Thursday, November 24, 2011

अविराम युद्ध

द्वारकाधीश श्रीकृष्ण का कहना है कि कर्म करो, कर्म से विमुख मत हो , जीवन एक संघर्ष है , सतत युद्ध करो, कभी अपने मन के बढ़ते मोह से , कभी स्वजनों के मोह से, कभी देश-द्रोहियों से तो कभी धर्म (कर्तव्य) से विमुख होने वालों से.

स्वतंत्रता सेनानी मोहनदास करमचन्द्र गांधी का कहना है - "कोई एक गाल पर मारे तो दूसरा सामने कर दो"

मेरे विचार से अन्याय को कतई सहना नहीं चाहिए, इस प्रकार कि सहनशीलता कर्तव्यों से विमुख करती है , नकारा बनाती है, अराजकता बढाती है, दुष्टों का हौसला बुलंद करती है और संसार से सकारात्मक ऊर्जा को कम करती है.

अतः गांडीव उठाओ पार्थ, एक गाल पर मारने वाले के दोनों गाल पर सजा दो ताकि दुबारा किसी के साथ भी ऐसी कुचेष्ठा न करे.

अपराध का दंड अवश्य मिलना चाहिए... आज का दुर्भाग्य यही है कि अपराधी बिना सजा पाए मुक्त घूम रहे हैं , दंड के अभाव में ही अराजकता बढ़ रही है .

हे पार्थ युद्ध करो ! यह जीवन एक सतत संघर्ष है , केवल युद्ध ही देश काल और परिस्थिति को व्यवस्थित और वातावरण को कलुष से रहित रखा सकता है.

अतः कैसी भी परिस्थिति आये , गांडीव मत रखना....उठो ! जागो ! युद्ध करो !

अविराम युद्ध !

उद्घोष करो - वन्देमातरम !

Zeal

31 comments:

रविकर said...

पाठक गण परनाम, सुन्दर प्रस्तुति बांचिये ||
घूमो सुबहो-शाम, उत्तम चर्चा मंच पर ||

शुक्रवारीय चर्चा-मंच ||

charchamanch.blogspot.com

Asha Lata Saxena said...

बहुत सुन्दर संदेशात्मक लेख के लिए बधाई |
आशा

vandana gupta said...

किसी को तो गाण्डीव उठाना होगा।

प्रवीण पाण्डेय said...

न दैन्यं, न पलायनम्

Unknown said...

आततायियों के विरुद्ध अविराम युद्ध ही गीता का मूल सार है उनकी और से मुह फेर कर बैठ जाने से आप कर्त्तव्य से विमुख होंगे इसलिए गांडीव उठाना पहले भी उचित था और आज भी है . बंदेमातरम

aarkay said...

दिव्या जी , एक बार फिर अपने प्रिय कवि दिनकर जी की पंक्तियाँ याद आ रही हैं :

“रे रोक युधिष्ठर को न यहाँ,

जाने दे उनको स्वर्ग धीर पर फिरा हमें गांडीव गदा,

लौटा दे अर्जुन भीम वीर ...."

आपके मंतव्य की भी पुष्टि इन में होती है !

बढ़िया आलेख !

PARAM ARYA said...

आज देश में जो आतंकवाद , संप्रदायवाद की समस्या है ।
कश्मीर की समस्या , राष्ट्र भाषा हिन्दी की समस्या और चीन तथा पाकिस्तान द्वारा भारत की भूमि पर अतिक्रमण की समस्या है ।
इन सभी समस्याओं के मुख्य उत्तरदायी जवाहर लाल नेहरू है ,
जिन्हें भारत सरकार चाचा नेहरू कहती है ?

दिगम्बर नासवा said...

अहिंसा का पालन करने के लिए भी कभी कभी हिंसा का सहारा लेना पढता है ...

महेन्‍द्र वर्मा said...

अन्याय करने की अपेक्षा अन्याय को सहना ज्यादा अपराध है।

हम ही अर्जुन और अपना कृष्ण भी हम स्वयं बनें !

अच्छा संदेश।

दिवस said...

युद्ध ही तो वीर का प्रमाण है...
अब निश्चय यही करना है कि वीर बनें या निष्क्रिय?

लोहे को लोहा काटता है, जहर को जहर मारता है|

राष्ट्रवाद के पथ पर यदि शस्त्र बाधक हों व राष्ट्र मार्ग के कंटक यदि शस्त्र की ही भाषा समझते हों तो हमे भी शस्त्र उठाने से पीछे नहीं रहना चाहिए|

इनके सामने गांधी जी के प्रेमगीत गाने से कुछ हासिल नहीं होने वाला|

भगवान् कृष्ण भी प्रेम की मुरली बजाते थे किन्तु कुरुक्षेत्र की रणभूमि में भगवान् कृष्ण ने अर्जुन को शस्त्र उठाने के लिए प्रेरित किया था न कि प्रेम की मुरली बजाने के लिए|


दिव्या दीदी
बेहतरीन...
आपकी लेखनी की धार बढ़ती ही जा रही है| कई तो इसी से घायल हो चुके हैं...

Arvind Jangid said...

बहुत ही प्रेरणादाई आलेख. बुराई को सजा अगर समय पर मिलती रहे....साथ ही पूरी सजा तो शायद कोई बुरा बनने से पहले कई बार सोचने को विवश हो. वैसे ये भी सच है की कोई बुरा और अच्छा 'प्रकृति' से होता है. किसी की 'प्रकृति' को बदलना असंभव सा है. मगर ये जो 'प्रकृति' होती है ये भी बचपन से ही बनती है. कोई भी Pre Heavily Loaded" तो आता नहीं. हर व्यक्ति एक खाली hard disk की तरह से होता है. अगर उसके परिवेश में अच्छाई को सम्मान मिले और बुराई को दंड तो शायद ही उसकी Hard Disk में कोई Virus लगे.

और अगर लगे भी तो "Anti Virus" को काम में लेने में कैसा परहेज ?

kshama said...

Behad sashakt aalekh hai....sach! Jeevan ek aviram yuddh hee to hai!

चंदन said...

सही कहा
एक गाल पर थप्पड़ लगाने वाले के दोनों गाल पर दाग छोड़ने से हि सुधार होगा

धीरेन्द्र सिंह भदौरिया said...

विचारणीय प्रेरणा देता सुंदर लेख,
किसी न किसी को आगे आना होगा,

Suman Dubey said...

divya ji namaskaar, badhiya aalekh .

Atul Shrivastava said...

वंदेमातरम्....

कुमार संतोष said...

Sunder lekh..

मनोज कुमार said...

विचारोत्तेजक आलेख।

Bharat Bhushan said...

हिंसा प्रत्युत्तरं प्रतिहंसा.

www.navincchaturvedi.blogspot.com said...

आज तो बड़े से बड़े अपराधियों को भी ज़मानत मिल जाती है, वो मशहूर शेर तो आप ने सुना ही होगा

है ज़मानत पर रिहा कोई तो कोई है फ़रार

डॉ. दिलबागसिंह विर्क said...

कृष्ण हर युग में प्रासंगिक हैं

सदा said...

हमेशा की तरह सार्थक व सटीक बात कही है आपने ... बेहतरीन ।

प्रतिभा सक्सेना said...

एक चाँटा खाकर दूसरे के लिये तैयार हो जानेवालों का यही हाल होता है जो आज हमारे यहाँ हो रहा है -संघर्ष करते रहने का सोचता ही कौन है !

सुरेन्द्र सिंह " झंझट " said...

गीता का कर्मयोग सदैव प्रासंगिक रहा है और रहेगा |

S.M.HABIB (Sanjay Mishra 'Habib') said...

अच्छा चिंतन...
सादर...

चंद्रमौलेश्वर प्रसाद said...

make love,,,not war :)

Akshitaa (Pakhi) said...

सटीक और प्रेरक बात है...

Mamta Bajpai said...

अहिंसा बहुत अच्छी भावना है ..पर हमेसा नहीं
आत्मरक्षा में हतियार उठाना ही वांछित है ..अच्छी प्रस्तुति के लिए आभार

सूबेदार said...

बहुत प्रभाव शाली लेख---- आज कौन उठाएगा गांडीव भारत की ओर से .

kavita verma said...

geeta har yug me prasangik hai..sundar vivran.

Rakesh Kumar said...

सुन्दर प्रेरक प्रस्तुति.
अर्जुन की तरह ज्ञान संपन्न हो निर्धारित लक्ष्य के लिए युद्ध
करने की आवश्यकता है.मोहजनित लक्ष्यविहीन संघर्ष जीवन
में भटकन के सिवाय कुछ देनेवाला नही है.