मेरे पिछले लेख पर एक ब्लॉगर मित्र का वक्तव्य आया की - " सभी ब्लॉगर कुंठित ( frustrated ), होते हैं । मानो या न मानो " । उनके इसी वक्तव्य से ये लेख लिखने की प्रेरणा मिली ।
मेरे विचार से एक कवि या लेखक अपनी मूलभूत ज़रूरतों से बहुत ऊपर उठ चुका होता है । जिंदगी में उसने जो दुःख और सुख अनुभव किये होते हैं , उन्हें शब्दों द्वारा आकार देकर हज़ारों लाखों लोगों के साथ बांटता है । अपनी मुश्किलों कों हंसकर पीता है और नीलकंठ की तरह समाज के सामने एक समाधान रखता है ।
एक लेखक कुंठित नहीं होता बल्कि वो एक ऐसे पड़ाव पर होता जहाँ वो अपनी समस्याओं से लड़ना सीख चुका होता है । वो एक जुझारू व्यक्तित्व का चिंतनशील व्यक्ति होता है। जो अपनी सशक्त लेखनी द्वारा बहुत से लोगों कों कुंठा से लड़ने की ताकत देता है। लेखक और कवि तो कुंठा का इलाज हैं और अनेक समस्याओं का एक बेहतरीन समाधान भी। कितने ही लेखकों और कवियों की ओजमयी रचनाएँ , आजादी मिलने में हथियार साबित हुई हैं। आज हर व्यक्ति के पास जो ज्ञान का भण्डार है , वो किसी न किसी लेखक द्वारा लिखा , उसका अनुभूत ज्ञान ही होता है ।
कुंठित व्यक्ति अक्सर हिंसक होते हैं , जिद्दी होते हैं। उनमें सोचने , समझने और तर्क करने की शक्ति का पूर्णतया अभाव होता है । उसकी सकारात्मक शक्ति का ह्रास हो जाता है तथा वो कुछ लिख पाने की अवस्था में ही नहीं होता है । इसके विपरीत , लेखक एक चिंतनशील व्यक्तित्व है जो अपनी सकारात्मक ऊर्जा कों शब्दों में ढालकर एक नया सृजन करता है । और अपनी स्वयं की विषम परिस्थियों कों दरकिनार कर , समाजोपयोगी चिंतन में सतत संलग्न रहता है । इसलिए कवि , लेखक अथवा ब्लॉगर कों कुंठित कहना या समझना उचित नहीं लगता ।
लेखक और उसकी प्रेरणा -
हर जीवित प्राणी की कुछ मूलभूत ज़रूरतें होती हैं । यही ज़रूरतें ही हमारी प्रेरणास्रोत होती हैं । यही ज़रूरतें ख़तम हो जायेंगी तो आगे बढ़ने के लिए आवश्यक प्रेरणा नहीं मिलेगी और विकास रुक जाएगा।
पेड़-पौधे आत्मनिर्भर होते हैं । भोजन बनाने और प्रजनन में वो सक्षम हैं और यहीं उनकी ज़रूरतें ख़त्म हो जाती है । जरूरतों की आपूर्ति हो जाने के बाद प्रेरणा की समाप्ति हो जाती है।
इसके बाद चौपायों की चर्चा करें तो उनकी जरूरतें पादपों से थोड़ी ज्यादा हैं । क्यूंकि उनके पास मस्तिष्क है । वो अपने भोजन और आवास के लिए सतत प्रयत्नशील रहते हैं । उनके अन्दर भावनाएं भी होती हैं और वो हमारे साथ भावनात्मक सम्बन्ध भी स्थापित करते हैं। लेकिन फिर भी वो चिंतनशील प्राणी नहीं है । उसकी जरूरतें सीमित हैं , और इस कारण उनके पास और आगे बढ़ने के लिए प्रेरणा का अभाव है ।
मनुष्य एक चिंतनशील प्राणी है , उसकी मूलभूत ज़रूरतें भी सबसे ज्यादा होती हैं। ज़रूरतों का पूरा न होना उसे प्रेरित करता है प्रयत्नशील रहने के लिए। जैसे जैसे उसकी ज़रूरतें पूरी होती जाती हैं वो ज़रूरतें बढती जाती हैं और एक अगली आवश्यकता आकार लेने लगती है । कभी न ख़त्म होने वाली परिस्थितिजन्य ज़रूरतें ही उसके आगे बढ़ने का प्रेरणास्रोत बनती हैं।
मानवीय ज़रूरतें कुछ इस क्रम में हैं --
मेरे विचार से एक कवि या लेखक अपनी मूलभूत ज़रूरतों से बहुत ऊपर उठ चुका होता है । जिंदगी में उसने जो दुःख और सुख अनुभव किये होते हैं , उन्हें शब्दों द्वारा आकार देकर हज़ारों लाखों लोगों के साथ बांटता है । अपनी मुश्किलों कों हंसकर पीता है और नीलकंठ की तरह समाज के सामने एक समाधान रखता है ।
एक लेखक कुंठित नहीं होता बल्कि वो एक ऐसे पड़ाव पर होता जहाँ वो अपनी समस्याओं से लड़ना सीख चुका होता है । वो एक जुझारू व्यक्तित्व का चिंतनशील व्यक्ति होता है। जो अपनी सशक्त लेखनी द्वारा बहुत से लोगों कों कुंठा से लड़ने की ताकत देता है। लेखक और कवि तो कुंठा का इलाज हैं और अनेक समस्याओं का एक बेहतरीन समाधान भी। कितने ही लेखकों और कवियों की ओजमयी रचनाएँ , आजादी मिलने में हथियार साबित हुई हैं। आज हर व्यक्ति के पास जो ज्ञान का भण्डार है , वो किसी न किसी लेखक द्वारा लिखा , उसका अनुभूत ज्ञान ही होता है ।
कुंठित व्यक्ति अक्सर हिंसक होते हैं , जिद्दी होते हैं। उनमें सोचने , समझने और तर्क करने की शक्ति का पूर्णतया अभाव होता है । उसकी सकारात्मक शक्ति का ह्रास हो जाता है तथा वो कुछ लिख पाने की अवस्था में ही नहीं होता है । इसके विपरीत , लेखक एक चिंतनशील व्यक्तित्व है जो अपनी सकारात्मक ऊर्जा कों शब्दों में ढालकर एक नया सृजन करता है । और अपनी स्वयं की विषम परिस्थियों कों दरकिनार कर , समाजोपयोगी चिंतन में सतत संलग्न रहता है । इसलिए कवि , लेखक अथवा ब्लॉगर कों कुंठित कहना या समझना उचित नहीं लगता ।
लेखक और उसकी प्रेरणा -
हर जीवित प्राणी की कुछ मूलभूत ज़रूरतें होती हैं । यही ज़रूरतें ही हमारी प्रेरणास्रोत होती हैं । यही ज़रूरतें ख़तम हो जायेंगी तो आगे बढ़ने के लिए आवश्यक प्रेरणा नहीं मिलेगी और विकास रुक जाएगा।
पेड़-पौधे आत्मनिर्भर होते हैं । भोजन बनाने और प्रजनन में वो सक्षम हैं और यहीं उनकी ज़रूरतें ख़त्म हो जाती है । जरूरतों की आपूर्ति हो जाने के बाद प्रेरणा की समाप्ति हो जाती है।
इसके बाद चौपायों की चर्चा करें तो उनकी जरूरतें पादपों से थोड़ी ज्यादा हैं । क्यूंकि उनके पास मस्तिष्क है । वो अपने भोजन और आवास के लिए सतत प्रयत्नशील रहते हैं । उनके अन्दर भावनाएं भी होती हैं और वो हमारे साथ भावनात्मक सम्बन्ध भी स्थापित करते हैं। लेकिन फिर भी वो चिंतनशील प्राणी नहीं है । उसकी जरूरतें सीमित हैं , और इस कारण उनके पास और आगे बढ़ने के लिए प्रेरणा का अभाव है ।
मनुष्य एक चिंतनशील प्राणी है , उसकी मूलभूत ज़रूरतें भी सबसे ज्यादा होती हैं। ज़रूरतों का पूरा न होना उसे प्रेरित करता है प्रयत्नशील रहने के लिए। जैसे जैसे उसकी ज़रूरतें पूरी होती जाती हैं वो ज़रूरतें बढती जाती हैं और एक अगली आवश्यकता आकार लेने लगती है । कभी न ख़त्म होने वाली परिस्थितिजन्य ज़रूरतें ही उसके आगे बढ़ने का प्रेरणास्रोत बनती हैं।
मानवीय ज़रूरतें कुछ इस क्रम में हैं --
- शारीरिक ज़रूरतें - ( हवा , पानी , भोजन , नींद )
- सुरक्षात्मक - ( आवास , अच्छा स्वास्थ्य , रोजगार , घन-संपत्ति )
- सामाजिक ज़रूरतें - मित्रता , किसी समूह या समुदाय से जुड़ने का एहसास , प्यार देने और पाने की चाहत ।
- मन की ज़रूरतें - जब शरीर तृप्त और सुरक्षित हो जाता है तो हमारी ग्यारहवीं इन्द्रिय ( मन ) की ज़रूरतेंतीव्र हो जाती हैं , जिससे मन प्रेरणा पाता है और निम्नलिखित ज़रूरतों कों पूरा करने के लिए प्रयत्नशील होजाता है --
- - एक समाज में पहचान चाहिए होती है
- -दूसरों का ध्यानाकर्षण चाहिए होता है
- -समाज में एक सम्मानित स्थान चाहिए होता है
- -अपने कार्यों की सिद्धि , मंजिल कों पाने की इच्छा तथा उपलब्धियों कों पाने की ललक
- -आत्मसम्मान की बढती ज़रुरत
अंतिम तथा सबसे अहम् ज़रुरत है स्वयं की पहचान या Self actualization -- इस अवस्था में पहुँचने पर मनुष्य अपने अन्दर के गुणों , संभावनाओं तथा क्षमताओं कों पहचानने की ज़रुरत तीव्रता से महसूस करता है । यही अहम् ज़रुरत मनुष्य कों बेहतर से बेहतर करने की प्रेरणा देती है । जब एक मनुष्य ज़रूरतों के इस अंतिम चरण में पहुँचता है तो उसके लिए सत्य , न्याय , ज्ञान और शब्दों के सच्चे अर्थों कों सही सन्दर्भों में जानना ही सबसे अहम् हो जाता है और शेष सब गौण ।
प्रेरणा के इस अंतिम चरण में पहुंचकर ही एक लेखक हकीकत कों आसानी से स्वीकार कर पाने की क्षमता पैदा कर पाता है और अपने परिवेश तथा परिस्थितिजन्य सत्य कों सरलता से स्वीकार कर लेता है । वो कठोर होकर अपनी कमियों कों भी सहजता से आत्मसात कर लेता है और खुद कों पूर्वाग्रहों से मुक्त करके अपने विचारों कों आयाम देता है और अपने व्यक्तित्व कों विस्तार देता है । यही असली विकास (real growth) है ।
जीवन में आगे बढ़ने के लिए प्रेरणा की बहुत ज़रुरत होती है और एक लेखक मानवीय ज़रूरतों की अनेक सीढियां चढ़ते हुए Self actualization की उस अवस्था में पहुँचता है जहाँ वो स्वयं एक प्रेरणास्रोत बन जाता है ।
आज के युग में जहाँ हँस पाना दुश्वार हो गया है , वहीँ एक कवि स्वयं का उपहास कर लाखों लोगों कों हँसा देने की काबिलियत रखता है । नमन है कवियों की इस जीवटता कों ।
73 comments:
बहुत ही सही कहा है आपने ...सारे जवाब आपके इस आलेख में छिपे हुये हैं ...बेहतरीन प्रस्तुति के लिये आभार ।
apni baat aapne is khoobsurti ke saath rakhi hai ki main kinkkartavyvimoodh ho gayee.wah.kitna achcha andaz hai aapka...
बहुत अच्छा लिखा है ,दिव्या जी , इसे आलेख कहूंगी ,
अपने से परे हो कर जो सोच पाता है , लेखनीबद्ध करना , ये न्यामत ही तो है , जब जब कोई कवि कुंठा के फेर में फंस जाता है , यूं समझो कि वो अपनी ऊंचाई भूल गया ...
शारदा जी आलेख ही तो है
बहुत सुन्दर विश्लेषण..
प्रिय बहन यदि कवि,शायर,लेखक,ब्लॉगर जैसे सर्जक कुंठित हों भी और अपनी कुंठा को लिखित रूप में सामने ला रहे हैं तो ये उनकी पारदर्शिता का प्रतीक है। ये वो लोग हैं जो अपनी कुंठाओं,लिप्साओं,वासनाओं को छिपाते नहीं हैं जैसा कि सामान्य तौर पर स्वयंभू बुद्धिजीवी बिना सार्वजनिक तौर पर लिखित अभिव्यक्ति के करा करते हैं। ये नकारात्मकता यदि इस रूप में निकल कर सार्वजनिक हो जाए तो विमर्श बन सकती है अन्यथा घातक है समाज और देश दुनिया के लिये। भड़ास(लिंक देने की कुंठा समाप्त हो चुकी है:)) यदि न निकले तो आप एक चिकित्सकीय नजरिये से समझ सकती हैं कि कितनी भयंकर रुग्णता का कुचक्र उपज सकता है। अंतिम बात ये कि आप किस पूर्वाग्रह से विषय को देखते हैं।
आपने जो लिखा उससे शब्दशः सहमति
ब्लाग में सकारात्मक लेखन सृजनशीलता है। वही व्यक्ति सृजन कर सकता है जिसमें किसी भी प्रकार की कुंठा न हो।
एक लेखक या कवि में इतनी क्षमता होती है कि वह दूसरों की कुंठा को दूर कर सके।
दूसरी ओर, कुंठित व्यक्ति सृजन कर ही नहीं सकता, वह तो विध्वंसक होता है।
आपने लेखकों ओर कवियों की रचनाधर्मिता का अच्छा और विस्तृत विश्लेषण किया है।
ह्रदय ग्राही ...चिंतनशील विमर्श.. सुन्दर ...सार्थक .....
"सभी bloggers frustated होते हैं ?"
हा हा हा हा हा ...अरे अब भी पूछने की जरूरत है क्या ...टिप्पणी खुद सबूत दे रही है .......हा हा हा । वैसे ब्लॉगर्स इसके अलावा भी बहुत कुछ होते हैं ...ब्लॉगर्स जिद्दी होते हैं , गुस्सैल होते हैं , बदमिज़ाज़ होते हैं , कई बदतमीज़ भी होते हैं ........हा हा हा बांकी के वो सभी होते हैं ...और हों भी क्यों न .....आखिर इंसान होते हैं न ......गूगल खुद ब्लॉगर होता तो शायद सबके पैमाने पर खरा उतरता । पिछले चार साल के अनुभव अब ऐसे मुद्दों पर ..इस तरह के विचार रखने का सलीका सिखा चुके हैं । शुभकामनाएं....अच्छी फ़ौलोअप पोस्ट है
मनोभाव, रचनात्मक हो कर प्रगट हों, फिर क्या परवाह कि वह कुंठाजनित साबित कर दी जाए.
'90% bloggers r frustrated, mano ya na mano' it was my comment, so i wanna write something :-
एक प्रिश्न है, कितने लेखक या कवि स्वतंत्र लेखन के बल पे जीविका चला पा रहे हैं?
या कितने bloggers के पास नये thoughts हैं?
९०% ब्लोग्स पे ६० साल पुराने विचार पड़े हुए हैं, या वही वासे टोपिक्स पे लिख रहे हैं. ना तो कोई नयापन है ना ही नई सोच.
उड़नतश्तरी बाले समीर जी के ब्लॉग पे ही कुछ अच्छा पढ़ा, http://udantashtari.blogspot.com/2011/01/blog-post_28.हटमल या आपके ब्लॉग पे अच्छा discussion देखा है, नहीं तो बाकी बहुतों के ब्लॉग कुंठित होकर बकवास लिख रहे हैं.
shayad aap bleave kare ya nhi. lekin ()% log comment bhi post apne blog pe traffic badaane ke liye karte hai, aur apne blog ka URL likh kar ek bar visit karne ka nivedan bhi karte hai.
ye kya hai????? not a frustration?
कुंठित व्यक्ति सृजन करे ऐसा मैं नहीं समझता और लेखक-कवि तो सृजन ही करता है। खुद लिख कर दूसरों को प्रस्तुत कर देता है। दूसरे उस पर अपने विचार रखते हैं। कुछ पूरी इमानदारी से तो कुछ कुंठित होकर। लेकिन लेखक या कवि तो लेखक या कवि ही होता है, कुंठित नहीं। खैर इन बहस में पडने के बजाय मैं इतना जरूर कह सकता हूं कि मैं आपके विचारों से सहमत हूं।
ब्लोगर्स अलग कैटेगरी नही है...कवि और लेखक ही ब्लोग लिखते है और ब्लोगर्स कहलाते है!..मै समझती हू कि कुंठित मानसिकता कभी स्थाई नही होती!...यह बादल की तरह कभी दिलो-दिमाग पर छा जाती है और भी हट जाती है!..हा!कवि और लेखक आम लोगों की तुलना में ज्यादा संवेदनशील जरुर होते है!...सुख या दुःख का इन पर गहरा असर पड्ता है!...स्वाभिमान (अभिमान नही) की मात्रा इनमें इतनी ज्यादा होती है कि...कई बार इसे अभिमान मान लिया जाता है!...संवेदनशीलता की वजह से ये गलतफहमी के शिकार हो जाते है और अपने बारे में भी गलतफहमियां पैदा कर लेते है!...भीड्भाड में रहते हुए भी अकेलापन महसूस करते है...एकांतप्रिय भी होते है!...इनकी मानसिकता को पह्चानना दूसरे लोगों के लिए कठीन कार्य होता है!...लेकिन सेवाभाव, कर्तव्यपारायणता, सच्चाई...इत्यादि गुण सभी में अवश्य पाए जाते है!..झूठ,लालच, स्वार्थ,धोखाधडी इत्यादि बुराइयों से स्वयं दूर रहते है और ऐसी बुराइयों मे लिप्त लोगों का खुल कर विरोध भी करते है!
...बहुत बहुत धन्यवाद दिव्याजी कि आपने इतने गहन विषय पर सुंदर लेख लिखा है!
अच्छा विषय, गाँठ को कह देना कुण्ठा कम करने का प्रयास है।
आपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
प्रस्तुति भी कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
कल (10/2/2011) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
अवगत कराइयेगा और हमारा हौसला बढाइयेगा।
http://charchamanch.uchcharan.com
यदि ब्लॉग लेखन कुंठित लोगों का काम है तो कम से कम उन कुंठित लोगों से तो बेहतर है जो अपनी कुंठा मिटाने के लिए मार- पीट , खून- खराबा , हत्या , भ्रष्टाचार, आदि अनैतिक कार्य करते हैं...!
नजर अपनी अपनी, नजरिया अपना अपना.
दिव्या जी बहुत ही अच्छा विश्लेषण है . कई महत्वपूर्ण बातों का आपने उल्लेख किया है आपने........ विचारणीय प्रस्तुति.
पूरा विश्लेषण तो आपने कर ही दिया है और क्या कहूँ
ब्लाग में सकारात्मक लेखन सृजनशीलता है यदि कोई सोचता है की यह कुंठित वर्ग का क्षेत्र है तो उसे अपनी कुंठा को दूर करना पड़ेगा ।
बहुत सुन्दर हिंदी पता नहीं कैसे लिख लेते है सब
अपन से तो नाही लिखी जाए :(
सही कहा आपने!
जानकारी,ज्ञान और प्रज्ञा भारतीय मनीषा इन में विभेद करके चलती है!
आपके ब्लॉग पर जिसने टिप्पणी की थी शायद वो फ्रायड से प्रभावित हैं लेकिन फ्रायड हर बार सही हो जरूरी नही .
आपके लेख ने काफी हद तक बात स्पष्ट कर दी है . मैं आपसे पूरी तरह सहमत हूँ . आपके लेख पर उन्ही महोदय की टिप्पणी भी पढ़ी , उन्हें ब्लोगर के अपने ब्लॉग के लिंक छोड़ने पर एतराज़ है . जब छोटी-से-छोटी चीज़ से लेकर बड़ी-से-बड़ी चीज़ विज्ञापन देती है तो ब्लोगर का विज्ञापन देना कौन-सा गुनाह हो गया . फिर विज्ञापन देकर आप अपने बारे में सिर्फ बता सकते हैं किसी को पढने के लिए विवश नहीं कर सकते . पढ़ा सिर्फ वही जाता है जो पढने लायक हो
sahityasurbhi.blogspot.com
यदि किसी की कुंठा से दूसरों को ठहर कर सोचने का कारण मिलता है तो मुझे कुंठित कहलवाने में कोई हर्ज नहीं है. एक कुंठित व्यक्ति दूसरे कुंठित व्यक्ति को समझ लेता है, इसमें जमाने को अगर आपत्ति है तो गलत है.
वैसे मुझे नहीं लगता की कोई लेखक, ब्लोगर कुंठित होता है. जो सच सच कहता है आज वो कुंठित है.
गहन विश्लेषणात्मक लेख के लिए आपका आभार.
सम्पूर्ण सुन्दर विश्लेषण |
.
पाठकों से निवेदन -
मुझे विवेक जी की टिपण्णी ने सोचने पर विवश किया और इस लेख का जन्म हुआ। मेरा पाठकों से आग्रहपूर्वक निवेदन है की विषय पर विचार रखें , विवेक जी पर निशाना न हो । मेरे लेख के कारण किसी साथी ब्लोगर की भावनाओं कों ठेस पहुंचेगी तो मुझे दुःख होगा ।
आशा है आप समझेंगे।
आभार ।
.
जितने प्रतिशत समाज में कुंठित व्यक्ति हैं.लगभग उतने प्रतिशत ब्लॉग पर भी हो सकते हैं.वो समाज का भी हिस्सा हैं और ब्लॉग का भी.
बहुत ही सार्थक विश्लेषण किया है आपने.
आप की कलम को सलाम
बहुत सुन्दर विश्लेषण
हर कवि या लेखक में कुछ न कुछ कर गुजरने की चाह होती है । यह उसके शब्दों में ढलकर बाहर आती है । इसे कुंठा कहना तो उचित नहीं होगा ।
दिव्या जी बहुत ही अच्छा और उचित विश्लेषण है !
आपकी इन बातों से मैं बिलकुल सहमत हूँ !
और अगर जो कुंठित होंगे भी उन्हें आपके इस आलेख से एक नई दिशा मिलेगी !
आभार !
अच्छा विश्लेषण किया है.सृजन को कुंठित कहना ठीक नहीं..
"एक लेखक अपने परिवेश तथा परिस्थितिजन्य सत्य कों सरलता से स्वीकार कर लेता है । वो कठोर होकर अपनी कमियों कों भी सहजता से आत्मसात कर लेता है और खुद कों पूर्वाग्रहों से मुक्त करके अपने विचारों कों आयाम देता है और अपने व्यक्तित्व कों विस्तार देता है । यही असली विकास है" .....गहन विषय पर सुंदर विश्लेषण
ये तो अजीब ही बात हो गयी.....
मुझे कुछ नहीं कहना है बस श्री गोपाल दस नीरज जी के पंक्ति है वही लिख देता हूँ शायद उत्तर मिल जाए...
"आत्मा के सौंदर्य का शब्द रूप है काव्य.
मानव होना भाग्य है कवी होंबा सौभाग्य"
well... i don't see any reason to react on such comments...
ऐसे COMMENTS लोग केवल चर्चा मे आने के लिये करते हैं
and in a way we are helping him, i supppose
Regards,
irfan
कवि के अन्दर "संवेदना" प्रथम और अत्यावश्यक गुण होता है,आलेख में इसका ज़िक्र होना ज़रूरी है.
दिव्व्या जी कुंठित मानसिकता वालो को सब कुंठित ही दिखते हे, जेसे झुठे को सब लोग झुठे ही लगते हे, चोर को सब चोर... इस लिये इन साहब की किसी बात का बुरा मनाना गलत हे,
हम सब ब्लाग किसी लालच मे नही लिखते, सब का अपना अपना शोक हे,
धन्यवाद आप से सहमत हे जी
आपकी बातों और तर्कों से सहमत हूँ।
मुझे उनकी मनोदशा पर प्रश्न लगाने की इच्छा हो रही है..
आपने लेखकों ओर कवियों की रचनाधर्मिता का अच्छा और विस्तृत विश्लेषण किया है।
शुभकामनाएं....अच्छी फ़ौलोअप पोस्ट है
@ajay kumar jha... hahahaha, vishleshan hansne se badaa kaam hai.......hahahaha.
@sunil kumar shayad ye aapki kuntha bol rahi ho.
@thanku divya ji,it ws jst an opinion, but kuchh log nhi samajhte hain, sabhi ko opinion dene ka haq hai.
@all yadi kisi ko bhi vyaktigat tippadi karni ho to sadar aamantrit hai, lekin apne shabdo me apne charitra ki garima banaye rakhe.
kripya comment kijiye, opinion rakhiye, ye hahahaha, hans kar kisi ka makhaul udaane ki cheshta naa kare.
@many, bahuto ka srijan hi unki kuntha pradarshit karta hai. kai writers kunthagrast hokar likhte hai.
@arvind zagind, sach kahne bala kabhi kunthit nhi hota.
@dilbag agger sach ko gift pack me, chamkile papers ke sath lapet diya jaye to sach jhooth nhi ho jata.
@Dr. aruna kappor ji, mei aapse lagbhag sahmat hoon lekin '...लेकिन सेवाभाव, कर्तव्यपारायणता, सच्चाई...इत्यादि गुण सभी में अवश्य पाए जाते है!..झूठ,लालच, स्वार्थ,धोखाधडी इत्यादि बुराइयों से स्वयं दूर रहते है और ऐसी बुराइयों मे लिप्त लोगों का खुल कर विरोध भी करते है!' is baat se nhi, kyuki ek achha writer ya kavi achha vyakti bhi ho ye nhi kaha ja sakta.
@all, divyaji yah mei bhi bevaaki se kah sakta hoon ki divyaji ka vishleshad lajwaab hai.
@ सुशील बाकलीवाल 'नजर अपनी अपनी, नजरिया अपना अपना.' ye baat yaha bahut se tippadikaro ko samajhne ki zaroorat hai.
2vaaniji, every frustrated is not a killer.
डॉ.दिव्या जी आपने बहुत ही मनोवैज्ञानिक ढंग से तर्क दिया है |बधाई |
बहुत अच्छा लिखा है
क्या लेखक , कवि और ब्लॉगर्स कुंठित मानसिकता वाले होते हैं ?
अब मुझे ही देख लीजिये...सारी कुंठा कीबोर्ड पर निकलता हूँ :)
अवसादग्रस्त (कुंठित ) व्यक्ति उग्र होकर हिंसा या फिर इंतकाम पर उतर आता है या फिर आत्महत्या की सोचता है क्योंकि वह इस दुनिया में या समाज में स्वयं को अकेला पाता है,गुम-शुम रहना उसकी नियति बन जाती है,ब्लोगिंग या सृजन की शक्ति उसमे नहीं रह जाती है ,
साठ साल पुराने विचारों की भी समाज को उतनी ही आवश्यकता है जितनी की नये विचारों की ,
मैं विवेक जी की इस बात से सहमत हूँ की एक अच्छा ब्लोगर या सृजक एक अच्छा इंसान भी हो यह जरुरी नहीं,
> डा. दिव्या जी बहुत ही सार्थक विश्लेषण किया है आपने. आभार व्यक्त करता हूँ ,
@irfan, sir mujhe charcha me aane ka koi shauk nhi, meri book 'the helpless boy' ki 40000 biki hui pratiya hi mujhe apne aap charcha me rakh det h.
@raj bhatiya aapka comment "BAHUT BAHUT PRASHASNIYE' hai.......ab khush.
apko ek bi maga suggestion h,kyu na topic pe comment kare perticular mujhpe nhi. kyuki vo to mei b kar sakta hoon.
@भारतीय नागरिक - Indian Citizen aur mujhe aapki manodasha par.
@शारदा अरोरा mei apse sahmat hoon. yahaa bahuto ke sath yesa hi h.
@shikhaji -सृजन को कुंठित कहना ठीक नहीं...
सृजन kabi kunthit nhin hota, im accepting, ut kunthit hokar srijit aalekh, kavya ko aap kis sreni me rakhegi?
v'vs ke kathya samayik hain......aap ki post.....
ousi sundar vivechana hai......pathkon ki tippani.....prashn aur uttar dono ko sambhavnaye
deti hai.....sant-chitt aur vivekshil hokar logon
ko atm-manthan karna chahiye.....aapki pathkon se,
vaktigat tippani na karne ki gujarish bhali lagi.....
@nachiketaji....
"आत्मा के सौंदर्य का शब्द रूप है काव्य.
मानव होना भाग्य है कवी होंबा सौभाग्य"
bahut sahi paribhasha.....
pranam.
@ All, mujhe nhi pataa tha, Dr. Divya ji meri ek chhoti si tippani par itna bada lekh likhegi, isliye vo tippani koi charchaa me rahne ke uddeshya se nhi ki gai thi. Agger aapko yesa lagta hai, to aapki soch par khed hai.
स्वंय विषय पा जाना और उसपर इतना स्पष्ट और साफ लिख देना कि विचार मोहित हो जाए और बोल पड़े कुल 10 में से पूरे 10 अंक। क्या खूब सोचती हैं आप। एक सशक्त और शालीन उत्तर।
आदरणीया दिव्या जी ,
रचनाकार कुंठा के शिकार जरूर होते हैं किन्तु कुंठाग्रस्त नहीं रहते .|
इसके बारे में और कुछ कहने की जरूरत नहींक्योंकि आपका लेख बहुत ही समर्थ है वास्तविकता को परिभाषित करने में |
आपकी यही विशेषता आपको एक अलग पहचान देती है कि आप जिस भी विषय पर लिखती हैं उसमे कोई कोर- कसर या अधूरापन नहीं छोड़तीं |
बहुत-बहुत शुभ कामनायें !
'Self-actualization' ki avastha tak yadi lekhak aur kavi pahunch paaye to yahi uska 'karm yog' hai.Atisunder sodhpoorn chitran.
Mene apne blog 'Mansa vacha karmna' per likhna
shuru kiya hai.Aasha hai aapke gyan ke prakash se yeh blog lekhan nityaprati prakashit hota rahega
दिव्या जी आपकी बात से सहमत हूँ मै भी.....जिन महोदय ने कहा कि लेखक या ब्लोगर कुंठित होते हैं मानो या ना मानो. ??? तो आज तक जिन लेखकों कावियों को लोग पढ़ रहे तो वो क्या है ?? क्या कोई असंतुष्ट,कुंठित, परेशान, हताश, हतोत्साहित व्यक्ति किसी भी सामाजिक राजनीतिक परिवार्तन में अपना योगदान दे सकता है ? जितना ये लेखक के द्वारा संभव है |आज तक के इतिहास के पन्नो को पलट लें कोई तो सारी बात सामने आ जाएगी कि लेखक का मानसिक संतुलन क्या होता है .........माना लेखक ज्यादा सवेदनशील होते हैं पर इस सवेदनशीलता की ही देन है कि लोग इनके लिखे गीतों में झूम उठते हैं, और गजलों को सुनकर खो जाते हैं.....मन से वो कोरे निश्छल होते हैं जिसमे पारदर्शिता आर पार नज़र आती है , अपनी अनुभवों को बातों को दुनिया के सामने लाकर ना जाने कितनो के प्रेरणा बन जाते हैं . ये कहना बिल्कुल गलत होगा कि ये कुंठित मानसिकता के होते हैं ........
लेखक एक आईना है जिसमे वो ख़ुद पारदर्शी होकर लोगो को ,लोगों कि शक्ल की पहचान कराता है .........तो क्या ये कोई कुंठित मानसिकतावाले लोगो का काम है ???
मै दिव्या जी के इस बात से पूर्णतया संतुष्ट हूँ ......
आज के युग में जहाँ हँस पाना दुश्वार हो गया है , वहीँ एक कवि स्वयं का उपहास कर लाखों लोगों कों हँसा देने की काबिलियत रखता है । नमन है कवियों की इस जीवटता कों
.
विवेक जी ,
आपसे विनम्र निवेदन है की कृपया साथी ब्लोगर्स के साथ इतना bitter होकर मत पेश आइये । मुझे अफ़सोस हो रहा है। मेरे लेख पर हर एक टिप्पणीकार कों जिस तरह आप नाराज़ होकर जवाब दे रहे हैं वो खेद का विषय है ।
हर एक कों विचार रखने का हक है । सभी कों अपने विचार अपने तरीके से कहने दीजिये । ये टिप्पणीकर्ता का अधिकार है । किसी की टिपण्णी कों व्यक्तिगत लेकर आप व्यथित मत होइए।
आपका वक्तव्य था की - "नब्बे प्रतिशत ब्लोगर्स frustrated हैं ' इस अहम् विषय पर चर्चा जरूरी समझी इसलिए ये लेख लिखा ।
लेख 'विषय' आधारित है , 'व्यक्ति' आधारित नहीं । इसलिए विषय पर लिखें , किसी पर व्यक्तिगत नहीं।
हाँ अगर आपको मुझसे शिकायत हो तो बताइए । अपना लेख edit कर दूंगी । और यदि आपकी आज्ञा हो तो इस पूरी पोस्ट कों डिलीट कर दूंगी ।
आभार।
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अभी लेख और टिप्प्णियों को दोबारा पढा , और ज्यादा गौर से पढा । देखा तो पाया कि , आपकी पोस्ट पर एक मित्र ब्लॉगर ने एक टिप्प्णी दी जिससे प्रेरित होकर आपने एक पोस्ट लिखी । कहीं भी किसी से शिकायत नहीं और ये भी नहीं कि आपने विचार मांगे इस बात पर । मगर जब यहां टिप्पणी करने वाले नब्बे प्रतिशत ...मुझ सहित जाने किस श्रेणी में हम आते हैं , ने अपना विचार रख दिया तो आपने सीधा ही उन मित्र को संबोधित करते हुए लिख दिया है कि यदि वे कहेंगे को आप पोस्ट को एडिट या डिलीट भी कर देंगी । ओह ऐसा स्थिति भी आ सकती है क्या ?
और हां मित्र , vivs जी ..आपने सही कहा हा हा हा से ज्यादा मुश्किल काम है विश्लेषण करना ..लेकिन आपने इतना दुरूह कार्य ...एक दम हाहाहा में ही कर दिया । चलिए नब्बे में से नौ न सही ....दस में दो ..विदाऊट् फ़्रस्टेशन वाले नाम ही बता दी्जीए ..भई अब ज्यादा लिखूंगा तो फ़िर इल्जाम लगेगा कि टिप्प्णी पर कहिए टि्प्पणीकार पर नहीं ..जब बात ही ्ब्लॉगिंग की नहीं ..ब्लॉगर की की गई है तो । शुक्रिया विमर्श के लिए
आद. दिव्या जी,
आपके लेख के एक एक बात से मै सहमत हूँ ! कवि या साहित्यकार तो वह सूरज है जो अपने विचारों के प्रकाश से कुंठा दूर करता है !
सामाजिक चेतना को उर्जावान करते इन मनीषियों ने हर काल एवं स्थिति में समाज को कुछ न कुछ देकर अनुकरणीय उदाहरण स्थापित किया है !
इस सुन्दर, स्वच्छ ,विचारनीय और हृदयग्राही लेख के लिए कोटिशः धन्यवाद !
कुंठा या Fraustration दोनों ही मानवीय गुण है. कोई भी ग्रस्त हो सकता है कोई माप दंड नहीं है
" सभी ब्लॉगर कुंठित ( frustrated ), होते हैं । मानो या न मानो " ।.......aisa likhnevaale blogar mitra khud hi frustrated hote hai....it is a nonesense...aapne bahut sahi likha bhi hai our sahi subject bhi chuna hai.बहुत-बहुत शुभ कामनायें !
@Divya ji, mam apko nivedan krne ki avasyakta nhi. Umr aur soch dono me apse bahut chhota hu.
Meine bitter hokar kisi par tipaddi ni ki h, bas unko unke andaz me jabab dene ki koshish ki h.
Ha, apko ise delete karne ki bilkul zarurat nhi.
Thank U.
Hi..
Sahi kaha aapne...
Deepak..
विचारणीय आलेख...
वैसे मेरी सोच है की सार्थक लेखन के लिए विस्तृत सोच का होना आवश्यक है |
@arvind, aapki is vyaktigat tippani par mujhe afsos hai, aur usse bhi jyada afsos is baaat ka hai ki aapko bura lagaa.
mei nhi kahta ki aap frustrated hai, lekin yadi nhi hai to itna bura nhi lagnaa chahiye.
aap hi ke shabdo me, meri bakwaas (as u think) par ki gai aapki bakwaas par mujhe khed hai.
comment hamesha sochparak hona chahiye, jisse sochparak arth nikle, anaarthik dwesh nhi.
saadar.
@ajay kumar jha, aapne jis namrata se punh tippani ki vo prasanshneeye hai.
Saadar.
@ajay kumar jha, chaliye baki dus me se do k naam mei btaye deta. Pahla, ap jis blog pe tippani kr rhe h. Dusra, aapka khud ka lekhan. Vaise 'nukkad' par apko meine padha h.
I do not agree with you all writers are not alike
You discussion has deep rooted areas which no one dares to talk
If find time or you take on the issue to broader horizon please I am there...
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@ Hotews -
Thanks for your valuable opinion but i would like to see you more explicit on the issue . Kindly tell me why people do not dare to talk ? What stops them to opine freely ? Are they scared of me or something else ?
Are you also afraid of something ? If not then kindly present your views in detail regarding the issue. To differ with me should not an issue with anyone. It is an open forum , anyone can opine without offending the fellow bloggers.
Thanks
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