आज तक बहुत से पत्र एवं कमेंट्स मेल से मिले लेकिन उसमे प्रकाशित न करने की गुजारिश होती थी। मिहिर जी की टिपण्णी / पत्र , जिसमें उन्होंने इसे प्रकाशित करने की इच्छा जाहिर की है, यहाँ प्रस्तुत कर रही हूँ। और मिहिर जी का आभार भी व्यक्त कर रही हूँ की उन्होंने अपने विचार हमारे साथ साझा किये । आपकी संवेदनशीलता पुरुष के भावुक ह्रदय की परिचायक है। आपकी पूर्वाग्रहों से रहित एक उत्तम सोच प्रशंसनीय है। मेरा विश्वास-वर्धन करने लिए आपका आभार।
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दिव्या जी, पिछले करीब ५-६ माह से आपको निरंतर पढता हूँ। हर बार आपको पढ़कर मुग्ध होता हूँ । आपकी हर पोस्ट आत्म आत्म मंथन को विवश करती है । जब भी अपने विचारों को आपकी पोस्ट्स पर लिखने की सोचा, शब्दों को हमेशा कम ही पाया। आज आपकी पोस्ट देखकर खुद को रोक नहीं पाया । आपसे गुजारिश है की मेरे पत्र को प्रकाशित किया जाये। क्यूंकि आपका , पति के साथ आने का निर्णय बहुत सी स्त्रियों को प्रेरित करेगा एक सही निर्णय लेने की दिशा में। और मेरा अनुभव यहाँ जुड़ जाने से शायद एक और पक्ष सामने आएगा। मैं पिछले १० वर्षों से कनाडा में हूँ। पेशे से इंजिनियर हूँ । इश्वर की अनुकम्पा से धन दौलत भी खूब है । एक सुन्दर सा बेटी भी है मेरी। लेकिन दुखी हूँ। सब कुछ होते हुए भी ठगा सा महसूस करता हूँ। मेरी पत्नी भी एक डाक्टर है । चेन्नई के एक प्रतिष्ठित अस्पताल में उसकी नौकरी है । मुझसे ज्यादा पैसा कमाती है। जब हमारे बीच ऐसी स्थिति आई तो उसने पैसे और अपने करियर को ही चुना। मेरा परिवार बिखर गया है । एक बार मैंने कोशिश की भारत जाकर नौकरी करने की और अपने परिवार के साथ रहने की , लेकिन मैंने देखा की अब मेरी पत्नी स्वयं में ही बहुत व्यस्त हो चुकी थी , आत्म निर्भर हो गयी है और अब उसे मेरी आवश्यकता नहीं के बराबर है। सिर्फ एक सामाजिक नाम मात्र का रिश्ता सा है हमारे बीच। साल में एक या दो बार मिलना होता है , और कुछ फोर्मल से दूरभाषिक वार्तालाप। सब कुछ महज एक औपचारिकता सा हो गया है। अपनी पत्नी और बेटी के लिए ह्रदय बहुत विलाप करता है अक्सर। मैं आपके निर्णय की सराहना करता हूँ । अपने करियर को त्यागना निश्चय ही कष्टकर होता है , लेकिन अपने परिवार से जुड़े हुए सदस्यों की खातिर अपनी निजी खुशियों की तिलांजलि देना , साधारण लोगों के बस की बात नहीं है। ऐसा तो वो ही सकते हैं , जो संवेदनशील हैं, और अपनों को प्यार करना जानते हैं। आपके इस नारी रूप को मैं नमन करता हूँ। ब्लॉग जगत में कुछ लोग दुसरे ब्लोगर को अपमानित करने में सदैव अग्रणी रहते हैं। ऐसे लोगों की तरफ आप बिलकुल ध्यान मत दीजिये। पूजा का लेख पढ़ा , उसने तो आपकी सभी टिप्पणियां ही हटा दी हैं। ऐसी स्त्रियाँ जो दूसरी स्त्री को द्वेष वश अपमानित करती है वो निंदनीय है। उसने ऐसा किया क्यूंकि सबको मालूम है की आपसे जलने वाले उसके लेखों पर जाना शुरू कर देंगे और उसको चाटुकारों की टिप्पणियां मिलने लगेंगी। मैंने देखा की उसके ब्लॉग पर ज्यादातर अनोनिमस और फर्जी आई-डी वाले ही थे उसके लेख पर। और अमरेन्द्र , अरविन्द , राजेश उत्साही तथा जैसे ब्लोगर तो वहां जरूर दिखेंगे जो निरंतर ये मौका ढूंढते हैं , की कहाँ आपका अपमान हो रहा है, वहां पहुँच कर आयोजन को सफल बनाया जाए। इसके अतिरिक्त कुछ ब्लोगर ऐसे थे वहां जो आप और पूजा दोनों को सहानुभूति दिखा रहे थे , ऐसे लोग सबसे खतरनाक होते हैं और ये सिर्फ अपने स्वार्थवश दोनों को ही बंदरबाट जैसी समझाइश देते हैं। आपसे कहना चाहूँगा की आप इन ईर्ष्या करने वाले लोगों [ अरविन्द, अमरेन्द्र , राजेश उत्साही , पूजा , जलजला आदि] तुच्छ मानसिकता वालों की बातों से तनिक भी व्यथित न हों तथा इनके स्वार्थ्य से भरे उद्देश्यों को कभी सफल न होने दें। आप बहुत से लोगों की आदर्श हैं और अपने आप में एक मिसाल हैं। मेरी तरह बहुत से लोग आपको पढ़ते हैं और ह्रदय से आपके विचारों का सम्मान करते हैं। आपके लेख गहरे चिंतन को दर्शाते हैं और ज्ञानवर्धक होते हैं। आप अपने समाज और देश के लिए एक उपलब्धि हैं। धन्य है वो पति जिसकी आप पत्नी हैं , वो माँ-बाप जिसकी आप औलाद हैं और वो माटी जिसमें आप जन्मी हैं। करवाचौथ के इस शुभ अवसर पर आपको एवं आपके पति को अशेष शुभकामनायें ... आपका एक शुभ चिन्तक , मिहिर।
24 comments:
आपके इस पहलू से अभी तक अनजान था. सलाम करता हूँ आपको.
@दिव्याजी,
आज पहली बार आपके ब्लॉग पर टिपण्णी कर रहा हूँ,,, क्यूंकि पहली बार शायद कुछ कहने का मन हुआ है..
आपकी पिछली पोस्ट (निराश हूँ जेंडर बोयस से) में आपने कहा की महिलाओं को देखकर ही लोग टिपण्णी करते है.. ये बात सरासर गलत है. मैंने आज तक आपके ब्लॉग पर टिपण्णी नहीं की "क्यूंकि आपके आध्यात्म और चिन्तन भरे लेखो को मुझ जैसा "गूढ़मगज " समझ ही नहीं पाता है! और ब्लॉग का प्रचार करने के लिए किसी के "कमेन्ट बॉक्स" में nice , beautiful और अतिसुन्दर कहकर कट लेने की अपनी आदत नहीं है..
ब्लॉग जगत में मुझ जैसे लोग सिर्फ टाइम पास करने के लिए आते है.. बहुत से ब्लॉग कविता, कहानियों, चुटकलों (टुचाक्लों) से भरे पड़े है.. जिनमे जयादातर cut & Paste की मास्टरी है.
=======
श्री सुरेशजी चिपलूनकर एक ऐसे लेखक है जिनके लेखों को आप चाहकर भी नकार नहीं सकते. ऐसे तथ्यों और साक्ष्यों की रोशनी में वो लिखते है की उनके लेखों पर टिपण्णी किये बिना मैं रहा नहीं सकता... लोगों ने उनको भी बहुत गालियाँ दी और अशब्द कहे है, कई महान कथित प्रगतिशील पत्रकारों ने उन्हें घाघ कहकर बड़े बड़े लेख लिख डाले.. क्या हुआ...??? वो कुछ नहीं उखाड़ सके ...
@दिव्या जी, यही आपके साथ हो रहा है.. पहले भी कई बार देख चूका हूँ.. हो सकता आगे भी आपके साथ ये सब हो... क्यूंकि आप एक महिला है और साथ में "सेक्युलर" भी नहीं है ..(जैसे आपके कुछ लेखों में देखने को मिला) -- इसलिए तिलमिलाए हुए "समाज के ठेकेदार ये प्रगतिशील लेखक और पत्रकार" इस बात को कैसे सहन कर सकते है कि कोई महिला इनकी सत्ता को चुनौती दे.. ??
आपसे बस इतना ही कहना चाहता हूँ कि बस खुले दिल से लिखिए चाहे ये "कथित प्रगतिशील ब्लॉगर और पत्रकार आपको "अछूत" बना दे.. बस आप अपना काम कीजिये, और ऐसे ही लिखते रहिये..
आपका अनुज-
राजेंद्र
@दिव्याजी,
आज पहली बार आपके ब्लॉग पर टिपण्णी कर रहा हूँ,,, क्यूंकि पहली बार शायद कुछ कहने का मन हुआ है..
आपकी पिछली पोस्ट (निराश हूँ जेंडर बोयस से) में आपने कहा की महिलाओं को देखकर ही लोग टिपण्णी करते है.. ये बात सरासर गलत है. मैंने आज तक आपके ब्लॉग पर टिपण्णी नहीं की "क्यूंकि आपके आध्यात्म और चिन्तन भरे लेखो को मुझ जैसा "गूढ़मगज " समझ ही नहीं पाता है! और ब्लॉग का प्रचार करने के लिए किसी के "कमेन्ट बॉक्स" में nice , beautiful और अतिसुन्दर कहकर कट लेने की अपनी आदत नहीं है..
ब्लॉग जगत में मुझ जैसे लोग सिर्फ टाइम पास करने के लिए आते है.. बहुत से ब्लॉग कविता, कहानियों, चुटकलों (टुचाक्लों) से भरे पड़े है.. जिनमे जयादातर cut & Paste की मास्टरी है.
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श्री सुरेशजी चिपलूनकर एक ऐसे लेखक है जिनके लेखों को आप चाहकर भी नकार नहीं सकते. ऐसे तथ्यों और साक्ष्यों की रोशनी में वो लिखते है की उनके लेखों पर टिपण्णी किये बिना मैं रहा नहीं सकता... लोगों ने उनको भी बहुत गालियाँ दी और अशब्द कहे है, कई महान कथित प्रगतिशील पत्रकारों ने उन्हें घाघ कहकर बड़े बड़े लेख लिख डाले.. क्या हुआ...??? वो कुछ नहीं उखाड़ सके ...
@दिव्या जी, यही आपके साथ हो रहा है.. पहले भी कई बार देख चूका हूँ.. हो सकता आगे भी आपके साथ ये सब हो... क्यूंकि आप एक महिला है और साथ में "सेक्युलर" भी नहीं है ..(जैसे आपके कुछ लेखों में देखने को मिला) -- इसलिए तिलमिलाए हुए "समाज के ठेकेदार ये प्रगतिशील लेखक और पत्रकार" इस बात को कैसे सहन कर सकते है कि कोई महिला इनकी सत्ता को चुनौती दे.. ??
आपसे बस इतना ही कहना चाहता हूँ कि बस खुले दिल से लिखिए चाहे ये "कथित प्रगतिशील ब्लॉगर और पत्रकार आपको "अछूत" बना दे.. बस आप अपना काम कीजिये, और ऐसे ही लिखते रहिये..
आपका अनुज-
राजेंद्र
मिहिर जी के प्रकाशित इस पत्र में ज़बरदस्त विरोधाभास है. उनकी पत्नी द्वारा नौकरी त्याग कर उनके साथ न रहने और परिणामस्वरुप अब महज़ औपचारिक सम्बन्ध के उनके ज़िक्र से उनकी सोंच में पुरुष प्रधानता की बू आती है.ये बात तो उनकी पत्नी भी कह सकती है की उनके पति को नौकरी त्याग कर अथवा भारत में नौकरी करके उसके साथ रहना चाहिए. हर मामले में कुर्बानी औरत ही क्यों दे ? वर्तमान परिस्थितियों में उपजी आपकी परेशानी में सहानुभूति का दृष्टिकोण रखने के लिए उन्हें अपनी पत्नी को निशाने पर लाना आपको, हो सकता है, संतुष्टि और ख़ुशी दे दे परन्तु मानवीय और संवेदना के धरातल पर कतई उचित नहीं ठहराया जा सकता.
कुँवर कुसुमेश
अज पिछली कुछ पोस्ट जो छूट गयी थी पढी। आज एक नया तुम्हारे जीवन का पहलू पता चला। मिहिर जी ने सही कहा बहुत कठिन है मगर परिवार के लिये एक औरत ही त्याग कर सकती है। अगर करियर के कारण बच्चे हे कुछ न बन पाये तो वो नौकरी भी किस काम की। बहुत हिम्मत दिखाई है तुम ने। हाँ एक सलाह बिन माँगे जरूर दूँगी कि बहस मे बहुत कुछ बुरा लगता हैअगर आप किसी को कायर कहते हो वो आपको इससे भी कुछ अधिक कहेगा। ये विचारधारा है जरूरी नही सबके विचार मिलते हों इसे सहज से लेना चाहिये। आपको अधिकार है अपने विचार रखने का और दूसरों को अपने बस इतनी बात है जब आप हद से गुजरेंगे तो वो भी कम नही करेंगे मगर इन बातों को दिल स्4ए नही लगाना चाहिये। तुम बहुत अच्छा लिखती हो लिखती रहो। आशीर्वाद।
अभी पुरानी पोस्ट पढी है और वहीँ पर सब कह दिया है…………बस लिखना मत छोडिये।
ये दुनिया भी अजीब खेल दिखाती है....
एक पल में हँसाती और एक पल में रुलाती है |
अपने ब्लॉग पर एक कविता लिखी जो कहीं ना कहीं आपसे ही प्रेरित है |
आज कल इंटरनेट की समस्या से जूझ रहा हूँ | इसलिए टिप्पणियों में देरी हो जाती है...
badhiya post...aapki baaten bold hoti hai...log virodh karenge lekin ghabrane kee jarurat nahi hai...apni baat bevaak kahate rahen.
दिव्याजी!...मिहिरजी के बारे में जान कर बहुत दुःख होता है!...हमारे समाज में कहीं स्त्रियों पर अत्याचार हो रहा है....तो कहीं पुरुष अत्याचार के शिकार हो रहे है!...वैसे मिहीरजी ने सही सलाह दी है!...आप अपने विरोधियों की परवाह न करें!...आप की रचनाएं वास्तविकता लिए होती है....कहा हुआ डंके की चोट होती है!...मै आप को बहुत पसंद करती हूं!...
मिहिर जी आप की व्यथा विचारनीय है किन्तु मैं आपसे यह अनुरोध करूंगा की आप व्यथित होने जगह इसे थोडा सकारात्मक ले तो अच्छा रहेगा अर्थात आपकी पत्नी डॉक्टर हैं और अपने करिअर के लिए सब कुछ समर्पित कर रही हैं यदि इस कार्य में कोई अन्यथा दुर्गुण न हो तो इसे उनका त्याग मान लीजिये और इस त्याग से शायद वह कई लोगों की जिंदगी वहाल कर रही होंगी. अर्थात त्याग के लिए सर्व प्रथम अपने घर का त्याग करना पदता है फिर गाँव का , और देश का . जहा तक दिव्या जी का प्रश्न है तो हर व्यक्ति एक जैसा न तो सोच सकता है , हर व्यक्ति की जरूरत अलग अलग होती हैं , संस्कार अलग होते है मानदंड अलग होते हैं इस लिए तुलना कर स्वयं को व्यथित करने का कोई औचित्य नहीं है. वल्कि जब भी आप भारत आते है तो कुछ ऐसा कीजिये कि आप को औपचारिकता न महसूस हो शायद मेरी बात का आप बुरा मान जाये , इसके लिए क्षमा प्रार्थी हूँ. एक सलाह और - अपनी नितांत व्यक्तिगत बात ब्लॉग पर प्रकाशित न ही कर तो अच्छा होगा क्योंकि बोलग जगत वाले कई प्रकार कीबातें लिखेंगे उपदेश भी देंगे . इस काम में ऐसे लोग भी होंगे जिनका खुद का कुछ भी आधार न होगा .
very nice aapko karva chauth ki shubhkamnayen
मिहिर जी का इ मेल पढ़ा , परिवार विघटन की समस्या मुह खोले खडी है . आप लिखते रहो, हमारे जैसे पढने वाले आपने आप ही आयेंगे .
मिहिर जी का इ मेल पढ़ा , परिवार विघटन की समस्या मुह खोले खडी है . आप लिखते रहो, हमारे जैसे पढने वाले आपने आप ही आयेंगे .
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मिहिर जी जैसी भाषा ही मनोबल लौटा लाती है.
कुँवर जी के समक्ष मैं अपना पक्ष रखता हूँ — त्याग बेशक पुरुष और स्त्रियों दोनों की शोभा है लेकिन स्त्री का त्याग अधिक महत्वपूर्ण है. पुरुष का त्याग न उतना महत्वपूर्ण है और न ही लाभदायक. स्त्री तो नौकरी त्याग करके परिवार को जोड़ने की, बच्चों को जन्म देकर उन्हें पालने-पोसने की, प्राथमिक शिक्षा और संस्कार में दक्ष करने आदि की भूमिका निभा सकती है. उसका नौकरी करना पुरुष के बनिस्पत उतना ज़रूरी नहीं जितना पुरुष का है. पुरुष बेचारा जीविका उपार्जन के अलावा थोड़ा-बहुत ही घरेलु मदद कर सकता है. वह भावनात्मक स्तर पर और संवेदना के स्तर कमतर होने के कारण घर और परिवार के लिये केवल बाह्य तौर पर ही सुरक्षा दे सकता है. भीतर की दरारों को और भीतर के जोड़ों को तो स्त्री ही पहचानती है और उन्हें मजबूती दे पाती है.
पुरुष का दायरा व्यापक है और वह अपनी ऊर्जा उसमें ही लगाए रहता है. वह समाज और राष्ट्र के लिये तो सहजता से सोच लेता है लेकिन समाज की मूल इकाई परिवार पर वह उतनी गंभीरता से नहीं सोच पाता. इसका मतलब यह नहीं कि स्त्री की सोच व्यापक नहीं. वह भीतर से मजबूती की शुरुआत करना पसंद करती है. और पुरुष की दौड़ बाहर से भीतर की ओर है. लेकिन महत्व दोनों का ही है. स्वभाव है अपना-अपना.
एक बार विचार शून्य जी ने अपने लेखन के शुरू में एक पोस्ट लगायी थी, जहाँ स्त्री-पुरुषों के बराबरी के हक़ की बात पर अच्छा व्यंग्य था, पढ़ना चाहें तो अवश्य पढ़ें : http://vichaarshoonya.blogspot.com/2010/03/blog-post_07.html
मुझे मिहिर जी ने अपने विचारों से प्रभावित किया. दिव्या जी, आप लेखन पर ध्यान दें, अन्य बातों पर नहीं. बाक़ी सब कुछ आपसे मिहिर जी ने कह ही दिया है.
हाँ प्रतिक्रिया देते समय इस बात का ध्यान रखें कि उसे पहली और दूसरी बार में यदि महत्व नहीं दिया जा रहा है तो वहाँ न जाएँ. चिपलूनकर जैसी राह काफी कठिन है विरले ही उस राह को अपनाते हैं. आप विवादों को स्वयं समाप्त करने में सक्षम बनें. जब आप तार्किक ढंग से बातों को टिपता सकती हैं तो भावुकता वाली पोस्टों का सहारा आखिरी हथियार लगता है. अब कभी ऐसा न हो.
जो लेखों से चरित्र का अनुमान लगाया करते हैं वे व्यक्तिगत आक्षेपों से व्यक्ति को नहीं आँकते.
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very nice post thanks with regards
मिहिर जी का पत्र पढ़कर जाना कि वे एक बेहद संवेदनशील व्यक्ति हैं। अपनी व्यथा को उन्होंने हम सबके साथ साझा किया है, क्योंकि वे दूसरों की व्यथा को भी समझते हैं। उनके पत्र से आपका विश्वासवर्द्धन हुआ है, यह जानकर आत्मिक संतोष् हुआ।
लिखते रहिए। शुभकामनाएं!
समकालीन डोगरी साहित्य के प्रथम महत्वपूर्ण हस्ताक्षर : श्री नरेन्द्र खजुरिया
बहुत-बहुत बधाई!
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सुन्दर प्रस्तुति!
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आपकी पोस्ट को बुधवार के
चर्चा मंच पर लगा दिया है!
http://charchamanch.blogspot.com/
मिहिर जी ने अपनी पत्नी पर गलत आरोप लगाये हैं ,क्योंकि पैसे और कैरियर के लिये तो मिहिर जी गये ।
वीर तुम बढ़े चलो, धीर तुम चढ़े चलो. सामने पहाड़ हो, सिंह की दहाड़ हो.
Dearest ZEAL:
Julius Caesar was a king unparalleled and in the same way you are a queen undisputed.
Given the current state of events, I would only like to draw your attention to this.
Caesar:
Who is it in the press that calls on me?
I hear a tongue shriller than all the music
Cry "Caesar!" Speak, Caesar is turn'd to hear.
Soothsayer:
Beware the ides of March.
Caesar:
What man is that?
Brutus:
A soothsayer bids you beware the ides of March.
[Julius Caesar Act 1, scene 2, 15–19]
This is it.
Semper Fidelis
Arth Desai
aapko karva chauth ki shubhkamnayen ........
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