Monday, October 1, 2012

मानसिक रूप से दिवालिया ..?

मार्च के अंत तक अगर आपने चौथा सिलंडर लिया तो आपको 1200 रूपए तक देने पड़ सकते हैं ! तेल कम्पनियाँ मनमाना रेट तय कर रही हैं !

कांगेस शासित राज्य अपने प्रदेश में नौ  सिलंडर पर सब्सिडी देगी लेकिन राज्य सरकार छः पर ...क्यों ? ...क्योंकि राज्य सरकार यदि ऐसा करेगी तो राज्य के ही रेवेन्यु का एक बड़ा प्रतिशत केंद्र को पहुँच जाएगा ! केंद्र की तो पाँचों उंगलियाँ घी में ! बिना कुछ करे भाजपा शासित राज्यों को बुरा बना दिया ! पूर्ण जानकारी न रखने वाली मासूम जनता तो यही समझेगी की कांग्रेस ज्यादा दरियादिल है !  लेकिन इनकी शातिर चालें अब जग-जाहिर हैं !

सब कुछ महँगा कर दिया ! आम आदमी का जीना दूभर कर दिया ! मानसिक रूप से दिवालिया हो गयी है ये सरकार ! जनता का हित नहीं सोचती , न ही सोच सकेगी अब ! क्योंकि इलाज की ज़रुरत है अब इन्हें ! और इलाज है सत्ता का तख्ता पलट !

यदि जनता अपना भला चाहती है तो उखाड़ फेंखो इस सरकार को नहीं तो झेलो इसे और खुद को मानसिक रूप से दिवालिया साबित कर दो इस सरकार को झेलने का अर्थ ही यही है की इसे वोट देने वाली जनता ही मानसिक रूप से दिवालिया है !


21 comments:

Rajesh Kumari said...

इसे वोट देने वाली जनता ही मानसिक रूप से दिवालिया है !
मुझे तो यही लगता है वर्ना क्या लोग जानते नहीं की पहले आरक्षण और अब सिलेंडरों के आधार पर देश विभाजित होने की कगार पर है कांग्रेस सत्ता वाले क्षेत्र गैर कांग्रेस वाले ये विभाजन नहीं तो क्या है क्या गैर कांग्रेस वाले भारतीय नहीं हैं ???

Prabodh Kumar Govil said...

Apne sahi mudda uthaya hai, janta ko lagatar aisi jankariyan milti rahen, to jagrati apne aap aati hai.

दिवस said...

इस कदम द्वारा केंद्र में बैठी भ्रष्ट कांग्रेस सरकार में राज्यों पर अतिरिक्त बोझ डाल दिया। अब जनता के बीच खुद को साबित करने के लिए भाजपा सरकारों को अपनी जेब से रियायत देनी होगी, जिससे राज्य सरकार का कोष प्रभावित होगा और केंद्र को माल मिलेगा। कुल मिलाकर भाजपा राज्य सरकारें तो दोनों तरफ से मरीं ही समझो।
जनता भी मरी है। क्योंकि जिन राज्यों ने भाजपा को चुना है, वहां की जनता को दंड तो मिलना ही चाहिए। अत: अब छ: सिलेंडर में ही काम चलाओ। मगर जनता को इतनी अक्ल नहीं कि भाजपा को इसका दोष नहीं दिया जा सकता। भाजपा नौ और छ: का आंकड़ा कदापि न रखती। अब तक जितने मिल रहे थे उतने मिलते रहते।
अब जनता को मुर्दा बनकर नहीं, जिन्दा होकर फैसला लेना होगा, अन्यथा सदा के लिए मर जाने को तैयार रहे।

रविकर said...

सौ सुनार की चोट हित, मतदाता तैयार ।
इक लुहार की ठोक के, चाहे सुख-भिनसार ।
चाहे सुख-भिनसार, रात कुल पांच साल की ।
दुर्गति के आसार, मुसीबत जान-माल की ।
चोरी लूट खसोट, डकैती बलत्कार की ।
लुटा दिया जब वोट, सहो अब सौ सुनार की ।।

सूबेदार said...

इन सबके लिए यहाँ की जनता ही जिम्मेदार है .

अजय कुमार झा said...

आगामी आम चुनाव में कांग्रेस के हाथ से सत्ता का जाना तो तय है किंतु इसके साथ ही जो एक अनिश्चितता किसके हाथ बागडोर सौंपी जाए वाली अभी से आम आदमी को खाए सताए जा रही है । हां वैसे लोकतंत्र में अवाम ही खुद सबसे बडा जिम्मेदार होता है , परिणामों और कुपरिणामों के लिए भी । आपसे सहमत

अशोक सलूजा said...

मानसिक रूप से दिवालिया .......
ये ही सच ...लगता है !

surenderpal vaidya said...

सही कहा आपने ।
हकीकत तो यह है देश सही अर्थों में तभी आजाद होगा जब इसे काँग्रेस के कुशासन से मुक्ति मिलेगी ।

DR. ANWER JAMAL said...

सरकारें चिंता कब करती हैं ?

प्रवीण पाण्डेय said...

1200 तो सच में अधिक है ।

रचना said...

aanae waale samay mae gas cylinder ki jarurat nahin padaegi



pakanae kae samaan itna maehnga hogaa to wahin nahin kharid sakegae

:)

Dr. sandhya tiwari said...

सही कहा आपने ............मानसिक रूप से दिवालिया .......

Vaanbhatt said...

दिवालिया होने से पहले देश का दिवाला निकालने में लगे हैं सब...

प्रतिभा सक्सेना said...

हर शाख पे उल्लू बैठा है ,
अंजामे गुलिस्ताँ क्या होगा!

virendra sharma said...

सरकार को तेल और कोयला कम्पनियां ही तो चला रहीं हैं .सरकार तो सरकार कबकि गिरा चुकी है .

virendra sharma said...

सरकार को तेल और कोयला कम्पनियां ही तो चला रहीं हैं .सरकार तो सरकार कबकि गिरा चुकी है .

ram ram bhai
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सोमवार, 1 अक्तूबर 2012
ब्लॉग जगत में अनुनासिक की अनदेखी
ब्लॉग जगत में अनुनासिक की अनदेखी

virendra sharma said...

सरकार को तेल और कोयला कम्पनियां ही तो चला रहीं हैं .सरकार तो सरकार कबकि गिरा चुकी है.

सीख वाकू दीजिए जाकू सीख सुहाय ,
सीख वाकू दीजिए जाकू सीख सुहाय ,

सीख न बांदरा दीजिए ,बैया का घर जाय .

http://kabirakhadabazarmein.blogspot.in/2012/10/blog-post_1.html

सुशील कुमार जोशी said...

अपने दिमाग के
दिवालियेपन
का क्या कर लेंगे
दिमाग में भरी गैस
को कैसे बदलेंगे
वोट देने जायेंगे
जिस समय
उसी फटे थैले से
देखना बाहर
फिर से ही
हम निकलेंगे !

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और इसके बाद भी बहुत लोग हैं जो इसके समर्थक हैं

vandana gupta said...

बिल्कुल सही कह रही हैं आप