दो अनशन -
- बाबा रामदेव का अनशन भ्रष्टाचार और काले धन की वापसी के लिए
- स्वामी निगमानंद का अनशन गंगा नदी बचाने के लिए।
एक की मृत्यु हो गयी और दुसरे का अनशन तुडवा दिया गया । क्या दोनों असफल हैं ? क्या अनशन व्यर्थ गया ? क्या सरकार की विजय हुयी ?
मेरे विचार से , कुछ भी व्यर्थ नहीं जाता। विज्ञान की मानें तो ऊर्जा का नाश नहीं होता , ये केवल अपना स्वरुप बदलती है । kinetic से potential , और कभी heat energy तो कभी sound आदि आदि...
इसी प्रकार बाबा के अनशन और स्वामी निगमानंद के अनशन से जो जन चेतना आ चुकी है , वही इस अनशन की सफलता है। सजग तो मनुष्य पहले से ही था, बस एक नेतृत्व की आवश्यकता थी । मार्ग दर्शन की ज़रुरत थी । अब जनता को दिशा मिल गयी है। यही सफलता है इस जन आन्दोलन की।
हार तो सरकार की हुयी है। सरकार ने इस पूरे प्रकरण में निम्न मिसालें कायम की हैं।
- सरकार ने बर्बरता की मिसाल कायम की है।
- इस देश में संतों का कितना अनादर होता है , ये बताया है।
- कायरों का देश है जहाँ सोयी हुई निहत्थी जनता को मारा जाता है।
- कोई भूखा प्यासा , देश के हित में मांग कर रहा है , तो कैसे उसके दम तोड़ने का इंतज़ार किया जाता है।
- जनता के मूल अधिकारों का हनन करती है ।
- लोकतंत्र की हत्या करती है ।
- मानवता जैसी कोई चीज़ नहीं है राजनीतिज्ञों के दिलों में।
- बाबा निगमानंद के ६८ दिन के अनशन पर भी जूँ तक नहीं रेंगी दृष्टिहीन और बधिर राजनीतिज्ञों पर।
- ये सरकार तानाशाह है जो जनता पर शासन कर रही है , जनता के कष्टों से उसे कोई सरोकार नहीं है।
- लोगों को five star होटल में बुलाकर गुप-चुप मंत्रणा करती है फिर धोखा और blackmail करके पत्र लिखवाती है , फिर पब्लिक में जलील करती है और सबके सोने का इंतज़ार करती और फिर निशाचरों की तरह अपनी असलियल दिखाती है।
- इस देश में देशभक्त होना भी गुनाह है।
- सच्चाई के मार्ग पर चलना गुनाह है।
- दुश्मन मुल्कों के साथ नाश्ता पानी करती है।
- आतंकवादियों को शाही दामाद की तरह रखती है , और मासूमों को पीटती है।
- खुद तो दो जून की रोटी भी त्याग नहीं सकती , लेकिन देशहित सोचने वाले संतों और नागरिकों के मरने का इंतज़ार करती है।
- सबसे बड़ी मिसाल तो घोटालों में कायम की है।
- उससे भी बड़ी मिसाल सबकी धन-सम्पति पर आयोग बिठाने में की है
- वाह जनाब वाह ! कमाल हैं आप !
विपक्ष की राजनितिक रोटियां -
विपक्ष में बैठे राजनीतिज्ञ भी अनशन की आंच पर अपनी कुटिल रोटियां सेंकते दिखाई दिए। घायलों का हाल चाल नहीं पूछा , केवल बयानबाजी की और जगह-जगह निरर्थक सत्याग्रह किया।
देशभक्ति के नाम पर अनावश्यक रूप से नाचा-गाया , लेकिन कोई देशभक्त भूख से दम तोड़ रहा है , उस दिशा में नहीं सोचा।
मायावती की सोंधी रोटी -
कांग्रेस की निंदा तो कर दी , लेकिन बाबा को अपने राज्य में घुसने की इज़ाज़त तक नहीं दी । डर किस बात का ? सब एक जैसे हैं । दम्भी और स्वार्थी । चोर-चोर मौसेरे भाई ।
राहुल राजकुमार की राजनीति -
यत्र-तत्र गत्रीबों का झंडा लिए दिखाई दे जायेंगे। सब के दुःख-सुख से नकली सरोकार रखेंगे। देश के युवा को जागृत करते फिरेंगे। लेकिन जब लोग जागृत हो जायेंगे तो ये आँख बंद करके नंदन-कानन में underground हो जायेंगे ।
क्या इस सुकुमार को तंत्र की बर्बरता नहीं दिखी ? स्त्रियों , युवाओं और बुजुर्गों पर अत्याचार नहीं दिखा ? बड़ा selective दिल पसीजता है राजकुमार का।
ईमानदार प्रधानमन्त्री के रहते यदि भ्रष्टाचार पनपता है तो क्यूँ न कोई अत्यंत-भ्रष्ट व्यक्ति को शासन की बागडोर सौंपी जाये , शायद राम राज्य वापस आ जाए ?
क्या ख़याल है आपका ?
111 comments:
मृत्यु पर भी संदेह के बादल गहरा रहे हैं।
समाचार देखें...
http://navbharattimes.indiatimes.com/articleshow/8859196.cms
.यदि यह जन चेतना कम्प्यूटर से किटकिट और शाम की चा-पानी से निकल कर बाहर आये.. तभी यह अनशन सफल है ।
कोई दूसरी तरह का वितँडा खड़ा हो जायेगा, और जन चेतना घूम कर उधर का रुख कर लेगी । सरकार इसी तरह के भुलावों को रचने की जी-तोड़ कोशिश कर रही है । भारतीय मानस की जन चेतना यूँ ही नहीं जगती, जब तक कोई नया चेहरा बागडोर हाथ में लेने के लिये सामने न आ जाये ।
भारतीय मानस की घुट्टियों में अवतारवाद बसा हुआ है... वह युगों तक अपने उद्धार के लिये प्रतीक्षा कर सकती है... यदा यदा हि धर्मस्य..... !
कुछ अधिक लिख गया क्या ?
बाबा का अनशन ब्यर्थ नहीं गया ..क्रांति का शंखनाद हो गया है...
खान्ग्रेसियों का रक्तचाप बढ़ गया है और बिकी हुए मीडिया और दलाल पत्रकारों का चरित्र सामने आ गया हिन्दुस्थान के
जय बाबा रामदेव...तुम सत्य के साथ हो देश तुम्हारे साथ है
कहने को बहुत कुछ है मगर कुछ नहीं कहते... अनशन का अर्थ किसे समझाने की कोशिश हो रही है राजनीती का कोई ईमान धर्म नहीं होता, (याद करे कपिल सिब्बल जी की बात 2G घोटाले में कोई घाटा नहीं हुआ.. आगे क्या हुआ ..) इन राजनीतिज्ञों के पिछले बयान इनको अयना दिखने के लिए काफी है . आप निगमानंद हो मरते देखिये , उन्हें सत्याग्रह पर बापू के सामने नाचने दीजिये . मीडिया को रामदेव और दिग्विजय को कवर करने दीजिये , अन्ना को टोपी में ही रहना चाहिए और काले धन को विदेश में ही , भ्रस्ताचार अपना साथी है अब साथी पर नकेल इमानदार प्रधानमंत्री भी नहीं कस सकता इमानदार रहने तक
अनशन व्यर्थ नहीं गए हैं....इनकी बदौलत जनता जागरूक हो रही है...आम रिक्शे वाले से लेकर लेबर क्लास तक सबको मालुम चल चुका है कि बाबा राम देव का अनशन किसलिए था?...
कमी बस इतनी है कि आम जनता एकजुट नहीं हो पा रही है...अब चुनावों के वक्त ही जनता द्वारा इन सरकारों को सबक सिखाया जाएगा...वैसे!...ये भी सच है कि हमरे देश की जनता की यादाश्त बहुत कमजोर है... :-(
यह अनशन व्यर्थ नहीं गया , क्योंकि सकारात्मक दिशा में एक कदम भी मंजिल के पास पहुंचा देता है |रही नेताओं की बात समय व्यर्थ करने के सिवा कुछ नहीं !!
वक्त की नब्ज थामे रहिये.....
भारत कायरो का देश हो गया है एक सन्यासी गंगा बचने के लिए अनसन करके मर गया सर्कार को जू नहीं रेगा ,लेकिन यह बलिदान ब्यर्थ नहीं जायेगा बाबा राम देव तो अपन्ना कम अपने-अप ख़राब किये है किसी टीम में उनका विस्वास नहीं है टीम वर्क चाहिए वे अकले ही सब कुछ करना चाहते है.लेकिन भारत का भविष्य अच्छा है यह हमारा विस्वास है.
Baba Nigamanand kee mrityu to behad afsosjanak hai.Unki to na sarkaar ne dakhal lee na jantane.Paryawaran ko leke ham kitne asamvedansheel hain,yahi saamne aaya hai.
vyarth nahi gaya anshan
bas ab ise sahi tareeke se lead karna chahiye
जब सरकार में अहम आ जाता है, वह अपने घमण्ड में आंख और कान बंद कर लेती है... समझों कि उसका उखड़ना दूर नहीं ॥
आपका आबसरवेशन सही है वास्तव में सियासतदान अपने आपको तीसमारखान समझते हैं और जनता को तुच्छ निक्रिष्ट वस्तु । जनता का काम इनकी सेवा है विरोध नहीं अत: वे जनता का ज़रा भी विरोध अपने स्वाभिभान के खिलाफ़ समझते हैं।
दिव्या दीदी सच में आपने मेरे मन की पीड़ा को अपने ब्लॉग की इस पोस्ट में लिख दिया...स्वामी निगमानंद आज हमारे बीच नहीं हैं, इसका दुःख तो जरुर है...किन्तु उनके प्रयास व बलिदान व्यर्थ नहीं जाएगा...उनका गंगा बचाओ आन्दोलन सफल होगा...संत भले ही अलग अलग शरीर में हों कितु होते एक ही हैं...स्वामी रामदेव व स्वामी निगमानंद एक ही हैं...
वैसे अब जल्दी ही कोई नयी रणनीति बनानी होगी क्यों कि सोनिया अपने नन्हे मुन्ने राहुल के साथ स्विटज़रलैंड गयी है...क्यों गयी है यह आप भी जानती हैं...इससे पहले कि वह अपना पैसा कहीं ठिकाने लगा दे कुछ करना होगा...
अनशन व्यर्थ नहीं गया है...जन चेतना जागृत हो रही है...आवाम जाग रहा है...आप हम इसे जगा कर रहेंगे...बाबा रामदेव ने क्रान्ति छेड़ दी है, अब कुछ भी हो जाए, चाहे कितने ही डॉ. अमर कुमार कुछ भी बोल लें, क्रान्ति हो कर रहेगी...और इस क्रान्ति में इस कांग्रेस का सफाया हो कर रहेगा...मेरे हाथ पर काली पट्टी अभी भी बंधी है...आपको पता होगा मेरी प्रतिज्ञा के बारे में...
अत: इस पट्टी को खोलने के लिए अब कुछ भी करना पड़े मैं करूँगा...
@ यदि मुखिया 'मनमोहन' वास्तव में ईमानदार होते तो बड़ी मात्रा में घोटाले नहीं होते और न ही किसी मंत्री की झूठ बोलने की बार-बार जुर्रत होती.
सोनिया जी का सरकारी पद अपने पास न रखने का सबसे कारण स्पष्ट होने लगा है... वह यह कि घोटालों पर उनकी कोई सीधे जवाबदेही नहीं बनती...
है ना दोनों हाथ 'स्विस-घी' में और मुँह करप्शन की कडाई में...
मनमोहन जी मेडम जी के एहसानमंद हैं ... उनकी कृपा से बुढ़ापा सुधर गया.
मायावती ने उत्तर प्रदेश में रामदेव बाबा को भविष्य का ख़तरा जानकर ही उन्हें सत्याग्रह की स्वीकृति नहीं दी...... बाबा जी ने मुस्लिमों को अपने साथ लिया .. और स्वयं यादव वर्ग से आकर अवर्ण-सवर्ण के बीच का भेद समाप्त कर दिया. अपने कार्यों से ब्राह्मण-धर्म निभाया. लालू व मायावती जैसे जातिवादी राजनीती करने वाले नेताओं को तमाचा जड़ा. सवर्णों के बीच एक विश्वसनीय चरित्र स्थापित करके उनका मान बढाया. ..... इस तरह उन्होंने सम्पूर्ण समाज को सूत्रबद्ध करने का ही कार्य किया. ऐसे व्यक्ति अत्यंत भावुक होने के कारण कभी-कभी अमेच्योर लगते हैं. लेकिन ऐसे चरित्र आमजन के बीच आदर्श बनकर हमेशा प्रेरित करने का कार्य करते हैं.
bhrashtachar ke liye to janta kee aankh khol aage badhne kee prakriya ka to ye pahla charan hai .sath hi rajneetigyon kee chor chor mausere bhai vali kalai bhi yahan khuli hai kintu ye bhi maniye divya ji ki isse baba ramdev kee netratv heenta bhi jahir hui hai swayam ko bachane ko ve ghanto mahilaon ke kapdon me chhupte fire jabki hamare desh ke satyagrahiyon ka aacharan kabhi bi aisa nahi raha aur n unhone apne jeevan kee janta ke jeevn ke samne koi keemat samjhi .
i think Bikram has made my job easy here....so without typing anything further i can say.....DITTO BIKRAM'S COMMENT.
बाबा के अनशन ने मुर्दो मो जान डाल दी अब कुछ लोग फ़िर भी बाबा पर उंगली ऊठाये तो क्या कह सकते हे, अगर मुझे खाने को प्रयाप्त मिलता हे तो इस का मतलब यह नही कि पुरा देश खुश हाल हे, जब भी भारत आया अपने देश को अपने भाईयो को देख कर दिल दुखी हुआ हे, एल मजदुर युरोप मे अच्छे घर मे रहता हे, कार हे मकान हे उस के पास, सारे हक हे, एक मजदुर भारत मे हे, जिस के पास घर तो क्या एक झोपडी भी नही, कार ओर मकान की तो बहुत दुर की बात हे, उस बेचारे को कोई हक भी नही, सारा दिन हडतोड मेहनत के बाद भी भुखा... जब कि भारतिया मजदुर युरोपियन मजदुर से ज्यादा मेहनत करता हे,इस मजदुर की असली मेहनत तो कोई ओर खा रहा हे.... बाबा राम देव ने, ओर अन्ना हजारे ने इसी बात को पकडा हे, जड से इस भ्रष्टाचार को खत्म करना चाहा हे, लेकिन जनता फ़िर से इन नेताओ की बातो मे आ रही हे, बाबा राम देव ओर अन्ना हजारे जैसे लोग सदियो मे कभी कभार होते हे, जय हिन्द
जिस प्रकार किसी गैंग के सदस्य पुलिस से उतना नहीं डरती जितना कि गैंग लीडर से. क्योंकि वह जानता है कि कौन कब क्या कर सकता है. भ्रष्टाचार और काला धन की गलियों में कोई मनमोहन क्या घुस पाएंगे. और घाट-घाट (पार्टी-पार्टी) का पानी पिए लोगों का क्या बिगाड़ लेंगे. इसके लिए तो वही चाहिए कि जो सभी गलियों, सभी मोड़ों से वाकिफ हो. और आवश्यक हो वह रत्नाकर से बाल्मीकि बन गया हो.
सार्थक व रचनात्मक पोस्ट के लिए आभार.
अनशन की व्यर्थता का राग मीडिया बजा रहा है .. और क्यों ..वो सब जानते हैं ... एक भ्रम कि स्थिति पैदा की जा रही है ...जो लोंग ख़बरों पर आँख मूँद कर विश्वास करते हैं वो ही लोंग भ्रम में हैं ...
हर बात सटीक लिखी है ..सरकार के लिए भी और विपक्षके लिए भी ..
मीडिया कहां छुपा बैठा था आजतक. निगमानंद जी भी वहीं थे लेकिन एक बार भी नहीं दिखाया क्या मीडिया इन्तजार कर रहा था स्वामी जी की शहादत का. राजनीतिबाज सब एक जैसे. इसीलिये बाबा जैसे व्यक्ति की जरूरत है.
डा०अमर कुमार और तनेजा जी के साथ प्रतुल जी की टिप्पणी विशेष रूप से काबिले गौर है. एक दिन आयेगा जब यह सब गन्द दूर होगी. बाबा का विरोध तो फैशन है.
हां !!!
http://ahsaskiparten.blogspot.com/2011/06/blog-post_160.html
baba ka anshan vyarth gaya to yah desh ka durbhgya hoga.
sahmat...
बहुत गहरे विचार |एक अच्छी पोस्ट के लिए आभार
आशा
कुछ भी व्यर्थ नहीं जाता ||
हर एक्शन का प्रति रिएक्शन
"न्यूटन" का नेचुरल कानून
सुधरो चाहे नरक सिधारो
बहुतै लगा, देश को चून
JAB JAB BHARAT PAR SANKAT MANDRAYEGA, TAB TAB EK RAMDEV AAYEGA. HAR KOI PHIR VANDE MATRAM GAYEGA.HAR KOI PHIR VANDE MATRAM GAYEGA. . . . . . . . . .
KUCH KARNE KI KABLIYAT HAI TUM ME, BAS ITNA JAAN LO. BHARSTACHAR KO UKHAR FEKNA HAI, YE DIL ME THAN LO. . . . . .
KHUDA JISKE SATH HAI USKA ANARTH NAHI HOTA, SANTON KA BALIDAAN VAYARTH NAHI HOTA. . . . . . .
IS RACHNA KO PADHNE KE BAAD OR KYA KAHUN DIVYA MAM, UPROKT LAFZ DIL ME AYE WAHI LIKH DIYE. . . . .
JAI HIND JAI BHARAT
आपके सभी प्रश्न तीखे हैं. कई ऐसे हैं जिनका उत्तर वर्तमान व्यवस्था में नहीं मिल सकता. इसका अर्थ यह नहीं कि कहने की स्वतंत्रता नहीं है. इसका अर्थ यह है कि देश में व्याप्त अशिक्षा और विभिन्न आधारों पर डाली गई फूट वर्तमान भ्रष्ट प्रणाली की सब से बड़ी सफलता है. इसलिए व्यापक रूप से समस्त देश के हित में कुछ नहीं होता. रामदेव से मुझे इसलिए उम्मीद नहीं है क्यों कि योग प्रशिक्षण मंच से यह कार्य नहीं हो सकता. यदि ये भ्रष्टाचार के विरुद्ध कार्य करने के प्रति इतने ही गंभीर हैं तो इन्हें स्वतंत्र रूप से और गाँवों में जाकर कार्य करना होगा, चैनलों और मीडिया से दूर रह कर.
'भारत' में अनशन की प्रथा प्राचीन योगियों ने आरम्भ की थी - किन्तु 'सत्य' को 'असत्य' अथवा 'माया' मान, उनका उद्देश्य 'परम सत्य' यानी निराकार ब्रह्म को जानना था... उन्होंने 'प्राणायाम' द्वारा केवल प्राकृतिक वायु पर जीवित रह किसी काल में सिद्ध कर दिया कि मानव ब्रह्माण्ड का, (अनंत शून्य का), प्रतिरूप अथवा प्रतिबिम्ब है - उनके शरीर पर बनी तथाकथित दीमक की बाम्बी दर्शाती हैं कि वो लगभग शून्य में पहुँच पृथ्वी (शिव के प्रतिरूप) पर व्याप्त मिटटी समान बन गए...
योगियों की मान्यतानुसार भोजन ही विष है ! इस कारण 'आम आदमी' को आम तौर पर आप आज भी विशेष अवसरों पर व्रतादि करते पाते हैं...
गांधी जी ने भी कई बार अनशन किया अंग्रेजी सरकार के विरोध में, और कहा जा सकता है कि वे अंततोगत्वा विजयी हुए...
और वर्तमान में कथन है कि 'इतिहास दोहराता है', जबकि योगियों ने 'सत्य' उसे माना जो काल पर निर्भर नहीं करता, जिस श्रंखला में कई अन्य व्यक्ति भी समय समय पर कुछ भौतिक सुख प्राप्ति के उद्देश्य से अनशन करते आ रहे हैं... वे भले ही उसमें सफल हों या न हों, जो केवल समय ही बता सकता है और अज्ञानतावश हम 'आम आदमी' केवल अटकलें ही लगा सकते हैं (और दुःख-सुख की अनुभूति)...
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@--kintu ye bhi maniye divya ji ki isse baba ramdev kee netratv heenta bhi jahir hui hai swayam ko bachane ko ve ghanto mahilaon ke kapdon me chhupte fire jabki hamare desh ke satyagrahiyon ka aacharan kabhi bi aisa nahi raha aur n unhone apne jeevan kee janta ke jeevn ke samne koi keemat samjhi .
June 15, 2011 10:56 PM
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क्या किसी के कपडे उनकी पहचान हैं ?
स्त्री की सलवार-कमीज़ पहनने से कोई संत अपने मंतव्यों से भटक गया ?
क्या उसमें स्त्रियोचित गुण आ गए ?
क्या संत के लिए स्त्री और पुरुष पृथक-पृथक हैं ?
क्या केवल भाई को अपनी रक्षा करनी चाहिए अपनी बहन की ? क्या बहन अपने भाई की रक्षा नहीं कर सकती ?
आपात स्थिति में सलवार कमीज़ पहनना ही व्यवहारिक है , या फिर बाबा के Shirt, trouser और Tie के लिए तत्काल प्रयत्न करना चाहिए था ?
यदि आप की जान पर बनेगी और आपको दुश्मनों का मंसूबा स्पष्ट दिखाई देगा तो आप क्या करेंगी ? क्या अपनी रक्षा हेतु यदि आप भाई के परिधान पहन लेंगी तो क्या गुनाह हो जाएगा ? या आप मार्ग-च्युत हो जायेंगी ? या फिर भ्रष्ट हो जायेंगी ?
यदि आपके भाई की जान खतरे में होगी तो आप उससे क्या कहेंगी ? ...प्रिय भाई शहीद हो जाओ , लेकिन स्त्री के कपडे मत पहनना नहीं तो रौरव नरक मिलेगा ?
बाबा जो वस्त्र धारण करते हैं और एक स्त्री की साडी में क्या अंतर है ? एक ५ गज की है , दूसरी २-गज की । सिर्फ पहनने का अंदाज़ अलग है।
मानवता की सेवा वस्त्रों की मोहताज़ नहीं होती ।
ज़रूरी है की हम अतार्किक 'कपड़ों की मानसिकता' से ऊपर उठकर एक वृहत परिपेक्ष्य में सोचें ।
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अनशन व्यर्थ नहीं गया ..लोंग भ्रष्टाचार पर चर्चा तो करने लगे हैं और अपने दामन में भी झाँकने लगे हैं ...कुछ अंकुश तो लगेगा ही ...!
हम तो सहमत हैं कि ऊर्जा व्यर्थ नहीं जायेगी।
यकीनन ऊर्जा व्यर्थ/नष्ट नही होती
अनशन व्यर्थ नहीं गया . अभी तो ये अंगड़ाई है . इस बात से सहमत कि सहमत कि सभी राजनीतिक पार्टियों को आम जनता के दुःख से कोई मतलब नहीं है . सब अपनी रोटियां सकने के फेर में रहते है .
देश की जनता को जगाने के लिए अभी बहुत कुछ किया जाना बाकी है। इस क्रान्ति की ऊर्जा को जनता ने अपने अन्दर सहेजा है, लेकिन अभी और ऊर्जा की आवश्यकता है। बुराई समाप्त करने में समय अवश्य लगता है लेकिन एक दिन समाप्त जरूर होती है।
उददेश्य यदि निजी रूप से स्वार्थपरक ना हो तो कोई भी कर्म निश्फल नहीं जाता
नैतृत्व के अतार्किक विरोध से कदाचित व्यक्ति को निस्तेज किया जा सकता है पर विचार कभी भी व्यर्थ नहीं जाते। वे एक बीज की तरह पनपते है और समय के साथ साथ विशाल वृक्ष का रूप ग्रहण करते है।
इन बेतुके तर्कों का कोई औचित्य नहीं है कि "बाबा ने महिलाओं की पौशाक क्यो पहनी" अगर वे शर्ट-ट्राउजर-टाई भी पहनते तो भांड मिडिया ढोल बजाता 'बाबा बन गए मॉर्डन मैन'
जो बाबा के वहां से चले जाने को आज कायरता में खपाने का प्रयास कर रहे है, यदि बाबा डटे रहते और फिर भी अत्याचार होता तो यह ही लोग कहते बाबा को चले जाना चाहिए था,अन्यथा इतना अत्याचार न होता, जवाबदार बाबा ही है।
तीसरा एकदम फ़ालतू तर्क है कि योगाचार्य नें नितिशास्त्र क्यों पढाया?
वस्तुतः बात मात्र यह नहीं कि सभी को नागरिक अधिकार है वैसे ही बाबा को भी विरोध का अधिकार है। बल्कि उनके विरोध का पक्ष अधिक प्रभावशाली है क्योकि वे पारिवारिक स्वार्थ से विलग है।
गृहत्यागवाद और परिवारवाद तो विरोधी रहेंगे ही। परिवारवाद को गृहत्यागी के भीषण प्रभाव का अंदेशा हो गया था।
अनशन समस्या पर सरकार और जनता का संज्ञान लाने के उद्देश्य से ही किया जाता है। और अपने उद्देश्य में सफल रहा है। सरकार में भय उत्पन्न करनें में सफल हुआ और जनता को जाग्रत करने में सफल हुआ।
जरूरी नहीं अनशन मृत्यु पर ही सफल माना जाय,अनशन की सफलता उसके उद्देश्य सधने में ही निहित है।
The effect and result of the fast will be known in days to come.No honest effort goes waste
कांग्रेसासुर नाम के राक्षस का अंत बाबा रामदेव के हाथो होना तय है.
कांग्रेसासुर को भी ये अच्छी तरह आभास हो गया है कि यही वो व्यक्ति है जो उसका अंत कर सकता है.
अतः उसने बाबा को मिटाने की एक भयंकर लेकिन असफल कोशिश की.
और आगे भी कांग्रेसासुर बाबा को मिटाने की कोशिशे करता रहेगा.
लेकिन होगा वही जो हमेशा से होता आया है.
"सत्यमेव जयते"
जो भी हो ! एक शांतिपूर्ण जन आन्दोलन को ताकत के बल पर कुचलने का प्रयास किया गया है उन लोगों द्वारा जो यह कहते नहीं थकते थे की भारत विश्व का एक मात्र सबसे बड़ा लोकतंत्र है, .......तो क्या लोकतंत्र के मायने बदल रहे हैं ?
बाबा के अनशन से जनता की सोच मै काफी बदलाव आ चुकी है जो काफी दिनों तक कायम रहने वाला है
@ रामदेव से मुझे इसलिए उम्मीद नहीं है क्यों कि योग प्रशिक्षण मंच से यह कार्य नहीं हो सकता. यदि ये भ्रष्टाचार के विरुद्ध कार्य करने के प्रति इतने ही गंभीर हैं तो इन्हें स्वतंत्र रूप से और गाँवों में जाकर कार्य करना होगा, चैनलों और मीडिया से दूर रह कर.
भुषण जी,
राजनितिज्ञ जब मिथ्या वादे करके सत्ता हासिल कर सकते है,तो एक सन्यासी योगशिविर को सत्याग्रह स्थल में क्यों नहीं बदल सकता? माना कि देश कुछ विधान बनाता है पर विरोध भी उन विधानों में होती अनियमितताओं का होता है। इसीलिए तो उसका नाम सत्याग्रह है, सत्याभासी झूठ को दूर करने के लिये सत्य का आग्रह करना।
काले धन को वापस लाने का आन्दोलन गांवों में जाकर? वह कैसे?
मिडिया से दूर? तकरीबन पूरा मिडिया ही स्वामीजी का प्रकट विरोध ही कर रहा था यह तो जनता अब समझदार हो गई है वह बेहतर समझ लेती है कि मिडिया जो कहता है वास्तविकता उससे भिन्न होती है। भ्रष्टाचार पर विरोध जाग्रति का श्रेय मिडिया को नहीं जाएगा जो लोकतंत्र का चौथा स्तम्भ होने का दावा ठोकता है। इसका इस बार श्रेय केवल और केवल जनता को जाएगा।
bahut hi satic aur saarthak lekh.bahut hi sahi prasn uthaye aapne.badhaai.
ये तो हर की जीत है. अधिक धनार्जन की प्रवृति हर व्यक्ति को छोडनी होगी अर्थात गैर कानूनी तरीके से धनार्जन करते हुए व्यक्ति पर तुरंत हमला बोल दिया जाना चाहिए तभी सफाई हो पायेगी
ये तो हार की जीत है
अब फिर चाणक्य का इतिहास दोहराया जाना है.
जब भारत के राजा लोग सत्ता, मदिरा और सुंदरी के सुख मे अपनी सारी जिम्मेदारिया भूल चुके थे.
भारत खण्ड खण्ड बँटा था.
विदेशी भारत पर आक्रमण की तैयारी कर रहे थे.
तब गुरु चाणक्य भारत के राजाओ को उनकी जिम्मेदारी का एहसास दिलाने और भारत पर मंडरा रहे संकट के बारे मे बताने के लिये और अखण्ड भारत के निर्माण के लिये नन्द वंश के राजा घनानन्द के पास गये.
लेकिन अय्याशियो मे डूबे राजा घनानंद ने गुरु चाणक्य की बात सुनना तो दूर बल्कि उनको लात मारकर बाहर फिकवा दिया.
तब अपने अपमान से क्रोधित चाणक्य ने प्रतिगा की थी कि वो ऐसे अय्याशियो मे डूबे राजाओ को सत्ता से उखाड़ कर उनकी जगह वीर पराक्रमी सदाचारी और प्रजा का हित सर्वोपरि रखने वाले राजा को बैठायेँगे.
जो अपने पराक्रम से अखण्ड भारत का निर्माण करेगा.
तब चाणक्य ने एक बालक चंद्रगुप्त को शस्त्र , शास्त्र .राजनीति, कूटनीति, सदाचार आदि सबका ग्यान देकर एक महान राजा बनाया.
और उस वीर चंद्रगुप्त ने घनानंद का वध करके पहले अपने गुरु चाणक्य के अपमान का बदला लिया और फिर समस्त दुराचारी राजाओ का नाश करके उसने अखण्ड भारत का निर्माण किया और भारत की सीमाओ का चीन तक विस्तार कर दिया.
आज फिर वो ही स्थितिया बन गयी है.
और सत्ता सुख मे डूबी कांग्रेस को जब उसकी जिम्मेदारियो का एहसास दिलाने बाबा रामदेव दिल्ली पहुचे.
तब घनानंद की तरह कांग्रेस ने भी बाबा रामदेव का अपमान करके उनको दिल्ली से बाहर हरिद्धार मे फिकवा दिया.
और अब बाबा रामदेव को चाणक्य की भूमिका निभानी है.
अब बाबा रामदेव को भी चाणक्य की राह पर चलते हुये अपनी राजनीतिक पार्टी बनानी चाहिये और शास्त्रो मे निपुण अच्छे,सदाचारी ,इमानदार लोगो को राजनीतिक पदो पर पहुचा कर भारत को विश्व गुरु बनाने का सपना साकार करना चाहिये.
और ऐसा वो जरुर करेँगे .बस आगे आगे देखिये होता है क्या?
मैं हमेशा एक बात का स्पष्टीकरण चाहता हूँ जिस पर अण्णा हजारे भी चुप्पी साध लेते हैं कई बार रालेगणसिद्धि पत्र लिखा है शायद कचरे की टोकरी में डाल दिया गया होगा।
सरकार क्या है??
जनता क्या है??
विधि का शासन क्या है??
चुनाव क्यों होते हैं??
क्या सरकार और जनता को हम दो भिन्न-भिन्न जता कर खुद को भ्रमित नहीं कर रहे हैं, जनता प्रतिनिधियों को चुनती है जो असरकार होकर सरकार बनते हैं फिर वही मूर्ख जनता पाँच साल तक पीसी जाती है ऐसा बुद्धिजीवी रोना रोते हैं। सरकार जनता के प्रतिनिधियों का समूह है जो विधि के नियमानुसार चयन करा जाता है। बाबरी मस्जिद तोड़ने के लिये कई लाख लोग एकत्र होकर जान की बाजी लगा कर अंजाम दे देते हैं लेकिन राष्ट्रदामाद बने आतंकियों को मार डालने के लिये यदि आव्हान करा जाए तो अराजकता फैलाने का आरोप मुझ पर लगा दिया जाए ये कैसी बुद्धिवादिता है? मैं कहता हूँ कि जिन पौने दो सौ लोगों को अजमल कसाब आदि ने बेरहमी से मुंबई में मार डाला उनके परिवार/पड़ोसी/रिश्तेदार लोग ही एकत्र होकर जेल पर हल्ला बोल दें तो कौन सा पुलिस वाला जनरल डायर बन जाएगा, पुलिस वाले तो खुद दबी जुबान में कहते हैं कि कोई इसे मार तो दे हमारा पीछा छूट जाएगा लेकिन जनता में ही इच्छाशक्ति नहीं है।
आप जनता और सरकार को अलग बता कर भ्रमित हैं। लोकतंत्र है या भीड़तंत्र ये कौन निर्धारित करेगा जिसकी तरफ जितने सिर वही सरकार है।
मोर्चा खोले रखें | बहुतों के पाने के लिये ,थोड़ों को गंवाना पड़ता है |पर कुर्बानी रंग ला के रहती है ...
शुभकामनाएँ !
divya ji
aapki post ke ek-ek shabd sachchai ke prateek hain .kina kisi ko to aage badhna hi tha issamaj ko asliyat ka jama pahanne ke liye .baba ke anshan ne aankhe khol di hain ab bari hai sabki use jaari rakhne ke liye varna vo sach me vyarth hi chala jayega.
han ,baba ka striyon ke kapde pahan kar apne aap ko chhipana galat tha .
bahut hi achhi v sateek prastuti
bahut bahut badhai
tabiyat kabhi thodi sambhalti hai fir gadbada jaati hai .bas doctors ke yahan bhag -doud lagi hai .
aapne mere liye shubh kamna di ,bahut bahut hi achha laga.
dhanyvaad sahit
poonam
Initiation has been done now its our job to take it further to the next level within ourselves and in our surroundings.
This is not a one man job, its a collective process whose end point is still unknown.
बाबा रामदेव का अनशन व्यर्थ गया, ऐसा नहीं है,लेकिन बाबा को इसका थोड़ा लाभ और ज्यादा हानि हुई, ये सच है. केन्द्र की यूपीए सरकार बेहद कुटिल है और बाबा अपनी राजनीतिक अव्यावहारिकता के कारण उसके झांसे में आ गए। बाबा राजनीति में शुरुआत कर रहे हैं, लेकिन कांग्रेस के नेताओं ने जिन्दगी भर कुटिलता से सियासत की है, उनका मुकाबला करना आसान नहीं। पहले सरकार ने बाबा के लिए पलक पांवड़े बिछाए और बाद में उनपर जोरदार हमला बोल दिया। बाबा दोनों के लिए तैयार नहीं थे, स्वागत से वे बहक गए और अपनी ताकत का मिथ्या अभिमान कर बैठे, वहीं जब जबरन अनशन हटवाया गया तो आगे बढ़कर गिरफ्तारी देने की बजाए, महिलाओं के कपड़े पहनकर भागने की कोशिश करते दिखाई दिए। इससे उनकी विश्वसनीयता घटी। सरकार ने इसका फायदा उठाया और आरोपों की झड़ी लगा दी। मांगे माने जाने की तो छोड़ो, केन्द्र ने बात करने से ही दो टूक इनकार कर दिया, ऐसे हाल में अनशन तोड़ने से समर्थकों में गलत संदेश गया और सरकार को हंसने का मौका मिल गया। बाबा ने ऐसी परिस्थिति के बारे में शायद सोचा नहीं था, इसलिए दूसरी या तीसरी पंक्ति का न कोई नेतृत्व था न कोई रणनीति। लेकिन इस संघर्ष ने उनको अनुभव दिया है और आगे की लड़ाई में जरूर उनके मुद्दे की जीत होगी। लेकिन अन्ना हजारे से मुकाबला करने की बजाए उनको साथ लेकर चलने से ही बाबा की ताकत बढ़ेगी।
nothing done for the good go in vain.........the justice will be achieved......
change ourselves and work more ,talk less,and be an example,
the main revolution is the revolution of the justified and democratic thought...
and even great one is the justified work...
a/t sir benjaamin franklin..
well done is better than well said
..so we the people of india hereby swear in the name of our great martyrs and leaders like vivekaanand ,netaji ....that we will change ourselves for the incredible india.......
and feel the essence of this song.....and be a good countryman to glorify this...
सारे जहाँ से अच्छा हिन्दोस्ताँ हमारा
हम बुलबुलें हैं इसकी वो गुलसिताँ हमारा
परबत वो सब से ऊँचा हमसायह आसमाँ का
वो संतरी हमारा वो पासबाँ हमारा
गोदी में खेलती है इसकी हज़ारों नदियाँ
गुलशन हैं जिनके दम से रश्क-ए-जनाँ हमारा
मज़हब नहीं सिखाता आपस में बैर रखना
हिन्दी हैं हम वतन है हिन्दोस्ताँ हमारा
यूनान-ओ-मिस्र-ओ-रोमा सब मिट गए जहाँ से
अब तक मगर है बाक़ी नाम-ओ-निशान हमारा
कुछ बात है कि हस्ती मिटती नहीं हमारी
सदियों रहा है दुश्मन दौर-ए-ज़माँ हमारा
Allama Iqbal
इक़्बाल कोइ मेहरम अपना नहीं जहाँ में मालूम क्या किसी को दर्द-ए-निहाँ हमारा
आपने बिल्कुल सही एवं सटीक लिखा है ..बाबा रामदेव का अनशन
व्यर्थ नहीं गया ..कुछ सच्चाईंयां सामने आ गई हैं ।
अनशन व्यर्थ नहीं गया !!! जनता को अपनी शक्ति का अहसास हुआ है ...यह कार्य बढ़ेगा और हकों की रक्षा होगी...
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बिक्रमजीत जी ,
आपके अनुरोध पर आपकी पहली टिप्पणी हटा दी है ।
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Bikramjit Mann to me
show details 2:58 PM (1 hour ago)
I am very sorry , cut paste gone wrong as a comment on ur latest article .. can you please delete it
"I dont know what but i never was with the fast that baba ramdev did.. I have my doubts and we have seen what has been happeneing
but the second one the death of a baba who had fasted for so long without the media or Govt. blinking a eyelid and when he dies its suddenly on news and Congress is maligning the BJP for the reasons ..
What makes me mad is Both the BABA's were in same hospital and how coumd one got so much media coverage and the other died a unknown death I mean so many days of fast no one mentioned for so many days .. was a the life of one more important then the other ... who decided that ..
Its all politics
I have this feeling that the movemnet started By ANNA Ji, is being hijacked by everyone for there own individual purposes I hope it does not go that way ... "
is what i wanted to write
I am very SORRY...
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Bikramjit Singh Mann
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दिव्या जी .
बिलकुल सही लिखा है आपने ...
सत्ताशीर्ष पर काबिज़ लोगों की अमानवीय कारगुजारियों से मन आहत हो गया | लगभग १०-१२ दिनों से मन-मष्तिष्क इतना दुखी हो गया कि कुछ लिखने की इच्छा ही नहीं हुई | ये तथाकथित राजनेता कितने बड़े गुंडे हैं और सरकार कितनी संवेदनहीन है, प्रत्यक्ष देखकर मैं किंकर्तव्यविमूढ़ सा हो गया | इतनी क्रूरता , कुटिलता और बर्बरता से सच्चाई का दमन , वह भी लोकतंत्र में !....... गोरों को बहुत पीछे छोड़ दिया इन काले अंग्रेजों ने |
खैर निराशा से कुछ नहीं होनेवाला | जन-जन तक सन्देश पहुँच चुका है | जनता ने लाइव टेलेकास्ट देखा है , जवाब जरूर देगी समय आने पर | आन्दोलन सफल हुआ .....
सोनिया और राहुल की चुप्पी,मनमोहन का लिजलिजापन , प्रणव से सिब्बल तक मंत्रियों की बेहूदा हरकतें , दिग्विजय की भौंक .......क्या इन्हीं से भारत महान होगा ?
सभी ईमानदारों को जो जिस भी क्षेत्र में हों , अपनी भूमिका का जिम्मेदारी से निर्वहन करना अब और आवश्यक हो गया है |
सत्ता में बैठे लोग महाभारत के कौरवों के समान छल-बल, अनीति-दुर्नीति युक्त आचरण कर रहे हैं। कौरवों जैसा आचरण करने वाले सदैव पराजित होते आए हैं।
स्वामी निगमानंद का बलिदान व्यर्थ नहीं होगा।
स्वामी रामदेव का अनशन व्यर्थ नहीं जाएगा।
अंततः सत्य की ही जीत होगी।
आपकी बात से 100% सहमत
बाबा का अनशन ब्यर्थ नहीं गया|
कुछ भी व्यर्थ नहीं गया है . इस आन्दोलन को फिर मतदान के ६ माह पूर्व ही चलाना होगा . तब सरकार के ताना साही के नमूने और ठगी चाल देखने को मिलेगा ! जनता लाचार है , और ये राज नेता लूटने में व्यस्त ! कहते है साधुओ पर अत्याचार के बाद ही सीता जी का जन्म हुआ था ! जब -जब धर्म / आचरण की हानि होती है , तब देव का प्रादुर्भाव किसी न किसी रूप में होता है ! यही होने वाला है ! बधाई
गंगापुत्र का बलिदान व्यर्थ नहीं जाएगा। दुनिया के किसी भी कौने में पर्यावरण के लिए कोई मॉडल न्यूड होती है तो इसकी खबर और फोटो हर अखबार और चैनल पर छोटी-बड़ी होती है, मगर गंगा के लिए कोई अनशन पर बैठा है और कोमा में चला गया था तब तक कोई खबर नहीं दिखी, बलिदान के बाद ही मीडिया जगा। यह झकझोरने वाली बात है। पर्यावरण को लेकर हमारे संन्यासी कितने जीवट हैं, यह दुनिया के लिए मिसाल है? बिश्नोइयों के बाद यह अगला बलिदान है।
दिव्या जी, कुछ भी व्यर्थ नहीं गया है, देखती जाइयेगा,
विवेक जैन vivj2000.blogspot.com
satya vachan. par kya ye zyada behetar nahi hoga ki hum viyakti vishesh se zyada muddon ko mahatv de.
दिव्या जी, आपने अवश्य रहस्यवाद पर आधारित फिल्में देखी होंगीं और, उदहारणतया, किसी फिल्म को देखते देखते अटकलें लगाती भी रही होंगीं कि 'हत्यारा' कौन हो सकता है? और अंत में रहस्योद्घाटन होने पर अधिकतर आपका अनुमान सही नहीं निकलता होगा? और शायद कभी सही भी! वो संभव तभी है जब आपके और कहानी लिखने वाले का मानसिक रुझान एक सा ही हो...
शायद उपरोक्त में आप प्रकृति के संकेत देख पाएं,,, जैसे प्राचीन हिन्दुओं ने एक ही अदृश्य शक्ति को सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड कि उत्पत्ति का स्रोत माना...
यद्यपि आइनस्टीन ने भी एक (Unified Field) की चर्चा करी, अस्सी के दशक तक भी आम धारणा रही थी कि वैज्ञानिक, प्रकृति की उत्पत्ति में, किसी एक ही सर्वशक्तिमान जीव का हाथ नहीं मानते... हाँ, सर फ्रेड हौयल ने जीव रचना को किसी अत्यंत बुद्धिमान जीव का डिजाइन अवश्य '८२ में कहा...
वर्तमान में विश्वविख्यात वैज्ञानिक स्टीफन हौकिंग शायद पहले वैज्ञानिक थे जिन्होंने इस शताब्दी के आरम्भ में नई दिल्ली में आ यह कहकर चौंका दिया कि वे भगवान् के मन में प्रवेश करना चाहेंगे!
भ्रष्टाचार के कारण देश के हालात तो चिंताजनक हैं ही.
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JC जी ,
फिल्में नहीं देखती हूँ। रहस्यवाद में बेहद रूचि है, और इस पर शोध के लिए सबसे उपयुक्त मुझे अपना ही 'मन' लगता है, जिसमें प्रतिपल सहस्त्र प्रश्न जन्म लेते रहते हैं। कभी सिब्बल का मन पढ़ती हूँ , कभी संत की व्यथा , कभी मनमोहन की चुप्पी , कभी विदेशी नेत्री के अंदाज़ , कभी अपने टिप्पणीकारों के वकतव्य , जिसमें कभी स्नेह , कभी सम्मान , कभी विश्लेषण , तो कभी संजीदगी मिलती है । अनुत्तरित प्रश्नों के हल मिलते हैं और जीवन जीने की वजह भी मिलती है ।
यदि ये चर्चाएँ और बहसें न हों और अनेक गुत्थियां ना सुलझें तो मुझे लगता है मनुष्य और पशु में कोई विशेष अंतर नहीं रह जाएगा। इसलिए जब तक प्राणवायु का आवागमन शरीर में हो रहा है , तब तक 'चिंतन' जारी रहना चाहिए।
स्टीफें हाकिंग्स , कभी भी ईश्वर के मन में प्रवेश नहीं कर सकेंगे। ये बात मैं ईश्वर के मन में प्रवेश करने के बाद कह रही हूँ।
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अनशन व्यर्थ तो नहीं गया लेकिन जितना सफल हस उससे कहीं ज्यादा साफल हो सकता था. मेरे ख्याल से अगर लक्ष्य एक है तो जो व्यक्ति पहले से अगुआई कर रहा है उसी को अपना समर्थन देके मजबूती देनी चाहिए थी, बाबा को यह खुद करने की बजाये अन्ना के माध्यम से करना चाहिए था.
दिव्या जी, 'भगवान्' की कृपा स्टेफन हॉकिंग पर अवश्य है...वो 'भाग्यवान' हैं कि वो जीवित हैं! आप चिकत्सक होने के नाते जानती ही होंगीं कि नहीं तो जिस बीमारी से वो पीड़ित हैं अधिकतर व्यक्ति उस के कारण अधिक समय जी नहीं पाते हैं...
वो व्हील-चेयर पर ही बैठे रह ब्रह्माण्ड, ब्लैक होल, आदि के ऊपर कम्प्यूटर के माध्यम से अपने विचार, लिखित और बोल कर भी रख पाते हैं...
इसे प्राचीन ज्ञानियों ने 'प्रभु की माया (अथवा लीला)' कहा... मानव जीवन का सार, "जाकी कृपा पंगु गिरी लंघै...आदि" भी कहा गया है...
अवश्य, यद्यपि अधिकतर मनुष्य यह नहीं जानते कि 'हमारे' विचारों का स्रोत क्या है, पैदा होते ही स्वप्न कैसे 'मन' में दिखने लग पड़ते हैं आदि, चर्चा और चिंतन तो भारत में हर १२ वर्ष भारत में कुम्भ मेले के दौरान आदि हमारी जीवनदायी और पूज्य नदियों के घाटों में परंपरागत तौर पर अनादिकाल से चले आ रहे हैं... और उसी श्रंखला में वर्तमान कलयुग (मशीनी युग) में भी आपके आकर्षक ब्लॉग समान अन्य कई ब्लॉग के माध्यम से भी चर्चा और गहन चिंतन चल रहे हैं... जिनसे कहा जा सकता है कि सत्य के उजागर होने में अब अधिक देर नहीं है...
इसके लिए अनेक शुभकामनाएं सभी ब्लोगर को, और टिप्पणीकारों को भी (?)!
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JC जी ,
सत्य को उजागर नहीं होना है । सत्य सामने ही है । यह तो मनुष्य पर निर्भर करता है की वह अपनी कितनी प्रतिशत बुद्धि इस्तेमाल करता है और कितना जानना चाहता है । अनेक लेखक और चिन्तक अनेकानेक विषयों पर सतत चिंतन-मनन कर अनेकों सत्य को सामने रखते हैं । लेने वाले , जो receptive हैं वे उसे ग्रहण भी करते हैं । लेकिन कहीं-कहीं , अपने परिवेश में ही कुछ लोग इतने जिज्ञासु नहीं होते। वे denial में जीते हैं और चिंतन के सार को ग्रहण नहीं करते । शायद उस समय बुद्धि पर नकारात्मक सोच का आवरण चढ़ा होता है जो उन्हें नीर-छीर विभेदक बुद्धि से दूर रखता है , इसलिए सत्य उन्हें बहुत दूर नज़र आता है ।
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किसी के मन में तभी प्रवेश किया जा सकता है जब हमें उस व्यक्ति से अत्यंत प्रेम होता है , जब दो आत्माएं मिलकर एक हो जाती हैं। जहाँ अहंकार का विलय हो जाता है।
उसी प्रकार ईश्वर से अथक प्रेम करने वाला एवं अगाध श्रद्धा रखने वाले का ईश्वर से एकाकार हो जाता है और यही एकाकार एक दुसरे के मन में प्रवेश करना कहलाता है । ऐसा मेरा सोचना है ।
यदि कुछ गलत लिख दिया हो तो इसे मेरी अज्ञानता जानकार क्षमा कर दीजियेगा।
आप वय में वरिष्ठ एवं ज्ञान में श्रेष्ठ हैं अतः अधिक कुछ लिखने में संकोच होता है ।
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दिव्या बेटे, हिन्दू मान्यतानुसार, हर आत्मा परमात्मा का ही एक अंश है, यानि एक अमृत शक्ति रूप है, जो शून्य काल और स्थान से सम्बंधित है, और किसी भी साकार अथवा अस्थायी मानव शरीर में आत्मा का योग 'मिटटी' से बने शरीर से प्राकृतिक रूप से हुआ है, जिस कारण दोष मिटटी का है!... मानव शरीर की बनावट में यह 'मिटटी' विभिन्न प्रकृति वाले नौ ग्रहों, सूर्य से शनि तक के विभिन्न सार इन्द्रधनुषी रंगों और शक्तियों के रूप में माने गए, जिस पर आधुनिक विज्ञान द्वारा कार्य अभी करना शेष रहता है और 'अभी दिल्ली दूर अस्त' - किन्तु प्राचीन भारत में उन पर अनुसन्धान किया गया है, और कुछ हद तक उनका उपयोग भी हो रहा है - हस्त-रेखा विज्ञान (अथवा कला), ज्योतिष-शास्त्र, आदि से सम्बंधित व्यक्ति, आधुनिक 'पंडित', तो लगभग सभी के सामने हैं... किन्तु कहानियाँ चर्चा करती पाई जा सकती हैं कि, शिव को योगेश्वर जान, 'पहुंचे हुए' योगी जल की सतह पर चलने में सक्षम थे, अथवा एक स्थान से अदृश्य हो दूसरे स्थान पर चुटकी बजाते पहुँच जाते थे, आदि आदि...
हम इस लिए उनको नहीं मानते/ मान पाते क्यूंकि आज कलियुग में ऐसा कोई करता नहीं दीखता, और आधुनिक संत, नित्यानंद जी विष पी 'शिव' समान जी नहीं पाए, अथवा रामदेव जी भी तथाकथित 'डंडे' के डर से नारी रूप में भी भागने में असफल रहे... इस विषय में 'सत्य' ये है कि शिव तो आरम्भ में अर्ध-नारीश्वर माने ही जाते हैं (ब्रह्मचारी उनके प्रतिरूप! और ब्रह्मचार्याश्रम मानव जीवन का प्रस्तावित प्रथम स्तर)...
जे. सी. बाबा जी को यहाँ देखकर अच्छा लगा. ॐ नमोनारायण बाबा जी !
हम अनशन वाले ट्रैक से हट गए हैं पर यह चर्चा भी सार्थक है. दिव्या जी के अनुसार "पर मन" प्रवेश के लिए उत्कृष्ट प्रेम का होना आवश्यक है ....यह प्रेम निश्छल और कल्याण की भावना से युक्त होता है. प्रायः माँ और उसकी संतान के बीच इस प्रकार मन के एक-दूसरे में प्रवेश की घटनाएँ होती रहती हैं ...जिसके कारण माँ किसी होने वाली घटना के पूर्वाभास से सुखी या दुखी हो जाती है. यह हम सबके जीवन में घटित घटनाओं का अनुभव रहा है.
किसी डॉक्टर की परिष्कृत हिन्दी देख कर बहुत अच्छा लगता है. पर मैं इसके लिए दिव्या की प्रशंसा नहीं करूंगा ...एक हिन्दीभाषी लड़की से ऐसी अपेक्षा स्वाभाविक है. हाँ ! दिव्या के दोनों बच्चे भी अगर ऐसी हिन्दी का व्यवहार करेंगे तो वे प्रशंसा के पात्र होंगे. और तब साथ में इसके श्रेय के लिए दिव्या भी ....
अब मूल प्रसंग पर आते हैं .....हम बाबा या अन्ना की रणनीति पर कुछ नहीं कहेंगे. जन कल्याण की आशा से किया गया कोई भी आन्दोलन व्यर्थ नहीं जाता ....हम भौतिक सफलता की बात नहीं कर रहे ...इस आन्दोलन का दूरगामी परिणाम जनहित में ही होगा ....कम से कम अन्धकार में एक दिया जलाने का काम तो हुआ. पर इस आन्दोलन के साथ जनता का जो जुड़ाव होना चाहिए था वह नहीं हो सका ...इससे निराशा हुयी है. जनता के जुड़ाव से मेरा आशय है बाबा के भक्तों/अनुयायियों को स्वयं के स्तर पर भ्रष्टाचार-विरोधी यज्ञ में स्वयं की आहुति देकर एक सक्रिय शुरुआत करनी चाहिए थी जो नहीं हो सकी. बाबा के अनुयायियों में से मात्र ५० % भी यदि स्वयं को भ्रष्टाचार से mukt करलें तो एक क्रान्ति हो जायेगी. लोग पता नहीं क्यों किसी चमत्कार की आशा में हैं ...चमत्कार हम अपने भीतर नहीं बाहर चाहते हैं ...यही हमारा बड़ा दोष है. मैं इकाई से सफाई की बात कर रहा हूँ.....यह सफाई व्यक्तिगत है ....इसके लिए किसी दंडविधान की ही प्रतीक्षा क्यों की जाय ?
एक बात और है.....काला धन बाहर है ...कालाधन भीतर भी है ...और काला धन निरंतर उत्पन्न भी होता जा रहा है ....अभी तक केवल बाहरी काले धन की बात हुयी है ....अभी काले धन के दो आयाम ...दो स्थान ...दो स्रोत चर्चा के लिए शेष हैं ....क्यों ? क्या यह भी बाबा और अन्ना का ही एजेंडा होना चाहिए ...हमारा कोई उत्तरदायित्व नहीं है ? मैं यह आशा करता हूँ कि कम से कम इस विमर्श में भाग लेने वाले लोग काले धन और भ्रष्टाचार के सभी आयामों पर सक्रियता पूर्वक व्यावहारिक परिणाम देने के लिए संकल्प लेंगे.
आइये ! आज दिव्या जी की उपस्थिति में हम सब यह संकल्प लेकर एक शुचितापूर्ण जीवन का प्रारम्भ करें. ॐ शान्तिः ! ॐ शान्तिः ! !ॐ शान्तिः ! ! !
कुर्बानी कभी व्यर्थ नहीं जाती।
उस तूफानी रात
जब बरस रहा था अहंकार
और जाग उठा था रावण
नई दिल्ली के रामलीला मैदान में
क्रूर अट्टहासों के बीच
अर्ध्यरात्रि में मैंने
एक भटकती हुयी
दीन, मलीन, किन्तु शालीन
युवती को
सिसकते हुये देखा
उत्सुकतावश पास जाकर पूछा
‘‘देवी !
इतनी रात गये तुम यहां ?’’
उसने सिसकते हुए कहा
‘‘मैं एक परित्यक्ता हूं,
मेरा पति ‘विधान’ है,
जो एक फैशनपस्त
आधुनिका ‘फरेब’ के साथ
विवाह रचा लाया है,
उसी ने मुझे
घर से बाहर निकाला है
एक टोपीवाले नेता ने
मुझे तिरस्कृत देखकर
मेरे पति को लताड़ा है,
दूरसे भगवावस्त्रधारी बाबा ने
नेता जी को भी पछाड़ा है,
उसने
मेरी लुटी अस्मिता को
सारी दुनिया के आगे
नुमाइश सी बनाकर
परोस डाला है,
अब छोटे छोटे बच्चे भी
मुझे मुंह चिढाते हैं
अक्सर उन पत्थरों से घाव भी हो जाते हैं
जिन्हें वे मेरी ओर निरर्थक ही चलाते हैं
अब मैं अपनी शालीनता पर पछता रही हूं
सिर्फ ‘सच्चाई’ होने का
दंड पा रही हूं।
नमस्कार डॉक्टर श्री कौशलेन्द्र जी, कह सकते हैं कि आपका ब्लॉग ही माध्यम बना मुझे यहाँ ले कर आने के लिए भी... अपन तो रमता जोगी हैं! असली मेहनत तो 'ब्लॉग मालिक' ही करते हैं नए नए विषय पर सुंदर छवियों के साथ अपने विचार प्रस्तुत कर... और हमारे जैसे टिप्पणीकार जो कृष्ण (काला) को कहते सुन लेते हैं कि यद्यपि वास्तव में सारी सृष्टि श्री कृष्ण के भीतर ही है, वो माया के कारण हरेक को अपने भीतर दिखाई पड़ते हैं, और वो ही माया का कारण हैं... हम जानना चाहते हैं कि यह माया कौन है और क्या है ?...
और, एक कहावत है "तू भी रानी, मैं भी रानी / कौन भरेगा पानी", उसी प्रकार 'शिवोहम / तत त्वम असी", यानि वैसे तो हम सभी अमृत आत्माएं हैं फिर भी कह सकते हैं हम सभी 'कृष्ण' हैं, अदृश्य हैं, किन्तु 'महाभारत' के अन्य पात्रों समान हम माया के कारण कौरव-पांडव का रोल कर रहे प्रतीत होते हैं :)
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@---क्या सरकार और जनता को हम दो भिन्न-भिन्न जता कर खुद को भ्रमित नहीं कर रहे हैं, जनता प्रतिनिधियों को चुनती है जो असरकार होकर सरकार बनते हैं फिर वही मूर्ख जनता पाँच साल तक पीसी जाती है ऐसा बुद्धिजीवी रोना रोते हैं...
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डॉ रुपेश श्रीवास्तव --
राजा और प्रजा तो सदैव अलग ही रहेगी । आज फर्क सिर्फ इतना ही है की राजा औरंगजेब टाइप का है , जो प्रजा पर कहर बरपा रहा है। रही बात सरकार के चुने जाने की तो उसे जनता ही चुनती है। लेकिन आज जनता स्वयं ही दो हिस्सों में बंटी हुयी है। जनता का जो हिस्सा जिम्मेदार है आज की सरकार का , वो तो ऐश ही कर रहा है , वो नहीं पीसा जा रहा है । जनता का जो वर्ग जागरूक है , वही पिस रहा है। क्यूंकि वह सरकार की कुटिल एवं स्वार्थी नीतियों का विरोधी है।
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@-----एक बात और है.....काला धन बाहर है ...कालाधन भीतर भी है ...और काला धन निरंतर उत्पन्न भी होता जा रहा है ....अभी तक केवल बाहरी काले धन की बात हुयी है ....अभी काले धन के दो आयाम ...दो स्थान ...दो स्रोत चर्चा के लिए शेष हैं.....
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कौशलेन्द्र जी ,
बहुत सटीक बात कही है , कालाधन भीतर भी है। शायद कलुषित मन ।
बाबा के आदोलन की प्रथम सार्थकता तो इसी में है की लाखों को अपने भीतर झाँकने के लिए मजबूर कर दिया। एक चेतना आई है , और कलुषित मन वालों के अन्दर एक भय भी उत्पन्न हुआ है। सिब्बल और दिग्विजय जैसे कुतर्की और भ्रमित लोगों को भी अब ये अंदाजा हो गया होगा की अब उनकी दाल , ज्यादा दिन नहीं गलने वाली है। आपने जिस पवित्र संकल्प की बात कही है , वही इस आन्दोलन को और आगे ले जाएगा और लोगों की स्मृतियों में उसे जीवित रखेगा।
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@----अब छोटे छोटे बच्चे भी
मुझे मुंह चिढाते हैं
अक्सर उन पत्थरों से घाव भी हो जाते हैं
जिन्हें वे मेरी ओर निरर्थक ही चलाते हैं
अब मैं अपनी शालीनता पर पछता रही हूं
सिर्फ ‘सच्चाई’ होने का
दंड पा रही हूं। ....
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अशोक कुमार शुक्ल जी ,
बेहद सार्थक पंक्तियों के लिए आभार।
सतयुग से लेकर कलियुग तक , सच्चाई की ही विजय होती देखी है। आतंकवादियों के सरदार , लादेन का मारा जाना भी बुराई पर अच्छाई की ही विजय है । प्रत्येक देश में आई क्रांति प्रकृति की तरफ से एक शुभ संकेत भी है । फिर संतों के देश भारतवर्ष में आई क्रान्ति भी सच्चाई को विजय दिला कर ही रहेगी । सच्चाई को यूँ भटक-भटक कर दण्डित नहीं होना पड़ेगा।
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JC जी ,
इस पृथ्वी पर मनुष्य सदैव दो भागों में विभक्त ही रहेगा । कभी देवों और दानवों में ठन जाती है , कभी राक्षसों और वानरों में , कभी आतंकवादियों और शासन में ठनती है तो कभी संतों और अत्याचारी शासन के बीच । ये पृथ्वी कभी भी कौरवों और पांडवों से खाली नहीं होगी । लेकिन पाप बढ़ने की अवस्था में , समय-समय पर राम और कृष्ण संत-जन बनकर इस पवित्र भूमि पर जन्म लेते ही रहेंगे।
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आज के अख़बार में " दैनिक जागरण" में ---
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http://blogsinmedia.com/2011/06/%E0%A4%95%E0%A5%8D%E0%A4%AF%E0%A4%BE-%E0%A4%85%E0%A4%A8%E0%A4%B6%E0%A4%A8-%E0%A4%B5%E0%A5%8D%E0%A4%AF%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%A5-%E0%A4%97%E0%A4%AF%E0%A4%BE-%E0%A4%A6%E0%A5%88%E0%A4%A8%E0%A4%BF/
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दिव्या जी, बाबा रामदेव संत नहीं है वो सिर्फ एक योगी हैं। और अब उनके योग पर भी विद्वानों ने सवाल खड़े कर दिए हैं। वो जिस तरह से उछलते कूदते हैं उसे योग कहा ही नहीं जा सकता। योग के दौरान व्यर्थ की बातें बाबा करते हैं, अजीबो गरीब तरह से हंसते हैं उनकी ये सब क्रियाएं उनके योगगुरु होने पर संदेह पैदा करती हैं।
सच ये है कि बाबा एक बिजिनेसमैन की तरह व्यवहार करते हैं। वो स्वदेशी के नाम पर उन्ही उत्पादों का विरोध करते हैं जो उनकी फैक्टरी में बनती है। विदेशी गाडी में बैठ कर स्वदेसी का राग अलापने को ईमानदारी नहीं कहा जा सकता।
हां बात उनके सत्याग्रह की भी हो जाए। प्लीज मित्रों आप सभी सत्याग्रह के बारे में एक बार जरूर जानकारी कर लें। क्या सत्याग्रही को अपने साथियों को उनके हालात पर छोड़कर भेष बदल कर भागना चाहिए। बाबा ने भागने की कोशिश की, सत्याग्रही ऐसा नहीं करते। सत्याग्रह में अपने शरीर को तपाया जाता है, ना की एसी कूलर पंखे में मौज लिया जाता है। ड्रामे की हद तब हो गई जब अस्पताल में भर्ती बाबा जिसके लगातार ग्लूकोज चढ रहा हो और वो कहता है कि मेरा अनशन जारी है। इससे तो हंसी आती है। अरे बाबा जी अपना तथाकथित अनशन एलोबिरा पी कर तोड़ते तो जनता में एक संदेश जाता, मौसमी का जूस .. यहां भी महीनी करने से नहीं चूके।
खैर बाबा की दुकानदारी अच्छी चल रही है, लेकिन मुझे लगता नहीं कि अब दोबारा बाबा रामलीला मैदान का रुख करेंगे। मेरी सलाह है कि अगर कभी करें तो मंच की ऊचाई उतना ना करें कि कूद कर भागने में दिक्कत हो।
जब बाबा के अनशन पर ही सवाल उठ रहे हों तो इसके काम आने या व्यर्थ जाने का प्रश्न ही नहीं उठता। हां मैं सरकार के इस कदम की निंदा करता हूं कि सोए हुए लोगों पर आंसूगैस के गोले दागे गए और लाठिया चलाई गईं। जब कि ये बेचारे तो अनशन के नाम पर नहीं बाबा ने पर्चा बंटवाया था योग होगा. उसके लिए जमा थे। जनता को धोखा देकर बुलाने के मामले में भी बाबा और उनके चंपुओं पर मामला दर्ज होना चाहिए। मेरा ऐसा मानना है।
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@--महेंद्र श्रीवास्तव जी ,
आश्चर्य होता है आपकी बातों पर और उससे भी ज्यादा आपके तर्कों पर।
संत कैसे होते हैं ? ---- जो पर-हित में सोचे और देश हित में सोचे वही संत है ।
अत्यंत दुखद है की आपको सरकार की कुटिल नीति , अत्याचार और घोटाले दिखाई नहीं देते।
अंत में यही कहूँगी ---" जाकी रही भावना जैसी , प्रभु मूरत तिन देखी तैसी। "
शेष मेरे लेख और अन्य टिप्पणियों में लिखा ही हुआ है ।
आभार।
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डॉ.दिव्या, समसामयिक विषयों को उठाकर आप अच्छा चर्चा करती हैं। यह चर्चा भी काफी सार्थक और यथार्थ के धरातल पर प्रेरक भी है। पर पूज्य स्वामी रामदेव जी का कृत्य पूरे प्रकरण में व्यक्तिगत महत्त्वाकांक्षा से भरा लगा और शनिवार की रात के परिप्रेक्ष्य में कायरतापूर्ण, जो एक सन्यासी के योग्य तो बिलकुल नहीं। सरकार की कायरता या जो भी आपने वर्णन किया है, उससे भी गिरा चरित्र और कायरता, बर्बरता जो भी विशेषण दिया जाय, कम है। साधुवाद।
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आचार्य परशुराम जी ,
जिनमें महत्वाकांक्षा की कमी होती है , वे कभी भी बहुत ऊँचाइयों को नहीं छू पाते। यदि महत्वाकांक्षा नहीं होगी तो व्यक्ति complacent हो जाएगा। जितना मिल गया उसी में खुश । देश बर्बाद हो रहा है तो होए , यही सोचेगा। आग लगे बस्ती में , मस्त राम मस्ती में , बस यही सोचकर चुप्पी साधे रहेगा।
क्या संत सिर्फ उन्हें कहते हैं जो नदी किनारे धूनी रमाये लोगों को भभूति बांटते हैं ?
या फिर भोली भाली जनता को प्रवचन देकर अपने मकड़-जाल में फंसाकर ऐय्याशी करते हैं ?
मेरे विचार से संत वही है , जो जन-हित में और देश-हित में सोचता है ।
गांधी जी , स्वामी विवेकानंद , सभी स्वतंत्रता सेनानी , श्री राजीव दीक्षित जी , बाबा रामदेव आदि सभी संत हैं मेरी परिभाषा के अनुसार।
किसी ने भगवा पहना किसी ने धोती कुरता , लेकिन जिसने भी निज स्वार्थ से ऊपर उठकर जनता की आवाज़ को बुलंद किया और आम जनता के दुखों को समझा , वही संत है।
और फिर ईश्वर और इंसान में कुछ फर्क भी रहने दिया जाए को क्या बेहतर नहीं होगा ?
मुझे तो बाबा की देश भक्ति , जनता के स्वास्थ्य और दुःख से सरोकार दीखता है। खुद को भूखा रखकर सरकार को गहरी नींद से जगाना चाहा। बाबा के पवित्र उद्देश्यों के लिए उन्हें शत शत नमन ।
मेरे विचार से बाबा को अब अनशन का सहारा नहीं लेना चाहिए, बल्कि "शठे शाथ्ये समाचरेत" की नीति द्वारा इस कुटिल तथा असंवेदनशील सरकार को पाठ पढ़ना चाहिए। देश को लूटने वाले 'सत्याग्रह ' की भाषा भला क्या समझेंगे?
बाबा की तरह कोई आठ दिन भूखा रहकर दिखाए , उसके बाद उन पर ऊँगली उठाये।
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not wasted more people realize the corrupt nature of politicians
पाठकों की राय देखते हुए ये तसल्ली हुयी की कोई भी आन्दोलन और अनशन व्यर्थ नहीं जाता । जागरूक होकर इन्हीं आन्दोलनों द्वारा 'लोकतंत्र' की बहाली की जा सकती है। आप सभी के विचारों के लिए आभार।
दिव्या जी, आपने राष्ट्र-विमुख सोच को अच्छे प्रतिउत्तर दिये.
बड़े लक्ष्यों को पाने के लिये 'वैचारिक क्रान्ति' की जरूरत होती ही है. उसमें जिन-जिनका भी विरोध करना होता है सबसे पहले एक दूरदर्शी नायक को आमजन के लिये विकल्प भी उत्पादित करने होते हैं.
नहीं तो विरोध बेमौत मारा जाता है.
यदि हमें विदेशी नमक का विरोध करना है तो 'स्वदेशी नमक' का उत्पादन करना ही होगा.
यदि पूँजीवादी 'औद्योगिक मानसिकता' से टक्कर लेनी है तो 'स्वदेशी उत्पादों' के प्रति जागरुकता लानी ही होगी.
......... महेंद्र श्रीवास्तव जी, समीपस्थ प्राण को सुरक्षा देना हमारा पहला स्वाभाविक धर्म है... स्वयं महा इन्द्र ही क्यों न हो... असुरों के षड़यंत्र से बचने के लिये स्त्री-पुरुष वेशभूषा भुला देंगे... ऊँचाई और निचाई का भेद भी बुला देंगे.... जल और थल भुला देंगे.... स्व-प्राण सुरक्षा सबसे पहला धर्म है... इसमें बस इसका ध्यान रहना चाहिए कि आपने स्वयं को बचाने के लिये निर्दोषों पर आक्षेप तो नहीं लगाया.
यहाँ सत्तापक्ष के मंत्रियों ने स्वयं को बचाने के लिये ........... क्या किया है... इसपर एक बार फिर से चिंतन करें...
हर क्रांति की आवाज एक अकेला ही उठाता है ...फिर उसमें आवाजे मिलती चली जाती हैं |
शुभकामनाये ! आप के शुभ विचारों को ....
आप अन्यथा मत लीजिएगा, लेकिन संत के बारे में जानना जरूरी है।
संत वह जो विकारों से रहित हो ,सरल हो ,निःस्वार्थी हो ,परिग्रह से रहित हो ,अपने आप में मग्न रहने वाला हो -वह संत है।
उदाहरण ---
एक बार एक संत जंगल में आम के वृक्ष के नीचे बैठे थे कि वहां पर कुछ बच्चे खेलने के लिए आये और उन्होंने देखा वृक्ष पर आम लगे हुए हैं। कुछ बच्चों ने पेड़ पर पत्थर मरना प्रारंभ कर दिया और वह पत्थर नीचे बैठे संत के सिर पर लगा और खून बहने लगा ,बच्चों ने देखा कि यहाँ पर संत बैठे हैं और पत्थर लग गया है ,अब वह हमें श्राप दे देंगे ,गुस्सा करेंगे और इस डर से वे बच्चे वहां से भागने लगे। लकिन संत ने उन बच्चों को अपने पास बुलाया और बड़े शांत भाव से कहा कि तुमने वृक्ष पर पत्थर मारा और उसने तुम्हें आम खाने को दिए लकिन हम तुम्हें कुछ भी नहीं दे पा रहे हैं। इतना सुनते ही सभी बच्चे उनकी सरलता और महानता के आगे नत्मस्तक हो गए।
अन्यथा मत लीजिएगा.. आप जिसे संत कह रही हैं वो लोगों को पिटता छोड़ भेष बदल कर भागने लगे थे। संत को गुस्सा तो कभी आना ही नहीं चाहिए.. आप जिसे संत कह रही हैं उनकी भाषा है कि "दिल्ली किसी के बाप की नहीं है " ऐसी भाषा संत नहीं बोला करते। बाबा रामदेव स्वार्थी भी हैं, लालची भी हैं, व्यापारी भी हैं, सौदेबाज भी हैं।
महेंद्र श्रीवास्तव जी,
सन्त की परिभाषा को समय के साथ थोड़ा शिथिल कीजिये.... अन्यथा 'नेता' की परिभाषा भी आपको देनी पड़ जायेगी.
जिसमें संभावनाएँ दिखायी देती हों...उनमें तुच्छ कमियों की अनदेखी की ही जानी चाहिए.. आप केवल वो सुनिए जो राष्ट्र को जोड़ने के स्वर हैं. और आप 'भारत-भारती वैभवं' पर भी आकर एक ताज़ा विचारों की पोस्ट अवश्य पड़ें जो आपके विचारों की ही प्रतिक्रिया है.
वर्तमान में आरक्षण नीति के तहत एक उच्च पद लिये निचले तबके वालों को काफी छूट दी जाती है. आज सन्त पद को पाने के सभी हकदार हैं.. आप उनकी पारिवारिक पृष्ठभूमि पर भी विचार करके इससे उन्हें मुक्त कर सकते हैं. मुख्य बात है 'उनकी राष्ट्रवादिता के उच्च स्वर' जो बेहद व्यापक तौर पर सुने जा रहे हैं.
आपने अपने विचार रखे उनका पूरा सम्मान करते हुए मे बाबा रामदेव के अनशन के बारे मे अपने विचार रखना चाहूँगा की अनशन से पहले और अनशन के बाद मे रामदेव जी के सम्मान मे निसंदेह कमी आई है और उनकी निष्टा पर भी स्वभाविक संदेह उठा है जो की मेरी राय मे एक हद तक उचित भी है, कृपया
१. ३ जून को बाबा मीटिंग मे गये और शाम को बाहर निकले कोई बयान नही दिया.........हाँ मीडिया मे संकेत आते रहे की ९०% माँगों पर सरकार सहमत है.........४ जून को बाबा जी ने अनशन शुरू किया और शाम तक अपने सभी भाषनो मे सरकार की सहमति की भाषा बोलते रहे......लगभग सहमति वाली बात..........गोल मोल बयान-बाजी चलती रही...बाबा की तरफ़ से भी.....जबकि मेरे जैसे अन्य देशवासी ये जानना चाहते थे की काले धन वेल नूद्डे पे क्या बात हुई..लेकिन लगभग हर बयान मे बाबा ने भी दूसरे मुद्दों की बात की ...............उस दिन यानी ४ जून को.......और शाम को अलग तरीके से ब्यानो को कहा गया.....................ये सब मे इसलिए कह पा रहा हूँ की उस पूरे दिन मैने टीवी देखा था...............इन सब बातों से किसी के लिए भी समझ पाना आसान है की सरकार और रामदेव के बीच कुछ अंदरूनी बातें हुई थी
२. रात मे पोलीस ने जो भी किया..........बाबा रामदेव को औरतों के कपड़े पहन कर भागने की ज़रूरत नही थी................सरकार मे इतना दम नही की उनका एनकाउंटर कर देती............लेकिन उन्होने अपने भय को बहाना देकर भागना उचित समझा ............और खुलकर कहूँ तो वो भयभीत हो गये थे...........कोई भी सत्यग्रही अगर भयभीत हो कर मैदान छोड़ दे तो फिर वो सत्यग्रही नही भगोड़ा है.......................हाँ सत्यग्रही गिरफ्तार हो जाए ये एक सम्मान जनक बात है............मगर मरने की दर से भाग खड़ा हो??????????????
३. स्त्रियों के वस्त्र पहन कर बाबा मीडीया मे रोते हुए आए.....हम जैसे उनके हज़ारों समर्थक जो उनके एक इशारे पे जान लुटाने को तैयार थे उन्हे रोता देखकर कायर हो गये.
४. सरकार की जाँच की धमकियों से बैचेन हो कर हर दिन उल्टे =पुल्टे बयानो ने ताबूत मे आख़िरी कील का काम किया..
५. ९ दिन मे वर्षो के योगासन किया हुआ शरीर धराशायी हो गया........योग को लेकर जो सकारात्मक सोच थी उसे भी ठेस पहुँची
६. काला धन का मुद्दा बेशक अहम मुद्दा है और अगर कोई भी उसे नही उठा रहा था तो बाबा ने उस मुद्दे को लेकर जो अभियान शुरू किया था उसे व्यापक समर्थन मिलता भी मगर बाबा के बड़बोले पन्न और कायरता ने उस मुद्दे की हवा निकाल दी. देश ने एक जन-नायक खो दिया....और बाबा ने अपनी विश्वसनीयता
बक रार जी,
भाँति भाँति के सन्त
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देश में भाँति भाँति के सन्त हुए हैं :
— एक सन्त थे वे समाज सुधारक थे, वे जन कल्याण के कार्यों में बहुत अधिक समय देते थे, लेकिन वे सभी कार्य दिन के उजाले में ही कर पाते थे, अँधेरे से उन्हें डर लगता था. इसका मतलब क्या ये है कि वे डरपोक सन्त थे?
— एक और सन्त थे वे ताउम्र दलितोद्धार में लगे रहे, मांस खाते थे, शराब पीते थे, कभी-कभी गाली-गलौज भी करते थे, लेकिन वे किसी भूखे को बिना खिलाये नहीं रह पाते थे, किसी-न-किसी तरीके से उसका पेट भरते थे. पर एक बार की बात है जिसका वे मांस पसंद करते थे ...उसे काटे जाने से पहले ही, वे उस जानवर के अपनी ओर दौड़े चले आने से, खौफजदा हो गये. इसका मतलब वे कायर सन्त थे.
— एक सन्त और थे वे योग शिक्षक थे, वे अच्छे प्रवचनकर्ता थे, वे ब्रह्मचारी थे, लेकिन वे बचपन की प्यारी बहन से कभी-कभी मिल लिया करते थे जो पुरुष के कपड़े पहना करती थी, इसका मतलब क्या ये है कि वे कपटी सन्त थे?
— एक सन्त थे जो नागालेंड के जंगलों में रहते थे वे इसाई मिशनरियों के उत्पादों से आदिवासियों को मुक्ति दिलाना चाहते थे इसलिये उन्होंने जंगली वनस्पतियों में औषधियों को पहचानकर दवाइयाँ बनाईं और रोजमर्रा के उत्पादों (मंजन, शेम्पू आदि) को छोटे स्तर पर विक्रय करना शुरू कर दिया लेकिन वेशभूषा संन्यासी की ही रखी. इसका मतलब वे बनावटी सन्त थे?
@- बेकरार जी ,
जो लोग कमज़ोर होते हैं वे थोड़ी सी मुश्किलें पड़ने पर आस्तिक से नास्तिक हो जाते हैं । और जिनका विश्वास बाबा पर कमज़ोर था , उन्हीं के मन में अश्रद्धा ने जन्म लिया है।
सच्चे समर्थकों के मन में अभी भी पूर्ण विश्वास कायम है , बल्कि दोगुना हो गया है।
विश्वास, आस्था , श्रद्धा या तो सम्पूर्ण होती है , या फिर नहीं होती है।
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बाबा ने जान बचाई तो 'भगोड़े' और 'कायर' कहलाये , लेकिन सोये हुए निरपराध लोगों को आधी रात में पीटा गया तो क्या कहा जायेगा ?
बाबा ने मीटिंग के बाद कोई बयान नहीं दिया तो अविश्वसनीय हो गए और सरकारी लोगों ने बाबा को बंदी बनाकर गुप-चुप मंत्रणा की और फिर जबरदस्ती लिखवाए गए पत्र को पब्लिक करके क्या अपनी शराफत और विश्वसनीयता का परिचय दिया है ?
आपको बाबा से बहुत प्रश्न हैं , मुझे सरकार से प्रश्न हैं की सत्याग्रहियों ने ऐसा क्या किया जो आधी रात को सैन्य बल का सहारा लेना पड़ा ?
क्या अनशन करना गुनाह है ?
क्या भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज़ उठाना कायरता है ?
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जब बाबा ने चिल्ला चिल्ला कर कहा की मैं गिरफ्तार होने के लिए तैयार हूँ तो क्यूँ नहीं गिरफ्तार किया गया ? क्यूंकि उनकी मंशा तो एन्कोउन्टर में अथवा आग लगाकर , बाबा को मारकर सारा मुद्दा ही समाप्त कर देने की थी।
न रहेगा बांस, न बजेगी बांसुरी ।
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बाबा ने सिर्फ एक ही गलती की है---
लातों के भूत बातों से नहीं मानने वाले। भूखा रहने के बजाय तत्र के भ्रष्ट लुटेरों को भूखा तडपा तडपा कर मारना चाहिए।
सत्याग्रह की भाषा असंवेदनशील सरकार कभी नहीं समझेगी जिसे अपनी प्रजा के दुखों से कोई सरोकार ही नहीं है।
" 'अनशन' is like casting pearls before swine."
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एक पाठक (P Singh) ने ये चुटकुला भेजा है , तो एक असली तस्वीर से परिचित करा रहा है । आप भी देखिये....
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Once Sonia Gandhi went to a school to interact with the children there. After a brief talk she asked if anyone had any questions. One boy raised his hand.
Sonia: "What's your name"? Boy : "RAHIM" Sonia: "What are your questions"? Rahim: "I've 3 questions... 1.Why did you attack & kidnap Baba Ramdev without approval of Court? 2.Why there is no punishment to KASAB as yet? 3.Why does Manmohan singh & the Congress party not support Baba against corruption? Sonia: "You are an intelligent student Rahim." Just then the recess bell rang. Sonia: "Oh students, we will continue after the recess is over".
After the recess... Sonia: "Ok children where were we? So, anybody wants to ask a question"? RAM raises his hand. Sonia: "What's your name"? Ram: "I'm Ram and I've 5 questions... 1. Why did you attack Baba without approval of the court? 2. Why no punishment to Kasab as yet? 3. Why does Manmohan Singh not support the fight against corruption? 4. Why did the recess bell ring 20 mins before the time? 5. Where is Rahim? :) =))
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ना तो यह यह आन्दोलन असफल रहा है और ना ही यह अभियान समाप्त हुआ है अपितु इस आन्दोलन के कारण पुरे देश में एक जान चेतना की लहर जागृत हो गयी है | अब हम लोग कुतर्क शास्त्रियों का तो कुछ कर नहीं सकते हैं जैसे की इसी लेख पर किसी ने कहा है की बाबा रामदेव विदेशी गाड़ियों में बैठते हैं उसका विरोध क्यों नहीं ."बाबा रामदेव ने केवल zero techonology " के आधार पर बनाने वाली चीजों के बारे में स्वदेशी का आग्रह किया था और यही बात सदैव राजीव जी ने भी कही थी | वैसे आप के कई भ्रमो का निवारण इस लिंक पर लिखी गयी पोस्ट से भी हो सकता है जैसे की लोग कह रहे हैं की बाबा लोगों को छोड़ कर भाग गए थे .बाकी अगर किसी की कोई और शंका भी हो तो वो पुछ ले
बाबा रामदेव के विरुद्ध मीडिया का दुष्प्रचार : उनके तर्कसंगत उत्तर
@Beqrar ji aap jarur dekhiyega is link ko aap ke sabhi prashno ka uttar hai yahan par
@ ज़ील जी,
मेरे तर्कों का ये मतलब हरगिज़ नही था जो आपने निकाला..........देश-हित मे होने वाले किसी भी आंदोलन का मे पुरजोर समर्थन करता हूँ ..लेकिन बाबा रामदेव की जो कमियाँ मुझे लगी वो मैने कही ..लेकिन कहीं भी मैने जनता का खून चूसने वाली इस सरकार का समर्थन नही किया है.....
@ अंकित जी,
आपने जो लिंक दिया वो खुल नही रहा है, बहरहाल बाबा रामदेव की किस भी और बात से मेरा कोई विरोध नही रहा है..लेकिन अनशन शुरू करने और ख़त्म करने तक जो भी कुछ हुआ उससे मेरा विरोध है....
@ प्रतुल वशिष्ट जी,
जिन संतों के बारे मे आपने लिखा है हो सके तो उनके नाम और कर्मस्थलों के बारे मे भी बता दें
धन्यवाद
बेकरार जी,
संतो के नाम जानने की बेकरारी छोडिये... क्योंकि कपोल कल्पित दृष्टान्तों के कुछ भी नाम रखे जा सकते हैं.
मेरा कहने का औचित्य केवल इतना है कि मनुष्य में तमाम कमियाँ होती हैं... कुछ तो गुरु के निर्देशन में दूर हो जाती हैं. कुछ अच्छी संगत में धुल जाती हैं और कुछ का अपनी इच्छा से मार्जन हो जाता है.
ऐसे भाँति-भाँति के सन्त भारत में खोजे जा सकते हैं.
मैंने कुछ लोगों के जीवन का समग्र अवलोकन किया तो पाया... वे किसी क्षेत्र की ऊँचाई छू रहे थे तो कहीं धरातल छू रहे थे. फिर भी उनके कई कार्य ऐसे थे जो स्तुत्य थे. किसी एक व्यक्ति की समीक्षा कई दृष्टिकोण से की जानी चाहिए. मैंने आज़ तक प्रचलित-अप्रचलित अपशब्द मुख से नहीं निकाला मुझे 'बाप' शब्द बोलने से भी बहुत परहेज है. लेकिन जिसकी परवरिश जिस माहौल में हुई है वही तो उसपर प्रभाव पड़ेगा. एक बड़ा वर्ग समाज में ऐसा भी है जो अपशब्दों से हांका जा सकता है. समाज में उसकी भी प्रासंगिकता है. उसे नकार कर नहीं चला जा सकता. जब तक गांधी जी ने हरिजन वर्ग को उसकी समग्रता के साथ आत्मसात नहीं किया तब तक एक बड़ा वर्ग देश की आजादी से कटा हुआ था. मायावती जी को ही लीजिये... वे जिस शब्दावली का प्रयोग करके जनबल जुटा लेती हैं उसपर गोर कीजिए ... आपको आज जनबल के द्वारा एकजुटता स्वीकार्य है या फिर स्तरहीन शब्दावली की काट-छाँट करना महत्वपूर्ण लग रहा है.
मैंने दलित साहित्य पढ़ा, प्रेमचंद का साहित्य पढ़ा... उनमें ज़मीन से जुड़े देसी पात्रों का नायकत्व भी देखा ... जिसमें १०० प्रतिशत शास्त्रीय गुण नहीं थे... फिर भी समाज को प्रभावित करते थे, मुझ जैसे पाठकों को अनायास प्रेरणा दे जाते थे.
आज समाज के क्रियाशील संतों में ऎसी छुद्रता को तलाशने का समय नहीं है जिसको इंगित कर 'देशद्रोह' आसानी से अपने पैर फैलाता रहे, उसे (देशद्रोह) अनदेखा करने का ध्यान भटकाऊ काम हमें आज़ नहीं करना.
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अन्यों की सभी कमियों को ... मैं तो नहीं जानता.. लेकिन अपनी कमियों के माध्यम से ये कह सकता हूँ कि... मुझमें सुधार की गुंजाइश है. धीरे-धीरे मुझे मेरे चाहने वाले उन कमियों को इंगित कर दूर कर ही देंगे.
दूसरी बात, अंकित जी का लिंक पाने के लिये उनकी ताज़ा पोस्ट उनके ब्लॉग 'मुक्त सत्य' पर अवश्य पढ़ें. मैंने भी एक लेख 'भारत भारती वैभवं' पर लगाया है. उसे भी पढ़ने आइयेगा.
लिंक : http://bharatbhartivaibhavam.blogspot.com/
आपका इंतज़ार रहेगा.
एक बात और :
मैने जानबूझकर आपके पहचानी नाम "बेकरार' को 'बक रार' कहा, क्षमा चाहता हूँ.
मेरा मंतव्य इतना ही था कि बिना प्रमाणों के बाबा रामदेव जी को यदि 'कायर', 'अविश्वसनीय' संबोधन दिये जायेंगे तो ऐसे सभी कथन बकवास ही लगेंगे.
[बक = बकवास, निरर्थक; रार = झगडा]
ऐसे अर्थ लगाकर ही नाम बिगाड़ने का काम किया.. क्षमा भाव रखियेगा.
http://nationalizm.blogspot.com/2011/06/blog-post_19.html ise dekh leejiye
ya ise
बाबा रामदेव के विरुद्ध मीडिया का दुष्प्रचार : उनके तर्कसंगत उत्तर
divya mam , aap ne link block kr rakhe hain kya ???
@ प्रतुल वशिष्ठ जी,
आपने मुझे बक-रार कहा..और उसका क्या मतलब था ये भी बता दिया शुक्रिया..क्यूंकी मे अल्पग्य समझ भी नही पाता अगरचे आपने बता ना दिया होता....आपने अधिक पुस्तकें पढ़ ली हैं और आपका ज्ञान किताबी अधिक है जीवन की व्यावहारिक जीवंत पुस्तकें पढ़ें..कपोल-कल्पित बातों से तर्क ना करें.......
मेरे विचारो से आपकी असहमति सर - आँखों पर
बक-रार
@ ankit ji
I have visited the link..I can say a real eye-opner,
Thanks for the link
anshan vyartha nahi gaya isse loktantra aur majbut banega because public are alert now
बहुत कुछ सिखा गया है
कुछ भी व्यर्थ नहीं गया , गया तो एक सबक़ दे कर गया .
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