Friday, June 10, 2011

पारदर्शिता की क्रान्ति -- Revolution of transparency.

भारत की मिटटी में जन्मे , वीर क्रांतिकारी बाबा रामदेव को नमन।

लोग देश के शहीद क्रांतिकारियों को वर्ष में एक दिन याद करके और 'नमन' करके अपने दायित्वों की इतिश्री कर लेते हैं। लेकिन यदि कोई देशभक्त भूखा प्यासा रहकर देश की हित की बात करता है , तो जनता का एक बड़ा हिस्सा पूरी ताकत से उसकी खिलाफत करने में जुट जाता है। तोड़ देना चाहता है इस स्वर्णिम क्रान्ति की लहर को। देशभक्तों के मनोबल को

लेकिन क्या इस क्रान्ति को तोडना संभव है ? क्या सच्चाई की आवाज़ को दबाया जा सकता है ? क्या सांच को भी आंच होती है ?

ये पारदर्शिता की क्रांति है। जो काम पिछले ६५ वर्षों में नहीं हो पाया , वो बाबा ने भूखे रहकर करा दिया। अपनी संपत्ति का भी हवाला दिया और प्रधानमन्त्री से लेकर अन्य सभी नेताओं को मजबूर कर दिया पारदर्शिता के साथ अपनी संपत्ति का हवाला देने को।

यही विजय है इस आन्दोलन की। बाबा सफल हैं अपने आन्दोलन में देश के , वे डेढ़ लाख लोग , जिन्होंने पुलिस की लाठियां खायीं , वे भी सफल हुए। उनका त्याग रंग लाया। देश के वे करोड़ों लोग जो देश-विदेश में बाबा के समर्थक हैं , वे हर्षित हैं इस विजय पर और यथा संभव अपना योगदान कर रहे हैं।

बाबा को दिल्ली आने पर रोक लगा दी। ये तो तानाशाही की मिसाल है। क्या क्रांतिकारी तड़ीपार हैं ? जो विदेश में रहते हैं वो जानते हैं की अपनी धरती पर होने की ख़ुशी क्या होती है। लेकिन यहाँ तो बाबा को अपने ही देश में स्वतंत्रता नहीं है अपनी बात रखने की दिल्ली राजधानी है। यदि सरकार अपनी बात केंद्र में रहकर करती है, तो जनता को अपनी बात कहने के लिए राजधानी में आन्दोलन से क्यूँ वंचित किया।

क्या दिल्ली की सुरक्षा ज्यादा ज़रूरी है , हरिद्वार वालों को बाबा से कोई खतरा नहीं ? दिल्ली के बाहर क्या होता है और क्या नहीं , क्या इसकी जिम्मेदारी केंद्र की नहीं है?

सरकार किस बात से डर रही है ? और डर क्यूँ लगता है ? क्या चोर की दाढ़ी में तिनका है ?

यदि बाबा इतने मामूली हैं तो डर काहे का ? करने दो आन्दोलन हज़ार सैन्य बल द्वारा जनता को मारा , प्रताड़ित किया , इसके लिए कोई खेद है कसाइयों को ? मासूम जनता को बाबा से खतरा है या फिर इन वहशी कृत्यों को अंजाम देने वाली सरकार से ? हड्डी तोड़ी , लोगों को paralytic कर दिया , लोग कोमा में हैं ...क्या दया आती है निर्दयी सरकार को ? क्या शर्म की दो बूँदें शेष हैं आखों में ?

अपने संविधान में इस बात का प्राविधान है की लोग शांतिपूर्ण से तरीके से कहीं भी इकट्ठे होकर विमर्श कर सकते हैं , आन्दोलन कर सकते हैं। फिर सोयी हुयी जनता पर इतनी बर्बरता क्यूँ ?

यदि सरकार अपने दायित्वों को भुलाकर सोयी रहेगी तो आम जनता का ह्रदय तो छटपटायेगा ही क्यूँ नहीं काला धन वापस लाया जा रहा और क्यूँ भ्रष्टाचार के खिलाफ मुहीम पर केंद्र को आपत्ति है , किस बात का डर है ?

यदि कोरोड़ों की संख्या में जनता बाबा का समर्थन कर सकती है तो क्यूँ नहीं अन्य संगठन कर सकते हैं? फिर RSS के समर्थन करने पर विवाद क्यूँ ? देश हित के लिए हो रहे जन आदोलन में RSS , मौन दर्शक को नहीं रह सकती न। तटस्थ रहने वालों को इतिहास कभी माफ़ नहीं करता।

जो कर्मशील हैं , वो निजी लाभ से बहुत ऊपर उठकर देश-हित के लिए चिंतन करते हैं और सतत देश के विकास के लिए प्रयत्नशील रहते हैं। जब कोई अच्छे कार्यों के लिए आगे आता है तो असामाजिक तत्व उसके विरूद्ध में खड़े होकर बाधा उत्पन्न करने की कुचेष्टा करते हैं। लेकिन ऐसे शरारती तत्वों की दाल नहीं गलती , क्यूंकि बुरायी पर अच्छाई की लड़ाई में सारी प्रकृति और ईश्वर भी साथ आकर खड़ा हो जाता है जैसे रावण के खिलाफ राम और कुरुक्षेत्र में स्वयं श्रीकृष्ण सारथि बनकर युद्ध के मैंदान में सत्य की रक्षा के लिए उतर पड़े थे

ये कलियुग की महाभारत है , अब ये आपके ऊपर है की आप किस तरफ जाना चाहते हैं

मैं तो अपनी आवाज़ भारत-स्वाभिमान के इस आन्दोलन में मिला रही हूँ मैं बाबा के साथ हूँ, मैं अन्ना हजारे , केजरीवाल , किरण जी के साथ हूँ। मैं अपने देश की मासूम और देशभक्त जनता के साथ हूँ।

जय हिंद!
जय भारत !
वन्दे मातरम् !

79 comments:

रेखा said...

मै भी आपके साथ हूँ

अजित गुप्ता का कोना said...

अन्‍ना हजारे ने कहा है कि सरकार डर नहीं रही है अपितु डरा रही है। वो बता रही है कि भ्रष्‍टाचार के विरोध में आवाज उठाने वालों का अंजाम वही होगा जो कभी जलियांवाला बाग में हुआ था। मुझे तो इतनी हैरत है भारत के बुद्धिजीवियों पर की इस आंदोलन में भी आतंक का साथ दे रहे हैं और बाबा रामदेव को ही गलत सिद्ध करने पर तुले हैं। कल बाबा ने अपनी सम्‍पत्ती की घोषणा कर दी। आज देश में लाखों ट्रस्‍ट है साथ ही चर्च, मस्जिद, गुरुद्वारो, मन्दिरों द्वारा संचालित अनेक सेवा के कार्य हैं। क्‍या सरकार सभी ट्रस्‍टो का हिसाब लेगी या जनता समझेगी इस सत्‍य को? अकेले मिशनरीज की धनराशि ही भारत सरकार के बजट से कहीं अधिक है। ऐसी ही स्थिति सभी जगह है। इस देश में कोई भी ट्रस्‍ट बनाना और सेवा करना अपराध नहीं है तब बाबा रामदेव के विरोध में ही अनर्गल प्रलाप क्‍यों? क्‍या इ‍सलिए की हम सरकार हैं, अपनी शक्ति से हमारे विरोध में बोलने वालों का मटियामेट कर देंगे। इस भ्रष्‍ट सरकार का तो समझ आता है लेकिन बुद्धिजीवियों का ताण्‍डव समझ नहीं आ रहा है।

udaya veer singh said...

There is a need to change the Baba Ramdev ji . MIRI & PIRI is required .He might be improve his zeal ,lust of sacrifice ,captaincy & and above all declarations. Thanks for good issue ji .

भारतीय नागरिक - Indian Citizen said...

क्या सभी बुद्धिजीवी ईमानदार हैं?

भारतीय नागरिक - Indian Citizen said...

घोटाले वही कर पाता है जिसके पास बुद्धि होती है. मतिमंद व्यक्ति क्या घोटाले करेगा.

रश्मि प्रभा... said...

aahwaan ka yah andaaj mujhe achha laga

समय चक्र said...

निश्चित ही ये पारदर्शिता की क्रांति है सहमत हूँ .... आभार

भारतीय नागरिक - Indian Citizen said...

मैं फिर दोहराऊंगा कि आजादी इस लिये मिल गयी कि लोग अधिक पढ़े लिखे नहीं थे. गांधी जी ने बुलाया कि हाजिर. सुभाष बाबू ने आवाज दी कि दौड़ पड़े अपना सबकुछ लेकर.
किसी ने यह नहीं कहा कि गांधी जी आप वकील हो कहां आजादी के संघर्ष में सियासत चमकाने आ गये.
किसी ने यह नहीं कहा कि भगत सिंह पढो-लिखो, यह तुम्हारा क्षेत्र नहीं.
किसी ने यह नहीं कहा कि सुभाष बाबू अपने खातों की जांच कराओ.

रविकर said...

देश के कई संगठनों से ज्यादा देशभक्त और देश के लिए तन-मन-धन से समर्पित है संघ के कार्यकर्त्ता----
RSS के समर्थन करने पर विवाद क्यूँ ?
मैं भी बाबा के साथ हूँ,
मैं भी अन्ना हजारे , केजरीवाल , किरण जी के साथ हूँ। मैं भी अपने देश की मासूम और देशभक्त जनता के साथ हूँ।

Anonymous said...

baba ne jo shuru kara vo sach main khas hain
parantu abhi ladai kafi baki hain kyonki hamare desh ki sabhi rajnetik partia aur unake neta brasht hain..abhi vo baba ko support kar rahe hain bt kanun banane main vo bhi hichkichayenge

S.M.Masoom said...

बाबा रामदेव का मुद्दा सही है और इनको इमानदार लोगों का सहयोग मिलना ही चाहिए लेकिन उनको सहयोग करने के नाम पे कुछ भ्रष्ट राजनेताओं और पार्टियों ने अपना उल्लू सीधा करना शुरू कर दिया है और यही बाबा के भ्रष्टाचार मिटाओ अभियान को नुकसान पहुंचा रहा है.

नीरज मुसाफ़िर said...

साथ तो हम भी हैं बाबा के पहले से ही।

JC said...

@ "...बुरायी पर अच्छाई की लड़ाई में सारी प्रकृति और ईश्वर भी साथ आकर खड़ा होजाता है..."

हर भारतीय ने रामलीला देखी/ या पढ़ी/ या सुनी होगी... मैंने अपने ४ वर्षीय नाती को भी सुनाई कि कैसे रावण बहुत ज्ञानी था, पढ़ा-लिखा था, बहुत पैसे वाला था... उसके पास गाड़ियां थीं, पुष्पक विमान था, जिसमें बैठो और कहो लंका चलो तो अपने आप ले जाता था, आदि (इतना सुन नाती बोला वो रावण बनेगा, जो शायद वर्तमान में 'हमारी' आम मानसिक दशा दिखाता है :)...

आगे बढ़ते हुए, मैंने बताया कैसे घमंडी और शक्तिशाली रावण बनवास के समय लक्ष्मण द्वारा उसकी बहन सूर्पनखा की नाक काटने पर सीता को चुरा, जबरदस्ती ले गया लंका...रास्ते में जटायु ने उसे रोकने की कोशिश की तो उसके पंख काट दिए... उसी के माध्यम से सोने के मृग के रूप में उन्हें छलने वाले रावण के रिश्तेदार मारीच का वध कर लौटते राम और लक्ष्मण को पता चला कि इस बीच रावण सीता को लंका ले गया था ** ...

सुग्रीव की वानर सेना भेजने से पहले सीता कहाँ पर है जानने के लिए हनुमान जी को भेजा गया क्यूंकि केवल वो ही सागर लांघ सकते थे, और वो राम के भक्त भी थे, उनके लिए जान देने को तैयार... जो सीता का पता लगा, विभीषण को मिल, लंका को जला, हनुमान जी वापिस राम और सुग्रीव के पास लौट आये... और कैसे फिर नल-नील वानरों के द्वारा बनाये गए पुल से लंका पहुंचे और मेघनाद, कुम्भकर्ण, और रावण का वध कर सीता को छुड़ा पुष्पक विमान में सब अयोध्या लौट आये और दिवाली मनायी सबने - मिठाई खायी और पटाखे छोड़े... (तब नाती बोला कि वो राम बनेगा :)
_______________________________________________
** यह सब इसलिए हुआ कि जैसे बच्चों में चौकलेट के लिए लालच होता है, औरतों में प्राकृतिक तौर से सोने के लिए लालच होता है और वो आसानी से ठगी जाती हैं, जिसे ज्ञानी रावण जानता था, सीता ने सोने के सिंहासन को ठुकरा कर आये त्याग मूर्ती राम को सोने के हिरन के पीछे ही नहीं भेजा, अपितु 'लक्ष्मण रेखा' भी पार कर ली - देवता के रूप में राक्षश को न पहचान,,, जबकि सतयुग में राहू को सूर्य और चन्द्र की पहचान पर ही विष्णु ने उसके सर को धड से अलग कर दिया, और त्रेता में राम-सीता सूर्य-चन्द्र के ही प्रतिरूप होते हुए भी परिपक्व नहीं हुए थे, अभी अमृत पाना शेष था...

DR. ANWER JAMAL said...

मेरा मिशन आशा और अनुशासन का मिशन है। लोग बेहतरी की आशा में ही अनुशासन भंग करते हैं और जो लोग अनुशासन भंग करने से बचते हैं, वे भी बेहतरी की आशा में ही ऐसा करते हैं। समाज में चोर, कंजूस, कालाबाज़ारी और ड्रग्स का धंधा करने वाले भी पाए जाते हैं और इसी समाज में सच्चे सिपाही, दानी और निःस्वार्थ सेवा करने वाले भी रहते हैं। हरेक अपने काम से उन्नति की आशा करता है। जो ज़ुल्म कर रहा है वह भी अपनी बेहतरी के लिए ही ऐसा कर रहा है और जो ज़ुल्म का विरोध कर रहा है वह भी अपनी और सबकी बेहतरी के लिए ही ऐसा कर रहा है।
ऐसा क्यों है ?
ऐसा इसलिए है कि मनुष्य सोचने और करने के लिए प्राकृतिक रूप से आज़ाद है। वह कुछ भी सोच सकता है और वह कुछ भी कर सकता है। दुनिया में किसी को भी उसके अच्छे-बुरे कामों का पूरा बदला मिलता नहीं है। क़ानून सभी मुजरिमों को उचित सज़ा दे नहीं पाता बल्कि कई बार तो बेक़ुसूर भी सज़ा पा जाते हैं। ये चीज़ें हमारे सामने हैं। हमारे मन में न्याय की आशा भी है और यह सबके मन में है लेकिन यह न्याय मिलेगा कब और देगा कौन और कहां ?
न्याय हमारे स्वभाव की मांग है। इसे पूरा होना ही चाहिए। अगर यह नज़र आने वाली दुनिया में नहीं मिल रहा है तो फिर इसे नज़र से परे कहीं और मिलना ही चाहिए। यह एक तार्किक बात है।
हमें वह काम करना चाहिए जिससे समाज में ‘न्याय की आशा‘ समाप्त न होने पाए। ऐसी मेरी विनम्र विनती है विशेषकर आप जैसे विद्वानों से।
मान्यताएं कितनी भी अलग क्यों न हों ?
हमें समाज पर पड़ने वाले उनके प्रभावों का आकलन ज़रूर करना चाहिए और देखना चाहिए कि यह मान्यता समाज में आशा और अनुशासन , शांति और संतुलन लाने में कितनी सहायक है ?
इसे अपनाने के बाद हमारे देश और हमारे विश्व के लोगों का जीना आसान होगा या कि दुष्कर ?
इसके बावजूद भी मत-भिन्नता रहे तो भी हमें अपने-अपने निष्कर्ष के अनुसार समाज में शांति और व्यवस्था बनाए रखने के लिए यथासंभव कोशिश करनी चाहिए और इस काम में दूसरों से आगे बढ़ने की कोशिश करनी चाहिए।

निम्न लेख भी विषय से संबंधित है और आपकी तवज्जो का तलबगार है :
http://ahsaskiparten.blogspot.com/2011/06/dr-anwer-jamal_8784.html

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

वंदना जी का सन्देश --

आपकी रचना यहां भ्रमण पर है आप भी घूमते हुए आइये स्‍वागत है
http://tetalaa.blogspot.com/

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

विचारोतेजक लेख ... बाबा और अन्ना हजारे के आह्वान पर जनता का सहयोग देख कर सरकार डर गयी है ...क्यों कि सबसे भ्रष्ट लोंग और उस काले धन के मालिक ही तो बैठे हैं राज गद्दियों पर .... तो भला कैसे मान लें यह बात ? अब सरकार और कुछ ज्यादा ही बुद्धि जीवी लोंग जनता को बरगला रहे हैं ..बाबा रामदेव के हर काम को लेकर सरकार सतर्क है ..और उन पर अब न जाने कौन कौन से मन घडंत आरोप लगा दिए जाएँ .....अजीत जी कि बात ध्यान देने योग्य है ...आभार

Shalini kaushik said...

zeal ji,
ham bhi sachchai ke sath hain kintu ek bat to honi chahiye ki baba ki baton me bhi sachchai ho unke deshbhakti ke bhav me dam ho.jab aap bharshatachar ka virodh karte hain to jagah jagah yog shivir ke baner kyon lagate hain.jab sarkar ka samna karna hai to khul kar kijiye dress change kar auron ko kyon pitvate hain?hamne padha hai itihas jisme mahatma gandhi ji sabse aage chalkar aguai karte the unhone khulkar apne karya kiya kisi tarah kee chori nahi ki jo kami hame baba ke karyon me dikh rahi hai.aaj ham aapke sath hain aur vo bhi khule roop me kisi aad me nahi.

अशोक सलूजा said...

अच्छा और सच्चा करने वाले को सब कुछ मिलता है...सिवाय !
अच्छाई के ...

Anonymous said...

बहुत शानदार एवं विचारोत्तोजक लेख है.....@ शालिनी जी की बातों से भी सहमत हूँ........अन्ना हजारे जी और बाबा रामदेव में फर्क तो है रही समर्थन की बात तो मैं अन्ना हजारे जी को चुनुँगा......सरकार जबसे मैं देख रहा हूँ कोई भी साफ दामन नहीं रही......भ्रष्टाचार तो हम और आप से शुरू है और यही से खत्म होगा.....

दिवस said...

मैं भी बाबा रामदेव के साथ हूँ|
सच कहा है आपने की सरकार बाबा रामदेव से डर गयी है...वरना क्या कारण था जो उस काली रात आन्दोलनकारियों को वहां से मार मार कर भगाया? क्या कारण है जो बाबा रामदेव का दिल्ली में परवश निषेध कर दिया?
यह ऋषियों, मुनियों, तपस्वियों, साधुओं, संतों, सन्यासियों, शिक्षकों व आचार्यों का देश है| अत: एक सन्यासी से घबराहट केवल उन्हें ही हो सकती है जो सत्ता के नशे में चूर हों|
यह इस देश का दुर्भाग्य ही है जो आचार्य बालकृष्ण को उस रात इतना अपमान सहना पड़ा| उनके आंसुओं को देख कर भी यह भ्रष्ट सरकार नहीं झुक रही| अत: अब आवश्यकता अब इसकी कमर तोड़ने की है|

सभी देश द्रोहियों की कमर तोड़ने के लिए मैं कृत संकल्प हूँ|

दीदी आपके साथ मैं भी बाबाजी के साथ हूँ...

जय हिंद
वन्देमातरम्

vandana gupta said...

क्या चोर की दाढ़ी में तिनका है ?
बस यही बात है तभी दमन किया जा रहा है सच्चाई का मगर सच का दमन कभी नही हो सकता अब एक मशाल जली है तो क्रांति आकर रहेगी।

दिवस said...

बहन शालिनी कौशिक जी...
एक ब्लॉग पर आपकी इसी प्रकार की एक टिप्पणी का उत्तर मैं दे आया हूँ...शायद जिस ब्लॉग पर आप जाती हैं, कमेन्ट करने के बाद दुबारा वहां झांकती भी नहीं हैं| अन्यथा आपको उत्तर मिल जाएगा|
यदि उत्तर चाहें तो बता दीजियेगा, आपको यहाँ भी उत्तर देने के लिए प्रस्तुत हूँ|
यह टिप्पणी इमरान अंसारी पर भी लागू है...

सुज्ञ said...

क्या चोर की दाढ़ी में तिनका है ?

हाँ सही बात है, और जो लोग इस आन्दोलन को मुद्दा आधारित से व्यक्ति आधारित करना चाहते है उनकी मंशा कुटिल है। इमरान अंसारी साहब, मुद्दा यहां कालाधन और भ्रष्टाचार है आप कहते है-"अन्ना हजारे जी और बाबा रामदेव में फर्क तो है रही समर्थन की बात तो मैं अन्ना हजारे जी को चुनुँगा." आप बस मुद्दा चुनिए, आपके उस व्यक्तिगत फर्क की भावना भी हम समझते है!! फिर भी भ्रष्टाचार का मात्र मुद्दा देखो, यह न देखो उसे कौन उठा रहा है। आपको तुलना करने की आवश्यकता ही नहीं पड़ेगी।
जो लोग बाबा के भाग जाने को मुद्दा बना कह रहे है बाबा नें पिटवाया? वो शायद इस बहाने पीटनें वाले आक्रमण खोरों को बचाना चाहते है ताकि पीटो भी आप और इलजाम मार खाने वालों पर डाल दो। अजीब न्याय है। वहां लोगों ने मार खाकर भी शान्ति बनाए रखी तो उसका श्रेय बाबा के उस उद्बोधन को जाता है जब उन्होने लोगों को शान्ति बनाए रखने के लिये कहा था। वह भीड प्रशासन से भी अधिक समझदार थी जिसनें पुलिस द्वारा उकसाने के बाद भी भगदड़ नहीं मचाई अन्यथा सैकड़ों लोग कुचल कर मर जाते और बड़ा हादसा हो जाता। और यह दोष भी बाबा पर लगता।
बाबा के मृत्यु अभिलाषी आज भी भागने को मुद्दा बनाकर उनके दुस्साहास को ललकारने की कुटिल चाल खेल रहे है। भ्रष्टाचार के विरुद्ध जाग्रति पैदा हो उसके पहले ही बाबा बलिदान मांग रहे है। पर बाबा इस तरह षड़यंत्र में आकर आत्महत्या करने वाले नहीं। आत्महत्या भी पाप है। भागकर बाबा नें अपना सन्यास,जान और मुद्दा तीनो बचा लिया। और वहां से चले जाकर भीड़ को अनावश्यक आक्रोश से भी बचा लिया।

हां, कईं सुविधाखोरों टुकड़ाखोरों की की दाढ़ी में तिनका है।

सुज्ञ said...

भ्रष्टाचार के विरोध में खड़ा होनें का यह अभियान अगर इन 'बाबा' विरोधियों के कारण निस्तेज हुआ तो इतिहास इन सम्वेदनाहीन स्वार्थलोलुप, सुविधाभोगी, ट्कड़ाखोरों को कभी माफ नहीं करेगा। यही मौका भी है सभी की कुत्सित मानसिकताएं समझने का!

बाबा पर संदिग्धता का आरोप मढने वाले कहां से लाएंगे ऐसा असंदिग्ध, संयमित व शुद्ध आचरण युक्त सर्वगुण सम्पन्न देवदूत?
तुम लोग तो भगवान को भी संदिग्ध सिद्ध करते नहीं लज़ाते। जब राम पर सीता के प्रति अन्यायी चित्रित करते हो,कृष्ण को हर बात में। ऐसे कृपण किसी भी नेतृत्व को क्या छोडेंगे?

भ्रष्टाचार से मुक्ति के लिए स्वच्छ व्यक्ति की कुटिल शर्तें रखनें के पिछे की मंशा विवेकवान लोगों को स्पष्ठ नजर आती है। न नौ मन तेल होगा न राधा नाचेगी।

सुज्ञ said...

@भ्रष्टाचार तो हम और आप से शुरू है और यही से खत्म होगा.....
@हम सुधरेंगे जग सुधरेगा।
@सुधार पहले खुद से शुरू होना चाहिए।

--- तो अब तक कर क्या रहे थे? क्या अपने आप बदला है किसी नें खुद को? यह बात तो सभी यथास्थितिवादी सदियों से कहते आए है। पर सुधार का झंडा हमेशा किसी महापुरूष को उठाना पडता है। इस ज्ञानगम्भीर बात में फुसलाकर पापो से बचने के प्रयास मत करो। बुरे स्वयं कभी नहीं सुधरते किसी नेतृत्व की हृदयभेदी प्रेरणा की जरूरत रहती है।
यदि इन्सान में स्वयं सुधरने की कुवत होती तो न महापुरूष अवतार धारण करते न सुधारक आकर अपना जीवन ही होम देते।

ROHIT said...

मैने पूरा इंटरनेट खंगाल मारा.
ब्लाग पे गया. साइटस पे गया. न्यूज साइटस पे गया .
लेकिन मुझे एक विशेष 'धर्म' का एक भी व्यक्ति नही मिला.
जो बाबा रामदेव का समर्थन कर रहा हो.
ये मै बाबा के आंदोलन के बाद की बात नही पहले की भी बात बता रहा हूँ.

आखिर इसका क्या कारण है.

Sulabh Jaiswal "सुलभ" said...

जो कर्मशील हैं , वो निजी लाभ से बहुत ऊपर उठकर देश-हित के लिए चिंतन करते हैं और सतत देश के विकास के लिए प्रयत्नशील रहते हैं।
--
लानत है ऐसे बुद्धिजीवियों पर जिन्होंने यह गाँठ बाँध लिया है कि स्वयं के आर्थिक उन्नति और सामाजिक प्रतिष्ठा के लिए किसी बड़े दलों के इर्द गिर्द रह लेखन या भाषण मात्र करना है. इस देश में कठिन और श्रमसाध्य करने वाली जनता निवास करती है उनमे से अधिकाँश कष्ट झेलने के बाद भी यही मानते हैं कि " इज्ज़त की जिंदगी जीना है तो प्रतिदिन मेहनत तो करने ही होंगे" जब इमानदारी और मेहनत से कार्य करने पर भी सुख न मिले तो ऐसे भ्रष्ट व्यवस्था या किसी ख़ास गिरोह(एक ख़ास चरित्र वाले शाषक लोग) के खिलाफ क्रान्ति तो बनता है. जहाँ कड़े कानूनों के मानने में कोताही न हो.

रही बात बाबा रामदेव के समर्थन की, बहुत सारे अच्छे मुद्दों के बीच "भारत स्वाभिमान" का मुद्दा मेरे मन में बरसों से है. जब हम अपना, अपने प्राकृतिक संसाधनों, अपनी प्रतिभा का सही नियोजन कर इसे उद्द्याम्शीलता में नहीं बदलेंगे तब तक हम दुसरे देशों, विदेशी भाषाओं, विदेशी संस्कृतियों के ग़ुलाम बने रहेंगे; घोषित आजादी के बाद से ही हमारा इंडिया यही अनुसरण करता दिखा रहा है. आवश्यक परिवर्तन के लिए पहले मन से और फिर समूह के साथ क्रान्ति तो बनता है.

Aruna Kapoor said...

जय हिंद!
जय भारत !
वन्दे मातरम् !

बाबा रामदेव जो कुछ कर रहे है, आम भारतीय के हित को ध्यान में रख कर ही कर रहे है!....उनके अभियान को मेरा समर्थन है!....लेकिन अनशन से उनके स्वास्थ्य पर बुरा असर पड रहा है..काश कि वे अनशन समाप्त करने की घोषणा करें!...विदेशी बैंको में जमा काला धन...एक बहुत पुरानी बिमारी है, इसका इलाज लंबा चलेगा!....

...धन्यवाद झील!..बहुत सुंदर आलेख!

ashish said...

अच्छा है की सभी राजनेता अपने अपने सम्पति का विवरण दे , पारदर्शिता और शुचिता जरुरी है समाज हित में .

shikha varshney said...

पता नहीं कौन सही है कौन गलत.
यकीन तो मुझे अब किसी पर नहीं होता.

सञ्जय झा said...

sayad is dar ki parat aacharya girijeshji ke post pe mile.......

pranam.

दिवस said...

हंसराज भाई...साधुवाद...

आपकी टिप्पणियों से बहुत खुशु हुई...

शालिनी कौशिक के कथनानुसार "बाबा रामदेव लोगों को पिटता छोड़ वहां से भाग गए थे"

इनसे कहना चाहता हूँ की जब सच्चाई पता न हो तो काहे का उछलना?

इस विषय पर एक लेख अपने ब्लॉग पर लिखूंगा...

सदा said...

आपकी बात से पूर्णत: सहमत हूं ... बहुत-बहुत आभार इस प्रस्‍तुति के लिये ।

Saleem Khan said...

दिव्या जी, मैं इस मुद्दे पर कम से कम आपके साथ नहीं क्यूंकि देखिए कोंग्रेस को बाबा से डर है लेकिन हकीक़त ये भी है कि बीजेपी और संघ जो कि कुख्यात हैं पिछले अपने कुकृत्य से के वे एक मोहरे भी हैं. बस यही एक पॉइंट है जो मामले को पेचीदा बना रहा है.

G Vishwanath said...

I sympathize with Baba Ramdev and also Anna Hazare.
I support their cause.
However, I am nervous and uncomfortable with Baba Ramdev's suggestion to raise an "army".

It's okay, if he has a small private group of armed men for his personal protection and for the protection of his Ashram at Hardwar against possible attacks from terrorists or other criminals.


Baba Ramdev definitely needs protection as he is certain to be targetted by people who stand to lose a lot if he is successful.

However, the defence of the nation is the responsibility of the Armed forces and the Police.
Reforms in our Police system should be our objective not raising a private army.
It will set a dangerous precedent.
What if other parties too start raising armies of their own?
May be having a number of swayamsevaks like the RSS is a better idea.
Let them be armed with ideas, motivation, unselfishness, and commitment to serve the nation. No weapons are necessary for such an army.

Regards
GV

Deepak Saini said...

पारदर्शिता और शुचिता जरुरी है
सार्थक लेख

डॉ. नूतन डिमरी गैरोला- नीति said...

बहुत सही... भ्रष्ट लोग डर रहे है... कही उनका कला चेहरा ना लोगों को दिखाई दे ... और उनका कला धन देश के लिए सुपर्द हो कर सफ़ेद ना हो जाए.... इस सरकार ने तो लोकतंत्र की ह्त्या कर दी है... कोई भ्रष्टाचार के खिलाफ ना बोले ...इन लोगो की यही नीति है..

Patali-The-Village said...

इस भ्रष्‍ट सरकार का तो समझ आता है लेकिन बुद्धिजीवियों का ताण्‍डव समझ नहीं आ रहा है। धन्यवाद|

महेन्‍द्र वर्मा said...

नेक नीयत से किए जा रहे कार्य का सम्मान किया ही जाना चाहिए।
हम बाबा रामदेव जी और अन्ना हजारे जी द्वारा देशभक्ति की भावना से किए जा रहे नेक कार्य का समर्थन करते हैं।

SANDEEP PANWAR said...

कर ली दिल्ली की सुरक्षा,
हर घंटे तो एक नया अपराध होता है

मैं बाबा व बाबा के मुद्दे के साथ हूँ,

बाबा ने अपनी जायदाद की घोषणा कर दी है
है! कोई माई का लाल नेता, जो ऐसी घोषणा कर सके।

JC said...

जहाँ तक ' परम सत्य ' अथवा ' ईश्वर ' का प्रश्न है, दिव्या जी, आधुनिक वैज्ञानिकों को उसका आभास तो हो गया है किन्तु अभी उन्हें बहुत समय चाहिए उसे जानने के लिए... ' हम ' जिसे परंपरागत तौर पर ' ब्रह्माण्ड ' कहते आये हैं (अण्डा निर्गुण रहता है जब तक उसे फोड़ उसके भीतर विद्यमान जीव बाहर नहीं निकल आता है - और प्राचीनतम सभ्यता द्वारा ईश्वर को ' अजन्मा ' अनंत शक्ति रूप माना गया है), वर्तमान में आधुनिक वैज्ञानिक उसे यूनिवर्स कहते हैं - जिसे उन्होंने एक निरंतर फूलते गुब्बारे समान पाया है, एक अनंत शून्य जिसके भीतर अनंत भौतिक आकार वाली अनंत तस्तरिनुमा, अथवा ' सुदर्शन-चक्र ' समान गैलेक्सियां समाई हुई हैं, और उनमें से एक गैलेक्सी हमारी वाली भी है... और यह अपने केंद्र, जहाँ अत्यधिक गुरुत्वाकर्षण शक्ति वाला ' ब्लैक होल ' है, उसके चारों ओर घूमती बीच में मोटी और बाहरी ओर पतली ' मिल्की वे गैलेक्सी ' में हमारा सौर-मंडल भी बाहरी ओर समाया हुआ है (जिसके सार से हमारा शरीर बना हुआ माना जाता है), वैसे ही जैसे दूध के मंथन के बाद मक्खन बाहरी ओर फैलता है और केंद्र में केवल छाछ रह जाती है... (' क्षीरसागर-मंथन ' का भी शायद ' हम' अनुमान लगा सकते हैं) ... जिससे शायद अनुमान लगाया जा सकता है कि ' कृष्ण लीला ' के हीरो का गोपाल कहा जाना वास्तव में क्या अर्थ रखता है...

मनोज भारती said...

आज जरूरत है इस आंदोलन को निरंतर तब तक जारी रखने की जब तक की काला धन देश की संपत्ति घोषित न हो जाए। यह आंदोलन आम आदमी का है...जो अपने बच्चों को हमारे तथाकथित नेताओं के कान्वेट स्कूलों में नहीं पढ़ा सकता, जो फुटपाथों पर सोने को मजबूर हैं, जो मेहनत से करते है,फिर भी दो जून की रोटी को तरसते हैं। भारत में यदि इन राजनेताओं का काला धन देश की संपत्ति घोषित हो जाए और कोई ईमानदार व्यक्ति सही मायने में देश का नेतृत्व करे तो सही अर्थों में भारत में लोकराज स्थापित हो सकता है । देश में कोई भूखा न रहे।

बाबा रामदेव ने जो मुद्दे उठाएँ हैं, हम उनसे सहमत हैं और उनके साथ हैं...बुद्धिजीवियों को कम से कम यह तो दिखाई देना ही चाहिए कि वे जिन मुद्दों पर बात कर रहें हैं? उन पर पिछले 65 वर्षों में किसी ने आवाज नहीं उठाई...आज जब आवाज उठी है और एक कटु सत्य पर आंदोलन की शुरुआत की गई है ...तो क्यों हम परस्पर गुटों में बँट रहे हैं? क्यों नहीं हम देश को समृद्ध बनाने वाले आन्दोलन में एकमत हैं??? उठो...जागो...और संघर्ष करो ...स्वामी विवेकान्द के इन शब्दों को याद करो और बाबा रामदेव,अन्ना हजारे द्वारा शुरु किए गए आन्दोलन को तब तक चलाए रखें जब तक कि भारत के आखिरी नागरिक के हकों की रक्षा सुनिश्चित न हो जाए। देश के हर नागरिक को इस संघर्ष में तब तक आहुति डालनी चाहिए जब तक कि सरकार इन मुद्दों पर ईमानदारी से विचार करने के लिए तैयार न हो जाए।

सरकार के सभी मन्त्रियों को बाबा से सबक लेना चाहिए और अपनी सारी संपत्ति को जनता के सामने हिसाब देना चाहिए।

Bikram said...

I am all for this anti corruption and everything .. But not veru happy with the Way baba ramdev has gone about.. Anna had done something that the whole of india got together but now Everyone shud not do the same ..

I am not against anyone But Baba ramdev has been giving a lot of statements which are not good , Wehn Anna came with a way he did not go all for media , He did what he Said ...

Baba Ramdev may be a saint and the nbest person but using fast is also not good tomorrow someone else will get up and do it .. then what .. Baba Ramdev has so many supporters he a few months ago or a yer ago flaoted a politcial party too..

And please dont put everyone on the same pedestal as the Revolutionaries of our great country , its a long war and lots of ups and downs have to be seen a lot of faces will become unearthed , a lot of truth will come forward ...

I am totally 100% with ANNA but one shud unite and work not start there own little war , if you know what i mean ..

Bikram's

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

सही समय पर बहुत सुन्दर प्रस्तुति!

Rajendra Swarnkar : राजेन्द्र स्वर्णकार said...

आदरणीया दिव्या श्रीवास्तव जी
सादर वंदे मातरम्!


4 जून की काली रात की बर्बर सरकारी दमन कार्यवाही से हर ईमानदार भारतीय की तरह मेरा भी मन अभी तक द्रवित है ,व्यथित है , आहत है !


आपकी इस पोस्ट की बहुत प्रतीक्षा थी मुझे … नमन !
आपके विचारों से कई जगह अवगत होता आया हूं पिछले दो-तीन दिन में …
(आपके कुछ ख़ास मेहमान इस पोस्ट पर क्या कह्ते हैं यह जानना भी दिलचस्प होगा … )

हमारी आवाज़ भी भारत-स्वाभिमान के इस आन्दोलन में शामिल है …
अब तक तो लादेन-इलियास
करते थे छुप-छुप कर वार !
सोए हुओं पर अश्रुगैस
डंडे और गोली बौछार !
बूढ़ों-मांओं-बच्चों पर
पागल कुत्ते पांच हज़ार !

सौ धिक्कार ! सौ धिक्कार !
ऐ दिल्ली वाली सरकार !

पूरी रचना के लिए उपरोक्त लिंक पर पधारिए…
आपका हार्दिक स्वागत है

- राजेन्द्र स्वर्णकार

नीलांश said...

zeal ji,aapne bahut accha lekh likha

desh ke liye jo bhi karya kare ....unke ham saath hain...
paarty koi bhi ho ,bas desh ke liye soche ...ham saath hain....

ek ek karke milte jaayenge saare sarfarosh
banta jaayega satya ka ek anootha kaarwaan
desh ke liye karenge ham apni koshishen tamaam
banega har hindustaani ke liye ek mehfooz jahan

Vaanbhatt said...

इस मसले में कोई दुविधा नहीं होनी चाहिए...गलत को गलत कहना ज़रूरी है...

चंद्रमौलेश्वर प्रसाद said...

इस क्रांति को तोड़ना बहुत सरल है..... बस, हिंदुत्व का ठप्पा लगा दीजिए! हमारे यह लिखने तक शायद यह क्रांति टूट चुकी होगी:(

भारतीय नागरिक - Indian Citizen said...

चन्द्रमौलेश्वर जी ठीक कह रहे हैं थोड़ी कसर रह जाये तो सवर्ण बनाम पिछड़ा बनाम दलित कह दें

Vivek Jain said...

बहुत बढिया पोस्ट है, पर माफ कीजियेगा, मुद्दा तो सही है, पर बाबा के बारे में?
साभार- विवेक जैन vivj2000.blogspot.com

डा० अमर कुमार said...


मुद्दे - सही हैं, मैं व्यक्तिगत स्तर पर मुद्दों के साथ हूँ ।
रामदेव - मुझे अन्ना को छोड़ रामदेव का साथ पकड़ने का कोई कारण नहीं दिखता ।
यह पोस्ट - इस पर कोई टिप्पणी नहीं !
धन्यवाद ! जयहिन्द, जय भारत, वन्दे मातरम !

BK Chowla, said...

Those who have read British India history will know how slowly the colonial rule is coming back to India.

प्रतिभा सक्सेना said...

इस समय देश को जिस क्रान्ति की ज़रूरत है उसका आवाहन हो चुका है .
मुँह मोड़नेवाले कायरों में श्रेणी में गिने जाएँगे .

G.N.SHAW said...

सुन्दर सृष्टि हमेशा बलिदान खोजती है , बलिदान नीव की ईंट की हो या मनुष्य की ! बाबा इसी बलिदान के एक रूप है ! इनके विरोधी रावण और भ्रष्टाचारी ही है ! जिनके पास अनगिनत धन है और ऐसोआराम की जिंदगी जी रहे है, वे किसी न किसी रूप में कालाबाजारी / भ्रष्टाचार में लिप्त है ! इस क्षेत्र में मीडिया भी आगे है ! मीडिया वाले अपने सम्पति की ब्योरा क्यों नहीं देते ! ये सरकार के पिट्ठू बन गए है ! इन्हें राम देव की गलती याद आ रही है लेकिन सरकार की बर्बरता /असम्बैधानिक तरीका नजर नहीं आ रहा है ! रामदेव क्या राम और कृष्ण को भी अपने युग में लोगो ने कुचक्र में फंसाया ! फिर भी वे पाक - साफ निकले ! सौ चोर मिलकर एक इंशान को चोर बनाने पर तुले हुए है ! काला धन अगर वापस आता है तो क्या राम देव के ट्रस्ट में जाएगा ? , नहीं यह सरकार के ही पास रहेगा ! उस पैसे का लाभ ..क्या आर.एस एस को मिलेगा ? सबको मालूम है की इसका फ़ायदा देश हित में और सभी धर्मी के लोगो को होगा , फिर इस आन्दोलन में धार्मिक पहलू को क्यों घसीटा जा रहा है ? लोगो सचेत हो जाओ ..सरकार ही साम्पदायिक है ! जो रोज - रोज सांप्रदायिक झगड़े को भड़काने की चेष्टा कर रही है ! एक धोती और चद्दर पहनने वाला क्या जाने धन - दौलत का सुख ! लोगो समर्थन देने से नहीं होगा , बदलाव ......आगे बढ़ने से होगा ! चले हम एक साथ आगे बढे और इन भ्रष्टाचारियो को सबक दे ! शर्म आनी चाहिए लोगो को जहा एक इन्शान के ऊपर इस तरह से सभी भेड़िये की भाति टूट पड़े है ! क्या यह न्याय है ? क्या यह असम्बैधानिक रूप नहीं है ? अभी भी वक्त है....कर्म और धर्म की जरुरत है , जो सामूहिक लाभ प्रदान करे!

ZEAL said...

.

बाबा अनशन तोड़ दीजिये।

इस असंवेदनशील सरकार से ये उम्मीद बेकार है की वह आपकी आवाज़ सुनेगी। वह तो इसी इंतज़ार में है की कब आपके प्राण निकल जाएँ और वो अपना भ्रष्टाचार जारी रख सके।

आप ही बाधा हैं लोगों की भ्रष्टाचारी की दूकान चलने में। इसलिए आपका अनशन वे तुडवाना नहीं चाहते। मानवता के नाते भी ये स्वार्थी और हृदय्विहीन सरकार आपका अनशन नहीं तुड़ा रही।

जो सरकार चल ही रही हो 'muslim appeasement policy ' पर , वह देश के एक संत और देशभक्त के जज्बातों को क्या समझेगी और क्या सम्मान देगी। यदि यह आपकी मांगे मान लेगी तो इनके वोटर्स नाराज़ हो जायेंगे और ये सरकार , आने वाला चनाव हार जायेगी।

यदि इस सरकार में ज़रा भी मानवीयता होती तो यह सरकार ४ जून को इतनी क्रूरता न दिखाती। फिर यह संवेदना विहीन सरकार आपके पवित्र अनशन का सम्मान कैसे कर सकती है ।

इसलिए बाबा आप अपना अनशन तोड़ दीजिये। देश की सेवा के लिए आपका अभी लम्बे समय तक जीवित रहना बहुत जरूरी है ।

ये सरकार अनशन से नहीं सुधरने वाली। ..."शठे शाठ्ये समाचारेत" ..शठ के साथ वही व्यवहार करना चाहिए जैसा वह समझते अथवा करते हैं ।

सत्याग्रहियों की भाषा भ्रष्टाचारियों की समझ में नहीं आ सकती।

इसलिए बाबा आप अनशन तोड़ दीजिये। आपका स्वस्थ्य रहना हमारे लिए बहुत ज़रूरी है। हमारा आन्दोलन जारी रहेगा , लेकिन भूखे रहकर जान नहीं दी जायेगी बल्कि खाते-पीते हुए , इन भ्रष्टाचारियों को उखाड़ फेंका जाएगा।

इनकी जडें हिला देने के लिए आपका स्वस्थ रहना नितांत आवश्यक है बाबा। इसलिए आप अपना अनशन तोडिये। हम सभी आपके साथ हैं । भ्रष्टाचारियों और कुतर्कियों को मुंहतोड़ जवाब दिया जाएगा।

शायद बाबा तक मेरी आवाज़ पहुंचे।

.

सम्वेदना के स्वर said...

बहुत कष्ट हो रहा है, शर्मिन्दा हैं हम अपने भारतीय होने पर!

ये कैसे लोगों के हाथ में देश की किस्मत दे दी है हम लोगों ने!

प्रतुल वशिष्ठ said...

'बाबा जी का अनशन भले ही शरीर को जीवित रखने के लिये टूट जाये' लेकिन उन्होंने जो स्वयं संकल्प किया है और जो संकल्प-चेतना हर भारतीय के हृदय में जगायी है वह कभी टूटने या समाप्त होने वाली नहीं.'

अंकित कुमार पाण्डेय said...

उस रात को वहां पर उपस्थित लोगों में से मैं भी था बस एक बात कहना है की ५ हजार पुलिसकर्मी केवल सरकारी आंकड़ा है वो कम से कम आठ हजार थे , और ये सब होने के बाद भी कोई थका नहीं था कोई हरा नहीं था कोई पराजित नहीं था और हर कोई संघर्ष करने के लिए तैयार था ..आप पुरी कहानी जैसा मैंने देखा यहाँ पढ़ सकते हैं
5 JUNE रामलीला मैदान :एक छिपा हुआ सत्य एक प्रत्यक्षदर्शी के शब्दों में

ROHIT said...

-----------------------

इंडिया टी वी के वरिष्ठ पत्रकार रजत शर्मा जो आप की अदालत के एंकर भी है. उनका ये लेख कांग्रेस की बाबा रामदेव के प्रति घिनौनी साजिश को उजागर करता है.
.............,.................,.......
4 जून को स्वामी रामदेव
ने मुझसे
पूछा था कि क्या ऐसा हो सकता है
कि पुलिस उन्हें गिरफ्तार
करने की कोशिश करे ? मैंने
उनसे कहा कि कोई
भी सरकार इतनी ब़ड़ी
गलती नही करेगी “ आप
शांति से अनशन कर रहे
हैं ,आपके हज़ारो समर्थक
मौजूद हैं, चालीस TV
Channels की OB Vans
वहां खड़ी हैं.” .. मैंने उनसे
कहा था
'सोनिया गांधी और
मनमोहन सिंह
ऐसा कभी नहीं होने
देंगे'...मेरा विश्वास
था कि कांग्रेस ने
Emergency के अनुभव से
सबक सीखा है...पिछले 7
साल के शासन में
सोनिया गांधी और
मनमोहन सिंह ने
ऐसा कोई काम
नहीं किया जिससे ये
लगा हो कि वो पुलिस
और लाठी के बल पर
अपनी सत्ता की ताकत
दिखाने का कोशिश करेंगे
लेकिन कुछ ही घंटे बाद
सरकार ने मुझे गलत
साबित कर दिया..मैंने
स्वामी रामदेव से
कहा था कि आप निश्चिंत
होकर सोइये... देर रात
मुझे इंडिया टीवी के
Newsroom से फोन आया :
"सर, रामलीला मैदान में
पुलिस ने धावा बोल
दिया है"...फिर उस रात
टी वी पर जो कुछ
देखा ,आंखों पर विश्वास
नहीं हुआ कोई ऐसा कैसे कर
सकता है ...कैमरों और
रिपोर्ट्स की आंखों के
सामने पुलिस ने
लाठियां चलाईं, आंसू गैस के
गोले छोड़े, बूढ़े और
बच्चों को पीटा,
महिलाओं के कपड़े फाड़
दिए...मैंने स्वामी रामदेव
को अपने सहयोगी के कंधे
पर बैठकर बार-बार
पुलिस से ये कहते सुना-
"यहां लोगों को मत मारो
, मैं गिरफ्तारी देने
को तैयार हूं"...लेकिन जब
सरकार पांच हजा़र
की पुलिस फोर्स को
कहीं भेजती है
तो वो फोर्स ऐसी बातें
सुनने के लिए तैयार
नहीं होती...पुलिस
वालों की Training
डंडा चलाने के लिए
होती है, आंसू गैस छोड़ने
और गोली चलाने के लिए
होती है पुलिस ये
नही समझती कि जो लोग
वहां सो रहे हैं वो दिनभर
के भूखे हैं , अगर
वहां मौजूद भीड़ उग्र
हो जाती है तो पुलिस
गोली भी चला देती
...वो भगवान का शुक्र है
कि स्वामी रामदेव के
Followers में ज्यादातर
बूढ़े, महिलाएं और बच्चे थे
या फिर उनके चुने साधक थे
जिनकी Training उग्र
होने की नहीं है
जब दिन में
स्वामी रामदेव ने मुझे
फोन
किया था तो उन्होंने
कहा था - कि किसी ने
उन्हें पक्की खबर दी है कि
''आधी रात
को हजारों पुलिसवाले
शिविर को खाली कराने
की कोशिश करेंगे'' और ये
भी कहा कि ''पुलिस
गोली चलाकर या आग
लगाकर उन्हें मार
भी सकती है''...मैंने
स्वामी रामदेव से
कहा था कि
''ऐसा नहीं हो सकता-
हजारों पुलिस शिविर में
घुसे ये कभी नहीं होगा और
आप को मारने की तो बात
कोई सपने में सोच
भी नहीं सकता''...रात एक
बजे से सुबह पांच बजे तक
टी वी पर पुलिस
का तांडव देखते हुए मैं
यही सोचता रहा कि रामदेव
कितने सही थे और मैं
कितना गलत...ये मुझे बाद
में समझ
आया कि स्वामी रामदेव
ने महिला के कपड़े पहनकर
भागने की कोशिश
क्यों की...उन्होंने
सोचा जब पुलिस घुसने
की बात सही है
लाठियां चलाने की बात
सही है तो Encounter
की बात भी सही होगी
...मैं कांग्रेस
को अनुभवी नेताओं
की पार्टी मानता हूं...मेरी हमेशा मान्यता रही है
कि कांग्रेस को शासन
करना आता है...लेकिन 5
जून की रात
की बर्बरता ने मुझे हैरान
कर दिया...समझ में नहीं आ
रहा कि आखिर सरकार ने
ये किया क्यों ?...उससे
भी बड़ा सवाल ये
उठा कि कांग्रेस
को या सरकार को इससे
मिला क्या?

ROHIT said...

उम्मीद है अब लोगो को पूरी बात समझ मे आ जायेगी.

कि उस रात स्वामी रामदेव गिरफ्तारी देने के लिये तो खुद ही तैयार थे.
लेकिन गिरफतार तो वो तब होते न जब वाकई पुलिस उन्हे गिरफ्तार करने आयी होती.

पुलिस उनको दो तरीको से मारना चाहती थी.
पहला तरीका था कि आग लगाकर भगदड़ मे उनको दम घोटकर या कुचल कर मार दिया जाये.

दूसरा तरीका था कि स्वामी रामदेव के समर्थको को उग्र उत्तेजित कर दिया जाये.
जिससे पुलिस गोलियाँ चलाये और उसी मे एक गोली रामदेव को लग जाये.

लेकिन स्वामी जी ने पुलिस की दोनो गन्दी रणनीतियो पर पानी फेर दिया .

JC said...

@ BK Chowla जी ने इतिहास पर ध्यान देने को कहा है... और यह तो सभी जानते हैं कि भौतिक रूप से अंग्रेजों का भारत आदि कॉलोनी पर 'सूर्यवंशी' राजाओं समान राज्य समाप्त तो हो गया (चूँकि ब्रिटिश साम्राज्य में माना जाता था कि सूर्य कभी अस्त ही नहीं होता था!), किन्तु उनके द्वारा रचा गया वही क़ानूनी तंत्र, (जो एक पम्प समान, यहाँ पर कमाया गया पानी समान पैसा, पश्चिम में रानी के पास पहुंचा दिया जाता था), आरम्भ से ही वैसे का वैसा अपना लिया गया था... जो अब और भी मजबूत हो गया है...

यदि वो तंत्र ब्रिटिश राज में आम आदमी के विरुद्ध बनाया गया था तो इसमें शक नहीं कि 'उनका पैसा'तो अब भी पश्चिम दिशा में ही जाएगा, और उसे आज हम 'काला धन' कह रहे हैं - यानि 'कृष्ण धन'? जहां सुदर्शन-चक्र धारी कृष्ण भी उन जैसे ही विष्णु के अष्टम अवतार माने जाते हैं, और बृहस्पति ग्रह भी छल्लेदार तो है पर तुलना में मैला है... और इस सन्दर्भ में प्राचीन हिन्दू मान्यतानुसार पश्चिम दिशा का राजा सुदर्शन-चक्र धारी, यानि छल्लेदार सुन्दर शनि ग्रह है, जिसे 'सूर्य-पुत्र' भी कहा गया... और शनि ग्रह का सम्बन्ध लौह धातु, नीले रंग, आदि से और आपार धन (देने या हरने दोनों से) भी माना जाता है अनादि काल से... :)

JC said...

पुनश्च - मुग़ल राजाओं की वंश परंपरा का अंत सूफी शायर बहादुर शाह ज़फर की १८५७ की क्रान्ति की समाप्ति पर अन्ग्रेजों द्वारा कैद से, और उनके रंगून वास (पूर्व दिशा में, जहाँ सूर्योदय होता है) और उनकी वहीं मृत्यु और दफ़न से हुआ...

क्या इसे संयोग कहेंगे अथवा कोई संकेत कि एक और मुस्लिम भारतीय कलाकार की मृत्यु परदेस में (पश्चिम में, जहाँ सूर्यास्त होता है), लन्दन में, हुई और उन्हें सरे में दफना दिया गया है ?

Kailash Sharma said...

सच में यह एक पार्दार्शिकता की क्रांति है...भ्रष्टाचार के खिलाफ सशक्त आवाज है..इन मुद्दों को राजनीतिज्ञों के हाथ का खिलौना न बनने दें. सभी को इस क्रान्ति में सभी मतभेद भुला कर एकजुट होने की ज़रूरत है...

ZEAL said...

.

यदि घर का बच्चा भूखा हो तो क्या उसका पालक (माता-पिता) , भोजन करके सो सकता है भला ?

आज आठ दिनों से बाबा अनशन पर हैं , लेकिन प्रजा को भूखा देखकर भी सरकार का दिल पसीज नहीं रहा ।

बाबा कोमा में जा सकते हैं । स्थिति अति नाजुक है । चिंतित हूँ।

.

ZEAL said...

.

पाबला जी ने सूचना दी है की यह आलेख , आज के दैनिक जागरण अखबार , में भी प्रकाशित हुआ है । इस सूचना के लिए पाबला जी का ह्रदय से आभार।

http://blogsinmedia.com/wp-content/uploads/2011/06/blog-media-zeal.jpg

.

डॉ.बी.बालाजी said...

वन्देमातरम !

मैं बहुत व्यस्त हूँ
व्यस्त होने का बहाना है मेरे पास.

टी.वी पर देखा
समाचार पत्र में देखा
इंटरनेट पर देखा
लोगों को रोते-बिलखते
औरतों को गिड-गिडाते.

वर्दी और टोपी से पहचाना
खादी और काषाय वस्त्र से पहचाना
यह आज की बात है.

मेरे देश की बात है.

जनता की आवाज में मेरी भी आवाज मिल जाए
मैं अपनी व्यस्तताओं को
जिमेदारियों में बदल सकूं
चित्रों के पीछे के दर्द को
अपना दर्द बना सकूं.

ZEAL said...

.

@- JC जी ,
अत्याचार जब बढ़ता है तो समय-समय पर भगवान् स्वयं अवतरित होकर दानवों का दमन करते हैं। इतिहास गवाह है इस बात का। आज हमारे देश में भी ऐसी ही कुछ परिस्थिति बनी हुयी है। चाहे सरकार हो अथवा जनता , उसका एक-एक कृत्य , इतिहास के पन्ने पर दर्ज हो रहा है । अंतर सिर्फ इतना ही है की कुछ के नाम काले पन्नों पर होंगे , तो कुछ के नाम स्वर्णाक्षरों में उल्लिखित होंगे।

@-बी बालाजी ,
मर्म को स्पर्श करती बेहतरीन रचना है आपकी । आप चित्रों के पीछे का दर्द स्पष्ट रूप से देख रहे हैं । काश यही संवेदनाएं सभी में जागृत हों । काश सरकार भी इतनी संवेदनशील बने की व्यस्तताओं के मध्य अपनी जिम्मेदारी को समझे। कोई अनशन पर है , किसी की जान को खतरा है , लेकिन सरकार व्यस्त है ।

.

SM said...

we have to support every one who desires best for India.

JC said...

दिव्या जी, आपने सही कहा कि इतिहास ही बता पायेगा कौन माध्यम बनेगा... कृष्ण को भी आज अधिकतर व्यक्ति (अज्ञानतावश?) दोषी ठहराते हैं क्यूंकि 'हिन्दू' मान्यतानुसार 'महाभारत' के युद्ध में पांडवों के मित्र कृष्ण को न मानने वाले दुष्ट, राक्षशीय प्रवर्ती वाले अथवा स्वार्थी कौरव, मारे तो गए किन्तु विजयी पांडव भी हिमालयी क्षेत्र में जीव-हत्या के पश्चाताप करने हेतु गए और एक एक कर मारे गए... और केवल धर्मराज युधिस्ठिर ही इंद्र के रथ पर बैठ सशरीर स्वर्ग जा पाए, अपने मित्र कुत्ते के साथ जो वास्तव में धर्मराज यमराज स्वयं थे ! (और मान्य है कि शिव संहारकर्ता हैं, और यह भी सभी जानते हैं कि पृथ्वी पर आधारित हर प्राणी अंततोगत्वा मिटटी में ही अपना भौतिक शरीर छोड़ जाता है, अपने रोल को निभा ?)...

BrijmohanShrivastava said...

एक अच्छा लेख पढा । धन्यवाद और बधाई

Asha Lata Saxena said...

सही है| बहुत अच्छा लेख बधाई |
आशा

आचार्य परशुराम राय said...

यह सरकार उसी राह पर निकल पड़ी है जिसपर इंदिरा जी इमरजेंसी में निकल पड़ी थीं। अच्छा प्रेरक पोस्ट।

priya said...

Intention is the only important thing, nothing else when war becomes essential you cannot look back.This world is of dualities. More than one method of tackling things can be there. Situation will dictate the method.

One should always see the good actions of elders (in whatever way ) and shouldnot criticise their shortcomings.

I am sure none of the members who have posted their comments are in any way near to Baba's sacrifice and therefore unauthorised to comment on him.

He is correct. Hazare is correct. everybody can wage its own little war and it is call of the time.


We should feel ashamed if we belittle the other martyrs in becoming modern by saying that we are Gandhinian. All this is verbal and on paper. 2 October is world non violence day. But no country more ironically our own government does not practise it.

By saying, hum aapke saath hain, for baba or for hazare or anyone for that matter we mean THE AGENDA.

In my view anybody raising THE KALA DHAN issue in its own way is correct and I am with him/her/them.

Also I add, Baba is not a MERE SANYASI. He is MUNI. He is NOT GRIHASTH but He takes cognizance of all that is happening .

Jai kale dhan ka mudda
Jai Baba
Jai Hazare

Divya ji, sarthak post jo ki logo ka naqab utaar saki aur jo atmachintan ke liye vivash kar saki, ke liye badhaai.

Arunesh c dave said...

संघ तटस्थ नही रह सकता था ? हजारो लोगो ने संघ को सर्वस्व अर्पण किया था पर आज बीजेपी की जो हालत है गले तक भ्रष्टाचार मे लिप्त है ऐसे मे संघ का तटस्थ रहना शायद आपको नही अखरता और भ्रष्टाचार के विरुद्ध गैरराजनैत्क आंदोलन मे शामिल होना आप को अच्छा लगता है क्षमा कीजियेगा मै आपसे असहमत हूं

ZEAL said...

.

प्रिया जी ,
आपका कमेन्ट शायद तकनिकी गड़बड़ी के कारण प्रकाशित नहीं हुआ। खेद के साथ उसे दुबारा प्रकाशित कर रही हूँ। विलम्ब के लिए क्षमाप्रार्थी हूँ। आप एक लम्बे अंतराल के बाद हमारे ब्लौग पर आई हैं , आपका आना सुखकर लगा।

-------------

priya to me

show details 4:49 PM (4 hours ago)

priya has left a new comment on the post "पारदर्शिता की क्रान्ति -- Revolution of transparen...":

Intention is the only important thing, nothing else when war becomes essential you cannot look back.This world is of dualities. More than one method of tackling things can be there. Situation will dictate the method.

One should always see the good actions of elders (in whatever way ) and shouldnot criticise their shortcomings.

I am sure none of the members who have posted their comments are in any way near to Baba's sacrifice and therefore unauthorised to comment on him.

He is correct. Hazare is correct. everybody can wage its own little war and it is call of the time.


We should feel ashamed if we belittle the other martyrs in becoming modern by saying that we are Gandhinian. All this is verbal and on paper. 2 October is world non violence day. But no country more ironically our own government does not practise it.

By saying, hum aapke saath hain, for baba or for hazare or anyone for that matter we mean THE AGENDA.

In my view anybody raising THE KALA DHAN issue in its own way is correct and I am with him/her/them.

Also I add, Baba is not a MERE SANYASI. He is MUNI. He is NOT GRIHASTH but He takes cognizance of all that is happening .

Jai kale dhan ka mudda
Jai Baba
Jai Hazare

Divya ji, sarthak post jo ki logo ka naqab utaar saki aur jo atmachintan ke liye vivash kar saki, ke liye badhaai.

Post a comment.

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Posted by priya to ZEAL at June 12, 2011 4:49 PM

.

मदन शर्मा said...

बाबा रामदेव ने जो मुद्दे उठाएँ हैं, हम उनसे सहमत हैं और उनके साथ हैं..

Aajtok.in said...

बहुत अछि रचनाये yaha bhi aaye

जयकृष्ण राय तुषार said...

उत्कृष्ट लेख बधाई डॉ० दिव्या जी |आपकी सकारात्मक सोच को नमन |

SAJAN.AAWARA said...

Mam aapne jo likha wo josh bharne ke layak hai. . Humko ek moka mila hai baba ramdev ke dawara agar isko jane dia to bahut pachtana padega. . . .
Jai hind jai bharat