जब एक पुरुष की नौकरी विदेश में लगती है , तो उसकी पत्नी अपनी नौकरी , अपना करियर , अपनी महत्वाकांक्षाएं त्यागकर और स्वजनों का मोह छोड़कर , अपने पति के साथ विदेश आ जाती है।
एक स्त्री के इस निर्णय के पीछे उसको बचपन से दिए गए संस्कार ही होते हैं। एक परिवार को बनाये रखने की ही शिक्षा हमें मिली होती है बचपन से। ज्यादातर स्त्रियों के लिए उनका परिवार ही उनकी प्राथमिकता होती है। इसीलिए वो हमेशा परिवार के साथ रहने को ही प्राथमिकता देती हैं। चाहे इसके लिए उन्हें अपने डिग्री , को ताख पर क्यूँ न रखना पड़े।
स्त्री को हमेशा एक दो-धारी तलवार का सामना करना पड़ता है। यदि वो अपने करियर की खातिर भारत में रहती है , तो परिवार बिखरता है, और यदि पति के साथ विदेश में रहती है। तो करियर बर्बाद हो जाता है। उसे हमेशा इन दो में से एक को चुनना होता है। परिवार या फिर करियर। बहुत विरली ही कोई स्त्री होती है जो विदेश में जाकर अच्छी नॉकरी पाकर परिवार और करियर दोनों का सुख उठा सकती है।
मैं हर तरह से सौभाग्यशालिनी होते हुए भी , मेडिकल की प्रक्टिस न कर पाने का दुःख हमेशा महसूस करती हूँ। लेकिन मेरे पास दूसरा कोई ऑप्शन भी नहीं है। पति की जॉब यहाँ होने के कारण डिपेनडेंट- वीजा पर ही हूँ यहाँ पर। इस कारण जॉब-परमिट भी नहीं है। हमारी भारतीय डिग्री भी मान्य नहीं है यहाँ। यहाँ मेडिकल प्रैक्टिस करने के लिए यहाँ की भाषा सीखनी होगी और फिर यहाँ से ही मेडिकल के किसी क्षेत्र में डिग्री लेकर ही प्रैक्टिस की जा सकती है।
मेरे मन की उलझन मेरे पति समझते हैं और वो भी मेरी असहायता पर दुखी हो जाते हैं। उनको दुखी देखकर कोशिश करती हूँ खुश रहने की । खुद को व्यस्त रखती हूँ ब्लोगिंग में। किसी से अपनी मजबूरी का रोना रोने से तो बेहतर है की अपना मन किसी और दिशा में लगाया जाए। मुझे ब्लोगिंग एक सशक्त माध्यम लगा खुद को व्यस्त रखने का भी और कुछ सार्थक करने का भी।
खाली बैठकर कुंठा का शिकार होकर अपने पति, भाई-बहन, और वृद्ध पिता को दुखी करने का कोई औचित्य नहीं लगता , इसलिए खुद को व्यस्त रखकर खुद भी खुश रहने का प्रयत्न करती हूँ और परिवार को भी खुश रखती हूँ।
मैं खुश हूँ ! शिकायत करना और फ्रस्टेट होना मेरी फितरत में नहीं है।
आभार।
एक स्त्री के इस निर्णय के पीछे उसको बचपन से दिए गए संस्कार ही होते हैं। एक परिवार को बनाये रखने की ही शिक्षा हमें मिली होती है बचपन से। ज्यादातर स्त्रियों के लिए उनका परिवार ही उनकी प्राथमिकता होती है। इसीलिए वो हमेशा परिवार के साथ रहने को ही प्राथमिकता देती हैं। चाहे इसके लिए उन्हें अपने डिग्री , को ताख पर क्यूँ न रखना पड़े।
स्त्री को हमेशा एक दो-धारी तलवार का सामना करना पड़ता है। यदि वो अपने करियर की खातिर भारत में रहती है , तो परिवार बिखरता है, और यदि पति के साथ विदेश में रहती है। तो करियर बर्बाद हो जाता है। उसे हमेशा इन दो में से एक को चुनना होता है। परिवार या फिर करियर। बहुत विरली ही कोई स्त्री होती है जो विदेश में जाकर अच्छी नॉकरी पाकर परिवार और करियर दोनों का सुख उठा सकती है।
मैं हर तरह से सौभाग्यशालिनी होते हुए भी , मेडिकल की प्रक्टिस न कर पाने का दुःख हमेशा महसूस करती हूँ। लेकिन मेरे पास दूसरा कोई ऑप्शन भी नहीं है। पति की जॉब यहाँ होने के कारण डिपेनडेंट- वीजा पर ही हूँ यहाँ पर। इस कारण जॉब-परमिट भी नहीं है। हमारी भारतीय डिग्री भी मान्य नहीं है यहाँ। यहाँ मेडिकल प्रैक्टिस करने के लिए यहाँ की भाषा सीखनी होगी और फिर यहाँ से ही मेडिकल के किसी क्षेत्र में डिग्री लेकर ही प्रैक्टिस की जा सकती है।
मेरे मन की उलझन मेरे पति समझते हैं और वो भी मेरी असहायता पर दुखी हो जाते हैं। उनको दुखी देखकर कोशिश करती हूँ खुश रहने की । खुद को व्यस्त रखती हूँ ब्लोगिंग में। किसी से अपनी मजबूरी का रोना रोने से तो बेहतर है की अपना मन किसी और दिशा में लगाया जाए। मुझे ब्लोगिंग एक सशक्त माध्यम लगा खुद को व्यस्त रखने का भी और कुछ सार्थक करने का भी।
खाली बैठकर कुंठा का शिकार होकर अपने पति, भाई-बहन, और वृद्ध पिता को दुखी करने का कोई औचित्य नहीं लगता , इसलिए खुद को व्यस्त रखकर खुद भी खुश रहने का प्रयत्न करती हूँ और परिवार को भी खुश रखती हूँ।
मैं खुश हूँ ! शिकायत करना और फ्रस्टेट होना मेरी फितरत में नहीं है।
आभार।
31 comments:
बेहद अफ़सोसज़नक ।
दिव्या जी , यह सही है कि कभी कभी पत्नी को ही कुर्बानी देनी पड़ती है । हालत के साथ समझौता करना ही पड़ता है ।
आशा करते हैं कि यह अस्थायी हो और जल्दी ही आप इस स्थिति से बाहर निकल सकें ।
एक डॉक्टर के लिए व्यवसाय से दूर रहना बड़ा कठिन और असहनीय होता है ।
kuch din pehle yeh panktiyaan likhi thi...
दर्द अपने दिल का, साझा करूंगा कागज से.
स्याही को उसपर उर्ढ़ेलता जाऊंगा..
दम है गर किसी में तो रोक के दिखा दे..
थामी है कलम तो अब लिखता ही जाऊंगा,
कौन सही है और कौन गलत, इस बहस में नहीं पडूंगा..बस इतना कहूँगा आप अच्छा लिखती हैं, लिखना जारी रखें...
एक अच्छी लेखिका के समर्थन में मैं आपके साथ खड़ा हूँ... दूसरों की बुराई देखने वाले कई मिलेंगे....
मैं तो यही कहूँगा...
बुरा जो देखन मैं चला, बुरा ना मिलया कोय |
जो मन खोजा आपना, मुझसे बुरा ना कोय ||
अपना ध्यान इधर उधर न भटकाइए!
--
अपने कार्य में संलग्न रहिए!
आदरणीय दिव्या जी सादर नमस्कार,
आप औरों की बातों की बिलकुल भी परवाह न करें और निरंतर लिखती रहें .....
कुछ तो लोग कहेंगे, लोगों का काम है कहना,
छोड़ों बेकार की बातों को, कहीं बीत न जाये रैना ...
Divya,
Ignore them.
Don't visit their blog sites.
Do not comment on their writings.
Do not reply to their comments.
And also do not allow their comments to appear on your blog site.
Just concentrate on your own blog and visit the blogs of good friendly and decent fellow bloggers.
Blogosphere is a wild jungle. There are all types of creatures here and you cannot be very choosy.
Don't worry, I don't believe a single word of what this person is saying.
I have my own methods of judging a person and you have passed my test.
I may not agree always with everything you say but I have great respect for your views and I rather like the fearless front you have been putting up so far.
I fully appreciate your difficulties and your dilemma regarding giving up your practice to be with your husband. These difficulties are temporary.
My own daughter is about your age. She too gave up an excellent job here and followed her husband abroad on a dependent visa 9 years ago.
She too went through feelings of frustration and depression for the first two years before she decided to study for her Master's degree in USA.
As soon as she completed it, she got an H1B Visa and today is she is gainfully employed.
You also will turn the corner but we can't say when. You have taken the right decision in giving up a practice to be with your husband.
Till you find a solution, blogging, reading, self learning, hobbies, and so many other interests can keep you busy.
I am sure you are capable of solving your problem. I am also sure you have a loving husband who understands your situation and supports you.
I pray for the well being of both of you.
This short letter is only to tell you that you have my support and encouragement.
With best wishes
G Vishwanath
आप एक "लौह महिला" है...
यह सब तो आपके साथ होगा ही ...सच्चाई को इस बेबाकी और इमानदारी से लिखना
आसान नहीं होता...
जानता हूँ कठिन है .. पर इन हरकतों को कृपया आप गंभीरता से ना लें...
वरना वो लोग जो ऐसा दुष्प्रचार कर रहे है .. अपने मकसद में कामयाब हो जायेंगे...
और ये बहुत ग़लत सन्देश होगा ...
आप अपना लेखन जारी रखिये...यही उनके मुह पर तमाचा होगा
और जो दुसरो का सम्मान नहीं करते .. उनका अपना भी कोई सम्मान नहीं होता...
और ऐसे लोगो की क्या परवाह करना..
आप वही करिए जिसकी इजाजत आपका जमीर आपको देता हो ....
कायरो को शेर की एक दहाड़ ही बहुत है डराने के लिए...
दर-असल यह व्यक्ति एक धर्म-प्रचारक है. आपके तेवरों से तिलमिलाया हुआ. इसकी तिलमिलाहट बता रही है कि चोट सही जगह पड़ी है. आप बेझिझक लिखती रहें. जलजला फुसफुसा जायेगा..
दर-असल यह व्यक्ति एक धर्म-प्रचारक है. आपके तेवरों से तिलमिलाया हुआ. इसकी तिलमिलाहट बता रही है कि चोट सही जगह पड़ी है. आप बेझिझक लिखती रहें. जलजला फुसफुसा जायेगा..
यही जीवन है.। लोगों के विचार उनकी सोच को उजागर करते हैं। कौन क्या कहता है, इससे अधिक इत्तेफाक ना रखते हुए जीवन पथ पर अपनी ही लय में बढ़ते रहिए। शुभकानाएं साथ है हमारी...
आशा और निराशा की परिस्थितियां तो जीवन में आती-जाती रहती हैं। इन पर ज्यादा सोचने-विचारने की बिल्कुल जरूरत नहीं है। झूठ, छल, फरेब की इस दुनिया में सच्चाई को हर कोई समझ लेगा, यह उम्मीद करना व्यर्थ है।
लिखते रहो, लेखनी कि राह इतनी आसान भी नहीं होती है , कितने सारे आलोचक, ईर्ष्यालु मिलेंगे राहो में , रही बात जलजला या किसी भूचाल की तो वो इतने तीव्र आवेग के नहीं हो सकते की लेखनी की कलम हिला दे .
kabhi kisi ko mukammaal jaha nahi milta .
kabhi jami to kabhi aasma nahi milta ----
jo dil jala hai tabhi to uske blog ka naam jaljala hai ---
... jaljalaa naam kaa bhoot fir pragat ho gayaa hai !!!
कहां-कहां क्या-क्या पढ लेती हैं आप।
अब तक तो पढने लायक ब्लोग आपने निर्धारित कर ही लिया होगा।
आप अपनी मशरूफ़ियत को बनाए रखिए।
दुख हुआ जान कर।
अरे आप भी इन बेकार लोगो कि बातो को ले कर दिल दुखाती हे रोती हे , इस मै नुकसान किस का आप का ही ना, ओर यह लोग जब पढते हे कि आप दुखी हुयी तो यह ओर ज्यादा बकबास करते हे, इस लिये आप सब से पहले तो इन की बातो पर ध्यान ही ना दे,अगर यह ना हटे तो फ़िर लफ़जो के दुवारा ऎसा थपड मारे कि यह कई महीनो अपना गाल सहलाते रहे, ओर दोवारा हिम्मत ना करे ऎसी गुस्ताखी करने कि, दुसरा आप हम सब की टिपण्णियां भी पढती हे, यानि हम सब का लहजा भी लिखने का आप समझ जायेगी, ओर जब ऎसी बकबास छंद नाम से टिपण्णी आये तो सोचे कि ऎसा आंदाज किस का हे, ऎसी गलतिया लिखने मै कोन करता हे, समय मिलाये नीचे ऊपर की टिपण्णियो का, ओर अपने ब्लांग पर FEEDJIT Live का विजेट लगाये कुछ तो पता चल ही जायेगा, लेकिन दुखी मत होये,पकडने का एक ओर तरीका हे इन्हे आप गुगल की मदद भी ले सकती हे, ओर जो पकड मै आये मान हानि का केस ओर सारा खर्च भी उसी पर डाल सकती हे,
धन्यवाद, मै इन बेकार के लोगो से पंगा भी नही लेता, ओर इन्हे भाव भी नही देता, अगर कोई अड जायेगा तो उसे छॊडुंगा भी नही, लेकिन एक दो बार समझाऊगा जरुर. चलिये अब भुल जाये ओर फ़िर से मस्त रहे अपने परिवार ओर ब्लांग परिवार मे, इन सब को दिमाग से झटक दे
Oh dont be perturbed. You will certainly shine in some sphere. May be in medical itself or beyond. Revealing your self is a sign of progress. Hiding is poison though advised by Rachna ji.
Sri G Vishvanath ji has written all that is required. Salutations to him and
best wishes to you
with hearty and sincere wishes
priya
हारिये न हिम्मत , बिसारिये न राम
मैडम,
मैं अपने तज्रबे की एक बात बताऊँ आपको, अपनी परेशानी को सार्वजनिक कभी नहीं करना चाहिए. अगर बहुत ज़रूरी हो तो एक या दो जिसे आप दिली तौर पर करीब समझें सिर्फ उससे share कर लेना चाहिए,कुछ सुकून मिल सकता है. वैसे आजकल सगे- सम्बन्धी धोखा दे जाते है,अन्य के बारे में क्या कहा जाए.
एक बात और,हालत बदलते रहते हैं. आज परिस्थितियोंवश आपका मन उदास और खिन्न हो सकता है परन्तु जल्द आप पुनः प्रसन्नचित्त नज़र आयेंगी,आप खुद देखिएगा.
मेरा मानना है की पिछली दुखद घटनाओं से दुखी होने के बजाय उनसे सबक लेना चाहिए और आगे बढ़ना चाहिए. यकीन मानिये आगे का सफ़र बहुत आसन हो जाता है.
फिर,आप तो एक योग्य और bold डॉ. हैं आप को क्या समझाना लेकिन कभी- कभी योग्य से योग्य आदमी के decision भी गलत हो जाते हैं .ये सबके साथ जीवन में चलता रहता है.
कुछ ज़ियादा समझा दिया न, कोई बात अच्छी न लगी हो तो क्षमा करियेगा.
ये माना है मुश्किल सफ़र ज़िन्दगी का,
मगर कम न हो हौसला आदमी का.
कुँवर कुसुमेश
not good......
pranam.
क्रूरता और किसी की बेईज़ती करने के लिए अपशब्द कहना इंसानियत के खिलाफ है. किसी को नीचा दिखाने का शौक हो तो अपने किरदार इतना ऊंचा उठाओ की सामने वाला खुद छोटा दिखने लगे.
आपने उचित समझ कर जो निर्णय लिया है ,पूरे मनोबल से उस पर डटी रहें .जहाँ चाह है वहाँ राह - आपको अपनी योग्यताएं प्रमाणित करने का अवसर मिलेगा ज़रूर क्योंकि आपमें लगन है .मैंने भी विवाह के बाद ,बच्चों को थोड़ा बड़ा हो जाने के बाद ,आगे पढ़ा था ,13 वर्ष पढ़ाई छूटी रही थी ,और जब एम.ए. किया तो वि.वि. में सिर्फ़ दो नंबरों से फ़र्स्ट पोजीशन रह गई .पिर मुड़ कर पीछे नहीं देखा ,वि.वि. में अध्यापन करते ,जब बेटा बी.ई. कर रहा था मैंने पीएच.डी किया .
वह सब पीछे छोड़ आई हूँ इसलिए आपको सलाह दे पा रही हूँ. हारियेगा मत ,अगर आपको सही लगता है और आपका परिवार प्रसन्न है तो किसी के कहने की परवाह न करें .
आज नही तो आगे आपको राह अवश्य मिलेगी - प्रयत्नरत तो आप रहेंगी ही . हमारी शुभ-कामनाएं आपके साथ रहेंगी .
ये पोस्ट भी रह गयी। शायद अपनी लिस्ट मे डाल कर सेव करना भूल गयी थी आपका ब्लाग। देखो विचारों के आदान प्रदान मे बहुत कुछ दोनो पक्षों को अच्छा नही लगता मगर उसे विशाल हृदय से लेना चाहिये। इतना ग्यान है तुम्हें फिर वो कब काम आयेगा। खिन्न होने की जरूरत नही हाँ मुझे आज ही पता चला तुम्हारे त्याग का। मगर मुझे अच्छा लगा परिवार पहले। अगर हम बच्चों को ही कुछ न बना पाये तो ी नौकरी का भी क्या फायदा मगर है बहुत कठिन निर्णय। शुभकामनायें।
दिव्या जी ... शिक्षा इंसान को मानसिक रूप से स्वतंत्र और उन्नत बनाती है ... आप चाहें तो कुछ भी कर सकती हैं ... कोई फ़र्क नही पड़ता ... पति के साथ आने का आपका फैंसला उचित ही था ....
दिव्या जी
ये पोस्ट रह गयी थी पढने से……………आप किसी की परवाह ना करें और अपने काम मे लगी रहें ऐसे मौके यहाँ आते रहते हैं मै भी इन वाकयों से गुजर चुकी हूँ इसलिये कह सकती हूँ आप ऐसे लोगो की बातो पर ध्यान न देकर अपने कर्म मे लगी रहें………………न ही उन लोगो की बातों को मन से लगाये नही तोउनका मकसद पूरा हो जायेगा……………आप तो बहुत ही बहादुर हैं ये आपके लेखन से पता चलता है फिर इस छोटी मानसिकता से परेशान क्या होना।
दिव्या जी,
आपके संघर्ष के प्रति हमारी सम्वेदनाएं।
बाकि, विवाद से बचने का प्रयत्न करें,और वही करें जो आपकी अन्तर आत्मा को उचित लगे और आपके चित को शान्ति व आनंद दे।
शुभकामनाएँ
आपने कुछ सराहनीय मेडिकल समस्यों पर पोस्ट्स लिखीं हैं, मुझे लगता है आप फर्जी डॉक्टर नहीं हैं.
क्या आप ऊपर लिखी लाइन से खुश हो जायेंगी, आप यह मान लेंगी की आप एक बहुत अच्छी डॉक्टर हैं.. फिर जब कोई कहता है की आप फर्जी हैं तो कहने दीजिए.. लोग तो आमने सामने भी बहुत कुछ कह जाते हैं.
सारे मित्र और ब्लॉगर ऊपर आपका काफी उत्साहवर्धन कर रहें हैं, क्या एक बुरे से सौ अच्छे ठीक नहीं क्या...
मैं तो इतना ही कहूँगा, मस्त रहो और लिखते रहो..
कोई कहे कहता रहे.....
...दो दिनों से नेट से दूर था..इस पोस्ट पर आकर ठहर सा गया। उन हालातों की जानकारी हुई जिनमें लेखनी चलती है। आपके साहस की दाद देनी पड़ेगी।
एक रूहानी डॉक्टर का आविर्भाव - रूहानी सृजन (सर्जन)
(रूद्र) ज्ञान यज्ञ में आपका सहयोग श्लाघनीय है | ४(३३); १७(११) ; १८(७०)
Doctor __ हद की सेवा * __ देहभान __आकर्षण __attachment __ द्वैत भाव
[ देह प्रति आकर्षण : असंतोषप्रद ]
रूहानी डॉक्टर __ बेहद की सेवा __आत्मा का मान [१०(२०)]__ स्वमान __ देही अभिमानी __ अद्वैत भाव की उत्पत्ति
[ आत्मिक भावना : संतोषप्रद ]
व्यक्ति कर्म करेगाही (कर्म करने का अधिकारी है ) | श्रीमत अनुसार किया कर्म संतोष देता है चाहे फल कुछ भी मिले | (श्रीमत के लिये की गई हर कोशिश पुरुषार्थ है) | श्रीमत से कर्म करने की आदत ही संतुष्ट रहने की आदत है |
Zeal तीव्र पुरुषार्थी हैं |
धर्म संस्थापनार्थ आत्माओं का सृजन होता है |
गाइये गुण गान प्रभु का, बन सचेतन आत्मा |
खोल चक्षु ज्ञान के , तुझको मिलेंगे परमात्मा ||
* Medical Science is a subset of science : Limited by science
आपका दर्द में है ये जान कर बेहद तकलीफ हुयी ,
आज से पहले हम आपको जानते थे मगर आज लगा जैसे आज आपसे एक रिश्ता सा बन गया है ।
ईश्वर से प्रार्थना करती हूँ कि वह आपको ढेर सारी खुशियां दे ।
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