Friday, October 14, 2011

मेरे देश की धरती गद्दार उगले , उगले रोज़ मक्कार .....

प्रशांत भूषण ने देश को शर्मसार किया , देशद्रोह किया , हमवतनों के साथ गद्दारी की अखंड भारत को खंड -खंड करने का आवाहन किया। ये बुद्धजीवी अपनी बुद्धि क्या दरिया में बहा आते हैं? भारत का हित किसमें है , क्या यह भी नहीं जानते ज्वर से पीड़ित होकर जैसे प्रलाप होता है , वैसे ही प्रशांत भूषण और अरुंधती आदि का अनर्गल प्रलाप होता रहता है समय-समय पर।

देश को दीमक की तरह चाट रही कांग्रेस ही इन अनर्गल प्रलापों की जिम्मेदार है। कांग्रेस से ज्यादा खतरनाक हैं कांग्रेसी मानसिकता वाले भारतीय। दोहरा चरित्र इनकी पहचान है। मासूम , निर्दोष और भोली जनता का समर्थन प्राप्त करने के बाद ये पूरी ताकत के साथ आम जनता के विश्वास का गला घोंटते हैं।

हमारे देश की अकर्मण्य और भीरु सरकार कसाब जैसे आतंकवादियों को पालती पोसती है , लेकिन साध्वी प्रज्ञा जैसे देशभक्तों को सरकारी अस्पताल में तिल-तिल मरने को मजबूर करती है। यहाँ संतों और जनता को आधी रात में मरवाया जाता है। बहिन राजबाला , निगमानंद और अरुण दास जैसे देशभक्त रोज़ ही शहीद होंगे जब तब तक बिना रीढ़ की हड्डी वाले भूषण हमारे देश का आभूषण बनेंगे।

जिन वीरों ने प्रशांत भूषण को उनके गैरजिम्मेदाराना वक्तव्य के लिए पिटाई की , उनको नमन। उन्होंने भारत की मिटटी में जन्म लेने का ऋण अदा कर दिया। जिन्दा कौमें पांच साल तक इंतज़ार नहीं करतीं। दुष्टों, भ्रष्टों, गद्दारों और मक्कारों को सजा तुरंत दे देनी चाहिए। सरकार और अदालतों से न्याय की उम्मीद व्यर्थ है।

आज देश को ज़रुरत है शहीद भगत सिंह जैसे वीरों की नयी खेप की। वतन पर मर मिटने वालों देशभक्तों की अखंड भारत का स्वप्न देखने वालों की दुश्मन मुल्कों के नापाक इरादों को धूल चटाने वालों की, देश के साथ गद्दारी करने वालों की नाक सड़क पर रगड़ देने वालों की

आज ज़रुरत है नेताजी जैसे वीरों की और एक ऐसी फ़ौज की जो गद्दारों के हौसले पस्त कर दे और अकर्मण्य सरकार को उखाड़ फेंके। एक ऐसी फ़ौज जिसमें सिर्फ इमानदार , निस्वार्थ , निडर , निर्भीक और देशभक्त नागरिक हों।

जय हिंद !
जय भारत !

भारत का स्वाभिमान बचा रहे।
भारत की अखंडता बनी रहे।
भारतवासियों का विश्वास बना रहे

Zeal

82 comments:

S.N SHUKLA said...

इस सुन्दर प्रस्तुति के लिए बधाई स्वीकारें

जीवन और जगत said...

दोष केवल प्रशांत भूषण जी का ही नहीं है। दरअसल हमारे संविधान निर्माताओं ने ही कश्‍मीर के लिए अनुच्‍छेद 370 का प्राविधान बनाकर उसे हमेशा के लिए देश का नासूर बनाने का कार्य किया है। जब कश्‍मीर भारत का अभिन्‍न अंग है, तो फिर उसके लिए विशेष प्रावधानों की क्‍या जरूरत थी। देश के तमाम कानून सभी राज्‍यों/संघीय क्षेत्रों में लागू होते हैं, कश्‍मीर में नहीं। ऐसे में यदि कश्‍मीर में अलगाववाद की भावना पनपती है, तो इसमें आश्‍चर्य नहीं होना चाहिये।

निर्मला कपिला said...

divya kaisi hain aap bahut din baad blog par aayee hoon.jai hind aaj bas itanaa hi.

Bharat Bhushan said...

भाजपा ने आरोप लगाया है कि यह कांड कांग्रेस का करा धराया है क्योंकि प्रशांत टीम अन्ना के सदस्य हैं. आपका आलेख सामयिक है.

Unknown said...

jarurat hai aaj Bhagat singh jaise logo ki...

क्या प्रशांत भूषण की पिटाई सही है या प्रशांत भूषण का बयान सही था
jai baba banaras......

रविकर said...

बहुत सुन्दर प्रस्तुति ||
बहुत बहुत बधाई ||
टांगें टूटी गधे की , धोबी देता छोड़ |
बच्चे पत्थर मारके, देते माथा फोड़ |

देते माथा फोड़, रेंकता खा के चाटा |
जनमत करे पुकार, गधों का धोबी-घाटा |

घाट-घाट पर घूम, आज घाटी को माँगें |
चले चाल ना-पाक, तोड़ अब चारों टांगें ||

JC said...

यह कहना आवश्यक नहीं है कि 'भारत' भूमि की मिटटी सम्पूर्ण संसार की प्राचीनतम सभ्यता (सौर-मंडल के सभी सदस्यों में से इंदु अर्थात चंद्रमा के सार को मनव शरीर में आध्यात्म/ बुद्धि के द्योतक मान उच्चतम स्थान देने वाले 'हिन्दुओं') की जननी है...

शायद कवि रसखान ने इस का गुण गाते कहा था कि हाथी भी स्नान के पश्चात अपने शरीर पर धूलि कणों की बौछार करता है क्यूंकि इसी मिटटी पर कभी गोकुल गाँव में श्री कृष्ण के पैर पड़े थे! और 'हिन्दू' गाय, और गंगा आदि नदियों को भी, माता समान मानते चले आ रहे हैं...

यह 'भारत देश' के निवासियों की कभी श्रद्धा का नमूना था... और वे दोनों, देवता और राक्षसों, को भी ईश्वर अर्थात निराकार ब्रह्म की इच्छा से ही यहाँ इस देश / संसार में आये मानते आ/ जा रहे थे, लीला अथवा ड्रामा / फिल्म के विभिन्न पात्रों के समान, अपना अपना निर्धारित रोल करने...

किन्तु, इसे दुर्भाग्य कहें अथवा कहानी लिखने वाले का समय को ध्यान में रख, अर्थात घोर कलियुग का लगभग अंत जान, आज सब जसपाल भट्टी के नाटक समान 'उल्टा-पुल्टा' लग रहा है - सत्य क्या है और असत्य क्या...
कौन सही है और कौन गलत?...

किसी कवि की एक पंक्ति याद आती है, "घर के बाहर भी कोलाहल है / घर के भीतर भी कोलाहल है..."
जैसा श्रृष्टि की रचना के समय (अर्थात एक दम मौन की स्तिथि से, ब्रह्मा की रात्री के पश्चात) एक नए दिन के आरम्भ में नादबिन्दू विष्णु द्वारा तथाकथित ब्रह्मनाद हुआ था! तो क्या एक नयी रात्री आने पर अचानक बत्ती बुझ सकती है?...

चंद्रमौलेश्वर प्रसाद said...

ज़बान से निकली बात और कमान से निकला तीर कभी वापिस नहीं लिया जा सकता!!!!!!

शिवा said...

सुन्दर प्रस्तुति के लिए बधाई स्वीकारें

kshama said...

Hamare desh ke qayde qaanoon,sadiyon purane aur ghise pite hain! Pata nahee kab badalenge?

DUSK-DRIZZLE said...

INKI SAJA KYA HONI CHAHIYe

Pallavi saxena said...

आपका आलेख सामयिक है। समय मिले तो आयेगा मेरी पोस्ट पर आपजा स्वागत है।
http://mhare-anubhav.blogspot.com/

upendra shukla said...

इस सुन्दर सी प्रस्तुति में सच्ची बात रखने के लिए धन्यवाद
बड़े दिनों बाद आया कभी कभी आपका ब्लॉग खुलता ही नहीं

Bikram said...

beautiful .. some have said zaroorat hai bhagat singh ki, NO, ZAROORAT hai HUM , desh WAASIYON KO.. BHAGAT SINGH SARDAR banane KI...
bahut hui gandhigiri ab mauka hai in logon ko UNCHI awaaz sunane ki ...

उजजले खददर का कफ़न पहने मेरे बगुला भगत
बदन चीथड़ों में लिपटा तेरी बेटी का नंगा क्यूँ है ?
एय गुलशने हिंद के गदार निगेबान
मुझे यह तो बता तेरे बाग़ में लूट कतल अगवा और दंगा क्यूँ है ?


Bikram's

Human said...

bahut acha saamyik aalekh hai.
Parantu sabse bada prashn ye hai ki aakhir kyun nahi deshwaasi UNO tatha desh ke naukarshah par dabaav banate ki kashmir ko vivadit nahi bharat ka hi ang ghoshit kia jaaye.

दिवस said...

अभी तो ये भूषण सस्ते में ही निपट लिया| राष्ट्रद्रोह के लिए तो केवल एक ही दंड होना चाहिए "मृत्यु दंड"...
इसका बयान उन शहीदों का अपमान है जो इसलिए मर गए ताकि कश्मीर को भारत से कोई अलग न कर सके|
इसका बयान उन कश्मीरी पंडितों व सिक्खों का अपमान है जिन्हें रातों रात कश्मीर से उखाड़ दिया गया| कश्मीर पर पहला अधिकार कश्मीरी पंडितों व सिक्खों का है न की गिलानी, अब्दुल्ला, भूषण, अरुंधती जैसे दल्लों का|
इस बयानबाजी से पहले भूषण भगत सिंह सेना से धमकी पा चूका था, जब उसने शान्ति सिंह, खुशवंत सिंह को सम्मानित किये जाने की वकालत की थी| शांति सिंह के बारे में तो आपको पता होगा| यह अंग्रेजों वो दल्ला था, जिसने सांडर्स हत्याकांड में अंग्रेजों के समक्ष भगत सिंह के खिलाफ बयान दिया था और इसी बयान के कारण भगत सिंह को फांसी हुई थी| इसी बयान के कारण शांति सिंह को सिक्ख बिरादरी से निकाल दोय गया था, किन्तु आज़ादी मिलते ही नेहरु सरकार द्वारा इसे सम्मानित किया गया व इसे स्वतंत्रता सेनानी होने का तमगा भेंट किया|
वर्तमान में मनमोहन सरकार द्वारा उसके बेटे खुशवंत सिंह को सम्मानित किया गया व दिल्ली के पश्चिम विहार में शांति सिंह के नाम का स्मारक बनाने की बात कही| भूषण ने उस समय भी इसकी वकालत की थी, जिसके चलते उसे भगत सेना की ओर से धमकियाँ मिलने लगीं|
फिर भी नहीं सुधरा और कश्मीर मुद्दे पर राष्ट्रद्रोही बयान पेलने की सजा पा गया|

चलिए इसी बहाने "गैंग अन्ना" का मुखौटा तो उतर रहा है| खुद को मसीहा बताने वाली यह गैंग अब बेनकाब हो रही है| कल ही अन्ना ने एक और बयान पेल दिया है की यदि सरकार जनलोकपाल क़ानून नहीं लाती है तो हम यह नहीं कहेंगे की कांग्रेस को वोट मत दो, बल्कि किसी को वोट मत दो, यही हमारा नारा होगा| मतलब कांग्रेस का पासा बिलकुल सही पड़ा|

@DUSK-DRIZZLE
किसकी सजा के विषय में पूछ रहे हैं आप?
भूषण की या उसे पीटने वाले वीरों की?
यदि भूषण की सजा जानना चाहते है तो राष्ट्रद्रोह के लिए केवल मृत्यु दंड होता है, फिर अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता भी गयी तेल लेने|
भगत सेनानियों को तो सम्मानित किया जाना चाहिए|

दिव्या दीदी
जिस फौज की बात आप कर रही हैं वह हम तैयार कर रहे हैं| अभी इसकी शुरुआत फेसबुक से निकल कर वास्तविक दुनिया तक पहुँच चुकी है| आपके आशीर्वाद से हम फिर से आज़ाद हिंद फौज खड़ी कर रहे हैं| जिसमे केवल उन वीरों के लिए स्थान है ओ प्रतिपल एश के लिए मर मिटने को तैयार हों|
मैं जानता हूँ की कई लोगों को यह छोटा मूंह बड़ी बात लगेगी, किन्तु शुरुआत हो चुकी है| आचार्य चाणक्य के शब्दों में "प्रलय का आगमन हो रहा है और अब स्वर्ग के देवता भी इसका मार्ग नहीं रोक सकते"

vandana gupta said...

समसामयिक आलेख्।

रेखा said...

प्रशांत जी को इस तरह का बयान नहीं देना चाहिए था ....लेकिन मेरे विचार से उनके विरोधी दुसरे ढंग से भी उनको जबाब दे सकते थे

महेन्‍द्र वर्मा said...

प्रशांत भूषण जैसे लोग देश के दुश्मन हैं। अच्छा हुआ कि जनता ने उसे तुरंत सजा दे दी। ऐसे वक्तव्य देने वाले देशद्रोहियों को इसी तरह तत्काल सजा दे देनी चाहिए।

प्रवीण पाण्डेय said...

समाधान की ओर दिशा हो, व्यवधान तो नित आते रहते हैं।

SAJAN.AAWARA said...

me aap ki baat se puri trah sahmat hun,,,per unke sath marpitayi ka tarika galat tha kuch or bhi samadhan nikal sakta tha...
usse bhi galat us ladke sath badle ki pitayi hona hai bhusan ji se jayada us ladke ko choten aayi hain,,,,
jai hind jai bharat

Rajesh Kumari said...

aapne sahi kaha hai desh ke gaddaron ko saja milni hi chahiye.saamayik aur prerak rachna.

दिवस said...

@रेखा जी और सजन आवारा जी
दूसरा कौनसा तरीका है, ज़रा बताइए
देशद्रोही के लिए केवल एक ही दंड होता है, ये तो साला सस्ते में सलट गया
इसे तो शुक्रगुजार होना चाहिए

हल्दी घाटी के युद्ध में जाने से पहले महाराणाप्रताप ने कहा था की मेरा पहला निशाना मुग़ल नही मानसिंह होगा| क्योंकि मुग़ल तो मेरे दुश्मन हैं, उनका तो काम ही है मुझे मारना| वे तो अपना कर्त्तव्य निभा रहे हैं| किन्तु मानसिंह तो मेरा भाई है, वह गद्दार कैसे निकल गया? पहले तो उसे ही मरना होगा| ताकि आगे से कोई गद्दारी करने की सोच भी न सके|
इसी प्रकार भूषण जैसे गद्दारों को सजा मिलनी ही चाहिए| बात बात पर हमारा शांतिपूर्ण जो जाना हमारी कमजोरी है| अब तक शांति से कितने गिलानियों, भूषणों, अब्दुल्लाओं को सजा मिली है? कोई मेरी माँ को गाली दे तो क्या मुझे शांतिपूर्ण होना चाहिए?

और please उसे "भूषण जी" जैसा सम्मान सूचक संबोधन मत दीजिये

Atul Shrivastava said...

आज के दौर में हर कोई खुद को खुदा समझने लगा है।
जनता ने अन्‍ना के आंदोलन को समर्थन दिया क्‍योंकि अन्‍ना भ्रष्‍टाचार से त्रस्‍त जनता की आवाज बन गए थे.. लेकिन उनकी टीम के सदस्‍य न जाने खुद को क्‍या समझने लगे हैं कि वो कुछ भी बयान देने लगे हैं और ऐसे बयानों को यदि कुछ कम ज्‍यादा कर मीडिया में लाया जाये तो कोई भी देशभक्‍त का मुंडा सरक सकता है।
प्रशांत भूषण को मारने वाले युवाओं की इस कार्रवाई को गुंडागर्दी कहा जा सकता है लेकिन देश की अखंडता के खिलाफ प्रशांत भूषण की इस तरह की गुंडागर्दी के सामने यह गुंडागर्दी बेहतर है।

Unknown said...

दिव्या जी प्रशांत भूषण तो मोहरा है, दरअसल सबके पीछे है कौन गंभीरता से सोचे . ज़रा गौर करे , अन्ना का आन्दोलन , जुडती हुयी जनता , अन्ना को राष्ट्रपति का लालच , एक के बाद एक टीम अन्ना निशाने पर. बाबा राम देव को लाठिया दिया, अन्ना को बरगला दिया.भ्रस्ताचार पर जब सरकार चलाने वाले ही जेल में हो तो कौन दूर करेगा देश से भ्रष्टाचार. किस्मे है इतना दम की अपनों ही को भ्रष्टाचार में फ़साने का कानून लाये . देश में जरूरत है दिवस जी की आज़ाद भारत फ़ौज . दिवस जी के अरमानो को (mile) उड़ान इन्ही कामनाओ के साथ एक सच्चा भारतीय .. जय हिंद जय भारत .

सुरेन्द्र सिंह " झंझट " said...

lalkaar bhari saarthak post...
in paaglon ko nazarband kar dena chahiye.

Neeraj Rohilla said...

प्रशान्त भूषण ने जो भी कहा लोकतन्त्र के दायरे में रहकर कहा। उससे सहमत अथवा असहमत हुआ जा सकता है लेकिन केवल उस विचार से असहमति किसी को ये अधिकार नहीं देती कि आप खुले आम हिंसा पर उतर आयें। इस प्रकार की हिंसा की जिस प्रकार आपने अपने ब्लाग पर प्रशंसा की है चिंताजनक है। इस प्रकार की प्रवत्ति पर लगाम लगनी चाहिये, विरोध प्रकट करने के और भी तरीके हैं।

आभार,
नीरज रोहिल्ला

दिवस said...

@नीरज रोहिल्ला
भाईसाहब कृपया उपदेश न दें, कोई और तरीका हो तो वह बताएं| हमे तो यही तरीका पता था सो इसका समर्थन करते हैं|
दूसरी बात, यदि कोई हमारे देश को तोड़ने की बात करे और हम चुपचाप सुनते रहें तो इससे बड़ी अनैतिकता क्या हो सकती है? क्या आपका यह वक्तव्य वीरता की श्रेणी में रखा जा सकता है?

जब स्वघोषित मसीहा टीम अन्ना का कोई सदस्य ऐसा बचकाना बयान देगा तो इसकी जिम्मेदारी अधिक होती है| जिसे उद्धारक समझा जा रहा है, जब वही देश तोड़ने की बात कहे तो बताइये जनता किस पर विश्वास करे? यह सरासर जनता के विश्वास पर वार है, इसकी सजा बहुत गंभीर होनी चाहिए|
मेरी पिछली टिपण्णी देखिये और बताइये कि क्या महारानाप्रताप भी गलत थे?

Patali-The-Village said...

समसामयिक आलेख्।

दिनेश शर्मा said...

एकदम सही। काश! भगत सिंह पैदा हो और कसाब,अफजल और कांग्रेस में शामिल वर्तमान जयचन्दों का संहार करें।

JC said...

हमने ब्रिटिश राज से पिंड छुडाने के लिए, विभिन्न शाखाओं में बँट, अपने कापने तरीके से लड़ाई की...
१९४७ में खुश हुए 'आज़ादी' पा और जनता कुम्भकर्ण समान सो गयी :)
किन्तु ६० साल लग गए नींद खुलने में और यह पता चलने में कि हम भारतीय और अधिक ग़ुलाम बन गए हैं!
और वो भी स्वयं अपने ही द्वारा कुछ चुने हुए लोगों द्वारा ही!
और अब हम लग गए हैं खुद अपने को, एक दूसरे को, ही पीटने में अपने समस्त समस्याओं का कारन मान!

भारत देश शायद ऐसे ही महान नहीं कहलाया गया है, एक बिन्दू (काशी से) आरम्भ कर सम्पूर्ण संसार में पहुँच, अब फिर बिन्दू की ओर ही अग्रसर?!
'जय भारत माता'!

अशोक कुमार शुक्ला said...

Kya hame pakistan ki bhasha. Bolne wale
aadmi ke saath kaisa vyawhaar
karna chahiye?
Mujhe to kamleshwar ji ki
kitne palistan
ki yaad aayi.

JC said...

जब पत्नी को ल्युपस हो गया था... अस्सी के दशक में जब ऐसा बताया गया, तो मुझे डॉक्टर द्वारा यह समझाया गया था कि हमारा इम्यून सिस्टम गड़बड़ा जाता है - उसे पता तो चलता है कि कोई वाईरस अथवा कोई अन्य सूक्ष्माणु इसका कारण है, किन्तु उसके कुछ प्रतिशत सिपाही उसका सही निवास स्थान न जान पाने के कारण हमारे स्वस्थ अंगों, ह्रदय, गुर्दे आदि, वाईटल अंगों पर हमला कर देते हैं और उनको भी हानि पहुंचाना आरंभ कर देते हैं... और स्तैरोयद द्वारा उनको 'बेहोश' सा रखना पड़ता है जिससे अन्य स्वस्थ रक्त अपना कुछ तो सही काम कर सके... (कृपया इस तथ्य में यदि कुछ त्रुटी हो तो उसका सुधार करें, और इसे फिर से वर्तमान के परिप्रेक्ष्य में अच्छी तरह समझा दें)...
उपरोक्त तथ्य मुझे आज हमारे अन्य क्षेत्र पर भी लागू होते लगते हैं...

सदा said...

बेहतरीन लिखा है आपने ...हमेशा की तरह ।

JC said...

जो कुछ भी विश्व भर में अथवा 'भारत' में सरकार / सरकारों द्वारा किया जा रहा अथवा हो रहा है वो हमारे द्वारा ही बनाये गए संविधान के अंतर्गत ही हो रहा है, अर्थाय 'सही' है...
किन्तु यह भी सभी को पता होगा / होना चाहिए कि कभी भी कोई भी मनाव द्वारा रचित, भले ही वो उपकरण हों, भवन हों, तंत्र हो, आदि आदि, सीमित काल ही चलता है, अर्थात अस्थायी है...
कितनी ही बुलंद क्यूँ नहों, इमारत/ भवन तो खँडहर में परिवर्तित होंगें ही, भले ही खींच तान के, यानि अच्छे रख रखाव द्वारा, उनकी आयु बढ़ाना संभव है, किन्तु मृत्यु पर मानव द्वारा विजय पाना असंभव है, जहां तक मानव अथवा अन्य पृथ्वी पर आधारित प्राणीयों का प्रश्न है... ::(
किन्तुऔर यह किसी अदृश्य शक्ति के लिए यद्यपि अवश्य संभव रहा होगा ही भूतकाल में (जिसे भूतनाथ कहा गया) क्यूंकि हमारा सौर-मंडल / धरा, अथवा वसुधा आदि, आज साढ़े चार अरब वर्ष के हो गए है और अभी अरबों वर्ष 'चकाचक' चल सकते है .)

मदन शर्मा said...

मित्रों देशद्रोही प्रशांत भूषण को सबक सिखाने वाले वीर इन्द्र वर्मा और उनके साथी तजिंदर पल सिंह बग्गा एवं विष्णु गुप्ता को जमानत तो मिल गई है लेकिन उन्हें कल रात 8 बजे तक जेल में ही रहना होगा| कोई बात नहीं सोना आग में रहकर, तपकर ही कुंदन की तरह निखरता है| गर्व है हमें हमारे दिल्ली के अध्यक्ष श्री इन्द्र वर्मा और साथियों पर

मदन शर्मा said...

तरीका ग़लत है लेकिन थप्पड़-घूंसे-लात से पिटाई जायज़ है.
कश्मीर देश का हिस्सा है. अगर कश्मीर को अलग करना चाहते है तो देश की जनता को फ़ैसला लेना चाहिए की क्या देश की जनता भी कश्मीर को छोड़ने की इच्छा रखती है.प्रशा'त भूषण का बयान बचकाना बयान है माना ओ टीम अन्ना के सदस्य है तो क्या उनको कुछ भी कहने का हक मिल गया है इस प्रकार के बयान जो देश के हित मे ना हो नही देना चाहिए मगर ये लोग जनता का सम्रथन पाते ही अपने आप को हीरो समझने लगते है मै हिंसा से सहमत नही हू मगर पाकिस्तान को इस बयान से बल मिलता है
प्रशांत भूषण को इस तरह के गंभीर विषय पर अपने बयान नही देने चाहिए नही तो अभी तक अन्ना जी के आंदोलन से जो कमाया है वह मिट्टी मे मिल जाएगा मेरे हिसाब से तो यह बयान देशद्रोह के रूप मे देखा जाना चाहिए.

दिवस said...

@किलर झपाटा
भाई/बहन/Whatever, एक झपट्टा भूषण पर पड़ चूका है, इसे भूलना मत| देशद्रोही बयान देना तो गुनाह है ही, उसका समर्थन करना भी राष्ट्रद्रोह की श्रेणी में आता है| कश्मीर को भारत से अलग करने का बयान राष्ट्रद्रोही बयान है| इसमें क्या ठीक लगा आपको? क्या आप कश्मीर को भारत से तोडना चाहते है? यदि ऐसा है तो तू एक पाकिस्तानी है| हमारा देश क्यों सड़ा रहा है, जाकर घुस पाकिस्तान में|
अगर हमे समझ वमझ नहीं आता तो समझा दे| लेकिन देश को तोड़ने की बात मत कहना|

पहली बार मुखातिब होने का मौका मिला है| कितनी भी पहलवानी करता हो, बोलने से पहले सोच लेना चाहिए|
अभी के लिए इतना ही, आगे कुछ कहना हो तो इस परिपेक्ष्य को ध्यान में रख लेना|

JC said...

सत्य पर कुछ विचार, लिंक
http://www.youtube.com/watch?v=7CgLZCJzP0g

Anonymous said...

@ किलर झपाटा जी

मैं आज दो तीन पोस्ट्स पर ( इसी विषय की ) एक ही बात लिख आई हूँ - कि जब प्रशांत भूषण जी स्वयं ही सब बातों के निर्णय "जनमत संग्रह" द्वारा ही कराना चाहते हैं - तो फिर उन्होंने जो कहा - उस पर उनके साथ अच्छा व्यवहार हो या बुरा - फूलों की मालाएं पहनाई जाएँ या जूतों की ? इस पर constitutional decision की ज़रुरत क्या है ?

जनमत संग्रह ही किया जाना चाहिए ना - कि उन जैसे बयान देने वालों के साथ क्या हो ? मुझे तो यही लगता है कि यदि ऐसा जनमत संग्रह किया जाए - तो उनके ही तरीके से उनका सही निर्णय हो जाएगा ... और यह कोई hung jury नहीं बल्कि clear cut रिजल्ट होगा - देख लीजियेगा !!!! किन्तु इसमें संविधान की आड़ ले कर छुपने का प्राविधान नहीं होना चाहिए !!! क्या आपको ऐसा नहीं लगता ?

दिवस said...

@किलर झपाटा
कश्मीर में धारा ३७० लागू है, जिन्ना, नेहरु, गांधी, कांग्रेस, ब्रिटेन ने देश तोडा था, चीन आँखें दिखा रहा है तो क्या इसका मतलब यह हो गया कि जब तक यह सब ठीक नहीं हो जाता तब तक देश तोड़क बयानबाजी कर टाइम पास करें? ठीक है, इन सबके लिए लड़ना चाहिए, लेकिन यह क्या मतलब हुआ कि तब तक देश को तोड़ने वाले बयानों का समर्थन करलो और इनका विरोध करने वालों को बेवकूफ समझ लो?
कुछ अक्ल है या पहलवानी करके मोथा हुआ जा रहा है? या फिर अक्ल बेच कर मक्खन खा रहा है?

Dr.Ashutosh Mishra "Ashu" said...

bhushan ji ka baany sarvatha galat hai...jab mamla desh hit ka ho tab bahut soch samajhkar bolna chahiye..maa ka koi bhi beta aisi bahrudgi pasand nahi karega..divya ji aapke bicharon se main purntaya sahmat hoon

JC said...

यह कृष्णलीला भारत से ब्रिटिश के बाहर जाने के बाद आरम्भ नहीं हुई! यह तो सिलसिला है अरबों वर्षों का...
पृथ्वी आग का गोला थी आरम्भ में...आदमी का कहीं नामो-निशाँ नहीं था...
और, आदमी से पहले तो सूक्ष्माणु आया, अरबों वर्ष पहले...
आदमी उससे उत्पत्ति करता कुछ लाख साल पहले ही दो टांग वाला पशु बन पाया, और गुफा से आरम्भ कर महलों में तो रहने लग पडा किन्तु जानवरों के गुण नहीं छोड़ पाया (प्रभु इच्छा?)!
यही कृष्णलीला है शायद... ...
और शायद आदमी पशु ही रह गया है - गधे की तरह लात मारते देखा नहीं क्या भूषण को किसी एक व्यक्ति द्वारा? और उस पर तुर्रा यह है कि अपने को 'सभ्य', 'पढ़ा-लिखा' कहता है हर कोई :)...
जब हम सारे ही अज्ञानी हैं, तो मान क्यूँ नहीं लेते?
हमें हमारे पूर्वजों ने 'अप्स्मरा पुरुष', यानि भुलक्कड़ आदमी ऐसे ही नहीं कहा...
इतिहास क्या कहानी दर्शा सकता है अरबों वर्षों की?
और यह भी सभी को शायद देखने को मिला होगा कि कैसे 'राजा', कोंग्रेस हो कि बीजेपी, इतिहासकारों द्वारा इतिहास के पन्ने ही बदलवा देते हैं / बदलते रहते हैं, जब भी येन केन प्रकारेण अधिक वोट पा लेते हैं अज्ञानी / लाचार जनता से...

मुझे अपने पैत्रिक शहर में बताया गया था कि जब आरम्भ में गणतंत्र बना, और गाँव में वोट माँगा बैलों की जोड़ी के लिए तो वोट देने आये किसान निराश हो गए क्यूंकि वहाँ कोई बैल की जोड़ी थी ही नहीं! और जो भूसा उन्हें देने वो लाये थे बेकार गया!

Jyoti Mishra said...

everyone spoiled in this pesky, dirty politics...
the most disappointing fact is that the politics has got its tentacles deep rooted in every sphere... social, political(obviously ), economical...

Looks like there is no escape

सागर नाहर said...

हमले का मनो-अर्थ

देवेंद्र said...

कुछ तथाकथित बुद्धिजीवी मात्र भारत देश व इसकी अंदरूनी कमियों की चर्चा अपने लेखों व भाषणों में मात्र दुनियाभर में अपनी लेक्चरबाजी की दुकान चलाने के लिये करते हैं। अरुंधती रॉय ते कई वर्षों से यह धंधा कर रही हैं। अब प्रशांत भूषण भी अपनी दुकान खोलने का प्रयाश कर रहैं हैं। पर मुझे लगता हे कि मजबूत व स्वस्थ लोकतात्रिक व्यवस्था में इनको नजरंदाज किया जा सकता है।

और एक बात, स्वस्थ लोकतात्रिक व्यवस्था में किसी के भी प्रति किसी तरह की हिंसा का स्थान नहीं है और यह घोर निंदनीय है

sanjay said...

दिव्या बहन,प्रशांत भूषण को तो उसी दिन जोर से लतिया-जुतिया दिया जाना चाहिये था जिस दिन इसने हमारे जस्टिस आनंद सिंह से सारी बात जानने समझने के बाद भी ये पूछा था कि आप क्या चाहते हैं?जस्टिस आनंद सिंह जी शारीरिक व मानसिक तौर पर इतने बलिष्ठ हैं कि चाहते तो इसके चैम्बर में उसी समय इसका मुँह तोड़ कर भुरता बना देते लेकिन उनका उद्देश्य हमारी कानूनी व्यवस्था की उस अंग्रेजियत से मुक्ति और राष्ट्र की सम्प्रभुता के साथ समान नागरिक अधिकार व कर्तव्यों की स्थापना है न कि खुद एक चिरकुटहे मारपीट के केस में फंस कर दसियों साल मौजूदा अपाहिज कानून की बैसाखी में लटक जाना।
जब तक एक आम आदमी जो वोट डालता है और सरकार बनाने के लिये जनप्रतिनिधि चुनता है जो कि संसद में किसी कानून पर बहस करके उसे मान्य या अमान्य करते हैं, संविधान की समझ नहीं रखता ऐसा ही हाल रहेगा। आपसे सरकार उम्मीद करती है कि आपको कानून पता हो क्योंकि अपराध घटित हो जाने की स्थिति में कानून पता न होना क्षम्य नहीं है तो फिर क्यों नहीं बचपन से हमें "विधि शास्त्र" पढ़ाया जाता? भौतिक विज्ञान, रसायन शास्त्र,जीवविज्ञान, गणित(वैदिक नहीं),इतिहास, भूगोल,नागरिक शास्त्र,पुस्तक कला,पी.टी.,संगीत,चित्रकला,अंग्रेजी,संस्कृत,हिंदी,मराठी,गुजराती...... न जाने क्या क्या पढ़ाया जाता है लेकिन वो नहीं पढ़ाया जाता जो कि हमें सामाजिक, नैतिक तौर पर जिम्मेदार नागरिक बनाता है वो है विधिशास्त्र । यही हरामीपन है जो सरकार ने अंगीकार कर लिया है।
स्वाभिमान
संविधान
कुंठा
इसके बीच हम कब अराजक हो जाते हैं ये हमें पता ही नहीं चलता जिस प्रकार बहन राजबाला याद हैं उसी तरह उस बहन को भी याद करिये जिस पर मेरे और आपके बीच मतैक्य नहीं था हमारी बहन निशाप्रिया भाटिया । अदालतों में न्याय के नाम पर जो हो रहा है वह कथित तौर पर यदि संवैधानिक स्थिति है तो निःसंदेह बदलाव की आवश्यकता है।
@ किलर झपाटा ,
तुम कौन हो क्या हो ये तो तुम ही जानो लेकिन एक बात तुम्हारी जानकारी के लिये बता दूँ कि किसी भी देश को राष्ट्र बनने की स्थिति तक आने और ऐतिहासिक गलतियों को सुधारने में जितना समय लगता है उस लिहाज से पैंसठ साल तो शैशव काल है। हमारी सभ्यता हजारों साल पुरानी रही है उस सभ्यता और संस्कृति को संविधान तक लाने में समय लगेगा हम सब अपने अपने स्तर पर प्रयास कर रहे हैं तुमने अब तक क्या क्या करा है गिनाओ ताकि हम तुम्हारा धन्यवाद कर सकें राष्ट्रहित में ।
संजय कटारनवरे
मुंबई
जय जय भड़ास

केवल राम said...

दर्दनाक स्थिति ...क्या कह सकते हैं ऐसे लोगों की सोच पर ....!

DR. ANWER JAMAL said...

कोई दूर से लेता है कोई क़रीब से लेता है
मेरा रक़ीब है जो मज़े वो अजीब से देता है

दिवस said...

@किलर झपाटा
मेरे सवालों का जवाब दिए बिना ऊट-पटांग टिपियाने से कोई फायदा नहीं|
देश में पचासों अनियमितताएं हैं, तो क्या किसी को देश तोड़क बयानबाजी करने की आज़ादी मिल जाती है? इससे बड़ी मुर्खता की बात और क्या हो सकती है? और तुझ जैसे लोग उनका समर्थन भी करते हैं|
सारे खोट उस युवक में ही क्यों नज़र आ रहे हैं, जिसने भूषण को पीता, क्या भूषण निर्दोष है?
साफ़ साफ़ बोल, क्या कश्मीर को भारत से अलग कर देना चाहिए? घुमा फिर कर उत्तर मत देना, जो कहना है क्लीयर कट कहना, जैसे मैंने कहा|

और हाँ तमीज केवल तमीज के हकदारों को ही मिलती है| अयोग्य व्यक्तियों को तमीज देकर मैं तमीज के साथ बदतमीजी नहीं कर सकता|

मेरी इंजीनियरिंग से तुझे इतनी जलन क्यों है? जो भी हूँ, आज अपने दम पर हूँ| किसी के बाप को एक फूटी कौड़ी नहीं खिलाई|

Pratik Maheshwari said...

तो आपके हिसाब से प्रशांत भूषण ने जो टिप्पणी कश्मीर पे की वो गैर-जिम्मेदाराना थी?
मैं तो यह कहता हूँ कि अब किस कश्मीर की लड़ाई चल रही है? उस सफ़ेद बरफ पर जमी हुई खून वाली कश्मीर?
या फिर आये दिन होने वाले विरोधों की कश्मीर?
अब वो इस धरती का स्वर्ग नहीं रहा.. खून-खराबा और लड़ाई जहाँ एक नियम बन चूका है उसके लिए किसी का भी लड़ना फिजूली है..
और प्रशांत भूषण की पिटाई हुई तो ठीक.. पर फिर ऐसे ही लोग दिग्विजय और उसके जैसे ही अन्य लोगों की पिटाई करने क्यों नहीं जाते हैं?
तब इनकी हवा क्यों निकल जाती है.. सिर्फ और सिर्फ इसलिए क्योंकि दिग्विजय जैसे लोगों के हाथ में सत्ता है..
प्रशांत भूषण तो एक आम आदमी है जिसे कोई भी पीट सकता है राह चलते पर अगर सत्ता पर बैठे गद्दारों के साथ ऐसा सुलूक कोई करके दिखाए तभी उनके लिए मन में श्रद्धा उमड़ेगी अन्यथा वो आतंक फैलाने वालों की ही श्रेणी में गिने जाएंगे..

JC said...

इसे कहते हैं, "जिसकी लाठी उसकी भैंस"!
और, "काला अक्षर भैंस बराबर"!

अंग्रेज ने सदियों राज किया लाठी अर्थात शक्ति के आधार पर और उनके द्वारा 'अनपढ़' जनता को अपनी भाषा सिखा और उसमें कानून का पाठ पढ़ा, ब्रेन वॉश कर, सत्य को असत्य और असत्य को सत्य बनाने का तरीका सिखा...

राजा यदि दिन में कहे कि रात है तो चमचे भी कहें, "जी हुज़ूर, रात हो रही है"! और क्यूँ न कहें यदि यह कहने से सोने के सिक्के मिलें, और न कहने से गोली (गब्बर सिंह समान, "हुज़ूर मैंने आपका नमक खाया है" के उत्तर में, "तो फिर अब गोली खा"! आदि आदि...

इसी लिए हम हिन्दुओं के पूर्वज कह गए, "तमसो मा ज्योतिर्गमय / असतो मा सद्गमय / मृत्योर मा अमृतं गमय"!
"अज्ञान के अँधेरों से हमें ज्ञान के उजालों की ओर ले चलो"!

कौन माई-बाप रह गया है आज जो मानसिक बीमार न हो?
डॉक्टर दिव्या से प्रश्न पूछो तो कपिल मुनि (जिन्होंने राजा सागर के ६०,००० पुत्रों को भस्म कर दिया था) समान चुप बैठ जाती हैं, साधना में लीन... फिर ज्ञानवर्धन कैसे हो?

मानसिक ल्युपस (एस एल ई) सा हो गया है सभी व्यक्तियों में (कैंसर तो वैसे ही बढ़ता जा रहा है, हरमाला गुप्ता जी से पूछिए)...

सबको पता है (सम्पूर्ण संसार में, मिस्र हो, यूनान आदि जो भी प्राचीन जानी-मानी सभ्यताएं हो) कि कुछ गड़बड़ अवश्य है, क्यूंकि वैज्ञानिक भी कह रह हैं कि ऐन्तार्कटिका के आकाश में (ओजोन तल में) छिद्र बड़े हो रहे हैं (शिव का तीसरा नेत्र खुलने वाला सा है)...

उत्तरी ध्रुव हो या अन्य हिमालय श्रंखला में 'शिव' का निवास स्थान, कैलाश पर्वत समान चोटियाँ, आदि, बर्फ तेजी से पिघल रही है, जिससे सागर जल का तल उठ रहा है; और तटीय क्षेत्र जलमग्न होने कि आशंका बढ़ गयी है, आदि आदि...

हम, अपस्मरा पुरुष भूल जाते हैं कुछेक वर्ष पहले ही इसी काश्मीर में आये भूचाल के कारण कितने लोग मर गए थे एक ही झटके में; और इतना ही नहीं हाल ही में सिक्किम के भूचाल तक को भूल गए हैं!
भूल गए हैं कि कैसे दक्षिण भारत एक समय ज्वालामुखी द्वारा बनी चट्टानों के कारण अडिग माना जाता था, किन्तु साठ के दशक में आये (कोयना बाँध बनने के बाद आये) भूकंप के पश्चात ऐसा लगा था कि समझ में आगया है कि शिव का तथाकथित 'तांडव नृत्य' किसी भी स्टेज पर देखने को मिल सकता है... इत्यादि इत्यादि...

ये लात-घूंसे भी शायद उसी तांडव नृत्य के प्रदर्शन का एक छोटा सा नमूना है... ??????

ॐ नमः शिवाय!

Aditya Tikku said...

satik aur bhetereen lekh

ZEAL said...

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@ नीरज रोहिला -

लोकतंत्र है भी हमारे देश में ? ज़रा सुनिश्चित कर लें पहले।

यहाँ शांतिपूर्ण तरीके से अनशन कर रहे , सोये हुए स्त्री पुरुषोंको आधी रात में लाठियों से मारा जाता है , क्या यही लोकतंत्र है ?

घोटालेबाजों पर महामहिम की चुप्पी ही लोकतंत्र है क्या ?

आतंकवादी देश के दामाद बने बैठे हैं और मासूम जनता निरपराध मर रही है , क्या यही लोकतंत्र है ?

कश्मीर हमारे देश का अभिन्न अंग है , उसके लिए अलगाववादी बयान क्या लोकतंत्र का हिस्सा है ?

भारत का खंडित करने वाले वक्तव्य क्या लोकतंत्र के हिस्से में आते हैं ?

यदि हर भारतीय ऐसे ही बयान देगा तो "देशप्रेम" की परिभाषा क्या होगी ? और देशद्रोही तथा अलगाववादी किसे कहा जाएगा ? पाकिस्तानी ओर हिन्दुस्तानी में फर्क क्या रह जाएगा भला ?

इस तरह की बयानबाजी करने वालों को ऐसी ही सजा मिलनी चाहिए तत्काल से, ताकि अन्य सर-उठाते देशद्रोहियों को वक़्त रहते सही शिक्षा मिल जाए।

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ZEAL said...

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@ और भी तरीके .....

किसी ने यह नहीं बताया की और भी कौन से तरीके हो सकते हैं ? नपुंसकों की जमात यूँ भी ज्यादा है , तभी तो हमारा देश आजाद होते हुए भी गुलाम है।

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ZEAL said...

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@ JC जी ,

कैंसर जब प्रारम्भिक अवस्था में हो तभी उसका conservative treatment संभव है। स्थिति बिगड़ने पर व्याधिग्रस्त अंग को काट कर फेंक देना ही एक मात्र इलाज है , अन्यथा रोग हड्डियों तक पहुँच जाता है और मृत्यु अवश्यम्भावी है। अतः नासूर के बढ़ने से पहले ही उसे नष्ट कर देना चाहिए।

आज एक भूषण हैं , कर को दस हो जायेंगे , अतः ऐसे लोगों की पिटाई उचित है , ताकि लोग देशद्रोही बयान देने से पहले सौ बार सोचें।

गुनाहगार खुले घुमते हैं तो अन्य दुष्टों को भी दुष्टता करने के लिए बल मिलता है।

अतः शठे शाठ्ये समाचरेत ! ( ऐसा श्रीकृष्ण का उपदेश है )

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कल करवाचौथ का उपवास था , पारिवारिक तथा सामाजिक दायित्वों की व्यस्तता के कारण अंतरजाल पर नहीं आ सकी , अतः आपके प्रश्न का उत्तर देने में विलम्ब हुआ। करबद्ध क्षमाप्राथी हूँ।

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ZEAL said...

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@ किलर झपाटा-

आपने लिखा मुझे ज़रा भी समझ नहीं है और ऊटपटांग लिखती हूँ।

क्या आप नासमझों के ही ब्लौग पर दर्शन देते हैं ? अथवा कोई और कारण है मुझ पर इतनी कृपा करने की ?

आपको चेतावनी दी जाती है की मेरे आलेख पर आये टिप्पणीकारों का अपमान करने की गुस्ताखी न करें। आपकी अन्य ID भी जानती हूँ। आपने अपने दोनों ID से यहाँ टिप्पणी कर रखी है।

आप कौन हैं , यह कोई जाने या न जाने लेकिन मैं पिछले एक वर्ष से जानती हूँ हूँ, जबसे आपने मेरे खिलाफ आलेख लिखकर भाड़े के टट्टुओं द्वारा मुझे बदनाम करने की कुचेष्टा की थी।

ऐसी कुचेष्टा बहुत से अज्ञानी स्त्री एवं पुरुष ब्लॉगर कर चुके हैं। जब अंगूर अप्राप्य हो जाते हैं तो लोग इसी ही कुचेष्टा करते हैं। आप का दिल यदि न भरा हो तो पुनः एक आलेख लिख दें , अब आपको और भी ज्यादा बदबूदार टिप्पणियां मिलेंगीं, क्यूंकि मुझसे द्वेष रखने वालों की बढ़ गयी है, जिसका लाभ आप ले सकते हैं।

द्वेष रखना आसान काम है , जो उथले लोग ही करते हैं। प्यार तो सिर्फ दिलदार ही करते हैं , सबके बस की बात नहीं।

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ZEAL said...

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@ किलर झपाटा-

आप दिवस के पीछे हाथ धोकर न पड़ें। वह एक देशभक्त युवा है। आपको व्यक्तिगत आक्षेप लगाने हों तो कहीं और जाइए । मेरे ही आलेख पर मेरे होनहार बेटे का अपमान करने की कुचेष्टा मत कीजिये।

गर्व है मुझे दिवस पर , हर माँ को गर्व होता है ऐसे बेटे पाने पर। गर्व है भारतमाता को अपने देशभक्त बेटों पर जिन खून में उबाल तो आता है । अन्यथा तो आजकल लोगों का रक्त जमा हुआ ही होता है।

रही बात उनके अहंकार करने कि, कि वे इंजीयर हैं , तो अवश्य करनी चाहिए। अपनी शिक्षा पर गर्व करना ही चाहिए। मुझे भी गर्व है दिवस कि शिक्षा पर ।

दिवस मेरा होनहार इंजिनियर-ब्लॉगर-देशभक्त बेटा है। आज ऐसे ही बेटों कि ज़रुरत है भारत माता को।

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ZEAL said...

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प्रिय भाई संजय,

निशाप्रिया मेरी भी बहन हैं। मुझे तो ऐसी कोई भी बात याद नहीं जहाँ हमारा मतैक्य न रहा हो। स्त्रियों पर हो रहे अत्याचार से त्रस्त होकर ही तो women empowerment के लिए आलेख लिखती हूँ।

देश कि हर बहन का दुःख मेरा निजी दुःख है। उनके लिए लडती रहूंगी। और ईर्श्वर से प्रार्थना करुँगी कि भारत देश को संजय जैसे बहादुर, स्पष्टवक्ता और भावुक भाइयों से भर दे। गर्व है कि आप मेरे भाई है। हर बहन को आप जैसा भाई मिले।

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ZEAL said...

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@ मदन शर्मा -

आपने बहुत सटीक बात कही है । ऐसे गैरजिम्मेदाराना वक्तव्यों से पाकिस्तान के गंदे मंसूबों को बल मिलता है। अतः भारतीयों को बहुत सोच समझ कर ही अपने वक्तव्य देने चाहियें।

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@ प्रतीक महेश्वरी-

आपने उचित कहा , सिब्बल और दिग्विजय जैसे स्वार्थी और मौकापरस्तों कि भी पिटाई होनी चाहिए। चुन-चुनकर इन्हें पीटना चाहिए ताकि गुस्ताखी करने से पहले लोग सौ बार सोचें।

चूड़ियाँ पहनकर बैठने का वक़्त नहीं है।

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JC said...

हमारे ज्ञानी-ध्यानी पूर्वज परम ज्ञान को पा कह गए कि जो ब्रह्माण्ड बाहर दिखाई पड़ रहा है / वो हर शरीर के भीतर भी है (सार के रूप में), अर्थात मानव ब्रह्माण्ड का प्रतिरूप अथवा प्रतिमूर्ती है,,, और पश्चिम में 'माया' को भी ध्यान में रख कहा गया कि भगवान् ने आदमी को अपने ही प्रतिबिम्ब समान बनाया है (ये नहीं कहा कि साधारण, सीधे सादे, दर्पण में बने प्रतिबिम्ब समान बना और संभवतः उसे जादूगर समान जान, जादुई दर्पणों में बने प्रतिबिम्ब समान बना कहा जो साधारण दृष्टि वाला अज्ञानी पुरुष समझ नहीं सकता, और उसे शिव के सभी प्रतिबिम्ब भिन्न लगते हैं)...

इंदिरा गांधी कि ईह लीला समाप्त उसके ही अंग-रक्षक द्वारा '८४ में हुई... उससे पहले मिस्र के तीसरे राष्ट्रपति मुहम्मद अनवर अल-सादत को '८१ में स्वयं मिस्र के फंडामेंटल आर्मी अफसरों द्वारा ही मारा गया था... और '४८ में मोहन दस को भी नाथू राम ने ही मारा था...शाहजहाँ कि मौत का कारण भी उसका बेटा औरंगजेब ही स्वयं था... आदि, अदि, यानी यह बिमारी नयी नहीं है, अनादी काल से चली आ रही है, जैसे 'महाभारत' कि लड़ाई भी चचेरे भाइयों के बीच ही थी... इसे शायद वैज्ञानिक तथ्य ही माना जाना चाहिए...

डॉ.रूपेश श्रीवास्तव(Dr.Rupesh Shrivastava) said...

सीधी बात कर रहा हूँ किलर झपाटा नाम के प्राणी से-
भाई/बहन/लैंगिक विकलाँग क्या हो इसलिये संबोधन में कदाचित अड़चन न हो अन्यथा न लीजिये। संजय कटारनवरे ने जो भी लिखा उसे दोहराने की जरूरत नहीं है। आपने ये अनुमान कैसे लगा लिया कि कौन बिल्ली का गू है और बाकी लोग किस तरह के मल पदार्थ हैं। हम तो कभी समाज के सुधार की बात ही नहीं करते हम खुद सुगंधित हो जाएं आसपास की दुर्गंध स्वतः ही हल्की होने लगेगी। एक बात स्पष्ट बता दूँ कि हम लोग जीवन को ऑनलाइन ही नहीं बल्कि ऑफ़लाइन भी इसी अंदाज में जीते हैं। जीवन ब्लॉगिंग या कमेंट्स तक सीमित नहीं है, प्यार से गले लगाने और घूँसे से मुँह तोड़ देना भी तो है हमारे लिये, जहाँ जो मुद्रा चलती हो वो सिक्का निकाल लेते हैं। आप चाहें तो मेरी मेडिकल की उपाधि एम.डी. और पी.एच.डी. पर भी सवालिया निशान लगा सकते हैं। आप ४९८ ए के लिये परेशान हैं और हमारे कुछ परिचित १२४ ए के बारे में संघर्ष कर रहे हैं सबका अपना अपना महाभारत सजा हुआ है क्योंकि सबका आदर्शवाद भिन्न है। आपने नाथूराम गोडसे की बात कही है तो बस इतना बता दीजिये कि आपके दर्शन के अनुसार राष्ट्रवाद(मैं महाराष्ट्रवाद की बात नहीं कर रहा) क्या है। एतिहासिक गलतियाँ सुधारी जाने की प्रक्रिया इतनी धीमी होती है कि आप उसे शायद महसूस नहीं कर पा रहे हैं और हमें श्रीराम सेना या बजरंग दल या किसी फासीवादी सोच से उपजा मानने का दुराग्रह पाल बैठे हैं।
आप साफ़ तौर पर बताइये कि क्या आप वोट करते हैं?
यदि हाँ तो किस आधार पर? यदि ना तो कारण साफ़ करें??
आप लोकतंत्र और भारत के मौजूदा संविधान के बारे में क्या विचार रखते हैं, आपकी सोच में “विधि का शासन” क्या महत्त्व रखता है?
क्या आपकी जड़ें बरतानिया से जुड़ी हैं या अमेरिका से जो बीच-बीच में आप देवनागरी में आंग्लभाषा में विचार व्यक्त करने लगते हैं?
क्या आप मुझसे इतिहास(भारत एवं विश्व), भारत का समाज और समाज शास्त्र, विधि शास्त्र, अपराध शास्त्र, राजनीति विज्ञान, मनोविज्ञान, दर्शन शास्त्र, चिकित्सा शास्त्र, भाषा विज्ञान में से क्या किसी विषय पर शास्त्रार्थ करना चाहते हैं संभव है कि कुछ रचनात्मक निर्णय निकल आए?
ब्लॉगिंग करने वाले शाब्दिक तालाब में तैरने वाले लोग हैं या विचारों के समुद्र में गहरे गोता लगा कर मोती चुन कर लाने वाले इसका निर्णय आप कैसे लेते हैं, कुछ तो पैमाना होगा आपके पास तो अगली टिप्पणी में हमारे साथ बाँटना चाहेंगे?
क्या आप अश्लील फिल्में बनाते हैं?
आप या प्रतीक माहेश्वरी जी कब और कितनी बार काश्मीर होकर आए हैं ये बताएं तो इस विषय पर अवश्य बात करेंगे?

एक बात बतानी थी कि संजय कटारनवरे मराठी नहीं जन्मना हिंदीभाषी हैं लेकिन उनके पूर्वज महाराष्ट्र से थे

हम पीटते हैं लेकिन लकीर नहीं जो लकीरें बना रहा है उसे समझने का प्रयास करते हैं कि लकीरें रचनात्मक हैं या ध्वंसात्मक, उसके बाद बनी लकीरों को संवारने का जतन कर रहे हैं; आप भी योगदान करें। आत्मकेन्द्रित रह कर आत्ममुग्धता में लीन रहना समाज से अलग कर देता है। निःसंदेह आप मानव हैं तो सामाजिक होंगे ही यदि न हो तो भी आपका नैतिक दायित्व है मानना न मानना आपका निर्णय होगा लेकिन विचार अवश्य करिये।
हृदय से प्रेम सहित
डॉ.रूपेश श्रीवास्तव

दिवस said...

@किलर झपाटा
तेरी घटिया टिप्पणियों में ही तेरी घटिया सोच दिखाई दे रही है| अगर तू अश्लीलता से ऊपर उठकर कुछ सोच पाता तभी तुझे राष्ट्रवाद का कुछ आभास होता| मेरे सवाल का जवाब देने की तेरी औकात नहीं है| अश्लील फ़िल्में तू ही देख और करता रह वैचारिक हस्त मैथुन|

दिवस said...

दिव्या दीदी
मेरे पास शब्द नहीं हैं| आप समझ सकती हैं, मैं क्या कहना चाहता हूँ|
आपने मुझमे जो विश्वास दिखाया है, उसे बनाए रखूंगा| निश्चित रूप से आप मेरी बड़ी बहन ही नहीं, मेरी माँ भी हैं| मुझे गर्व है मेरी माँ पर जो समाज के साथ साथ ब्लॉगजगत में फैली अनियमितताओं के खिलाफ भी लडती है| ब्लॉग भी तो समाज का ही एक हिस्सा है| यहाँ आपका लोहा अब सभी को मानना पड़ रहा है|
कितने ही मूर्खों ने आप पर आक्रमण किया, और स्वयं को मर्द समझ रहे थे| ऐसी परिस्थितियों में भी आपका लौहत्व नहीं डगमगाया| दुःख तो तब हुआ जब इन तथाकथित मर्दों की जी हुजूरी कुछ महिलाएं भी कर रही थीं जो आज तक जारी है| ऐसी महिलाओं पर समय क्या बर्बाद करना|

झपाटे टाइप प्राणी गली गली भौंकते दिखाई दे जाते हैं| इनमे और दिग्गी में अधिक अंतर नहीं है| इनकी बेहूदगी तो देखिये, अश्लीलता पर भी आ गए| फिर भी इनके लिए "झपाटा जी" जैसे सम्मान सूचक शब्दों का उपयोग दुःख दे रहा है| जो व्यक्ति हमारे देश को तोड़ने की बात कर रहा है उसे सम्मान मिल रहा है और कहते हैं "अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता"
कल यही आदमी माताओं और बहनों से दुकर्म की इच्छा जाहिर करेगा (अब इसकी नीयत तो इसकी टिप्पणियों में ही दिखाई दे जाती है, जब यह अश्लील फिल्मों के सवाल पूछ रहा है) तो क्या इसे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता मानकर सम्मानित किया जाएगा? इसमें और भूषण में फर्क ही क्या है?
खैर, इनका भी इलाज हो जाएगा|

आप इसी प्रकार अपना आशीर्वाद, प्रेम व विश्वास बनाए रखें|
आपका बेटा
दिवस

JC said...

ब्लॉग जगत में भी लेखक इसी एक संसार के ही छंटे हुए नमूने हैं - मजबूरी है :)
विविधता भी है, यदि दशरथ (+) हैं तो दशाशन (-) भी हैं...
चार मुख वाले ब्रह्मा जी हैं तो छः मुंह वाले कार्तिकेय भी...
देवताओं के गुरु बृहस्पति भी हैं तो राक्षसों के गुरु शुक्राचार्य भी...
किन्तु परम ब्रह्मा, शक्ति रुपी शिवजी एक ही हैं, और वो ही पूज्य हैं
और साकार, आदमी को भी, सभी साकार भटकाने में लगे हैं विविधता के कारण :)

गीता में इसी कारण कृष्ण जी हमें सावधान करते कहते हैं कि 'हम' वास्तव में अनंत आत्माएं हैं, अस्थायी शरीर नहीं, जो केवल छलावा है, 'योगमाया' और हमारी कलियुगी बाहरी अक्षम ज्ञानेन्द्रियों के कारण, और 'मन कि आँख' बंद होने के कारण...जिस कारण सूरदास जी बाहरी आँख न होने पर भी मन कि आँख में कृष्ण को देख पाए और उनका गुणगान कर गए, जबकि अंधे धृतराष्ट्र अज्ञानी ही रह गए और कृष्ण के होते हुए भी उन्हें भगवान् न मान पाए और दुःख का अनुभव किये, अर्थात आनंद न उठा पाए...
यह काल-चक्र भी अजीब है, जिसमें हर आत्मा को सत्य भिन्न भिन्न दिखाई पड़ता है उसके मन के रुझान के कारण...:)

Asha Joglekar said...

बहुत सच्ची बात कही है आपने दिव्याजी । आज देस को जरूरत है नेताजी जैसे महानायक की । उनका भी तो गला गोट दिया था कॉंग्रेस ने मजबूर कर दिया था ुन्हें कि वे देश से बाहर चले जायें । गदा्दारों की इस फसल को जलाना ही होगा और कोई उपाय नही ।

ZEAL said...

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प्रशांत भूषण जी को अपने पद की गरिमा और मर्यादा को समझना चाहिए। एक ज़िम्मेदार नागरिक ऐसे वक्तव नहीं देता जिससे करोड़ों लोगों का दिल आहत हो। अनेक शहीदों ने अपना खून बहाकर जिस भारत को आजाद कराया , उसे स्वार्थियों ने पहले ही दो भागों में बाँट दिया। काश्मीर हमारा है और काश्मीर में रहने वाले हमारे अपने भाई-बहन हैं। हम उन्हें अपने से अलग नहीं होने देंगे।

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JC said...

दिव्या जी, विचार तो अच्छा है, ("सम्पूर्ण संसार ही मेर है", काश्मीर ही क्यूँ? 'अनंतनाग' यहीं है? किन्तु वो तो 'नादबिन्दू विष्णु' का है?!)...
ज्ञ
प्राचीन ज्ञानी-ध्यानी योगियों, सिद्धों, आदि 'हिन्दुओं' की दृष्टि से कहें तो सागर किनारे बैठ मोती स्वयं अपने हाथ में आ जाने की इच्छा रखने समान है, सत्य से अनभिज्ञ बालक/ बालिका के कथन समान... क्रिस्तान न्यूटन तक ने कहा था कि वो केवल कुछ चमकीली वस्तुवें सागर तट में पड़े शंख आदि जैसे खोज पाया था... जबकि सारा सागर उसके सामने अभी खोजने को पडा था - सदियों से वैज्ञानिक भी अभी ब्रह्माण्ड के स्रोत को नहीं खोज पाए हैं...

और दूसरी ओर भूतनाथ शिव को मानने वाले, प्राचीन 'हिन्दू', तो उसको निराकार, परम सत्य जान उस पर चर्चा कर स्वयं को उसी का प्रतिरूप अथवा प्रतिबिम्ब जान, प्रत्येक व्यक्ति को भी उपदेश दे गए, 'माया से पार पा' स्वयं को पहचानने हेतु, अर्थात वास्तव में मैं कौन हूँ? (कल यहाँ था नहीं, और कल यहाँ रहूँगा नहीं, इस 'मिथ्या जगत' में) ...
इसे ही मानव जीवन का एक मात्र उद्देश्य भी बता गए...और 'भस्मासुर' / 'कामदेव' की कथा द्वारा भी आगाह कर गए कि गंगढ़ाए शिव भोलेनाथ अवश्य हैं, किन्तु वो 'महाशिव' भी हैं, अमर नवग्रहों से बने जिनमें उच्चतम स्थान अमृत, 'सोमरस' प्रदायिनी इंदु का है, जो स्रोत है 'चंद्रशेखर शिव' का... आदि आदि, और द्वैतवाद के मूल शिव आरम्भ में अकेले थे, अर्धनारीश्वर...:)

prerna argal said...

आपकी पोस्ट को आज ब्लोगर्स मीट वीकली(१३)के मंच पर प्रस्तुत की गई है आप आइये और अपने विचारों से हमें अवगत करिए /आप हिंदी की सेवा इसी मेहनत और लगन से करते रहें यही कामना है /आपका
ब्लोगर्स मीट वीकली के मंच पर स्वागत है /जरुर पधारें/आभार /

Anju (Anu) Chaudhary said...

सटीक समीक्षा ...........

दिवस said...

दिव्या दीदी
आपको मानना पड़ेगा| आपके द्वारा सोची गयी संभावना संभव हो जाती है|
आपने कहा था कि दिव्या को बदनाम करती हुई कोई पोस्ट लगा दो तो ब्लॉग जगत के कई भाड़े के टट्टू (अरविन्द मिश्र, अमरेन्द्र त्रिपाठी, संतोष त्रिवेदी, अनुराग शर्मा, अमित शर्मा, समीर लाल, मासूम आदि) सूंघते हुए वहां पहुँच जाएंगे|
आज सुबह ही किलर झपाटा नामक एक मंदबुद्धि प्राणी ने आपकी बातों पर गौर फरमाया और लाभ भी उठाया| जहाँ कई भाड़े के टट्टू सूंघते हुए वहां पहुँच गए| इनका तुर्रा तो देखिये, इस गुमनाम ब्लोगर की जानकारी भी इन टट्टुओं को आपके ब्लॉग पर आपकी पोस्ट
http://zealzen.blogspot.com/2011/10/blog-post_14.html
से ही मिली| इनका उतावलापन भी देखिये, कि यहाँ इन्हें यह भी मतलब नहीं कि यह गुमनाम ब्लोगर (जिसे कल तक कोई जानता तक नहीं था) देश्तोड़क बातें कर रहा है| ये उन बातों को भी अनदेखा कर गए और केवल दिव्या पर केन्द्रित हो गए|
इनको देखकर कुत्तों की याद आ गयी जो भूखे प्यासे मरते रहते हैं और यहाँ वहां बोटियाँ सूंघते रहते हैं| जैसे ही कहीं से कुछ बोटी-शोटी की गंध आई नहीं कि भौंकते हुए कूद पड़े|

साथ ही गंदगी व नीचता की सभी हदें इस गुमनाम ब्लोगर ने पूरी कर दीं| अर्जी फर्जी नामों से खुद ही कमेन्ट कर रहा है| कमेन्ट करने वाली प्रोफाइलों के नाम भी ऐसे ऐसे कि सोचें तो चकरा जाएं| और तो और यहाँ आदरणीय JC जी को भी बदनाम किया गया| उनके नाम के आगे एक बेहद अश्लील शब्द लिखकर एक प्रोफाइल बनाई गयी व कमेन्ट किया गया|

ज़रा आप भी एक नज़र इस गंदगी पर डालें|
http://killerjhapata.blogspot.com/2011/10/blog-post_17.html

बाल भवन जबलपुर said...

ये क्या हो रहा है भाई.. किलर झपाटा तुम्हारे पास अपना एक ब्लाग है अपनी अपनी बात कहो अपने अपने मंच से दिनेश के दिये लिंक के ज़रिये उधर हो आया . बहुत उद्दण्डता से भरा लेखन है वहां. पर कोई आपत्ति नहीं वहां जो चाहें लिखें.किसी पर व्यक्तिगत कीच उलीचना सर्वथा बंद कीजिये कम से कम गाली गलौच तो बिलकुल न हो वैसे सायबर क़ानून उपलब्ध हैं जिनके सहारे आप तक पहुंचा जा सकता है. बहर हाल आप कृपया ये सब बातें छोड़ के वैचारिक-अवदान करें तो हिंदी का उत्थान होगा. बेशक प्रशांत भूषण का कथन ग़लत था है और ग़लत रहेगा इसे मैं आज़ ही अपने ब्लाग पर लिख रहा हूं दिव्या ने सही लिखा .. अगर आप असहमत हैं तो रहें और अपने ब्लाग पर खुल कर लिखें.

ZEAL said...

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प्रिय भाई दिवस,
आपके द्वारा दिए गए लिंक पर जाकर देखा। अचरज नहीं हुआ। यह ब्लॉगजगत झपाटा जैसे निम्न मानसिकता वालों से भरा हुआ है। बात-बात पर मुंह फुलाकर किसी को भी बदनाम करने के लिए ऐसे आलेख लिखते हैं । लेकिन इनके आलेखों से रत्ती भर भी फरक नहीं पड़ता है। न मुझे , न ही अन्य पढने वालों को। ईर्ष्या द्वेष से लबरेज़ , इनके आलेख इनके ही चरित्र को प्रमाणित करते हैं। झपाटा जैसे लोगों को मानसिक चिकित्सा की ज़रुरत है । उससे भी ज्यादा उसपर टिप्पणी करने वालों को ज़रुरत है एक psychiatrist की ।

उम्रदराज़ 'अरविन्द मिश्र' और 'संतोष त्रिवेदी' आदि ने वहां पर घटिया कमेन्ट करके अपनी गन्दगी से भरी मानसिकता को उजागर किया है। अफ़सोस है ये मठाधीश बने फिरते हैं और कुछ ब्लॉगर इनका बहिष्कार करने से कतराते हैं। खैर समझ अपनी अपनी।

इन विकृत मानसिकता वालों ने मेरे और आपके साथ-साथ, आदरणीय JC जी को भी अपमानित किया है , जिसकी सजा इन्हें शीघ्र ही मिलेगी। ईश्वर की महिमा "झपाटा" और अरविन्द मिश्र और संतोष जैसे लोग क्या जानेंगे। जब भुगतेंगे शायद तभी समझेंगे।

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ZEAL said...

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आदरणीय गिरीश मुकुल जी ,

आपका ब्लौग पर स्वागत है।

आपने "झपाटा" द्वारा लिखे आलेख को पढ़ा और उस पर फैली गन्दगी से क्षुब्ध होकर आपने अपना विरोध भी दर्ज किया। ये आपका बडप्पन है।

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Gyan Darpan said...

Zeal आपके लेख और इस मुद्दे पर आपके विचारों से १००% सहमत|
जब देश के खिलाफ बकवास करने वालों को सजा देने की जिम्मेदार सरकार कोई कार्यवाही नहीं करेगी तो देश भक्त अवाम को तो आगे ही पड़ेगा इसलिए मेरे विचार से प्रशांत की पिटाई करने वालों ने कोई गलत काम नहीं किया वे साधुवाद के पात्र है|

shyam gupta said...

Zeal..सटीक व स्पष्टतया सुंदर पोस्ट है...टिप्पणियाँ व विचार-भिन्नता तो चलती ही रहेगी ......पर ऐसे विचारों व पोस्टों की आवश्यकता है...आज ...

S.M.HABIB (Sanjay Mishra 'Habib') said...

आजकल ऐसे बयान शायद फैशन बन गये हैं...
विचारणीय पोस्ट....
saadar...

दिवस said...

दिव्या दीदी
एक और भाड़े का टट्टू अनुराग शर्मा आपको सूंघता हुआ किलर झपाटा से जा मिला| सफ़ेद पोश में छिपा यह स्मार्ट(?) पहले तो कमेन्ट कर गया, फिर बाद में उसे डिलीट भी कर दिया| अब वहां पर बिखरी गंदगी तो आप भी देख चुकी हैं| ऐसी गंदगी की प्रशंसा करने वाले के दिमाग में कितनी गंगी होगी, इसका अनुमान सहज ही लगाया जा सकता है|
बोलो स्मार्ट(?) इन्डियन, देश को तोड़ने की बात कहने वाले आदमी से भी हाथ मिला लिया| इतना खौफ दिव्या का? बड़े स्मार्ट बने फिरते हो| कहाँ गयी स्मार्टनेस? नायकों व शहीदों पर केवल सीरीज लिख देने से ही कोई स्मार्ट नहीं हो जाता|

दिवस said...

स्मार्ट इन्डियन की बदबूदार टिपण्णी किलर झपाटा की सडियल पोस्ट पर| गौरतलब है की इससे पहले भी वह बदबूदार टिपण्णी कर चूका है|

Smart Indian - स्मार्ट इंडियन ने आपकी पोस्ट "ज़ील (दिव्या) के ब्लॉग पर डरपोंक बनावटी देशभक्तों क..." पर एक नई टिप्पणी छोड़ी है:

@ झपाटा -

कमाल कर दिया धोती को फाड़ के रुमाल कर दिया ..... इस आयरन लेडी को आयरन लेडा बना दिया..... मतलब ये कीदिव्या श्रीवास्तव रुपेश श्रीवास्तव एक ही है .... असलियत खोल दी की एक आदमी औरत बनके कैसे सबको बेवकूफ बनाता है सब बन जाते हैं .......क्या झपट्टा मारा है

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Smart Indian - स्मार्ट इंडियन द्वारा किलर झपाटा के लिए १८ अक्तूबर २०११ ९:३९ अपराह्न को पोस्ट किया गया

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Smart Indian - स्मार्ट इंडियन ने आपकी पोस्ट "ज़ील (दिव्या) के ब्लॉग पर डरपोंक बनावटी देशभक्तों क..." पर एक नई टिप्पणी छोड़ी है:

आयरन लेडी और आयरन लेडा क्या एक ही हैं? यह बात तो अब सच ही लगती है?

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ZEAL said...

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अत्यंत खेद के साथ इस मानसिक रोगी 'झपाटा' की टिप्पणियां हटा दी गयी हैं। इस ब्लौग पर मानसिक रोगियों का कोई स्थान नहीं है।

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@ दिवस,

अच्छा किया आपने इस सफेदपोश अनुराग की पोल खोल दी। शायद अब सुधर जाए ये। हालांकि उम्मीद नगण्य है।

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Anonymous said...

Why users still make use of to read news papers when in this technological world all is available on net?



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Mr. Joshua said...

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सादर,
श्रीमती लिंडा मूर