Foreign direct investment : investment --FDI
आखिर FDI है क्या बला ?
विद्वान् पाठकों को FDI के बारे में अवश्य ही पता होगा फिर भी सामान्य पाठकों की जानकारी के लिए सरल शब्दों में -- FDI अर्थात किसी देश का अन्य देश में निवेश करना। यह निवेश किसी भी क्षेत्र में हो सकता है , लेकिन आजकल जो मुद्दा सबसे बड़ा खतरा बना हुआ है , वह है FDI-Retail का। उदाहरण के लिए 'वालमार्ट' ।
विदेशी कंपनी ५१ प्रतिशत की भागीदारी के साथ हमारे देश में 'वालमार्ट' आदि के द्वारा निवेश करना चाहती है, जिसकी अनुमति श्री सिंह ने दी है।
आखिर FDI है क्या बला ?
विद्वान् पाठकों को FDI के बारे में अवश्य ही पता होगा फिर भी सामान्य पाठकों की जानकारी के लिए सरल शब्दों में -- FDI अर्थात किसी देश का अन्य देश में निवेश करना। यह निवेश किसी भी क्षेत्र में हो सकता है , लेकिन आजकल जो मुद्दा सबसे बड़ा खतरा बना हुआ है , वह है FDI-Retail का। उदाहरण के लिए 'वालमार्ट' ।
विदेशी कंपनी ५१ प्रतिशत की भागीदारी के साथ हमारे देश में 'वालमार्ट' आदि के द्वारा निवेश करना चाहती है, जिसकी अनुमति श्री सिंह ने दी है।
क्यों करना चाहती है निवेश ? विदेशी कंपनी को क्या लाभ होगा ?
- जाहिर सी बात है , पैसा कमाने के लिए।
- निस्वार्थ तो करेगी नहीं
- दान देने की प्रथा केवल भारत में है , विदेशों में नहीं।
- भारत का हित तो चाहेंगे नहीं, अपना हित देखकर ही निवेश कर रहे हैं।
- इससे इन्हें एक बड़ी मार्केट मिलेगी , इनका नाम , प्रचार और टर्न -ओवर बढ़ जाएगा।
- मालामाल पहले से थीं , अब और हो जायेंगी।
- सीधा लाभ निवेश करने वाले देश को होगा। उसकी आर्थिक स्थिति और सुदृढ़ होगी।
FDI -Retail से भारत को क्या लाभ होगा ?
इस निवेश से संभावित नुक्सान--
इस तरह से तो हमारा देश तरक्की नहीं करेगा बल्कि हम अपने देश की गरीब जनता, छोटे मोटे व्यापारी , उधोगपति, किसानों आदि के पेट पर लात मारेंगे।
श्री सिंह तो देशवासियों के दर्द को समझ नहीं रहे , लेकिन हम और आप इस निवेश के खिलाफ एकजुट होकर इसका बहिष्कार कर सकते हैं। हमने स्वदेशी के इस्तेमाल द्वारा आजादी पायी थी और विदेशी सामानों का बहिष्कार किया था। आज एक बार फिर उसी जागरूकता की ज़रुरत है वरना देश पुनः इन विदेशियों के चंगुल में चला जाएगा।
बेरोजगारी से पीड़ित हो हज़ारों लोग भूखे मरेंगे , रोयेंगे और कलपेंगे, आत्महत्या करेंगे, वहीँ हमारी आने वाली पीढियां हो सकता है गुलाम भारत में ही जन्म लें। अतः सचेत रहने की अति-आवश्यकता है। ये विदेशी कम्पनियाँ हम पर राज करेंगी और हमें कई दशक पीछे धकेल देंगीं ।
कब्र में पाँव लटकाए लोग तो चल बसेंगे, लेकिन ज्यादा ज़रुरत है नौजवानों के खून में उबाल आने की और सचेत रहने की। बहिष्कार करो अन्यथा आप और आपकी आने वाली संतानें की भुक्तभोगी होंगी इस विदेश निवेश की। ये ईसाईयों की पार्टी (सरकार) , जो भगवा को आतंकवाद करार देती है और आतंकियों को शाही दामाद की तरह रखती है, वह अब विदेशियों को घुसपैठ करने की अनुमति देकर हमारी आधी जनता के मुंह का निवाला छीन रही है।
इन वाल मार्ट्स द्वारा कनाडा आदि कई देश अपने लोकल निवेशकों और व्यापारियों को पूरी तरह खो चुके हैं । यही हश्र भारत का भी होगा। शुरू-शुरू में ये कम्पनियाँ लुभावेंगी , लेकिन एक बार जडें मज़बूत होने के बाद ये हमारे किसानों और उत्पादकों को दूध से मक्खी की तरह निकाल फेकेंगी . बाद में ये हमारे किसानों द्वारा उत्पादित फसलों की क्वालिटी पर ऊँगली उठा, उन्हें भी नकार देंगीं। हम मुंह ताकते रह जायेंगे।
यह निवेश भारत देश की आने वाली आबादी के लिए गुलामी और गरीब आबादी के लिए मौत का फरमान होगी। श्री सिंह को इटली से आदेश मिलते ही हैं, चीन भी बताता है की कौन सी कान्फरेन्स अटेंड करनी है दलाई लामा की और अब अमेरिका बताएगा की देश कैसे चलाया जाए और देश का विकास कैसे हो।
जब देश आतंकवाद और भ्रष्टाचार जैसे मुद्दों से जूझता है तो श्री सिंह भोली-गाय बन जाते हैं लेकिन क्या चक्कर है जब विदेशी निवेश की बात होती है तो वे 'शेर' बन जाते हैं ? स्वयं तो कुछ वर्षो के ही मेहमान होंगें लेकिन आने वाली पीढ़ियों को गुलाम कर जायेंगे ये।
अपने देश को सुरक्षित रखने के लिए सचेत रहना होगा। ये विदेशी कम्पनियाँ हमारी सगी कभी नहीं हो सकतीं। इनका स्वार्थ इन्हें भारत की तरफ गिद्ध-दृष्टि करवाता है। और श्री सिंह की असंवेदनशीलता ही छोटे व्यापारियों और कुटीर उद्योगपतियों के पेट पर लात मारती है और बेरोजगारी को बढाती है। जब तक बेरोजगार होने वालों की पुनर्स्थापना का कोई बेहतर विकल्प न ढूंढ लिया जाए , तब तक ऐसे निवेश के बारे में सोचने का कोई अधिकार नहीं है सरकार को।
अपने देशवासियों की आहों पर तरक्की नहीं चाहिए हमें। हमारे देश के पास संसाधन भी है, विद्वता भी। हम अपने प्रयासों से और स्वदेशी के उपयोग से अपने देश का विकास करने में सक्षम हैं और इस निवेश का पूर्णतया बहिष्कार करते हैं।
केवल 'भारत-बंद' से काम नहीं चलेगा। इस सरकार का तख्ता उलटना भी बहुत ज़रूरी है क्योंकि यह देश और देशवासियों के विकास के उल्टा ही सोचती है।
ईश्वर भारतवासियों को सद्बुद्धि और जागरूकता दे। सचेत रखे।
भारत-माता की जय।
वन्देमातरम !
Zeal
- एक अच्छी और निरंतर सप्लाई मिलेगी खाद्य और अन्य वस्तुओं की --लेकिन यह आपूर्ति हम अपने स्वदेशी संसाधनों द्वारा बखूबी कर सकते हैं।
- अपने गोदामों में सड़ते अनाज का इस्तेमाल करके भी कर सकते हैं।
- एक लाभ है क्वालिटी और variety मिलेगी (क्या अपने देश में क्वालिटी नहीं है ? यदि नहीं है तो उस दिशा में प्रयास किये जाएँ)
- देश को एक अच्छा इन्फ्रा-स्ट्रक्चर मिलेगा-( क्या इस उपलब्धि के लिए विदेशियों को घुसपैठ करने दी जाए ? यह काम करने में तो हमारा देश स्वयं ही सक्षम है । कब तक दया पर जीवित रहेंगे परजीवियों की तरह ?)
इस निवेश से संभावित नुक्सान--
- छोटे तथा घरेलू उद्योग समाप्त हो जायेंगे।
- छोटे व्यापारी उजड़ जायेंगे।
- किसान बर्बाद हो जायेंगे।
- गरीबों की आजीविका छीन जायेगी।
- वालमार्ट अपना पाँव पसारेगा तो धीरे धीरे हमारी ज़मीनें भी महंगे दामों में खरीद कर अपनी जडें मजबूत करेगा और रियल स्टेट के दाम बढेंगे।
- पूर्व में गुलामी भी इसी तरह विदेशी कंपनियों की घुसपैठ से ही मिली थी।
- हज़ारों लोग बेरोजगार हो जायेंगे।
- दूसरा कोई विकल्प न होने के कारण ये आत्महत्या करने पर मजबूर हो जायेंगे।
- अपने देशवासियों के साथ घात करके विदेश को संपन्न करना कहाँ की अकलमंदी है?
इस तरह से तो हमारा देश तरक्की नहीं करेगा बल्कि हम अपने देश की गरीब जनता, छोटे मोटे व्यापारी , उधोगपति, किसानों आदि के पेट पर लात मारेंगे।
श्री सिंह तो देशवासियों के दर्द को समझ नहीं रहे , लेकिन हम और आप इस निवेश के खिलाफ एकजुट होकर इसका बहिष्कार कर सकते हैं। हमने स्वदेशी के इस्तेमाल द्वारा आजादी पायी थी और विदेशी सामानों का बहिष्कार किया था। आज एक बार फिर उसी जागरूकता की ज़रुरत है वरना देश पुनः इन विदेशियों के चंगुल में चला जाएगा।
बेरोजगारी से पीड़ित हो हज़ारों लोग भूखे मरेंगे , रोयेंगे और कलपेंगे, आत्महत्या करेंगे, वहीँ हमारी आने वाली पीढियां हो सकता है गुलाम भारत में ही जन्म लें। अतः सचेत रहने की अति-आवश्यकता है। ये विदेशी कम्पनियाँ हम पर राज करेंगी और हमें कई दशक पीछे धकेल देंगीं ।
कब्र में पाँव लटकाए लोग तो चल बसेंगे, लेकिन ज्यादा ज़रुरत है नौजवानों के खून में उबाल आने की और सचेत रहने की। बहिष्कार करो अन्यथा आप और आपकी आने वाली संतानें की भुक्तभोगी होंगी इस विदेश निवेश की। ये ईसाईयों की पार्टी (सरकार) , जो भगवा को आतंकवाद करार देती है और आतंकियों को शाही दामाद की तरह रखती है, वह अब विदेशियों को घुसपैठ करने की अनुमति देकर हमारी आधी जनता के मुंह का निवाला छीन रही है।
इन वाल मार्ट्स द्वारा कनाडा आदि कई देश अपने लोकल निवेशकों और व्यापारियों को पूरी तरह खो चुके हैं । यही हश्र भारत का भी होगा। शुरू-शुरू में ये कम्पनियाँ लुभावेंगी , लेकिन एक बार जडें मज़बूत होने के बाद ये हमारे किसानों और उत्पादकों को दूध से मक्खी की तरह निकाल फेकेंगी . बाद में ये हमारे किसानों द्वारा उत्पादित फसलों की क्वालिटी पर ऊँगली उठा, उन्हें भी नकार देंगीं। हम मुंह ताकते रह जायेंगे।
यह निवेश भारत देश की आने वाली आबादी के लिए गुलामी और गरीब आबादी के लिए मौत का फरमान होगी। श्री सिंह को इटली से आदेश मिलते ही हैं, चीन भी बताता है की कौन सी कान्फरेन्स अटेंड करनी है दलाई लामा की और अब अमेरिका बताएगा की देश कैसे चलाया जाए और देश का विकास कैसे हो।
जब देश आतंकवाद और भ्रष्टाचार जैसे मुद्दों से जूझता है तो श्री सिंह भोली-गाय बन जाते हैं लेकिन क्या चक्कर है जब विदेशी निवेश की बात होती है तो वे 'शेर' बन जाते हैं ? स्वयं तो कुछ वर्षो के ही मेहमान होंगें लेकिन आने वाली पीढ़ियों को गुलाम कर जायेंगे ये।
अपने देश को सुरक्षित रखने के लिए सचेत रहना होगा। ये विदेशी कम्पनियाँ हमारी सगी कभी नहीं हो सकतीं। इनका स्वार्थ इन्हें भारत की तरफ गिद्ध-दृष्टि करवाता है। और श्री सिंह की असंवेदनशीलता ही छोटे व्यापारियों और कुटीर उद्योगपतियों के पेट पर लात मारती है और बेरोजगारी को बढाती है। जब तक बेरोजगार होने वालों की पुनर्स्थापना का कोई बेहतर विकल्प न ढूंढ लिया जाए , तब तक ऐसे निवेश के बारे में सोचने का कोई अधिकार नहीं है सरकार को।
अपने देशवासियों की आहों पर तरक्की नहीं चाहिए हमें। हमारे देश के पास संसाधन भी है, विद्वता भी। हम अपने प्रयासों से और स्वदेशी के उपयोग से अपने देश का विकास करने में सक्षम हैं और इस निवेश का पूर्णतया बहिष्कार करते हैं।
केवल 'भारत-बंद' से काम नहीं चलेगा। इस सरकार का तख्ता उलटना भी बहुत ज़रूरी है क्योंकि यह देश और देशवासियों के विकास के उल्टा ही सोचती है।
ईश्वर भारतवासियों को सद्बुद्धि और जागरूकता दे। सचेत रखे।
भारत-माता की जय।
वन्देमातरम !
Zeal
52 comments:
दिव्या जी आपने अच्छी जानकारी भरी पोस्ट अपने लिखी है भारत सरकार भारत बिरोधी होती जा रही है अच्छी बात यह है की कांग्रेस में भी इसके बिरोध में आवाज़ उठाना शुरू हो gaya है, सुल्तानपुर के संसद डॉ संजय सिंह ने भी बिरोध में आवाज़ बुलंद की है.
bharat ko sachet karne wali post ke liye bahut-bahut dhanyabad.
..प्रश्न और उनके उत्तर देती हुई यह सार्थक पोस्ट आभार
दिव्या दीदी
बहुत सही समय पर बहुत सही विषय उठाया है आपने| इस समय इस विषय पर जागरूक करते एक आलेख की बहुत ज़रूरत थी और आपसे बेहतर यह कार्य और कौन कर सकता भला?
सबसे मुख्य बात तो यही है कि अभी तक लोगों को इस विषय पर कोई ज्ञान ही नहीं| अभी तक लोग यही समझ रहे हैं कि ये विदेशी कम्पनियां आएंगी तो यहाँ के लोगों को रोज़गार मिलेगा| वे यह नहीं सोच पा रहे कि ये कम्पनियां हमारे लोगों का व्यवसाय छीन उन्हें मालिक से नौकर बना रही हैं| कोई भी कम्पनी यहाँ खैरात बांटने नहीं आएगी| अंत में तो कुछ न कुछ लूट कर ही ले जाएगी|
FDI रिटेल से भारत को कोई लाभ नहीं मिलने वाला| आज तो ये कम्पनियां किसान से दो चार रुपये ज्यादा के मूल्य पर माल खरीद लेंगी किन्तु जब सभी बिचौलिए समाप्त हो जाएंगे तब अपनी मोनोपोली चलाएंगी| बिचौलियों का रोज़गार तो जाएगा ही एक समय बाद किसान भी इनकी मनमानी का शिकार हो जाएगा|
हमारे देश की सभी मंडियां व बाज़ार ख़त्म होने की कगार पर पहुँच जाएंगे| जो कल तक अपने अपने व्यवसाय के मालिक थे आज इनकी गुलामी के लिए मजबूर होंगे|
लोगों को सोचना होगा कि वे अपने बच्चों को कैसा भविष्य देना चाहते हैं? कहीं ऐसा तो नहीं कि वालमार्ट के चक्कर में अपनी झूठी शान दिखाते दिखाते वे अपनी आने वाली पीढी को फिर से गुलामी की जंजीरों में कैद कर रहे हैं? असल बात तो ये है कि मनमोहन सिंह खुद कब्र में पाँव लटकाए बैठा है और देश को फिर से गुलाम बनाने की साजिश जाते जाते रच जाएगा|
सबसे जरुरी यह है कि इन विदेशी कम्पनियों का पूर्णत: बहिष्कार किया जाना चाहिए| लोगों को समझना होगा कि इन मार्ट्स में घुसना स्टेटस सिम्बल नहीं बल्कि मातृभूमि से घात करने का अपराध बोध होगा| उनलोगों की बुद्धि पर हँसी आती है जो ये कहते हैं कि इन विदेशी कम्पनियों से देश में विदेशी पूँजी आएगी|
क्या ये कम्पनियां खैरात में डॉलर बाटेंगी? और विदेशी पूँजी को आखिर रामबाण क्यों समझ रखा है? इतनी बुद्धि तो होनी ही चाहिए कि जिस शरीर में खून बनना बंद हो जाए तो बोतल से खून चढ़ा-चढ़ा कर उसे कब तक जिंदा रखा जा सकता है? ज़रूरत खून चढाने की नहीं, खून बनाने की है| विदेशी पूँजी के चक्कर में अपनी पूँजी को मटिया मेट करने वाले मनमौन सिंह की अर्थशास्त्री डिग्री पर ही मुझे अब शंका होने लगी है|
अत: देशवासियों को चाहिए कि अभी से चेत जाएं और वही गलती न करें जो अज्ञानतावश हम पहले कर चुके हैं जिसके परिणामस्वरूप हमे दो सौ साल कि गुलामी अंग्रेजों से मिली| खुद तो अपना जीवन जी लिए अब अपने बच्चों के लिए क्या छोड़कर जाना चाहते हैं? अत: इस गुलाम मानसिकता से बाहर आएं व पूर्णत: बहिष्कार पर उतर आएं| एक भी व्यक्ति किसी भी कारण से वाल मार्ट्स में जाए तो उसे ही अछूत बना दें|
ये सरकार तो पूरी तरह स्वयं को देशद्रोही सिद्ध कर चुकी है| कभी साम्प्रदायिक एवं लक्षित हिंसा विधेयक तो कभी ये FDI रिटेल| इस तरह तो देश में आम आदमी का जीना दूभर हो जाएगा| क्या केवल कुर्सी से उतार फेंकना ही इनके लिए उपयुक्त सज़ा है? मुझे तो यही लगता है कि देशद्रोहियों के लिए कठोरतम दंड होना चाहिए| ये लोग कुर्सी पर हो या बाहर दोनों ही परिस्थितियों में लूटेंगे ही| इनका जीवित रहना ही देश के लिए खतरा है|
दिव्या दीदी, इस पोस्ट की बहुत ज़रूरत थी| सही समय पर सही विषय चुनकर आपने भारतवासियों पर उपकार ही किया है| उन्हें जगाए रखने के लिए आपकी लेखनी का चलते रहना बहुत ज़रूरी है|
बहुत बहुत धन्यवाद...
हालात से लगता है कि फैसला तो हो चुका है. कांग्रेस शासित राज्यों में यह लागू हो जाएगा. बीजेपी और कुछ अन्य पार्टियों द्वारा शासित राज्य इसे अस्वीकार कर रहे हैं. खुदरा व्यापारियों और विचौलियों की एक बहुत बड़ी जमात भारत में है. उनकी शक्ति का परीक्षण अब होगा.
भारत में खुदारा व्यापार का कारोबार साढ़े चार सौ अरब डॉलर का है जिसका अगले तीन-चार सालों में आठ सौ अरब डॉलर तक पहुंच जाने की आशा है। देश के करीब साढ़े पांच करोड़ कारोबारी इस सेक्टर में लगे हैं। अप्रत्यक्ष रूप से तीस करोड़ लोगों का इस सेक्टर से दाना-पानी चलता है। इसका नब्बे फ़ीसदी भाग असंगठित क्षेत्र में आता है। कहा जा रहा है कि जब विदेशी निवेश होगा तो बाज़ार में प्रतिस्पर्धा बढ़ेगी। ज़रूरी चीज़ों का मूल्य कम हो जाएगा। भारत में बहुराष्ट्रीय कंपनियों को एक बड़ा बाज़ार दिख रहा है। उनके सामने क्या हमारे देश के खुदरा व्यापारी टिक पाएंगे?
FDI .का पूरी तरह समर्थन हम करते हैं ,एक तरफ विदेशी निवेश की हम प्रतीक्षा में हैं जिसकी हमें शख्त जरुरत है/ प्रगतिशील देश को विकाश के लिएपूंजी की आवश्यकता होती है ,जो मेरे पास नहीं है / पूंजीगत वर्ग / शसक्त व्यवसायिक संगठन जो व्यवसाय का नाम दे ,पारंपरिक रूप से किसानों/ मजदूरों का उत्पादन / श्रम का शोषण सदियों से कर रहा है ,दो रुपये की मुली बाजार में दस रुपये ,१५ रुपये का सेब १५० / बाजार में बेच रहा है ,ये सब क्या है ........./कब तक ? जैसे उदारीकरण ,वैश्विकरण से एक व्यवसाय विशेष को आज से १५-२० साल पहले उग्र परहेज था ,आज उसीको सबसे ज्यादा फायदा है ,हम गुलाम नहीं हुए ,और मुखर हुए हैं ,विरोध के लिए शिर्फ़ विरोध करना उचित नहीं ,सार्वभौम रूप से न्याय वांछित है / अब तो हम इस पृथ्वी पर ही नहीं इसके इतर जाने की वकालत कर रहे हैं ,किसकी गुलामी ? कौन सी गुलामी ,हमारा श्रम ,हमारा उत्पादन ,हमारी मेधा का उपयोग हम करेंगें इतना साहस तो है हमारे पास / आज का परिदृश्य यह है सगठित व्यवसायी वर्ग गुणात्मक ब्रिधि की तरफ वहीँ कृषिक्षेत्र ,श्रम अपना अधिकतम देने के वाद भी आत्म हत्या और रसातल की तरफ ..../ आज भी हम CTBT . डंकल .....के वावजूद मजबूत स्थिति में हैं ,बस दर है तो उन लोगों से जिसने अपना हित पहले ,देश बाद में रखा है ज्ञानार्जन और विकास की कोई परिधि नहीं होती sarvbhaumik siddhant ही swikary hote हैं
bahut dukhad ho raha hai gandi rajniti ke karan.
सरकार का यह एक दुर्भाग्यपूर्ण निर्णय होगा.
रिटेल में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश से भारतीय व्यापारियों में असुरक्षा तो निश्चित तौर पर बढेगी। पर देखना यह है कि इसे लागू कैसे किया जायेगा। जब रिलायंस जैसी भारतीय कंपनियों ने 'रिलायंस फ्रेश' के नाम से अपने फल और सब्जी के स्टोर खोलने शुरू किये थे, तो कई राज्यों विशेषकर उत्तर प्रदेश, बिहार इत्यादि में इनका पुरजोर विरोध हुआ था। लेकिन एक चीज गौर करने की यह भी है कि यह विरोध किसानों द्वारा नहीं बल्कि बिचौलियों द्वारा किया गया था। सरकार की उदारीकरण की नीति के चलते विदेशी निवेश का दखल तो कई क्षेत्रों में बढ़ना ही है, लेकिन सरकार को यह भी देखना चाहिये कि भारतीय व्यापारियों के हितों की न केवल रक्षा की जाये, बल्कि विदेशों में पैर जमाने में लगी भारतीय कंपनियों और व्यापारियों को आवश्यक मदद भी मुहैया कराई जाये।
मुझ जैसे भारतीय पाठकों के लिए...आँख-कान खोलती ज्ञान देती ,स्पष्ट भरपूर आवश्यक जानकारी ..जो बहुत जरूरी है |
बहुत-बहुत आभार |
खुश और स्वस्थ रहें !
Bahut hi jwalnsheel mudda hai FDI na jane kya hone wala hai desh ka...
well dont know about it , but on the title i have something ot say DOOSRI baar.. we already are Ghulam to the leaders .. this will be 3rd or 4th time ..
Bikram's
कोई मुझे बताए कि क्या FDI से भारतीय किसानों का निश्चित रूप से हित होगा ? क्या किसान आत्महत्या करना बंद कर देंगे ? यदि ऐसा संभव नहीं है तो मैं FDI का पुरजोर विरोध करता हूं।
भारतीय किसान पिछले 400 वर्षों से ठगे जा रहे हैं। स्वतंत्रता के पहले परायों से और स्वतंत्रता के बाद अपनों के द्वारा।
भारतीय अर्थव्यवस्था के मूल में कृषि उपज है। व्यापारियों के व्यापार का आधार प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रूप से कृषि उपज है। अपना स्वार्थ साधने के लिए व्यापारी किसानों की ही जेब काटेंगे, चाहे वो व्यापारी देशी हो या विदेशी।
सरकार एक श्वेत पत्र जारी करे जिसमें यह शपथपूर्वक घोषित किया गया हो कि FDI से किसानों का सर्वाधिक हित होगा। यदि सरकार ऐसा नहीं कर सकती तो यह सिद्ध है कि FDI एक धोखा है, महाधोखा !
सटीक और सार्थक आलेख ..
सोच समझ कर अनुमति दी जाये, जबतक पूर्णतया आवश्यक न हो जाये।
Bada jwalant mudda uthaya hai aapne. Mujhe bhee lagta hai ki apna desh har disha me swadheen/swawlambee ho sakta hai.
fdi से भारत के किसानो का थोडा भला हो सकता है, पर छोटे दुकानदारो के भूखे मरने की नौबत आ जाएगी.
इसके कुछ फायदे जरुर हैं.. पर इतने भी नहीं हैं की इसके नुकसान को नज़र अंदाज किया जा सके.
यूँ कहें की इससे नुकसान ही नुकसान है. सरकार में इतने सरे बुद्धि जीवी हैं पर शायद इस तरह के फैसले लेते वक़्त वे अपने अक्ल पे पत्थर डाल लेते हैं
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मेरे ब्लॉग पे आइयेगा !
बाहर के लोग तो अपना ही और अपने देश का स्वार्थ साधेंगे ,और हमारे सारे लोग अपने व्यक्तिगत लाभ के लिये देश का हित दाँव पर लगा देंगे .वैसे ही जैसे थोड़ी कीमत कम होने कारण चीन से आया सामान खरीदा जाता है चाहे उसकी क्वालिटी कैसी भी हो ,गारंटी भी न हो तो भी .और वे लोग अमेरिका आदि देशों को बढ़िया माल और भारत के लिये ऐसे रंग जो नुक्सान करें और माल गुणवत्ता में बहुत नीचा .कीमत थोड़ी कम,(स्वास्थ्य के लिये) खतरे बढ़ कर !
कुछ फायदे तो कुछ नुकसान।
बाजार में प्रतिस्पर्धा होने से उपभोक्ताओं का ही फायदा होगा.....
वैसे भी वालमार्ट का प्रवेश तो हो ही चुका है... माल्स में इजी डे जैसी दूकानें इसका हिस्सा हैं।
क्या वालमार्ट खुलने पर लोगों के सर पर बन्दूक रख दी जाएगी की वहीं से खरीदो, छोटे दुकानदार से नहीं?
यदि लोग वहां खरीदने नहीं जायेंगे तो कितने दिन वालमार्ट चलेगा ?
लेकिन हम हिंदुस्तान के लोग सस्ती चीज़ की ओर भागते हैं ?
क्या अभी हम चीन के बने सस्ते मगर घटिया माल को हिंदुस्तान के अछे माल के ऊपर तरजीह नहीं देते ?
सारी दिककत इस मानसिकता की है ?
क्या गांधीजी के स्वदेशी के नारे से, विदेशी वस्तुओं के दहन से, और खुद चरखा चलाने से अंग्रेजों के
माल की खपत हिंदुस्तान में कम नहीं हुई थी ? तब तो हम गुलाम भी थे, अंग्रेजों ने जबरदस्ती भी की होगी ?
अब कौन सी जबरदस्ती है, वालमार्ट से जाकर खरीदने की ?
खुलने दो इन दुकानों को, मत जाना कोई खरीदने, अपने आप ६ महीने में भागते नजर आयेंगे |
पर सवाल ये है, की इस पर अमल करेगा कौन?
विषय इतना सरल तो नहीं जितना हम कह पा रहे हैं। मेरे खयाल से किसानों को बिचौलियों के चंगुल से छुड़ाने व उन्हे अपने कृषि-उत्पादों की सही कीमत मिलने में मददगार सिद्ध होगी। दुर्भाग्य से हमारे देश में प्रायः आलोचना के लिये आलोचना होती है।
@उदय वीर सिंह जी
सर्वप्रथम तो कहना चाहूँगा कि मैं अपनी पिछली टिपण्णी में भी लिख चूका हूँ कि जिस शरीर में खून बनना बंद हो जाए तो उसे बोतल का खून चढ़ा कर कब तक जिंदा रखा जा सकता है? आवश्यकता विदेशी पूँजी की नहीं अपितु पूंजी निर्माण की है| हमे अपने देश में अपनी पूंजी के निर्माण के लिए अपने ही व्यवसाय को आगे लाना होगा न कि विदेशी कम्पनियों को|
फिर यहाँ विदेशी पूंजी की आवश्यकता ही क्या है? क्या आपको ये लगता है कि इन कम्पनियों के आने से हमे धन मिलेगा? वे यहाँ खैरात बांटने तो नहीं आ रहे| अंत में कुछ न कुछ कमा कर (लूट कर) ही ले जाएंगे| फिर हमे क्या मिला?
रोज़गार ?
रोज़गार की आवश्यकता क्या है? इन कम्पनियों के आने से हमारे व्यापारियों का व्यवसाय तो बंद हो जाएगा और मजबूरन उन्हें इन्ही कम्पनियों की नौकरी करनी पड़ेगी| ऐसे रोज़गार का क्या लाभ जो मालिक को नौकर बना दे?
किसानों और मजदूरों को कोई नहीं ठग रहा| बी हमारा माल सरकारी गोदामों में सड़ता है या काला बाजारी द्वारा जामा किया आता है तब वस्तुओं के दाम बढ़ते हैं| इसमें छोटे छोटे व्यापारियों का क्या दोष? उन्हें क्यों बर्बाद कर रहे हैं?
उदारीकरण, वैश्वीकरण व भूमंडलीकरण ही इस देश को कमज़ोर बना रहा है| याद नहीं इसी तर्ज़ पर ईस्ट इण्डिया कंपनी ने भी भारत में अपने पाँव जमाए थे और फिर क्या हुआ था?
वाल मार्ट जैसी बड़ी कम्पनियां जिनके पास इतना धन है कि कई देशों को खरीद लें, वही यदि आलू टमाटर बेचेंगे तो हमारा गरीब वर्ग क्या करेगा? उसे मजबूरन इन्ही विदेशियों के यहाँ नौकरी करनी होगी| देख लीजिये जो कल तक मालिक था आज नौकर बन जाएगा|
आज तो किसानों को उनके उत्पाद का अच्छा मूल्य मिल जाएगा किन्तु जब देश के बाज़ार व मंडियां बंद हो जाएंगी तब इन विदेशियों की मोनोपोली में क्या किसानों के अधिकार सुरक्षित रह पाएंगे?
यह एक बहुत ही गंभीर मुद्दा है| अत: यहाँ बहुत अधिक सोच समझ कर अपनी राय रखिये| कहीं ऐसा न हो कि हमारा कथित आधुनिकपन हमे कंगाल होने की राह पर ले जाए|
@देवेन्द्र जी
किसानों को बिचौलियों से नहीं अपितु काला बाजारी करने वालों व सरकारी गोदाम में माल सड़ाने वालों से बचाने की ज़रूरत है| बिचौलिए कौन हैं? वही जो सब्जी मंडी में अपना ठेला लगाते हैं| क्या वे किसानों को हानि पहुंचा सकते हैं?
एक उदाहरण लीजिये-
मान लीजिये कि अब तक कोई किसान कोई वस्तु १५ रुपये में किसी बिचौलिए को बेचता था| निश्चित रूप से वाल मार्ट इसकी कीमत १७ रुपये देगा| किन्तु एक वर्ष के भीतर ही जब बाज़ार से सारे बिचौलिए गायब हो जाएंगे तब इसकी मोनोपोली चलेगी| उस समय ये विदेशी उसी किसान को १५ रुपये से घटाकर शायद १३ रुपये पर भी ले आएँगे| ऐसे समय में किसान के पास और कोई चारा नहीं होगा|
बिचौलिए तो अपने ही देशवासी हैं| इन्हें ही यदि बाहर कर दिया तो ये कहाँ जाएंगे?
हमारे देश में आलोचना के लिए आलोचना होती है? कृपया इसका अर्थ स्पष्ट करें|
@अतुल श्रीवास्तव जी
भाई मॉल्स में ईजी डे जैसी दुकानों के मालिक वही हैं जो दूकान चला रहे हैं| वे किसी के यहाँ नौकरी नहीं कर रहे| वे उसी प्रकार किराया भरकर अपना धंधा करते हैं जैसे कोई अन्य व्यापारी सड़क किनारे अपनी दूकान चलाता है| अत: यह परिस्थिति इतनी गंभीर नहीं है| जितनी कि वाल मार्ट की है| हाँ रिलायंस फ्रेश अथवा बिग बाज़ार आदि के लिए आपका कहना उचित है| क्योंकि वे भी वाल मार्ट की तर्ज़ पर ही अपना काम कर रहे हैं|
डॉ० दिव्या जी बहुत ही सुन्दर आलेख बहुत -बहुत बधाई और शुभकामनाएं |
wideshi hath me desh hai to yahee na hoga..
This way or that way, the kissan will be at a loss in the long run , as all producers of goods also apprehend ! The wisdom of FDI is all Greek to me or maybe it is premature to say anything . The issue no doubt merits thought and discussion .
This way or that way, the kissan will be at a loss in the long run , as all producers of goods also apprehend ! The wisdom of FDI is all Greek to me or maybe it is premature to say anything . The issue no doubt merits thought and discussion .
अभी से चेत जायें तो अच्छा है।
इस बारे में मैनें भी कुछ लिखने की कोशिश की थी, लेकिन आपकी तरह अपने भाव अभिव्यक्त नहीं कर पाया।
प्रणाम
विचारणीय बातें.
सार्थक पोस्ट.... चिंताननोनमुख करती प्रस्तुति...
सादर....
एक बात आज तक मेरी समझ मे नहीं आई की ,क्या हमारे देश मे कमी किस बात की है , हमारे देश मे मानसिक ,शारीरिक , आर्थिक तिनो रूप से पूर्ण है , कमी है तो सिर्फ व्यवस्था की ,यदि हमारी सरकार मजबूत हो ,और अगर ईमानदार भी हो तो देश के संसाधन , देश का पैसा ,विदेशियों के हाथ मे ना जाने दे
क्या सरकार जो ७०० करोड रूपये पार्क बनवाने मे खर्च कर सकती है वो इतनी गरीब है की २० करोड रूपये मे बनने वाला cold storage की देश मे चेन नहीं बना सकती जिस से हमारी उपज अनाज ना सादे , या इस बात का बहाना बना कर वो विदेशियों से अपने खातों मे रिश्वत ले कर ,हम सभी को फिर से आर्थिक गुलामी की तरफ धकेल रही है ,ये सिर्फ एक उधारण है
क्या २ रूपये की मूली जो २० मे बेचीं जा रही है ,इस के मूल्य के नियंत्रण के लिए वो विदेशियों को बुला रही है
फिर मेरा एक सुझाव भी है , हमे अपनी सरकार का काम सही नहीं लग रहा है ,और वो महगाई के मोर्चे पर बार बार फ़ैल हो रही है , क्यों ना हम अपनी सरकार भी विदेशियों से बनवा ले ?
samayik avam wicharaneey lekh.
सुन्दर,सार्थक विचारणीय पोस्ट.
समय रहते ही चेतना होगा.
bahut saarthak sachet karti hui post.mera to yah kahna hai ki in netaaon ko apne itihaas ki shiksha dene ki aavashyakta hai kya inko itna bhi yaad nahi ki east india company bhi kuch isi tarah desh me aai thi fir britishers ne apne desh me kya kiya?par apne deshvasi ab itne bevakoof aur kamjor nahi hain ek chota sa businessman bhi pahle apne faayde ki sochta hai kya videshi company hume fayda pahuchane ke liye india me nivesh karna chaah rahi hain?kya humari sarkar ko itna bhi samajh nahi aa raha.
गहन चिंतन ..विचारणीय बातों के साथ ..आभार
बहुत ही विचारणीय और सटीक पोस्ट...
भगवान् सद्बुद्धि दे ....इस विक्षिप्त केंद्र सरकार को !
आने दो भैया...भूरे अंग्रेजों से तो गोरे भले...जब गुलामी में इंडिया शाइन कर रहा है...बकौल सरकार...लोगों की आमदनी बढ़ गयी है...इतनी कि खाना कम पड़ गया है...इसलिए खाने पीने कि चीजों के दाम बढ़ गये हैं...तो आपको विदेशी सुविधाओं की भी आदत डाल लेनी चाहिए...मोंल कल्चर इसी की देन है...घर की तो बस मूंछें हों इंतना ही काफी है...
ना जाने कहां जाएं, हम बहते धारे हैं???????
aaderniya divya ji..aapke bicharon se main purntaya sahmat hoon..hamare purane aaur vartmaan ke shaskon me fark sirf doordarshita ka hai..aaj ham lokpal jaise muddon par dhyan lagaye hue hain..aaj ham bhrastachaar ke khilaf ekjut ho rahe hain ..aise me jaanboojhkar naye naye ulte nirnay lekar ha sabko kai khemo me baant rahi hai ye sarkar..aap eun hi likhti rahein aaur logon ko har uthal puthal ke prati jaagrook baanati rahein...sadar pranam aaur badhayee ke sath
देश तो वैसे भी गुलाम है ... थोडा और पैसा जो बच गया है देश में वो भी बाहर चला जायगा ... नेताओं को क्या फर्क पढता है ...
आपकी बेबाक टिप्पडी सचमुच मुझे प्रभावित करती है
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Shi kaha apne aise m to ye videshi ek bar fir hum sbko gulam bna lenge humare desh m jo kuch hai ek bar wo sab lut lenge
bahut achi se likhi hui hai,,,, govrnment international standard pane ke liye itna gir gayi,, shame on it
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