जनाब ने अपने वक्तव्य के लिए शानदार समय का चयन किया जब कोंग्रेस कई मुसीबतों से जूझ रही है, और देश को ठीक से संभाल नहीं पा रही है। मुद्रा-स्फीति , रिसेशन , खेल आयोजन , कश्मीर आतंक, वहां के विद्यार्थी जो पढने के बजाये हिन्दुस्तान का झंडा का जला रहे हैं , अपनी ही सुरक्षा के लिए तैनात सुरक्षा-कर्मियों को पत्थरों से मार रहे हैं। और हिन्दुस्तान-विरोधी नारे लगा रहे हैं। ऐसे लोगों को सिर्फ अपने वोट बैंक के मद्दे नज़र समर्थन मिल रहा है ? शर्मनाक है आपका वक्तव्य और विश्नियता।
भगवा -गेरुआ - केसरिया---
- प्राचीन काल से ऋषियों द्वारा प्रयुक्त।
- भारतीय झंडे में सबसे ऊपर 'बलिदान' का सन्देश देता हुआ।
- स्वामी विवेकानंद ने जब कलिफोर्निया में parliament of religion में लाखों लोगों को संबोधित किया था तोभगवा रंग का साफा बाँधा था , जो शांति , सौहार्द्य एवं एकता बनाये रखने की अपील था ।
- सनातन धर्म में भगवा रंग बलिदान और निर्वाण का प्रतीक माना गया है . हमारे ऋषि मुनि भी इसी रंग के वस्त्र पेहेनते थे।
- बौद्ध धर्म में भिक्षु भगवा पहेनकर क्या भगवा-आतंक फैला रहे हैं ?
- चिदम भाई , आपका बेटा जो शिवगंगा में trusty है, वहां प्रत्येक साल , बलिदान और पवित्रता का प्रतीक भगवा झंडा फेहराया जाता है, क्या आपने कभी बेटे से बात की इस विषय पर ?
बोलने के पहले दो बार सोचिये। इंस्टंट और cheap पोपुलारिटी [ सस्ती लोकप्रियता ] , का मोह त्याग दीजिये।
भगवा आतंक कहते हुए आपको शर्म नहीं आई ?
राजनीति मत कीजिये। इमानदारी और सच्चाई से , निष्पक्ष होकर देश की सेवा कीजिये।
हमें भी एक मौका दीजिये नेताओं पर गर्व करने का ।
51 comments:
..दुर्भाग्यवश हमारे सारे पवित्र प्रतीक राजनीति की भेंट चढ़ चुके हैं...अच्छी पोस्ट..बधाई.
आपके आक्रोश से सहमत. अति कटुता से नहीं.
2010/9/28 Pratul Vasistha
दिव्या जी,
आपकी ताज़ा पोस्ट पढ़कर एक पुरानी कविता टिप्पणी रूप में भेज रहा हूँ. ज़रूरी नहीं प्रकाशित करें क्योंकि काफी बातें प्रासंगिक नहीं हैं. नयी लिखने में समय काफी लगेगा. सो फिर कभी. आप यूँ ही राष्ट्रीयता से ओतप्रोत लेख लिखते रहें. राष्ट्रीयता केवल पुरुषों की ही बपौती नहीं. प्रसाद साहित्य में स्त्रियों ने देशप्रेम के कई उदाहरण रखे हैं.
अभी kavyatherapy से उठाकर अपनी प्रतिक्रिया प्रेषित कर रहा हूँ :
"मैंने देखा है
आतंकियों को
हुआ हूँ गद्दारों से रू-ब-रू.
मैंने थाली में छेद करने वाले देखे हैं
देखी हैं हरकतें देश-विरोधी.
मैंने देखे हैं
देश के शहीदों के प्रति घृणित भाव.
मैंने उन सरकारी दामादों को देखा है
जिनकी आवभगत हर इलेक्शन में होती है
जो ज़हर उगलते हैं, दूध पीकर भी डसते हैं.
अल्पसंख्यक होने का पूरा फायदा उठाते हैं
पड़ोसी मुल्क से दोस्ती बढ़ाने के बहाने
बसें ट्रेनें चलवाते हैं.
अपनी पसंदीदा, रोज़मर्रा जरूरत की चीज़
बारूद लेकर आते हैं.
.
मैं देश की अर्थव्यवस्था बिगाड़ने वाले
जाली नोट छापने वाले
चेहरों को पहचानता हूँ.
मैं जानता हूँ
कहाँ मिलती है ट्रेनिंग आतंक की.
मैं ही नहीं आप भी जानते हैं
कहाँ पैदा होती है फसल — देशद्रोह की.
हम सब जानते हैं
पर बोलते नहीं
हम सब देखते हैं
पर अनजान बने रहने का
नाटक किये जा रहे हैं
बरसों से – लगातार.
.
हमें बचपन से ही
कुछ नारे रटा दिए गए हैं
— हिन्दू मुस्लिम सिक्ख ईसाई, आपस में सब भाई-भाई.
— हमें हिंसा नहीं फैलानी, हमें घृणा को रोकना है.
— साम्प्रदायिकता से बचो सब धर्मों का सम्मान करो.
तब से ही भाईचारे की भावना लपेटे हुए
मैं जिए जा रहा हूँ.
साम्प्रदायिकता समझी जाने वाली ताकतों से भी बचा हूँ.
मन में हिंसा के भाव नहीं आने देता.
घृणा चाहते हुए भी नहीं करता.
जबकि गली में मीट के पकोड़े तलता है
रोजाना गोल टोपी धारी.
नाक-मुँह बंद कर लेता हूँ.
लेकिन कुछ नहीं बोलता
किसी से शिकायत नहीं
क्योंकि ये सबका देश हो चुका है.
.
Ek Rajnitigya kahe HA tosamjhen SHAYAD ,shayad kahe to samjhen NAHI aur nahi to wah kahta hi nahi.Chidambram Saheb ka kathan gambhir nahi hai,use mahatva dekar unka uddesheya safal na karen.
क्या मैं अपनी इस ज़िन्दगी को
अगले बम-विस्फोट तक बचाए हुए हूँ.
क्या मैं हमेशा की तरह इस बार भी
अपने भावों पर ज़ब्त करूँ.
कुछ ना बोलूँ.
शांत रहने का,
शांत दिखने का एक और नाटक करूँ.
मीडिया की फिर वही बकवास सुनूँ —
"बम विस्फोटों के बाद भी
आतंकियों से नहीं डरी दिल्ली
बाज़ार फिर खुले,
लोगों ने रोजमर्रा का सामान खरीदा.
.
छिद्र टोपीधारी
भारतमाता के दामन में
छिद्र कर चुके हैं न जाने कितने ही.
अब भरोसा नहीं होता
कि पड़ोस के शाहरुख, सलमान, आमिर को
अपने घर बुलाऊँ या उनके घर जाकर ईद-मुबारक करूँ.
मैं जान गया हूँ.
आप जान गए.
क्या सरकार में बैठे हमारे नुमायिंदे नहीं जानते
पुलिस प्रशासन नेता सब जानते हैं.
लेकिन चुनाव सर पर बने रहते हैं.
उन्हें सेंकनी होती हैं रोटियाँ 'वोटों की'
उन्हें हमारे वोटों से ज़्यादा
टुकड़ों पर बिकने वालों के वोटों की परवाह रहती हैं.
तभी तो आज भी
लालू, मायावती, मुलायम
राहुल, सोनिया इस आतंक की लड़ाई में
सख्त बयानबाजी से ही काम चला रहे हैं.
विस्फोटों में स्वाहा हुए परिवारों को
खुले दिल से नोट मदद बाँट रहे हैं,
मदद बाँट रहे हैं. ...
आपकी बातों से पूरी तरह सहमत हूँ! बहुत बढ़िया और शानदार पोस्ट!
full toss....on 'dharmnirpekshta' ohhhh...sorry..
sharmnirpekshta....
very good effort.
pranam
आपका कहना सही है...
आपकी बातों से पूरी तरह सहमत हूँ!
...yahi sab ho rahaa hai....lekin galat kaam karne waalon ki soch badalanaa bhi aasaan kaam nahin hai!....vichaarniy lekh!...sundar prastuti!
दिव्या जी, आपकी पोस्ट तो सही मुद्दे पर है, पर अपनी ही पोस्ट पर बार बार कमेंट, क्या यह भी सस्ती लोकिप्रियता का एक अंग नहीं है?
.
जाकिर अली रजनीश ,
यदि आप होश में रहकर पढ़ते तो आपको समझ में आता की मैंने बार-बार टिपण्णी नहीं की है बल्कि प्रतुल जी की कविता जो मेल से प्राप्त हुई है उसे पब्लिश किया है।
बाकी जिन मुद्दों पर चर्चा या बहस आमंत्रित होती है , वहां तो टिपण्णी करके ही बहस की जा सकती है न ?
अब आपकी नासमझी का जवाब देने के लिए एक टिपण्णी अनिवार्य हो गयी थी।
आशा है आपको समझ आ गया होगा। वैसे आप जैसे लोग विषय पर तो टिपण्णी करते नहीं, बल्कि इर्श्यावश लेखक पर व्यक्तिगत टिपण्णी ज्यादा करते हैं।
हो सके तो टिपण्णी करने से पूर्व एक बार पुनः जांच लिया करें।
..
वोट बैंक बढ़ाने के लिए ये राजनेता किसी भी हद तक गिर सकते हैं ..इनकी करनी और कथनी में फर्क होता है .... बहुत सटीक आलेख के लिए धन्यवाद .
बहुत सटीक आलेख के लिए धन्यवाद .
desh se bahar rh kr aapko desh ki wastvik tsvir najar aati hogi ki aaj hum kahan pr khadey hain ? vrna is desh main toh bhukhey-nangey logon ko bhi jhuthey aankron se bhla fusla kr khney ko majbur kiya gaya hai ki "sarey jahan se achcha hindustaan hamara...
kirpya batayen ki hindustaan se bahar rh kr is desh ki tsvir kaisi najar aati hai aapko?
likhtey rahiyega, abhaar..........
चिदम्बरम के लिए एक गाना याद आया . क्या सुनिए ऐसे लोगों की जिनकी सूरत छुपी रहे , नकली चेहरा सामने आये असली सूरत छुपी रहे .कुछ गलती हो सकती है इस लाइन में . वैसे एक बात तो सत्य है की आजकल के राजनीतिग्य स्वार्थ की भावना से चालित है . रही बात भगवा उग्रवाद की तो शायद चिदंबरम के परिवार से मुंबई में १३ सितम्बर को नहीं था , नहीं तो उन्हें समझ में आता . भगवा उग्रवाद एक सोची समझी रण नीति के तहत पटल पर रखा जा रहा है.
हमारे नेता गर्व करने का सौभाग्य तो हमें दे ही नही सकते .... कॉमन वेल्थ गेम इसका ताज़ा उधारण है .... गर्व तो छोड़ो ये नेता देश का नाम मिट्टी में मिलने में कोई कसर नही छोड़े रहे ... अभी कल रात ही मैं दिल्ली से लौटा हूँ और दावे के साथ कह सकता हूँ की दिल्ली में अभी बहुत कुछ करने को बाकी है .... खेलों के नाम पर बस लीप पोती हो रही है ..... सच कहूँ तो मीडीया अब कुछ कम ही बोल रहा है ... हालात ज़्यादा खराब हैं ....
ईमान, हया, शर्म सब बेच खायी ?,
BTW:ये चीजे इनके पास थी क्या ?
मेरा मानना है दुनिया में दो काम बहुत ही आसान हैं,बिना सोचे समझे बोलना और लिखना;और जब गलती का अहसास होता है जग हंसाई हो चुकी होती है.
चिदम्बरम जी ने शायद बिना सोचे समझे ये बात कह दी.
कुछ लोग आतंकवाद की बात करते हैं;धार्मिक कट्टरता पर बहुत सी बातें कही सुनी जाती हैं,हम नेताओं को भी कोसते हैं लेकिन इन नेताओं को चुनावों में हम ही जितवाते हैं.कुछ लोग वोट देकर और जो वोट नहीं देते वो वोट न दे कर.
आप के ब्लॉग पर सारी पोस्ट्स बहुत इंट्रेस्टिंग होती हैं.इस पोस्ट के लिए शुक्रिया.
aapki baaton se 100% sahmat hoo...
अच्छी प्रस्तुति
यहाँ भी पधारें:-
ईदगाह कहानी समीक्षा
कभी आतंक का कोई मज़हब नहीं हुआ करता था पर अब उसका रंग भी है :(
Very goog Post About bhagwa and Janta ke paltu kutto ke liye .
ab Janta ke kutte janta ko kat khane ke liye aud rahe hain,
यथार्थ चित्रण!!
आतंक हुए रंगीन, वास्त्विकता को छूता कटाक्ष!!
बढिया पोस्ट.
सारे नेता यही कर रहे हैं ...एक ही थैली के चट्टे बट्टे हैं ..
दिव्याजी
बिलकुल ठीक कह रही है कब तक वोट बैंक की खातिर आदमी अपना इमान गिरवी रखेगा /और एक बार गिरवी रखने के बाद उसे छुड़ाना आसान है क्या
आपके आलेख में एक चीज पर ध्यान दिलाना चाहूंगी की स्वामी विवेकानंदजी ने शिकागो में सात हजार लोगो से भरे सभाग्रह में अपना ओजस्वी भाषण
भगवा रंग का साफा पहन कर दिया था जो की उन्हें राजस्थान के खेतड़ी के राजा ने भेंट में दिया था |
शहीद भगत सिंग ने भी कहा था
"मेरा रंग दे बसंती चोला माई रंग दे बसंती चोला"
हमारे नेता सत्ता में आने के बाद समझते है वे कुछ भी बोलने को स्वतंत्र है और सत्ता मद में हमारी संस्क्रती जिसे हमारे मनीषियों ने अपने बलिदान से अखंड रखा है उसे खंडित करने में लगे है |
लेकिन इतना विश्वास है की हमारे देश का मनीषियों का बलिदान व्यर्थ नहीं जायेगा और वो दिन जरुर आएगा जब जोआज भी ऐसे लोग है जो काम कर रहे है देश के हित में वो प्रकाश जगमगाएगा |
बहुत ढंग से फटकारा है!
इन तेवरों का क्या कहना!
चिन्तनीय विषय है।
बिलकुल सही लिखा है आपने.
मैं भी आप से सहमत हूँ.
इसी विषय पर मैंने भी लिखा था .
और इन्ही तेवरों के साथ.
आभार ......
क्या ये सचमुच सुनते हैँ ?
क्या कहें? शायद झंडे के हिसाब से हरा और सफेद आतंकवाद भी होता होगा।
शरद जी से सहमत हूँ
आप तो भेंस के आगे बीन बजा रहीं हैं.
"राजनीति मत कीजिये। इमानदारी और सच्चाई से , निष्पक्ष होकर देश की सेवा कीजिये।"""
बोलते रहेए - शायद बहरे सुनने लग जाएँ - कोई इश्वारिये चमत्कार जो पादरी लोग करते हैं - हो जाए.
देश में यही एक नहीं हुए हैं बहुत हैं जो भगवा और भगवान् के नाम पर राजनीति कर रहे हैं.
एक स्वयंभू सम्पादक हैं, बड़ी पत्रिका को छोटा बना रहे हैं, हंस के राजेन्द्र यादव.....
बहुत पहले अपनी सम्पादकीय में उन्होंने भगवा का संधि विच्छेद किया था... भग + वा
अर्थ समझाने की जरूरत नहीं.
कुछ यही हाल है इनका भी.........राम ही जाने कहाँ तक गिरेंगे? हमें तो लगता है की वोट बैंक के चक्कर में यदि इन्हें अपना बाप बदलना पड़े तो उसके लिए भी तैयार हो जायेंगे ये सब.
जय हिन्द, जय बुन्देलखण्ड
आतंकवाद का ऐसा वर्गीकरण सर्वथा अनुचित है।
बहुत अच्छी प्रस्तुति। राजभाषा हिन्दी के प्रचार-प्रसार में आपका योगदान सराहनीय है।
काव्य प्रयोजन (भाग-१०), मार्क्सवादी चिंतन, मनोज कुमार की प्रस्तुति, राजभाषा हिन्दी पर, पधारें
भगवा आतंक कहते हुए आपको शर्म नहीं आई ?
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बस यही सवाल मेरे भी मन में....
main aapke chidambaram ke shabd bhagawa aatank se asahmt nhi hu..
aapke baato se puri tarah sahmat nahi hu
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मनु जी,
आप किस बात से सहमत नहीं हैं , कृपया स्पष्ट करें ।
.
jab muslimo deara failaye aatankwaad ko muslim aatankwad kahane me kisi ko gurej nahi hai,kyu ki we Islam ke naam pe aatank faila rahe hain.
to hinduyo ke dwara kiye gaye is kukritya ko bhagwa aatank kahane me kya burai hai. ye bhi to dharm ke naam per hi aisa kar rahe hain.
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मनु जी,
सारे मुस्लिम आतंकवादी नहीं होते , लेकिन, ज्यादातर आतंकवादी मुस्लिम होते हैं, फिर भी इस्लामिक-आतंकवाद जैसा किसी ने नहीं कहा कभी । फिर भगवा आतंक कैसा ?
आतंकवाद का धर्म और रंग नहीं होता ।
वोटों की लालच में अल्संख्यक समुदाय को खुश करने के लिए चाम्बरम जी का ये वक्तव्य निसंदेह शर्मनाक है ।
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चिदंबरम [correction ]
सत्य वचन
yeh un logon mein se hain ' jis thalee mein khaatein hain usi mein chhed karte hain' jab chhed bahut ho jayenge to phir kya hoga sabko pata hai.
yeh kritaghan hain, jahan se jeevan mein sab kuchh payaa use (samajhiye maa baap jaise) hi upshabd kahte hain.
Yeh atankvaad ke liye GHEE hain.
inkee soch par taras aa rahi hai.
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