ऋचा और देव एक दुसरे से बहुत प्रेम करते थे लेकिन विवाह के बंधन में बंध नहीं सकते थे क्यूंकि माता-पिता, भाई-बहन , मित्र और समाज की आपत्ति थी उनके रिश्ते पर। प्रेम विवाह को आसानी से स्वीकृति जो नहीं मिलती. लेकिन केवल प्यार करने वाला दिल ही जानता है कि प्रेम से पवित्र कुछ नहीं होता।
आखिर ऋचा ने विकल्प ढूंढ ही लिया । विवाह नहीं हो सकता तो क्या ? धर्म पत्नी नहीं बन सकती तो क्या , अग्नि के फेरे नहीं ले सकती तो क्या , गवाह भी नहीं हैं तो क्या हुआ। उसने मन से देव को अपना पति मान लिया। एक दुसरे से अलग रहते हुए भी, पूर्ण समर्पण के साथ आगे का सफ़र तय होता रहा। विवाह एक तपस्या कि तरह था उन दोनों के लिए..
देव और ऋचा का प्रेम पवित्र था। दोनों को एक दुसरे पर पूर्ण विश्वास भी था. बस एक ही बात का दुःख था ऋचा को। देव बात-बात पर अक्सर यह कह जाता था --
यदि मैं तुम्हारा पति होता...
यदि मेरा और तुम्हारा विवाह हुआ होता तो..
मुझे तो विवाह का अनुभव` ही नहीं है ...
मैं कुंवारा हूँ...
यदि ऐसा होता ...
यदि वैसा होता ...
यदि परिस्थितियाँ आम शादी-शुदा पति-पत्नी कि तरह होती तो मैं यह प्रमाणित कर देता कि मैं तुम्हारे लिए क्या-क्या कर सकता हूँ...
देव कि सभी बातें सत्य थीं फिर भी ऋचा को यही दुःख था कि क्या वह उसे पत्नी नहीं समझ पाता था। जिसे वह मन से अपना पति मान सर्वस्व समर्पित कर चुकी है क्या वह अभी भी दुविधा में है?... क्या धर्मपत्नी ही पत्नी है?...क्या मन का समर्पण व्यर्थ है?...
अपने अनुत्तरित प्रश्नों के साथ ऋचा अपना पत्नी धर्म निभा रही है, और इसी आस में है कि शायद देव, धर्मपत्नी और मन तथा विश्वास से मानी गयी पत्नी का भेद मिटा देगा एक दिन......पति-धर्म निभाने के लिए और प्रमाणिकता साबित करने के लिए किसी विशेष परिस्थिति का इंतज़ार नहीं करेगा...
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30 comments:
patni banne ke liye kisi dharm ya kanoon ka sahara to lena hi parta hai......
पवित्र प्रेम के विविध रूप हैं।
ऐसा प्रेम भी संभव है।
good theme ,what a good thing it would has been taken place of comedian end... very nice .
सही कहा है आपने रिश्ते मन से मने जाये तो बहुत मायने रखते हैं ! देव और ऋचा हमारे समाज में जगह जगह हैं ! कुछ के हौसले टूट जाते हैं कुछ के अडिग रहते हैं !
सुंदर बहुत सुंदर .!
bahut achhi hei...pyaar ke aage samazeek reeti reewaj ki koi ahmiyat nahi hei ..pyaar hei to sakuch hei ....
देखिये 'प्रेम' पवित्र होता है और पवित्रता सत्य से ही आती है. प्रेम में जहां समर्पण होता है वहीँ 'मांग' कुछ भी नहीं होती. ऋचा का प्रेम पवित्र है इसमें कोई दो राय नहीं है. हाँ मगर बहुत ही कम लोग ऐसे होते हैं. प्रेरणादाई कहानी...आभार
इस कल्पना में सच का जीवन निर्वाह करना कठिन हो जाता है।
आपकी कथा सन्देश देती है कि-
बिना सात फेरों के विवाह को समाज स्वीकार नहीं करता!
देव को जब गलती का एहसास होगा तो बहुत दुःखी होगा। लेकिन हाय!बीता वक्त लौट कर नहीं आता। जितनी जल्दी हो उसे समझ जाना चाहिए कि वह कितनी बड़ी गलती कर रहा है।
देव का ऐसा कहना इस बात का भी सूचक है कि वह अभी भी ऋचा की तहर प्रेम में समर्पित नहीं है। दरअसल अभी भी वह प्रेमी नहीं बन पाया है।
मानें तो देव नहीं तो पत्थर !
विवाह रीति-नीति-मर्यादा पर आधारित है और नियंत्रित भी - प्रेम इन सबसे निरपेक्ष,उसमें समर्पण की कोई गारंटी भी कहाँ दी जा सकती है .सामाजिक जीवन के लिये कोई नियंत्रण होना स्वाभाविक है ,व्यक्ति अपने आप में पूर्ण नहीं होता,और विचलन की संभावनायें भी .कोई हमेशा आदर्शों के लोक में रह भी नहीं सकता .देव व्यावहारिक रूप से सुरक्षित होना चाहता होगा -जो अस्वाभाविक नहीं है.
अमर भारती शास्त्री जी से सहमत।
Namaskar..
Dev aur Richa agar pati patni ki tarah rahte hain...to vivaah kyon nahi karte.. Har rishte ke samajik dayitv aur dayre hote hain.. Vivah ko samajik manyata milti hai to es man ke samarpan main ek riktta...ek adhurapan rahta hai.. Jisko samajik aur kanuni manyata na ho wo vivaah sirf dikhawa rahta hai..
Agar ye kahani hai to aap kathakar hone ke naate agle episode main enka vivah karwayen...aur agar ye kahani na hokar kisi ke sath ghat rahi ghatna ne shabd liye hain to mera anurodh hai ki enka vivah sheeghr karayen..
Deepak
दिव्या दीदी
निसंदेह इन दोनों का प्रेम पवित्र है| हाँ यह भी सही है कि देव ने गलती की| जब वह ऋचा को पत्नी स्वीकार कर ही चूका है तो ये "काश मैं सच में तुम्हारा पति होता" टाइप की बातें बेबुनियाद हैं| माना उसे इसका कोई अनुभव नहीं था किन्तु क्या ऋचा को अनुभव था? उसने भी तो प्रेम किया न, उसने तो कभी नहीं कहा कि काश मैं सच में तुम्हारी पत्नी होती|
और रही बात कुछ प्रमाणित करने की, तो उसके लिए किसी विशिष्ट अवसर की ज़रूरत नहीं है| जो करना है इन्ही परिस्थितियों में कर सकता है| उसे इन्ही परिस्थितियों में कुछ प्रमाणित करना होगा| देव को चाहिए था कि वह ऋचा के दुःख को समझे न कि हमेशा अपना रोना रोये| जब मन से पत्नी मान चुका है तो यह कहना कि "काश हमारा विवाह हुआ होता" गलत है|
निश्चित रूप से जब देव को गलती का एहसास होगा तो वह बहुत दुखी होगा| कहीं ऋचा का प्यार न खो दे|
देव नहीं पत्थर ही है|
aaderniya divya ji......hamare shastron mein antim sanskaar me shamil hone ki prakriya ma e kuch palon ke liye bairagya paid ho jaata hai..jise markat bairagya ya shashan bairagya kahte hain..baragya ka paida hona aaur bairagi hone me bada fark hai..usi tarah premi prakriti hone aaur prem karne me bhi fark hai..kai baar shahari jindagi se oobkar ham prakriti ki gode me sukhanubhuti karte hain lekin jaldi hi us sukh se hamara man bhar jaata hai..yadi hamara antas purntay taiyaar na ho..richa ne prem ko mahshoosh kiya hai..dev prem aaur asakti ke sandhi ksetra me fasa pada hai..askti pahle hoti hai phir prem ka roop bhi le leti hai athwa bhogne ke uprant bimukh bhi ho jaati hai..krishna ke bhajan gaane aaur bhog lagane wali har kanya meera nahi ho sakti..krisna se prem niskam hai..lekin krishna se prem isliye hai ki krishna mil hee jaaye..jab tak koi kamna hai prem ho hi nahi sakta..dev ki bahut sari kamnayein hon ho sakta hai...prem gali ati sankri ya me do na samaye..jis din dev ko sachmuch me prem ho jaayega ..samaj beech me nahi hoga ...
Namaskar ji...
Kisi bhi rishte ko jab tak samajik, parivarik ya kanuni manyata na mile wo adhura hi rahta hai.. Man ka samarpan ek bhav matr hai, rishta nahi..pratyaksh athva paroksh main aakhir rahna to samaj main hi hai, to kitne bhi virodh kyon na hon, jise man se apnaya ho..us se vivaah karke jaise hi ek sanajik manyata milegi..ye pati mahoday, humari tarah baaton main ya kagji chhand le kar na hajir ho jayen to kahiyega..
Shubhkamnaon sahit..
Deepak Shukla..
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@ दीपक शुक्ल जी ,
आपने पूछा की यह काल्पनिक कहानी मात्र है अथवा वास्तविक है , तो यह स्पष्ट कर दूं की हर कहानी का आधार वास्तविक ही होता है. इस कहानी में सब कुछ वास्तविक ही है सिवाय 'देव' और 'ऋचा' नाम के.
आपके निवेदन पर की पात्रों का विवाह करवाया जाये.... यदि ऐसा हो सकता तो इससे सुखद कुछ नहीं हो सकता था...और तब शायद इस दुखद कहानी का जन्म ही नहीं होता ...
देव और ऋचा एक साथ नहीं रहते ...अपने-अपने परिवार वालों के साथ रहते हैं बिना उनका दिल दुखाये....मन से विवाह कर एक दुसरे के प्रति समर्पित हैं..... जात-पांत, उंच-नीच, उम्र और जन्म के बंधनों को नकार क़र वे इस वैवाहिक जीवन को निभा रहे हैं...उनके बीच कोई शारीरिक सम्बन्ध नहीं हैं...कभी संतान का सुख नहीं होगा.... यह विवाह दोनों के लिए एक तपस्या है ...क्या यह पवित्र रिश्ता वे निभा सकेंगे आजीवन ?
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आपने तो एक नया आयाम और दृष्टि दे दी सम्बन्धो को।
खुबसूरत कथाभाव
बधाई दिव्या जी....
बहुत साहसी है आपकी कहानी की नायिका...
शायद हमारे समाज में भी स्त्रियां ही ऐसा सहस कर सकती हैं..
BEHTAR MANVISLESAN HAI .... KAHANI KA TANA -BANA BHI MAJBUT HAI
@ Divya ji..
Dr. Ashutosh Mishra ji ne apni tippani main Dev ki asmanjas ki sthiti ko bakhubi ukera hai.. Dev kamnaon main bandha hai jabki Richa ke prem main samarpan hai..'Kash main tumhara pati hota' vishay se hi Dev ki asmanjas ki sthiti saaf jhalakti hai..
Aadakti se Prem janm leta hai aur samarpan main purn hota hai... Dev jis din es sarvasv samarpan ke bhav ko apna paaya..ye saare shabd uske liye bemani ho jayenge.. Wo pati rahe na rahe,, paas ho ya door ho. Sath ho ya na ho...use swatah Richa chahun oor mahsoos hogi..aur jo pream ke es dariya main dooba..uske liye, kya kunwara, kya vivahit..
Humari shubhkamnayen en dono ke sath hain..Eshwar enke pyaar ko safal kare..
Deepak Shukla..
जहाँ "काश" की तनिक सी भी संभावना हो वो और कुछ भी हो परन्तु प्रेम तो कदापि नहीं हो सकता .....
बहुत ही अच्छी प्रस्तुति ...
कल 30/11/2011 को आपकी कोई एक पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है, थी - हूँ - रहूंगी ....
In this episode , Richa emerges as an epitome of selfless or Platonic love which does not require the props of a relationship. On the other hand Dev has expectations from this love which are not fulfilled without some sort of relationship between them. .
The story seems ahead of times .
बढ़िया पोस्ट ...समय मिले तो आयेगा मेरी पोस्ट पर आपका स्वागत है ..
This is a bit mythical in todays world do you think anyone will live life like that.. in todays world girls think and live like a wife with a guy for years and then move on to some one else .. same way the guy treats a girl like a wife and then after some time someone else ..
I dont think such love exists anymore ... people talk KAASH aisa hota .. KAASH yeh ho jata .. areee agar nahin hua hai to use KARO.. jab yeh baat samajh aa gayi hai ko hona chahiye tha to use KARO..
Bikram's
dil ko chhu liya,aaj bhi aise pyar ki kalpan ki ja sakti hai aashchary,mujhe bahut pasand aayi aapki likhi kahaani.janna chahunga ye kahaani bharat ki hai ya videsh ki?
good expression n story.sambhav sab kuch ho skta hai.
ऐसा प्रेम संबंध हो सकता है, ऐसा बुद्धि मानती है. लेकिन ऐसे संबंध फलते-फूलते नहीं बल्कि प्रतिदिन झुरते जाते हैं और अंततः एक अभाव की स्थिति और अवस्था को प्राप्त होते हैं. यह अनावश्यक संसाराग्नि है.
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