१९९७ में बुकर सम्मान विजेता , अरुंधती रॉय ने दिल्ली में एक सेमीनार में कहा की -- " काश्मीर को आज़ादी मिलनी चाहिए , भूखे-नंगे हिंदुस्तान से "।
एक साहित्यकार और सामजिक कार्यकर्ता के इस प्रकार के गैरजिम्मेदाराना वक्तव्य अति विचारणीय एवं चिंताजनक हैं। एक लेखिका को अपने शब्दों के प्रति बेहद जिम्मेदार होना चाहिए। क्या वजह है जिसके कारण उन्होंने ऐसा बयान दिया। क्या हुर्रियत नेता गिलानी की संगत का असर है उन पर ।
हिंदुस्तान को उन्होंने भूखा-नंगा कहा । हमें शर्म आ रही उनके हिन्दुस्तानी होने पर। उनके वक्तव्य के अनुसार काश्मीर को आज़ादी मिलनी चाहिए। लेकिन क्या अरुंधती को स्वयं पहले आज़ाद नहीं हो जाना चाहिए इस देश से ।
क्या वजह है की अरुंधती जैसी कार्यकर्ता ने ऐसे देशद्रोही वक्तव्य दिया । क्या उनकी मानसिक अस्वस्थता है इसका कारण या फिर वो वास्तव में शान्ति पसंद महिला हैं । क्या वो तंग आ चुकी हैं , काश्मीर मुद्दे से और भारत शान्ति बहाली का एक अनूठा तरीका अपनाना चाहती हैं ।
या फिर वो दानवीर कर्ण बनकर इसिहास के पन्नो पर स्वर्णाक्षरों में उल्लिखित होना चाहती हैं । क्या काश्मीर दान देने से शान्ति बहाली हो जायेगी । क्या चीन , जो अरुणांचल प्रदेश पर आँख जमाये हैं वो भी दान कर दें । क्या मुंबई राज ठाकरे को दे दें ? तो फिर हिंदुस्तान कहेंगे किसको । इसकी सीमा रेखा कहाँ तक है । हमारे देश का भूगोल भी बदलने की आवश्यकता है अब। कितने राज्य हमारे देश में हैं इसका पुनर्निर्धारण करने की जरूरत है ।
इससे भी बड़ी चिंता का विषय है की की असली हिन्दुस्तानी कौन से हैं । क्या अलगाववादी हुर्रियत नेता गिलानी जैसे लोग हिन्दुस्तानी हैं ? क्या अरुंधती रॉय जैसी लेखिका जो हिंदुस्तान को " भूखा-नंगा" कहती हैं वो हिन्दुस्तानी कहलाने की हक़दार हैं ।
क्या भूख -प्यास से तड़पकर , एक लेखिका ने ऐसा शर्मनाक वक्तव्य दिया है या फिर शान्ति बहाली ही अरुंधती का उद्देश्य है ?
क्या बुकर के बाद इनका नामांकन , शांति बहाली के सद्प्रयासों के लिए नोबेल प्राइज़ के लिए होना चाहिए ?
69 comments:
हिन्दुस्तान को सब अपनी-अपनी नजर से देखते हैं। यही सबकी आजादी है। यही आजादी आपस में भी टकरा जाती है। तब विरोधाभास और विवाद जन्म लेते हैं।
हा हा हा, अब क्या करें मानसिक संतुलन खो गया है अरुंधती जी का | कोई तो सख्त कदम उठाना होगा हमें ताकि इनके और गिलानी जैसे लोग सरे आम यूँ भारत के नाम पर थूक ना सकें..ऐसी चर्चा शुरू करने के लिए आभार, आपके कुछ पाठक अपने ब्लॉग पर भी ले जाने कि अनुमति चाहूँगा..
लानत है ऐसे लोगों पर....
iss vishay par Sikha varshney ne apne blog "spandan" par badi sateek vichar pesh kiye hain...
waise to unparliamentry language nahi kahna chahiye, lekin ye wo log hain, jinhe jindaa deewalo me chun diya jana chahiye....ghin aati hai...:(
अरूंधति और गिलानी की ब्यानबाजी माफी के लायक नही हैं।
अगर आज हम कश्मीर पाकिस्तान को दे देते है तो कल चीन अरूणाचल को मांगेगा। जबकि पुरा पाकिस्तान ही हमारा है।
जो लोग अपने देश मे रह इसे प्या नही करते उसे भूखा नंगा कहते है उन्हे यहाँ रहने का कोई अधिकार नही
यदि देशद्रोही का कोई नोबेल हो तो वो अरूंधति को मिलना चाहिए
aise sharmnirpeksh bayano ke raste hi ......noble prize ke manjil milte hain.....katu satya........
pranam
अब ऐसे बौद्धिक दिवालिये लोगो का क्या किया जाये ? ये सत्ता से लेकर साहित्य तक के क्षेत्र में है . जब हमारी आने वाली पीढ़ी ही गलत इतिहास पढ़ रही है तो ऐसी मानसिकता कैसे ख़त्म हो सकती है .
ये देश जयचन्द्रो से भरा हुआ है
aapne bahut sahii likha hai .. aapka lekh vichaarneey hai ..
aap apna yah lekh facebook par lagayen .. aapse anurodh hai .
अरुन्धती राय इसी अंग्रेजी मीडिया द्वारा रचा गया फ्रैंकेस्टाइन है, गुजरात दंगों के समय इन मोह्तरमा ने आउटलुक पत्रिका में अपनी तोडू अंगेजी में फड़कता हुआ लेख लिखा था और एक ऐसे बलात्कार का शब्द चित्र खीचां था जिसमे बाद में पता चला उस नाम की कोई महिला थी ही नहीं! पर मनोवैज्ञानिक खेल खेला जा चुका था। अब आप स्पष्टिकरण देते रहिये!
नक्सलवाद पर जिस तरह के तेवर हैं इनके, उन्हें दिखाने का दम, आज तक नोएडा और साउथ दिल्ली के किसी तुर्रम खाँ टीवी चैनल नें डर के मारे नहीं किया क्योंकि उन विचारों से जन आक्रोश बड़ जाने का खतरा है हुक्मरानों को।
सवाल यह है कि काशमीर पर इतना बबाल क्यों हो रहा है? सरकार की नाक के नीचे हुआ है यह पूरा सम्मेलन जिसमें विरोध करने वाले "भारत माता की जय!" कहने वाले कश्मीरी पंडितों को पीट पीट कर बाहर खदेड़ दिया गया था, सरकारी पुलिस द्वारा।
भारत सरकार के प्रतिनिधि दीलीप पदगावँकर कश्मीर की आजादी की बात कर रहें हैं, उमर अब्दुल्ला कह रहे हैं कश्मीर भारत का अभिन्न अंग नहीं है। यह सब अलग कर, अरुन्धती राय के वक्तव्य पर व्याकुल होना ठीक नहीं है।
कशमीर को बफ़र स्टेट बनाने की पैंटागन की नीति की पहली चाल खेली जा चुकी है, खेल लम्बा है, देखते रहेंगे हम सब....
पुंश्च : सम्वेदना के स्वर पर "अंक ज्योतिष" लेख पर आप आमंत्रित हैं!
अरुंधती का उद्देश्य है ?
क्या बुकर के बाद इनका नामांकन , शांति बहाली के सद्प्रयासों के लिए नोबेल प्राइज़ के लिए होना चाहिए ?
दिव्या जी आपने सही नब्ज़ पकडी ऐसे देशद्रोही को तो सरेआम गोली से उडा देना चाहिये, जो अपने स्वार्थ के लिये ांलगाव वादिओं के हाथ की पुतली बन जाते हैं। शुभकामनायें।
अरुंधती ने आने वाले 10 सालों के लिये पश्चिम के विभिन्न देशों में कश्मीर सम्बन्धी व्याख्यानों, सेमिनारों, जुगाड़ू पुरस्कारों, फ़र्जी सम्मानों का बाज़ार तैयार कर लिया है।
बहुत तीखी पोस्ट परंतु अर्थपूर्ण. राजनीतिक ब्यान देने से पहले बहुत सोच की ज़रूरत होती है, यह अरुंधती को ज्ञात होना चाहिए. यदि वे नहीं जानतीं तो बेहतर है पहले जान लें. यदि यह उनकी किसी पुस्तक से पहले की या उससे संबंधित ब्यानबाज़ी है तब इस हरकत को घटिया ब्यान ही कहना होगा. हमारे देश में गरीबी है लेकिन उसे इस तरह से बयान करके कौन सा उद्देश्य साधा जा रहा है. कश्मीर एक पेचीदा मामला है, आंतरिक रूप से और बाह्य रूप से. उस पर ब्यानबाज़ी ज़म्मेदारी भरी होनी चाहिए न कि उबाल खा कर. देश पहले है शेष सब बाद में है. हमारे देश में गरीब हैं. उनकी समस्या को अलग से उठाना अरुंधती को शोभा देता.
अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का उपयोग , देश द्रोही बयानों के लिए करना मानसिक दिवालियापन का ज्वलंत उदाहरण है , अरुंधती को नक्सल समस्या और कश्मीर पर उनके घृणित बयानों पर सरकार को उचित और साहसिक कदम उठाना चाहिए .इसे कहते है जिस थाली में खाओ उसी में छेद करना . कविता के लिए इस विषय का
अंतर्राष्ट्रीय मीडिया में नाम और अंतर्राष्ट्रीय सम्मान पाने का हथकंडा है ये ,खबर है कि सरकार भी इन्हें हाथ नहीं लगायेगी ।
अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता ?????????
दिव्या जी आपके लेख को पड़ते समय बीच बीच में मुझे लगा की कही ये नोबल शांति पुरष्कार के लिए तो सब कुछ तो नहीं ! कश्मीर की आजादी की बात कहकर देश की अखंडता को तोड़ने वाली बात कहकर अंतराष्ट्रिय स्तर पर ख्याति पाना चाहती है और आपने अंत उस शक को यकीं में बदल दिया ! दिव्या जी आपके लेखो में देश राष्ट्र चिंतन की झलक होती है बे फिजूल की बहस से कोसो दूर एक अच्छी रचना लिखकर आपने देश द्रोहियों को आइना दिखाया है काश देश के कर्णधार भी आपके जैसा ही सोचते ..............
बहुत सार्थक प्रश्न किये हैं ...नोबल प्राईज़ वाली बात ... :):) चीन तो वैसे भी भारत की भूमि का बहुत हिस्सा हड़प चुका है ...
अच्छी पोस्ट ..विचारणीय
..desh ka durbhaygy hai, or kuch nahi,waise
jatey-jatey saniya mija bhi kh kr gai thi ki CWG main pryapt subudhayen nahi thi or machchar bhi bahut they....husain sahab bhi chaley gaye......?
Ayyar sahab ne bhi kaha tha ki ..........
vicharniy post hetu abhaaaaaaaar
तो यह पेदा ही क्यो हुयी इस भुखे नंगे देश मै दफ़ा हो जाये, जहां इसे इन की नस्ल के लोग मिले.....
चोट तो करारी की है मगर यहाँ सुनवाई कहाँ है?
डॊ. अमर कुमार के गम्भीर कमेंट के बाद शायद यह सोचना आवश्यक हो जाता है कि देश और राष्ट्र किसे से बनता है। एक तेलुगु कवि ने कहा था- देशम अंटे मट्टी कादोय, देशम अंटे मनुशुलु। [देश का मतलब मिट्टी नहीं मनुष्य है] तो जब मनुष्य की मानसिकता में देशभक्ति नहीं तो देश के प्रति समर्पण क्या होगा॥
कही शांति के नोवुल पुरस्कार की तरफ नज़र तो नह ----- जो भी हो अरुंधती राय के खाते की जाच होनी चाहिए ये विदेश एजेंट इस कुतिया को तो काश्मीर ही जाना चाहिए जब कश्मीरी आतंकी मुसलमान इसके साथ बलात्कार करेगे तो इसका दिमाग ठंढा हो जायेगा.
पिछले दिनों देवबंद स्कूल ऑफ इस्लामिक थॉट की ओर से डिक्लरेशन आया कि कश्मीर अखंड भारत का हिस्सा है।
हाल ही में कश्मीर मसले पर एक सेमिनार में अरुंधती ने कहा था कि कश्मीर भारत का अभिन्न अंग कभी नहीं रहा,
यह क्या हो रहा है आज कल. वैसे भारत सरकार ने अब तक क्या किया? कुछ फैसला हुआ की ऐसे भाषण देने का नतीजा क्या होगा?
इन मूर्ख को कौन समझाएं
बोलने की आज़ादी की पुनर्व्याख्या अब ज़रूरी है
ताज़ा-पोस्ट ब्लाग4वार्ता
एक नज़र इधर भी मिसफ़िट:सीधी बात
बच्चन जी कृति मधुबाला पर संक्षिप्त चर्चा
मैं अरुंधति के outlook magazine में छ्पी सभी लेख पढ चुका हूँ।
अरुन्धति रॉय की अंग्रेज़ी अच्छी है।
अरुन्धति रॉय का तर्क खराब है।
उसे नजरन्दाज़ करो।
उसे शहीद बनने का अवसर मत दो।
Part 01 of 02
Dearest ZEAL:
There are various underlying issues to the topic raised by you.
Whatever the case be, essentially, Muslims [a very, very big majority of them] are warmongers and always looking to destabilize things wherever they be.
Be it Ayodhya or be it Kashmir, be it Karachi or be it Kabul, be it Israel or be it the United States, they just want to create an issue and bay for bloodshed. Historically also, Muslims have always got things by looting, cheating, defrauding, bloodshed.
In their wanton lust and audacious avarice for usurping unlawfully, they have not even spared their parents or brothers and sisters. Therefore, we can not and should not expect them [and I mean the majority I referred to earlier] to talk sense at any point.
Idiocy is their birth-mark, stupidity their birth-right. We ought to take due cognizance of these 2 things.
Coming to Arundhati Roy, plainly she is an opportunist. Without any offense implied on you, whatever you write here is of no impact at all to the real situation in Kashmir, but whatever she does has an impact in the valley and beyond – on either sides, I may add, cheekily. Here, I agree, and so would most others, that your viewpoint is correct, but ground realities are different.
I am quite certain the separatists have surely paid her a huge deal of money and also there is this alluring prospect of media prominence! Moolah and Media – a delectable double-whammy. Too good to resist it was and she bit the bait. Further, this matrimony of convenience is a win-win situation for both the sides. Where Arundhati stuffs the bank-notes and basks in media limelight, the seditionists like Gilani can go about echoing in the valley that even Hindus are supporting the ‘partition’ / ‘freedom’ cause.
In any political strife, creating an atmosphere of incomprehensibility of the real issue is the biggest play. If everything is plainly evident, how can the masses be led like dumb sheep to the slaughter?
Arundhati is just as good as Judas. 30 pieces of silver was spoken of at the Final Supper. Here, it might have been said at the Iftaar party. Zmiles.
When ambition reigns dominant, reason stands forfeited.
[Continued ---->]
Part 02 of 02
[-----> Continued]
Let me now come to the root cause of this sordid issue. Here, despite my total support to the Indian Government, I feel we made a blunder with the promulgation of Article 370 and inaction thereafter despite the article stating clearly that it was ‘temporary’ in nature. 62 years on from 1948, we are still in the clutches of the ‘temporary’.
Quite Contemporary!! Or should we say, Quite Contemptible!!
Article 370 serves as a reminder to the Muslims of Jammu and Kashmir and the rest of the country that it is yet to merge with the country. This impression creates uncertainty and ambiguity.
So stating the Article as the root cause of all the trouble over J&K and in the fear of demand for a plebiscite, a promise made by an idiot, megalomaniac called Nehru in 1948, some political parties have been demanding abrogation of the Article.
In fact, the BJP had even included the commitment of abrogation of this abhorrent article in their Lok Sabha election manifesto. They got a full 5-year term but as is the case with all political parties, the manifesto declarations of election are only words. The manifesto ceases to exist from the day of electoral results. There is no intent, no will, no ability and no need [in their manipulative ‘ideologies’] to act on any of the promises and commitments – whatever the political party be.
India is in a pathetic situation on this count – naa nigal sakte hain, naa ugal sakte hain.
The fact is that Article 370 is the only legal window through which the Republic of India maintains its territorial link with J&K and extends it jurisdiction to the State. To scrap this special provision would mean reverting to the Instrument of Accession. Such reversion would merely offer an opportunity to the secessionists in Kashmir to demand a plebiscite and proved further ground to those seeking to internationalize the issue.
With this intriguing anarchy and indulging chaos ruling the roost in the Heaven On Earth, it is impossible to HOE the land for seeds of peace to be sown and the fruits of bliss be enjoyed by one and all.
Arundhati, Gilani, Omar, Congress, BJP, Pakistan, US, UN are merely players. Bottom-line is that Kashmir is being bleeded and none wants the bloodshed to stop, or more correctly, even lessen a bit. Probably all are saying – Yeh Dil Maange More.
Semper Fidelis
Arth Desai
भई ये हिन्दुस्तान है...........
हर इंसा को अपनी बक बक करने का पूरा मौका सिर्फ इसी देश में मिलता है......
जितने बड़े लोग - उतनी बड़ी बकवास.......
और सर आँखों पर बिठाइए ....... अरुंधती जैसे बुद्धिजीवी को...
क्या इस तरह हम उनकी बेतुकी बातों को दिन में पचास बार चर्चा कर उन्हें अनजाने में ही महिमा मंडित तो नहीं कर रहे है? वक्तव्य का उद्देश्य भी शायद यही हो.
बहुत ही विचारणीय पोस्ट है......मुझे राज भाटिया जी का यह कहना बहुत ही सही लगा की यह पैदा ही क्यों हुईं ऐसे देश में, हिन्दुस्तान का होकर भी जो इसका नहीं है उसके लिये तो कुछ भी कह देना आसान होगा...पर शायद हमारे लिये सुन पाना मुश्किल....आपकी आवाज का असर हो ....इन्हीं शुभकामनाओं के साथ सुन्दर लेखन के लिये एक बार फिर बधाई ।
कश्मीर समस्या पर अरुंधती रॉय का शब्द- चयन सही नहीं है... उनके बयान की आलोचना का यही कारण है ...
पर मैं कहूँगा की अनुचित शब्द प्रक्रिया में ढले होने के बावजूद उनकी भावनाए अपनी जगह सही है ....
भाषा का चयन सही ना होने के कारण उनकी आलोचना जरुर की जा सकती है..
उन्होंने अपने वक्तव्य में कश्मीर के शोपिया का जिक्र किया है जहा का दौरा हाल ही में उन्होंने किया
जहा उनके ये अनुभव हैं -
Yesterday I traveled to Shopian, the apple-town in South Kashmir which had remained closed for 47 days last year in protest against the brutal rape and murder of Asiya and Nilofer, the young women whose bodies were found in a shallow stream near their homes and whose murderers have still not been brought to justice. I met Shakeel, who is Nilofer’s husband and Asiya’s brother. We sat in a circle of people crazed with grief and anger who had lost hope that they would ever get ‘insaf’—justice—from India, and now believed that Azadi—freedom— was their only hope.
In the papers some have accused me of giving ‘hate-speeches’, of wanting India to break up. On the contrary, what I say comes from love and pride. It comes from not wanting people to be killed, raped, imprisoned or have their finger-nails pulled out in order to force them to say they are Indians .
Pity the nation that has to silence its writers for speaking their minds.
arundhati roy .
वहा की दुर्दशा देख कर ही हो सकता है उन्होंने इस तरह का भावुक बयान दे दिया हो...
पर फिर भी इस तरह के शब्दों का इस्तिमाल पूरी तरह गलत और निंदनीय है.. जिसका प्रतिरोध करना चाहिए....
उन्होंने जो कुछ कहा वो उनके निजी विचार होंगे.. पर कश्मीरियों के लिए उनकी भावनाओं को
गलत नजरिये से नहीं देखा जा सकता
उनका दोष ये है की वो भावुक हो गई.. और भावुकता या क्रोध में व्यक्ति का शब्द- ज्ञान कमजोर हो जाता है |
भावनाए अपनी जगह सही कैसे हो सकती है, शब्द दिलो-दिमाग से ही उदभव होते है। जहां आपका भी पेट भरता हो,वो भूखा-नंगा?
यह तो वही बात हुई जिस थाली में खाओ उसी में छेद करो, अहसान फ़रामोशी या गद्दारी और क्या होती होगी?
आपने बहुत सही लिखा है। अरूंधति का यह बयान उनके मानसिक दिवालियेपन को दर्शाता है। कुछ लोग अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर स्वयं को चर्चा के केन्द्र में रखने के लिए इस तरह के हथकंडे अपनाते हैं। अरूंधति भी यही कर रही हैं।
मैं अरुंधती रॉय के वक्तव्य से सहमत नहीं.हाल -फ़िलहाल में आये उनके कुछ बयान काफ़ी गैर जिम्मेदाराना हैं.
अरुंधती रॉय को ऐसा बयान नहीं देना चाहिए था। इस बयान से सच्चे भारतीयों के मन को पीड़ा पहुंची है। उन पर तो देशद्रोह का मुकदमा चलाया जाना चाहिए।
अरूंधति और गिलानी की ब्यानबाजी माफी के लायक नही हैं।
अरुंधती जी शुक्र मनाइये कि आपने भारत के बारे में ऐसा बोला , जहाँ के लोगों में सहनशक्ति बहुत होती है , शायद तभी आपने ऐसा कहने का साहस भी किया , यह बात अगर आपने हमारे पडोसी देश के लिय कहती तो शायद उसके बाद कुछ और कहने का मौका वह आपको नही देता । आप जैसे बुद्धजीवी से इतनी नासमझी की उम्मीद तो कभी किसी ने नही की होगी । और जिस कश्मीर के बारे में आपने इतनी बडी बात कह दी हम भारतवासियों की वह आत्मा है अभिमान है । और हम अपने अभिमान पर चोट करने वाले का क्या हाल करते है इसे पूरा विश्व जानता है । काश आप यह समझ पाती । भारत ही एक ऐसा देश है जहाँ का भूखा व्यक्ति अपने अतिथि को अपनी रोटी उसके आतिथ्य में देने के लिये सोचता नही । ऐसे भूखे होने पर भी हमे गर्व है ।
जब आपको लगने लगता है कि आपकी बात सुनी जा रही है,तब कई बार आप महज इसलिए बोलते हैं कि आपको बोलना है। अपने-अपने रास्ते।
आपके प्रश्न से सहमत।
सौ बातों की एक बात. नंगों भूखों से डर लगे तो देश छोड़ जायें, आयें मत. एक सौ बीस करोड़ बुलाने नहीं जा रहे. इन जैसे लोगों के कारण ही गरीबी पैदा हुई है. दिमागी दिवालियेपन की कोई हद नहीं. काफिर जैसों की मानसिकता के बारे में क्या कहा जाये...
भूखे नंगे लोग इन्हें और इनके पूर्वजों को रोटी खिलाने और ज्ञान देने में इल स्तर तक सक्षम रहें हैं कि इन्हें बुकर सम्मान मिल सके। भूखे नंगों का बूता जिसे समझ न आता हो, उनके बीच रह कर देख ले, माइक सामने आने से पता नहीं कहाँ कहाँ से कैसी बोलियाँ निकलने लगती हैं।
Mujhe lagta hai ke Arundhti Jii Bolne se pahle Tolna bhool gayi............
bhai ye hidustan hai, jo chahe bol lo, yani abhivayakti ki aazadi. bagwan inhe sadbuddi dene ke sath sath agla janm china / saudi arebia/ iran jaise desh me dene ka kast karen.
हिन्दुस्तान के और हिस्सों में भी प्रतिदिन कत्ल होते हैं, बलात्कार होते हैं, लोग शोषण और अन्याय का शिकार होते हैं। मतलब यह नहीं कि यह सब संगत है। लेकिन यदि इसी आधार पर लोग अलगाव की बात करने लगें तो कहाँ तक उपयुक्त होगा। मौत, बलात्कार, शोषण और अन्याय को मापने का कोई आधार नहीं होता। वहाँ केवल पीड़ित होता है। धर्म, स्थान विशेष से जुड़ने पर पीड़ा बढ़ती घटती नहीं है। शायद अरुंधती गाँधी बनना चाह रही हों कि गाँधी ने देश के बटवारे को स्वीकृति दी थी वे कश्मीर को बाट कर महान बन लें। ह.. ह.. ह...। बेहतर होता कि वे लाइम लाइट में आने के लिए चटखारेदार बयान देने के बजाय इस देश की आत्मा से जुड़तीं और सब को एक नजर से देखते हुए पीड़ित लोगों के लिए कुछ रचनात्मक कार्य करतीं। बड़े बड़े होटलों के बंद कमरों में बैठकर देश का गणित समझने से देश भूखा नंगा ही दिखेगा। सौभाग्य है उनका कि उन्होंने गरीब परिवार में जन्म नहीं लिया, सम्पन्न परिवार में जन्मीं। गाँधी नें उनसे कहीं अधिक सम्पन्न परिवार में जन्म लिया था लेकिन उन्होंने देश को कभी भूखा नंगा नहीं कहा। जबकि आज देश ज्यादा समृद्ध है। केवल सोच की बात है। एक बात और, कश्मीर पर कुछ भी बोलने से पहले, हम में से किसी को भी, कम से कम पिछले 70-80 वर्ष के कश्मीर को गहनता से समझना बहुत जरूरी है। नहीं तो हमारा राग केवल भौंडा राग के सिवा कुछ नहीं होगा।
शर्म इनको मगेर नहीं आती ....
वैसे आधे से ज्यादा टी वी वाले भी इस बात को कहते हैं क़ि बोलने क़ि आज़ादी होनी चाहिए अरुंधती को ...
Hi Zeal,
Great Blog, eliciting great minds to opine ;)
I like what Arth Desai has written and fully endorse his views. As a peace loving nation, we need to blame not the entire lot of our massive population in leaving J&K in such a sorry state of affairs, but successive Govt upon Govts. As for Arundhati Roy, she came to kashmir, saw few things and expresses her opinion. Fair enough. Everyone is entitled to have a view. Afterall, J&K is there for everybody to rape. J&K, essentially being a muslim dominated state, is a puppet in the hands of those terror organizations. If it were to become "independent", it's like inviting those organizations (who themselves have a MASTER) to set a foot in to the doorway. I don't think India should ever think of granting such ludicruous wishes. In fact, it is the terror organizations who have been threatening and killing the many innocents, not our Army men.
hmm..my comments vanished...
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अरुंधती राय ने उस देश के खिलाफ़ बयान दिया है जहां पर वह रहती हैं. विचारों की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रा का दुरूपयोग किया है ! सरकार को उनके खिलाफ़ कार्रवाई करनी चाहिए । लेकिन हमारी सरकार भी कुछ डरी सहमी सी हो गयी है। पहले उसने इस देश द्रोही बयान के खिलाफ कार्यवाई का मन बनाया, लेकिन अब सरकार का ऐसा कोई विचार नहीं है। यहाँ जंगल राज है। जिसका जो मन हो करे । जो चाहे वो बोले। चाहे भगवा आतंक कहे। चाहे भूखा नंगा हिंदुस्तान कहे।
यदि इस तरह के बयानों के खिलाफ कारवाई की जाए तो भविष्य में किसी की कोई मजाल भी नहीं होगी , ऐसी बे-सर पैर की बात कहने की। लेकिन नहीं , एक बार अरुंधती को माफ़ी मिल गयी तो फिर हज़ारों लोग ऐसे देश-द्रोही बयान देंगे, और हम कुछ नहीं कर सकेंगे।
सरकार की तटस्थता और अकर्मण्यता का इससे बड़ा उदाहरण क्या होगा।
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काश्मीर स्वतंत्र हो भी जाये तो स्वतंत्र रह कैसे पायेगा जब बह हिन्दुस्तान पाकिस्तान और चीन (बराये मेहेरबानी पाकिस्तान) जैसे बडे देशों के बीच फंसा है । स्वायत्तता और विकास ही इसका हल हो सकता है और पाकिस्तान में मिलने से तो पाकिस्तान कहां शांत बैठेगा उंगली पकडाते ही पहुँचा पकडने वाला देश है वह । हमें तो किसी भी कीमत पर अपनी सीमाएं मजबूत रखनी हैं । अरुंधती जी का मै आदर करती हूँ पर उनसे पूर्णतः असहमत हूं ।
..
मैं नाग पूजा में भरोसा रखता हूँ.
पर नाग से डरता भी हूँ.
तो क्या नागिन की पूजा शुरू करूँ
पर नागिन भी तो डसती है.
इसलिये उसकी बाम्बी के पास ही
दूध रख आता हूँ.
अब सोचता हूँ
इस शहरीकरण में
नाग जैसे जीव जंतु तो नहीं दिखते.
उन्हें व्यक्तियों में ही तलाशूँ.
क्रिकेट मैच के समय तो
नाग भतेरे दिख जाते हैं.
लेकिन नागिन तो मुझे आज मिली.
चिपलूनकर जी को तो पहले ही पता थी
वे तो नाग भक्त नहीं
वे तो कुचलने में विश्वास करते हैं.
लेकिन आज इस पोस्ट पर
मुझे मेरे नागभक्त
कई बहन-भाई नज़र आये
जो उस नागिन के प्रति आदर भाव रखते हैं
उसकी चमकती चमड़ी की तारीफ़ करते हैं.
लेकिन उसके फुफकारने या डसने को
नज़रअंदाज़ करते हैं.
यही तो है सच्ची नागपूजा.
..
कमेन्ट करने के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद जी.
आभारी हूँ आपका.
कृपया मेरे ब्लॉग को ज्वाइन-फोलो भी कीजिएगा.
आपकी बात से सहमत हूँ कि-गर्भपात की बजाय निरोध का इस्तेमाल करना चाहिए.
लेकिन, मुद्दा ये हैं कि--जिन्हें एक लड़का अवश्य चाहिए और एक लड़की पहले से ही हो और दो से ज्यादा बच्चे ना करना हो तो उन्हें लिंग-जांच की इजाज़त मिलनी चाहिए.
पुन: धन्यवाद.
WWW.CHANDERKSONI.BLOGSPOT.COM
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चन्द्र सोनी जी,
कृपया विषय से हटकर टिपण्णी मत किया कीजिये।
आपकी ये मांग की लिंग जांच होनी चाहिए, बहुत अनुचित है। भ्रूण की लिंग जाँच ही , बढती हुई कन्या भ्रूण हत्या का कारण है । यदि प्रबुद्ध समुदाय ही भ्रूण लिंग जांच की मांग करेगा तो फिर शिक्षित होने का कोई औचित्य ही नहीं रह जाएगा।
इश्वर की मर्जी और संयोग से जो संतान किस्मत में हो , उस में ही खुश होना चाहिए। लड़की और लड़के में भेद करना निंदनीय लगता है।
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प्रतुल जी,
नाग नागिन पूजा के माध्यम से गहरी चोट की है आपने आज की व्यवस्था पर। ऐसे नाग नागिन सर्वत्र निर्भय होकर विचरण कर कर रहे हैं और एक स्वस्थ्य समाज को प्रदूषित कर रहे हैं। कहीं कलमाड़ी [ कॉमन वेल्थ गेन्स ] , कहीं चिदंबरम [ भगवा आतंक ] , कहीं गिलानी [ अलगाववाद ] , कहीं मल्लिका तो कहीं अरुंधती।
कब तक दूध पिलायेंगे हम नाग और नागिनों को ? कब तक होती रहेगी ऐसे विषाक्त लोगों की पूजा और करते रहेंगे भूखे- नंगे किसान आत्महत्या , हम लोगों का पेट पालने हुए।
अकर्मण्यता की भी हदें होनी चाहिए। असंवेदनशीलता भी दण्डित होनी चाहिए।
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India decides not to book Arundhati Roy with sedition
INDIA has decided against prosecuting award-winning author and activist Arundhati Roy for sedition after she spoke out about the disputed region of Kashmir.
Roy, winner of the Booker award for her novel The God of Small Things in 1997, is a fierce critic of India's tactics in Kashmir,
She shared a stage with hardline Kashmiri separatist leader Syed Ali Shah Geelani last week and backed the idea of "azadi" or freedom for Kashmir, leading New Delhi police to look into charging her with sedition.
But the police have been instructed to "avoid pursuing the issue and consider it as a closed chapter", said a senior official in the Indian interior ministry last night. "No criminal case has been registered against her. Therefore, there is no question of slapping sedition charges."
The Hindu nationalist Bharatiya Janata Party objected to Roy's remarks, calling them "seditious" and demanding legal action against her.
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भारत सरकार यदि नहीं चाहती की अरुंधती जैसी लेखिका , [जो देश-द्रोही बयान दे रही है और अलगाववादी ताकतों के साथ कंधे से कन्धा मिलाकर चलना चाहती है ] को कोई कष्ट हो , तो अरुंधती को विस्थापित कर कश्मीर में ही रहने का निर्देश देना चाहिए।
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आज अरुंधती खुद को बचाने के लिए अपने बयान का स्पष्टीकरण देती फिर रही हैं। और अरुंधती के समर्थक उसे बचाने के लिए कह रहे हैं की तथ्यों को तोड़-मरोड़ कर पेश किया गया है।
लेकिन अरुंधती यदि सचमुच कुछ बडप्पन रखती हैं तो उन्हें माफ़ी मांग लेनी चाहिए अपने घिनौने बयान के लिए।
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आपकी उपरोक्त टिप्पणी (कथन) से सहमत।
दिव्याजी,
इस लेख को पढिए।
अरुंधति को करारा जवाब दिया गया है।
किसी मित्र ने अंशुल चतुर्वेदी की इस लेख को मुझे forward किया था।
आशा है आपको यह लेख उतना ही पसन्द आएगा जिता मुझे।
लेख लंबा है। इसे किश्तों में भेज रहा हूँ।
शुभकामनाएं
जी विश्वनाथ
Don’t pity us, Arundhati – not yet
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BY: Anshul Chaturvedi
27 October 2010, 06:37 AM IST
Insofar as putting thoughts into words go, I guess I’m not really qualified to take up an issue with Arundhati Roy; she’s a globally acknowledged, indeed, acclaimed writer, while I am no more than an inconsequential rarely-read salaried cog in the gigantic wheels of the print media. Having said that, I am very clear that I don’t want my share of the accumulated pity that she thinks the nation collectively merits.
So, here’s my inadequate submission:
Arundhati has said that she “spoke about justice for the people of Kashmir who live under one of the most brutal military occupations in the world; for Kashmiri Pandits who live out the tragedy of having been driven out of their homeland; for Dalit soldiers killed in Kashmir whose graves I visited on garbage heaps in their villages in Cuddalore; for the Indian poor who pay the price of this occupation in material ways and who are now learning to live in the terror of what is becoming a police state.”
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I disagree with the effortless branding of Kashmir as “one of the most brutal military occupations in the world” – it is not pleasant, today, I am sure, but from 1948 to say, at least 1988, a period of well over four decades, Kashmir was a part of what we consider India – merged, integrated, acceded, depends on whom you ask – and for those four decades it was not part of India on the strength of a “brutal military occupation”. Unlike German soldiers marching into Poland or Chinese troops invading Tibet, India did not have to “invade” Kashmir and then hold it from Day One by administering martial law or its equivalent. I don’t mean to sound cheesy, but for years and years Bollywood didn’t churn out those scenes of a beautiful, peaceful, idyllic Kashmir on the strength of shooting crews backed by hundreds of ‘brutal soldiers’ trying to create a pretence of normal, peaceful life. That’s just how it was. Someone worked to change it. The question is – who?
Punjab, too, faced a decade of insurgency, something which we forget all too easily today. But it wasn’t ‘occupied’ prior to that; it isn’t ‘occupied’ today. Kashmir has faced more than a decade of insurgency, agreed, but to portray it as if everyone in Kashmir for all time has been subject to “one of the most brutal military occupations” does no justice to the intellect which Arundhati obviously possesses – more so in the context of the fact that the other friendly democratic states that border Kashmir, namely Pakistan and China, have no noticeable tradition of tender loving care extended by their respective militaries to people who question whether they belong to those states.
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Having lived and worked in J&K for many years, as an editor, I have carried stories about remote hilly villages where terrorists surrounded hamlets of Gujjars and slit the throats of two dozen villagers to indicate the price of ‘cooperation’ extended to security forces patrolling the hills. When Bill Clinton came to India, we saw the carnage of 36 Sikhs in Chatttisinghpora – something which Arundhati’s comrade in arms, Syed Ali Shah Geeelani, incredibly enough, still reiterates was ‘done by India to defame Kashmiris’. There is no dearth of such instances – I quote only a couple to remind us all that Kashmir’s brutal occupation is not quite as much of an innocent-lambs-being-led-to-slaughter scenario as Ms Roy perhaps sees it as.
When Arundhati says that she speaks for justice “for Kashmiri Pandits who live out the tragedy of having been driven out of their homeland”, it is too ridiculous to even merit comment, given that she wants that justice to come while she shares a dias with Geelani. They were ‘driven out of their homeland’, Arundhati, by the brutal military occupiers of Kashmir, or by someone else? Driven out by whom? Why leave it to delightful ambiguities here? I do not know if Kashmiri Pandits give any weightage to her speaking ostensibly on their behalf. And the statistical chances of Pandits returning to Kashmir if the brutal military occupation ends tomorrow are slimmer than of Arundhati joining the BJP.
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Arundhati seeks justice, too, “for Dalit soldiers killed in Kashmir whose graves I visited on garbage heaps in their villages in Cuddalore.” This is slick if you are writing a column for a foreign audience, the way Aussie ‘experts’ wrote on the caste composition of the Indian cricket team during the Bhajji-Symonds spat, but, hello, “Dalit soldiers” killed in Kashmir die in situations different from upper caste soldiers or Sikh soldiers or Muslim soldiers – or local, Kashmiri Muslim policemen? Don’t insult our intelligence, and the Army’s basic DNA, with this line of argument. You wish to be the defender of the rights of those oppressed in Kashmir, of the Pandits, and of the “Dalit soldiers” from among the troops who die there day in and day out? Sorry, this is just not real; it’s just not genuine, even if it is possibly good homework for global awards coming your way as defender of the rights of all oppressed sections in this part of the world.
Arundhati’s also looking for justice “for the Indian poor who pay the price of this occupation in material ways and who are now learning to live in the terror of what is becoming a police state”, but I have little comment to offer on this because, frankly, it is a little too esoteric for me to understand the point. I understand that India is in selective ways and selective zones a police state of sorts, but how insensitive policing in interior Bihar is attributable to Kashmir’s status – and how Azadi will address that – must have a subtle connect which my everyday, non literary mind has singularly failed to grasp. But then, we are all not blessed with equal talents.
Anyway, this is not one of Ms Roy’s essays, so I daren’t type away endlessly.
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I’ll conclude.
You say, Arundhati, “Pity the nation that has to silence its writers for speaking their minds. Pity the nation that needs to jail those who ask for justice, while communal killers, mass murderers, corporate scamsters, looters, rapists, and those who prey on the poorest of the poor, roam free.” I say, you are jumping the gun. Neither have you been silenced at any point for speaking your mind – distasteful as it may be to many when it veers towards applauding anyone willing to kill an Indian soldier, be it a Naxal in Chattisgarh or a terrorist in Kashmir – nor does the nation need to be pitied. Yet, writers and dissidents are silenced, in friendlier and I suppose less ‘brutal’ societies such as Pakistan, China, Myanmar, but the very fact that you can issue statements and notes challenging the same to be done here is, perhaps, the strongest negation of those statements. Yes, many murderers, scamsters and rapists still roam free, and no, we aren't proud of that in the least, but no, you haven’t been jailed for asking for justice. And I don’t see that happening. Truth be told, I think you don’t see it happening either.
So while one gives all credit to your intellectual prowess, I don’t think this overdose of pity for the nation is quite deserved. It's a lot of hyperbole. As part of ‘the nation’, even if just one-billionth, I respectfully wish to return my proportion of pity offered by you, Ms Roy. Please accept it. And while you’re at it, pass it on to Mr Geelani; I daresay he needs it more.
CONCLUDED
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विश्वनाथ जी,
अंशुल जी के कथन से पूर्णतया सहमत हूँ। इन्ही बातों को मैंने अपने पूर्व लेख - "क्या हिंदुस्तान आज़ाद है ?" , में उल्लिखित किया था। जरूरत है लोग समझें इन बातों को। हर छोटी बड़ी बात को इग्नोर करके , अपने आप में मशगूल हो जाने से कुछ नहीं होगा।
यदि अरुंधती जैसी लेखिका भी देश के प्रति अपने बयान को नहीं समझेंगी तो आम इंसान से क्या उम्मीद रखें। आज वैसे ही हज़ारों गिलानी हमारे देश को बांटने में एक-जुट हो गए हैं। ऐसे में अनुधाती जैसे साहित्यकारों का, फूट डालने वाले नेताओं के साथ हाथ मिला लेना , चिंता का विषय है।
इस घटना को हलके में नहीं लेना चाहिए, तथा देश-द्रोही बयान देने वालों के खिलाफ सख्त से सख्त कारवाई होनी चाहिए।
ऐसे लोग ही आतंकवाद का हिस्सा बनते हैं एक दिन।
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इतिहास में बहुत कुछ हुआ कुछ लोगो के निजी स्वार्थ और गलत निर्णय की वजह से आज ये स्तिथि आई है.. किन्तो एक बुद्दिजीवी देश प्रेमी व्यक्ति का ऐसा वक्तव्य रुचिकर नहीं लगा.. दिव्या .. बहुत सामाजिक सोच है आपकी .. शुभकामना..
Dearest ZEAL:
Just happened to read a fantastic and quite pertinent ghazal written by famous Pakistani poet Ahmed Faraz.
It is a sad lament on the Partition of Undivided India and since the Kashmir issue is essentially a fall-out of the same error, I guess the ghazal is worth a read. Here it is -
ab kis kaa jashn manaate ho us des kaa jo taqsiim huaa
ab kis ke giit sunaate ho us tan-man kaa jo do-niim huaa
[taqsiim=divided; do-niim=cut in two]
us Khvaab kaa jo rezaa rezaa un aa.Nkho.n kii taqadiir huaa
us naam kaa jo Tuka.Daa Tuka.Daa galiyo.n me.n be-tauqiir huaa
[rezaa-rezaa=pieces; be-tauqiir=disrespect]
us parcham kaa jis kii hurmat baazaaro.n me.n niilaam hu_ii
us miTTii kaa jis kii hurmat mansuub uduu ke naam hu_ii
[parcham=flag; hurmat=respect/honour; niilaam=auction]
[mansuub=nominated/appointed; uduu=enemy]
us jang ko jo tum haar chuke us rasm kaa jo jaarii bhii nahii.n
us zaKhm kaa jo siine pe na thaa us jaan kaa jo vaarii bhii nahii.n
[jang=war; vaaranaa=to offer in sacrifice]
us Khuun kaa jo bad_qismat thaa raaho.n me.n bahaayaa tan me.n rahaa
us phuul kaa jo beqiimat thaa aa.Ngan me.n khilaa yaa ban me.n rahaa
[ban=jungle]
us mashriq kaa jis ko tum ne neze kii anii marham samajhaa
us maGarib kaa jis ko tum ne jitana bhii luuTaa kam samajhaa
[mashriq=east; nezaa=spear; anii=spear's point]
[marham=salve/ointment; maGarib=west]
un maasuumo.n kaa jin ke lahuu se tum ne farozaa.N raate.n kii.n
yaa un mazaluumo.n kaa jis se Khanjar kii zubaa.N me.n baate.n kii.n
[farozaa.N=illuminate; mazaluum=oppressed]
us mariyam kaa jis kii iffat luTatii hai bhare baazaaro.n me.n
us iisaa kaa jo qaatil hai aur shaamil hai Gam_Khvaaro.n me.n
[iffat=chastity]
in nauhaagaro.n kaa jin ne hame.n Khud qatl kiyaa Khud rote hai.n
aise bhii kahii.n dam_saaz hue aise jallaad bhii hote hai.n
[nauhaagar=mourner; dam_saaz=supporting; jallaad=executioner (cruel)]
un bhuuke nange Dhaa.Ncho.n kaa jo raqs sar-e-baazaar kare.n
yaa un zaalim qazzaaqo.n kaa jo bhes badal kar vaar kare.n
[Dhaa.Nchaa=skeleton; raqs=dance; qazzaaq=dacoit]
yaa un JhuuTe iqaraaro.n kaa jo aaj talak aifaa na hue
yaa un bebas laachaaro.n kaa jo aur bhii dukh kaa nishaanaa hue
[aifaa=to fulfill]
is shaahii kaa jo dast-ba-dast aa_ii hai tumhaare hisse me.n
kyo.n nang-e-vatan kii baat karo kyaa rakhaa hai is qisse me.n
[shaahii=royal]
aa.Nkho.n me.n chhupaaye ashko.n ko ho.nTho.n me.n vafaa ke bol liye
is jashn me.n bhii shaamil huu.N nauho.n se bharaa kashkol liye
[nauhaa=lamentation; kashkol=beggar's bowl]
Semper Fidelis
Arth Desai
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