ये सरकार किसी की सगी नहीं है। एक विदेशी द्वारा स्थापित हुई और आज भी एक विदेशी द्वारा ही संचालित है, फिर इससे देशभक्ति की उम्मीद करना ही व्यर्थ है। देश के विकास, भाईचारे और शान्ति बनाए रखने से इनका कोई सरोकार ही नहीं है।
यह सरकार मुसलामानों और अल्पसंख्यकों के नाम के विधेयक लाती है, क्योंकि इसमें उसका निजी स्वार्थ है। यह सरकार बिना इनके वोट पाए कभी टिकी नहीं रह सकेगी चरमरा कर गिर जायेगी इसलिए यह सरकार मुस्लिम समुदाय के तुष्टिकरण की नीति अपनाती है।
हमारे देश के मुसलमान यह समझते हैं कि यह सरकार उनकी शुभचिंतक है, उनके हित में सोच रही है, लेकिन नहीं वह तो केवल इनके वोटों का इस्तेमाल कर रही है। सत्ता में बने रहने के लिए वह इन्हें बलि का बकरा बनाकर इन्हें हलाल कर रही है पिछले ६४ वर्षों से।
अल्पसंख्यकों को चाहिए कि वे अपने स्वाभिमान को जगाएं। अपने निजी हित से ऊपर उठकर राष्ट्र के बारे में सोचें वे कमज़ोर नहीं हैं, मोहताज नहीं हैं जिन्हें भाँती-भाँती के आरक्षण और विशेष सुविधाओं की ज़रुरत हो। उन्हें अपने ज्ञान और शिक्षा के आधार पर उपलब्धियां हासिल करनी चाहिए अन्य भारतीयों की तरह।
मुस्लिम समुदाय को ये स्पष्ट दिखना चाहिए कि सरकार उन्हें मोहरा बनाकर देश को अल्प और बहुसंख्यक में विभाजित कर रही है। हिन्दू-मुस्लिम के बीच द्वेष की खाई को बढ़ा रही है।
यदि मुस्लिम इस देश को अपना समझते हैं और भाईचारा रखते हैं, धर्मनिरपेक्ष भी समझते हैं स्वयं को तो उन्हें भी खुलकर विरोध करना चाहिए। ऐसे मनमाने विधेयकों का जो हिन्दुओं का अधिकार छीन रही है और मुसलामानों को बदनाम कर रही है।
मुस्लिम समुदाय को विरोध करना चाहिए ऐसे विधेयकों का, आरक्षणों का, और ऐसी स्वार्थी सरकार का जो देश का हित नहीं सोचती, देश की समस्त जनता के बारे में नहीं सोचती बल्कि समुदाय विशेष को निज हित में आगे रखती है।
आपको अपना वोट देश-हित में इस्तेमाल करना चाहिए, सदियों से किसी एक पार्टी की गुलामी क्यों ?...डर किस बात का है? निज हित से ऊपर उठिए स्वाभिमान से जियें।
ये देश आपका भी उतना ही है, जितना अन्य समुदायों का, तो फिर आपके नागरिक अधिकार भी उतने ही होने चाहिए जितने अन्य भारतीय नागरिक के हैं।
अनायास ही कोई ज्यादा कृपा करे तो समझ लीजिये दाल में कुछ काला है। आपका नहीं अपितु कृपा करने वाले का ही कोई निजी स्वार्थ है।
स्वाभिमान से जियें, सरकार की कृपा के मोहताज नहीं हैं आप।
जागो मुस्लिम जागो !
स्वाभिमान जगाओ
जोर से बोलो--
वन्देमातरम !
26 comments:
Shat pratishat sahmat hun aapse!
shi bat.
आज दुर्भाग्य से चहुँ ओर धर्मं के विपरीत आचरण हो रहा है लोग सभ्यता और संस्कृति से विमुख होते जा रहे हैं ..साथ ही साथ विधर्मी आक्रान्ता जो भारत का खाकर के भारत एवं भारत की संतानों -संस्कृति पर कुठाराघात कर रहे हैं ...कहीं बम-ब्लास्ट करके कहीं प्यार के नाम पर नव -युवतियों को छल के जेहाद नामक कुत्सित -लक्ष साधे जा रहे हैं..
भारतीय राजनीति ध्रित्रराष्ट्र की तरह अंधी होकर तुष्टि करन की राह पर इन धर्मं विरोधी हत्यारे -पापियों का पोषण कर रही है
दीप्ति जी मै आप के विचारो से पूर्णत; सहमत हूँ ..आज धर्म और जाति के नाम पर जो होरहा है,वो हमारा दुर्भाग्य है..हर समुदाय को अब जागना होगा..सटीक और सार्थक लेख...
देश का दुर्भाग्य है कांग्रेस नाम की चिड़िया ... पर किसी को समझ नहीं आ रहा ... काश सोता देश जागे ...
बिल्कुल सही ...
पूर्णत सहमत
achche bhtrin lekh ke liyen bdhaai lekin khud muslmaan hi kongres ke pichhlggu bn kr apnaa svaabhimaan chhinvaa rhe hai sch yhi hai //unhe sochna hogaa jo rashtr ki sukkh shanti or vikaas ke liyen kama kre use hi jitaana chahaiye gulaam bnne ki jgh svtntr mtdaadata bnna chahiye ..akhtar khan akela kota rasjthan
sateek satya..per unko samajh me aaye to...
दिव्या दीदी
सौ प्रतिशत सहमत|
ये सरकार किसी की सग्गी नहीं है| मुस्लिम समुदाय को यह समझना चाहिए कि ये सरकार केवल उनका उपयोग कर रही है ताकि उसकी सत्ता यथावत चलती रहे|
आज भी अनेकों मुस्लिम यही कहते मिलते हैं कि हम पिछड़े हुए हैं| सरकार हमारा विकास नहीं करती|
क्या अब भी इन्हें समझ नहीं आ रहा कि जो सरकार ६४ वर्षों में इनका विकास नहीं कर सकी तो वह अब क्या करेगी? अपनी तुष्टिकरण की नीतियों के चलते इस बेईमान सरकार ने मुसलामानों को केवल एक मोहरा बना रखा है| और इस खेल में पिस्ता है हिन्दू| क्योंकि उनके अधिकार उससे छीनकर मुसलामानों को देने की बात सरकार करती है किन्तु मुसलामानों को मुर्ख बनाकर रखते हुए उन्हें वह अधिकार देती भी नहीं है|
सच कहा है आपने, कि जितना यह देश अन्य समुदायों का है उतना ही मुसलामानों का भी| अत: उनकी जिम्मेदारियां भी बराबर होंगी| ये देश उनका है तो उन्हें यहाँ मेहमान बना कर नहीं रखा जाएगा| उनके लालन पालन के लिए विशेष ध्यान नहीं दिया जाएगा| जितनी रोटी हिन्दू खाता है उतनी ही मुसलमान को मिलेगी| उनके नाम से होने वाले तुष्टिकरण को से सहमती रखने वाला मुसलमान दरअसल केवल मुसलमान है, वह भारतीय नहीं है| भारतीय होता तो वह इस भेद को मिटाने का प्रयास करता|
ऐसा नहीं हो सकता कि किसी काम के लिए जितनी सुविधाएं व संसाधन हिन्दुओं को मिलते हैं, मुसलामानों को उससे अधिक मिलें| ये भेदभाव इस देश में बर्दाश्त नहीं किया जाएगा|
बेहतर होगा जल्द ही यह बात मुसलामानों को समझ में आ जाए|
और साथ ही जिस प्रकार किसी हिन्दू के लिए पहले भारत फिर और कुछ है, यही विचारधारा मुसलामानों को अपनानी होगी|
जब तक वह अपनी मातृभूमि की वंदना नहीं कर सकते, तब तक वे इसके सपूत नहीं कहलाएंगे|
अत: जोर से बोलो
वंदेमातरम...
आजकल के तथाकथित राजनेता किसी के नहीं होते। इन्हें बस दो ही चीजें चाहिए- नोट और वोट। इन्हें पाने के लिए वे कुछ भी कर सकते हैं। कुर्सी पाने और कुर्सी बचाने के लिए छल-प्रपंच-धोखा-कपट, सब आजमाते हैं ये। क्या अल्पसंख्यक, क्या बहुसंख्यक, सभी को ठगा जा रहा है...पिछले 64 सालों से...64 क्या, बल्कि 100 सालों से।
सुन्दर और सार्थक प्रस्तुति.
आपकी पोस्ट की खबर हमने ली है 'ब्लॉग बुलेटिन' पर - पधारें - और डालें एक नज़र - रोज़ ना भी सही पर आप पढ़ते रहेंगे - ब्लॉग बुलेटिन
यही है इस देश की विडंबना की वो लोग जो हम चुनकर भेजते है हमी को काटने, बाटने का नापाक खेल खेलने लगते है सिर्फ अपने स्वार्थ के लिए और स्वार्थ क्या सेवा ? नहीं.. जैसा ये ढोंगी कहते है ये तो बस इस सेवा को हथियार बनाकर कुर्सी तक पहुचना चाहते है बस ... समय आ गया है जब इन्हें इनकी सूरत दिखाई जाये , इन्हें आईना दिखाया जाये. इन्हें जेल की हवा खिलाई जाये तो अपने आप sone की चम्मच मुह से निकल जाएगी और मिटटी की हांडी , गोबर और कंडों की महक इन्हें इनकी जमीन याद दिला देगी. जरूरत है अलख जगाने की , एक जुट होकर इन बुध्हिहीनों को सबक सिखाने की . वन्देमातरम.
राजनीति में नीति नहीं होती केवल राज करने की ही नीति होती है :)
विचारोत्तेजक आलेख।
"अनायास कोई यदि ज़्यादा कृपा करे तो समझिये कि दाल में कुछ काला है."
... यह सूक्ति बन पड़ी है.... और इसे एक समुदाय विशेष को समझना चाहिए ...
उसके बारे में कैसे साफ़-साफ़ कहूँ... जिसके परिवार के लोगों से सामना होने लगा है.... जिन लोगों द्वारा संचालित सामाजिक कार्यों में शामिल होता हूँ...
फिर भी एक बात सदैव ध्यान रहेगी.... ग़लत को ग़लत ही कहूँगा.. और राष्ट्र-विरोधी गतिविधियों में लिप्त लोगों की पोल खोलने का साहस करता रहूँगा.
आपके लेख के वह ओज है कि हिम्मत लौट-लौट आती है.
अपने आपको सबसे बड़ी धर्मनिरपेक्ष पार्टी और साप्रदायिकता के खिलाफ मानने वाली कांग्रेस ही चुनाव जीतने के लिए सबसे ज्यादा धार्मिक भावनाओं का दोहन करती है और इसके कुकृत्य से साम्प्रदायिकता घटने के स्थान पर ज्यादा बढती है|
कांग्रेस के अलावा भी जितने दल धर्मनिरपेक्षता के नाम पर कांव कांव करते घूमते है वे भी सब चुनावों में सबसे ज्यादा धार्मिक कार्ड चलकर साम्प्रदायिकता फैलाते है|
विचारणीय लेख।
वैसे कोई भी पार्टी हो.... वोटों के लिए कुछ भी.... किसी हद तक जाने से परहेज नहीं करती।
डॉ. दिव्या दीदी , पत्रकार अख्तर खाँ अकेला और भाई दिवस दिनेश गौड़ जी के विचारों से पूर्णतया सहमत । जब हम सभी भारतवासी है तो धर्म - जाति के नाम पर भेद - भाव क्यों ! अरब साम्राज्यवादी जेहादियों और मैकाले के मानस पुत्रों द्वारा भारत की आत्मा पर लगाये गये साम्प्रदायिकता के कलंक को धोने के लिए भारतीय मुस्लिम को पहल करनी होगी ।
वन्दे मातरम्
AP SAHI KAH AUR LIKH RAHI HAI
आपके दृष्टिकोण से सहमत हूँ. लुभाने के नाम पर केवल बैसाखियाँ बाँटते जाना मानव जाति का अपमान ही कहा जाएगा. आर्थिक गतिविधि की शक्ति का संचार करना सब से बड़ा विकास कार्य है. उस पर कोई ध्यान नहीं देता.
सवाल सिर्फ एक कांग्रेस का नहीं है। हर राजनीतिक दल यही कर रहा है। बांटो और राज करो की नीति अंग्रेजों ने अपनाई औऱ दो सौ साल तक राज कर गए। मगर काले अंग्रेजों की ये नीति समाज को पूरी तरह बांट रही है। इसमें दोष सिर्फ राजनीतिक दलों का नहीं है। मुस्लिम समाज के प्रबुद्ध वर्ग को देखना होगा कि समाज का निचला तबका आगे आए। जब बाकि लोग इसी शिक्षा व्यवस्था में पढ़कर कुछ हद तक आगे आने में कामयाब होते रहे हैं तो मुस्लिम समाज इतना पिछड़ कैसे गया...ये उसे खुद ही सोचना होगा.....आरक्षण की नीति इनका और समाज का बेड़ा ही गर्क करेगी और कुछ नहीं।
अकारण और अचानक कृपा करनेवाले का उद्देश्य अपना स्वार्थ सिद्ध करना ही होता है - यह सच है और जो सचमुच स्वाभिमानी है वह दूसरे की कृपा पर नहीं पलता.
बहुत सुन्दर ,सार्थक और विचारणीय लेख है आपका.
समाज के हर वर्ग को ही देश हित में , खुद के व समस्त
समाज के वास्तविक उत्थान के लिए ही सोचना चाहिये.
फिर वह चाहे मुसलमान ,हिन्दू या ईसाई हो या
अन्य कोई धर्मी.
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