द्वापर के हो या त्रेता के,तुम किस युग के हो ,मैं क्या जानूं
हर युग में करूँ मैं प्रेम तुम्हें , बस तुमको ही अपना मानूँ
सुन कान्हा सुन , तुम मेरे हो ,
तुम मेरे हो , तुम मेरे हो
मैं गोपी हूँ , मैं मीरा हूँ, मैं राधा भी और मुरली भी
मन मंदिर में हो तुम ही बसे ,हो कान्हा तुम और मोहन भी
हैं रास तुम्हारे देख सभी, स्त्री मन सारे खिल जाते
और ज्ञान की अद्भुत गंगा में गांडीव हज़ारों उठ जाते
हो चीर हरण गर नारी का, संरक्षक बन तुम आ जाते
दुष्टों का मर्दन करने को , हैं चक्र सुदर्शन चल जाते.
कर्म है करना सीखा तुमसे, हर पग पे है लड़ना सीखा तुमसे,
कर्तव्य का बोध करा हमको , सन्मार्ग का बोध करा डाला,
हे गोविंदा , हे गोपाला , हे कृष्ण-सखा, हे नंदलाला,
तुम अद्भुत हो तुम श्रेष्ठ बहुत , पहनो मेरी तुम वरमाला.
सतयुग के हो या द्वापर के, तुम किस युग के हो, मैं क्या जानूँ
तुम कान्हा हो मैं मीरा हूँ, बस तुमको ही अपना मानूँ
Zeal
37 comments:
सुंदर अतिसुंदर गीत सुबह सुबह पढ़ कर मन भी पावन हो गया ...!
बहुत ही खूब.
आपके व्यक्तित्व के एक नए रूप को दिखलाता यह भक्ति गीत बहुत ही अच्छा लगा.
Kya gazab kee badhiya rachana hai!
Wah ji...
Subah savere kavita sundar..
Sukhad, saras si laye aap..
Man main KRISHN samaye sabke..
Door hue man ke santaap..
Meera, Radha, gopi ke sang.
Jisne Krishn se pyaar kiya..
Jivan jatil, visham ho kitna..
Bhav saagar se paar kiya..
Meera sa jo pyaar dikhaye.
Wo hi KRISHN ko paayenge.
Kalyug main bhi KRISHN swyam hi..
Man ke ghar main aayenge..
Bahut sundar kavita...man ko satvik aanand ki anubhuti hui..
Dhanyawad..subah savere KRISHN ka brahm naam sunane ke liye..
Deepak Shukla..
शुभकामनाएँ!
सुन्दर अभिव्यक्ति!
बहुत अच्छा, आप कविता नियमित लिखा करें।
दिब्य जी बहुत सुन्दर आपको तो बराबर पढता हु लेकिन अपने भगवन से जुडी हुई कबिता लिखकर मन को मुग्ध कार दिया.
बहुत-बहुत धन्यवाद.
sunder rachna.........
कर्म है करना सीखा तुमसे, हर पग पे है लड़ना सीखा तुमसे,कर्तव्य का बोध करा हमको , सन्मार्ग का बोध करा डाला,हे गोविंदा , हे गोपाला , हे कृष्ण-सखा, हे नंदलाला,तुम अद्भुत हो तुम श्रेष्ठ बहुत , पहनो मेरी तुम वरमाला.
भक्ति भाव और पेम का अनमोल मिश्रण है इस रचना में .....आपका आभार ...!
BAHUT SUNDAR
bahut badhiya bhav abhivyakti....abhaar
सतयुग के हो या द्वापर के, तुम किस युग के हो, मैं क्या जानूँ
तुम कान्हा हो मैं मीरा हूँ, बस तुमको ही अपना मानूँ।
सुंदर पंक्तियाँ।
वाह ... बहुत बढि़या .. ।
सोलह कला परिपूर्ण भगवान श्री कृष्ण की भक्ति से ओत-प्रोत आपकी यह रचना मन को छू गई.
भक्ति भाव से ओतप्रोत अप्रतिम प्रस्तुति...
बहुत खूब ||
अद्भुत ||
सतयुग के हो या द्वापर के, तुम किस युग के हो, मैं क्या जानूं,
तुम कान्हा हो मैं मीरा हूं, बस तुमको ही अपना मानूं।
एक पवित्र हृदय में ही ऐसी भक्ति-भावना का वास हो सकता है।
बार-बार पढ़ने और गाने योग्य सुंदर गीत।
भक्तिभाव से आगे की कविता है यह. बहुत ही सुंदर.
बहुत मगन-मन से रची हैं आपने ये पंक्तियाँ - साधु !
निर्मल-पावन भाव,शब्दों का कलकल प्रवाहित निर्झर,
वाह!!!! कान्हा का अभिषेक हो गया.
प्रवीण जी ने ठीक ही कहा है,नियमित कविता लिखा करें
सुंदर रचना।
बहुत सुंदर भक्ती गीत,
आपकी रचनाओ में दिन प्रतिदिन निखार आ रहा है....
लिखने की कोशिश नियमित जारी रखें...
मेरे नए पोस्ट पर इंतज़ार है....
मनभावन रचना
♥
दिव्या जी
सादर जय श्री कृष्ण !
आप गीतों सहित छंदबद्ध काव्य-सृजन की ओर उन्मुख हो रही हैं … यह बहुत सुखद है …
छंद-सृजन का सुख रचनाकार ही अनुभव करता है …
बहुत बहुत शुभकामनाएं हैं ।
प्रस्तुत गीत अच्छा लगा -
मैं गोपी हूं , मैं मीरा हूं , मैं राधा भी , मैं मुरली भी
अति सुंदर !
बधाई और मंगलकामनाओं सहित…
- राजेन्द्र स्वर्णकार
बहुत सुन्दर भावो को संजोया है।
bahut khoob
मीरा और राधा के प्रेंम में अंतर है !
@ चन्द्र मौलेश्वर जी ,
प्रेम तो प्रेम ही है. ..राधा हो या मीरा , या फिर कोई गोपिका अथवा कृष्ण से प्रेम करने वाली आज की दिव्या.....कहीं कोई अंतर नहीं है...हाँ देखने वाले की दृष्टि पृथक-पृथक हो सकती है ...
बहुत सुन्दर ,,्सच कहा प्रेम तो प्रेम होता है...
निस्संदेह कृष्ण का चरित्र अत्यंत ही विविध है . सबरंग सर्व भाव . बाल गोपाल. बाल बल गोपाल . बाल सखा . बाल योद्धा . चंचल किशोर . अद्भुत अलौकिक प्रेम भाव . रन छोड़ की कूटनीति . दिव्य चिन्तक और विचारक. क्या आश्चर्य है कि कलियुग में मीरा को श्री कृष्ण ही भाए. राधा तो एक प्रतीक मात्र है - वह तो एक शाश्वत परंपरा है , प्रेम में विलीन हो सब पा लेने की.
दरया प्रेम का , उलटी व की धार ,
जो उतरा सो डूब गया , जो डूबा सो पार
बस इस रंग में डूबने की जरूरत है , फिर तर्क वितर्क , प्रश्न उत्तर , शक शुबहा , शंका आशंका कुछ भी शेष नहीं रहता . कान्हा नाम सच्चा
'प्रेम तो प्रेम ही है' आपकी बात से सहमत.
पद्य में अभिव्यक्ति निर्मल और पावन ही होती है,इसी विधा को जारी रख कर प्रेम निर्झर ही प्रवाहित करती रहे.
जैसा कि भाई राजेन्द्र स्वर्णकार जी ने कहा, काव्य सर्जन सुखद ही होता है.
http://aatm-manthan.com
बहुत ही सुन्दर.
I LOVE THIS POST!!!
From everything is canvas
.
@ Ak Sir,
There is no man on earth like King Krishna. Any girl may fall in love with him. No matter what the 'Yuga' is or the 'Era' is.
.
बहुत सुन्दर भावाभिव्यक्ति....
सादर बधाई....
बहुत ही बढ़िया।
सादर
बहुत ही भाव और भक्तिपूर्ण प्रस्तुति.
पढकर भाव विभोर हो गया है मन.
बहुत बहुत आभार.
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