Wednesday, September 8, 2010

आप डाक्टर हैं या कसाई ?---ZEAL

क्या आपको भी लगता है की पेशे से चिकित्सक लोग कसाई होते हैं?
क्या डाक्टर का चाकू , मरीज का नासूर हटाता है या फिर क़त्ल करता है ?
क्या डाक्टर को मारा-पीटा जाना चाहिए ?
क्या आपको लगता है की डाक्टर्स को कभी अपनी सुरक्षा और अधिकारों की मांग करनी चाहिए?
क्या सरकार , डाक्टरों की सुरक्षा का कोई इंतज़ाम रखती है ?
क्या डाक्टर के भी कोई मौलिक अधिकार अधिकार होते हैं?
क्या डाक्टर्स की भी अपनी कोई निजी जिंदगी होती है?
क्या आपने कभी सोचा की डाक्टर्स की पिटाई होती है , तो उनके भी बच्चे, पति या पत्नी, माता-पिता , भी दुखी , निराश और सहमे हुए होते हैं?
क्या डाक्टर्स को कभी हड़ताल पर जाना चाहिए?
क्या डाक्टर्स मानवीय संवेदनाओं से युक्त आपकी तरह मनुष्य होते हैं?
क्या डाक्टर्स को सदैव परहित ही सोचना चाहिए, कभी अपने लिए नहीं ?
क्या डाक्टर्स के सभी कर्तव्य मरीजों के प्रति होने चाहिए, अपने परिवार के प्रति नहीं ?
क्या डाक्टर्स को कोई मारे तो भी , उसे चुप-चाप बर्दाश्त कर लेना चाहिए? गांधी जी के अनुसार एक गाल पे मारे तो ,दूसरा आगे कर देना चाहिए?
क्या डाक्टर्स की हड़ताल गैर-वाजिब है?
राजस्थान में डाक्टर्स की हड़ताल के चलते बहुत से लोगों की मौत हो गयी। इसका जिम्मेदार ईश्वर है ?, या फिर सरकार ?, या फिर डाक्टर ?
क्या आपके घर में कोई डाक्टर है?
क्या आप अपने बच्चे को डाक्टर बनाना चाहते हैं ?
क्या आप डाक्टर को इंसान समझते हैं?
क्या एक डोक्टर को दुःख होता है ?
क्या एक डाक्टर से आपको सहानुभूति है?
क्या डाक्टर के भी कुछ मौलिक अधिकार होते हैं ?
क्या अपनी सुरक्षा के लिए आवाज़ बुलंद करना गैर-वाजिब है ?

आपकी राय का इंतज़ार रहेगा।

कृपया अपना बहुमूल्य वक़्त निकालकर अपनी राय से हमें अवगत करायें , और समाज को लाभान्वित करें।

आभार।

165 comments:

रंजन (Ranjan) said...

जीने का अधिकार सबसे मौलिक है... किसी को मरता छोड़ अपनी मांगो के लिए हडताल.. कैसे मन करता है? डाक्टर को सुरक्षा मिले.. पर अपनी बात रखने का कोई तो बेलेंस तरीका हो... आंशिक रूप से काम न करो.. पर बच्चों को मरने के लिए कैसे छोड़ दे....

सुबह इस पोस्ट (http://jagadishwarchaturvedi.blogspot.com/2010/09/blog-post_08.html) पर कमेट किया था.. कोपी पेस्ट कर रहा हूँ..

आप भाषा पर अटके है.. भाव देखें... कैसे डाक्टर है.. कौन कहता है उन्हें डाक्टर.. जब मरीज का ईलाज करे तो डा... और मरीज को मरता छोड़ अपनी मांगो के लिए काम बंद कर दे तो.... डाक्टर मुफ्त में नहीं बनाता.... सरकारी पैसे (जनता के पैसे) से अनुदान पाकर उसकी पढ़ाई होती है.. और वो हड़ताल कर मरीजों को मरने छोड़ दे तो... क्या कहिये..

ये समाचार देखिये.. मेरे शहर का है...
http://www.rajasthanpatrika.com/news/07092010/jodhpur-news/153333.html

छ बच्चे मर गए.. इनका दिल नहीं पसीजा.. आप भाषा पर अटके है.. पर डाक्टरों का व्यवहार देखिये.. टीवी वालों को सीखा देगें.. पर डाक्टरों को कौन सिखायेगा...

ये एंकर की आवाज नहीं.. जनता की आवाज है.. पूछिए.. उन माओं से जिनके बच्चे इनके कारण मर गए.. क्या कहेंगी वो.. "डा साहेब"

धिकार है.. इसे डाक्टरों पर... इससे अच्छा तो परचून की दूकान खोल देते... अपनी मांगे मनवाने के सभ्य तरीके हो सकते है... ये ब्लेकमेल करने की हरकते क्यों... क्या फर्क है.. डाक्टर और डाकू में.. एक बन्दुक की नोक पर और दूसरा हडताल कर मरीजो को मरने छोड़टा है...


I don't deny doctor should me give proper facility... security... salary... everything else to make their life comfortable... but please by the time this achieved take care of patients.. because only doctor can treat.. there is no alternative...

Darshan Lal Baweja said...

क्या आपको भी लगता है की पेशे से चिकित्सक लोग कसाई होते हैं?-नहीं
क्या डाक्टर का चाकू , मरीज का नासूर हटाता है या फिर क़त्ल करता है ?-मरीज का नासूर हटाता है
क्या डाक्टर को मारा-पीटा जाना चाहिए ?-नहीं
क्या आपको लगता है की डाक्टर्स को कभी अपनी सुरक्षा और अधिकारों की मांग करनी चाहिए?-नहीं
क्या सरकार , डाक्टरों की सुरक्षा का कोई इंतज़ाम रखती है ?-नहीं
क्या डाक्टर के भी कोई मौलिक अधिकार अधिकार होते हैं?-सबके एक जैसे है
क्या डाक्टर्स की भी अपनी कोई निजी जिंदगी होती है?-हाँ
क्या आपने कभी सोचा की डाक्टर्स की पिटाई होती है , तो उनके भी बच्चे, पति या पत्नी, माता-पिता , भी दुखी , निराश और सहमे हुए होते हैं?-हाँ
क्या डाक्टर्स को कभी हड़ताल पर जाना चाहिए?-ड्यूटी के बाद
क्या डाक्टर्स मानवीय संवेदनाओं से युक्त आपकी तरह मनुष्य होते हैं?-हाँ
क्या डाक्टर्स को सदैव परहित ही सोचना चाहिए, कभी अपने लिए नहीं ?-नहीं अपने बारे मे भी सोचो
क्या डाक्टर्स के सभी कर्तव्य मरीजों के प्रति होने चाहिए, अपने परिवार के प्रति नहीं ?-दोनों के लिए
क्या डाक्टर्स को कोई मारे तो भी , उसे चुप-चाप बर्दाश्त कर लेना चाहिए? गांधी जी के अनुसार एक गाल पे मारे तो ,दूसरा आगे कर देना चाहिए?-नहीं
क्या डाक्टर्स की हड़ताल गैर-वाजिब है?-नहीं
राजस्थान में डाक्टर्स की हड़ताल के चलते बहुत से लोगों की मौत हो गयी। इसका जिम्मेदार ईश्वर है ?, या फिर सरकार ?, या फिर डाक्टर ?-सरकार
क्या आपके घर में कोई डाक्टर है?-नहीं
क्या आप अपने बच्चे को डाक्टर बनाना चाहते हैं ?-नहीं कदापि नहीं
क्या आप डाक्टर को इंसान समझते हैं?-कभी हाँ आंशिक ना
क्या एक डोक्टर को दुःख होता है ?-वो जाने
क्या एक डाक्टर से आपको सहानुभूति है?-जी हाँ
क्या डाक्टर के भी कुछ मौलिक अधिकार होते हैं ?-डुप्लिकेट प्रश्न
क्या अपनी सुरक्षा के लिए आवाज़ बुलंद करना गैर-वाजिब है ?-गार्ड रख ले ,लाईसेंसी शास्त्र ले ले ,नहीं वाजिब है
अब मेरा एक प्रश्न
A व B दो क्लास मैट दोनों डाक्टर है A सरकारी अस्पताल मे डाक्टर है B का अपना अस्पताल है B सालाना ५० लाख कमाता है B सालाना ५ लाख कमाता है अब वो B को मिलता है कमाई पर बात होती है B>A ,अब सरकार उसको ४५ लाख तो नहीं और दे सकती
हड़ताल जायज़ करो नाजायज़ नहीं ?

फ़िरदौस ख़ान said...

विचारणीय...

honesty project democracy said...

एक डॉक्टर को वो सभी अधिकार है जो एक आम इंसान को होता है और इसकी रक्षा उसी तरह होनी चाहिए जिस तरह एक आम इंसान के अधिकारों की रक्षा होती है ,लेकिन मैं अगर एक डॉक्टर हूँ और किसी पुलिस वाले ने या किसी मरीज के रिश्तेदार ने मुझे पीटा है ,और इसके विरोध में मैं सभी डॉक्टरों को हरताल पे जाने का अनुरोध कर उन बेकसूर इंसान मरीजों को इलाज नहीं मिलने की वजह से मौत की मुंह में भेजता हूँ तो निश्चय ही मैं इंसान नहीं शैतान और कसाई हूँ ...क्योकि डॉक्टर का पेशा सिर्फ पेशा नहीं बल्कि उच्च मानवीय सेवा है ...

रचना said...

each individual has constitutional and legal rights so do doctors . all should abide by the constitution and legal system of the country . taking country at ransom should not be permitted


corruption is at all levels and some day the common man will "wake up "

we need a gandhi to wake us up and we need savinaya avagya andolan

कडुवासच said...

... jvalant muddaa !!!

ashish said...

इतने सारे वस्तुनिष्ठ सवालो के जवाब में मै इतना कहना चाहूँगा --

१---डॉक्टर भी एक प्राणी है , मानव सुलभ अच्छे और बुरे गुणों का संगम . क्योकि हर इन्सान में ये दोनों पाए ही जाते है. डॉक्टर अपवाद नहीं हो सकते. एक डॉक्टर कसाई नहीं हो सकता, अगर होता है तो वो डॉक्टर नहीं हो सकता. हर नागरिक की तरह डॉक्टर के भी मौलिक अधिकार होते है, अपनी आर्थिक सुरक्षा , व्यक्तिक सुरक्षा , और पारिवारिक सुरक्षा के. परिवार समाज का अंग है और डॉक्टर सामाजिक प्राणी तो उसे अपनी निजी जिंदगी जीने का पूरा हक है. जहा तक दोस्तो की पिटाई का सवाल है , ये गहरे नैराश्य भाव से गुजरते हुए मानव करतूत है जो किसी विशेष परिस्थिति की उपज हो सकती है लेकिन इसे सामान्य जीवन का अंग नहीं बोला जा सकता ना ही होना चाहिए. लोकतंत्र में अपने अधिकारों के लिए ही हड़ताल और धरनों का प्राविधान बनाया गया है जो हर किसी अन्याय के खिलाफ हो सकता है और डॉक्टर भी उसके लिए स्वतंत्र है. मुझे लगता है डॉक्टर जायदा संवेदनशील होते है . डॉक्टर की हड़ताल से उत्पन्न हुए परिस्थितियों और अन्य सेवावो में कार्य रत कर्मचारियों की हड़ताल से उतपन्न परिस्थितियों को विभिन्न संज्ञा नहीं दी जा सकती. कर्तव्य और अधिकार हर सेवा और नागरिक के होते है, डॉक्टर ही क्यू केवल कसौटी पर कसा जाय ?. बच्चा है ही नहीं तो सोचने का कोई मतलब ही नहीं की उसे क्या बनना है. डॉक्टर एक इन्सान और सुख दुःख से परे नहीं हो सकता. सहानुभूति हमे हर मनुष्य से है.

ethereal_infinia said...

Dearest ZEAL:

First things first, Doctors surely have a right to put their case forward and if all and sundry can call a strike with "Hamaari Maange Puri Karo", why should they be not allowed?

As to the number of deaths mentioned by media, it is a glaring example of the phenomenon depicted in 'Peepli Live'.

Media is news hungry and it would not flinch in the slightest to present a distorted report to get the 'Human Interest' factor into a story which essentially translates into wider viewership and better TRP.

As such, they also can't be blamed. The lure of TRP easily overrides adherence to values these days. Zmiles.

I have cursorily read some news online and in print reporting anything between 30 and 60 deaths owing to the strike which I believe is a grossly inflated number.

I do not hold any striking doctor responsible for it.

Incidentally, medical services are covered under the Essential Services Maintenance Act, 1981 but as usual, our laws are quite toothless to enforce observance thereof.

Exceptions, annulments, adjunctions and amendments to any law create such a maze of confusion that even the enforcers are not sure its applicability.

And due to this, people are fearless in taking the law unto their own hands - be it a doctor or a bank employee or a transport operator or a political party.

All the world over, the Marxist-Leninist Socialism has been proven to be a disaster and almost all nations are going the Capitalist way which is the correct economical order.

Strike is, prima facie, a socialist tool - an instrument invoked to disrupt progress and the pretext thereto could be the flimsiest.

As your blog is in the form of a questionnaire, I conclude with a question [which is rather rhetoric]

Does it matter?


Arth kaa
Natmastak charansparsh

arvind said...

docters bhi insaan hi hote hain...jab kisee ki jaan bachate hain to bhagvan ho jaate hain...yadi chupke se kidney nikal lete hain to saitan....

Aruna Kapoor said...

मेरी राय में डॉक्टर को भी एक साधारण मनुष्य के तौर पर ही लेना चाहिए!... मनुष्य जैसे कि आप जानते है, दो तरह के होते है...अच्छे और बुरे!...वैसे डॉक्टर भी दो तरह के होते है....अच्छे और बुरे!... एक अच्छे डॉक्टर दिल में प्रेम, लगाव, सेवाभाव, अपने कर्तव्य के प्रति की जागृति, देश-प्रेम और त्याग जैसे अच्छे गुण मौजूद होते है!.... और एक बुरे डॉक्टर के दिल मे ईर्षा, स्वार्थ, पैसों का लालच, देश-द्रोह, अपने कर्तव्य का पालन न करना और आलस्य इ. बुरे गुण कूट कूट कर भरे हुए होते है!....वैसे हर डॉक्टर को बुरा ही मान कर चलना गलत बात है!

राजन said...

sarkaar to doshi hai hi par doctors ko bhi itna asamvedansheel nahi hona chahiye khaaskar jab itnee saari jindgiyaan daav par lagi ho.sarkaar to sainiko ke prati bhi isi tarah se laparwaah bani rahi thi.ek sainik 5-6 hajaar ke liye apni jaan hatheli par lekar ladta raha.usne na kabhi strike ki,na kabhi war front par jane se mana kiya kyo?kya unke bachche nahi hai/kya we insaan nahi hai?yadi sena bhi kuch dino ke liye hadtaal kar de to kya hoga hamara?
aur phir doctors ki demands ko pura karne me sarkaar ki bhi kuch vyavharik majburiyaan ho sakti hai.un par bhi dhyaan diya jana chahiye.yaani galti dono taraf se hai.

vijai Rajbali Mathur said...

दिव्या जी,आप के पोस्ट्स पढ़े आपके तर्कसंगत विचार उचित हैं,डाक्टरों के सम्बन्ध में आपने जो सवाल उठाये वे भी वाजिब हैं.मैंने खुद आयुर्वेद रत्न किया हुआ है इसलिए आयुर्वेद के प्रति आपकी राय का आदर करता हूँ.भूल भुलैया के बारे में आपने जो विवरण दिया,भारत के प्राचीन mathes पर जो लिखा सभी सराहनीय है.

ZEAL said...

Comment from Mr G vishwanath through mail.

.......

Read it.
Good post.
Tried to post comments twice.
I get an error message.
Don't know why.
First time it said the comment must be less than 4096 characters.
I counted them. There were more than 4096 characters.
I edited the comment and brought the character count to less than 4000.
I am still getting an error message that says we could not process your request.

Here is the full text of the comment I had tried to post.
If you feel okay, you can reproduce it in your comment box.
Regards
G Vishwanath
============
Instead of answering the questions which have been already answered by others, here are some random thoughts:

For the welfare of society, some professions like Doctors, Armymen etc. should give up the privilege of going on strike.

Doctors already knew about service conditions and compensation when they chose to enter the profession.

If a govt doctor is not satisfied with his life and income, he is free to resign, start his own clinic, or choose some other profession.

He can of course protest and seek redressal against injustice but not by sacrificing the interest of innocent patients.

He can wear a black band, he can speak to the media about his grievances, he can overwork himself (like they do in Japan) to attract attention and embarrass the authorities but he cannot lay down his stethoscope.

If there is no redressal of his grievances it may be due to unjust demands or simply economic compulsions of the Government.

ZEAL said...

continued...

ethereal_infinia said...

Dearest ZEAL:

Continuing further from where I had paused.

“Does it matter?” Was my query at that point.

I say it with a pragmatic view of things. Look at it from this angle.

The media verdict is – The doctors got their way and they resumed work.

Does that make them guilty? Can we sit as judge on the merits of their claim or the contrary?

No, we can't!

The government took almost 7 days to release a terrorist to save passengers aboard the hijacked flight in Kandahar. Do you think it was an act to save the people? It was to save their votes!

Government machinery is always slow. It is most thick-skinned.

Unless the politicians are not scared that this situation can turn unfavorably against them and hurt them, inaction will be their only action.

In this case also, since the media started playing up to the masses, immediately the government gave in to the demands of the doctors.

Waise bhi for government........... kiske baap ki diwaali?

Are they paying through their pockets?

Not at all!

In fact, given the pathetic condition of corruption in our mighty nation, in the arrangement of security, I would not be surprised if they will manage to pocket a little [or should I say lot? Zmiles] in contracts that will now be awarded to agencies.

Come to think of it, they are inwardly happy for the stir. After all, it has given them one more way to misappropriate national funds.

So, coming back to the question at hand – Why should the doctors be tagged as butchers?

Absolutely wrong it is. And it is due to sheer media hype.

Currently, doctors are being pooh-poohed for their ‘insensitivity’ towards patients by pointing to the number of deaths.
Let me quote another example.

Suppose, for a while, that there was no strike and a team of doctors was at hand, but the patient still succumbs and dies. Happens, doesn’t it? You, me, everyone would have seen such an event in our lives.

When such a thing occurs, where are all these people who are today baying for the doctors’ blood?

At that time, they all will conveniently say -- Bhagwaan ki marzi ke aage kiski chalti hain

Then why do not the same be applied to the few who died during the course of the strike. There is no correlation between strike and death and hence the uproar against doctors is invalid and unjust.

This is my case on the debate at hand.


Arth kaa
Natmastak charansparsh

ZEAL said...

.
from Mr G Vishwanath...

No one must have the power to dictate how much their income should be!
In some professions the market forces decide this. In some professions like the Army / Government/ Govt Doctors, the Government decides this, and reviews from time to to time.

If the Doctors feel they are not getting their due when compared to other professions they are free to leave.

So many non medical professionals also feel underpaid.
Farmers and teachers are the best examples of people whose compensation is grossly disproportionate to the value of their contribution to society.

Attacks on Doctors by families of patients who felt that there was negligence are unfortunate and action must be taken by the law enforcing authorities. The doctors should register their complaint but cannot abandon their duties because of this.

Other sections of society are also vulnerable to attacks. The hospitals can have security personnel employed for protecting the staff during times of disturbances.

Doctors should not be called butchers. There are bad eggs in every profession and Medicine is no exception.

Some doctors may be unscrupulous but it is not correct to tar the entire community with the same brush.

The doctor sometimes suffers from a dilemma. Should he give priority to his family over his patient? That dilemma affects other professions too and each has to resolve this himself.

But there are some situations where the choice is clear. In the middle of a surgery if the doctor is informed that a death has taken place in his family, a great doctor will carry on undisturbed, finish his job and then only think of his family.

If the situation is not so critical, the doctor will have to find some alternative to keep his professional work unaffected before he gives attention to his family's needs.

continued...
..

राजेश उत्‍साही said...

सब सवालों के जवाब दिए जा सकते हैं। विचारणीय बात यह है कि डॉक्‍टरों या किसी भी समुदाय की समस्‍याओं के लिए जो लोग जिम्‍मेदार हैं क्‍या वे अपनी जिम्‍मेदारी ठीक से निभा रहे हैं। बात उस पर भी होनी चाहिए। आमतौर पर डॉक्‍टर भी जब हड़ताल पर जाते हैं तो वे ऐसी व्‍यवस्‍था करते ही हैं कि आम आदमी को परेशानी न हो।
एक और महत्‍वपूर्ण बात यह है कि सारे वे लोग जिनसे सत्‍ता प्रभावित होती है या जिनके हाथ में सत्‍ता है वे तो निजी अस्‍पतालों में जाते हैं। इसलिए उन्‍हें इस बात की फिकर ही नहीं होती कि वहां हो क्‍या रहा है।

ZEAL said...

.
by G Vishvanath...

In many cases, doctors may be forced to sacrifice their personal interests and comforts they should do this willingly. A gynec who receives a call at midnight must sacrifice her sleep and rush to the patient who is in the throes of labour. These inconveniences are part of the profession and the doctor's spouse and family must understand and tolerate the situation and also take pride in this.

Other professions too can face extreme situations where the choice is difficult. A police chief may find that his child has been kidnapped and the kidnapper may demand the release of a prisoner.

Doctors are not alone in having to face choices like this.

To the question of whether I prefer my child to become a doctor or not, I have no right to impose my preferences on my child.

My child should take that decision and I will support whatever decision he takes.

Yes Doctors also undergo sorrowful experiences like all other professionals and I have the same sympathy for them as I have for everybody else. They have fundamental rights too, just as others. But they should not expect special rights exclusively for their profession alone.

Keep blogging. Good topic for a debate.
Best wishes
G Vishwanath

..

दिगम्बर नासवा said...

Yes .. I agree to some extant with G Vishwanat. He has given most of the thoughts of people.
I also feel that doctors should have all the rights as a citizen BUT going on strike on a government hospitals which is the only hope for poor people is bad.

चला बिहारी ब्लॉगर बनने said...

मेरे चाचा की पंदरह साल की बच्ची दिल के दौरे से छटपटा रही थी..हमें पता था वो ज़िंदा नहीं बचेगी..हर बार दिल्ली का डॉक्टर छः महीने की दवा देता था यह सोचकर कि अगले छः महीने बाद वो लौट कर नहीं आएगी...और दस साल से वो पदरह साल की हो गई... सुंदर, गोल मटोल, प्यारी सी… जब उसे दौरा पड़ा तो वो हस्पताल में छटपटा रही थी और जिसके वार्ड में उसे भर्ती करवाया गया था, वो सुबह आठ बजे की जगह ग्यारह बजे आए किसी पर्सनल कारण से.. जब हम लोगों ने गुस्से में बुरा भला कहा (जो स्वाभाविक था, यह जानते हुए कि शायद वो आकर भी उसकी ज़िंदगी नहीं बचा सकते थे) तो उन्होंने लाश जब्त कर ली, पुलिस को इत्तला की और सबको गिरफ्तार करने की धमकी दे डाली... चाचा जी आई.ए.एस. थे यह बात उन डॉक्टर साहब को पता नहीं थी...
ख़ैर चाचा जी ने कुछ नहीं किया, मौक़ा वैसा नहीं था... पर डॉक्टर के अंदर आदमीयत की कमी, आज भी दिल को कचोट जाती है..

निशांत मिश्र - Nishant Mishra said...

जी विश्वनाथ जी के कमेंट में बहुत कुछ मेरे विचार भी आ गए हैं. मैं भी शायद उतने अच्छे से बात नहीं रख पाता.

VIJAY KUMAR VERMA said...

aapne ek bahut hee jawlant tathay ko uthaya hai doctor bhee ek insan hai ye sahi hai lekin is sasar me doctor ko bhagwan ke bad doosra bhagwan mana jata hai aiseme usase ek aam aadmi se adhik ummeed kee jati hai lekin jab wah ek aam aadmi se bhee kam sabit kar deta hai khud ko kabhi..to vastaw me kast hota hai...

डॉ टी एस दराल said...

डॉक्टर तो डॉक्टर ही होते हैं , कसाई नहीं । लेकिन भगवान समझे जाने के बावजूद भी वे भी इंसान ही होते हैं । या यूँ कहिये उनकी भी इंसानी ज़रूरतें होती हैं ।
बाकि अच्छे बुरे लोग तो सब जगह होते हैं ।

abhi said...

मैं इस पर क्या कहूँ, मुझे तो अभी तक दोनों किस्म के डॉक्टर मिल चुके हैं, बेहद अच्छे भी, एक दोस्त की तरह बात करने वाले और गलत बर्ताव वाले डॉक्टर से भी मुलाकात हुई,

प्रवीण पाण्डेय said...

आपके सारे प्रश्न मौलिक हैं और चर्चायोग्य हैं।
बहुत ही सम्माननीय पेशा है डॉक्टर का, गरिमा तो बना कर रखनी होगी।

डा0 हेमंत कुमार ♠ Dr Hemant Kumar said...

दिव्या जी, बहुत सारे प्रश्न अप्ने एक साथ उठाये हैं-----हर एक पर अलग से बहस हो सकती है।

मनोज कुमार said...

अपके प्रश्नों जवाब हां है सिवाए
क्या आपको भी लगता है की पेशे से चिकित्सक लोग कसाई होते हैं?
क्या डाक्टर क़त्ल करता है ?
क्या डाक्टर को मारा-पीटा जाना चाहिए ?
क्या डाक्टर्स को कभी हड़ताल पर जाना चाहिए?
क्या डाक्टर्स को सदैव परहित ही सोचना चाहिए?
क्या डाक्टर्स को कोई मारे तो भी , उसे चुप-चाप बर्दाश्त कर लेना चाहिए?
राजस्थान में डाक्टर्स की हड़ताल के चलते बहुत से लोगों की मौत हो गयी। इसका जिम्मेदार ईश्वर है ?,
क्या अपनी सुरक्षा के लिए आवाज़ बुलंद करना गैर-वाजिब है ?

देसिल बयना-खाने को लाई नहीं, मुँह पोछने को मिठाई!, “मनोज” पर, ... रोचक, मज़ेदार,...!

देवेन्द्र पाण्डेय said...

मैं तो डा0 से सहानुभूती की अपेक्षा करता हूँ।

Anjana Dayal de Prewitt (Gudia) said...

I agree with Ranjan (a) that there should be a balance... to fight for our rights we can't snatch away others' rights... for e.g. right to get good medical care in a timely manner...

Having said that, I really hope that doctors get the right conditions to carry out their duties.

Rohit Singh said...

दिव्या जी....फिर एक समायिक प्रश्न उठाया है। जबरदस्त।

सिक्के के दो पहलू। आपके हर बिंदू पर सहमत हूं सिर्फ हड़ताल वाले बिंदू को छोड़कर...क्यों ये अपनी अगली पोस्ट पर लिखूंगा...डॉक्टर को भी सारी राय है। मगर एक बाइट आई थी एक डॉक्टर की जोधपुर की..7-8 नवजात बच्चों की मौत पर...जिन लोगो ने समाचार देखा होगा उनको याद होगा....

ये तो रोज की बात है। ये रुटीन मौते थी, ऐसा तो होता रहता है।

अब हकीकत सुनिए......दो बच्चों के बारे में पता चल पाया कि उनका इलाज करने ही कोई नहीं आया। घंटे की देरी मौत देती है औऱ मिनटों का इलाज जिंदगी......अब कहिए क्या कहें भगवान या कसाई.....

जो पैशा जितना प्रभावित करने वाला होता है उनसे अपेक्षा भी ज्यादा होती है।गी क्या?

ZEAL said...

.
आज इस अदालत में जनता ने और डाक्टरों ने सच्चाई एवं इमानदारी से अपने विचार रखे। इस बात के लिए वे सभी धन्यवाद के पात्र हैं।

कुछ बातें जो कहनी हैं--

लोगों को इश्वर से बहुत अपेक्षा होती है, कभी -कभी हम विधि का लिखा टाल नहीं पाते , सब कुछ जैसा हम चाहते हैं वैसा नहीं होता , तो क्या हम भगवान् को मारने दौड़ते हैं या फिर उनकी तस्वीर को फाड़ कर फ्हेंक देते हैं।

जैसे हम इश्वर से उम्मीद और आशा रखते हैं, वैसे ही डाक्टर से भी बहुत सी आशा रखते हैं, शायद ये हमारी expectations ही है जो हमें कई बार निराश करती है। मुझे लगता है एक डाक्टर अपनी तरफ से अपना बेस्ट करता है, लेकिन अंतिम निर्णय तो इश्वर का ही होता है।

किसी भी डाक्टर के लिए , उसका मरीज , उसकी संतान से भी बढ़कर होता है। इस बात को केवल एक डाक्टर ही समझ सकता है। एक मरीज सब स्वस्थ्य होकर घर लौटता है तो उसके परिवार वालों से ज्यादा , उस चिकित्सक को ख़ुशी होती है , जिसने उसका इलाज किया होता है। चूँकि लोग फीस दे देते हैं, इसलिए सोचते हैं, इसने मुझे ठीक किया तो कौन सा एहसान किया।
.

ZEAL said...

कुछ लोगों का मानना है की डाक्टर किडनी निकालते हैं और शैतान का रूप होते हैं....

मेरा प्रश्न है --

.
इस पृथ्वी पर कितने डाक्टर हैं और उसमें से कितने हैं जो किडनी निकालते हैं । कृपया अनुपात लिखें।

जो डाक्टर होकर किडनी चुराने जैसी घृणित हरकत करतें हैं, कृपया उनको डाक्टर की कटेगरी में न रखा जाए, यहाँ सिर्फ इंसान के रूप में चिकित्सकों का जिक्र हो रहा है।
.

डॉ. मोनिका शर्मा said...

saare prashn sahi hain....isiliye apki baat se sahmat hun aur maanti hun ki is nazriye se bhi sochna zaroori hai....

ZEAL said...

.
एक डाक्टर समाज का संवेदनशील व्यक्तित्व होता है, यदि वो खुद को सुरक्षित नहीं महसूस करेगा तो , लोगों द्वारा मारा-पीटा जाएगा , तो ऐसी अवस्था में , भय से ग्रस्त एक चिकित्सक , मरीजों को बेहतर सेवा कैसे दे सकता है ?

आज मेडिकल स्टुडेंट्स को जनता तथा पुलिस ने इतना मारा क्या आप लोग इसे जायज ठहरायेंगे ? क्या मार खा-खा कर भी कोई संत बना रह सकता।

क्या असंवेदनशील समाज के प्रति डाक्टर अपने नातिक मूल्यों का निर्वाह चुप-चाप करता rahe, और उनसे कोई अपेक्षा न रखे ?

यदि जनता में इंसानियत है , तो उसे एक डाक्टर की चिंता क्यों नहीं, उसके स्वास्थ्य की क्यों नहीं ? डाक्टर पर पड़ने वाले अतिरिक्त दबाव की क्यों नहीं ?
.

अजित गुप्ता का कोना said...

महाराष्‍ट्र सरकार ने डॉक्‍टरों की सुरक्षा के लिए कानून बनाए हैं, ऐसे ही कानून पूरे देश के लिए होने चाहिए। पत्रकार एक पक्षीय समाचार प्रेषित करते हैं इसी कारण समाज में भय व्‍याप्‍त होता है। आज देश में इतनी मे्डीकल सुविधा है कि कम से कम शहरों में तो कोई मरीज बिना चिकित्‍सक के मर नहीं सकता। दूसरी बात यह कि जो लोग हड़ताल पर जाते हैं वे डॉक्‍टर विद्यार्थी हैं, शेष चिकित्‍सक तो सेवाएं दे ही रहे हैं।

ZEAL said...

आज के समाचार में , मंगलोर विमान हादसे में , pilot की गैर-जिम्मेदारी , जिसमें की वह लैंडिंग के समय झपकियाँ ले रहा था , जिसके चलते विमान में बैठे १५८ लोग मर गए। उनकी मौत का जिम्मेदार कोन है ? क्या pilot से मौत हुई तो उसे मानवीय भूल कह कर क्षमा कर दिया जायेइगा?, या फिर उसने कोई शपथ नहीं ली थी , इसलिए उसकी कोई नातिक जिम्मेदारी नहीं थी ?...या फिर इस प्रकार मरे हुए लोगों की मौत इतनी दुखद नहीं जितनी डाक्टर की हड़ताल के चलते हुई ?


एक वकील न जाने कितनी फीस लेता है और वर्षों अपने क्लाएंट को कचहरी के चक्कर लगवाता है फिर भी क्या न्याय मिलता है ?...क्या उसको सब माफ़ है ?

एक इंजिनीअर , बेईमानी से पुल बनता है और हादसे से हज़ारों मरते हैं , तो उसे सब माफ़ है , क्यूंकि उसने कोई शपथ नहीं ली थी?

आज के शिक्षक !.....कितने हैं जो अपने पेशे से इमानदार हैं , कितने मासूम बच्चों को मारते हैं, कोई बहरा हो गया, कोई मानसिक संतुलन खो बैठा, किसी शिक्षक को परवाह है ?

इसलिए हर पेशे में कुछ अछे बुरे लोग होते हैं। पुरे चिकित्सक समाज को असंवेदनशील होकर ,इस तरह धिक्कारना कहाँ की इंसानियत है ?

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ZEAL said...

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एक डॉक्टर होने के नाते आज अपने कुछ व्यक्तिगत अनुभवों को शेयर करुँगी ---

शायद जनता का आक्रोश कुछ ठंडा हो सके...


१-- मेरे बहुत से पाठक जो मुझसे मीलों दूर हैं, मुझे अच्छी प्रकार जानते भी नहीं, उन्होंने मुझसे अपना इलाज कराया । उन्हें लाभ भी हुआ। क्या मुझे इसके बदले में पैसे/फीस मिली या फिर शोहरत ?

क्या ये मानवीय कर्त्तव्य नहीं , की यदि हम अपनों का ख़याल रखें और उनके विश्वास का मान रखें। उनकी जरूरत में काम आयें। उनकी आशा पर खरे उतरें। डाक्टर्स के भी बहुत से मित्र होते हैं , जिनका वे मुफ्त इलाज कर देते हैं, उनको मेडिकल राय दे देते हैं, और गरीबों की निशुल्क चिकित्सा भी करते हैं। क्या इन सब पर भी कभी गौर किया गया ?

२००५ से आभासी दुनिया में ऐसे हज़ारों , अनजान लोगों की निस्वार्थ मदद की है , जो न तो मुझे जानते हैं, न ही मैं उनको जानती हूँ।

डाक्टर और मरीज के बीच सिर्फ एक ही रिश्ता होता है-- वो है विश्वास का।

एक मरीज एक डाक्टर के पास , आशा एवं विश्वास के साथ आता है और डाक्टर , पूरी लगन और सहानुभूति से अपने मरीज की चिकित्सा करता है।

अब कुछ अनुभव रियल लाइफ के शेयर करुँगी...
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अजय कुमार said...

ऐसी स्थिति उत्पन्न होना ही दुर्भाग्यपूर्ण है । तमाम माफिया लोगों को सरकारी सुरक्षा मिल जाती है ,डाक्टर को क्यों नही ?
तमाम ऐसी आवश्यक सेवा में जहां हड़ताल नहीं होना चाहिये ,वहां सरकार को विशेष सुविधायें भी देनी चाहिये ।

Arvind Mishra said...

मैं एक चिकित्सक परिवार से ही हूँ -जहाँ चिकित्सा कर्म पिछली तीन पीढ़ियों से जारी रहा -मैं पाथ ब्रेकर हुआ,जिसका मुझे दुःख है -यह एक त्याग और सेवा का प्रोफेसन है -चिकित्सात पुण्यतमो न किंचित -चिकित्सा कर्म से बढ़कर दूसरा कोई पुण्य कर्म नहीं है -यही मेरी पूर्व पीढ़ियों का उद्घोष था -चिकित्सकों को यह जन समझ कर इस पेशे में आना चहिये -उनमें मदर टेरेसा सा सेवाभाव होना चाहिए -मगर अब इस पेशे में बहुत से गंदे लोग आ गए हैं जिनका दिन रात काम "मिन्टिंग मनी " और 'रोरिंग प्रैक्टिस' है -और इन लोगों ने इस प्रोफेसन को गन्दा कर दिया है और इसलिए आम जनता का उनके प्रति श्रद्धा विश्वास मिट चूका है और चिकित्सक भी रोजाना पीते जा रहे हैं -उन्हें उपभोक्ता कानून की परिधि में ला दिया गया है -
चिकित्सकों में अपनी अनुभूत प्रतिभा की कमी भी प्रत्यक्ष हो चली है -ज्यादतर डाक्टर सही निदान (डायिग्नोसिस) नहीं कर पाते -सेकेण्ड थर्ड ओपिनियन का प्रचलन बढ़ रहा है -वे पूरी तरह से डायिग्नोस्तिक परीक्षणों पर निर्भर होते जा रहे हैं -आज का जागरूक पेशेंट कभी कभी इन्टरनेट के जरिये उनसे बढ़िया निदान कर ले रहा है -
डाक्टरों के स्टार में बड़ी गिरावट है -त्याग की भावना रही नहीं और न सेवा भाव की -तो ऐसे डाक्टर अगर जनता द्वारा पीटे जा रहे हैं तो कोई आश्चर्य नहीं है -हाँ अभी भी कई चिकित्सक हैं जो मानवीय मूल्यों के साथ हैं तो वे भगवन की तराह पूजे जाते हैं ..

ZEAL said...

" केले बेचोगी केले "

एक बार डॉ श्यामा प्रसाद मुखेर्जी , सिविल अस्पताल में सुबह ड्यूटी के समय एक मरीज से मुलाक़ात। मैं अपने कलीग " बाल रोग चिकित्सक -डॉ वि पि सिंह " के कक्ष में बैठी थी।

मरीज की अटेंडेंट ने दावा मांगी, मैंने कहा मरीज तो दिखाओ फिर दावा लिखूंगी, महिला ने कहा बच्चा स्कूल गया है , यहाँ नहीं आ सकता है। मैंने कहा -यदि वो बीमार है तो स्कूल क्यूँ गया, और यदि स्कूल गया है तो बीमार नहीं है। बिना मरीज देखे दावा कैसे लिख दूँ, तुम बार-बार उसे मलेरिया है, ऐसा कह कर दावा लिखवाना चाहती हो, तुम्हें मालूम नहीं शायद की अनावश्यक रूप से मलेरिया की दावा लेने से क्या-क्या मुश्किलें हो सकती हैं।

वहां मुस्लिम महिला का पूरा दल आ गया और गुस्से में कहने लगी, एक आप ही डॉ नहीं हो यहाँ...मैं दुसरे डॉ से दवा लिखवा लुंगी। फिर गुस्से में उसने मुझे धिक्कारा और कहा ...'केले बेचोगी केले"।

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सीनियर डॉ ने उसे डाट कर वहां से भगाया और मुझे समझाया..." दिव्या इन छोटी-मोती बातों से परेशान मत हो, ये महिला यहाँ अक्सर आती है, झूठ बता कर दवा ले जाती है , जाने क्या करती है "॥

" तुम तो महिला होने के नाते सिर्फ गालियाँ खा रही हो, हम लोग तो बहुत बार पिट चुके हैं।

ये मेरा पहला अनुभव था॥
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वाणी गीत said...

वाजिब प्रश्न हैं ...
डॉक्टर ईश्वर नहीं है , उसका एक माध्यम भर ही है ...
लेकिन यह बात सच है कि इस सेवा भावना वाले प्रोफेशन में भी भ्रष्टाचार गले तक पहुँच चुका है ...
जब हम जन सेवा से जुड़े किसी भी क्षेत्र ( राजनीति ,पुलिस आदि) में भ्रष्टाचार,अनियमितता,अकर्मण्यता को बर्दाश्त कर रहे हैं तो इस प्रोफेशन से ही पाक साफ़ होने की इतनी उम्मीदें क्यूँ ..?

ZEAL said...

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मेरा दूसरा अनुभव--
जब मैंने अपने निवास पर क्लिनिक शुरू की तो वहाँ पर " पल्स- पोलिओ का ....बूथ भी लगवाया , जिसके लिए बहुत दौड़-धूप की। वो बूथ जो पास के पार्क में जहां दुनिया भर का कूड़ा फेंका जाता था, वहाँ बहुत से मासूम को दावा पिलाई जाती थी। वो बूथ अब मेरी क्लिनिक पर लगा था। क्लिनिक का पहला दिन और श्री-गणेश पल्स-पोलिओ बूथ के साथ। आधा दिन तक तकरीबन ३०० बच्चे दावा पीकर गए। चारों हेअलथ वर्कर्स का मैंने ध्यान रखा और बच्चों को एक साफ़-सुथरी जगह पर दावा उपलब्ध कराई ।

दवाएं मुफ्त थीं और लोग खुश थे की उस गन्दी जगह से हटकर , दो-कदम की दुरी पर अब बूथ लग रहा है, ....

लेकिन....

एक पडोसी को ये सब अच्छा नहीं लग रहा था, शायद आने वाले कुछ लोग उसके घर की घंटी बजाकर बूथ कहाँ है , ऐसा पूछ रहे थे? , जिससे परेशान होकर , उसने अस्पताल फोन किया तथा अधिकारियों से शिकायत करके बूथ वहां से हटवा दिया।

मेरे साथ मेरे पति की [ जो इंजिनीअर हैं ] , बहुत से पड़ोसियों की और उन अधिकारियों की मेहनत बेकार हो चुकी थी । हेल्थ वर्कर , वैक्सीन का डिब्बा लेकर वापस उसी पार्क में जा चुके थे , उस व्यक्ति की घंटी बजाकर लोगों ने परेशान करना बंद कर दिया था।

और मेरे घर में बर्बाद हो जाने के बाद वाली शान्ति छाई थी।

एक घंटे बाद वो आदमी मेरे पास आया । और स्पष्टीकरण देना चाह...मैंने कहा, मैं एक नयी डॉ हूँ, नया क्लिनिक खोला था, थोडा प्रचार चिहिए था इसलिए बहुत दौड़ धूप के बाद ये बूथ की अनुमति मिली थी, बहुत से बैनर लगवाए थे इलाके में ताकि किसी को जगह ढूँढने में परेशानी न हो। मेरी सब मेहनत बेकार हो गयी। मेरी वजह से आपको जो कष्ट हुआ है उसके लिए माफ़ कीजियेगा। आपने एक नवोदित डॉ को अपने पाँव पर खड़े होने से पहले ही मसल दिया।

वो व्यक्ति उस दिन बहुत रोया। लेकिन तब-तक बहुत देर हो चुकी है।
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चला बिहारी ब्लॉगर बनने said...

हमरे अनुभव पर भी कुछ कहिएगा..हालाँकि ऊ घटना अब सबलोग भूल चुका है...

ZEAL said...

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भाई सलिल,
आपके चाचा जी की बेटी के साथ जो हुआ , वो बहुत दुखद घटना है। ऐसा बहुत से मासूमों के साथ हो रहा है। डाक्टर्स में बढती असंवेदनशीलता निंदनीय है । डाक्टर में संवेदनशीलता के बहुत से अपवाद भी हैं। कुछ डाक्टर पैसे को ही धर्म समझते हैं, अपने गुरूर में रहते हैं, देर से पहुँचने के कारण, मरीजों को होने वाली तकलीफों और दुःख को नहीं समझते। ऐसे चिकित्सक निंदनीय हैं। इश्वर उन्हें उनके कु-कृत्यों का बदला अवश्य देगा।

समस्त चिकित्सक समुदाय की तरफ से आपकी गुनाहगार हूँ सलिल भाई। हो सके तो माफ़ कर दीजियेगा।
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प्रवीण said...

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मैं तो यही कहूंगा कि चिकित्सक भी बाकी लोगों की तरह इंसान ही है... न उसे भगवान समझें... और न ही अपेक्षा करें उस से भगवान होने की... यदि बिना उसके किसी अपराध के तीमारदारों की भीड़ उसके साथ दुर्व्यवहार करेगी, तो क्या उसे यह भी हक नहीं कि विरोध कर सके... हम में से ज्यादातर की नजर में डॉक्टरों के प्रति कड़वापन इसलिये है क्योंकि हमें यह लगता है कि महज २-३ मिनट उसने हमें देखा, पर्चा लिखा और मोटी फीस ले ली... जबकि उसका वह प्रेस्क्रिप्शन उसके पूरे जीवन के ज्ञान-अनुभव का निचोड़ है... सबसे लंबा समय लगता है डॉक्टर बनने में... रात-दिन केवल मरीज-मर्ज... कोई निजता, अपने लिये कोई समय नहीं रह पाता उसके पास... एक अच्छा जीवन स्तर तो उसे मिलना ही चाहिये... सोचिये जिस डॉक्टर को यह चिन्ता सता रही हो कि कल को बच्चों की स्कूल फीस या गाड़ी का तेल कहाँ से आयेगा... वह क्या ठंडे दिमाग से क्लीनिकल जजमेंट कर पायेगा... गलती हम लोगों की यह भी है कि किसी एक ही डॉक्टर के पास हम भीड़ लगा लेते हैं... अब उसकी समय की सीमायें हैं... पूरा दिन वह मरीज तो देख नहीं सकता... और किसी को मना भी नहीं कर सकता... नतीजा, मरीजों की संख्या सीमित करने के लिये वह फीस बढ़ा देता है...और हमारी नजरों में लालची हैवान बन जाता है... कितना गलत है यह... कोई आर्किटेक्ट, सीए आदि-आदि के बारे में क्यों नहीं कहता यह सब ?


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ZEAL said...

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मेरा तीसरा अनुभव -
सन २००८ में , मेरे पति " कोजीकोड -केरल " में आईआईएम की पढाई के लिए गए थे, मैं घर में अकेली थी। निवास पर क्लिनिक होने का खामियाजा -- क्लिनिक में १२ बंदूकधारी सिलेटी रंग की युनिफोर्म में आ गए । साथ में एक दुबली -पतली महिला थी जिसका बहुत लम्बा घूँघट था, कहना मुश्किल था की घूँघट के पीछे स्त्री थी या फिर पुरुष। खैर उसने गुलाबी रंग की साडी पहनी थी।

उन सभी के चेहरे पर कोई भाव नहीं थे , सिर्फ एक आदेश था---इसकी चिकित्सा करो ।

मैंने बन्दुक के साए में कैसे उन्हें झेला होगा शायद ये सब आप लोगों की कल्पना से परे होगा।
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ZEAL said...

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मेरा चौथा अनुभव--

Dr Shyama Prasad Mukherji hospital, park road , Lucknow में एक दिन एक मरीज गुस्सा होकर एक साथी डाक्टर की पिटाई करने लगा। , पुलिसे भी आ गयी । अस्पताल में अफरा तफरी मच गयी , भय से ग्रस्त होकर डाक्टर्स , स्टाफ तथा बहुत से मरीज , जो जिस कमरे में थे बंद हो गए। कोई किसी से कुछ कहने की , अथवा बाहर निकलने की हिम्मत नहीं juta पा रहा था।

क्या हर पल हमें डर-डर कर जीना होगा ?..क्या यही हमारी नियति है ?
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ZEAL said...

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पांचवा अनुभव--

मेरा दूधवाला , जिसके पेट में असहनीय दर्द हुआ तो उसने रात में एक बजे घंटी बजानी शुरू की। घर में अकेले होने के कारण दरवाजा नहीं खोला , तो दूधवाला दीवार फांदकर कैम्पस में कूद आया और दरवाजा जोर-जोर से खटखटाने लगा । भयभीत होकर निकलना पड़ा और चिकित्सा की।

रात में आने वालों के अनेक ऐसे उदाहरण हैं। जहाँ हमेशा उनका ध्यान रखा गया, लेकिन एक डाक्टर का जीवन बहुत ही खतरों से भरा हुआ है , कहीं संक्रमण का, कहीं गाली-गलुज , कहीं मार-पिटाई, कहीं मर्डर।

कुछ चिकित्सक निश्चय ही असंवेदनशील हैं , उन्हें समाज के प्रति अपने दायित्वों को समझना चाहिए और कोशिश करनी चाहिए की हम अपने प्रति लोगों की आशाओं पर खरे उतरें और संवेदनशील होकर अपने सम्मान एवं गरिमा को भी बचाए रखें।

लेकिन अपने भाई /बहनों/साथियों से भी यही अपील है , की वो भी चिकित्सक समूह के साथ नरमी से पेश आयें और उनके प्रति अपनी संवेदनाओं को जीवित रखें।

आभार।
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Amit Sharma said...

@ लेकिन एक डाक्टर का जीवन बहुत ही खतरों से भरा हुआ है , कहीं संक्रमण का, कहीं गाली-गलुज , कहीं मार-पिटाई, कहीं मर्डर।

# हर किसी पेशे में इस प्रकार के वाकियात सामने आते है, और हर किसी को अपना पक्ष रखने के लिए सभी प्रकार की सुविधा भी उपलब्ध है. हड़ताल ही तो एक मात्र जरिया नहीं है अपनी बात मनवाने का, वह भी इस तरीके से की ओ टी में प्रसव कराते सीनियर्स को रेजिडेंट जबरन बाहर निकल ले गए ?????
समाज में एक पेशा ऐसा भी है जिसमें कोई स्थायित्व नहीं है, किसी प्रकार की सुरक्षा गारंटी नहीं है ................ लेकिन उन्ही के कारण देश स्थायी है..............उन्ही के कारण देश/ देशवासियों की सुरक्षा की गारंटी है ................ क्या हो अगर वे भी अपनी मांगों के लिए हड़ताल पर चलें जाये ??????

Amit Sharma said...

क्या हो अगर सीमा पर खड़े सैनिक अपनी भयंकर परेशानियों का हवाला देकर हड़ताल पर चलें जाये

विवेक सिंह said...

डॉक्टर अकेले ही जिम्मेदार नहीं हैं । दूसरे लोगों को भी अपनी जिम्मेदारी से नहीं भागना चाहिए ।

ZEAL said...

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अमित जी,
बहुत मजबूरी में हड़ताल की जाती है, क्या इसके बगैर भी कोई सुनवाई है ? क्या सरकार इतनी संवेदनशील है ?

सीमा पर खड़े सैनिकों को कोई मारने नहीं जाता। जो उन्हें अपनी सुरक्षा की चिंता करनी पड़े। उनको यथेस्ट सम्मान, पुरस्कार , तनख्वाह , तथा मुआवजा के तौर पर बहुत सी ख़ास सेवाएं मुहैय्या हैं।

डॉक्टर और सैनिकों से तुलना नहीं हो सकती। सैनिक तो हमारी सुरक्षा के लिए हैं। डॉक्टर तो सिविलियन है , जो अपनी सुरक्षा के लिए छटपटा रहा है।

और रही बात सैनिकों की, जीते जी तो उनके साथ कम ही अन्याय होता होगा , हाँ उनके शहीद होने के बाद उनकी विधवाओं और बच्चों को त्रस्त किया जाता है। जिसके अनेक उदाहरण हैं । इतिहास गवाह है। बहुत से लोग विरोध भी करते हैं, लेकिन क्या उनकी भी सुनवाई हुई है ?

असंवेदन शीलता हर वर्ग में है । और हर वर्ग को अपनी सुरक्षा के लिए जागरूक होना होगा।

वर्ना कोन मरा , कोन जिया, किसको पड़ी है किसी की ?

अपने हक के लिए लड़ना ही चाहिए।

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Parul kanani said...

yahan to kafi gehmagahmi hai..vakai post vicharniy hai :)

राजन said...

कुछ डाक्टर पैसे को ही धर्म समझते हैं, अपने गुरूर में रहते हैं, देर से पहुँचने के कारण, मरीजों को होने वाली तकलीफों और दुःख को नहीं समझते। ऐसे चिकित्सक निंदनीय हैं।
divya ji,
hum bhi sabhi doctors ko bura nahi kah rahe hai.aap jaise doctors se hame kyon pareshanee hone lagi bhala.balki inka samman aam janta kaarti hi hai.aap jaise hi ek doctor ki vajah se main khud 2001 me ek baar maut ke munh se baahar aa chuka hun.main unka ehsaanmand hamesha rahunga halanki is bimaari ki vajah se mera carrier buri tarah prabhavit hua.samasya kuch ek doctors ke sath hai jo apna farz nahi samajh paa rahe hai.

अजित गुप्ता का कोना said...

इतनी सारी बहस हो गयी लेकिन यदि सब से पूछा जाए कि सीता कौन थी तो सब खामोश हो जाएंगे। यह बहस सरकारी अस्‍पतालों में रेजिडेन्‍ट डॉक्‍टरों की हड़ताल से उत्‍पन्‍न हुई थी। मैं अपनी टिप्‍पणी में पूर्व में भी लिख चुकी हूँ कि रेजिडेन्‍ट डॉक्‍टर विद्यार्थी होते हैं और केवल अपने स्‍टाइपण्‍ड से ही काम चलाते हैं। सारे अस्‍पताल की जिम्‍मेदारी ये सम्‍भालते हैं और बदले में इन्‍हें मिलती है मारपीट और बदसलूकी। किसी भी खबर को इस प्रकार से प्रसारित करने से पहले मालूम तो करें कि वास्‍तविकता क्‍या है? सरकारी अस्‍पतालों में इनकी चौबीस घण्‍टे की ड्यूटी होती है जबकि पूर्ण वेतन पर अन्‍य चिकित्‍सक और महाविद्यालय का स्‍टाफ होता है। इसलिए इनके हडताल पर जाने से कोई रोगी कैसे मर सकता है? ये केवल एक दुष्‍प्रचार है। बाकि जितनी भी यहाँ बहस की गयी है वे सम्‍पूर्ण डॉक्‍टरों के लिए की गयी है जिसका इस हड़ताल से कोई लेना-देना नहीं है। अन्‍य चिकित्‍सक कभी भी हड़ताल नहीं करते हैं ये आप सभी को मालूम होना चाहिए।

ZEAL said...

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पाठकों से निवेदन है कृपया अजित जी की बात पर ध्यान दें। हड़ताल की वजह और कौन कर रहे हैं, ध्यान से सोचें तो हड़ताल जायज लगेगी। हिस्ट्री और केमिस्ट्री के विद्यार्थी को न मारा जाए लेकिन मेडिकल के मासूम विद्यार्थियों की बेरहमी से पिटाई की जाए ?

बाकी बहेस एक सम्पूर्ण मुद्दे पर हो रही है। चिकित्सक से जुडी हुई हर बात पर।
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ashish said...

जैसा की मैंने पहले भी लिखा है की हर व्यक्ति चाहे वो जिस सेवा में हो उसने अपने अधिकार और कर्तव्य है. अगर हर व्यक्ति अपने कर्तव्यो का निर्वहन करने लगे तो दुनिया स्वर्ग बन जाएगी. लेकिन चुकी इस पोस्ट पर केवल डॉक्टर की बात की गयी थी , इसलिए मुझे लगता है हमे अपने विचार केवल उनके बारे में ही देना श्रेयस्कर होगा ना की हम किसी और profession से उनकी तुलना करे.

शोभना चौरे said...

दिव्याजी
आपके सारे पश्नो का एक ही जवाब दे सकती हूँ की डाक्टर पहले इन्सान ही है और जो भावनाए ,कर्तव्यपरायणता एक आम इन्सान में होती है वही उनमे भी होती है जिसे डाक्टर बन्ने के बाद हर कोई अच्छी तरह से ही निभाता है कुछ अपवाद हो सकते है ?चूँकि जो भी मरीज बनकर जाता है और स्वस्थ हो जाता है तो कई लोग भगवान का दर्जा दे देते है डाक्टर को |और फिर भगवान से तो सारी अपेक्षाए उम्मीद की जाती है |डाक्टर अपना फर्ज निबाहते है चूँकि मानव के जीवन का नाता उससे जुडा होता है और सफल परिणाम न होने की दशा में अपना संतुलन खो बैठता है और अपना आक्रोश हिंसा के रूप में उतारता है जो की जायज नहीं ठहराया जा सकता |मैंने तो अपनी जिन्दगी में मुंबई ,बेंगलोर ,चेन्नई ,इंदौर ,neemach और छोटे गाँव में भी डाक्टर को अपना सम्पूर्ण देते ही पाया जो उसने उसने पढाई और प्रेक्टिस के दौरान अर्जित किया है |मैंने सेवा कार्य करते हुए कई बार नेत्र shivir ,परिवार नियोजन शिविर ,पोलियो शिविर ,ayojit kiye है jisme sbhi sarkari daktr का shyog होता था कभी भी कोई दिक्कत नहीं आई |अभी शिक्षक दिवस पर निजी स्कुलो के शिक्षको के सम्मान के कार्यक्रम में जाना हुआ था जो अक संस्था के द्वारा आयोजित था उसी की तरह मै समझती हूँ की आम जनता भी ऐसे डाक्टर्स का सम्मान करे जो निजी तौर पर साधारण बीमारियों का इलाज अपना भरपूर समय और व्यवस्था देकर करते है |
बाकि हड़ताल का और कोई विकल्प हो |अजीतजी की बात से सहमत |

राजन said...

jaha tak baat hai andolanrat doctors par hinsa ki to iska samarthan karne ki murkhta koi nahi karega.lekin yadi ye kaha jaye ki aisa sirf doctors ke hi sath hota hai to main isse sahmat nahi hun.
students koi bhi ho, kai baar aisi hinsa jhel chuke hai,teachers ko to kai baar lathiyaan khanee padi hai,rajasthan ke rawla aur gharsana me to andolanrat kisaano par vasundhara sarkaar ne seedhe hi goleebaari shuru kar di thi(ab ye mat kahiye ki inki tulna doctors se mat kijiye).a.e.n. aur j.e.n. ki pitaai to majaak bankar rah gai hai.yahan tak ki kai baar to mahilaon tak ko nahi baksha gaya.aise me ye kahna sahi nahi hai ki kewal doctors hi sarkaari daman ka shikaar hue hai.lekin hamari sahanubhuti unke saath bhi hai.

राजन said...

ek sawaal ajit ji se bhi ki akhir aisa kyo hai ki pura ka pura media doctors ka dushman ho gaya hai?wo doctors ke prati galat prachar kyo kar raha hai?aur isse media ko kya faayda hai?kya sabhi ko ek saath galatfahmi ho gai?

चंद्रमौलेश्वर प्रसाद said...

"क्या डाक्टर को मारा-पीटा जाना चाहिए ?"
यह तो इस बात पर डिपेन्ड करेगा कि वह डाक्टर है या कसाई :)

डॉ.रूपेश श्रीवास्तव(Dr.Rupesh Shrivastava) said...

संवेदना,आत्मीयता,अति उच्च मानवीय मूल्य इन सभी बातों की अपेक्षा एक चिकित्सक से करी जाती है जो कि सही भी है लेकिन क्या आप इन्ही बातों की अपेक्षा एक रेल ड्राइवर से नहीं करते जब वह अपने पीछे न जाने कितने लोगों को रोता, हँसता छोड़ कर समय होने पर सिग्नल के अनुसार भोंपू बजा कर चल पड़ता है? चिकित्सक किसी दूसरे ग्रह से आए प्राणी नहीं होते वे भी सामान्य मनुष्य होते हैं उनके भीतर भी वे सारे भाव होते हैं जो इंजीनियर,पुलिसमैन,प्लम्बर आदि के भीतर होते हैं। हर आदमी अपने जीवन को अधिकतम सुखी बनाना चाहता है तो यदि चिकित्सा शास्त्र पढ़ कर मैं डॉक्टर बन गया तो मैं ऐसा नहीं करूंगा ऐसा तो हरगिज नहीं है, हमारे परिवार को भी वो सब चाहिए जो दूसरों के पास है पर्याप्त समय, धन, ऐश्वर्य आदि। क्या कभी किसी ने इंजीनियर या ठेकेदार के भ्रष्टाचरण से बनी इमारत के गिर जाने पर मर गये लोगों के विषय में इतनी विशद चर्चा करी है। हड़ताल आदि जैसी बातें क्यों होती हैं इस की गहराई में जाए बिना ये कहना कि चार मरीज या छह मरीज चिकित्सकों की हड़ताल से मर गये कहाँ तक सही है? आपके शहर में राजनैतिक दल बंद का आयोजन कर देते हैं और उस दौरान वाहन न होने की दशा में मरीज अस्पताल गये बिना मर जाता है तो चर्चा का विषय बनाइये। बिना वजह डॉक्टर को अजूबा मत समझिये। मरीजों और डॉक्टरों के बीच में जब तक ये समझ विकसित नहीं होती कि ये इलाज करके बचाने का प्रयास करने वाला लड़का भी हम में से ही किसी का बेटा है और मरीज के मर जाने पर उसे पीट देना कहाँ तक उचित है... ये चलता रहेगा क्योंकि इस तरह की मारपीट भावावेश में हो जाती है और ऐसे में हुई हड़तालें भी बस ऐसे ही खत्म हो जाती हैं, नयी उम्र के जूनियर डॉक्टर भी आवेश में आ जाते हैं लेकिन अनुभव और उम्र बढ़ने पर वे इस सत्य को समझने लगते हैं और सब चलने लगता है एक पटरी पर सीधे..सीधे...।
मैं एक चिकित्सक होने के कारण इस मनोव्यथा को समझ सकता हूँ।

वीरेंद्र सिंह said...

हे परमात्मा ......इतने सारे सवाल ......!
दिव्या जी .निसंदेह डॉक्टर भी इंसान ही हैं
और उनकी भी वही चिंताएं होती हैं जो एक
आम आदमी की होती हैं . उनको भी उतने ही
अधिकार हैं .

लेकिन दिव्या जी ...जब डॉक्टरस की हड़ताल के कारण
बेकसूर मरीजों की जान पर बन आती है तो उस समय
बहुत बुरा लगता है . हो सके तो डॉक्टरस को हर क़ीमत पर
और हर हाल में हड़ताल पर जाने से बचना चाहिए. क्योंकि
कुछ लोगों की वजह से दुसरे लोगों की जान पर बन आये ये
उचित नहीं है . ये मेरा अपना विचार है . दिव्या जी
जीवन अनमोल है . किसी की लापरवाही से इसे खोना उचित न होगा .

G Vishwanath said...

दिव्याजी,

सब की टिप्पणियाँ पढीं।
अच्छा लगा।
आपके अनुभव हम सब के साथ बाँटने के लिए ध्न्यवाद।
अब अगली पोस्ट का इन्तज़ार रहेगा।

एक और बात।
कृपया यह बताईए की टिप्पणी की लंबाई की कोई सीमा है?
यदि है तो कितने अक्षर?
मैं समझता था कि ४०९६ अक्षरों की सीमा है
पर मेरी कुछ टिप्पणियाँ, जो इससे भी काफ़ी कम थीं, छप न सकीं

शुभकामनाएं
जी विश्वनाथ, बेंगळूरु

ZEAL said...

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विश्वनाथ जी,
टिप्पणियों की लम्बाई की कोई सीमा निर्धारित नहीं है। यदि कुछ लम्बी हो तो उसे किश्तों में भेजा जा सकता है।

विरेन्द्र जी,
आपके प्रश् का उत्तर अजित जी दे चुकी हैं।
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चला बिहारी ब्लॉगर बनने said...

दवाओं के प्रेस्क्रिप्शन के बारे में भी कहना होगा... मेडरेप जो पैसे देकर जाते हैं उनकी दवाएँ प्रेस्क्राईब करना… कितने डोक्टर आजकल सल्फा ड्रग्स से ऐलर्जी के बारे में पूछते हैं पेशेंट से, कितने ये सोचते हैं या बताते हैं कि इसके कॉन्ट्रा इंडिकेशंस क्या क्या हैं, कितनों ने पूछा होगा कि पेशेंट कौन सी दवा पहले से ले रहा है और उनकी दवा से ड्रग इण्टरैक्शन का क्या असर होगा..
लेकिन ये तो व्यापार ही नहीं, रैकेट हो गया है.. एक एसिटाइल सैलिसाइलिक ऐसिड पता नहीं कितने ब्राण्ड नेम से बिकती है..अहमदाबाद जाकर गोलियाँ खरीदो और उनको अपने ने रैपर में डालकर किसी ऐसे डॉक्टर को पकड़ो और पैसे देकर लिखवाते रहो... एकदम सुनियोजित रैकेट!! बस उम्मीद की एक किरण यही है कि सारे डॉक्टर ऐसे नहीं...

manu said...

और खुल निकले दहाने ज़ख्मों के हैरत से, हाय..!
ठहरा वो ही चारागर, बीमार समझे हम जिसे..

डॉ महेश सिन्हा said...

मैंने कमेंट्स नहीं पढे हैं । सारे झगड़े की जड़ है डाक्टर को सुपर ह्यूमन या भगवान मानना और उससे वैसा ही व्यवहार करना । जब चाहा पूज लिया जब चाहे बजा लिया। डाक्टर नहीं हुआ धोबी का कुत्ता हो गया । एलेक्ट्रोनिक मीडिया जनता को एकतरफ़ी खबर दिखा कर , जनता को उत्तेजित और दिग्भ्रमित कर रहा है और सब तिगनी का नाच देख रहे हैं । कितने लोग हैं यहाँ जो अपनी गलती या गलती न होने पर भी मार खाने को तैयार हैं ?
इस देश के लोगों को नेताओं और अब उनके हाथ खेलने वाले एलेक्ट्रोनिक मीडिया की असलियत कब समझ आएगी । एथिक्स और कानून की खिचड़ी बनाकर समय काटना आसान है लेकिन ये कोई हल नहीं है समस्या का ।

Urmi said...

सही मुद्दे को लेकर बहुत ही सुन्दर रूप से आपने प्रस्तुत किया है! अधिकतर लोग डॉक्टर को भगवान का दर्जा देते हैं पर डॉक्टर तो आखिर इंसान होते हैं और मरीज़ को ठीक करने के लिए जी जान लगा देते हैं पर ऐसा भी वक़्त होता है जब डॉक्टर के हाथ में कुछ नहीं होता तब हम सिर्फ़ भगवान के भरोसे रहते हैं!

36solutions said...

क्या आपको भी लगता है की पेशे से चिकित्सक लोग कसाई होते हैं? नहीं
क्या डाक्टर का चाकू , मरीज का नासूर हटाता है या फिर क़त्ल करता है ?नासूर हटाता है
क्या डाक्टर को मारा-पीटा जाना चाहिए ? नहीं
क्या आपको लगता है की डाक्टर्स को कभी अपनी सुरक्षा और अधिकारों की मांग करनी चाहिए? अवश्‍य करनी चाहिए
क्या सरकार , डाक्टरों की सुरक्षा का कोई इंतज़ाम रखती है ? रखने की मंशा रखती है तभी तो अलग से चिकित्‍सा संबंधी कानून बनाए गए हैं
क्या डाक्टर के भी कोई मौलिक अधिकार अधिकार होते हैं? मौलिक अधिकार नागरिक के होते हैं, यदि डॉक्‍टर अपने आप को नागरिक समझते हैं तो हॉं
क्या डाक्टर्स की भी अपनी कोई निजी जिंदगी होती है? ये तो डॉक्‍टर ही जाने, क्‍योंकि कई लोगों की निजी निन्‍दगी नहीं होती
क्या आपने कभी सोचा की डाक्टर्स की पिटाई होती है , तो उनके भी बच्चे, पति या पत्नी, माता-पिता , भी दुखी , निराश और सहमे हुए होते हैं? सोंच के क्‍या कर लेगें, क्‍या सहानुभूति से कोई हल निकल पायेगा
क्या डाक्टर्स को कभी हड़ताल पर जाना चाहिए? कभी भी नहीं
क्या डाक्टर्स मानवीय संवेदनाओं से युक्त आपकी तरह मनुष्य होते हैं? एक प्रकार के प्रश्‍नों का बार बार प्रयोग, हम उत्‍तर दे चुके हैं और नहीं देंगें
क्या डाक्टर्स को सदैव परहित ही सोचना चाहिए, कभी अपने लिए नहीं ? परहित इलाज में सोंचना है, अपनी कमीज शेयर नहीं करनी है
क्या डाक्टर्स के सभी कर्तव्य मरीजों के प्रति होने चाहिए, अपने परिवार के प्रति नहीं ? परिवार के प्रति भी होनी चाहिए
क्या डाक्टर्स को कोई मारे तो भी , उसे चुप-चाप बर्दाश्त कर लेना चाहिए? गांधी जी के अनुसार एक गाल पे मारे तो ,दूसरा आगे कर देना चाहिए? गांधी जी बिचारे बेवजह पिस रहे हैं :)
क्या डाक्टर्स की हड़ताल गैर-वाजिब है? हड़ताल का कारण बताईये तब बतलायेंगें
राजस्थान में डाक्टर्स की हड़ताल के चलते बहुत से लोगों की मौत हो गयी। इसका जिम्मेदार ईश्वर है ?, या फिर सरकार ?, या फिर डाक्टर ? क्रमिक रूप से प्रथमत: डॉक्‍टर
क्या आपके घर में कोई डाक्टर है? डॉक्‍टर भी मनुष्‍य होते हैं, घर में ही होना आवश्‍यक नही
क्या आप अपने बच्चे को डाक्टर बनाना चाहते हैं ? अवश्‍य
क्या आप डाक्टर को इंसान समझते हैं? हॉं भई हॉं
क्या एक डोक्टर को दुःख होता है ? होता ही होगा
क्या एक डाक्टर से आपको सहानुभूति है? हॉं
क्या डाक्टर के भी कुछ मौलिक अधिकार होते हैं ? जवाब दे चुके हैं हम
क्या अपनी सुरक्षा के लिए आवाज़ बुलंद करना गैर-वाजिब है ? नहीं

ZEAL said...

.
आज सुबह चाय पर न्यूज़ सुनी, ---

तमाम जुर्म करने वाले [ चोरी, रेप , मर्डर आदि] कैदी , जेल के अन्दर हड़ताल पर हैं और अपने लिए लिए अच्छा खाना और कपडा मांग रहे हैं।

क्या ज़माना आ गया है ! आज कैदी की हड़ताल भी वाजिब है लेकिन मेडिकल विद्यार्थियों की नहीं, उन्हें चुप-चाप पुलिस और समाज के ठेकेदारों से पिटते रहना चाहिए।
..

ZEAL said...

.
अगर डाक्टर भी हड़ताल के बजाये इन गुंडों को पकड़कर पीट दे तो ?

[ Tit for tat ]

ये शराफत का रास्ता किस लिए ?

..

अजित गुप्ता का कोना said...

राजन जी, आपने मुझसे प्रश्‍न किया है लेकिन यह प्रश्‍न आप मीडिया से करें कि क्‍यों समाज में वैमनस्‍य पैदा कर रहा है? उनसे पूछे कि इस हडताल में रेजीडेन्‍ट डॉक्‍टर ही थे या अन्‍य वेतनभोगी चिकित्‍सक और कॉलेज स्‍टाफ? मीडिया तो हमेशा से ही अनावश्‍यक बवाल खडा करता रहा है लेकिन उसे फोलो करने वालों को भी तो कुछ सोचना चाहिए। भारत के डॉक्‍टर दुनिया के सर्वश्रेष्‍ठ डॉक्‍टर हैं और जितनी ये सेवाएं देते हैं दुनिया में कोई नहीं देता।

सम्वेदना के स्वर said...

मूल्यों का क्षरण हर ओर है तो चिकित्सक से बहुत उम्मीद किस मुहं से करें ?

बज़ारवाद का जो इंजेकशन इस देश को लगाया गया है उसके नशे में तो अब सब मदमस्त होकर झूमेंगें ही!

SKT said...

डॉक्टर भी आदमी है, उसमे भी ज्ञान और कौशल के साथ साथ त्रुटि और अकौशल भी होता है, जिसका खामियाजा मरीजों को भुगतना पड सकता है, पड़ता ही है . पर यह जान बूझ कर की गयी की कर्तव्य की अवहेलना से भिन्न है, पहले के उपाय के रूप में हमें खुद को किसी एक डॉक्टर के भरोसे नहीं छोड़ना चाहिए (यह मानते हुए की इसमें व्यावहारिक दिक्कते हो सकती हैं ) . दूसरे के सन्दर्भ में समाज द्वारा डॉक्टर की जवाबदेही तय की जानी चाहिए या जनता द्वारा सक्रिय निगरानी की व्यवस्था सुनिश्चित की जानी चाहिए ...डॉक्टर को भगवान बनाना शायद रोग का इलाज नहीं है.

शिवम् मिश्रा said...


बेहतरीन पोस्ट लेखन के बधाई !

आशा है कि अपने सार्थक लेखन से,आप इसी तरह, ब्लाग जगत को समृद्ध करेंगे।

आपकी पोस्ट की चर्चा ब्लाग4वार्ता पर है-पधारें

शिवम् मिश्रा said...


बेहतरीन पोस्ट लेखन के बधाई !

आशा है कि अपने सार्थक लेखन से,आप इसी तरह, ब्लाग जगत को समृद्ध करेंगे।

आपकी पोस्ट की चर्चा ब्लाग4वार्ता पर है-पधारें

राजन said...

@ajit ji,
apne mere ek bhi prashan ka tarkik jawaab nahi diya hai.kyonki kisike paas in baaton ka jawaab hai hi nahi.ulte aap netaon wali bhasha me mujhse hi kah rahi hai ki jao khud media se puch lo,media to hai hi aisa.
jab media doctors ki waajib maang par unki strike ka samarthan karta hai,jab unki sewaon ko upbhokta kanuno ke daayre me lane par doctors par padne wale atiriktdabaav par imaandari se chinta vyakt karta hai.is par editorials bhi prakashit karta hai,un par hone wali hinsa ka virodh karta hai to yahi media sar par bithane layak ho jata hai aur jab strike ke kaaran kuch marijo ko hone wali pareshani ka jikar karta hai,unke parijano ke interview prasarit karta hai to vaimnasya badhane wala ban jata hai.
strike par kaun ja raha hai aur kaun nahi kya ye jaankari media ko nahi toti hogi?aur kewal aap hi iske baare me jaanti hai? bina aag ke dhuaan nahi uthta.media se aa rahi khabron ko ekdam kharij bhi nahi kiya ja sakta.
doctors sewabhavi hai isse koi inkaar nahi kar raha,unhe bhi apne haq ke liye ladne ka pura haq hai mera kahne ka matlab sirf itna hai ki doctors aur sarkaar ke beech mareej kyo pis raha hai?
asha hai main apni baat sahi se rakh paaya hun.

सञ्जय झा said...

jo kuch bhi aap likhti hain....apni vichar se prerit hokar ......

jo tippni deta hain o aapki rachnao ke maddenazar
......

jo apko sambodhan(jo kuch bhi) deta hai o apni bhavnaon se prerit hokar....

oos sambodhan ki parvarish hoti hai apsi sahmati ke adhar par...
________________________________________________

mrs. zeal

kahin aapka kamment padha ..... blogwood se bante brothhood/sisterhood relation par aapko
sakht etraj hai.....

aapne apne blog ke aur doosre blog par bhi kuchek sajjano ko bhai/bahin/mai/baap/guru ityadi se samboghan kiya hai.....aur ab kinhi
karno se aap is "bhaichare' ko bhoolna chahti hain .....to besak bhool jaeeye .....lekin hum
sirf ek ke karn apne banaye hue(jo ati simit hai)'bhaichare ko khatm nahi kar sakte.

aap ke blog par aaoonga bhi(jab tak lekhni me dhaar hai)padhoonga bhi....tippni bhi doonga..
lekin sambodhan ? is par kamment anne ke baad..

भारतीय की कलम से.... said...

वन्दे मातरम !!
आपके द्वारा उठाया गया मुद्दा निश्चित ही ज्वलंत तथा विचारनीय है किंचित परिस्थितियों के करण डोक्टरों की स्थिति में परिवर्तन तो आया है तथा आज चिकित्सा जगत परोपकार के स्थान पर कमाई का जरिया बनता जा रहा है, मानवीय संवेदना घटती जा रही है ऐसी स्थिति में अगर किसी मरीज के द्वारा डॉक्टर पर कोई हमला किया जाना या उन्हें प्रताड़ित करना आम बात हो गयी है मेरी राय से इसके लिए दोनों पक्छ बराबर ही जिम्मेदार हैं पर हाँ किसी की भी जान कीमती है चाहे वह डोक्टर हो या मरीज परस्पर इस बात का ध्यान रखा जाना चाहिए|
आपके सार्थक लेखन के लिए अशेष शुभकानाएं तथा मेरे ब्लॉग में प्रवेश कर यहाँ तक आने का मार्ग प्रशस्त करने हेतु धन्यवाद |

भारतीय की कलम से.... said...

वन्दे मातरम !!
आपके द्वारा उठाया गया मुद्दा निश्चित ही ज्वलंत तथा विचारनीय है किंचित परिस्थितियों के करण डोक्टरों की स्थिति में परिवर्तन तो आया है तथा आज चिकित्सा जगत परोपकार के स्थान पर कमाई का जरिया बनता जा रहा है, मानवीय संवेदना घटती जा रही है ऐसी स्थिति में अगर किसी मरीज के द्वारा डॉक्टर पर कोई हमला किया जाना या उन्हें प्रताड़ित करना आम बात हो गयी है मेरी राय से इसके लिए दोनों पक्छ बराबर ही जिम्मेदार हैं पर हाँ किसी की भी जान कीमती है चाहे वह डोक्टर हो या मरीज परस्पर इस बात का ध्यान रखा जाना चाहिए|
आपके सार्थक लेखन के लिए अशेष शुभकानाएं तथा मेरे ब्लॉग में प्रवेश कर यहाँ तक आने का मार्ग प्रशस्त करने हेतु धन्यवाद |

ZEAL said...

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शैलेन्द्र जी,
नहीं जानती आप की बात का क्या जवाब दूँ। कुछ उलझनों में घिरी हुई हूँ। हो सके तो आप ही मार्ग दर्शन कीजिये। यदि कहीं मुझसे कोई भूल हुई है , या फिर आप का दिल दुखा हो तो उसके लिए माफ़ी मांगती हूँ।

@-भारतीय की कलम से,
आपका एवं हमारे नए पाठकों का स्वागत है।
.

priya said...

I am not fully aware of the news and could make out partially reading the blog and the comments.

A person should choose a profession knowing the pros and cons.

STRIKEs always happen due to i) disparity or ii) overburden.

If there is a diparity, government is to be blamed.

If overburdened, then there are two culprits equally.
a) Government:not looking at the ratio of doctors to patients.

Not opening more hospitals despite having resources in the country.

b)Hospital Administration (usually doctors):
Assigning duties to student doctors in inhuman (or contrary to any living being) ways by churning them round the clock; an impossible task according to medical and health.

Not restricting the intake of patients.

All this sprouts and nourishes frustration in the budding doctors which eventually becomes a negative trait in their characters.

Doctors are always good sometimes bad persons get a medical degree.

Introduction and expansion of CONSUMERISM (Erosion of Indian values) will lead to kharid-farokth even between a son/daughter and mother!
What to say about others!

Still keeping my belief alive in goodness and its existence in abundance.

Excellent blog as it leads to introspection.

BHOOL-CHOOK KSHAMA KARIYEGA

SAADAR PRANAAM

girish said...

doctor bhi manushya hai. ve bhi galati kar sakate hai. ve mahaan bhi ho sakate hain basharte ve naitikataa ke mahatv ko samajhe. keval paisa hi jinka lakshya hai, ve nirmam ho jate hai, lekin jo sochate hai, ki yah ek seva hai, ve nukasan bhi saha lete hai. lekin ab aise doctor kam hai. aap se aisi apekshaa kee ja sakati hai. kyonki aap divya hai...divyaa hai..

प्रतुल वशिष्ठ said...

एक डॉक्टर तब तक ही डॉक्टर है जब तक वह ईलाज करने के अपने कर्तव्य को निभा रहा है. यदि वह अधिक मात्रा में पीटा जाता है तो वह मरीज में कन्वर्ट हो जाएगा. तब उसे भी एक अन्य डॉक्टर की ज़रुरत होगी. इसलिये हड़ताल पर जाने वाले डॉक्टर मरीज होने की तैयारी में रहते हैं. उनकी मानसिक और दैहिक दोनों चिकित्सा करने की ज़रुरत है.
अंग्रेज़ी शासन के दौरान एक प्रसिद्ध व्यक्ति शिक्षक के पद पर कार्यरत थे. अंग्रेजों ने उन्हें वेतन देना बंद कर दिया. लेकिन उन्होंने अपना कर्तव्य नहीं छोड़ा. उन्हें पढ़ाने से प्रेम था. वेतन न मिलने से आजीविका चलना कठिन हो गया. लेकिन यदि वे उस समय कर्तव्य भी छोड़ देते तो अपनी जीजिविषा भी गँवा बैठते. बहरहाल उन्हें अंग्रेजों ने कुछ वर्षों में बाहाल कर दिया.
— अपने कर्तव्य को स्वभाव बना लिया जाए तो वह मोल-भाव की अपेक्षा नहीं रखता.
— डॉक्टरी पेशे में प्राथमिकता सेवाभावी लोगों को देनी चाहिए.
— डॉक्टरों की माँगें जायज़ हैं या नाजायज़. इस पर तो नो कमेन्ट. लेकिन मैं उनके स्वास्थ्य की सदा कामना करता हूँ. "वे कभी बीमार न पड़ें" "उनका व्यापार जोरों से चले" "उनकी शॉप पर मरीजों की संख्या न घटे" "सरकारी अस्पतालों में मरीजों को इतने चक्कर लगवा दें कि वह ठीक होने की खुद सोचने लगे." बीमारी में संकल्प और मनोबल काफी मदद करते हैं."
कसाई दो विधियों से पशु को मारता है — १] हलाल २] झटका.
डॉक्टर भी दो विधियों से रोगी को मारता है — १] ड्रग्स एक्सपेरिमेंट के ज़रिये विजिट-दर-विजिट मतलब हलाल, २] सब्जेक्ट के मरने के बाद दिन-दो दिन ICU में रखकर या सीधा ओपरेशन द्वारा मोटी रकम ऐंठकर.

डॉ. नूतन डिमरी गैरोला- नीति said...

bahut hee jabardast aur vichaarniya mudaa....

1) .. MAI YE KEHNAA CHAHUNGI ..SABHI SE...KYA DOCTOR INSAAN NAHI?

2) BACCHE.. MAA, PITA, ..KYA UNKI ( DR KI ) AASH AULAAD NAHI...

3) kYA DOCTOR SACH MEI BHAGWAAN HAI...? ... BHGWAAN SABKA AIK HAI... dOCTOR KAA BHI VAHI HAI .. DR BHAGWAAN NAHI... HAA VO INSAAN KI KHOJ SCINCE KE PEHLOOOVO KO SOCH KAR DIAGNOSIS BANATA HAI DWAI DETA HAI..... AUR HAMESHAA USI ISHWAR SE PRAARTHNAA KARTA HAI KI ..HAI BHAGWAAN USKAA MAREEJ SIGHRATISHIGHR KUSHAL HO JAYE...YE BAAT MAREEJ YAA USKA ATTENDENT NAHI JAANTA KI DOCTOR NE APNI MAREEJ KI CHINTAA SE KHANA NAHI KHAYA...


To ..phir doctor ko kyoo bali kaa bakraa bana kar bhagwaan ke saath taraajoo me tolaa jata hai...

mujhey aaj bhi yaad hai meri pyaari maa jo bahut serious achanak ho gayi theee.....jis ward me uneh admitt kiya gaya .vahi aik delivery case ayaa ......maine laakh samjhyaa ki meri maa serious hai vo nahi gaye vapas.....ki aap bhagwaan ho... ham raat ko aapke paas aaye hai...... meri maa ki aankho mei aik inkaar kee bhaavnaa thee pehli baar .. vo kuch baat karnaa chahati thee......apni aakhiri ichhahi ho.pita ji us samay vaha nahi they.... laikin mujhey uneh chodnaa padaa.....aur jab vapas aayi to unki halat itni kharaab theee ki vo lagbhag behosh thee......aaj bhi mai khood iske liye apne ko maaf nahi kar paati...

ye kya vo log jaan saktey hai... ve to kaam puraa huvaa gaye...... par meri aatmaa mijhey salti hai...

Kya doctor kaa apna adhikaar nahi..?..kya doctor naa kahe to maar khaaye...

aap log kyaa kehnaa chahenge...

डॉ. नूतन डिमरी गैरोला- नीति said...

mai aik doctor hoo.gynaecologist.. raat raat bhar kai raat binaa soye bitayi hai. ..mai apne personal experiences bata rahi hoo.....
mere pati surgeon hai jinko aaj tak ghar valo ne kabhi samay par khana khaatey huve nahi dekhaa..... subeh 6 baje se raatri 11 bajey tak lagaatar..aur raatri me bhi emergency.... koi kahe ki paise....nahi ye sevaa bhaav hai... aur din mei aadhe mareej to nishulk dekhtey hai.......kai gareeb mareej ko jeb se kharcha bhi dete hai.....ab jaise jaise umar bad rahi hai.sareer mai khud naa khaa pee kar kamjori aane lagi hai.....aur agar khana khne jana chahenge to piche se kuch log chillaa padte hai ki hame der ho rahi hai.atah khana bhi khaya hogaa to kabhi khade khade..bina chabaye ghunt liya... khudaa naa khstaa kabhi koi hadsaa nahi huva.......par mera mannaa hai doctor insaan hai.aur davaiya har mareej par aik jaisa asar nahi dikhati......... 1 plus 1 = 2 ho aisa jaroori nahi medical field mei..... to kabhi agar dawaa vo asar naa dikhaye to kyaa .pitaai khaani chahiye doctor ko.......bahut dookhad hai.samaaj me kab aayegi ye samajh...

Rahul Singh said...

इतना कुछ देख-पढ़ कर अपनी कोई बात बच नहीं रही है, इसलिए यह उद्धरण, जिसमें वैद्य भी शामिल है-
सांई बैर न कीजिए, गुरु पंडित कवि यार
बेटा, बनिता, पंवरिया, यज्ञ करावन हार
यज्ञ करावन हार, राज मंत्री जो होई
विप्र परोसी वैद्य, आपको तपै रसोई
कह गिरधर कविराय युगन ते चलि आई
इन तेरह सों तरह दिये बनि आवै सांई

ZEAL said...

.
डॉ नूतन,

आपने उस रात अपनी अंतिम सांसें गिनती माँ, को छोड़कर एक मरीज़ की गुहार को सुना पहले। इसके लिए , श्रद्धा से नत मस्तक हूँ। चिकित्सकों के जीवन में ऐसे बहुत से मोड़ आते हैं जहां हमें ऐसा फैसला लेना पड़ता है। और आपने एक सही फैसला लिया था उस कठिन घडी में।
लेकिन क्या उस व्यक्ति में मानवता थी , जो पहले सिर्फ अपने मरीज की जान बचाना चाहता था। क्या उसने मुड़ के देखा की उसके मरीज की जान तो बच गयी, लेकिन डॉ की माँ अब इस दुनियां में नहीं है ।

क्या लोगों में कभी शुक्रिया का भाव भी आता है ? क्या आज तक किसी डॉक्टर ने कर्त्तव्य नहीं निभाया?, कभी दोस्ती के चलते निशुल्क चिकित्सा नहीं की ?

कभी सोचिये एक डॉक्टर किन किन परिस्थियों से गुज़रहुए भी सेवाभाव से अपने कर्तर्व्य में जुटा रहता है । कभी करीब से देखिये तो आपके दिल में एक डाक्टर के प्रति सहानुभूति जागेगी।

..

ZEAL said...

.
मेरे कुछ पाठक , जिनकी मैंने इतने दूर से बैठकर , चिकित्सकीय सेवा की, बिना किसी लालच के, क्या उनमें कभी ये भावना जगी की यहाँ , इस `फोरम पर ख़ास करके इस चर्चा में वो अपने अपने अच्छे अनुभव लिखते ? क्या उपभोक्ताओं में भी इमानदारी है ?
.

ZEAL said...

.
प्रतुल जी,

१-एक चिकित्सक , अपने मरीजों पर एक्सपेरिमेंट नहीं करता। वो अपनी समझ एवं ज्ञान के अनुसार , अपना बेस्ट करना चाहता है।

२-मोटी रकम ऐंठने वाले कुछ चुनिन्दा डाक्टर्स होते हैं। सभी को एक तराजू में तोलना क्या उचित है ?
.

ZEAL said...

.
गिरीश जी,
कोशिश करुँगी की आपकी अपेक्षाओं पर खरी उतर सकूँ । स्नेह बनाये रखिये।
.

ZEAL said...

.
मुझे काफी समय से लग रहा था की लोगों को चिकित्सकों से काफी शिकायतें हैं, जिसका यथोचित उत्तर उन्हें मिलना चाहिए।

इस फोरम पर आप अपने मन की किसी भी जिज्ञासा एवं नाराजगी को बेहिचक लिखिए। जरूरी है की चिकित्सक एवं उपभोक्ता के बीच , बिना किसी पूर्वाग्रह के एक मधुर रिश्ता बने।

मीडिया क्या जाने चिकित्सकों का दुःख , न ही उसे मतलब है लोगों की परेशानियों से । मीडिया तो badha चढ़ा कर खबर बनता है ...ठीक करता है, इपने पेशे से इमानदारी। मीडिया से कोई शिकायत नहीं , लेकिन आप लोग तो सोच विचार कर निर्णय करें , की क्या डाक्टर्स को असंवेदनशील कहकर आप लोग अपनी असंवेदनशीलता का परिचय नहीं दे रहे ?

गत माह ट्रेन दुर्घटना में, फसे लोगों को कितने ही चिकित्सकों ने जो खुद भी हादसे का शिकार थे, उन्होंने मदद की।
..

ZEAL said...

मेल से प्राप्त एक टिपण्णी--


" All your questions about DOCTORS prick the conscience.
Rightly asked questions always result in correct answers.
Now readers will think twice before abusing any professional. "

..

ZEAL said...

..
एक बार अस्पताल में गाँव से कुछ मरीज आये थे। आठ महीने का बच्चा गोद में था। सीनियर डॉ ने जांच के बाद उसे मृत घोषित किया ...करून रुदन करते हुए बच्चे के परिजन कक्ष से निकल गए...सभी चुप थे । कक्ष में सन्नाटा छाया था। मेरी आँख में भी आंसू थे...

सीनियर डॉ ने कहा..." दिव्या रो नहीं - हानि, लाभ, जीवन , मरण , यश , अपयश विधि हाथ। "

उस दिन के बाद से आंसुओं को पीना सीख लिया।
..

राजन said...

main pratul ji ki abhadra tippanee ka virodh karta hun.

ZEAL said...

.

@ राजन,

डाक्टर एवं उपभोक्ताको पूरा अधिकार है अपनी बात रखने का। यही वो फोरम है जहाँ हर कोई सम-भाव से तथा पूरी स्वतंत्रता से अपनी बात रख सकता है, मैं कोशिश करुँगी , सभी के संशय और डाक्टर्स के प्रति नाराजगी/ग़लतफहमी को दूर करने की। प्रतुल जी ने अपनी बात कही है। हो सकता है उनका कुछ ऐसा अनुभव रहा हो। आशा है उनकी राय भी बदलेगी । साथ ही चिकित्सकों को भी समझना होगा , की लोग उनसे कितनी आशा रखते हैं, और चिकित्सकों को और भी संवेदनशील होने की जरूरत है।
..

Coral said...

Noteworthy

Unknown said...

Legally we can’t give credit to any other person apart from a doctor, for a patient’s death in the hospital.

If ever we are interested to give a credit, that goes to the patient himself ( for his uncaring nature of maintenance of his body or a natural death).

So if Junior doctors are responsible ( partially during strikes) for patients deaths, then who are responsible for doctor’s death ( not physical but the death of survival), definitely who regulate their wages thus regulating there social life standards , broadly , A government body.

So why people are voting to the members of these bodies who are not proactively predicting the future problems of doctors whose non-attendance will end up in human’s death. In fact these are the only professional group of people without whom any country can be tagged as a below poverty state.

Government can delay decisions against the strikes ( often done) by Labor unions of Road transport department or even they can delay hiking prices to MP’s ( from gross of around 40 lakhs per annum to almost more than 60 lakhs per annum !).

I mean the delay at these junctions can be worth, but a doctor’s profession is operatively linked to a person’s death, which should be avoided all the times ( no matter what there demands are , the point is to speed up the productive ‘Communication’)

I admired the way 'Zeal' has put the content of her article in form of a questionnaire..she didn’t concluded the scenario rather ended up with set of questions , to which there are absolutely no answers. But there should be a systematic change in the government system which should work on emotional priorities rather than commercial or political priorities.

ZEAL said...

Nirgun ji,

Thanks for your valuable comment. Indeed very encouraging.

Welcome on my blog.

Regards,
.

निर्मला कपिला said...

mujhe aasheesh kaa javaab sab se vaajib lagaa| magar log bas ek tarafaa soch kar emotional ho jaate hai| bahut achhe savaal hai| shubhakaamanaayeM

ZEAL said...

.

@ Harsh Mahajan-

It's been a long time seeing you here. Thanks and welcome again.

I published your wonderful comment here but unfortunately i am unable to see it here. I do not know how it happened, but there is some technical error. Kindly pardon me for this unintentional mistake.

..

निर्मला कपिला said...

मुझे आशीश जी का जवाब सब से वाजिब लगा। लोग केवल एक तरफा बात कर के एमोशनल हो जाते हैं ये भी नही सोचते कि डाक्टर आजकल किन परिस्थितियों मे काम कर रहे हैं। बहुत अच्छे लगे आपके सवाल। शुभकामनायें।

प्रतुल वशिष्ठ said...

सत्य कुछ और भी हो सकता है. लेकिन जो भी कहा अनुभव से कहा :
— मैं फिलहाल मेक्स ग्रुप की एक रिसर्च कम्पनी 'मेक्स नीमन मेडिकल इंटरनेशनल' में कार्यरत हूँ. इस कारण काफी कुछ जानता हूँ.
जितने भी डॉक्टर मेरे संपर्क में हैं सभी व्यावसायिक मानसिकता के हैं.
100 प्रतिशत डॉक्टर पैसे के लिये पागल दिखे. हाँ, मैं मानता हूँ कि वे ट्रीटमेंट करते हुए ज़रूर सेवाभावी होते होंगे. नौकरी के अलावा अपना व्यक्तिगत क्लीनिक चलाना ग़लत नहीं लेकिन केवल टेस्ट और ट्रीटमेंट के नाम पर लूटना सही नहीं.
वे बातचीत में स्वीकारते हुए हँसते हैं कि फलाने से इतने ऐंठे. कभी तो सामने ही अपने क्लीनिक असिस्टेंट को फोन पर इंस्ट्रक्शन देते हुए सुने गये हैं 'एक लेडी आयेगी उससे बोलना डॉ. साहब रात ८ बजे मिलेंगे, टेस्टों की रिपोर्ट तभी मिल जायेगी, अभी ५०० रुपये दे जाइए. मुझसे बात करवा देना.' फोन पर बात करवाने से मरीज का डॉक्टर के प्रति विश्वास बढ़ता है."
— ऑफिस में केस रिपोर्ट फॉर्म [CRF ] आते हैं. वे इन्वेस्टिगेटर के द्वारा भरे जाते हैं. मरीज़ का विजिट-दर-विजिट पूरा डाटा कलेक्शन किया जाता है. मैं हमेशा ही डॉक्टर्स से घिरा रहता हूँ. चिकित्सक ज़मीनी भगवान् है मानता हूँ लेकिन वह अपने कर्तव्यों का कहीं-कहीं ही निर्वाह कर रहा है.
— हर डॉक्टर अपना नर्सिंगहोम बनाने की ख्वाइश लिये है. अधिक से अधिक पैसा कमाने की चाह उन्हें हमेशा रहती है. किसी को भी भावनात्मक रूप से कमज़ोर नहीं पाया. शायद उनकी भावनात्मक मजबूती ही उन्हें भविष्य में बड़ा डॉक्टर बना देती है.
— मेरी पिछली टिप्पणी में राजन जी नाराज़ हो गये. मैंने पुनर्विचार किया तो पाया शायद मेरी विनोदमयी शैली ऐसे नाज़ुक विषय पर प्रयोग नहीं की जानी चाहिए थी. मैं क्षमा माँगता हूँ. राजन जी से और आपसे भी. भविष्य में सावधानी बरतूंगा.

राजन said...

@pratul ji,
shabdon ka galat chayan kai baar hame pachtane par majboor karta hai.isika ham sabko hi dhayaan rakhna chahiye.mujhe vishwaas hai aap ek achche insaan hai aur samvednayen rakhte hai.
@divya ji,
mujhe lagta hai is baare me paryapt bahas ho chuki hai sabne apne apne tark rakhe hai.ab mujhe lagta hai ek nai post ka samay hai.tab tak ke liye aagya dijiye.

manu said...

डॉक्टर क्या...
कई जगह तो हमने ..लीडर्स...पुलिस्...स्मगलर्स..ब्लोग्गेर्स...मिनिस्टार्स..कमेंत्तेतरस (टिप्पणी दाता )... तक को ..
सबको माफ़ किया हुआ है....

आप लोग डॉक्टर्स पर इतना हल्ला कर रहे हैं...

manu said...

डॉक्टर क्या...
कई जगह तो हमने ..लीडर्स...पुलिस्...स्मगलर्स..ब्लोग्गेर्स...मिनिस्टार्स..कमेंत्तेतरस (टिप्पणी दाता )... तक को ..
सबको माफ़ किया हुआ है....

आप लोग डॉक्टर्स पर इतना हल्ला कर रहे हैं...

Urmi said...

आपको एवं आपके परिवार को गणेश चतुर्थी की शुभकामनायें ! भगवान श्री गणेश आपको एवं आपके परिवार को सुख-स्मृद्धि प्रदान करें !

ASHOK BAJAJ said...

बहुत अच्छी प्रस्तुति .आभार

डा० अमर कुमार said...
This comment has been removed by the author.
डा० अमर कुमार said...
This comment has been removed by the author.
ZEAL said...

.

प्रतुल जी ,

The hundred percent - [100 %]

सौ प्रतिशत कंडोम कारगर नहीं होते ,
सौ प्रतिशत कॉपर-टी कारगर नहीं होती
सौ प्रतिशत आपरेशन सफल नहीं होते ।
सौ प्रतिशत मुस्लिम आतंकवादी नहीं होते,
सौ प्रतिशत जज इमानदार नहीं होते,
सौ प्रतिशत बच्चे बुद्धिमान नहीं होते,
सौ प्रतिशत सासें बुरी नहीं होती ,
सौ प्रतिशत क्रिकेटर मैच फिक्सर नहीं होते,
सौ प्रतिशत शिक्षक कर्तव्यपरायण नहीं होते,

क्या एक भी डाक्टर नहीं जो सेवा-भाव से चिकित्सा कर रहा हो ? क्या दुनिया इतनी ही बुरी है ?

...

Rohit Singh said...

दिव्या जी बात मुझे लगता है कि व्यक्तिगत होती जा रही है। मीडिया भी उतना ही जिम्मेदाराना कमा है जितना कि चिकित्सा का। मीडिया हर बार ही बढ़ाचढ़ा कर नहीं दिखाता।
2
ये हकीकत है कि जोधपुर औऱ दिल्ली में इलाज न करने के कारण ही मौते हुईं। दिल्ली की हड़ताल से मैं लगातार वाकिफ था।
3
जैसा कि पहले वाली टिप्पणी में मैने बताया कि जौधपुर मे 8-9 नवजात बच्चों कि मौत पर डॉक्टर महाशय कि टिप्पणी थी कि ये तो रोज की बात है, जबकि दो बच्चों औऱ एक महिला की मौत की पड़ताल में पता लगा कि डॉक्टर ने कह दिया कि हड़ताल है हम इलाज नहीं करेंगे कहीं और ले जाओ।
4
मेरे कई लोग हैं जानपहचान के डॉक्टर हैं, पर मानिए आप जैसा हर कोई नहीं। रात को फोन बंद करना असंभव हैं।
5
सेना हड़ताल नहीं करती। पर सेना के जवान बुरी तरह प्रताडि़त होने के बाद भी काम करते हैं। सेना में गिरावट आ रही है तो चिकित्सकों की बात क्या कहना।
6
महानगरों में अधिकतर डॉक्टरों ने पैसे को अपना धर्म बना लिया है ये सौ फीसदी सत्य है। व्यक्तिग तौर पर 100 से ज्यादा डाक्टरों से बातचीत के बाद का मेरा ये अनुभव है। क्या ये संख्या कम है?
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ये सत्य है कि सरकारी अस्पतालों में डॉक्टरों की सुरक्षा का काम सबसे ढीला है।
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कुछ उदाहरण किसी पेशे कि विश्वसनीयता नहीं गिरा देते। पर क्या आप जानती हैं कि दिल्ली जैसे महानगर में भी बिना इलाज के कारण लोगो की मौत होती है। हाल में एक डॉक्टर ने बच्चे का इलाज इसलिए नहीं किया कि उससे बदबू आ रही थी।
9
आपने संगीनों के साये में ईलाज करने की बात कही है। आप महिला हैं उसपर वैसा इलाज करना निंसंःदेह कष्टकर होती है। पर चिकित्सकों की तरह ही मीडिया का काम भी काफी जिम्मेदारी वाला है। क्या आप जानती हैं कि पैसे वाले पत्रकारों के से ज्यादा पत्रकार सच्च का साथ देने के कारण गोली का शिकार हो चुके हैं।
10
माफिया के बीच रहकर खुलकर उनकी मुखालफत करने के कारण कई पत्रकारों कि लाशों का पता नहीं चल पाया। सरकार पत्रकारों को उठा कर जेल में डाल देती है। बताइए क्या डॉक्टरों के साथ ऐसा होता है। नहीं न।
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अधिकारिक तौर पर नहीं, पर व्यक्तिगत तौर पर मैं पत्रकारिता में काफी सक्रिय हूं। जिसक कारण मैं कई कड़वी हकीकत से रुबरु होता हूं...औऱ सही जानिए नेता, प्रशासन से कम कड़वा अनुभव मेरा डॉक्टरों को लेकर भी नहीं रहा है।
11
एक हकीकत सुनिए ..दिल्ली के सबसे बड़े अस्पताल में से एक वीआईपी अस्पताल के इमरजेंसी के पास ईसीजी रुम में नाइट शिफ्ट के डॉक्टर रंगरेलियों में मशगूल थे....उनको ढूढने में लगे समय के कारण मौत अपना काम कर चुकी थी। और कमरे का दरवाजा खूलने से पहले डॉक्टर साहब खिड़की से कूद कर भाग चुके थे अपने पीछे महिला डॉक्टर या नर्स को छोड़कर।


तो ऐसे कई उदारहण है....कोई उदारहण किसी पेशे में लगे हर किसी कि ईमानदारी पर निशान नहीं लगाता..पर बहुतायत में होने वाले वाकये सोचने पर तो मजबूर कर देते हैं न।

अंतिम
बात व्यक्तिगत न होकर सार्वजनिक है..ये अच्छी बात है। ताली एकहाथ से नहीं बजती। सरकारी अस्पतालों में बिना शक डॉक्टरों की सुरक्षा व्यवस्था बिल्कुल लचर है. जिसे दुरुस्त करने की जरुरत है। मरीजों के तीमारदारों की भीड़ की इजाजत नहीं होनी चाहिए। इसके लिए ईमानदार प्रयास सरकारी स्तर पर होना चाहिए। मगर साथ में डॉक्टरों को खुद अपनी छवि को सुधारने का प्रयास करना होगा......

ZEAL said...

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रोहित जी,

डाक्टर इंसान होते हैं, उनमें परफेक्शन ढूंढना , उनके साथ ज्यादती होगी। मानवीय दुर्गुण उनमें भी होते हैं, किसी स्त्री को देखकर यदि किसी पुरुष चिकित्सक ने अभद्र व्यवहार किया तो यह निश्चय ही निंदनीय है, लेकिन हर पुरुष चिकित्सक , नर्स और महिला डाक्टर के साथ प्रेम सम्बन्ध नहीं रखता। रंगरेलियां मनाना उस व्यक्ति का मानवीय दुर्गुण है।

यदि बहुत सी मौतें हड़ताल के चलते हुई , लो लोग डाक्टर्स को पीटने के पहले सोचते क्यूँ नहीं ?, डाक्टर को मारेंगे पीटेंगे तो क्या डाक्टर दुम दबाकर चिकित्सा करने लगेंगे, अपनी सुरक्षा की गुहार भी नहीं करेंगे?

कुछ डाक्टर ने निसंदेह , इसे व्यवसाय बना रखा है, लेकिन जनता क्यूँ जाती है ऐसे डाक्टर के पास ?। क्यूँ नहीं जाती सरकारी अस्पताल में , जहाँ पढ़े-लिखे काबिल डाक्टर उनकी चिकित्सा के लिए बैठे हैं ? जिनके पास मुफ्त का पैसा है, वही जाते हैं इन व्यापारी डाक्टर के पास। जो बढ़ावा दे वो गलत है।

आपने अपने अनुभव लिखे , बहुत अच्छा लगा, लेकिन क्यूँ आप लोगों की पहुँच बड़े बड़े चिकित्सकों तक ही है ? कभी मामूली एवं गरीब चिकित्सकों से भी मुलाकात कीजिये। जो निष्ठां के साथ अपने दाइत्व का वेहेन कर रहे हैं।

एक अनुभव मेरा भी-
मेरे चाचा जी , [डॉ पि एन सिन्हा ], जो दिल्ली में हैं, प्रत्येक इतवार को पास के गाँव में जाकर निशुल्क चिकित्सा भी करते हैं और गरीबों में फल भी बांटते हैं।

आभार।

..

अजय कुमार झा said...

बहुत दिनों बाद लौटा हूं , देखा तो पिछले दिनों बहुत सारी बहस हुई है और बहुत सारी बातों पर हुई है । खैर, जहां तक चिकित्सकों की बात है , तो जब भी इस तरह के प्रश्न उछलते हैं , फ़िर चाहे वो चिकित्सक हों , पुलिस वाले हों , अधिवक्ता हों , शिक्षक हों.............और सब भी........आखिर आए कहां से हैं ..इसी समाज से, हमारे आपके बीच से , हमारे में से ही किसी परिवार से .....और फ़िर सबसे बडी बात कि यदि इंसान ही अच्छा नहीं हो तो ..वो किसी भी पेशे में रहे अच्छा नहीं ही होगा ....सार्थक बहस करती कराती पोस्ट....

ethereal_infinia said...

Dearest ZEAL:

I firmly believe there is nothing wrong at all in the fact that doctors are materialistic.

In fact, they should earn the most because they have studied the hardest. They are in the elite group of people academically and that is the reason they are doctors while others are merely doing lesser things.

The biggest asset of the doctors is their intellect and globally the buzz word is 'Intellectual Property'.

What the hell is that of any use, if it does not garner moolah?

All the people here who are criticizing doctors for being materialistic, are essentially jealous that they can never earn that much.

The simple cockroach story is repeating itself. Because other cockroaches can't climb that high, they pull the legs of the ones that are capable of going high and thereby trying to keep them grounded too.

Our slow pace of progress and massive brain-drain is courtesy this very trait in the people whose representative sample can be seen here opposing the doctors' demands.

I strongly commend and heartily applaud any person who goes abroad to pursue his/her career because his/her true worth is appreciated there.

Another thing is that intellect brings a degree of attitude and if that offends someone, it does not mean the person is bad.

If a doctor has refused treating someone owing to the strike, it is his/her allegiance to the cause and not his irresponsibility towards the patient.

People conveniently forget to see that.


Arth Desai

S.M.Masoom said...

मजबूरी का फैदा आज सभी जगह लिया जा रहा है. इंसान मजबूर है, बीमारी मैं डॉक्टर जो कहे उसको मानने के लिए. डॉक्टर को भी और इंसानों की तरह पैसा अधिक प्यारा हुआ करता है, इंसानों की जान से. जैसे की नेताओं को कुर्सी अधिक प्यारी हुआ करती है, इंसानों की जान से.
शायद आज के युग मैं ला इलाज मर जाना अधिक अच्छा है, डॉक्टर के पास जा के मरने से.

डॉ महेश सिन्हा said...

भारत के भूतपूर्वे सतर्कता आयुक्त का बयान है की इस देश में 30% लोग भ्रष्ट हैं और 50% इसकी दहलीज पर खड़े हैं । अब जो भी लोग डाक्टर, इंजीनियर, अफसर, नेता बनेंगे तो इस देश के ही होंगे।
मीडिया के लिए डाक्टर एक सॉफ्ट टारगेट है । इसका वह बखूबी उपयोग करता है जनता को उकसाने के लिए। सरकार गरीबों के देने के बजाय अनाज सडा दे उसमें उन्हे कोई स्टोरी नजर नहीं आती । इनके स्टिंग ऑपरेशन भी प्रायोजित होते हैं ।

प्रतुल वशिष्ठ said...

दिव्या जी,
जीवन विशाल है, बचपन से अब तक कई बार बीमार भी पड़ा हूँ. डॉक्टर और वैद्यों की शरण ही में गया हूँ. ठीक भी हुआ हूँ. कृतघ्न नहीं हूँ. ठीक होने के बाद धन्यवाद भी देने गया हूँ. यदि यह कहूँ कि माँ की सेवा के बाद यदि मुझे किसी की तीमारदारी ने ठीक किया था वह डॉक्टरी चिकित्सा ही थी. परन्तु जब एक भी डॉक्टर सेवाभावना के विरोध में स्वर निकालता है तब यह मेरे क्रोध के चड़ते पारे की तरह १०० का आँकड़ा पार कर जाता है. वास्तविकता चाहे प्रतिशत में ५% ही क्यों ना हो.
तात्कालिक अनुभवों से भी प्रतिशत बढ़ जाता है. आपके सभी प्रति प्रश्न उत्तरों की अपेक्षा नहीं करते. वे उत्तर ही हैं.
दुनिया बेहद सुन्दर है. हाँ, मुझे एक डॉक्टर तो मिल ही गया है जो प्रतिक्रिया तुरंत देता है. वह भी निःशुल्क. क्रोध में भी प्रेम से भरा हुआ.

Kailash Sharma said...

You have raised very important questions on the medical profession. It will not be proper to take one sided view. Doctors are also human beings and they have also got their personal life, which cannot be denied to them. It is a very noble profession, but every profession is so to some extent. Then why should we expect that only Doctors will adhere to their oath, when others have completely forgotten their duties? If the grievances of the doctors are not redressed by the bureaucrats or the public dont appreciate their genuine limitations in treating the patients, then the doctors have no optin but to go on strike. There may be some black sheeps in the profession, but we should not forget their services to the humanity. All the points raised are very serious and need indepth consideration by all concerned.
http://sharmakailashc.blogspot.com/

Surendra Singh Bhamboo said...

डॉक्टर को एक भगवान के रूप में जाना जाना चाहिए क्योकि वह इंसान को बिमारी से निजाद दिलाकर दुसरा जन्म देता है। हालाकि कुछेक अपवाद भी हाते हैं जो पुरे वर्ग विशेष को दाग लगा देते है।

Yashwant R. B. Mathur said...

ब्लॉग जगत के सुधि एवं विद्वान लेखकों/रचनाकारों को मेरा अभिनन्दन!
प्रस्तुत है मेरा नया ब्लौग- (jeevanparichay.blogspot.com )ये ब्लॉग आपका है और आपके लिए है.वर्तमान समय में हमारा आप का प्रोफाइल अपने ब्लॉग पर दिखता तो है किन्तु हम एक दूसरे के बारे में विस्तार से नहीं जान पाते.इन्टरनेट पर अभी तक कोई ऐसा ब्लॉग नहीं हैं जिस पर ब्लौग लेखकों का कोई प्रमाणिक जीवन परिचय उपलब्ध हो.अगर आप ब्लौग लिखते हैं तो अपना विस्तृत जीवन परिचय इस ब्लौग पर उपलब्ध करा सकते हैं.प्रक्रिया बहुत ही आसान है-
(१) अपने मेल आई.डी.पर लॉगिन करें।
(२)TO वाले कॉलम में इस ब्लौग का I D इस प्रकार डालें jeevanparichay.mera.sanklan@blogger.com
(३) subject वाले कॉलम में अपने जीवन परिचय का शीर्षक दें।
(४)Message body में अपना जीवन परिचय (बिना संबोधन सूचक शब्दों के)हिंदी या अंग्रेजी में टाइप करें फॉण्ट साइज़ large रखें।
(५)और सेंड कर दें।
आपका जीवन परिचय इस ब्लॉग पर तत्काल प्रकाशित हो जायेगा.भविष्य में किसी प्रकार की एडिटिंग करने हेतु आप इस ब्लॉग के प्रोफाइल में दिए गए id पर मेल कर सकते हैं।कृपया इस ब्लौग के बारे में अपने साथी ब्लौगर मित्रों को भी बताने का कष्ट करें.
धन्यवाद!

Manoj K said...

एक इन्फो शेयर करना चाहता हूँ - भारत सरकार ने एक ऑर्डर पास किया है जिससे उन सारी दवाइयों की MRP पर एक अपर लिमिट सेट की हुई अर्थात फलां फोर्मुले वाली गोली या कैप्सूल या पिने का सिरप की कीमत. इस को DPCO कहते हैं. इसका एक उदहारण देता हूँ - becosoules कैप्सूल भारत में सबसे ज़्यादा बिकने वाली दवा है. इसकी कीमत काफी समय से नहीं बढ़ी है. यह DPCO के अंतर्गत आता है. वहीँ बी.पी. और एंटीबायोटिक्स की कीमत ५ साल में दुगनी हो जाती है.

इस आर्डर को लाने का कारण सिर्फ इतना था की दवा बनाने वाली कम्पनियाँ अपनी मनमानी ना कर सके और आम आदमी को सही दवा सही दाम में मिल सके.

ऐसा कोई आर्डर डॉक्टर कम्युनिटी के लिए भी बने और उसकी पालना हो !!

शोभना चौरे said...

दिव्याजी
पहले भी टिप्पणी कर चुकी हूँ और इतनी व्रहद चर्चा के बाद बहुत सी बाते आपके प्रश्नों के जवाब में पढ़ी जो अपने अपने अनुभव के आधार पर अपनी अपनी जगह उचित है |
हमारा इतना बड़ा समाज ,जिसमे शिक्षित, अशिक्षित, धनवान, गरीब ,ग्रामीण ,शहरी सभी लोगो के जीवन में डाक्टर की जरुरत के अनुसार भूमिका रही है और रहेगी किसी को हर समय डाक्टर की जरुरत रहती है तो किसी का जीवन बिना डाक्टर के पास जाये ही बीत जाता है |समाज में बहुत सम्मानीय पेशा समझा जाता रहा है डाक्टरी (आम लोग यही शब्द प्रयोग करते है )हाँ डाक्टर भी इन्सान ही है सर्वप्रथम और जब वह डाक्टरी का पेशा चुनता है तो तो उसकी खुद की अपेक्षाए और उससे समाज की अपेक्षाए बढ़ जाती |शरीर बिज्ञान और प्रक्रति दत्त जीवन के अनोखे संगम को नित नयी खोज से मनुष्य को स्वस्थ और दीर्घायु बनाने की प्रक्रिया निरंतर चलती रहती है |जिसमे डाक्टर अपना महत्वपूर्ण योगदान दे रहे है |वो तो आप बेहतर जानती ही है इसमें कुछ लोगो ने ज्यादा मुनाफा कमाना अपना अधिकार समझ लिया है या जो अपने कर्तव्य से विमुख हो गये है उनको आपके पश्नो का का फायदा नहीं मिलना चाहिए किन्तु जो इस पेशे में अपन कर्तव्य निबाहते है वो सच्चे मानव है और उन्हें भी वाही सम्मान मिलना चाहिए और उनकी भवनों की भी उतनी ही कदर होना चाहिए जो अक सैनिक की होती है |असल में पूरी चर्चा पढ़कर मुझे माँ शारदा (ठाकुर रामक्रष्ण परमहंस की सहधर्मिणी )की एक बात यद् हो आई जो उन्होंने अपनी एक भक्त महिला से कही थी |माँ जब dkhineshvar (कोलकाता)में थी तब उनके पास एक भक्त महिला जो एक चिकित्सक की पत्नी थी आई और प्रणाम कर कहने लगी- माँ मुझे ऐसा आशीर्वाद दीजिये की आपके बेटे की आमदनी बढे |माँ ने कहा -बहू मै ऐसा आशीर्वाद कैसे दे सकी हूँ
?जिससे सभी अस्वस्थ होकर कष्ट पाए मै तो ऐसा नहीं करुँगी बेटी - सभी सुखी रहे और जगत में मंगल हो |

ZEAL said...

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आदरणीय शोभना चौरे जी,

आपका, (ठाकुर रामक्रष्ण परमहंस की सहधर्मिणी ) , वाला प्रसंग बहुत ही प्रेरक लगा।

आभार।
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ZEAL said...

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डॉ अमर,
मोडरेशन लगाने का खेद है। लेकिन मेरी मुश्किल घडी में कोई साथ नहीं था, इसलिए मजबूरी में अपनी जंग अकेले लड़ने के लिए इस हथियार का सहारा लेना पड़ा।
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ZEAL said...

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@-ऐसा कोई आर्डर डॉक्टर कम्युनिटी के लिए भी बने और उसकी पालना हो !!

मनोज जी,

ऐसा कानून , ना सिर्फ चिकित्सकों के लिए हो , अपितु सबके लिए हो तो [ शिक्षक, वकील , व्यापारी, नेता, अभिनेता आदि ], ये धरती स्वर्ग से भी बेहतर जगह हो जायेगी ...

आभार।

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संजीव गौतम said...

जील जी
आपका ब्लाग अच्छा लगा। आप चिन्तनशील महिला हैं। आपको पढ़कर अच्छा लगा। एक ‘ोर याद आ रहा है-
हर जगह हैं गैर जिम्मेदार लोग,
हर जगह हैं लोग जिम्मेदार भी।

डा० अमर कुमार said...


आदरणीय डॉ. दिव्या जी,
मॉडरेशन को लेकर यह आपका व्यक्तिगत निर्णय हो सकता है, मेरा क्या दख़ल ?
पर जहाँ भी ऎसा उपक्रम दिखेगा, मेरी असहमति दर्ज़ रहेगी । आपको कोई ऎतराज़ ?
चयनात्मक परिसँवाद ( सेलेक्टिव इन्टर-एक्शन ) कूप-मँडुकीय बुद्धिजीवी शगल मात्र है, जहाँ कहीं खतरे का आभास हुआ.. पानी में छलाँग मार कर दुबक गये ! अनपढ़ मरीज़ों, रँगकर्मी मित्रों से लेकर साहित्य गोष्ठियों के पुरोधाओं ने मुझे जो आलोचनायें दीं, विरोध में मुहिमें चलायीं.. वह कितनी कारगर रहीं शायद वह नहीं जानते । उन्होंनें रोड-रोलर की तरह कार्य करते हुये मुझे वह दृढ़ आधार दिया, जहाँ पर मैं खड़ा हूँ । शुभरात्रि !
बल्कि शुभ-प्रभात कहना अधिक श्रेयस्कर रहेगा, शायद !

Rohit Singh said...

“””@ किसी स्त्री को देखकर यदि किसी पुरुष चिकित्सक ने अभद्र व्यवहार किया तो यह निश्चय ही निंदनीय है, लेकिन हर पुरुष चिकित्सक””””” ,
मैने हर चिकित्सक की बात नहीं की है। उपरोक्त कांड में दोनो पुरुष औऱ स्त्री सम्मिलत थे। पर जरा सोचिए इमरजेंसी जैसी जगह के पास इस तरह की हरकत देख लोग क्या करेंगे।

“”””@लो लोग डाक्टर्स को पीटने के पहले सोचते क्यूँ नहीं ?, “”””
इसका विरोध सारा समाज कर रहा है दिव्या जी। सवाल सिर्फ हड़ताल का है। डॉक्टरों की सुरक्षा के लिए मीडिया लगातार प्रशासन और नेताओं को कठघरे में खड़ा कर रहा है। पर लोग हमेशा नेगेटिव रिपोर्ट पर ही ध्यान देते हैं।

“”””@ कुछ डाक्टर ने निसंदेह , इसे व्यवसाय बना रखा है, लेकिन जनता क्यूँ जाती है “”””
कई लोग सिर्फ इसलिए जाते हैं की सरकारी अस्पताल में भीड़ ज्यादा न हो। मध्यम वर्ग बहुत पैसे वाला नहीं होता।

“”””@ लेकिन क्यूँ आप लोगों की पहुँच बड़े बड़े चिकित्सकों तक ही है ? “”””
मेरा पेशा ऐसा है जिसका एक सिरा वंचित लोगों से जुड़ता है तो दूसरा शीर्ष पर बैठे लोगो से। मेरे सीधे परिचय में ज्यादा प्राइवेट डॉक्टर नहीं हैं। जो हैं सरकारी हैं. क्योंकी आज तक कोई भी प्राइवेट डॉक्टर गरीब तो छोड़िए निम्न मध्यम वर्गे के लोगो के इलाज के लिए पैसे से समझौता नहीं करता। ये मेरा व्यक्तिगत अनुभव है कि दोनो सिरे के बीच जो खाई है उसे बीच के लोगो ने बढ़ा रखा है।

“”””@ कभी मामूली एवं गरीब चिकित्सकों से भी मुलाकात कीजिये। जो निष्ठां के साथ अपने दाइत्व का वेहेन कर रहे हैं“”””
हकीकत है कि ऐसे लोग महानगरों में काफी कम हैं। अगर आपके पास ऐसे लोगो की लिस्ट हो तो मुझे जानकारी दें। मैं तो ऐसे लोगों कि तलाश में रहता हूं जो निस्वार्थ सेवा का महत्व समझते हैं।

“”””@ चाचा जी , [डॉ पि एन सिन्हा ], “”””
मुझे उनका पता दीजिए। उनसे मिलकर जहां मुझे काफी खुशी होगी वहीं कुछ और वंचित लोगो का भला हो जाएगा।

“”””@ आपने अपने अनुभव लिखे , बहुत अच्छा लगा“”””
दिव्या जी मेरे अनुभव सिर्फ मेरे नहीं होते। मेरे काम के कारण ये सामूहिक अनुभव होते हैं। सामूहिक त्रासदी होती है।

@ बाकी टिप्पणी
लोग हजारों रुपये दारु पर खर्च करतें है। अय्य़ाशी के लिए एक रात में वेश्या के यहां 50,000 रुपये तक खर्च कर देते हैं। पर कितने लोग हैं जो 2 रुपये में भी अखबार खरीदते हैं।

ईमानदार अखबार जनता के सहयोग पर चलते हैं पर अफसोस लोगो के लिए पांच रुपये का अखबार महंगा होता है। हद है कथित और हवाई ईमानदारी की।

ZEAL said...

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आदरणीय रोहित जी,

१- सभी पुरुष चिकित्सक रेपिस्ट नहीं होते। जो ये घिनौनी हरकत करते हैं , वो चिकित्सक कहलाने के हक़दार नहीं हैं। समाज को इस तरह शर्मसार करने वाले पुरुष हर वर्ग में हैं। ऐसे लीगों के डिग्री छीन लेनी चाहिए , ताकि वो महिला मरीजों तथा स्टाफ नर्स के साथ , अभद्र व्यवहार न कर सकें।

रोहित जी , ये दुनिया अच्छे लोगों की बदौलत चल रही है। एक-दो गिरे हुए लोगों की नीच हरकतों के कारण, अच्छे स्त्री-पुरुष बदनाम नहीं होने चाहिए।

आपके बाकी प्रश्नों के जवाब में यही कहूँगी की , जो लोग नादान हैं, जो अखबार नहीं पढ़ते, हमे उन्हीं के लिए तो प्रयासरत रहना है। समाज के प्रति हमारा एक ही तो फ़र्ज़ है-- लोगों में जागरूकता लाना। यदि हम इन्हीं नादान लोगों से शिकायत करेंगे तो , फ़र्ज़ कौन निभाएगा ?

इश्वर की तरह निस्वार्थ होकर , जब हम समाज के बारे में सोचते हैं तो इश्वर के साथ-साथ , बहुत से अच्छे लोग हमारे साथ इस पुनीत कार्य में जुड़ जाते हैं और काफिला बन जाता है।

आभार।
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ZEAL said...

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आदरणीय डॉ अमर,

सु-प्रभात !

मोडरेशन के लिए खेद पहले ही व्यक्त कर चुकी हूँ। मुझे भी पसंद नहीं था, लेकिन समाज को बदलने के संकल्प में मेरा जीवित रहना बहुत जरूरी है। बौद्धिक आतंकवाद की आंधियां मुझे जड़ से उखाड़ फेंके , उसके लिए मुझे अपनी हिफाज़त जरूरी लगी। महिला हूँ, ..दरवाजा [मोडरेशन ] बंद करके रहूंगी , तभी सुरक्षित रहूंगी । वरना ऐरे-गैरे जब गाली देते हैं, तो संमाज के ठेकेदार अपने बिलों में छुप जाते हैं , बहुत दूर बैठकर तमाशा देखते हैं।

ऐसे तमाशबीनों से ही सबक लिया है की दिव्या तुम अकेली हो, अपनी हिफाज़त करना आप सीखो। मोडरेशन लगाने के बाद " इनसोम्निया " [ Insomnia ] , से निजात मिल गयी। बारिश से बचने के लिए छाता लगाना पड़ता है और कुछ अश्लील टिप्पणियों से बचने के लिए मोडरेशन। [ Wearer knows where the shoe pinches ! ]

आप यदि आते रहेंगे , तो ख़ुशी होगी की जागरूक लोग मेरे साथ हैं। यदि आप नहीं आयेंगे , तो थोडा सा दुर्भाग्य समझ स्वीकार कर लूंगी ।

देखी ज़माने की यारी ,
बिछड़े सभी बारी बारी।

मेरे पाठक बदलते रहेंगे लेकिन मेरी लेखनी चलती रहेगी समाज सेवा के लिए समर्पित होकर।

आभार।

...

Dr.M.N.Gairola said...

Medical science is an everevolving science. Treatment modalities which were standarda few years ago have become obsolete with the advent of new technologies and after few years rapid progress in medical science can change the scenero.
In such circumstances a medical profesional has to take the decision which may not be absolutely right and the result may not be favourable at times. In my opinion doctor can not be held responsible for every undesired result of the given treatment. A doctor must perform his duties with honesty , sincerity, and to the best of his ability. If he does so and his conscience is clear then no power on earth has right to blame him. he will be praised and held high if not in this world then in kingdom of God......

Yashwant R. B. Mathur said...

आदरणीया दिव्या जी,
आप के ब्लॉग पर आया पढ़ा;और लोगों की टिप्पणियों पर आप की टिप्पणियां पढ़ कर जो महसूस किया उसे इन शब्दों में अपने ब्लॉग पर लिख रहा हूँ---


ये लेखनी है
जो चलती रहेगी
तूफानों में औ
आँधियों में
दिल की वीरानियों में
गहरी तनहाइयों में.....

है यही मेरी मित्र
तो क्यों मैं
अकेला
जिंदगी के सफ़र में
सफ़ेद पृष्ठ मेरा..
मैं राही हूँ
चलता जा रहा हूँ
घुप्प अँधेरे में-
तलाशने को सवेरा

मैं कहने देता हूँ
लोगों को लोगों की बातें
दिल को कचोटने वाली
दर्द देने वाली बातें

पर 'मैं'
'मैं' हूँ
ये 'मैं' जनता हूँ
करता वही हूँ
जो 'मैं'
ठानता हूँ

मैं रोशनी हूँ
उन चिरागों के तले
खुशफहमी में खुद को
चिराग समझते हैं जो

मेरी ठोकरों से दुनिया
अक्सर हिलती रहेगी
लेखनी वो लौ है
जो हमेशा जलती रहेगी.

ZEAL said...

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यशवंत माथुर जी,
बहुत सुन्दर रचना । भावनाओं को बखूबी उतरा है शब्दों में आपने। आपकी लेखनी को नमन ।
शुभकामनाओं सहित,
दिव्या

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Yashwant R. B. Mathur said...

आदरणीया दिव्या जी,
एक कहावत है-कडवा बोले मायली,मीठा बोले जग.
आपका और 'क्रन्तिस्वर' पर मेरे पापा का उद्देश्य भी समाज सुधार है.पर खरा और स्पष्ट सच हमारा समाज सुनना पसंद नहीं करता तो लिख कर ही सही अपनी बात कहनी ज़रूर है.
ये कविता आप के ब्लॉग पर आप की प्रतिटिप्पणियों को पढ़ते समय कब बन गयी और मेरे कंप्यूटर की स्क्रीन पर कब आ गयी पता ही नहीं चला.
आपका बहुत बहुत धन्यवाद मेरे ब्लॉग पर आने के लिए.

G Vishwanath said...

Moderation is a good decision.
I support your decision to introduce moderation.

It does not necessarily mean that you are being partial and allowing only praise and blocking criticism.

I have seen critical comments too on your blog.
As long as the language is decent, criticism , even strong criticism should be allowed.
Moderation is your only defense against spam and abuse.

Any critical blog reader should not mind it if his comment appears after a little delay.
Expecting that one's comment must appear immediately without moderation is unreasonable.

I would advise you to continue your moderation of comments. In the process if some people stop commenting it is unfortunate. You must accept it with sadness and allow them to have their preferences. You will soon gain new readers who won't mind moderation.
The decision regarding moderation should be left to the individual blogger. Some refuse to moderate. Of course it is convenient. Of course they will get more comments. But the risk of the blog platform being polluted is very high.
The blogger may not mind dirty or abusive comments on his blog but for the sake of his readers and followers he must keep his blog clean.

Just my opinion for your consideration.

Awaiting your next post.
Regards
G Vishwanath

सञ्जय झा said...

@divya

aapko khud se adhik samjhdar samajh kar hi shresth
sambodhan 'di' bola tha. margdarshan karne ki baat
kahkar sarminda na karen. yahan vaicharik sahmati-asahmati hai.....matbhed ko manbhed na bane.....

hamari baton se uljhan huee.....uske liye khed hai

pranam.

कुमार राधारमण said...

मैं यह कहते हुए क्षमा चाहूंगा कि इतने सारे प्रश्नों का जवाब एक साथ टिप्पणी के माध्यम से देना संभव नहीं। अच्छा होता,कि कुछ किस्तों में प्रश्न रखे जाते। फिर भी,इतना कहा जा सकता है कि डाक्टर और जनता में से कोई भी पूरी तरह सही नहीं है। न तो डाक्टरों ने अपने पेशे के साथ पूरा न्याय किया है और न ही जनता ने उनकी मर्यादा का ध्यान रखा है। सरकार का क्या कहें। एकाध डाक्टर कभी मंत्रिमंडल में शामिल भी हो जाए,तो वह अन्य कारनामों के लिए ही जाना जाता है।

priya said...

Kailash sharma ji se shat pratishat sahmat hoon.
Arth Desai ji se bhi kafi hadd tak.
doctors oath lete hain. baaki profession mein yeh ceremony nahin hoti iska arth yeh nahin ki unke koi kartavya nahin.
imaandari ki oath already implied hai.
doctor kaa profession kisi ki jaan se sambandhit hai,doctor ke action kaa result turant aata hai, isliye hai hai machti hain.
baaki jagahon jaise ki teacher ke kartavyavimukh hone par student dhire dhire barbaad hota hai .
nursery se inter tak 14 saal mein.
tab koi unke virudh aawaj nahin uthata.
doctor ki baatein karne mein sansani hoti hain bas yehi kaaran hai un par news banane kaa.

kindly excuse me for any hurt caused inadvertently.

regards
priya

ZEAL said...

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शैलेन्द्र जी,
पिछले हफ्ते कुछ विपरीत परिस्थियों के चलते उलझन थी, आपकी बातों से कोई परेशानी नहीं है। ...आभार।

Vishwanath ji,
Thanks for your kind support.

Priya ji,
You never write anything offending. You seem to be a serious reader. Your valuable comments are always very logical and rational. I don't think your words can offend anyone.

..

Yashwant R. B. Mathur said...

हिंदी दिवस की शुभ कामनाएं

ZEAL said...

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यशवंत जी आपको एवं सभी पाठकों को हिंदी दिवस की शुभकामनायें। इश्वर करे हमारी हिंदी भाषा खूब तरक्की करे और फले -फुले। हिंदी जो हमारी राष्ट्रिय भाषा है, वो एक दिन अंतर्राष्ट्रीय भाषा बनेगी और जन-जन की पहचान बनेगी।

हिंदी भाषा की मिठास हमारे ब्लॉग जगत में सर्वत्र व्याप्त हो और लोगों को प्रेरित करे निज भाषा पर अभिमान के लिए।

हिंदी दिवस के इस शुभ अवसर पर , मैं अपने उन पाठकों की विशेष आभारी हूँ जिनकी मात्र भाषा हिंदी न होते हुए भी वो हिंदी लिखते, पढ़ते और बोलते हैं।

जिनको राष्ट्र से प्यार है, उन्हें अपनी राष्ट्रिय भाषा ' हिंदी ' पर भी गर्व होना चाहिए।

अंत में एक बार फिर , हिंदी-दिवस की शुभकामनाएं।

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रंजना said...

रोचक ....

काफी चर्चा हो चुकी विषय पर....

आपका प्रयास सफल रहा...

ZEAL said...

चार्चा को सफल बनाने के लिए सभी पाठकों का ह्रदय से आभार।
आज हिंदी दिवस के अवसर पर मेरी नयी पोस्ट पर आप सभी के विचारों का स्वागत है।
http://zealzen.blogspot.com/2010/09/zeal_14.hotmail

काया में अस्त कायस्थ --वेदान्त केसरी-- स्वामी विवेकानंद !--ZEAL
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priya said...

I believe each one of us will enrich our neighbours / acquaintances with the great discussion on doctors and for that matter any profession appearing here.

kind regards

Asha Joglekar said...

बहुत कुछ कहा जा चुका है, पर हडताल भी डॉक्टर तभी करते हैं जब बरसों सरकार उनकी मांग पर कुछ नही करती । क्यूकि जब जनता तकलीफ में आती है तो शोर मचता है और वह बहरे पन का नाचक और नही कर सकती ।

Kunwar Kusumesh said...

डॉक्टर्स से सम्बंधित तमाम सवालों के जवाब आपने पब्लिक से जानने की कोशिश की है. इतने अधिक सवालों पर मौखिक बहस तो हो सकती है परन्तु विस्तार से लिखित जवाब संभव नहीं क्योंकि डॉक्टर का प्रोफेशन उसकी योग्यता के साथ साथ उसके अन्दर की संवेदना से भी ताल्लुक रखता है . बढ़ती हुई भौतिकवादी सोंच ने इंसान की संवेदना को काफी हद तक समाप्त कर दिया है, एक मेकेनिक जब मशीन के किसी पार्ट को ठीक करता है तो वह संवेदना के साथ उस के पार्ट पर हथौड़ा नहीं चलाता. ज़ाहिर है इसलिए, क्योंकि वह जानता है की किसी धातु का बना हुआ पार्ट निर्जीव है.मगर जब डॉक्टर मरीज़ के शरीर के किसी अंग को ठीक करता है तो डॉक्टर को संवेदना से काम लेना होता है क्योंकि वह जनता है की मरीज़ हाड़-मांस का बना हुआ एक जीता- जागता प्राणी है. ऐसे में डॉक्टर के संवेदनहीन हो जाने से बीमार पर क्या गुज़रती है ,इसकी आप कल्पना कर सकती हैं.यह भी सच है की अभी सारे के सारे संवेदनहीन नहीं हो चुके हैं ,कुछ लोगों में संवेदना अभी बाकी है ,शायद उन्ही के सहारे दुनिया चल रही है.

कुँवर कुसुमेश
ई-मेल:kunwar.kusumesh@gmail.com
समय हो तो कृपया मेरा ब्लॉग देखें:kunwarkusumesh.blogspot.com

ZEAL said...

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A comment from Jagannath ji through mail --

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क्या आपको भी लगता है की पेशे से चिकित्सक लोग कसाई होते हैं?

Doctors' hands are like God's hands who kabhi bhi kisi ko bhi maarne ke liye nahin uthh-tey. Iss baat ka sabse accha Example hai:

“Haal hi mein, Skin Cancer se peedhhit adbhut Dancer-Singer, Internationally famed Michael Jackson aur unke Doctor Murray ke beech huey Doctor-Patient ki ek misaal humare saamne aayee hai. Dr. Murray ne kabhi bhi paise ki laalach se ya kisi aur kaaran se MJ ko aise khatarnak dawaayee nahin dee housaktee jissey ek “Homicide” kehlaane wala Haadsa hua hou, ek Doctor ke haathoun. MJ was suffering with Skin Cancer and kaafi baar unhe Skin-grafting karwaane padtee thee, jiss wajah se unkee oopari Chamdee ka bhi rang badal gaya tha. Jab uss baat kou bhi ghalat liya gaya aur uss maasoom se MJ ko “Whacko-jacko” ki padavi dee gayee, issey humein ek bahut hi mahatvapoorna baat samajh mein aatee hai ki hum humans abhi bhi bahut hi pichhde hain. “Skin color, racial feelings and other forms of discriminations ke shikaar”


Continued ..

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ZEAL said...

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क्या डाक्टर का चाकू , मरीज का नासूर हटाता है या फिर क़त्ल करता है ?

Sirf Filmoun mein houta hai aisa. Aaj takk maine tou kabhi nahin suna ki kisi Doctor ne Jaan boojh kisi ki hatyaa kee hou.


क्या डाक्टर को मारा-पीटा जाना चाहिए ?

Doctor par humara haath kabhi nahin utthna chahiye, chahey Doctor se kitnee bhi badee ghalatee houchukee hou!


क्या आपको लगता है की डाक्टर्स को कभी अपनी सुरक्षा और अधिकारों की मांग करनी चाहिए?

Zaroor maanganee chahiye ya aisa houna chahiye ki aise haadse Doctors ke saath na houn, usske liye “Insurance companies” ke chakkar mein douno bhi phanss jaavein, jaisa USA mein houta hai. Canada ka medical system sabse Saraahaneeya hai, Saare sansaar mein!


क्या सरकार , डाक्टरों की सुरक्षा का कोई इंतज़ाम रखती है ?

Governments in Asia are lacking in this respect. Doctors in US/Canada are very well protected by Insurance giants against such things and also from Mal-Practice suits, but they pay heavy Premiums for that. One of my Surgeon students pays around 172000 US Dollars per year for just the Mal Practice protection Insurance plan.!!! That is a lot of money going back into the Govt treasury.


क्या डाक्टर के भी कोई मौलिक अधिकार अधिकार होते हैं?

Definitely houte hain! Maulik Adhikaar har insaan ke houte hain, regardless of what Contracts have been signed and have been agreed upon.

Continued ...

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ZEAL said...

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क्या डाक्टर्स की भी अपनी कोई निजी जिंदगी होती है?

Hounee chahiye, but “paise” ki wajah se NAHIN Samajhte hain sab log. Paisa dene ke baad Doctor ne Kaam Turant karna chahiye “YEH Bhaavna ghalat hai” Doctors are “Humans first” They should be allowed to live their lives as well as see their patients. I have a sister, who is herself a Doctor, but she was also going through Menopausal depression and sometimes she used to Cry to me that patients are waiting, but I can't move because of these Anti-Depressants (Doctors would understand this more – the name of the drug she was on was PARNATE) Poor thing, she seldom had her own life.


क्या आपने कभी सोचा की डाक्टर्स की पिटाई होती है , तो उनके भी बच्चे, पति या पत्नी, माता-पिता , भी दुखी , निराश और सहमे हुए होते हैं?

Only one sentence about this: Nobody should ever even RAISE their voices against a Good and honorable doctor.


क्या डाक्टर्स को कभी हड़ताल पर जाना चाहिए?

Saare doctors ko nahin Jana chahiye, they can take turns and have unity among themselves and patients ko Chhodd kar hadtaal par nahin Jaanaa chahiye. If the hadtaal is for securing better facilities in the Hospitals for the sake of both Doctors and Patients then all hadtaals are JAAYAZ. If it is only due to Pay Hike, Facilities to be provided at the Doctors' residential colonies, then hadtal is not the right way.


क्या डाक्टर्स मानवीय संवेदनाओं से युक्त आपकी तरह मनुष्य होते हैं?

Yes and No. It depends on each individual.


क्या डाक्टर्स को सदैव परहित ही सोचना चाहिए, कभी अपने लिए नहीं ?

A balanced action is required and is reasonable as well.

continued ...

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ZEAL said...

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क्या डाक्टर्स के सभी कर्तव्य मरीजों के प्रति होने चाहिए, अपने परिवार के प्रति नहीं ?

33% for patients, 33% for friends and 30% for Family and 4% for SELF!


क्या डाक्टर्स को कोई मारे तो भी , उसे चुप-चाप बर्दाश्त कर लेना चाहिए? गांधी जी के अनुसार एक गाल पे मारे तो ,दूसरा आगे कर देना चाहिए?

NAHIN! In US a person can go to JAIL for life for doing such a thing, why is it not the same in 3rd world countries? Again back to the question of Insurance Giants. But Doctors par KABHI haath nahin uthaana chahiye. Main tou kehta hoon Kisi bhi doosre vyakti par haath nahin uthnaa chahiye, kathin hai Naamumkin nahin!


क्या डाक्टर्स की हड़ताल गैर-वाजिब है?

Circumstances par nirrbhar.
राजस्थान में डाक्टर्स की हड़ताल के चलते बहुत से लोगों की मौत हो गयी। इसका जिम्मेदार ईश्वर है ?, या फिर सरकार ?, या फिर डाक्टर ?

Sarkar is FIRST and foremost responsible!


क्या आपके घर में कोई डाक्टर है?

Haan Teen Doctors hain.


क्या आप अपने बच्चे को डाक्टर बनाना चाहते हैं ?

Zaroor, but not by forcing him/her. If they have it in them, then yes.


क्या आप डाक्टर को इंसान समझते हैं?

Yes Insaan, ya kabhi kabhi Bhagwan ka doosra roop!

continued...

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ZEAL said...

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क्या एक डोक्टर को दुःख होता है ?

Yes houtaa hai!


क्या एक डाक्टर से आपको सहानुभूति है?

Definitely hai!


क्या डाक्टर के भी कुछ मौलिक अधिकार होते हैं ?

Yes definitely houte hain. (Did this question repeat?)


क्या अपनी सुरक्षा के लिए आवाज़ बुलंद करना गैर-वाजिब है ?

Bilkul nahin!

आपकी राय का इंतज़ार रहेगा।

Aaj Intezaar khatam!

कृपया अपना बहुमूल्य वक़्त निकालकर अपनी राय से हमें अवगत करायें , और समाज को लाभान्वित करें।
Aapke liye Yeh answers bahut important hain aur mere liye bhi yeh bahut critical hain!
आभार।

Inhey zaroor Publish keejiyega. Aabhaar!

from AIM ID: jagmytharjun

LA, CALIF.


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ZEAL said...

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जगन जी ,

आपकी मेल आज ही देखि , इसलिए publish करने में थोड़ा विलम्ब हुआ । क्षमाप्रार्थी हूँ।

आपकी सारगर्भित टिपण्णी के लिए आपका आभार ।

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Maestro-2011 said...

Dr. Saheeba, Aapka bahut aabhaar. Aapke lekh padhh kar bahut khushi houtee hai, Ekdam laajawaab kaam hai, I am sure millions would be positively influenced by your deeply researched and well written articles, specially the ones related to Medical problems. I would love for you to write an exclusive one on Hypo and Hyper Thyroid issues in women. If possible also, something on Allergic Asthma in kids and adults (Mainly due to Pollen, Weed and Grass related allergies)

Bahut, bahut abhar and Abhivaadan!

ZEAL said...

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@ Jagan ,

I will sure write on the diseases requested by you .


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Maestro-2011 said...

Doc Saheeba, I also liked your deeply researched article on Depression/Avsaad. That is the first time, I read/heard the correct Translation into Hindi of the term "Depression" -- I am truly amazed with the depth of that article and how much you have researched, the knowledge inside you has really flushed out, portraying an accurate picture of several possibilities, reasons and related human behavior -- connected with Depression. Couple of my friends here in the US also suffer from an almost incurable disease "MS" or Multiple-Sclerosis, some of my very close friends are also ailing from Fibromyalgia and Chronic fatigue syndrome. There seems to be no cure, but just compassion, love and affection from near and dear ones for these young ones who suffer from Fibor-myalgia and CFS. Do you happen to have anything on these in your vast repertoire? Please share with us. Thank you in advance for this. Namaste.

ZEAL said...

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Jagan ji ,

I will try to cover as many topics as possible . Meanwhile try to enjoy and appreciate other subjects as well on my blog.

Thanks and regards,

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Maestro-2011 said...

Doc Saheeba, Bilkul. Main aapke saari lekh/Articles behad pasand karta hoon aur kaafi ghaur se padhta bhi hoon. Yeh bahut hi saarthakk kaarya kar rahe hain aap, logon ko in sab cheezon ke baarey mein theek se maaloom bhi nahin rehta hai. Sirf kehne ke liye log "Educated" houjate hain. Par depth mein nahin maaloom houta hai na. Aabhaar. J

ZEAL said...

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@ Jagan ji ,

Thanks for your comment , but i wonder what stops you from commenting on my other blog posts .

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Anonymous said...

Hello it's me, I am also visiting this web page on a regular basis, this site is really nice and the people are actually sharing nice thoughts.

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tough to argue with you (not that I personally will need to…HaHa).
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