ईर्ष्या एक ऐसा ही घातक मानसिक विकार है , जिसकी परिणति अक्सर भयानक होती है। लोगों को पता भी नहीं चलता कि कब वो ईर्ष्या से ग्रस्त हो गए हैं। यह एक ऐसा मानसिक विकार है जो व्यक्ति को अति-दयनीय स्थिति में पहुंचा देता है ईर्ष्या का मन में प्रादुर्भाव अक्सर कुछ खो देने अथवा दूर हो जाने के एहसास के कारण होता है।
ईर्ष्या में अक्सर एक त्रिकोण होता हैं । त्रिकोण के दो सिरों पर खतरा मंडराता रहता है। और ईर्ष्यालु व्यक्ति खुद को तो नष्ट कर ही रहा होता है। अर्थात तीनों कि ही हानि होती है।
प्यार जब अप्राप्य हो जाता है तो भी व्यक्ति ईर्ष्या से ग्रस्त हो जाता है , तीसरे व्यक्ति से द्वेष रखने लगता है कि इसने मेरा प्यार छीन लिया। वह उस तीसरे व्यक्ति को अपना प्रतिद्वंदी समझने कगता है। ऐसी स्थिति में अक्सर स्त्री का जीवन खतरे में होता है। ईर्ष्या बढ़ने के साथ साथ वह व्यक्ति उन दोनों कि मृत्यु का कारण भी बन सकता है।
आफिस में एक कर्मचारी को दुसरे से इर्ष्या हो सकती है, कि यह बौस का ज्यादा प्रिय है। प्रायः सास को बहू से ईर्ष्या होती है कि यह मेरे पुत्र को मुझसे छीन रही है। जबकि वास्तविकता यह नहीं होती। विवाह के बाद पुरुष का प्यार तो बंटना ही है। समझदार माएं कभी बहू से ईर्ष्या नहीं रखती और उनके घर में बहू , एक बेटी कि तरह शान से रहती है।
अक्सर ये ईर्ष्या बच्चों और उन टीनेजर्स में भी देखने को मिलती है , जिनमें आत्मविश्वास तथा आत्म सम्मान [ self esteem ] कम होता है। तथा उनमें ये ईर्ष्या ऐग्रेसिव [ आक्रामक ] रूप धारण कर लेती है । यही कारण है आज बच्चों में बढ़ते क्राइम का। बच्चों में अक्सर गहरी दोस्ती , उनके अन्दर भावनात्मक असुरक्षा तथा एकाकीपन पैदा करती है । वो यह नहीं बर्दाश्त कर पाते कि उनका दोस्त किसी दुसरे से बात करे।
मनोवैज्ञानिकों का मानना है कि , छेह महीने वाले नवजात शिशु भी ईर्ष्या से ग्रस्त हो सकते हैं। यदि माँ किसी दूसरे बच्चे पर ज्यादा ध्यान दे रही है, तो शिशु डिस्ट्रेस के लक्षण व्यक्त करता है। इसी कारण से सिबलिंग- राइवेलरी भी होती है।
ईर्ष्या एक ऐसी प्रतिक्रिया है , जिसमें ईर्ष्याग्रस्त मनुष्य , किसी के बारे में मनमाना रिश्ता बनाकर सोचने लगता है , जो कभी सच , कभी आभासी तो कभी पूर्णतया काल्पनिक होता है। ईर्ष्यालु व्यक्ति सदैव अपने को एक अनजाने खतरे से घिरा हुआ पाता है । उसका आत्मविश्वास कम होने लगता है और वो भावनात्मक रूप से टूटने लगता है । भय और शंका से ग्रस्त होकर वो अक्सर अजीबोगरीब हरकतें करता है और खुद को बहुत ही दयनीय स्थिति में पहुंचा देता है।
वह जहाँ भी जाता है , उस व्यक्ति कि निंदा अपने साथियों के साथ करता है। उसके इस कृत्य में उसके ' लो सेल्फ-इस्टीम ' वाले साथी , उसका साथ देते हैं , और उसको बर्बादी कि ओर अग्रसर करते हैं । इन मौका परस्त दोस्तों के साथ जब वह निदा करके अपनी भड़ास निकाल लेता है तो थोडा सा संयत महसूस करता है और तब ही भोजन ग्रहण करने कि अवस्था में आ पाता है। लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी होती है। वह व्यक्ति अपनी निजी गांठें खोल चुका होता है तथा समाज के सामने नंगा हो चुका होता है।
एक ईर्ष्यालु व्यक्ति , अपनी ईर्ष्या कि बढती हुई भावना के चलते , लगातार अपने आस पास वालों से ये आश्वासन मांगता रहता है कि वह बेहतर है , और धीरे-धीरे वह इसी भ्रम में अपनी जिंदगी गुजारने लगता है।
एक ईर्ष्या से ग्रस्त व्यक्ति में निम्नलिखित लक्षण देखे जा सकते हैं--
- कुछ खो देने का भय
- किसी के धोखा देने का संशय अथवा गुस्सा
- अनिश्चितता तथा जिंदगी में खालीपन
- अपने किसी ख़ास व्यक्ति या मित्र को किसी दुसरे प्रभावी व्यक्तित्व वाले व्यक्ति के हाथों खो देने का भय
- खुद पर अविश्वास
- हीन भावना से ग्रस्त होना।
- खोई हुई वास्तु या मित्र को पाने के लिए छटपटाना
- परिस्थियों से द्वेष रखना [ रिसेंटमेंट ]
- जिससे इर्ष्या करता है उसका निरंतर बुरा सोचना तथा उसको नुक्सान पहुंचाने कि योजना में लिप्त
- अक्सर अपने निंदनीय कार्यों के कारण , आत्मग्लानि के बोझ तले दबा रहता है
- अपने प्रतिद्वंदी कि खूबियों को पा जाने कि लालसा रखना
- अपनी भावनाओं [ इर्ष्या ] को स्वीकार करने से इनकार करना
- ऐसे लोग बहुत ही पजेसिव प्रवित्ति के होते हैं.
ईर्ष्या में व्यक्ति , दुसरे से ज्यादा खुद को ही नुकसान पहुंचाता है । यह एक घातक मानसिक विकार है। इसपर नियंत्रण रखिये।
ईर्ष्या से बचने का उपाय -
ईर्ष्या से बचने के लिए , उसकी प्रशंसा कीजिये जिससे आप ईर्ष्या रखते हैं और अपने मन को निर्मल रखिये।
एक दिन वो मेरे ऐब गिनाने लगा मुझे ,
जब खुद ही थक गया तो मुझे सोचना पड़ा ....
आभार।
71 comments:
ईर्ष्या और उससे बचने के उपाय पर पर एक सार्थक और प्रभावी चिन्तन.
आचार्य रामचंद्र शुक्ल के बाद 'ईर्ष्या' पर लिखा गया एक श्रेष्ठ लेख.
मनोवैज्ञानिक सोच और सूक्ष्मतम चिंतन का उदाहरण
आने वाले समय में साहित्यकार इसे संग्रह करके रखेंगे.
इस लेख से सामग्री लेकर अन्य लेख लिखे जा सकते हैं.
मनोभावों पर लिखा एक श्रेष्ठतम निबंध.
सतत लेखन से निकला एक अमूल्य विचारशील लेख.
लेख के अंत में मनोरोग से मुक्ति का उपाय बताकर आपने एक डॉक्टर की भूमिका भी अदा कर ही दी.
ईर्ष्या का विश्लेषण .. और उसका निदान ... फिर एक प्यारी सी शायरी .. दिव्या जी आप कमल करते हो.. बहुत बढ़िया लेख..
दिव्या जी,
'ईर्ष्या' पर लिखा गया एक सर्वग्राह्य लेख।
इसीप्रकार के चिंतन-मनन से मन निर्मल बनते है।
प्रतुल जी के उदगारों को हमारा भी समझा जाय।
देश हित में नीचे किये गए लिंक का लेख पढ़ कर सोचे की क्या हमारा भविष्य सुरक्षित है ?
rahulworldofdream.blogspot.com/2010/10/blog-post_20.html
बढ़िया आलेख.
बहुत दिन बाद आने के लिये क्षमा चाहती हूँ। लेकिन मुझे तो भगवान से ही ईर्ष्या हो रही है जिस ने तुम्हें मेरी बेटी होने का अधिकार किसी और को दे दिया। हा हा हा\ उपयोगी पोस्ट है
बस चिन्तन मनन की जरूरत है। आशीर्वाद।
बहुत शानदार आलेख...अच्छा लगा.
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'पाखी की दुनिया' में पाखी की इक और ड्राइंग...
इस विषय पर इतनी सरल भाषा में इतना बढ़िया लेख मैंने कभी नहीं पढ़ा.मुझे लगता है की थोड़ी बहुत इर्ष्या हम सभी में स्वाभाविक रूप से होती ही है परन्तु थोड़े से प्रयासों से हम इसे रोक भी सकते है.आप कठिन विषय पर भी बहुत सरल शब्दों में लिख सकती है.ये आपकी विशेषता है.बधाई.
GREAT POST.
आपके पिछले आत्मा विषयक आलेख पर निम्न ब्लॉग पर भी आपके नाम और आपके ब्लॉग का उल्लेख करते हुए bloger ने चर्चा आमंत्रित की है.
http://jitendtajauhar.blogspot.com
"इन्द्रिय निग्रहण" ज़रा ठीक से पढ़ लूं ,फिर इस पर टिप्पणी लिखूंगा.
क्या करें,आप विषय भी तो बड़े typical टाइप के लेती हैं मैडम,
आपके विषयों में छुपे गूढ़ अर्थों और मंतव्यों को समझने में थोड़ा समय लगता है.
कुँवर कुसुमेश
मानवीय गुणों का सरल , सक्षम चित्रण , सार्थक शीर्षक, विषय वस्तु, व् सरल शैली के माध्यम से बहुत सहजता से प्रस्तुत करने के लिए बधाई .
सुगम शब्दों में बोधात्मक आलेख . ईर्ष्या जैसे मनोविकार पर आपकी लेखनी खूब चली है . वैसे हर मनुष्य इस विकार से ग्रस्त तो होता ही है , कम या ज्यादा. आप हम भी इसके अपवाद नहीं हो सकते , धन्यवाद .
accha lekh .
aabhar
कोई ईर्ष्यालु व्यक्ति इत्मिनान से इस आलेख को पढ़ ले तो वह इस मानसिक विकार से मुक्ति पा जायेगा ये पक्का है. लेकिन मैडम, अब मुझे आपसे इर्ष्या हो रही है क्योकि मैं इतना लोकोपयोगी आलेख आज तक नहीं लिख पाया.SORRY, हंसी में कह गया, माफ़ करियेगा. मैं एक स्वस्थ समाज की संरचना में विश्वाश रखता हूँ इसलिए ऐसी संरचना में उपयोगी आलेखों को पढ़कर मन खुश हो जाता है,फिर आपका आलेख तो उनमें श्रेष्ठ है.
कुँवर कुसुमेश
सार्थक एवं प्रभावी पोस्ट के लिए बधाई स्वीकार करें........
वाह इतनी बात इर्ष्या पे..
एक बात बताऊँ, कभी एक समय में मुझे लगा की मेरे ऊपर भी ये बीमारी आ रही है..बहुत पहले की बात है...
लेकिन शुक्र है, ज्यादा दिन बीमारी टिकी नहीं...:)
7/10
गंभीर विश्लेष्णात्मक लेखन
परिपक्वता और पूर्णता लिए पठनीय पोस्ट
अच्छा विषय चयन
ईर्ष्या का विश्लेषण और उसका निदान पर लिखा गया एक सर्वग्राह्य लेख।
सार्थक एवं प्रभावी पोस्ट के लिए बधाई स्वीकार करें........
वैसे अपना तो इरादा है भला होने का
पर मज़ा और है दुनियां में बुरा होने का
तो अपनी बात बुरा होकर ही शुरु करता हूं,
मुझे आपसे ईर्ष्या हो रही है।
"क्यो?"
नहीं बताता।
@ इर्ष्या से बचने के लिए , उसकी प्रशंसा कीजिये जिससे आप इर्ष्या रखते हैं और अपने मन को निर्मल रखिये।
अब इस हो गई ईर्ष्या से बचने के लिए नीचे दोनों बाते हैं -- इस प्रश्न का उत्तर और आपकी उक्त सलाह की तामील--
आप इतना अच्छी लिखती हैं कि आपसे ईर्ष्या होने लगी है।
अब मन निर्मल हुआ तो यह बताता चलूं कि ईर्ष्या के लाभ भी हैं। यह हम जैसे ईर्ष्यालू लोगों को और अच्छा लिखने को प्रेरित करती है।
है .... ना?
bahut badhiya post....saarthak... mujhe lagta hai irshya duniya ki sabse bari bimaari hai.
दिव्या जी,
'ईर्ष्या' पर लिखा गया एक सर्वग्राह्य लेख।
इसीप्रकार के चिंतन-मनन से मन निर्मल बनते है।
प्रतुल जी के उदगारों को हमारा भी समझा जाय।sabhar-sugyji
pranam.
"नबी" मतलब ईश्वर का दूत / पैग़म्बर
यह अरबी का शब्द है.
कुँवर कुसुमेश
ईर्ष्या, तू न गयी मेरे मन से।
मनोज जी,
दो तरह के भाव हैं-
१- Jealousy [ इर्ष्या ]-- यह सदैव नकारात्मक ही है। इसमें व्यक्ति के पास जो पहले से ही है उसे पूरा का पूरा पा जाना चाहता है। उदहारण - एक बच्चा अपने भाई से इर्ष्या रखता है की माँ- बाप का पूरा प्यार उसे ही मिले।
२- Envy [sort of competitive feeling]--या सकारात्मक है , जो बेहतर बनने के लिए प्रेरित करती है। इसमें व्यक्ति अपने से बेहतर गुण वाले की तरह बनना चाहता है। उदहारण-जैसे कक्षा में एक विद्यार्थी अपने से बेहतर वाले की तरह बनना चाहता है।
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Brilliant writing!
Congratulations.
This time you have exceeded your own standards.
Even Ustaadji has awarded you 7 out of 10.
Normally he is not so generous.
I agree entirely with your analysis.
But I wish you had included some advice for the person who is the target of jealousy.
What should he or she do?
Regards and best wishes
G Vishwanath
बिल्कुल सही कहा……………सुन्दर प्रस्तुति।
आपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
प्रस्तुति कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
कल (22/10/2010) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
अवगत कराइयेगा।
http://charchamanch.blogspot.com
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विश्वनाथ जी ,
आपने बहुत ही अच्छा प्रश्न किया ।
जो व्यक्ति ईर्ष्यालु व्यक्ति के निशाने पर है , उसे विचलित नहीं होना चाहिए तथा ईर्ष्यालु व्यक्ति को इग्नोर करना चाहिए और उससे दूरी बनाकर रखनी चाहिए। क्यूंकि ईर्ष्यालु व्यक्ति से बात करने का भी कोई लाभ नहीं होगा । इर्ष्या से ग्रसित होने के कारण , वह तर्क-संगत बातों को नहीं समझ पाता है।
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DIVYA GEE
BAHUT HEE SUNDAR ,DIL KO CHHOO LENE WALI BAT LIKHEE HAI AAPNE...ACHCHHEE POST KE LIYE BADHI
दिव्या जी
पूरे लेख का भावार्थ यानी भाव और अर्थ दोनों समझ गई :))))
मुझे भी आप की टिप्पणियों की संख्या देख कर ईर्ष्या होती है और आप जानती है की ऐसी ईर्ष्या रखने वाली मै अकेली नहीं हु :)))
mam your blog is realy very nice
सही लिखा है आपने ...
इसलिए मैं आपसे सहमत हूँ .
इस सार्थक लेख के लिए .
आपको बधाई ......
ईर्ष्या स्वस्थ प्रतिस्पर्धा के रूप में हो तो सकारात्मक परिणाम देती है ...
पता नहीं क्यूँ , मुझे तो किसी से ईर्ष्या होती ही नहीं , होती भी है तो थोड़ी देर के लिए ...
सर झटकते ही गायब हो जाती है ...
अच्छा आलेख ...!
इर्ष्या से बचने के लिए , उसकी प्रशंसा कीजिये जिससे आप इर्ष्या रखते हैं और अपने मन को निर्मल रखिये।
उत्तम भाव ।
सही कहा , मगर मेरा एक कजिन कहता है कि अगर इंसान इर्ष्या ही नहीं करेगा तो उसके अन्दर कम्पीटीशन की भावना पल्वित नहीं होगी !
अगर ईर्ष्या ग़लत है... तो वो इस दुनिया में है ही क्यूँ ...
ये तमाम ग़लत चीज़े इस दुनिया में होती ही क्यूँ है....
" अति सर्वत्र वर्ज्यते " अति सदा ही ग़लत है
पर नियंत्रित मात्रा में ईर्ष्या एक स्वस्त्य प्रतिस्पर्धा को जन्म दे सकती है
जो आपको पहले से भी अच्छा और बेहतर परिणाम देगी...
इसलिए ईर्ष्या भी होना ठीक है ...
मुझे लगता है ... आपके स्तर का लेख लिखने के लिए
मुझे आपसे जरा सी ईर्ष्या करनी चाहिए ...
शायद मैं भी अच्छा लिख सकूँ ...
अच्छी सोच है आपकी ...लेख भी सुन्दर है ..
दिव्या आपकी यह पोस्ट निसंदेह बहुत अच्छी है।
असामान्य मनोविज्ञान पर आधारित यह आलेख आपकी गहन चिंतन क्षमता का परिचायक है। आपके द्वारा निष्पादित ईर्ष्या का त्रिकोण सिद्धांत एकदम सटीक लगा। इस त्रिकोण का तीसरा बिंदु कुछ परिस्थितियों में कोई वस्तु या किसी की बेहतरीन उपलब्धि भी हो सकती है जो एक व्यक्ति का दूसरे के प्रति ईर्ष्या का कारण बनता है। ईर्ष्या करने वाले का सबसे बड़ा शत्रु ईर्ष्या ही है। दूसरे शत्रु भले ही हानि न पहुचाए लेकिन ईर्ष्या ईर्ष्यालु का निश्चित रूप से अहित ही करती है। यह एक नकारात्मक और अवांछित मनोभाव है। इसे आपने मेलिग्नेंट कैंसर की संज्ञा दी है जो बिल्कुल सही है। ईर्ष्या ऐसी आग है जिसे व्यक्ति स्वयं जलाता है और स्वयं ही उसमें जलता भी रहता है। असृजनशील व्यक्ति ईर्ष्या के जल्दी शिकार होते हैं लेकिन जिन व्यक्तियों में सही अर्थों में सृजनशीलता होती है, वे प्रायः ईर्ष्यालु नहीं होते।...इस उपयोगी आलेख के लिए आपको बधाई।
हमें अपने मन में आये इन वेगों को धारण करना चाहिए अर्थात इन पर पूर्ण नियंत्रण होना चाहिए। इस एक वाक्य के अलावा संपूर्ण आलेख सुंदर बन पड़ा है । यदि यह वाक्य कुछ यूं होता तो सही होता :हमें अपने मन में आये इन वेगों का शमन करना चाहिए अर्थात इन पर पूर्ण नियंत्रण होना चाहिए। धारण करने से अर्थ बिल्कुल विपरीत्त हो जाता है । धारण का मतलब होता है ग्रहण करना । कृपया अन्यथा न लें ।
दूसरी बात, ईर्ष्या उतनी ही अच्छी होती है, जितना भोजन में नमक । नमक ज्यादा होने से कोई भी व्यंजन का स्वाद जाता रहता है, ठीक उसी प्रकार जीवन में भयंकर ईर्ष्या होने से जीवन नरक हो जाता है ।
पुन: कहूँ आलेख उत्तम बन पड़ा है । इंद्रिय निग्रह पर लेख में अधिक कुछ नहीं है, इसलिए शीर्षक में इसे स्थान नहीं देना चाहिए था । ईर्ष्या इंद्रियोंजनित एक भाव मात्र है ।
इर्ष्या, कभी कभी यह इर्ष्या इंसान को आगे बढ़ने को भी प्रेरित करती हैं...
मैं बुरी तरह से इस बीमारी से पीड़ित हूँ...अगर किसी को कहीं अपने से आगे पाता हूँ, तो उससे इर्ष्या होने लगती है..और उसके आगे निकलने की होड़ में लग जाता हूँ...मुझे लिखने का शौक नहीं था | मेरे भैया को शौक था और जब लोग उनकी तारीफ करते थे तभी से यह कीड़ा कुलबुला गया लिखने का ..खैर ऐसा मेरे साथ होता है बाकियों का क्या, पता नहीं....
मनोज जी,
दो तरह के वेग होते हैं --
१- अधारणीय वेग - [ Non-suppressible urges ]
२- धारणीय वेग - [ Suppressible urges ]
अधार्णीय वेगों की संख्या तेरह होती है जिन्हें रोकना नहीं चाहिए , जो इस प्रकार हैं -- Sleep, Cry, Sneeze, Breathe, Belch, Yawn, Vomit , eat , drink, urinate, ejaculate, defecate and Flatulate.
धारणीय वेगों की संख्या छेह होती है जिन्हें पयत्न करके धारण करना चाहिए अर्थात रोकना चाहिए । ये हैं -- काम , क्रोध, लोभ , मोह , मद और मत्सर [ ईर्ष्या ] ।
धारण करने का अर्थ है , अपने अन्दर रोकना अर्थात -- To contain .
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इन्द्रियों की संख्या एकादश होती है। हमारा मन एक उभयेंद्रिय है जो चिंतन , मनन आदि कार्य करता है तथा मन रूपी इन्द्रिय ही इन मानसिक विकारों का हेतु है। इसलिए मन पर नियंत्रण बहुत जरूरी है।
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संभवतः उपरोक्त व्याख्या पर्याप्त है कि क्यूँ 'धारण' तथा 'इन्द्रिय' शब्द का प्रयोग किया गया।
आभार।
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'Dharan' means - To contain or to suppress.
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ईश्वर इस सारे ब्रह्माण्ड का राजा है। इन्सानों को उसी ने पैदा किया और उन्हें राज्य भी दिया और शक्ति भी दी। सत्य और न्याय की चेतना उनके अंतःकरण में पैवस्त कर दी। किसी को उसने थोड़ी ज़मीन पर अधिकार दिया और किसी को ज़्यादा ज़मीन पर। एक परिवार भी एक पूरा राज्य होता है और सारा राज्य भी एक ही परिवार होता है। ‘रामनीति‘ यही है। जब तक राजनीति रामनीति के अधीन रहती है, राज्य रामराज्य बना रहता है और जब वह रामनीति से अपना दामन छुड़ा लेती है तो वह रावणनीति बन जाती है।
sarthak post bahut jankari , badhai
धारण शब्द संस्कृत के धृ धातु से आया है और जो धारण किया जाता है वही मनुष्य का धर्म होता है । वेग के संबंध में Non-suppressible urges और Suppressible urges से सहमत हूँ , लेकिन काम , क्रोध, लोभ , मोह, मद और मत्सर कद धारण नहीं किया जाता बल्कि इन्हें रोका जाता है अर्थात ये धर्म के विरुद्ध हैं । इसलिए इनका शमन किया जाना चाहिए । किसी अच्छे हिंदी-अंग्रेजी शब्दकोश में धारण का अर्थ मिलता है : holding, wielding, supporting, maintenance or maintaining, wearing, assumption, retention . अगर to contain अर्थ को भी स्वीकार करें तो भी आपका लेख में आशय गलत हो जाएगा ।
भूल सुधार :: टंकण की भूलवश काम , क्रोध, लोभ , मोह, मद और मत्सर कद धारण नहीं किया जाता बल्कि इन्हें रोका जाता है यहाँ कद को "को" पढ़िए ।
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मनोज जी,
धारण शब्द , अथर्ववेद के उपवेद - आयुर्वेद में धारणीय तथा अधार्णीय वेगों के लिए प्रयुक्त हुआ है। इससे ज्यादा प्रमाण मैं नहीं दे सकती। मुझे ये प्रयोग पूरी तरह उपयुक्त लग रहा है। ग्रंथों [ चरक संहिता ] में धारणीय और अधार्णीय वेगों के परिपेक्ष्य में वर्णित शब्द को मैं बदल नहीं सकती । ये शब्द महर्षि अग्निवेश द्वारा प्रतिपादित है । इसे मैं अपनी मर्जी से बदल नहीं सकती।
यहाँ धारण करने से तात्पर्य - रोकना है , नियंत्रण करना है , suppress करना है।
मुझे खेद है की इससे बेहतर मैं नहीं समझा सकती।
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धन्यवाद !!! इस संदर्भ से मुझे आगे अध्ययन में सुविधा होगी ।
ईर्ष्या तू न गयी मेरे मन से... हसद आगे बढ़ने के लिये जरूरी है, लेकिन कुछ हद तक. उस हद के बाद यह बहुत घातक है...
... gyaanvardhak abhivyakti ... shaandaar post !!!
मैंने कहीं पढ़ा था कि ईर्ष्या, द्वेष, मत्सर और घृणा ये सभी आध्यात्मिक रोग हैं. तुलसी दास ने भी इनका रोगों के रूप में कहीं वर्णन किया है.
good reply !!!!! keep it up
दिव्या जी,
नमस्कारम्!
आपके ब्लॉग पर आना सुखद है। आपने ‘ईर्ष्या’ विषय पर जो प्रकाश डाला है,उसे यक़ीनन दैनिक जीवन में घटित होते देखा जाता है।
बताता चलूँ कि ‘ईर्ष्या’ की दो बहनें और हैं; वे भी कम ख़तरनाक नहीं।
अभी यहाँ पर उन दोनों बहनों के नाम-मात्र छोड़कर जा रहा हूँ क्योंकि जल्दी में हूँ। वादा तो नहीं करूँगा, हाँ...कोशिश करूँगा (यदि समय मिल सका तो) कि उन पर कुछ Comprehensive light अपने ब्लॉग पर डाल सकूँ। शाम तक एकबार उधर घूम जाइएगा।
हाँ तो मैं बात कर रहा था ईर्ष्या की ‘दो बहनो’ की। उनके नाम हैं- ‘असूया’ और ‘पिशुनता’। इन दोनों का सानिध्य और संगति शास्त्रों में त्याज्य बतायी गयी है। इन दोनों का उल्लेख ‘मनुस्मृति’ एवं महाभारत में आया हैं
Irshiya tu na gayi mere mun se....! Jealousy is probably one of the most common emotions of mankind and each one of us experiences it at one or the other point of time. But hardly ever we sit back and think the effects and side-effects of it. Your brilliantly written article set me thinking about it and helped me take a step towards getting rid of it.
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ब्लॉग जगत भी ईर्ष्या से वंचित नहीं रहा । तकरीबन ८० % लोग ईर्ष्या का शिकार हैं। जिसमें से २० % लाइलाज हैं। ४० % के सँभालने की उम्मीद है तथा २० % चिकना घड़ा हैं।
सौ में से बचे हुए २० % सबसे खतरनाक हैं। वो कहीं कुछ लिखते ही नहीं। चुपाई मार जाते हैं। कौन समझेगा भला उनके अन्दर की अग्नि ? लेकिन सौभाग्य से ऐसे चुप्पों का चुप रहना ही बेहतर। कहीं उन्होंने आग उगलनी शुरू कर दी तो भस्म होना तो तयशुदा है।
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कुंवर कुसुमेश जी,
आपने एक बहुत ही संजीदा प्रश्न उठाया है चर्चामंच पर। जिसका उत्तर भी ईर्ष्या है।
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रचना जी, आपकी टिपण्णी किसी पूर्वाग्रह से ग्रसित तथा रहस्यमय लगती है।
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बहुत ही सुंदर.
http://sudhirraghav.blogspot.com/
विषय की सुन्दर विवेचना की आपने..
बहुत सही कहा -
ईर्ष्यालु व्यक्ति सदैव अपने को एक अनजाने खतरे से घिरा हुआ पाता है । उसका आत्मविश्वास कम होने लगता है और वो भावनात्मक रूप से टूटने लगता है । भय और शंका से ग्रस्त होकर वो अक्सर अजीबोगरीब हरकतें करता है और खुद को बहुत ही दयनीय स्थिति में पहुंचा देता है।
सकारात्मक माध्यमों से जुड़कर व्यक्ति मानसिक रूप से शक्तिशाली हो सकता है और अपने इस नकारात्मक व्याधि पर विजय पा सकता है...
बहुत सटीक ... हालाकि इसके कुछ अंश हर मनुष्य में पाए जाते हैं ... आभार
खेद है कि सहमति नहीं बन पा रही है। उस व्यक्ति की प्रशंसा कैसे की जाए जिससे ईर्ष्या हो? जिसका मन इतना विवेकी होगा,वह ईर्ष्या ही क्यों करेगा? ऐसा भी प्रतीत होता है कि ईर्ष्या को स्थायी भाव मान लिया गया है। ईर्ष्या से बचने के लिए,ईर्ष्यालु विचारों को साक्षी भाव से देखना अधिक निदानकारी हो सकता है।
बहूत सुंदर लेख, वेसे ईर्ष्या तो बहुत से लोग करते हे, लेकिन अगर यह अच्छी तरफ़ हो तो ठीक हे अगर बुराई की तरफ़ हो तो घातक होती हे, आप की कोई अच्छी आदत हे, उसे देख कर मुझे ईर्ष्या होगी तो मै भी उस अच्छी आदत को ग्राहण जरुर करुंगा, आप अच्छॆ ना० से पास हो रहे हे तो मै भी ईर्ष्या बस ज्यादा मेहनत कर के ज्यादा ना० लाऊं ऎसी ईर्ष्या अच्छी हे,म लेकिन जब ईर्ष्या बस किसी का बुरा करुं वो गलत हे,वेसे ईर्ष्या करने वाले सिर्फ़ ओर सिर्फ़ अपना ही नुकसान करते हे, धन्यवाद
वैसे तो ईर्ष्या घुन बनकर हमारे अंतर्संबंधों की जड़ों को खोखला कर देती है और हमारे जीवनों में जहर घोल देती है, और सृजनात्मक पथों पर आगे से बढ़ने की बजाए हमें विंध्वसात्मक रास्तों पर ढकेल देती है. पर कभी कभी यह हमें बेहतर करने और रचने के लिए भी प्रेरित करती है. अपने गहन विवेचनात्मक आलेख में इसके हर संभव पक्ष के अंत र्विरोधों को उदधाटित करती यह ज्ञानवर्धक और सार्थक पोस्ट वाकई सोचने के लिए विवश कर देती है. आभार.
सादर
डोरोथी.
बहुत ही सुंदर आलेख इर्ष्या पे. इस इर्ष्या का असर ब्लॉग जगत मैं भी देखा जा सकता है.
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@--तो मैंने फिर पूछा क्या आप उस घर को जानते हैं जहाँ बहुत कम लोग आते हैं?
उसने कहा नहीं, मैं तो मजमा लगाए घरों में ही आता-जाता हूँ...
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उपरोक्त पंक्तियाँ एक मित्र ब्लोगर ने अपने ब्लॉग पर लिखी हैं। उसे पढ़कर दिमाग में कुछ विचार आये जो मेरे इस लेख से सम्बंधित हैं तो सोचा यहाँ जिक्र करूँ ।
वो घर जहाँ मजमा लगा है उसके बहुत से कारण हो सकते हैं --
१-शायद उस लेखक को रो-रोकर सहानुभति बटोरने की आदत हो।
२- शायद लेखक अश्लील विषयों पर ज्यादा लिखता हो
३- शायद लेखक निंदा करने का शौक़ीन होगा , जिसके कारण वहां भड़ास निकालने वालों का मजमा लगा रहता होगा।
४- शायद मजमा लगाने वाले खुद को स्थापित करने के लिए आते होंगे एक स्थापित ब्लोगर के घर मजमा लगाने।
५- पांचवा कारण जो मुझे लगता है वह यह है की कभी-कभी लेखक की लेखनी पाठकों को सोचने के लिए मजबूर कर देती है और पाठक अपने विचार रखे बगैर वहां से नहीं जाता।
लेख जितना ही ज्यादा आंदोलित करने वाला होगा , मजमा उतम ही बड़ा होगा । इसलिए इस मजमे के मूलभूत कारण के सकारात्मक भाव को ग्रहण करना चाहिए तथा नकारात्मक भाव [ईर्ष्या] से बचना चाहिए।
अक्सर एक लेखक इस मजमे के बीच अकेला ही होता है।
' एकला चलो रे '
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देर आयद दुरुस्त आयद ! ब्लॉग पोस्ट का पूरा आनंद !!
पोस्ट और टिप्पणियाँ ....एक दूसरे की पूरक हो गयी हैं यहाँ !
.....क्या कहूँ ....चलते चलते ईर्ष्या तू ना गयी मेरे मन से !
कामना से कर्म प्रभावित होता है |
सात्विक कामना को छोड़ सभी कामनाये (या इच्छा) क्रमशः पांच विकार काम, क्रोध, लोभ,मोह, अहंकार उत्पन्न करती हैं |
[शिशु की कामना माँ का सानिध्य या attention पाने की होती है | वह माँ जिसका शिशु दूध के लिए नही रोता (attention चाहना ) , एक knowledgeful - careful - cheerful - successful माँ है | ]
ईर्ष्या पांच विकारों का offshoot है |
शुभ कामनाओं को emerge करें विकार merge होने लगेंगे |
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ज्योति प्रकाश जी,
बहुत सुन्दर तरीके से समझाया आपने।
आभार।
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आपका शुक्रिया , आपका शुक्रिया |
ॐ शांति !
Dharm Dharan or Aatm gyaan ki prena de to behtar hoga ...
Gyaan to Athaah hai competition ki bhawana na felaaye to accha h ..irshya se dikhawa utpann hota h or dikhawa lobhi karte h ..jo yhaa saaf saaf nazar aa rha h ..hum sahi chize dikhaye to sahi vichar aayenge .. sakaratmak vichar or unki power daliye tb aaye majjaa
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