Monday, September 20, 2010

ठुमक चलत रामचंद्र , बाजत पैजनिया --रामकोट-अयोध्या -- और मेरा बचपन !

ददिहाल और ननिहाल फैजाबाद में होने के कारण, तथा पिताजी की पोस्टिंग स्टेट बैंक अयोध्या में होने के कारण मेरा बचपन , श्रीराम की जन्मस्थली के इर्द-गिर्द , माँ सीता की रसोईं , कनक-भवन , कौशल्या भवन तथा हनुमान-गढ़ी में खेलते-कूदते बीता। हनुमान गढ़ी की वानर सेना से , प्रसाद बचाकर निकलना एक रोचक तथा दुष्कर कार्य था। सरयू नदी के तट पर पानी की लहरों से अटखेलियाँ करते हुए , इस जीवन स्वर्णिम समय व्यतीत किया है।

आजकल अयोध्या विवाद ने बार-बार , मेरे मन को वापस मेरे बचपन में भेज दिया।

कहीं न कहीं मन उदास भी है और आशंकित भी।

आइये जानते हैं राम जन्म-भूमि के इतिहास को --

साकेत नगर अयोध्या, जिसका पूर्व में नाम साकेत था, की स्थापना - वैवस्वत मनु ने की थी। कौशल नरेश दशरथ के पुत्र श्री राम , भगवान् विष्णु के सातवे अवतार माने जाते हैं । इन्होने अयोध्या में ११,००० वर्षों तक राज किया । इनके समय में देश में, खुशहाली, समृद्धि, शान्ति तथा न्याय का वर्चस्व था । जिसके लिए राम-राज्य आज भी याद किया जाता है। त्रेता युग में अवतरित श्री राम ऋग्वेद कालीन माने जाते हैं। त्रेता युग का समय करीब १.३ अरब वर्ष माना गया है।

अफ़सोस होता है यह जानकार की श्रीराम जो अयोध्या के राजा थे , के जन्म-स्थल को लेकर विवाद हो रहा है । श्रीराम तो अयोध्या के कण-कण में बसते हैं । फिर रामकोट पर कैसा विवाद ?

मुग़ल सम्राट बाबर सन १५२७ में उज्बेकिस्तान फरगना से हिन्दुस्तान आया। उसने चित्तोरगढ़ के राजा संग्रामसिंह को फतेहपुरसीकरी में हराकर आस पास के क्षत्रों पर अपना कब्ज़ा जमा लिया । बाबर ने मीर बांकी को अपना वाई-सराय बनाया जिसने सन १५२८ में रामकोट के विशाल राम मंदिर को ध्वस्त करके वहाँ एक विशाल मस्जिद का निर्माण कराया जिसे आज 'बाबरी मस्जिद ' के नाम से नाम से जानते हैं।

सन १९४० तक इस मस्जिद का नाम -- ' मस्जिद-ऐ- जन्मस्थान ' था , जो अपने आपने आप में ये साबित करता है की विवादित मस्जिद , पूर्व मैं बने मंदिर जो श्रीराम का जन्मस्थल है , को ढहाकर बनायीं गयी है। बबारनामे में इस मस्जिद का कहीं कोई उल्लेख नहीं है।

साक्ष्य के तौर पर -Archaeological Survey of India की रिपोर्ट [ १९९०, १९९२, २००३ ] प्रस्तुत की , जिसमें करीब ११३० साक्ष्य मिले । ऐ एस आई द्वारा उत्खनन में अनेकों कलाकृतियाँ , सजी हुई इंटें , दिव्य-युगल की टूटी संरचनाएं , पर्णसमूह , तथा नक्काशीदार वास्तुशिल्प की संरचनाएं , लोटस मोटिफ आदि मिलीं है।

The excavations yielded: stone and decorated bricks as well as mutilated sculpture of a divine couple and carved architectural features, including foliage patterns, amalaka, kapotapali, doorjamb with semi-circular shrine pilaster, broke octagonal shaft of black schist pillar, lotus motif, circular shrine having pranjala (watershute) in the north and 50 pillar bases in association with a huge structure"

आखिर कौन सा फैसला आने वाला है २४ सितम्बर को ? किसके हक में होगा ? इसका फैसला हमारे विद्वान् न्यायाधीश करेंगे । जो हम सभी को मान्य होगा।

मेरी अपने भारत वासियों से अपील है , की आने वाले फैसले को शान्ति से स्वीकारें और आपसी सौहार्द्र को बनाएं रखें । ये समय आतंरिक मतभेदों का नहीं है, अपितु विदेशी ताकतों से अपने देश की रक्षा करने का है।

ये लेख बिना किसी पूर्वाग्रहों के , निष्पक्ष होकर , पाठकों से जानकारी बांटने के उद्देश्य से लिखा गया है। ह्रदय में आने वाले भाव मेरी लेखनी से अविरल निकलते रहेंगे । किसी प्रकार की त्रुटी हो तो कृपया ध्यान दिलाएं एवं मार्दर्शन करें।

पाठकों से निवेदन है, कृपया नयी जानकारी इस लेख में जोडें ।

आभार।




91 comments:

रंजन (Ranjan) said...

मुझे तो समझ नहीं आता.. बाबर अपने साथ जमीन तो नहीं लाया था.. जो बनाया यहीं की जमीन पर बनाया.. तो फिर मस्जिद उसकी कैसे हो गई.. अगर मंदिर था तो हमारा था और मस्जिद थी तो हमारी...

एक और बात.. क्यों सभी उस छोटे सी जमीन के पीछे पड़े है.. पुरी अयोध्या का क्या वहाँ भी तो राम थे.. क्यों अयोध्या को उपेक्षित कर छोटी सी जमीन का फसाद खडा किया जा रहा है..जब तक उस जमीन का फैसला न हो पुरी अयोध्या को चमका देते.. फिर वो जगह तो खुद ब् खुद उसी भव्य अयोध्या का हिस्सा बन जाती...

खैर फिर नारे लगाने का मौसम आया है..:बच्चा बच्चा राम का... जन्म भूमि के काम का"

Anonymous said...

ह्म्म, मतलब कि सबको पता है या पता होना चाहिये कि क्या फैसला आने वाला है।

एक बेहद साधारण पाठक said...

@ दिव्या जी
जैसा की मैंने कहा था चर्चा में शामिल तो नहीं हो रहा हूँ ये कमेन्ट इसलिए करना पड़ रहा है क्योंकि एक चर्चा में
http://tips-hindi.blogspot.com/2010/09/100.html
आपके ब्लॉग का एड्रेस दिया है तो आपको सूचित करना उचित समझा
कृपया अन्यथा मत लीजियेगा
आभार

राजन said...

वैसे तो धर्म के नाम पर अपना ही घर फूँककर तमाशा देखने वालों की संख्या अब कम हुई हैं।हिन्दू और मुस्लिम दोनों ही इस बात को समझने लगे हैं कि वहाँ पर मन्दिर हो या मस्जिद,किसी को कुछ फर्क नहीं पडता।फैसला जो भी आए पर आम भारतीयों को स्वार्थी नेताऔं की बातों में नहीं आना चाहिए,वो उन्हें भडकाने की पूरी कोशिश करेंगे।आखिर सवाल वोट बैंक का जो हैं।पोस्ट सामयिक हैं,इसकी अभी जरूरत भी थी।धन्यवाद।

P.N. Subramanian said...

आक्रान्ताओं के द्वारा ऐसा किया जाना हमें तो एकदम सहज लगता है. निश्चित ही मस्जिद के नीचे कोई मंदिर रहा होगा लेकिन राम मंदिर ही रहा हो यह कहना मुश्किल है.

vijai Rajbali Mathur said...

Divyaji,
Yah Ayodhia Samrat Harsh Vardhan dwara Saket nam sey basai thi.Ram 9 lakh varsh purv janmey they.Tab ki Ayodhia Jharkhand ke Gridih ziley me,jisey aub bhula diya gaya hai.Vivadit Sthal Baudh Math tha jo BAUDHO dwara Vaishnav se satai jane per dharam parivartan ke sath Mazid bana.Dr.Savita Ambedkar case me party banna chahti thi,dono guton ke vakilo ke unke bahishkar ke karan rah gaya.Ram ke bare me vistrat jankari -Krantiswar ke Rawan-Vadh ek Purv nirdharit Yojna me milegi.

Coral said...

बहुत सुन्दर जानकारी है ... राम जन्मभूमि सिर्फ विवादित रूप से में आज तक जानती थी कभी इतिहास इनते detail में पढ़नेका मौका या कहिये समय नहीं मिला ...

आज आपने जानकारी करवा दी ..धन्यवाद .

प्रवीण पाण्डेय said...

प्रतीक्षा है कि देश सदा सुदृढ़ रहे।

कडुवासच said...

... ham to shaanti - sauhaardra ke pakshadhar hain !!!

राजभाषा हिंदी said...

हां, शांति और सौहर्द्र का वतावरण बना रहे। बहुत अच्छी प्रस्तुति। राजभाषा हिन्दी के प्रचार-प्रसार में आपका योगदान सराहनीय है।
समझ का फेर, राजभाषा हिन्दी पर संगीता स्वरूप की लघुकथा, पधारें

Aruna Kapoor said...

...बहुत अच्छी जानकारी दी है आपने....इस विवाद का जो भी फैसला हो, दोनों पक्षों को मान्य होना चाहिए, तभी शांति बनी रहेगी!...आप के विचारों से सहमत हूं!

एक बेहद साधारण पाठक said...

@ दिव्या जी
जैसा की मैंने कहा था चर्चा में शामिल तो नहीं हो रहा हूँ ये कमेन्ट इसलिए करना पड़ रहा है क्योंकि एक चर्चा में
http://tips-hindi.blogspot.com/2010/09/100.html
आपके ब्लॉग का एड्रेस दिया है तो आपको सूचित करना उचित समझा
कृपया अन्यथा मत लीजियेगा
आभार

[पुनः प्रेषित ]

ashish said...

अच्छी जानकारी , फैसला जो भी हो , हमे मानवता की पक्ष में मानकर स्वीकार करना होगा.

मनोज कुमार said...

बहुत रोचकता के साथ आपने ऐतिहासिक तथ्यों को प्रस्तुत किया है। आलेख समसामयिक भी है और आपकी अपील देश के लिए बहुत ज़रूरी भी। सदैव अमन चैन का रास्ता अपनाना चाहिए। बहुत अच्छी प्रस्तुति। हार्दिक शुभकामनाएं!

और समय ठहर गया!, ज्ञान चंद्र ‘मर्मज्ञ’, द्वारा “मनोज” पर, पढिए!

VICHAAR SHOONYA said...

कुछ लोग मानते हैं शांति किसी भी कीमत पर मिले ले लेनी चाहिए. पाकिस्तान दे दिया. कश्मीर दे दो. राम मंदिर दे दो. पर क्या इससे शांति मिलेगी. क्या अल्पसंख्यक बहुसंख्यक हो जायेंगे. अल्पसंख्यक तो बने ही रहेंगे. शांति का एक ही उपाय है कि हिन्दू अल्पसंख्यक हो जाय और जजिया देने लगें. बस तभी शांति प्राप्त होगी. वर्ना नहीं......

Dr.R.Ramkumar said...

दिव्याजी!
हमारे जन्मजात संस्कार ऐसे हैं कि हम राम की दिव्य और अलौकिकता के इतर कुछ सोचना नहीं चाहते, सोच सकते भी नहीं !
आश्चर्य यह कि हम राम को लेकर चिन्तित है!
तुलसी महाराजज की साधना और समर्पण देखिए , जो कहते हैं-
होहिहै वही जो राम रचि राखा
को करि तर्क बढ़ावै साखा।।

कुलमिलाकर विश्वासं फल दायकम्

Anonymous said...

सही निर्णय और तथा शांति और सद्भावना दोनों आवश्यक हैं

डॉ टी एस दराल said...

इनका समय १४५० वर्ष इसा पूर्व माना गया है।
यानि ३४६० वर्ष पूर्व । दिव्या जी , यह कैसे ? कहीं कुछ गड़बड़ है ।

vandana gupta said...

अच्छी जानकारी दी है।

ZEAL said...

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दिव्याजी,

आप लिखती हैं:
======================
कौशल नरेश दशरथ के पुत्र श्री राम , भगवान् विष्णु के सातवे अवतार माने जाते हैं । इन्होने अयोध्या में ११,००० वर्षों तक राज किया ।

त्रेता युग में अवतरित श्री राम ऋग्वेद कालीन माने जाते हैं। इनका समय १४५० वर्ष इसा पूर्व माना गया है।
=====================
कृपया इन संख्यों पर ध्यान दीजिए
११,००० वर्षों
१४५० वर्ष इसा पूर्व

क्या कहीं गलती तो नहीं?

मेरी राय में २४ सितम्बर के निर्णय से कोई फ़र्क नहीं पडेगा।
एक बेचारा न्यायादीश क्या करेगा?
हम इसे कानून का मामला समझकर अदालत को फ़ैसला करने के लिए कह रहे हैं।
लाचार होकर और पिंड छुडाने के लिए अदालत फ़ैसला अवश्य सुनाएगी

अवश्य अपील होगी और मामला सर्वोच्च न्यायालय तक पहुँचेगा, जहाँ राम जाने कितने सालों तक फ़िर अटका रहेगा।
यह एक ऐसा मामला है जिसमे कानून कुछ नहीं कर सकता।
इस समस्या का हल बातचीत से और दोनों तरफ़ो से कुछ लेने और देने के बाद समझौते से हो सकता था।
अब बहुत देर हो चुकी है और बातचीत का समय समाप्त हो चुका है।

पुराने जमाने में मिर बाकी ने मन्दिर तोडकर मस्जिद बनाने का निर्णय लिया।
सवाल अब यह नहीं है कि मिर बाकी ने जो किया वह गलत था या सही।
बस मिर बाकी सक्षम था और काबिल था सो उसने जो ठीक समझा कर दिया।
यह अब fait accompli है

इसी प्रकार:
१९९२ में एक भीड ने उस मसजिद को तोड दी।
अब सवाल यह नहीं है कि वह तोड फ़ोड गलत था या सही।
बस भीड सक्षम थी और काबिल थी सो उसने जो ठीक समझी कर दी।
यह भी अब fait accompli है।

एक आधुनिक और सभ्य समाज में अब सक्षम और काबिल शक्ति संसद ही होनी चाहिए
अब लोक सभा में बहस के बाद बिल पास होना चाहिए।
लोकतांत्रिक निर्णय चाहे भविष्य की पीढी इसे गलत समझे या सही, सभी पर लागू हो।
पर क्या हमारे संसद के सदस्य इस मुसीबत को मोल लेंगे?

देखते हैं आगे क्या होता है।
शुभकामनाएं
जी विश्वनाथ

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Asha Lata Saxena said...

बहुत अच्छी जानकारी मिली |आपको बहुत बहुत बधाई |
मेरे ब्लॉग पर आ कर जो प्रोत्साहन दिया है ,मैं आभारी हूं |
आशा

देवेन्द्र पाण्डेय said...

इस विषय में एक शब्द भी लिखने से पहले सभी को इस बात का ध्यान रखना जरूरी है कि हमारी लेखनी से मानवता आहत न हो। धर्म और जाति से बड़ा है मानव। मंदिर और मस्जिद से बड़ा है देश। प्रयास हो कि देश सदा सुद्दढ़ रहे। स्वयम् निर्णय दें और स्वयम् अपील करें तो दूसरा इस अपील पर कैसे भरोसा करेगा! देश कानून से चलता है। माननीय न्यायालय का फैसला सभी को सर माथे पर रखना ही होगा।

ZEAL said...

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आदरणीय डॉ दराल एवं विश्वनाथ जी,
कृपया निचे दिए गए लिंक को एक बार देखें। जानकारी का स्रोत विकिपीडिआ है।

Rama is believed to have lived during 1450 BC, during the Rig Vedic period. [4]

http://en.wikipedia.org/wiki/Rama

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G Vishwanath said...

Divya,

If Lord Rama lived during 1450 BC, how could he have a lifetime of eleven thousand years as stated in your blog post.

In that case he must be alive today.

The figures are not consistent.

Regards
G Vishwanath

ZEAL said...

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Vishwanath ji,

Kindly refer to 'Ram-Rajya " on net.

Beyond the Ramayana, the eleven thousand years of Rama's rule over the earth represent to millions of modern Indians a time and age when God as a man ruled the world. There was perfect justice and freedom, peace and prosperity. There are no natural disasters, diseases, ailments or ill-fortune of any nature for any living being. There are no sins committed in the world by any of his people. Always attentive and accessible to his people, Rama is worshipped and hailed by all – the very symbol of moksha, the ultimate goal and destination of all life, and the best example of perfect character and human conduct, inspiring human beings for countless succeeding ages.

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अजय कुमार said...

मंदिर बनता है या मस्जिद ,इसकी चिंता नहीं ,बस एकता बनी रहे ।

ZEAL said...

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Respected Vishwanath ji,

Lord Rama was born in Treta yuga , out of four yugas. The proof is the Ram-Setu bridge. His rein of 11, 000 years can be understood by the age of this bridge. The age of the bridge as per scientific dating comes to around 1 million years. As per Hindu scriptures, Ramayan took place in ‘Treta Yug’. Calculating by Hindu scriptures (Treta Yug with a tenure of 12,96,000 years, Dwapar Yug with a tenure of 8, 64,000 years, Kali Yug has just seen 5,000 years): We know that Treta Yug was before Dwapar Yug. So, one thing is quite evident. The Bridge was constructed at least 8,64,000 years ago, i.e., 0.86 million years ago, which is pretty close to 1 million years. Treta Yuga itself is 1.3 million years of age.

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ZEAL said...

Respected Vishwanath ji,

The info regarding 1450 BC was taken from Wikipedia , which definitely is wrongly mentioned there.

I corrected and edited the post. Thanks for pointing it out and made me read a little more to put the correct information here.

Since Lord Rama was incarnated in Treta Yuga which was 1.3 millions years long , I hope his 11, 000 years reign can be understood now.

Regards,

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Regards,

dhiru singh { धीरेन्द्र वीर सिंह } said...

अगर राष्ट्रसंघ कश्मीर को पाकिस्तान के हवाले करने को कह दे तो क्या कश्मीर दे देंगे ? आस्था और प्रतिष्ठा के विषय में अदालते फ़ैसला नही कर सकती . राम हमारे प्राण है . उस जगह पर मन्दिर तो बना ही हुआ है और दुनिया की कोइ ताकत उसे हटा नही सकती . उसका जीर्णोद्धार ही होना है . मुस्लिम भाईयो से अनुरोध है राजनीति मे ना पडे
अपने हाथो से विवाद खत्म करे .

ethereal_infinia said...

Dearest ZEAL:

I came. I read.

Hope this mention will be published.


Arth Desai

डा० अमर कुमार said...
This comment has been removed by the author.
Rohit Singh said...

पहली टिप्पणी में कम्पयूटर हेंग हो गया दिव्या जी। शायद लंबी टिप्पणी पर हो जाती है।
शीर्षक पढ़कर मन भावविभोर हो गया था। काफी अच्छा शीर्षक है। बचपन की यादें भी।
न्यायाल क्या फैसला देगा उसपर कुछ अंदाज तो लग ही रहा है, पर कयास लगाना उचित नहीं होगा। वैसे होई वही जो राम रची राखा। स्वामी विवेकानंद की जीवनी में कश्मीर की एक घटना है उसके बाद कुछ विचारों पर अनायास रोक सी लग जाती है।

@ माथुर जी
माथुर जी की टिप्पणी पढ़कर अंचभे में हूं कि नक्सल प्रभावित गिरिडिह भगवान राम का जन्मस्थल है। कभी कहीं पढ़ा नहीं था अबतक। क्या मामला है देखने का प्रयास करुंगा।

@ .....मुग़ल सम्राट बाबर सन १५२७ में उज्बेकिस्तान फरगना से हिन्दुस्तान आया। उसने चित्तोरगढ़ के राजा संग्रामसिंह को फतेहपुरसीकरी में हराकर आस पास के क्षत्रों पर अपना कब्ज़ा जमा लिया .......

दिव्या जी बाबर आया नहीं था। बुलाया गया था। ये ऐतहासिक सच है। ये हमारे एक महान योद्धा की एक ऐसी भूल थी जिसका खामियाजा हम आज भी भुगत रहे हैं। जो हमें हमारी आस्था की सबसे बड़ी चोट दे गया और आज हम सहलाते हैं तो कहा जाता है कि ऐसा कुछ नहीं हुआ था। महानयोद्धा राणा सांगा ने अपनी जान दी इस भयानक भूल की वजह से। पर अब पछताए क्या होत है, जब चिड़िया चुग गई खेत। बाबरनामे के कुछ पन्ने गायब हैं, क्यों इस बारे मं सब चुप हैं। एक किस्सा कहीं पढ़ा था कि बाबर मंदिर तोड़ कर मस्जिद नहीं बनाना चाहता था, क्योंकि वो भारत पर शासन करना चाहता था और वो तभी संभव था जब उसे सबका सहयोग मिलता। पर दो मौलवियों के मजबूर करने पर उसे ये काम करना पड़ा, क्योंकि वो दोनो उस जगह की ताकत जानते हैं। खैर ऐतिहासिक बातें कई हैं पर जरा फैसले का इंतजार कर रहा हूं।

ZEAL said...

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Dr Amar and Mr. Arth Desai,

For both of you , moderation is important but not the post. It's a sad state but fine. I cannot help you both.

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ZEAL said...

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I know what I am doing and what is the need on my blog.

Comments related with topic are welcome irrespective of criticism and praises.

But those who try to distract me from my path by abusing me, or by preaching me , are not at all welcome.

Everytime being sarcastic and mentioning that you hope that the comment will be published is kinda annoying.

I always publish comments which are related with the subject . Criticism never trouble me as they they are the vital pillars of any discussion. But when someone tries to rule me , and try to discourage me by some vested interest or agenda, then they are shown their place.

I hate preachers and saints. There is no room for them in my life.

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ZEAL said...

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" पर उपदेश कुशल बहुतेरे "

PREACHERS and SAINTS , kindly excuse me.

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ZEAL said...

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रोहित जी,

बाबर ने अपने संस्मरणों में कहीं भी इस मस्जिद का जिक्र नहीं किया है। संभवतः बाबर के वाइसराय मीर बांकी ने मौके का अनुचित लाभ उठा कर मस्जिद बना दी।

बबुर एक विद्वान् कवी था, उन्हें जितना पढ़ा है, उससे ये नहीं लगता की बाबर इतनी ओछी हरकत कर सकता है ।

मंदिर तुड़वाकर मस्जिद बनवाना किसी समझदार एवं सुलझे व्यक्तित्व का निर्णय नहीं हो सकता।

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वाणी गीत said...

ये समय आतंरिक मतभेदों का नहीं है, अपितु विदेशी ताकतों से अपने देश की रक्षा करने का है।...

सबसे महत्वपूर्ण चिंता को ही हम बिसरा बैठे हैं ...!

Udan Tashtari said...

Good जानकारी..

रश्मि प्रभा... said...

shant hoker hi sabkuch dekhna hai, vivaad ka parinaam vidhvans ho to vishwaas rakhna hai.... satya kee jeet her haal me hogi

गजेन्द्र सिंह said...

मंदिर बनता है या मस्जिद ,इसकी चिंता नहीं ,बस एकता बनी रहे ।

ZEAL said...

अयोध्या में सदियों से चले आ रहे राम जन्म भूमि बनाम बाबरी मस्जिद के ऐतिहासिक विवाद का तारीख दर तारीख ब्योरा प्रस्तुत किया जा रहा है ताकि पाठक इससे रुबरु हो सके। यह मामला पूरे भारतीय समाज और संवैधानिक-लोकतांत्रिक शासन व्यवस्था के लिए चुनौती बन हुआ है। •1528 : बाबर के सेनापति मीर बाँकी द्वारा अयोध्या में बाबरी मस्जिद का निर्माण। इसी जगह के बारे में कुछ वर्गों द्वारा दावा किया गया कि यहाँ भगवान राम का जन्म हुआ था और बाद में मंदिर बना था।•1853 : पहली बार हिंदू-मुस्लिम संघर्ष।•1855 : बाबरी मस्जिद के चारों ओर एक दीवार खड़ी की गई और समझौता हुआ कि पूजा-अजान अलग-अलग समय में संपन्न होंगे।•22/23 दिसंबर 1949 : कुछ लोगों ने बाबरी मस्जिद के भीतर रामलला की मूर्ति स्थापित की। फौजदारी प्रक्रिया संहिता की धारा 145 के तहत मजिस्ट्रेट के आदेश से ढाँचे पर ताला लगा दिया गया। पुलिस सब-इंस्पेक्टर राम दुबे द्वारा कांस्टेबल माता प्रसाद की रिपोर्ट पर 23 दिसंबर को प्राथमिकी दर्ज।•29 दिसंबर 1949 : फैजाबाद के जिलाधिकारी केके नायर ने विवादित संपत्ति अटैच की और नगर पालिका अध्यक्ष प्रियदत्त राम को वहाँ का रिसीवर नियुक्त किया। रिसीवर ने 5 जनवरी 1950 को कार्यभार संभाला। मुसलमानों को विवादित स्थल से 300 गज के दायरे में जाने पर रोक लगा दी गई, जबकि हिंदुओं को रामलला की पूजा की अनुमति दी गई।

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ZEAL said...

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16 जनवरी 1950 : गोपालसिंह विशारद द्वारा सिविल जज की अदालत में मुकदमा। मूर्तियाँ न हटाने तथा पूजा की अनुमति देने के बाबत जज द्वारा अंतरिम आदेश पारित करने के साथ फैसला कि इस संपत्ति में कोई परिवर्तन नहीं होगा।

•21 फरवरी 1950 : मुसलमानों ने फिर से बाबरी मस्जिद के लिए दावा किया।

•5 दिसम्बर 1950 : रामचंद्र दास परमहंस ने जन्मभूमि मुक्ति के लिए अदालत में मुकदमा संख्या -25, 1950 दायर किया।

•26 अप्रैल 1955 : हाईकोर्ट ने सिविल जज के अंतरिम आदेश की पुष्टि की।

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ZEAL said...

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26 अप्रैल 1955 : हाईकोर्ट ने सिविल जज के अंतरिम आदेश की पुष्टि की।

•1959 : निर्मोही अखाड़ा द्वारा विवादित संपत्ति की देखरेख के लिए रिसीवर की नियुक्ति रद्‌द कर मंदिर का कब्जा अखाडे़ को देने के लिए मुकदमा दर्ज किया।
•18 दिसम्बर 1961 : सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड ने हकदारी मुकदमा दायर कर माँग की कि विवादित ढाँचे से मूर्तियाँ हटाई जाएँ।

•1964 : बंबई में सांदीपनी आश्रम में विश्व हिंदू परिषद की स्थापना।

•1983 : काशीपुर में दाऊदयाल खन्ना ने राम जन्मभूमि मुक्ति का मुद्‌दा उठाया।

•7-8 अप्रैल 1984 : दिल्ली में विहिप द्वारा आयोजित प्रथम धर्म संसद में राम जन्मभूमि मुक्त कराने का संकल्प लिया।

•18 जून 1984 : दिगंबर अखाड़ा, अयोध्या में आयोजित संतों की सभा में दाऊदयाल खन्ना को जन्मभूमि मुक्ति अभियान समिति का संयोजक बनाया गया।

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ZEAL said...

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•21 जुलाई 1984 : महंत अवैद्यनाथ राम जन्मभूमि मुक्ति यज्ञ समिति के अध्यक्ष, रामचंद्र दास परमहंस उपाध्यक्ष और ओंकार भावे मंत्री बने।

•25 दिसम्बर 1984 : सीतामढ़ी से अयोध्या को श्री राम-जानकी रथयात्रा शुरू।

•7 अक्टूबर 1984 : अयोध्या में एक बड़ी सभा में ताला खोलने की माँग।

•8 अक्टूबर 1984 : अयोध्या-लखनऊ के बीच राम-जानकी रथयात्रा निकली।

•14 अक्टूबर 1984 : महंत अवैद्यनाथ, दाऊदयाल खन्ना, परमहंस और अशोक सिंघल का एक शिष्टमंडल उत्तरप्रदेश के तत्कालीन मुखयमंत्री नारायणदत्त तिवारी से मिला और ताला खोलने के साथ वहाँ मंदिर बनाने की माँग की।

•16 अक्टूबर 1984 : दिल्ली के लिए राम-जानकी रथयात्रा चली। पर तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गाँधी की हत्या के कारण बीच में ही स्थगित करने की घोषणा।

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ZEAL said...

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•18 अप्रैल 1985 : महंत रामचंद्र दास परमहंस ने घोषणा की कि यदि रामनवमी तक ताला न खुला तो वे आत्मदाह कर प्राण त्याग देंगे।

•1 फरवरी 1986 : फैजाबाद के वकील यूसी पांडे की याचिका पर जिला न्यायाधीश केएम पांडे ने उन आदेशों को रद्‌द कर दिया, जिनके चलते विवादित ढाँचे पर ताला लगा था। मुख्य द्वार का ताला खोला गया। हिंदुओं को पूजा-अर्चना का अधिकार दिया गया। इसी माह मो. हाशिम ने अदालत में अपील दायर की।

•15 फरवरी 1986 : बाबरी मस्जिद एक्शन कमेटी का गठन।

•1987 : राम-जानकी रथयात्रा निकली और देश भर में राम जन्मभूमि मुक्ति समितियों का गठन। उ.प्र. सरकार ने रथ यात्राओं पर प्रतिबंध लगाया।

•जुलाई 1988 से नवंबर 1988 : गृहमंत्री बूटा सिंह ने विभिन्न पक्षों के साथ वार्ता की।

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ZEAL said...

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4 अक्टूबर 1988 : बाबरी कमेटी द्वारा अयोध्या में मिनी मार्च और लांग मार्च के साथ विवादित स्थल पर नमाज पढ़ने की घोषणा की। पर सरकार के अनुरोध पर इन कार्यक्रमों को वापस ले लिया।

•1 फरवरी 1989 : प्रयाग में कुंभ के मौके पर आयोजित संत सम्मेलन में 9 नवंबर 1989 को मंदिर शिलान्यास कार्यक्रम की घोषणा।

•27-28 मई 1989 : हरिद्वार में 11 प्रांतों के साधुओं की बैठक, विहिप ने विवादित स्थल पर मंदिर बनाने के लिए 25 करोड़ रुपए एकत्र करने की घोषणा की।

•जून 1989 : भाजपा राष्ट्रीय कार्यकारिणी ने विवादित ढाँचा हिंदुओं को सौंपने की माँग की।

•10 जुलाई 1989 : इलाहाबाद हाईकोर्ट ने सभी मामले तीन न्यायाधीशों को पूरी बेंच द्वारा
•निपटाने का निर्णय लिया। अयोध्या विवाद के सभी मामले लखनऊ खंडपीठ के हवाले।
•13-14 जुलाई 1989 : अयोध्या में बजरंग दल का शक्ति दीक्षा समारोह अयोजित।

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ZEAL said...

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•14 अगस्त 1989 : हाईकोर्ट ने यथास्थिति बनाए रखने का अंतरिम आदेश दिया।

•22 दिसंबर 1989 : बोट क्लब, नई दिल्ली की जनसभा में साधुओं ने शिलान्यास कार्यक्रम
•में बाधा डालने पर सरकार को संघर्ष की चेतावनी दी।

•30 सितंबर 1989 : शिलापूजन कार्यक्रमों की शुरुआत।

•9 नवंबर 1989 : विभिन्न पक्षों के बीच निर्विवाद माने गए स्थल में प्रस्तावित राम मंदिर का शिलान्यास। बाद में भड़के दंगों में देश भर में 500 लोग मरे। स्वामी स्वरूपानंद ने कहा कि शिलान्यास दक्षिणायन में किया गया, लिहाजा शुभ नहीं माना जा सकता।

•10-11 नवंबर 1989 : कारसेवा की घोषणा सरयू तट से साधु संत और कार्यकर्ता कुदाल-फावड़ा लेकर चले पर जिलाधिकारी ने निर्माण कार्य नहीं होने दिया।

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ZEAL said...

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•28 जनवरी 1990 : विहिप द्वारा आयोजित प्रयाग संत सम्मेलन में 14 फरवरी 1990 से कारसेवा करने की घोषणा।

•6 फरवरी 1990 : प्रधानमंत्री वीपी सिंह ने संतों से विवाद हल के लिए समिति गठन की घोषणा की। चार माह में समस्या समाधान का दावा।

•24 जून 1990 : हरिद्वार में साधुओं की बैठक। 30 अक्टूबर 1990 में मंदिर निर्माण की घोषणा के साथ कारसेवा समितियों का गठन।

•31 अगस्त 1990 : अयोध्या में मंदिर निर्माण के लिए पत्थरों की तराशी शुरू।

•23 अगस्त 1990 : महंत परमहंस ने 40 साल पहले दायर अपना मुकदमा वापस लिया।

•25 सितम्बर 1990 : लालकृष्ण आडवाणी की सोमनाथ अयोध्या तक 10 हजार किमी की यात्रा शुरू।

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ZEAL said...

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•19 अक्टूबर 1990 : विवादित स्थल एवं समीपवर्ती क्षेत्र का अधिग्रहण करने के लिए राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद (क्षेत्र का अधिग्रहण) अध्यादेश, 1990 की घोषणा। यह अध्यादेश दिनांक 23 अक्टूबर 1990 को निरस्त कर दिया गया।

•22 अक्टूबर 1990 : अयोध्या पहुँचने से कारसेवकों को रोकने के सरकारी प्रयास तेज। उ.प्र. सरकार ने रेलगाड़ियों व बसों की तलाशी लेकर कारसेवकों को उतारा और गिरफ्तार किया। अशोक सिंघल गोपनीय तरीके से अयोध्या पहुँचे।

•23 अक्टूबर 1990 : समस्तीपुर (बिहार) में लालकृष्ण आडवाणी को बिहार के मुख्यमंत्री लालू प्रसाद ने गिरफ्तार कराया। भाजपा ने वीपी सिंह सरकार के नेतृत्व वाली राष्ट्रीय मोर्चा सरकार से अपना समर्थन वापस लिया।
•30 अक्टूबर 1990 : विवादित ढाँचे पर कारसेवकों ने भगवा ध्वज फहराया। मस्जिद की चारदीवारी क्षतिग्रस्त। देश के कई हिस्सों में सांप्रदायिक तनाव और दंगे भड़के।

•2 नवम्बर 1990 : बेहद आक्रामक कारसेवकों पर अयोध्या में पुलिस ने गोली चलाई।

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ZEAL said...

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.•1 दिसम्बर 1990 : प्रधानमंत्री चंद्रशेखर ने दोनों पक्षों को वार्ता की मेज पर बैठाकर समाधान की सार्थक पहल की पर विहिप की जिद से मामला यथावत रहा।
• 6 दिसम्बर 1990 : अयोध्या में कारसेवा जारी रखने के लिए संघर्ष शुरू। विवादित ढाँचे को उड़ाने के प्रयास में शिवसेना कार्यकर्ता बंदी।

•4 अप्रैल 1991 : वोट क्लब, दिल्ली पर विहिप और साधुओं की विशाल रैली।

•जून 1991 : आम चुनाव में पहली बार उत्तरप्रदेश में भाजपा की सरकार बनी। भाजपा ने मंदिर निर्माण का संकल्प दोहराया।

•29 सितंबर 1991 : ऋषिकेश में विहिप मार्गदर्शक मंडल की बैठक में अयोध्या के अलावा काशी, मथुरा समितियों की भी घोषणा की गई।

•7-10 अक्टूबर 1991 : उ.प्र. सरकार के पर्यटन विभाग ने विवादित स्थल से लगी 2.77 एकड़ जमीन का अधिग्रहण किया। इस भूमि पर बने कई पुराने मंदिर ध्वस्त। सुन्नी वक्फ बोर्ड ने अदालत में चुनौती दी। अदालत ने स्थायी निर्माण न करने और जमीन का मालिकाना हक न बदलने का आदेश दिया।

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संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

विवादित भूमि पर क्या था इससे बेहतर है कि आज कि स्थति में सुधार किया जाये ...जो भी फैसला आये उसे सबको स्वीकार करना चाहिए ...माना कि आस्था होनी चाहिए लेकिन आपसी वैमनस्य को बढ़ावा देने वाली नहीं ...आज वैसे ही देश आतंकवाद से जूझ रहा है ...

श्री राम कि जन्मभूमि झारखंड ..पहली बार जाना ..

ZEAL said...

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•31 अक्टूबर 1991 : कुछ लोगों ने ढाँचे पर हमला कर उसकी दीवारों को क्षति पहुँचाई।
•2 नवमंबर 1991 : राष्ट्रीय एकता परिषद की बैठक में मुख्यमंत्री कल्याणसिंह ने विवादित ढाँचे की सुरक्षा का आश्वासन दिया।

•दिसम्बर 1991 : अयोध्या में विभिन्न सुरक्षा उपायों को हटाया गया।

•फरवरी 1992 : अयोध्या में सीमा दीवार (राम दीवार) का निर्माण शुरू।

•मार्च 1992 : 1988-1989 में अधिग्रहीत 42 एकड़ भूमि उप्र सरकार ने राम जन्मभूमि न्यास को रामकथा पार्क निर्माण के लिए प्रदान की।

•मार्च-मई 1992 : अधिग्रहीत भूमि के सभी ढाँचे ध्वस्त। वृहद खुदाई और समतलीकरण का कार्य तेज। हाईकोर्ट ने इन कार्यों को रोकने से इनकार किया।

•अप्रैल 1992 : राष्ट्रीय एकता परिषद के शिष्टमंडल का अयोध्या दौरा।

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ZEAL said...

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•8 मई 1992 : विहिप समर्थक साधुओं ने प्रधानमंत्री पीवी नरसिंह राव से मुलाकात की।

•जुलाई 1992 : विहिप के तत्वावधान में 9 जुलाई को कंक्रीट चबूतरे का निर्माण शुरू।
• गृहमंत्री शंकर राव चव्हाण का अयोध्या दौरा। प्रधानमंत्री से वार्ता के बाद 26 जुलाई को चार बजे कारसेवा बंद करने की घोषणा।

•23 जुलाई 1992 : सुप्रीम कोर्ट ने यथास्थिति बहाल रखने का फैसला सुनाया।

•अगस्त-सितम्बर 1992 : प्रधानमंत्री कार्यालय में अयोध्या प्रकोष्ठ का गठन। कई धार्मिक नेताओं ने प्रधानमंत्री नरसिंह राव से मुलाकात की।

•16 अक्टूबर 1992 : प्रधानमंत्री के साथ विहिप नेताओं की दूसरी बैठक।

•23 अक्टूबर 1992 : पुरातत्विक सामग्री के अध्ययन के लिए बैठक।

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ZEAL said...

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•31 अक्टूबर 1992 : पाँचवीं धर्म संसद में 6 दिसंबर से कारसेवा शुरू करने की घोषणा।

•8 नवम्बर 1992 : केंद्र सरकार के साथ विहिप की तीसरी और आखिरी बैठक।

•10 नवम्बर 1992 : विभिन्न राजनीतिक दलों के नेताओं से प्रधानमंत्री राव की वार्ता। विवादित ढाँचे की रक्षा का संकल्प दोहराया गया।

•23 नवम्बर 1992 : राष्ट्रीय एकता परिषद की बैठक में भाजपा का बहिष्कार। ढाँचे की रक्षा के लिए सर्वसम्मत प्रस्ताव।

•25 नवम्बर 1992 : सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को कारसेवा रोकने के लिए उचित कार्रवाई का अधिकार दिया।

•26 नवम्बर 1992 : केंद्रीय अर्धसैन्य बलों की 90 कंपनियाँ अयोध्या पहुँचीं।

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ZEAL said...

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27 नवम्बर 1992 : उप्र की कल्याणसिंह सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा देकर कहा कि किसी भी हालत में अधिग्रहीत जमीन पर निर्माण कार्य नहीं होगा।
28 नवम्बर 1992 : उप्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को भरोसा दिलाया कि केवल सांकेतिक कारसेवा होगी और स्थायी या अस्थायी निर्माण नहीं होगा।

•29 नवम्बर 1992 : मुरादाबाद के जिला जज तेजशंकर अयोध्या की हालत पर निगरानी रखने के लिए सुप्रीम कोर्ट द्वारा पर्यवेक्षक नियुक्त।
•30 नवम्बर 1992 : अयोध्या की स्थिति पर नई में केंद्रीय मत्रिमंडल की बैठक।

•2 दिसम्बर 1992 : प्रधानमंत्री ने उच्चस्तरीय बैठक कर हालत की समीक्षा की। वाराणसी में लालकृष्ण आडवाणी ने कहा कि उप्र सरकार किसी भी हालत में अयोध्या में कारसेवकों के विरुद्ध बल प्रयोग नहीं करेगी और कारसेवा हर हाल में होगी।
•4 दिसम्बर 1992 : फैजाबाद में कांग्रेस का शांति मार्च पुलिस ने रोका, जितेंद्र प्रसाद, नवल किशोर शर्मा, शीला दीक्षित और जगदम्बिका पाल समेत कई वरिष्ठ कांग्रेसी नेता गिरफ्तार।

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ZEAL said...

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•5 दिसम्बर 1992 : 6 दिसम्बर को 12.30 बजे कारसेवा शुरू करने की घोषणा। कहा गया कि राम चबूतरे की सफाई के साथ भजन-कीर्तन जैसे कार्यक्रम होंगे।
•6 दिसम्बर 1992 : कारसेवकों ने 5 घंटे 45 मिलट में बाबरी मस्जिद ध्वस्त की।
•पत्रकारों और छायाकारों पर हमला। अयोध्या के सारे मुसलमान बेघर, कई धर्मस्थलों को नुकसान पहुँचाया गया। अयोध्या में इस दिन करीब तीन लाख कारसेवक जमा थे।
• 7 दिसम्बर 1992 : कारसेवा दिन भर चलती रही। पाकिस्तान और बंगलादेश में कई मंदिर तोडे़ गए और देश में सांप्रदायिक उन्माद फैला। लालकृष्ण आडवाणी ने नैतिकता के आधार पर लोकसभा में विपक्ष के नेता पद से त्यागपत्र दिया।
• 7/8 दिसम्बर 1992 : रात में केंद्रीय अर्धसैन्य बलों ने विवादित परिसर पर अपना नियंत्रण कायम किया। विशेष बसें और रेलगाड़ियाँ चलाकर कारसेवकों को अयोध्या से बाहर निकाला गया।
• 8 दिसम्बर 1992 : लालकृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी, अशोक सिंघल, उमा भारती, विनय कटियार और विष्णु हरि डालमिया समेत कई नेता गिरफ्तार।

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ZEAL said...

• 10 दिसम्बर 1992 : आरएसएस, विश्व हिन्दू परिषद, बजरंग दल, जमायते इस्लामी तथा इस्लामी सेवक संघ पर केंद्र सरकार ने प्रतिबंध लगाने की घोषणा की।
• 16 दिसम्बर 1992 : पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट के जस्टिस मनमोहनसिंह लिब्रहान के नेतृत्व में एक सदस्यीय आयोग का गठन। आयोग को ढाँचे के विध्वंस में उप्र के मुखयमंत्री, मंत्रियों, अधिकारियों, संगठनों की भूमिका, सुरक्षा प्रबंधन में खामियाँ और मीडिया पर हमलों की जाँच करने का दायित्व सौंपा गया। आयोग को तीन माह के भीतर और 16 मार्च 1993 को रिपोर्ट सौंपने को भी कहा गया।
• 16 दिसम्बर 1992 : राजस्थान, मध्यप्रदेश तथा हिमाचल की भाजपा सरकारें बर्खास्त।
• 19 दिसम्बर 1992 : सुप्रीम कोर्ट की अवमानना के सिलसिले में उप्र के तत्कालीन मुख्यमंत्री कल्याणसिंह, मुख्य सचिव प्रभात कुमार, संयुक्त सचिव जीवेश नंदन, पर्यटन सचिव आलोक सिन्हा, फैजाबाद के जिलाधिकारी आरएन श्रीवास्तव तथा अपर जिलाधिकारी उमेश चंद्र तिवारी न्यायालय में तलब।
• 7 जनवरी 1993 : राव सरकार ने विवादित स्थल के पास 67 एकड़ जमीन का अधिगृहण किया। रामकथा पार्क बनाने की योजना। सुप्रीम कोर्ट ने अधिग्रहण को उचित मानते हुए कहा कि न्यास की 43 एकड़ जमीन भी अविवादित है।
• 5 अक्टूबर 1993 : विशेष सत्र न्यायालय ने 40 आरोपियों के खिलाफ चार्जशीट दायर करने का आदेश दिया।

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ZEAL said...

• 24 अक्टूबर 1994 : सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार के जमीन अधिग्रहण के फैसले को उचित बताया और कहा कि वह इस जमीन की देखरेख का काम ट्रस्टों को सौंप सकती है।
• 1998 : केंद्र में भाजपा के नेतृत्व में राजग सरकार का गठन। अटलबिहारी वाजपेयी प्रधानमंत्री बने, लालकृष्ण आडवाणी गृहमंत्री। विहिप तथा साधुओं ने राममंदिर आंदोलन धीमा चलाने का फैसला लिया।
• 10 जून 1998 : प्रधानमंत्री वाजपेयी ने लिब्रहान आयोग की समयावधि बढ़ाने की घोषणा की।
• 17 दिसम्बर 1998 : केंद्रीय गृहमंत्री लालकृष्ण आडवाणी ने बाबरी मस्जिद गिराने की कार्रवाई को शर्मनाक बताते हुए माफी माँगी।
• 25 अक्टूबर 1998 : मंदिर निर्माण के लिए पत्थर तराशने के लिए कार्यशाला खोली।
• 27 जुलाई 2000 : लिब्रहान आयोग ने कल्याणसिंह को पेश करने के लिए जमानती वारंट जारी किया।
• 18-21 जनवरी 2001 : प्रयाग में कुंभ मेले के दौरान
• धर्म संसद की बैठक में 12 मार्च 2002 से राम मंदिर निर्माण शुरू करने का फैसला।
• 17 अक्टूबर 2001 : विहिप नेता अशोक सिंघल जबरिया रामलला का दर्शन करने पहुँचे। विवाद गहराया पर उनके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं।

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ZEAL said...

• 27 जनवरी 2002 : अदालती आदेश के बावजूद विहिप का मंदिर बनाने का ऐलान। प्रधानमंत्री कार्यालय में शत्रुघ्नसिंह के नेतृत्व में अयोध्या सेल का दोबारा गठन। विहिप नेताओं की प्रधानमंत्री से वार्ता, पर कोई आश्वासन नहीं मिला।
• फरवरी 2002 : उप्र भाजपा ने अपने चुनाव घोषणापत्र में मंदिर निर्माण की प्रतिबद्धता से खुद को अलग किया। 15 हजार कारसेवक अयोध्या पहुँचे।
• 16 फरवरी 2002 : प्रधानमंत्री अटलबिहारी वाजपेयी ने कहा कि दोनों पक्षों ने अगर अपना रुख यथावत रखा तो विवाद निपटाने का एकमात्र रास्ता अदालती फैसला ही होगा।
• 27 फरवरी 2002 : गोधरा (गुजरात) में अयोध्या से कारसेवा कर लौट रहे रामसेवकों की ट्रेन में जलने से मौत के चलते गुजरात में भारी दंगा और हिंसा।
• 5 मार्च 2002 : विहिप और न्यास ने अदालती आदेश मानने की घोषणा की।
• 6 मार्च 2002 : केंद्र सरकार ने अयोध्या मामले की जल्दी सुनवाई के लिए इलाहाबाद हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया।
• 13 मार्च 2002 : सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अधिग्रहीत भूमि पर कोई गतिविधि नहीं होगी।
• 23 जून 2002 : विहिप ने अदालती आदेशों को मानने से मना किया, जबकि बाबरी मस्जिद एक्शन कमेटी ने कहा आदेश मानेंगे।

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ZEAL said...

5 मार्च 2003 : इलाहाबाद हाईकोर्ट ने विवादित स्थल की असलियत जानने के लिए खुदाई का आदेश दिया। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण ने खुदाई शुरू कराई।
• 22 जनवरी 2003 : लिब्रहान आयोग ने साक्ष्य दर्ज करने का कार्य पूरा किया।
• 22 अगस्त 2003 : भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण ने खुदाई की रिपोर्ट सौंपी।
• 2 सितंबर 2003 : लिब्रहान आयोग ने कल्याणसिंह को गैर जमानती वारंट जारी किया।
• 30 जून 2009 : जस्टिस (सेवानिवृत्त) मनमोहनसिंह लिब्रहान ने प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहनसिंह तथा केंद्रीय गृहमंत्री पी. चिंदाबरम को 900 पेज की अयोध्या की जाँच रिपोर्ट सौंपी। आयोग ने 399 बार सुनवाई की, उसका 48 बार विस्तार हुआ आठ करोड रुपए से अधिक की राशि खर्च हुई। रिपोर्ट देने में 16 साल 7 माह लगा।
• 22 नवंबर 2009 : लिब्रहान आयोग की रिपोर्ट लीक होने पर संसद में भारी हंगामा।
• 24 नवंबर 2009 : संसद में केंद्रीय गृहमंत्री पी. चिंदबरम ने लिब्रहान आयोग की रिपोर्ट तथा 13 पृष्ठ की एटीआर पेश की। सरकार ने कहा, दोषियों को सजा मिलेगी।

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ZEAL said...

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२४ सितम्बर २०१० को एक बार फिर फैसला आने वाला है। देखें क्या होता है ।

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नीरज गोस्वामी said...

न्यायलय का आदेश शिरोधार्य होना चाहिए...बहुत हिंसा हो चुकी है इस विवाद पर...अब इसे रोकना चाहिए...हर कीमत पर.

नीरज

Dr.Kumar Vishvas said...

We are at stake!!Its high time for us to Stay Together! An Appeal for National Integrity and Communal Harmony.
Watch Nida Fazli, Munavvar Rana, Rahat Indori with Me...Let's Unite Today on Sahara Samay National 7-8 pm LIVE... !!!Welcome comments , opinion, poetry and Kavita.

Rohit Singh said...

दिव्या जी। बाबारनामे के कुछ पन्ने गायब हैं ये बात मैने काफी पहले बचपन में पढ़ी थी। उन पन्नों के नबंर थे। लेख किसी विदेशी लेखक का ही था। उसके अनुसार विवाद बना रहे इसलिए ये पन्ने गायब करा दिए गए थे। ये भी कहा जाता है कि बाबर मंदिर गिरा कर मस्जिद का निर्माण नहीं कराना चाहता था, पर दो मौलवी थे, जिनका उसपर असर भी था..उन दोनो मौलवी लोगो के दवाब में आकर ही बाबर ने मंदिर की जगह मस्जिद बनवाने का आदेश दिया था। इसमें कोई शक नहीं।

दूसरी जानकारी जोड़ना चाहूंगा .....
सम्राट अकबर ने यहां हिंदुओं को फिर से पूजा करने की इजाजत दी थी..जो इस बात की तरफ इशारा करते हैं कि उस जगह मंदिर था, जिसे तोड़कर मस्जिद बनाया गया।

बाबर को हिंदुस्तान लाए राणा सांगा दिल्ली के सुल्तान इब्राहिम लोदी को हराने के लिए। पर बाबर ने भारत में ही सल्तनत बनाने का फैसला किया जिसके बाद राणा सांगा को हार का सामना करना पड़ा।

ZEAL said...

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रोहित जी,

ये बात सच है की बाबर्नामे के कुछ पन्ने गायब कर दिए गए, ताकि विवाद बना रहे। शायद उस जमाने में भी असंवेदनशील और स्वार्थी असामाजिक तत्व हुआ करते थे।

सदियों से रामजन्मभूमि पर राम नवमी [ भगवान् राम के जन्म-दिवस ] पर बहुत बड़ा मेला लगता था, जिसमें तकरीबन दस लाख श्रद्धालु आते थे।

सच के साक्ष्य बहुत हैं , लेकिन अफ़सोस है की सच कोई जानना और मानना नहीं चाहता।

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ZEAL said...

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राम जन्म स्थल पर पौराणिक एक कुआँ है , जिसमें चमत्कारी शक्तियां हैं । कहतें हैं एक बार जो इसका पानी पी लेता है , उसके सभी रोग समूल नष्ट हो जाते हैं। हिन्दू-मुस्लिम दोनों इस बात को जानते हैं और इस चमत्कारी कुएं में विश्वास रखते हैं, लेकिन अफ़सोस यही है की , इस विवाद के चलते कोई भी इस पुण्य-भूमि का लाभ नहीं उठा पा रहा।


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Vivek Mishrs said...

दिव्याजी!
नारे लगाने का मौसम आया है..

नफरत के जब बीज बो रहे , धर्म ध्वजा के पहरेदार ।
प्रेम अहिंसा भाईचारा , कैसे बचायेंगे भगवान हर बार ।

रघुपति राघव राजा राम , जोर से बोलो जय श्रीराम ।
मंदिर वहीँ बनायेगे , हम देश में दंगा करवाएंगे ।
जो न्याय नहीं कर पाएंगे , हम उनको सबक सिखायेंगे ।

अल्ला हो अकबर-अल्ला हो अकबर ,इस्लाम के काम हम आयेंगे ।
फतवा जारी करो इमाम , लड़ने हम सब जायेंगे ।
सूखी रोटी खायेंगे पर , हम मस्जिद वहीँ बनायेगे ।

प्रेम अहिंसा भाईचारा , कैसे बचायेंगे पैगम्बर ।
नफरत के जब बीज बो रहे , सब धर्मो के आडम्बर ।
http://vivekmishra001.blogspot.com/2010/09/blog-post_16.html

ZEAL said...

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विवेक जी,

अब समय आ गया है की लोग अपने विवेक का इस्तेमाल करें। आज समाज का एक जागरूक हिस्सा ये समझ चूका है की, धर्म के नाम पे राजनीति अब और नहीं चलेगी। लोग मर गए, और दफ़न भी हो गए , लेकिन हम लोग २१ वीं सदी में भी आपस में लड़े-मरे जा रहे हैं।

कब हम समझेंगे के दुनिया में और भी गम हैं , आपसी दुश्मनी के सिवा ।

नेता तो ऐसे मुद्दों को जीवित करते ही रहेंगे। क्यूंकि इसी पर तो उन्हें अपनी गन्दी राजनीति की रोटियाँ सेंकनी होती हैं।

आज अयोध्या में हिन्दू-मुस्लिम बहुत प्यार से रहते हैं। लेकिन कुछ दंगा पसंद लोग देश को खोखला करने के लिए ऐसे बासी मुद्दों को हवा देते रहेंगे।

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ZEAL said...

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“दो न्याय अगर तो आधा दो,
पर उसमें भी यदि बाधा हो,
तो दे दो केवल पाँच ग्राम,
रखो अपनी धरती तमाम।
हम वही खुशी से खाएँगे,
परिजन पर असि न उठाएँगे।”

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भारतीय नागरिक - Indian Citizen said...

जिन सभ्य नागरिकों को अपने देश के इतिहास, उनके महापुरुषों के ऊपर ही यकीन नहीं, वे क्या अपने देश की संस्कृति के वाहक बनेंगे.. देश को गुलामी इसी मानसिकता के कारण झेलना पड़ी.. आजादी मिली तो ऐसे दीवानों के कारण जिन्होंने अपनी संस्कृति को सबसे ऊपर रखा, गर्दन कटा दी लेकिन धर्म नहीं त्यागा. आज तो लोगों को राम के नाम पर उल्टी आती है. क्या कहूं ऐसे लोगों के लिये. मुसलमानों से अधिक तो हिन्दुओं के पेट में दर्द हो जायेगा यदि अयोध्या में राम मंदिर बनेगा...
ऐसी मानसिकता के साथ हिन्दुओं की संस्कृति कितने लम्बे समय तक बचेगी, सिर्फ यह देखना बाकी है...

ZEAL said...

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आदरणीय , भाई अनवर जमाल,

एक माँ को अपने सभी बच्चे सामान रूप से प्यारे होते हैं। राम हो या रहीम, भारत माता के लिए के लिए दोनों सपूत प्यारे हैं । मंदिर मस्जिद दोनों नहीं चाहिए। पढ़े-लिखे शान्ति पसंद भारतीयों को , चाहे वो हिन्दू हों या मुस्लिम, उन्हें मंदिर बने या मस्जिद, दोनों से कोई फरक नहीं पड़ता।

धर्म और सम्प्रदाय के नाम पर भ्रष्ट एवं स्वार्थी नेता , राजनीति की रोटियाँ सेंक रहे हैं। और नादान लोग उन्हें सेंकने भी दे रहे हैं। झगडे दंगे होंगे तो गरीबों का नुक्सान होगा। उनका कोई नहीं सोचने वाला।

क्या संवेदनशीलता इतनी मर गयी है लोगों में ? मानवता के बारे में न सोचकर , लोग मंदिर और मस्जिद की आस लगाए बैठे हैं।

शर्म आनी चाहिए हमें। धिक्कार है हम भारत वासियों पर। ये भी नहीं सोचा की वो न्यायाधीश भी एक इंसान ही है जिस पर दोधारी तलवार लटक रही है। ये भी नहीं सोचा की इस फैसले से हमारे देश में कामनवेल्थ गेम पर क्या असर होगा ? मुफ्त में निर्दोष जनता मारी जायेगी। बड़े-बड़े बहादुर लोग सिर्फ तमाशा देखेंगे।

अरे हमें तो फख्र होना चाहिए की हम , एक धर्म-निरपेक्ष देश के नागरिक हैं। आम जनता को इनकार कर देना चाहिए किसी मंदिर या मस्जिद से। नहीं चाहिए कुछ भी ऐसा जो हमारे देश की आधी आबादी को दुखी करे।

हमें एक ऐसे फैसले का इंतज़ार है , जिसमें लिखा हो की हिन्दू-मुस्लिम [ दोनों भाई ] , एक ही कतार में लगकर उस पवित्र स्थल पर साथ ही पूजा करें। जो अपने आप में एक मिसाल हो ।

भाई अनवर जमाल, यदि मैं आपकी बहिन हूँ और आप मेरे भाई, तो फिर हमारी और आपकी ख़ुशी अलग-अलग कैसे हो सकती है ?

हिन्दू मुस्लिम भाई भाई।
भारत की एकता अखंड रहे।

वन्देमातरम !

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DR. ANWER JAMAL said...

बेशक आप मेरी बहन हैं और मैं आपका भाई हूँ और हमारी खुशियाँ अलग नहीं हो सकतीं . हमें बेहतर कल के लिए मजबूत बुनियादों पर मालिक के हुक्म से इंसानियत के लिए जीना ही होगा , साथ साथ . आपका आना सदा ही अच्छा लगता है , शुक्रगुज़ार हूँ आपका .

शरद कोकास said...

अपनी स्टेट बैंक की नौकरी के दौरान मैं भी सोचता था कि अगर अयोध्या में मेरी पोस्टिंग होती तो मैं सद्भावना के लिये यह करता ,वह करता ...।

ZEAL said...

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सादिक़ मियां सिलते हैं रामलला के वस्त्र---

राजीव दीक्षित, अयोध्या के दोराही कुआं के 45 साल सादिक अली उर्फ बाबू खान अपने को दुनिया का सबसे खुशनसीब मुसलमान मानते हैं। यह खुशनसीबी उन्हें दस वर्ष पहले हासिल हुई थी जब अयोध्या के विवादित स्थल पर विराजमान रामलला के मुख्य अर्चक (पुजारी) आचार्य सत्येन्द दास ने उनसे प्रभु के अंगवस्त्र सिलने की पेशकश की थी। तब से लेकर आज तक वह रामलला के कपड़े सिलते आ रहे हैं। मुसलमान दर्जी से प्रभु राम के कपड़े सिलवाने पर सवाल में छुपे संशय को भांपकर आचार्य सत्येन्द्र दास की उजली दाढ़ी के बीच मुस्कुराहट तैरती है। बोलते हैं, हिन्दू और मुसलमान, यह तय करने वाला मैं कौन होता हूं जब प्रभु राम स्वयं कहते हैं मम प्रिय सब मम उपजाये अर्थात मैंने ही सभी मानव को पैदा किया है, इसलिए मुझे सब प्रिय हैं। फिर आगे कहते हैं, रामराज्य की यह अवधारणा थी कि सब नर करहिं परस्पर प्रीति, चलहिं स्वधर्म सुनहि श्रुति नीति अर्थात जितने भी मानव हैं, वे परस्पर प्रेम करते हैं व अपनी परम्पराओं के अनुसार धर्मों का निर्वहन करते हैं। बाबू खान बड़ी सहजता से बताते हैं कि रामलला के रूप में भगवान बालस्वरूप में हैं, इसलिए उनका बागा (रामलला का अंगवस्त्र) सिलने के लिए मखमल के मुलायम कपड़े का इस्तेमाल होता है। वह बताते हैं कि रामलला हफ्ते के दिनों के हिसाब से वस्त्र धारण करते हैं। रविवार को वह गुलाबी, सोमवार को पूछने पर मिलता है जवाब मम प्रिय सब मम उपजाये सादिक मियां सिलते हैं रामलला के वस्त्र सादिक मियां.. सफेद, मंगलवार को लाल, बुधवार को हरा, गुरुवार को पीला, शुक्रवार को क्रीम कलर और शनिवार को नीले रंग का वस्त्र धारण करते हैं। बाबू खान पर सिर्फ रामलला के अंगवस्त्र ही नहीं, उनके सिंहासन की गद्दी और पर्दे को भी सिलने की जिम्मेदारी है। सिर्फ रामलला ही नहीं, अयोध्या के प्रमुख महंत भी उनके हुनर के मुरीद हैं। दिगम्बर अखाड़े के महंत और श्रीरामजन्मभूमि न्यास के अध्यक्ष रहे स्वर्गीय रामचंद्र दास परमहंस को उनके हाथों का सिला बंगला कुर्ता और सदरी सुहाती थी तो हनुमानगढ़ी के महंत ज्ञान दास ने भी जब तक कुर्ता धारण किया, उन्होंने उसे सिलवाने के लिए हमेशा बाबू खान को ही याद किया। निर्मोही अखाड़े के सरपंच महंत भास्कर दास और कनक भवन के चारों पुजारियों के कुर्ते सिलने की जिम्मेदारी भी बाबू खान पर ही है। यह विडम्बना ही है कि रामजन्मभूमि और बाबरी मस्जिद के जिस बहुचर्चित विवाद को लेकर अयोध्या बीते दो दशकों से सुर्खियों में आया, वहां के मठों से अमन व भाईचारे का ही पैगाम दिया जाता रहा है। हिन्दू समुदाय के एक वर्ग से नाराजगी मोल लेकर भी हनुमानगढ़ी के महंत ज्ञानदास ने वर्ष 2003 व 2004 में अपने आवास पर रमजान के महीने में इफ्तार आयोजित किया था। उन लम्हों को याद करके अयोध्या के मुसलमान आज भी भाववि ल हो जाते हैं। इतना ही नहीं, उसी वर्ष अयोध्या मुस्लिम वेलफेयर सोसाइटी की जानिब से बाबू खान के घर पर आयोजित ईद मिलन समारोह में वह 400 साधुओं की मंडली लेकर पहुंचे थे और वहां हनुमान चालीसा का पाठ किया था। हनुमानगढ़ी की 40 दुकानों के किरायेदार मुसलमान हैं लेकिन किसी को याद नहीं कि उनसे दुकानें खाली करने को कहा गया हो।
http://in.jagran.yahoo.com/epaper/index.php?location=36&edition=2010-09-24&pageno=1

साभार-
दैनिक जागरण दैनिक हिंदी समाचार पत्र
मेरठ संस्करण: शुक्रवार 24 , सितम्बर, 2010

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ZEAL said...

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भाई एजाज़ हक़ ,

इतनी सुन्दर जानकारी से रूबरू कराने के लिए आपका बहुत-बहुत आभार। सादिक अली भाई जैसा जज्बा हम सभी के मन में हो। आपकी पोस्ट में दी गयी जानकारियों को पढ़कर मन में हर्ष के आंसू हैं। इस पवित्र सन्देश का प्रसार करने के लिए ह्रदय से आपका आभार।

हिन्दुस्तान की पवित्र भूमि पर रहने वाले हम हिन्दू मुस्लिम , भाई बहनों को कोई बाँट नहीं सकता , हम भारतीय हैं । हम एक हैं और सदैव एक ही रहेंगे।

आभार।

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सूबेदार said...

यह पोस्ट मै देर से पढ़ पाया साक्ष्य सहित बहुत सामग्री अपने दिया है पुरातत्वा बिभाग ने पूरे सक्ध्य जो न्यायालय को दिया है उसमे लगभग मंदिर क़े ही तत्वा उपलब्ध है यह सत्य है की वहा मंदिर था उसे तोड़कर मस्जिद बनाया गया और बाबर तो आक्रमणकारी था उसकी तुलना पुरुषोत्तम राम से हो ही नहीं सकती ढाचा तोडना तो भारतीय राष्ट्र के जागरण क़ा प्रगटीकरण था -राम मंदिर क़ा जीर्णोद्धार - निर्माण में ही हिन्दू,मुसलमान की एकता की गारंटी है.
इतनी अच्छी पोस्ट क़े लिए बहुत-बहुत धन्यवाद.

ZEAL said...

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According to preliminary reports, the title of the land of Ramjanmabhoomi-Babri Masjid has been split into 3 parts in the decision delivered by the Allahabad High Court on 30-Sep-2010.

* The site of the idol of Ramlala has been given to the Lord Ram.
* Sita Rasoi and Ram Chabutra has been marked for Nirmohi Akhara, and
* The rest has been given to the Sunni Wakf Board.

The decision also stipulates that a status quo has to be maintained for a period of 3 months. This will give any body wanting to contest the decision time to appeal in the Supreme Court of India.

Detailed evaluation of the judgement will reveal more details and the finer points.

The decision of the 60 year long Ayodhya land dispute has been delivered by the Lucknow bench of Allahabad High Court on 30-Sep-2010, bring the curtains down on the period of uncertainity.

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ZEAL said...

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आज टीवी पर ये भजन सुन रही थी..मन भक्तिपूर्ण माहौल में रच बस गया... कुछ पंक्तियाँ नीचे हैं....

अमृत की बरसे बदरिया,
अंबे माँ की दुवरिया।

माथे पे चमके जो बिंदिया ,
अंबे माँ की दुवरिया।

सूरज चंदा आरती उतारें ,
पवन बुहारे डगरिया,
अंबे माँ की दुवरिया।

ब्रम्हा विष्णु शंकर नाचे,
मोहन बजाये बंसुरिया।
अंबे माँ की दुवरिया।

अमृत की बरसे बदरिया,
अंबे माँ की दुवरिया।

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ZEAL said...

माथे पे चमके जो बिंदिया,
जैसे नीले गगन में बिजुरिया।
अंबे माँ की दुवरिया।

अंकित कुमार पाण्डेय said...

ab bataiye .....sadhbhavna ki apeel karne valon

muslimn ne to nirnay manne se hi inkar kar diya
ab bhi hai kuchh kahen ke liye?

अंकित कुमार पाण्डेय said...

ZEAL जी ,
नेरे चिट्ठे पर आने के लिए धन्यवाद और मैं इस लेख को पहले ही पढ़ चूका था और इसी लेख की राष्मीराठी की पंक्तियों ने मुझे प्रेरणा दी थी अपने संकलन में इसको रखने की |
यदि आप अपने अमोल्या समय में से कुछ समय मेरे दुसरे चिट्ठे को पढने के लिए दे सकें तो मैं आपका आभारी रहूँगा |
http://nationalizm.blogspot.com/

अंकित कुमार पाण्डेय said...

आपके द्वारा दी गई जानकारी के लिए धन्यवाद |
क्या आप मुझे यह बता सकते हैं की "मस्जिद-ए-जन्मस्थान" का बाबरी मस्जिद में परिवर्तन कब और कैसे हुआ

ZEAL said...

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Ankit ji,

१९४९ तक इसका नाम मस्जिदे-जन्मस्थान ही था।, जो अपने आप में प्रमाण है की मस्जिद जन्मस्थान पर बनी थी । ....बाकी जितनी जानकारी संभव थी , वो मैं दे चुकी हूँ इस पोस्ट पर।

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ZEAL said...

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The ASI has reported in the last chapter of its report :



“Excavation at the disputed site of Rama Janmabhumi – Babri Masjid was carried out by the Archaeological survey of India from 12 March 2003 to 7 August 2003. During this period, as per the directions of the Hon’ble High Court, Lucknow, 82 trenches were excavated to verify the anomalies mentioned in the report of the Ground Penetrating Radar Survey which was conducted at the site prior to taking up the excavations. A total number of 82 trenches along with some of their baulks were checked for anomalies and anomaly alignments. The anomalies were confirmed in the trenches in the form of pillar bases, structures, floors and foundation though no such remains were noticed in some of them at the stipulated depths and spots. Besides the 82 trenches a few more making a total of 90 finally were also excavated keeping in view the objective fixed by the Hon’ble High Court to confirm the structure.”



Summing up its report, the ASI concludes :



“Now viewing in totality and taking into account the archaeological evidence of a massive structure just below the disputed structure and evidence of continuity in structural phases from the tenth century onwards up to the construction of the disputed structure along with the yield of stone and decorated bricks as well as mutilated sculpture of divine coupe and carved architectural members including foliage patterns, amalaka, kapolapali doorjamb with semi-circular pilaster, broken octagonal shaft of black schist pillar, lotus motif, circular shrine having pranala (waterchute) in the north, fifty pillar bases association of the huge structure, are indicative of remains which are distinctive features found associated with the temples of north India.”


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Rakesh Kumar said...

दिव्या जी,
बहुत विस्तृत जानकारी है इस पोस्ट में और इसपर की गई टिप्पणिओं में.आपने वास्तव में बहुत मेहनत की है पोस्ट और अपनी टिप्पणियों
के माध्यम से विषय पर प्रकाश डालने की.मुझे बहुत खुशी मिली आपका नजरिया जानकर.फुर्सत से फिर पढूंगा इस पोस्ट को और सभी टिप्पणियों को.अभी १०-१५ दिन के लिए बाहर जा रहा हूँ.
आपका बहुत बहुत आभार इस पोस्ट का लिंक देने के लिए.

ZEAL said...

राकेश जी , ख़ुशी हुयी ये जानकर की आपको पसंद आई यह पोस्ट। आपकी यात्रा शुभ एवं मंगलमय हो।

Rakesh Kumar said...

आपके इस लेख को फिर से पढा.आपने अपने इस लेख में और अपनी टिप्पणियों में जो तारीखों के साथ महत्वपूर्ण जानकारी प्रस्तुत की तथा बहुत मेहनत से अपनी बातों को रखा वह काबिल तारीफ़ है.आपकी दुआ से मेरी यात्रा आनंदपूर्ण रही.आपके इन लेखों से बहुत कुछ सीखने को मिला.आप अपने कुछ विचार राम मंदिर के बारे में
मेरे लेख 'रामजन्म- आध्यात्मिक चिंतन-४' पर अलग से प्रस्तुत करेंगीं तो और प्रसन्नता मिलेगी.

KRANT M.L.Verma said...

६ दिसम्बर १९९२ को मैंने एक उर्दू में नज़्म लिखी थी जो उन दिनों बहुत लोकप्रिय हुई थी उसे भेज रहा हूँ:
"ईंट से ईंट बजा दी ये सुना था मैंने, आज वो कम अयोध्या में हुआ दीखता है.
ये समन्दर है जो अपनी पे उतर आये तो,सारी दुनिया को ये औकात बता सकता है.
आज खतरा नहीं हमको है मुसलमानों से, घर में जयचन्द की औलादें बहुत ज्यादा हैं.
मेरा कहना है कि इन सबसे निबट लो पहले,कौम को अपनी मिटने पे ये आमादा हैं.
हम तो लोहू कि सियाही से ये सब लिखते हैं, ताकि सोया ये लहू जागे कसम खाने को.
हम किसी जन्म में थे 'चन्द' कभी थे 'बिस्मिल'. देखें कौन आता है ये फ़र्ज़ बजा लाने को?"
डॉ.'क्रान्त'एम.एल.वर्मा

KRANT M.L.Verma said...

प्रिय दिव्या! ६ दिसम्बर १९९२ को मैंने एक उर्दू में नज़्म लिखी थी जो उन दिनों बहुत लोकप्रिय हुई थी उसे भेज रहा हूँ:
"ईंट से ईंट बजा दी ये सुना था मैंने, आज वो काम अयोध्या में हुआ दिखता है.
ये समन्दर है जो अपनी पे उतर आये तो, सारी दुनिया को ये औकात बता सकता है.
आज खतरा नहीं हमको है मुसलमानों से, घर में जयचन्द की औलादें बहुत ज्यादा हैं.
मेरा कहना है कि इन सबसे निबट लो पहले, कौम को अपनी मिटने पे ये आमादा हैं.
हम तो लोहू की सियाही से ये सब लिखते हैं, ताकि सोया ये लहू जागे कसम खाने को.
हम किसी जन्म में थे 'चन्द' कभी थे 'बिस्मिल'. देखें कौन आता है ये फ़र्ज़ बजा लाने को?"
शब्द-संकेत:*चन्द=चंदवरदाई "बिस्मिल'=पण्डित राम प्रसाद बिस्मिल
डॉ.'क्रान्त'एम.एल.वर्मा

ZEAL said...

आदरणीय क्रांत वर्मा जी , इस बेशकीमती ग़ज़ल को हम सभी के साथ साझा करने के लिए आभार।

Anonymous said...

In addition to using the vacuum, you can use attachments that are included with the
carpet steam cleaning products. If there are stubborn stain spots, they
then deal with these places with specialized stain removers.
But when your carpet needs a thorough cleaning from the roots it is always advisable to call the professional
carpet cleaning to do excellent job leaving your carpet stain free,
dust free, allergen free and odor free.

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