Thursday, August 25, 2011

हमारी सबसे बड़ी दौलत , हमारे बुज़ुर्ग

कहते हैं मित्र में ही सारे रिश्ते नज़र आते हैं मेरे सारे मित्र अत्यंत बुज़ुर्ग हैं। और उन्हीं में मुझे माता-पिता नज़र आते हैं। और माता-पिता के समान दूजा कोई मित्र नहीं होता।

बचपन से बुजुर्गों के साथ देर तक बैठना और उनकी बातें सुनना , फिर प्रश्न करना और फिर अकेले में उनकी बातों पर मनन करना और गूढार्थ समझ ज्ञान लाभ करना अच्छा लगता है । जिसने इतनी लम्बी जिंदगी के अनेक उतार चढ़ाव देखे हों औए बचपन से बुढापे तक सारे पड़ाव भी देख लिए हों , उनका जीवन तो स्वयं एक दर्शन बन जाता है। शिक्षा से परे , हज़ारों अनुभवों से उनके ज्ञान का जो विस्तार होता है , उसे हम उनके सानिध्य में रहकर आसानी से प्राप्त कर लेते हैं

अक्सर देखा है की जो हमारे बुज़ुर्ग हैं , वे हमारी ज्यादा चिंता करते हैं , जबकि इस उम्र में उन्हें पूरी देख-भाल, प्यार-दुलार और अपनेपन की ज़रुरत होती है। वे हमारे बारे में ज्यादा चिंतित रहते हैं , जबकि हम अपनी व्यस्तताओं के मध्य अपने बुजुर्गों को समुचित समय नहीं दे पाते हैं, जिसका मन में खेद रहता है।

अपने पिताजी के साथ अक्सर देर तक बातें करती हूँ। अनके अर्जित ज्ञान का शतांश लाभ भी मिल जाए तो जीवन सफल हो जाए। पिछले हफ्ते वे तीर्थ यात्रा पर थे। तीन दिन की यात्रा में tourism वालों ने आठ-आठ लोगों का ग्रुप बना दिया था। पिताजी का नियम से फोन आता था अपने चारों बच्चों को यात्रा का अपडेट देते रहते थे। हम लोग भी निश्चिन्त होकर उनकी ख़ुशी में शामिल थे वे फोन पर अपने साथियों को बताते थे , बिटिया से बात कर रहे हैं-- मैं कहती थी सभी से मेरा नमस्ते कहियेगा। फिर फोन पर आठों लोगों की समवेत स्वर में आशीर्वाद देने की आवाजें आती थीं। कानों में वह अमृत-ध्वनि हमेशा गूंजती रहती है।

ब्लौग पर अनेक बुज़ुर्ग अपनी यथाशक्ति , निस्वार्थ रूप से उत्कृष्ट योगदान कर रहे हैं। उनके अनुभवों का लाभ हमें मिलता रहता है इसके लिए पोस्ट के माध्यम उन सभी का आभार व्यक्त कर रही हूँ, जिनके अनुभवों और आशीर्वाद से हमारा जीवन खुशहाल बना रहता है अनेक ब्लॉग्स पर साहित्य और लालित्य की वर्षा होती है , जहाँ ज्ञान के मोती चुनने में अपार आनंद आता है। ऐसे सभी ब्लॉगर्स ( बहुत से-किसका नाम लिखूं किसका छोड़ दूँ) और टिप्पणीकार ( JC जी , विश्वनाथ जी ) को नमन।

मेरी पडोसी श्रीमती कमल , जिनकी आयु ७५ वर्ष है, उनके पास सप्ताह में एक बार जाने का नियम बना रखा है। वे आश्चर्य चकित होकर कहती हैं की-तुम्हारी उम्र का तो कोई, ख़ास मुझसे मिलने आता ही नहीं। लेकिन उन्हें क्या पता की मैं उनके पास आकर अति-सुकून पाती हूँ और उनके अनुभवों से ज्ञान लाभ करती हूँ। वे पहले सिंधिया-विद्यालय में लेक्चरर थीं जब भी उनसे मिलने जाती हूँ, वे कुछ कुछ पढ़ती ही रहती हैं और कुछ नोट्स भी बनाती रहती हैं। मेरे पहुँचते ही वे जो पढ़ती थीं वह मुझे बताने लगती हैं। मैंने अनुभव किया है की उनका ज्ञान बहुत विस्तृत है अपने बुजुर्गों के ज्ञान का लाभ हम उनके साथ वक़्त गुज़ार कर ले सकते हैं उनकी सबसे अच्छी बात ये है की हर २० मिनट पर अपने हाथों का बनाया हुआ कुछ खाने के लिए भी ले आती हैं उनके हाथ के स्वादिष्ट व्यंजन अमृत-तुल्य लगते हैं। चलते समय जब उनका चरण स्पर्श करती हूँ तो वे आशीर्वादों की झड़ी लगा देती हैं। मैं मूढ़-अज्ञानी , केवल दुलार, ज्ञान और आशीर्वाद लूटने वहां नियम से जाती हूँ। और वे निस्वार्थ होकर अक्षय-पात्र की तरह देती भी रहती हैं।

मेरी ईश्वर से प्रार्थना है , पृथ्वी के सारे बुज़ुर्ग स्वस्थ रहे और दीर्घायु हों। वे ज्ञान के भण्डार हैं और उनका स्नेह अमृत है। हमारे जीवन का सबसे बड़ा खज़ाना बुजुर्गों से मिलने वाला आशीर्वाद है

हमारे बुज़ुर्ग सिर्फ देते ही हैं, लेते कुछ नहीं।

Zeal


70 comments:

Pallavi saxena said...

बहुत सही लिखा है आप ने, मैं आप कि बात से पूरी तरह सहमत हूँ।

Rakesh Kumar said...

वाह! दिव्या जी वाह!
बहुत सुन्दर और श्रेष्ठ भावनाएं व्यक्त की हैं आपने.
आपकी पवित्र भावनाओं को दिल से नमन.

रविकर said...

शुक्रवार --चर्चा मंच :

चर्चा में खर्चा नहीं, घूमो चर्चा - मंच ||
रचना प्यारी आपकी, परखें प्यारे पञ्च ||

प्रवीण पाण्डेय said...

यही समझ हर व्यक्ति में बनी रहे।

ashish said...

अप्रतिम एवं कल्याणकारी भावनाएं . बुजुर्गों का सान्निध्य हमेशा सुखदाई होता है .

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

आज तो यह लेख पढते पढते न जाने क्यों नम हो गयीं आँखें ... ऐसे सद्विचार सबके मन में हों तो बुजुर्गों का जीवन कितना तनाव मुक्त हो सके ..

रेखा said...

मुझे भी बुजुर्गों से खास लगाव रहा है ...उनके हर सुझाव मेरे लिए बहुमूल्य होते हैं ,और उनके द्वारा दिए गए आशीर्वचन से मैं अपने को बहुत भाग्यशाली महसूस करती हूँ ,लेकिन कभी -कभी एहसास होता है कि शायद आनेवाली पीढ़ी हमारी तरह से नहीं सोच पाएगी ......

एस एम् मासूम said...

एक बेहतरीन लेख. क्या दिव्या ऐसी ही है सच मैं? यदि हाँ तो मुझे समझने मैं देर हुई.

सदा said...

बेहद भावमय करते शब्‍द ...बेहतरीन आलेख ...शुभकामनाएं ।

जयकृष्ण राय तुषार said...

बेहद उत्कृष्ट और भावनाओं से ओतप्रोत पोस्ट बधाई

DR. ANWER JAMAL said...

बुज़ुर्ग जब हमारे सिरों पर हैं तो हम बचपन का अहसास कर सकते हैं।
अपने बचपन के दिनों की वापसी के लिए कोई शायर कहता भी है कि
‘वो काग़ज़ की कश्ती वो बारिश का पानी...‘

बचपन दरअसल हमारा कहीं भी नहीं जाता।
जो लोग हमें बच्चा होने का अहसास दिला सकते हैं, उनसे हम ही दूर हो जाते हैं।
आओ बुज़ुर्गों के पास और बन जाओ बच्चे।
बच्चा फ़रिश्ता और देवता होता है,
बच्चा जन्नत @ स्वर्ग का हक़दार होता है।
जन्नत का रास्ता हो या ईश्वर का रास्ता हो,
बुज़ुर्गों से कटने के बाद फिर कभी नहीं मिलता।
बड़े बड़े दार्शनिक मां बाप को छोड़कर घर से भाग गए।
दुनिया में उनका नाम कितना भी हो जाए लेकिन पा कुछ भी न सके।
इस सच्चाई को बार बार सामने लाने की ज़रूरत है।

एक अच्छी पोस्ट के लिए शुक्रिया !

http://hbfint.blogspot.com/2011/08/hindi-blogging-guide-30.html

vandana gupta said...

आपकी उच्च भावनाओं को नमन करती हूँ ……………काश ऐसी भावनायें सब मे हों…………एक सारगर्भित सटीक आलेख्।

प्रतिभा सक्सेना said...

आप का कथन सही है, पर आज नई पीढ़ी के रंग-ढंग अलग हैं - वैसे ही समय की कमी रहती है उनके पास.
आपकी बात उन तक पहुँच सके तो कितना अच्छा हो !

aarkay said...

" मेरी ईश्वर से प्रार्थना है , पृथ्वी के सारे बुज़ुर्ग स्वस्थ रहे और दीर्घायु हों। वे ज्ञान के भण्डार हैं और उनका स्नेह अमृत है। हमारे जीवन का सबसे बड़ा खज़ाना बुजुर्गों से मिलने वाला आशीर्वाद है " । यह लिख कर तो दिव्या जी आपने गागर में सागर भर दिया और साथ ही आपके व्यक्तित्व का एक और उजला पहलु सामने आया I यों बुज़ुर्ग कभी डांट भी देते हैं पर उसमे भी कुछ भलाई ही छुपी होती है . जैसा कि एक कहावत भी है , "आंवले दा खाया और सयाने दा गलाया ( कहा ) " बाद में ही लाभ देते हैं I
एक सार्थक आलेख के लिए बधाई !

महेन्‍द्र वर्मा said...

यदि मुझसे यह पूछा जाए कि हिंदी ब्लॉगिंग में अब तक की श्रेष्ठ प्रस्तुति आप किसे मानते हैं, तो मैं इसी प्रस्तुति का उल्लेख करूंगा।

बुजुर्गों के पास जीवन भर के अनुभवों की एक अलिखित किताब होती है जो दुनिया की सबसे बड़ी किताब होती है।

Suresh kumar said...

मेरी ईश्वर से प्रार्थना है , पृथ्वी के सारे बुज़ुर्ग स्वस्थ रहे और दीर्घायु हों। वे ज्ञान के भण्डार हैं और उनका स्नेह अमृत है। हमारे जीवन का सबसे बड़ा खज़ाना बुजुर्गों से मिलने वाला आशीर्वाद है ।
वाह zeal जी आपने बुजुर्गों के बारे में बहुत ही अच्छा लिखा है .......

अशोक सलूजा said...

दिव्या, खुश रहो !
हम बुजुर्गों को इतना मान-सम्मान .स्नेह देने के लिए .....
स्वस्थ रहो !
आशीर्वाद|

Sunil Kumar said...

काश यह भावनायें सब मे हों.......

P.N. Subramanian said...

बहुत ही सार्थक, सुन्दर पोस्ट. बचपन से मेरी आदत थी की कोई बुजुर्ग पुरुष या महिला के घर आगमन पर मैं दंडवत हो जाया करता. आशीर्वादों की झड़ी लग जाया करती. मुझे लगता यह भगवान् ही बोल रहा है

Dr Varsha Singh said...

Another great post with a very important message, Thanks.

दिगम्बर नासवा said...

मेरे विचार में तो बुजुर्ग वरदान हैं इश्वर का ... आने वाली पीड़ी को राह दिखाते हैं ...

G Vishwanath said...

I am moved to tears by your sincere and honest tribute to the elderly.
You belong to a rare breed these days.
Most youngsters do not think like you and do not understand our generation.
They are unable or unwilling to understand and appreciate our thought processes and are sometimes contemptuous of us and often ignore us.
It is indeed heartening to be appreciated like this in public and on behalf of my generation, I wish to publicly thank you and shower our choicest blessings on you and your family.
With best wishes
GV

मनोज कुमार said...

अब तो हम भी बुजुर्गों की श्रेणी में आने लगे हैं। तब तो यह पोस्ट और भी मीठा लगता है।
पिता नहीं रहे। इसका यह मतलब नहीं कि जीवन में बुजुर्ग नहीं। हर बुजुर्ग से जीवन का संदेश मिलता रहता है और लाभान्वित होता रहता हूं।
बिना इस शे’र के बात अधूरी रह जाएगी ...

घने दरख़्त के नीचे मुझे लगा अक्सर
कोई बुज़ुर्ग मिरे सर पर हाथ रखता है।

rashmi ravija said...

सचमुच बुजुर्ग लोगों के पास अनुभवों का अनमोल खजाना है.....और वो लुटाने को भी तैयार बैठे रहते हैं...कमी है..तो उनके इस अनुभव से लाभ उठाने वालों की.

सुन्दर पोस्ट

AK said...

Elders are time tested individuals... as we say yoon hi baal dhoop mein safed nahin kiye hain.

So the Sol the only source of energy gets accumualted in them. They are like the vast reservoir of pure energy which we partake when we interact with them.

Naturally..achha ehsash hona hi hai...sukhad ehsash...sukoon milta hai pursukoon

JC said...

दिव्या जी, यह आपका बढ़प्पन है जो बुजुर्गों के प्रति आपके मन में (कलियुग में भी) श्रद्धा है... फेस बुक में आज ही मैंने पलायन से सम्बंधित प्रश्न पर निम्नलिखित पोस्ट किया था..

"सत्य तो यह है कि मथनी यद्यपि एक ही स्थान पर, लगभग एक ही बिन्दू पर, घूमती चली जाती है, दूध / दही से मक्खन बाहर की ओर चला जाता आ रहा है अनादि काल से...इस कारण केवल मानव जगत में संयुक्त परिवार बनते और बिगड़ते रहते प्रतीत होते हैं...और बुजुर्गों को अब कौन पूछता है, विवाहित जोड़े ही नहीं अपितु कुछ बड़े बूढ़े भी तलाक ले रहे हैं"...

रूप said...

हमारे बुज़ुर्ग सिर्फ देते ही हैं, लेते कुछ नहीं।
Right,you are ...........

kshama said...

अक्सर देखा है की जो हमारे बुज़ुर्ग हैं , वे हमारी ज्यादा चिंता करते हैं , जबकि इस उम्र में उन्हें पूरी देख-भाल, प्यार-दुलार और अपनेपन की ज़रुरत होती है। वे हमारे बारे में ज्यादा चिंतित रहते हैं , जबकि हम अपनी व्यस्तताओं के मध्य अपने बुजुर्गों को समुचित समय नहीं दे पाते हैं, जिसका मन में खेद रहता है।
Bahut sahee kaha aapne! Aap buzurgon kee qadr kartee hain,ye aapka badappan hai,warna aaj kal kaun unhen poochhta hai?

अरुण कुमार निगम (mitanigoth2.blogspot.com) said...

शाख पे आशियाँ न बना , हर दिल में अपना घर रख.
बूढ़े परिंदे उड़ जायें - सम्हाल के उनके पर रख.

बुजुर्गों की छाँव उनके नहीं रहने पर भी सदा सर पर रहती है.पोस्ट में अनमोल विचारों का खजाना है.

डॉ टी एस दराल said...

बुजुर्गों का हाथ जिनके सर पर रहता है , वह बड़ा भाग्यशाली होता है ।
हमने भी हमेशा अपने बुजुर्गों से ही ज्ञान हासिल किया है । आज जो भी हैं , उन्ही की कृपा है ।
उनका ख्याल रखना हमारा फ़र्ज़ है ।

सुज्ञ said...

यह समझ प्रत्येक व्यक्ति में स्थायी हो जाय तो जगत को हां सम्पूर्ण जगत तो सार्थक राह सहजता से प्राप्त हो सकती है। वास्तव में बिना किसी मूल्य के अनमोल अनुभवों का खजाना मिलता है।

रश्मि प्रभा... said...

bilkul sahi ...

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

बुजुर्गों के पास अनुभव के मोती होते हैं।
उनका सम्मान तो होना ही चाहिए।

Unknown said...

दिव्या जी , एक बार फिर लेखनी ने अश्रुपूरित शब्द लिखे, जब कभी भी कोई बुजुर्गों के प्रति ऐसे हृदयस्पर्शी विचार रखता है तो मुझे न जाने क्यों उससे बहुत सन्निकटता महसूस होने लगती है . आज जिस चीज़ सबसे ज्यादा कमी है वो ये है जो आपने प्रदर्शित की. हमारी तरफ सूनी आँखों से देखते हमारे अतीत ही नहीं प्रत्येक के भविष्य को भी इंगित करते हमारे बुजुर्ग हमारी अवहेलना के नहीं मीठे शब्दों के हक़दार है . यही सोच अमिट रहे ता उम्र.. रिटायर्मेंट के बाद मुझे भी जरूरत पड़ेगी.

Udan Tashtari said...

सही कहा...

Jyoti Mishra said...

Absolute truth..
Elders do help us a lot in numerous ways and the list can go on n on...
Nice read !!!

vidhya said...

बेहद भावमय करते शब्‍द ...बेहतरीन आलेख ...शुभकामनाएं ।

चंद्रमौलेश्वर प्रसाद said...

हमारे लिए प्रार्थना करने के लिए आभार:)

दिलबागसिंह विर्क said...

bujurgon ko smarpit sunder post

भारतीय नागरिक - Indian Citizen said...

कहते हैं कि मां-बाप का साया ही काफी होता है... बहुत अच्छा आलेख और आज तो अनवर साहब की टिप्पणी भी अच्छी है...

Rohit Singh said...

लाख टके की बात कही है आपने। बुजुर्ग का होना एक छत का होना होता है। वैसे भी आजकल तो एक बुजुर्ग ने ही सारे हिंदुस्तान को एकजुट कर रखा है। नई पीढ़ी भी इस दादाजी के साये में ही अपने भविष्य को निश्चिंत देख रही है। इससे बढ़ा उदाहरण क्या होगा कि चाहे कुछ भी कहें हमारे संस्कार अभी भी जिंदा है। वरना रामलीला ग्राउंड में मिले हजारों नौजवानों और बच्चों के दिलों में इन दादाजी के लिए अपार श्रद्धा नहीं देखता मैं।

udaya veer singh said...

It is said " The child is the father of man "
always we learn from everywhere , every time, anywhere,even from non -living beings too .A good place of all round body-development is our older. we always elate the story maneuverability of our older,because really they are the hero of our life , they are selfless,true friend of our beginning to --end one undoubtedly . Thanks for very good thoughts.

वाणी गीत said...

अपने बुजुर्गों से हम बहुत कुछ सीखते हैं ..
सही कहा आपने!

रविकर said...

श्रेष्ठ रचनाओं में से एक ||
बधाई ||

Anonymous said...

विश्व में किसी भी देवता का स्थान दूजा है,
माँ-बाप की सेवा ही सबसे बडी पूजा है,

Anonymous said...

बड़ों का साया जब तक बना रहे मन निश्चिन्त रहता है|

S.M.HABIB (Sanjay Mishra 'Habib') said...

पृथ्वी के सारे बुज़ुर्ग स्वस्थ रहे और दीर्घायु हों।

आपकी इस सुन्दर कामना में सहभागी....
सादर बधाई/आभार.

Unknown said...

बहुत सही कहा है आपने |

मेरी रचना भी देखें-
सुनो ऐ सरकार !!
साथ में इस नए ब्लॉग में भी आयें और जुड़े |
काव्य का संसार

Dr. Braj Kishor said...

सारे बजुर्ग इतने अच्छे नहीं होते.आप भाग्यशाली हैं, बधाई

मनोज भारती said...

"पृथ्वी के सारे बुज़ुर्ग स्वस्थ रहे और दीर्घायु हों। वे ज्ञान के भण्डार हैं और उनका स्नेह अमृत है। हमारे जीवन का सबसे बड़ा खज़ाना बुजुर्गों से मिलने वाला आशीर्वाद है।"


निश्चित ही बुजुर्गों के पास अनुभव व ज्ञान का अकूत खजाना होता है...जरुरत है तो बस हमें इन्हें समय देने और इनके अनुभवों का लाभ उठाने की। एक अच्छी पोस्ट!

शूरवीर रावत said...

'बुजुर्ग' शब्द से ही यह अहसास सा मन में जगता है जैसे कि हम धूप, वर्षा से बचने के लिए किसी घने पेड़ के नीचे हों या किसी बड़े पत्थर की आड़ में........... वाह. अब आपके लेखों को श्रेणीवद्ध ( categorized ) तो नहीं ही किया जा सकता है न दिव्या जी! सभी तो एक से बढ़कर एक हैं. क्या पिछले क्या यह. पर, इसके लिए भी आपका आभार माने बिना नहीं रहूँगा. पुनः आभार !

ZEAL said...

.

Here is the link--

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.

प्रतुल वशिष्ठ said...

जब माता-पिता वृद्ध हो जाएँ... उनमें से कोई भी हॉस्पिटल में एडमिट हो ... तब एक कसक सी होती है... निरंतर मिलते 'अनुभव-ज्ञान' का अभाव पड़ते ही मन में अकस्मात एक संशय जबरन घुस जाता है... भविष्य में उनके न रहने की कल्पना से सिहर उठते हैं."

Sadhana Vaid said...

बहुत ही सार्थक एवं भावपूर्ण आलेख दिव्या जी ! आपके यही सद्गुण और सद्विचार आपको विलक्षण बना देते हैं ! आपकी इतनी परिष्कृत सोच को नमन करने का मन होता है ! सदा सुखी रहिये !

चन्द्र भूषण मिश्र ‘ग़ाफ़िल’ said...

best post

Asha Joglekar said...

Divya, hum bujurgon ko itana man dene ke liye abhar. Tum apne har kam men safalta prapt karo. Sukhi raho.

देवेंद्र said...

प्रय दिव्या जी, इतनी प्यारी व आत्मीयता पूर्ण लेखकृति, सीधे हृदय को स्पर्ष करती है ।ईश्वर हम सब को यह सद्बुद्धि व भावना दे कि हम अपने बडे- बुजुर्गों को आदर, आत्मीयता व थोडा समय दें, इसमें हमारा स्वयं का कल्याण निहित है ।

Atul Shrivastava said...

सही कहा आपने।
बुजुर्ग ही ऐसी किताब हैं जो हमें व्‍यवहारिक ज्ञान के साथ साथ आशीष भी दे सकते हैं।
आपकी बातों से सहमत। हमेशा की तरह आपकी बेहतरीन पोस्‍ट।

Bhola-Krishna said...

प्रिय दिव्याजी
आपके सारगर्भित विचारों ने हृदय को छू लिया !बुजुर्गों के खट्टे -मीठे अनुभव हमें बहुत कुछ सीख दे जाते हैं ;इस चिर सत्य की प्रस्तुति के लिए आभार!
भोला -कृष्णा

Rajesh Kumari said...

bahut achche vichaar.bujurgo ke prati itne sunder bhaavon ne dil ko choo liya.kaash sabhi ke bhaav tum jaise hi ho.bahut bahut aashirvaad.

prerna argal said...

आपकी पोस्ट ब्लोगर्स मीट वीकली (६) के मंच पर प्रस्तुत की गई है /आप आयें और अपने विचारों से हमें अवगत कराएँ /आप हिंदी के सेवा इसी तरह करते रहें ,यही कामना हैं /आज सोमबार को आपब्लोगर्स मीट वीकली
के मंच पर आप सादर आमंत्रित हैं /आभार /

अजित गुप्ता का कोना said...

दिव्‍या जी, 25 अगस्‍त से ही बाहर थी, इसलिए आज आते ही सर्वप्रथम यह पोस्‍ट पढी। बुजुर्गों के अनुभव का लाभ जिसे मिलता है वह वास्‍तव में सौभाग्‍यशाली होता है।

मदन शर्मा said...

जी हां हमारे बुजुर्ग ही हमारे जीवित देवता हैं हमारा कर्तव्य है की उनके जीते जी हर संभव उनकी सेवा कर के उनकी आत्मा को तृप्त करना और यही सच्चा श्राद्ध तर्पण है !!!

सुधाकल्प said...

बुजुर्गों के प्रति आपका प्रयास व विचारों को पढ़कर बहुत अच्छा लगा |
सुधा भार्गव

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