लेकिन यह तो शत प्रतिशत सत्य है कि पुरुष होने के कारण वह विद्वान होता है, यह भ्रम सभी पालकर रखते हैं। महिला को विकसित होने की आवश्यकता है यह वाक्य प्रतिदिन सुनायी पड़ता है जैसे पुरुष तो सारे ही विकसित हो चुके हैं। सत्य तो यह है कि कोई भी महिला किसी मुकाम तक पहुंची है तो वह पुरुषों से दस गुणा अधिक प्रयास करके वहाँ पहुंची है क्योंकि उसे पग पग पर महिला होने के कारण अपनी बुद्धिमत्ता का सबूत देना पड़ा है। टिप्पणी व्यक्ति को देखकर नहीं अपितु विषय को देखकर ही की जाती है।
यह बात, यहाँ कार्य कर रहीं समस्त महिला रचनाकारों के बारे में सही नहीं है यहाँ कई महिला रचनाकार ऐसी हैं जिनके लेखन के आगे मुझे कई दिग्गज पुरुष बौने नज़र आते हैं ! इन बेहतरीन लेखिकाओं को आदर पूर्वक नमन करता हूँ !
मगर यदि कचरा लेखन के बावजूद टिप्पणिया ५० से ऊपर हों तब आप क्या कहेंगी ? शायद मनोज का इशारा इसी तरफ होगा ! पुरुषों की कमजोरियां जगजाहिर हैं !
दिव्या आपने सही सवाल उठाया है। मैं भी आपकी बात से सहमत हूं। लेकिन आपने एक बात पर ध्यान नहीं दिया कि मनोज जी ने कहा कि ‘अधिक’ टिप्पणियां । आपने कहा कि ‘सार्थक’ टिप्पणियां । दोनों में अंतर है।
‘अधिक’ के मापदंड में मुझे कुछ हद तक मनोज जी की बात सही लगती है। लेकिन ‘सार्थक’ के मापदंड में मैं आपके साथ हूं।
इसी तरह इस बात पर भी गौर करिए कि मनोज जी ने एक सामान्य प्रवृति की बात की है। उन्होंने गंभीर या अंगभीर पाठक या लेखन की कोई बात नहीं की। लेकिन आपने गंभीर पाठक की बात कही। आप भी जानती हैं कि यहां दोनों तरह के लोग हैं। इसलिए एक बार फिर से मैं मनोज जी के साथ हूं, लेकिन जब आप ‘गंभीर पाठक’ और ‘गंभीर लेखन’ की बात करती हैं, तो मैं आपसे सहमत हूं कि ऐसा होना चाहिए। अब यह भी एक तरह का पूर्वाग्रह ही है। यहां यह स्पष्ट होना चाहिए पूर्वाग्रह हमेशा नकारात्मक नहीं होगा।
मनोज भारती जी को मैंने बहुत नहीं पढ़ा है। लेकिन केवल उनकी इस टिप्पणी के आधार पर उन्हें लिंगभेद में विश्वास करने वाला मानना थोड़ी जल्दीबाजी होगी।
लेकिन इसी तरह आपका यह कथन कि ‘जो लोग गंभीर लेखन में विश्वास रखते हैं , वो जेंडर -बायस में विश्वास नहीं रखते।‘ भी एक तरह का पूर्वाग्रह है।
मैंने यहीं ब्लाग पर देखा है कि बहुत सारे ऐसे लोग जो सचमुच बहुत से मुद्दों पर तार्किक और गंभीर बात कहते हैं, वे महिलाओं के मुद्दों पर अपनी दकियानूसी सोच से बाहर नहीं निकल पाते हैं। उनके लेखन में ऐसे तमाम शब्द, मुहावरे और अन्य बिम्ब नजर आ जाएंगे जो लिंगभेद या महिलाओं के प्रति एक तरह से अनादर का सूचक हैं।
और अंत में आपकी ये पंक्तियां भ्रम पैदा कर रही हैं-
यदि महिलाएं किसी क्षेत्र में आगे आती हैं तो ये कहकर उनका मनोबल मत तोडिये कि जो कुछ उन्हें मिल रहा है वो सिर्फ उनके महिला होने के कारण है। महिलाओं में भी थोड़ी बहुत काबिलियत गलती से आ ही जाती है। और विद्वान् पुरुष अच्छे-बुरे लेखों को परखने कि भरपूर क्षमता रखते हैं।
मेरे हिसाब से आप शायद कहना चाहती हैं कि-
यदि महिलाएं किसी क्षेत्र में आगे आती हैं तो ये कहकर उनका मनोबल मत तोडिये कि, ‘जो कुछ उन्हें मिल रहा है वो सिर्फ उनके महिला होने के कारण है। महिलाओं में भी थोड़ी बहुत काबिलियत गलती से आ ही जाती है। और विद्वान् पुरुष अच्छे-बुरे लेखों को परखने कि भरपूर क्षमता रखते हैं।’
पुरानी सोच लगती है
इस महाजाल पर हर तरह के व्यक्तित्व के दर्शन हो जाते है . मेरे विचार से तो दोनों ही बात सही है .
यदि ये बात सत्य है की महिलाओ को अधिक टिप्पड़िया मिलती है किन्ही और कारणों से तो इस से हम उन की लेखन की गुणवत्ता पर तो सवाल नही उठा सकते .
इस महाजाल पर लेखक की पहचान उस के लेख से है फिर वो कौन है इस से कोई फर्क नही पड़ता है .
टिपण्णी कि संख्या अगर लिंगभेद पर आधारित है तो ये अफसोसजनक है . मुझे लगता है कि किसी भी आलेख के विषय पर टिप्पणिया मिलती है . वैसे भी टिपण्णी कि संख्या से उनकी गुणवत्ता ज्यादा प्रभावशाली है मेरे लिए.
कम टिप्पणियां मिलने की कुंठा हम पुरुष ब्लॉगर ऐसे ही निकालते हैं। कृपया इसे गंभीरता से न लें और न ही कोई कुंठा गंभीर चर्चा का विषय हो सकती है।कुठांओं का उपचार चर्चा से नहीं उन्हें वैसे ही छोड़ देने से ही संभव है, वे समय के साथ ठीक होती हैं, कुरेदते रहने से ताजा जख्म सी बनी रहती हैं। हां उन्हें ज्यादा टिप्पणियां देकर उपचार में मदद मिल सकती है।
7.5/10
स्वस्थ बहस के लिए अच्छा विषय
एक जरूरी पोस्ट
राजेश उत्साहीजी और विचार शून्य की बात से सहमत हूँ.... यक़ीनन सार्थक टिप्पणियों और अधिक टिप्पणियों में बहुत फर्क है... महिला पुरुष वाले भेद को तो मैं नहीं मानती पर इतना तय है की टिप्पणियों की संख्या अच्छी पोस्ट का मानक बिलकुल नहीं....
महिला या पुरुष ब्लॉगर में विभेद नहीं करना चाहिए। रचना की गुणवत्ता के आधार पर टिप्पणी देनी चाहिए।
१-टिप्पणियों का आदान प्रदान यहाँ पर व्यापार के रूप में ज्यादा है आप हमें दे और हम आप को | हो सकता है कि महिला ब्लोगर ज्यादा लोगों को टिप्पणिया देती है इसलिए बदले में उनको ज्यादा टिप्पणिया मिलती है जबकि पुरुषकम
२- हो सकता है कि महिला ब्लोगेर ऐसे मुद्दों को उठती हो जिस पर हर ब्लोगर एक राय बना कर टिप्पणी दे सकता हो जबकि पुरुष ब्लोगर इतना ज्यादा बौद्धिक बात कर करते हो जो हर किसी को समझ ही नहीं आये |
३- हो सकता है कि महिला ब्लोगेर आलोचनात्मक टिप्पणिया कम करती हो जिसके बदले उन्हें टिप्पणिया मिलती हो जबकि पुरुष ब्लोगर जरुरत से ज्यादा आलोचनात्मक टिप्पणिया करते हो और लोग उनसे दूर भागना चाहे |
४- हो सकता है कि महिला ब्लोगर किसी नए ब्लोगर को ज्यादा प्रोत्साहित करती हो जिससे नए ब्लोगर तुरंत उससे जुड़ जाता हो जबकि पुरुष ब्लोगर कम करता हो |
५- हो सकता है कि महिला ब्लोगर सभी को एक सामान मान कर सभी छोटे बड़े ब्लोगर को टिप्पणिया देती हो और बदले में उन्हें टिप्पणिया मिलती हो जबकि पुरुष अपने बुद्धिजीवी होने के दंभ में सिर्फ बड़े ब्लोगर को ही टिप्पणिया करते हो
६- हो सकता है की महिला ब्लोगर के पास समय ज्यादा हो और वो जादा लोगो के साथ जुड़ती हो और पुरुष के पास समय काम हो |
७- हो सकता है की महिला ब्लोगर किसी से बेमतलब की बहस ना करती हो जिससे ज्यादा लोग उनके ब्लॉग पर आते है पर कई पुरुष ब्लोगर पाठक से इतनी बहस करते है की बेचार दो तीन बार बहस करने के बाद दुबारा वहा टिप्पणिया ना दे |
८- हो सकता है की महिला ब्लोगर गाली गलौज की भाषा नहीं बोलती शालीन पोस्ट और टिप्पणिया देती हो जिससे सब उनसे जुड़ते है जबकि कई पुरुष ब्लोगर की भाषा पोस्ट और टिप्पणी में इतनी ख़राब होती है की की महिला काया पुरुष ब्लोगर भी उनकी पोस्ट पर जाना नहीं चाहते है |
९- हो सकता है महिला ब्लोगर मुश्किल विषय को भी इतने सरल और आम भाषा में लिखती हो की सबको समझ में आ जाये और लोग टिप्पणिया दे और पुरुष ब्लोगर खुद को बहुत बुद्धिमान बड़ा लेखक साबित करने के लिए इतनी भरी और बड़े शब्दों का प्रयोग करते हो की वो पाठक को साँझ ही नहीं आये |
कारण और भी बहुत है अब यही ख़त्म करती हु |
मेरा पहला सवाल तो ये है कि पोस्ट अच्छी है या नहीं,ये कमेन्टों की संख्या से कैसे तय हो सकता है।
दूसरा, अच्छा लिखा हुआ तो अच्छा लिखा हुआ ही होगा। यहां पुरुष या महिला का सवाल कहां से उठा?
यदि पोस्ट अच्छी होगी और सार्थक होगी तो अपने आप पाठक आयेंगे उसके लिये वो कभी ये नही देखते कि किसकी लिखी पोस्ट है फिर चाहे वो महिला हो या पुरूष या फिर नया ब्लोगर्………………बात सिर्फ़ सार्थक और सटीक लेखन की होनी चाहिये।
मनोज भारती जी की टिप्पणी की अंतिम पंक्तियों का आशय या कहें तेवर, पुरुष दर्प वाले तो नहीं लगते, बल्कि उनके द्वारा कही गयी बातों का विस्तार ही अधिक लगा!
डाक्टर साहिबा, जहां तक अपना सवाल है, अपन तो जहां कहीं भी तर्कबुद्धि मिलती है पेंच लडाने पहुच जाते हैं। फिर महिला ब्लोगर्स के सन्दर्भ में बात अनूठी हो ही जाती है क्योकिं चीजों को देखने समझने का एक दूसरा पक्ष भी उभर कर आता है!
मैं जब भी कभी किसी महिला ब्लोगर के यहाँ टिप्पणी करता हूँ तो कहीं न कहीं इस बात के प्रति आश्वास्त रहता हूँ कि यदि मैंने कोई गलत बात कह दी हैं या पोस्ट के विषय को ठीक से समझे बिना टिप्पणी की हैँ तो कम से कम वे मेरा मजाक तो नहीं हीं उडाएंगी और मेरी गलती की तरफ ध्यान दिलाएंगी ।कई बार किसी महिला से असहमति में टिप्पणी करने के बाद मुझे खुद महसूस हुआ हैं कि मेरी भाषा कुछ ज्यादा ही तल्ख हो गई हैं या मैंने कोई बेवकूफी वाली बात कह दी हैं परन्तु फिर भी उन्होने कभी बुरा नहीं माना और हमेशा के लिये उसी बात से चिपक ही नहीं गई वो मेरी बात को केवल इसलिये नहीँ काटती कि कहने वाला एक पुरूष हैं।.........(जारी)
आपकी पिछली पोस्ट 'टिप्प्णियों की आचार संहिता कैसी हो - एक विमर्श ' पर मेरी टिप्पणी थी. :
टिप्पणी विषय के अनुसार होती है । व्यक्ति के विचार अलग-अलग होने के कारण वह किसी के लिए बहुत अच्छी हो सकती है तो किसी के लिए निर्थक । फिर पोस्ट पढ़ते समय टिप्पणीकार की जो मनोदशा बनती है ...वह भी टिप्पणी में झलकती है । पर ज्यादातर टिप्पणीकार टिप्पणी को रस्म अदायगी भर मानते हैं और रचना पर सार्थक टिप्पणी देने से बचते हैं । कुछ टिप्पणीकार केवल इसलिए टिप्पियाते हैं ताकि उनके ब्लॉग तक दूसरे लोग पहुँचे ...लेकिन ऐसे टिप्पणीकारों को यह समझ नहीं होती कि जब तक आप में दूसरों को पढ़ने का धैर्य और समय नहीं है तो दूसरा क्यों उसकी पोस्ट में रुचि लेगा । फिर, हिंदी ब्लॉग जगत में गंभीर लेखन की ओर झुकाव अभी बहुत कम दिखाई पड़ता है । गंभीर या विवादास्पद विषयों पर लोग टिप्पणी देने से बचते दिखाई देते हैं । महिला ब्लॉगरों को, किसी भी विषय पर लिखने पर, प्राय: टिप्पणियाँ अधिक मिलती हैं । कहीं न कहीं यह महिला ब्लॉगरों के प्रति आकर्षण को भी सूचित करता है ।
ब्लॉग जगत में गंभीर विषयों पर लेखन और उन पर टिप्पणियाँ दोनों का अभाव खटकता है । (जारी )
इसके अलावा महिला ब्लोगरों में दूसरों को प्रोत्साहित करने का विशेष गुण होता है इस मामले में पुरूष उनकी बराबरी कभी नहीं कर सकते ।कोई महिला ब्लोगर अपने किसी पुरूष पाठक में भाई चाचा ताऊ नाना मामा मौसा मानस पुत्र आदि भले ही एक बार न देखे पर उस पाठक को जरूर देख पाती है जिसका स्नेहिल स्वार्थ उनके ब्लोग से जुडा होता हैं जिसके जरीये वह भी अपनी बात कहने की छोटी सी आकांक्षा पाले रखता हैं और इस बात को वो पाठक ज्यादा अच्छी तरह से समझ पाते हैं जिनका कोई ब्लोग ही नही हैं।......(जारी)
आपके ब्लॉग पर पहली बार आना हुआ .बहुत सारी सार्थक पहल और उत्तम विमर्श भी दिखे टिप्पणिओं में.
बड़ी विनम्रता से कहूँगा की कोई ' पुरुष दर्प ' कोई छोटा पुरुष ही पाल सकता है .रही बात टिप्पणियों की तो यहीं पर बहुत सारे लोगों ने बड़ी अच्छी ' अनुभव जन्य ' बातें लिखी हैं और sabhee एक anubhv सीमा तक सही भी हैं, कुछ परस्पर विरोधी होते हुए भी .
हाँ ' नेट्वर्किंग ' और कई तरह के ' आकर्षण ' , मार्केटिंग के ही हिस्से हैं , जो की सामान्य जीवन के भी अंग हो चुके हैं इस बाजारवाद में .और बड़ी सारी टिप्पणिओं पर भी lagoo होता है .
अब नाम बताना तो अशिष्टता होगी लेकिन कुछ महिला ब्लोगरों को व्यक्तिगत रूप से जानता हूँ ,जो काफी उम्रदराज़ हैं पर चित्र यौवन काल का लगा रखा है.और उस से भी बढ़कर ये की उन्होंने ' आत्मकथात्मक ' असत्य लिखा है, दूसरों को ,जिसमे पारिवारिक जन भी शामिल हैं , गलत आरोपित करते हुए . उद्देश ? अपने लिए सहानुभूति बटोरने के लिए और फिर असली इरादा ' दिलों ' को जीतने का उनसे खेलने का और चूसने का भी . यहाँ तक की अगर एक ब्लॉग पर झूठ,क्षद्म और धूर्तता बेनकाब हो गयी तो दूसरे नाम से दूसरा ब्लॉग लिखना शुरू कर फिर वही......... :) .वहां पुरुष ब्लोगरों की टिप्पणियों की भरमार भी देखी जा सकती है दीवाने परवाने बने . तो ये सब तो होता ही है , और पूरी दुनियां भर के ब्लोगिंग में .
ब्लोगर को लिंग भेद से अलग रख गंभीर पाठक सिर्फ ' कथ्य ' पर ही जायेंगे चाहे उनका जो भी ' जेंडर ' हो और छिछोरापन भी अपनी पहचान बनाये रखेगा ही और चलता भी रहेगा ,जीवन के अन्य क्षेत्रों की तरह .
राजेश उत्साहीजी और विचार शून्य की बात से सहमत हूँ.... यक़ीनन सार्थक टिप्पणियों और अधिक टिप्पणियों में बहुत फर्क है... महिला पुरुष वाले भेद को तो मैं नहीं मानती पर इतना तय है की टिप्पणियों की संख्या अच्छी पोस्ट का मानक बिलकुल नहीं....
pehley to main Dr.Monika verma ji se kshma chahunga ki unki tippani ko mainey jyon ka tyon pest kaliya, or इतना तय है की टिप्पणियों की संख्या अच्छी पोस्ट का मानक बिलकुल नहीं.... unhi ka samarthan bhi krta hun. lakin Bharti ji ki tippani main ek shabd aaya hai"कहीं न कहीं " (arthat shanka vyakt ki gai hai )is shabd ka postmartom krne ki awshyakta hai ,shayad tippani satik bhi lagey..
आपके ब्लॉग पर पहली बार आना हुआ .बहुत सारी सार्थक पहल और उत्तम विमर्श भी दिखे टिप्पणिओं में.
बड़ी विनम्रता से कहूँगा की कोई ' पुरुष दर्प ' कोई छोटा पुरुष ही पाल सकता है .रही बात टिप्पणियों की तो यहीं पर बहुत सारे लोगों ने बड़ी अच्छी ' अनुभव जन्य ' बातें लिखी हैं और sabhee एक anubhv सीमा तक सही भी हैं, कुछ परस्पर विरोधी होते हुए भी .
हाँ ' नेट्वर्किंग ' और कई तरह के ' आकर्षण ' , मार्केटिंग के ही हिस्से हैं , जो की सामान्य जीवन के भी अंग हो चुके हैं इस बाजारवाद में .और बड़ी सारी टिप्पणिओं पर भी lagoo होता है .
अब नाम बताना तो अशिष्टता होगी लेकिन कुछ महिला ब्लोगरों को व्यक्तिगत रूप से जानता हूँ ,जो काफी उम्रदराज़ हैं पर चित्र यौवन काल का लगा रखा है.और उस से भी बढ़कर ये की उन्होंने ' आत्मकथात्मक ' असत्य लिखा है, दूसरों को ,जिसमे पारिवारिक जन भी शामिल हैं , गलत आरोपित करते हुए . उद्देश ? अपने लिए सहानुभूति बटोरने के लिए और फिर असली इरादा ' दिलों ' को जीतने का उनसे खेलने का और चूसने का भी . यहाँ तक की अगर एक ब्लॉग पर झूठ,क्षद्म और धूर्तता बेनकाब हो गयी तो दूसरे नाम से दूसरा ब्लॉग लिखना शुरू कर फिर वही......... :) .वहां पुरुष ब्लोगरों की टिप्पणियों की भरमार भी देखी जा सकती है दीवाने परवाने बने . तो ये सब तो होता ही है , और पूरी दुनियां भर के ब्लोगिंग में .
ब्लोगर को लिंग भेद से अलग रख गंभीर पाठक सिर्फ ' कथ्य ' पर ही जायेंगे चाहे उनका जो भी ' जेंडर ' हो और छिछोरापन भी अपनी पहचान बनाये रखेगा ही और चलता भी रहेगा ,जीवन के अन्य क्षेत्रों की तरह .
पता नहीं ....या कहिए कि ..कहना ही नहीं चाहता ..जो कहना चाहता हूं वो ये कि...घूम फ़िर महिला पुरूष ....को ही विषय बनाना ...अधिकांश दिख ही जाता है ..अब दूसरी बात ये भी कि . यदि इस विषय पर महिला ब्लॉगर लिखती हैं ..तो फ़िर भी ठीक है बहस की गुंजाईश रहती है ...मगर यदि को पुरूष ब्लॉगर लिखता है तो अक्सर , हमेशा नहीं , पक्षपाती और पुरूष मानसिकता ..होने का आरोप तो बाय डिफ़ॉल्ट लग ही जाता है ..। हालांकि पहली बात की तरह इस बात का भी कोई सबूत नहीं है ....फ़िर सोचता हूं कि जरूरत है क्या किसी सबूत की ...सब समझते ही हैं ..जी बिल्कुल
Hi! zeal,Dr.divya से ज़्यादा सटीक लगता है मुझे, आपको zeal कहना .उत्साही है ये नाम! अतएव बुरा ना माने,please .रही बात मनोज जी के टिप्पणिओं की, तो कोई ज़रूरी नहीं है ,कि महिला ब्लागरों को अत्यधिक टिप्पणियां मिले ही . यह इस बात पर भी निर्भर करता है कि लेख कैसा है या लेखन कितना प्रभावित करता है, प्रारंभ मे हो सकता है ,कि महज़ आकर्षण स्वरूप कोई टिपण्णी करे. ज़्यादा नहीं लिखूंगा , मेरा साधुवाद है . लिखते रहिये , और प्रभाव डालिए क्योंकि लिखने वाले टिप्पणिओं की परवा नहीं करते.........!
चूंकि आप की पोस्ट टिप्प्णियों पर थी, इसलिए मैने आमतौर पर टिप्पणीयां किस मानसिकता से की जाती हैं इस बात पर प्रतिक्रिया देते हुये उपरोक्त बात कही थी। अगर केवल टिप्पणी विषय को लिया जाये तो विषय़ के प्रत्येक पहलू को देखना चाहिये और सारी बात इसी सम्बन्ध में थी जिसे शायद आपने अन्यथा ले लिया।
महिलाऑं के प्रति मेरा कोई दुराग्रह नहीं है।
दूसरी तरफ पुरूष हैं ऐसा लगता है जैसे वे कोई भी बहस महज हार जीत के लिये ही करते हैं आपकी बात उन्हें समझ नहीं आई या आपके प्रशनों का कौई सीधा जवाब उनके पास नहीं हैं तो आपकी हर बात का उल्टा मतलब निकालकर उसका मजाक बनाना तय हैं आप बहस न भी करना चाहे तो पूरे मैटर को जबरदस्ती ही रबर की तरह खींच डालते हैं जबकी महिलाऐं बहुत हद तक धैर्य का परीचय देती हैं और गाँधीगिरी से काम लेती हैं हाँ अपवाद दोनों तरफ होते हैं ....आशा है अब मनोज जी समझ पाए होंगे कि महिलाओं में कौनसा आकर्षण होता हैं ।धन्यवाद।
मुझे भी लगता है महिलये कुछ भी लिख दे
पुरुष कमेन्ट देता ही है
महज खिचाव ही है ये
कुछ लेखो होते ही है बहुत अच्छे
बहुत अच्छा लेख आभार
हमारा भी ब्लॉग पड़े और मार्गदर्शन करे
http://blondmedia.blogspot.com/2010/10/blog-post_16.
दिव्याजी,
दुविधा में हूँ।
यह तय नहीं कर पा रहा हूँ कि मनोजजी ठीक कह रहे हैं या नहीं।
इतना बता सकता हूँ अपने बारे में।
मैं दस - बारह ब्लोगों को नियमित रूप से पढता हूँ।
इनमे से केवेल तीन महिलाएं हैं जिनमे से आप एक हैं।
यदा कदा, समय और फ़ुरसत मिलने पर अन्य मित्रों के ब्लॉग पर झाँकता हूँ पर टिप्पणी नहीं करता।
नियमित टिप्पणी केवल कुछ ब्लॉगों पर करता हूँ और आजकल आपका ब्लॉग इसमें शामिल है।
ब्लॉग पढने या टिप्पणी करने के मामले में मैंने कभी यह नहीं देखा कि ब्लॉग्गर महिला है या पुरुष।
अब मनोजजी का यह कथन मेरे मन में शंका पैदा कर दिया है।
यदि मनोजी का कहना सच है तो क्या किसी अजनबी महिला के ब्लॉग पर बिन बुलाए टिप्पणी करूँ या नहीं।
क्या वह महिला या अन्य पाठक मुझे गलत समझेंगे?
क्या वह समझेंगे कि मैं वहाँ इस लिए गया क्योंकि लेखक महिला है?
continued ...
मेरा विचार है कि जो लोग ब्लॉग पर टिप्पणी केवल इसलिए करते हैं कि लेखक महिला है, वे लोग कुछ दिन बाद अपने आप ब्लॉग पर आना बन्द कर देंगे। यह इसलिए कि उन्हें कोई नया शिकार मिल गया है!
अंत में इतना और कहूँगा।
आप केवल तीन महीने से ब्लॉग जगत में सक्रिय रही हैं
इतने कम समय में अवश्य आपको टिप्पणियाँ बहुत ज्यादा मिल रही हैं।
पर इसका कारण है कि विषय रोचक है या विवादास्पद है।
इसलिए नहीं कि आप एक महिला हैं। और भी महिलाएं पहले से ही ब्लॉग जगत में सक्रिय रहीं हैं ।
उनहें क्यों इतनी टिप्प्णियाँ नहीं मिलती?
यदि आजमाना चाहती हैं तो एक बार किसी गैर विवादास्पद विषय पर एक गंभीर लेख लिख डालिया
(आप डॉक्टर हैं तो आप किसी मेडिकल विषय पर गंभीर लेख लिख सकती हैं)
फ़िर देखिए कितनी टिप्पणियाँ मिलती हैं।
दो या तीन शब्द वाली टिप्पणियों को include न करें। वे तो महज attendance markers हैं, यह साबित करने के लिए के पाठकने आपका लेख पढा और अब आपकी की बारी है उनके यहाँ जाने की। किसी ने इसे barter system कहा था। सही शब्द है।
ऐसे ही लिखते रहिए। देख रहा हूँ यहाँ ट्रैफ़िक काफ़ी बढ गया है!
और भी बढें !
शुभकामनाएं
जी विश्वनाथ
.
साथी ब्लोगर्स की टिप्पणियों का आभार।
उपरोक्त ज्यादातर टिप्पणियों को पढ़कर मन में एक.....आ गया। महसूस हुआ जैसे मेरे लेख पर टिप्पणियां मेरे महिला होने के नाते दान स्वरुप मिलती रही हैं।
मन को ये भरम था की विषय और लेखन ऐसा है जिसके चलते आज तक बहुत सी सार्थक टिप्पणियां मिली हैं।
लेकिन ये आत्म-विश्वास आज टूट गया है। अच्छा है, कभी-कभी खुशफहमियाँ टूटनी भी चाहियें । जिन लोगों ने ये एहसास दिलाया की टिप्पणियों की संख्या ब्लॉग की गुणवत्ता नहीं बताती, उनका विशेष आभार।
अपने प्रोफाइल से अपनी तस्वीर और अपना नाम मिटा रही हूँ। जो जानते हैं उनकी कोई बात नहीं, लेकिन नए आने वाले तो लेख पढ़कर ही टिपण्णी करेंगे कम से कम । तब ये इलज़ाम भी नहीं लगेगा की टिपण्णी की वजह अपने लेख की गुणवत्ता मत समझिएगा, अपितु आपका जेंडर है।
जेंडर-बायस से निपटने का फिलहाल तो एक मात्र यही उपाय समझ आया । अपने पुरे होशो-हवास में ये निर्णय लिया है। संभवतः कुछ लोग मेरे निर्णय से सहमत होंगे।
आभार ।
.
निशांत मिस्र और राजेश उत्साही की बातों से सहमत ।
आकर्षित होकर ही तो लोग टिपण्णी देते हैं । कोई आकर्षित होता है लेख या रचना की क्वालिटी से , कोई लेखक के व्यक्तित्त्व से , कोई शक्ल सूरत से तो कोई जेंडर से । यह तो टिप्पणी को पढ़कर ही पता चल जाता है ।
लेकिन अंत में जब तक कोई बदतमीजी नहीं करता तब तक सबका स्वागत होना चाहिए ।
.
मन में एक inferiority complex आ गया। **
[ correction ]
.
अंशुमाला जी की बात बहुत प्रभावी रही......बेहतरीन टिप्पणी !
.
विश्वनाथ जी,
मेरे टूटते मनोबल को संबल देने के लिए आपका आभार।
.
आप बहुत संवेदनशील हैं , यह कदम ठीक नहीं है ! मेरा आपको मना करने का कोई हक़ नहीं बनता फिर भी स्नेहवश मजबूर हूँ बशर्ते इसे समझें !
अनुरोध है कि इस कदम को बापस लें !
:)
YOU have quite ?(:
now , agar sabhee log aapse prerna lene lagen to sab gals to burka pahan kar chalne lagengi aur boys to ghar me band hokar rah jayenge
.
Ankit , your comments are too kiddish.
.
Diviyaji,
Yadi tipani apke subject se mel khaye tab bhale hi swagat kare anyatha poori tarah ignore kare.
koi bhi apne sanskar ,gyan aur adhyan se zyada achcha kaise karega?
aap yah zahir hi kyo karti hai ki kis baat se apko thais lagti hai.
aapne jo likh diya usi per dtee rahen ,vichlit na ho.vaisa karne per hi log aapko pareshan karte hain
आप की निर्णय देख कर अपने बचपन की याद ताजा हो गयी .
आप भी जानती है की आप के लेख गुणवत्त युक्त है और अच्छा लेख किस साहित्यप्रेमी को नही खिचता ?
फिर ये निर्णय ????????????????
इस चिटठा जगत में जिनको मैं अपना मार्गदर्शक मानता हू और निरंतर सीख रहा हू आप उन में से एक है इस नाते मैं आप से आग्रह करता हू आप अपना निर्णय वापस ले लीजिये और एक और अच्छा सा लेख हमें दें .
पुरुष हो या महिला, internet हो या सच कि दुनिया, उनका व्यव्हार उनके व्यक्तित्व पर निर्भर करता है ... हर तरह के लोग होते है ... गंभीर पाठक भी होते हैं ... और चापलूस भी ...
थोड़ा बहुत आकर्षण हो सकता है और होगा भी क्योंकि ब्लॉग भी समाज का प्रतिरूप है पर अन्ततः अच्छा लेखन ही स्थायी और पसन्द किया जाने वाला होगा।
बहुत छोटी सी बात को आपने इतना बड़ा मानकर इस तरह का निर्णय क्यों लिया खैर ये आपकी सोच है वैसे मेरे हिसाब से व्यक्ति अपना मूल्यांकन स्वयं करता है और कौन चापलूसी कर रहा है कौन बेवजह तारीफ कर रहा है इसे समझाना कोई बहुत ज्यादा मुस्किल कार्य नहीं है कल को कोई आपको ये कह दे की आपने जो भी लिखा है वह चुराई हुयी रचना है तो इस बात से दुखी होकर क्या आप लिखना छोड़ देंगी ! सोचे और हो सके तो अपना निर्णय बदले !
ya it may be
but ab aab log aapkee profile ko fake samajh sakte hain ?
Please don't get offended or hurt but I think you are over reacting.
You are being ultra sensitive.
Some some persons may be of the type described by Manojji. They may be here only because of your gender. As long as they don't do any harm or become a nuisance, let them be.
Many others like me are genuinely interested in you as a person and in your views and not in your gender.
It looks like you have decided based on emotion and perhaps impulse.
I hope you will feel better after a few days and revert to your old profile which makes you an interesting person worth knowing and interacting with.
All readers would like to know the blogger so that they can better relate to him/her and his/her views.
If you hide behind a screen you may not get as many readers in future as you are getting now.
In my profile, I have been very open about myself and that has enabled me to make many friends in Hindi Blogosphere.
This nuisance from some readers who come only because of your gender is a small price to pay to become a popular and successful blogger.
In a short span of three months you have had better success at blogging than many people who have been around for several years.
I hope this fact encourages you and boosts your morale and you will review your decision.
Anyway, whatever you decide, you can count on my support and encouragement.
With best wishes
G Vishwanath
.देखिये न, आपके निरास होने से 46 लोग बावले हो चुके हैं,
मेरा स्पैमिंग दिल भी आपकी निरासा को दीलासा देने का मन कर गया !
निरास न होयी, जो आपकी जान चूका है वो कमेंट का पोथन्ना लेकर आपके दरावजे जरुर खडा होगा ।
जब करीना बहन मेट कर रहीं थी, तो फिलिम में इस्टेसन मसटर को खुल्ली तिजोरि होने का कुच कुच बताया था !
आपने लिखा "मुझे नहीं लगता कि एक गंभीर पाठक को इस बात से कोई सरोकार है कि लेख महिला ने लिखा है अथवा पुरुष ने। जो लोग गंभीर लेखन में विश्वास रखते हैं , वो जेंडर -बायस में विश्वास नहीं रखते।" जिससे मैं सहमत हूँ.. मगर गंभीर पाठक कभी Attendance Marker कमेंट्स नहीं करता है.. अगर बात सिर्फ Attendance Marker कमेंट्स की करें तो आप पाएंगी कि महिलाओं को वैसे कमेंट्स अधिक मिलते हैं.. अगर सार्थक कमेंट्स की बात करें तो दोनों का ही अनुपात लगभग बराबर होता है..
अपवाद के तौर पर ब्लॉग जगत में सबसे अधिक कमेंट्स पाने वाले समीर जी का कोई भी पोस्ट उठा कर देख लें, उनके यहाँ Attendance Marker कमेंट्स अधिक होते हैं..
मेरे ख्याल से मैंने आपके यहाँ यह दूसरी या तीसरी बार टिपण्णी की है.. क्योंकि बस दूसरी या तीसरी बार ही मुझे लगा कि मेरे पास कहने को कुछ है.. कई दफे अच्छे पोस्ट को पढ़ने के बाद भी कहने को कुछ भी नहीं होता है.. वैसे में मैं उसको बज्ज पर या फेसबुक पर शेयर करता हूँ..
दिव्या जी, आपको निराश होने कि आवश्यकता कतई नहीं है, आप खुद ही देखें कि आपके यहाँ कितने लोग सिर्फ Attendance लगाने आते हैं? आपके यहाँ वैसी भीड़ बहुत कम है..
सब ने सब कुछ कह दिया मैं सिर्फ यही कहूँगा---
ये ज़िन्दगी है शायद
यही सिलसिला है
कांटो के पौधे में
गुल कम ही खिला है
बस महसूस कर लीजिये
उन गुलाबों की खुशबू को
काँटों की चुभन फिर
खुद ही दूर हो जायेगी
सादर
यशवन्त
टिप्पणियां पोस्ट की सार्थकता के आधार पर ही की जाती है, और की जानी चाहिए..........
आपसे सादर आग्रह है की आप अपना सार्थक लेखन अनवरत जरी रखें और ऐसी टिप्पणियों पर अधिक ध्यान न दें !!
मैं बिलकुल सहमत नहीं हूँ की लोग जेंडर के आधार पर किसी ब्लॉग पर जाते हैं या टिप्पणी देते हैं.कोई भी प्रतिक्रिया पोस्ट की गुणवत्ता के आधार पर दी जाती है,न की इस आधार पर की इस का लिखने वाला किस जेंडर का है. मैं पिछले तीन माह से आप के ब्लॉग का नियमित पाठक हूँ, और हर बार आपके विषय के चयन और उसके विस्तृत विश्लेषण पर दंग रह जाता हूँ.आपके ब्लोग्स पर प्रतिक्रियाओं का स्तर ही स्पष्ट कर देता है की यहाँ ब्लॉगर केवल हाजिरी लगाने के लिए नहीं आते.हो सकता है कि कुछ ब्लोग्स के बारे में जेंडर कि बात सच हो,लेकिन इस मुद्दे को generalise कर के सभी पर लागू करना बिलकुल सही नहीं है .
औरत-मर्द,लड़का-लड़की,नर-नारी.....
विवाद-विवादिन,टिप्पणा-टिप्पणी...
ब्लॉगर-ब्लॉगरिन...
खूब सारे-एक भी नहीं...
ZEAL-अर्धसत्य
हिजड़ों पर एक पोस्ट 89 कमेण्ट्स-हिजड़ों के ब्लॉग अर्धसत्य पर अब तक कुल दस-बीस कमेण्ट्स ज्यादातर बेनामी.... :)
मेरी बहन डॉ.दिव्या उच्चकोटि की लेखिका- मैं मनीषा नारायण एक लैंगिक विकलाँग हिजड़ा...
क्या कहा जा सकता है इससे ज्यादा इन ब्लॉग संसार में सत्साहित्य तलाशते टिप्पणीकारों के लिये?????
main is baat se aansik rup se sahmat hu ki
mahilao ko unke post pe comments jyda milate.
yaha main ye saaf kar dena chahata hu, ki iska matlab ye nahi ki mahilaome telent ki kami hai, bulki ye ki ye Purusho ke us granthi se prerit hota hai, we purush hain. ise aap biprit lingo ka aakarshan bhi kah sakte hian. jo swabhavtah purusho me jyada pai jati hai. aur aaurato me sharm au sankoch ki wajah se kam
मैं बहुत गंभीरतीपूर्वक निवेदन कर रहा हूं आपसे कि आप अपना निर्णय बदलिए।
दूसरो के बारे मे तो पता नही लेकिन हम तो पोस्ट के शीर्षक को देख कर पोस्ट पर पहुँचते हैं और टिप्पणी करते है। हाँ ये बात सही है कि नये ब्लॊगरों की पोस्ट पर टिप्पणी जरूर करने की कोशिश मे रहते हैं।
`महसूस हुआ जैसे मेरे लेख पर टिप्पणियां मेरे महिला होने के नाते दान स्वरुप मिलती रही हैं।'
...tतो हम आज से टिप्पणी देना बंद करते हैं :(
arre arre ...yeh kya ho gaya hai yahan...
abhi abhi yahan pahuncha hoon...
dussehra ke karan thod awyast tha...
divya ji yeh kaisa nirnay le liya aapne....
kripya ise badlein...
यह पोस्ट मनोज जी के एक कथन से शुरू हुई थी। उनका कथन भी एक तथ्य को सामने रखता है। हम सब तथ्य पर विमर्श ही कर रहे हैं और वह विमर्श भी आपने ही छेड़ा है।
इसे अपने ऊपर केन्द्रित करना तो कतई उचित नहीं लगता। आपने अपना नाम हटा दिया,फोटो भी हटा दिया पर अपना लिंग कैसे बदलेंगी। क्या आप अपनी पोस्ट लिखते समय या टिप्पणी करते समय अपने को स्त्रीवाचक संज्ञाओं से व्यक्त नहीं करेंगी। जो लोग सिर्फ इसलिए टिप्पणी करने आते हैं कि आप महिला हैं क्या वे अब नहीं आएंगे। माफ करें दिव्या पर पहली बार यह कहने पर मजबूर हो रहा हूं कि आप एक बचकाना निर्णय कर रही हैं। यह एक तरह का पलायन है। अरे,जो बायस हैं उनका मुकाबला सामने रहकर करें यूं पीठ दिखाकर नहीं। क्या यह आप जैसी महिला को शोभा देता है। यह सब बातें इसलिए कहने में आ रही हैं कि आप और हम यहां ब्लाग पर हैं। अन्यथा हमें किसी क्या लेना-देना।
दिव्या, यह बात सही नही है किसी और के कहने पर हम क्यूं कोई कॉम्लेक्स पालें । आखिर ब्लॉग एक आदान प्रदान वाला मंच है और यह आदान प्रदान भी हम ही चाहते हैं । कोई कुछ भी कहे ङम अपने लेखन की और ध्यान दें यही हमारे लिये उचित है । तुम तो बहुत अ्छे अच्छे विषय उठाती हो । लगे रहो । रही बात पुरुषों की कि वे स्त्री ब्लॉगर को अधिक टिप्पणियां देते हैं तो ये तो उनका प्रॉब्लेम हुआ न ।
... अब क्या कहें ... हर किसी का अपना अपना नजरिया होता है !!!
पल में फोटो पल में नो फोटो
पल में नाम लिखा पल में मिटा दिया
यह तो वैसा ही हो रहा जैसा दूसरी ब्लॉगरा नारी करती है हर दो महीनों में
कभी प्रोफ़ाईल गायब कभी नया प्रोफ़ाईल कभी ब्लॉग गायब कभी नाम बदल कर आगे कभी PS कभी BS कभी RS
अब ऐसी अस्थिर मानसिकता वलों को अच्ची टिपणियाँ क्या खाक मिलेंगी चाहे वह नर हो या मादा
मैने पोस्ट भी पढ़ी और टिप्पणीयाँ भी |मुझे इस बात पर आश्चर्य
हो रहा है कि लेखन पर टिप्पणी दी जाना चाहिए या किसी लेखक पर
चाहे वह महिला हो या पुरुष |यह तो लेखन के प्रति अन्याय है |
आशा
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अंकित जी, आपने बहुत सही प्रश्न उठाया। मेरी आँखें खोल दीं। मैंने तस्वीर लगायी ही इसलिए थी लोग मुझे फर्जी न कह सकें। मुझे याद दिलाने के लिए विशेष आभार आपको।
राजेश जी, आपने सही कहा , मेरा निर्णय बहुत ही बचकाना है। शायद कभी-कभी हर कोई विचलित होकर इन कमज़ोर क्षणों से गुज़रता है। ऐसे क्षणों में साथ देने के लिए आपका, विश्वनाथ जी का, अंकित जी का, महेंद्र वर्मा जी का, सतीश सक्सेना जी का, विजय माथुर जी का , अभिशेक१५०२ जी का, यशवंत जी का, अमत जीत जी का, कैलाश शर्मा जी का , आशा जोगलेकर जी का विशेष आभार।
मैंने अपना निर्णय वापस ले लिया है। और खुद से ये वायदा है की छोटी-मोती बातें मुझे विचलित न सकें भविष्य में।
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आशा जी ,
आपके वक्तव्य के लिए विशेष आभार। बहुत अच्छा लगा मुझे। अक्सर स्त्रियों का सपोर्ट नहीं मिलता मुझे , इसलिए आपका यहाँ आना और आपके विचारों ने बहुत प्रोत्साहित किया। पुनः ह्रदय से धन्यवाद।
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जिंदगी छोटी है सीखने के लिए। आज एक महत्त्वपूर्ण पाठ पढ़ा जीवन का। धन्य हुई मैं।
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मनोज जी ,
मैंने कोशिश की आंशिक सच देखने की । उस पर यही कहना , कुछ स्त्रियाँ और पुरुष ऐसे होते हैं। तो दोनों को कहिये। कुछ स्त्रियाँ निसंदेह चाकलेटी पुरुषों के लेख पर पहुँच जाती हैं। चाहे उसमें कोई सार हो अथवा न हो।
और कुछ पुरुष भी भंवरे कीतरह मंडराते हुए पहुँचते हैं , लेकिन कहाँ ?....जहाँ वो रस चूस सकें।
मेरे ब्लॉग पर ज्यादातर रस-विहीन लेख होते हैं जो भंवरों को , पास [ न ] आने को बाध्य करते हैं , और दिमागी कसरत करने को मजबूर करते हैं।
मेरी पोस्ट पर आने वाले विद्वान् ब्लोगर गंभीर हैं, और उनके अन्दर जेंडर बायस जैसा मुझे कभी महसूस नहीं हुआ।
इसलिए कृपया जेनरालैज़ मत कीजिये । सब धान २२ पसेरी नहीं होता। पुरुष और स्त्री दोनों में अपवाद स्वरुप लोग हैं।
आपका विशेष आभार एक नए चिंतन को दिशा देने के लिए।
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@ ज्ञान महोदय--
मेरा आपसे प्रश्न है की दुनिया के सारे मुर्ख अपना नाम 'ज्ञान' क्यूँ रखते हैं ? पहले जाकर नर-मादा के लिए कोई बेहतर संबोधन ढूंढो, फिर आना बात करने। बहती गंगा में हाथ धोने मत आओ । तुम्हारे जैसे मुर्ख और अल्प ज्ञानियों के लिए एक ही बात आ रही जोर जोर से--
" उल्लू का दम फाख्ता "
Get lost !!
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@-इतना तय है की टिप्पणियों की संख्या अच्छी पोस्ट का मानक बिलकुल नहीं....
विषय से हटकर ये कमेन्ट है। जिसपर मुझे आपत्ति है। विषय था लिंग-विभेद , टिप्पणियों की संख्या नहीं।
और टिप्पणियों की संख्या निश्चय ही गुणवत्ता की मानक है। हाँ अपवाद दो एक हर जगह हैं। आस्ट्रेलिया को मिले स्वर्ण मेडल की संख्या उसकी खेलों में गुणवत्ता की प्रतीक ही है। विद्यार्थी को मिले अंक ही उसके पठान पाठन की गुणवत्ता तै करते हैं।
सबका नहीं जानती , लेकिन अपनी गुणवत्ता पर मुझे भरोसा है। अब किसी के कहने से मेरा मनोबल कम नहीं होने वाला।
" कुछ रीत जगत की ऐसी है, सीता भी यहाँ बदनाम हुई। "----कुछ तो लोग कहेंगे, लोगों का काम है कहना...
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A comment by Shyam ji-
shyam gupt - भई दिव्या जी पाठक ( ब्लोगर भी, सभी व्यक्ति ) ) सभी तरह के होते हैं, गम्भीर भी, सामान्य भी । यह पुरुष---->महिला आकर्षण कोई असत्य बात नहीं , सामान्य सिद्ध बात है अतः मनोज जी का सोचना बहुत गलत भी नहीं है, रही महिला----->पुरुष आकर्षण , वह भी सामान्य है पर अभिव्यक्ति में कम ।
----हां यह भी सच है कि कोई भी गम्भीर व्यक्ति इन सब व्यर्थ की बातों पर कि लेखक स्त्री है या पुरुष ध्यान नहीं देता पर सामान्य भी तो होते हैं न दुनिया में ।Oct 16
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By Dr Mahesh-
Dr. Mahesh Sinha - :) रहिमन इस संसार में भांति भांति के लोग ...........Oct 16
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Dearest ZEAL:
A same post written under a male id and female id will not only receive different number of comments [obviously, female id will get more] but the more significant difference is - the female id will get much, much, much more "Badhiyaa lekh, umdaa lekh" sort of comments.
You may choose to believe otherwise, but the fact remains. The female bloggers have an advantage due to their gender and they must proudly accept it.
Good work will be appreciated by many, beyond the gender - but the reason that it is written on a female id will ensure greater readership in the first place. Zmiles.
This is not a prejudice. It is a natural happening.
As to your query of why female bloggers do not flock male writers - the reason is most of them are not as fake in their praises as many of the males bloggers are.
About seriousness in this blog world, a particular post's 'seriousness' is only till the next one arrives. It is just as serious as the game of cricket we used to play in our gully in the evening during childhood - intense while being played but conveniently forgotten the very moment we ended the play and went home.
Here it would not be inappropriate to wonder what happened to that Mishra lady on whom you wrote a post around a month back and many had commented vigorously. Did anyone bother to think about her once the post was replaced by a newer one? Zmiles. All may answer in their own heart about it.
That is the 'seriousness' of blogging.
As I conclude, just wish to state that as a female writer, one would always get greater readership and also lot of 'praises' which are for the sole purpose of seeking the female writer's attention.
The enlarged readership puts an added responsibility on the female blogger to tread very carefully amongst the 'praises' and be very skeptical about them rather than accepting each of them at face value.
Arth Desai
विजयादशमी पर्व की हार्दिक शुभकामनाएं
आपकी पोस्ट ब्लॉग4वार्ता पर
यह हुई न कुछ बात। कहते हैं विजयादशमी बुराई पर अच्छाई की विजय का पर्व है। मैं कहूंगा वह अपनी कमजोरियों पर विजय का पर्व भी है।
दिव्या आज के इस पावन दिन पर आपका निर्णय सही मायने में आपके लिए विजयादशमी का पर्व है। आज आप प्रण करिए कि अब सचमुच इन छोटी-मोटी बातों में नहीं आएंगी।
आपके साथ साथ यहां आ रहे सब पाठको,मित्रों को विजयादशमी की हार्दिक शुभकामनाएं।
बहुत खूब डाक्टर। अस्थिर मानसिकता को साबित करते हुये फिर अपना फोटू लगा लिया नाम लिख दिया। सही कहा गया है कि 'त्रिया चरित्रम् पुरुषस्य भाग्यम् दैवो न जानाति कुतो मनुष्यम्..'
लेकिन मुझे बता दो कि नर मादा को अंग्रेजी में क्या कहेंगे? यहां बात पुरूष महिला की नहीं है। लगे हाथों मुझ मूरख को भी तुम्हारे जैसे बुद्धिमान का भाषा ज्ञान मिल जायेगा
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ज्ञान जी,
आपको पहचान लिया है । पहले आप अजित के फर्जी नाम से कमेन्ट करते अब ज्ञान के। कृपया दूर रहे मुझसे तो महती कृपा होगी।
हो सके तो स्थिर मानसिकता वालों के ब्लॉग पर विचरण कीजिये।
आभार।
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गिरीश जी, राजेश जी-- आभार आपका।
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Dearest ZEAL:
Amazing perceptive skills!
You identified the wolf once again!! The wolf must be wondering how the hell you caught him out. Laughz.
Saluting your impressive sight.
Arth Desai
manoj bharti ne jo kaha vo apnee jagah khara sach hai aur usse bhee badaa sach ye hai ki achchhe posto par adhik tippaniyaa kam hee aatee hai. iskaa ye matlab katai nahee hai ki jis post par adhik tippaniya aa jaye vo achchhee nahee hai par jis post par adhik tippaniya ho use hee vehtar maanenge to khud ko hee dhokha denge. student ke number aur australia ke padak bishay se bhatkaav hai.
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@ -H P Sharma --
आपने सही कहा , अच्छी पोस्ट्स पर कमेंट्स कम आते हैं, इसलिए मेरी अगली पोस्ट पर कम लोग हैं। यहाँ तक की आपने भी इस पोस्ट को चुना, अगली पोस्ट पर नहीं आये। इस पोस्ट पर चवन्नी डालकर आगे बढ़ना बहुत आसान है। आस्ट्रेलिया की मेडल टेली या विद्यार्थी के प्राप्तांक , या फिर क्रिकेटर के स्कोर सभी प्रासंगिक हैं। विषय से भटkaन नहीं।
हाँ आपने एक बात दुरुस्त कही की--
" iskaa ye matlab katai nahee hai ki jis post par adhik tippaniya aa jaye vo achchhee nahee hai "
आभार।
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