Friday, June 1, 2012

'चीनी' , मेरी जान ,तुम कहाँ खो गयी हो ?

ये कहानी महँगी हो रही शक्कर पर नहीं बल्कि महँगी हो रही 'मिठास' पर है। एक लड़की जिसका पति उसे प्यार से 'चीनी' बुलाता है, उसकी कहानी है ये।

चीनी एक मस्त रहने वाली बिंदास लड़की थी। साथ नौकरी करने वाला सुहास धीरे-धीरे उसे प्यार करने लगा। फिर सिलसिला शुरू हुआ ढेरों मीठी-मीठी बातों का। दोनों एक दुसरे को गुणों की खान समझते थे। प्रशंसा करते हुए थकते नहीं थे। ऐसा कोई गुण नहीं था जो उन्हें एक दुसरे में दिखाई नहीं देता था।

सुहास उससे कहता -

तुमसे बुद्धिमान कोई नहीं देखा, तुमसे ज्यादा रूपवान भी कोई नहीं है। तुम कितनी समझदार हो ,मेरी हर बात को और हर मुश्किल को समझ लेती हो।

चीनी पूछती- लेकिन बहुतेरे ऐसे भी हैं जो मुझे अहंकारी समझते हैं। फिर तुम मुझे क्यों प्यार करते हो ? सुहास कहता- "जो लोग स्वयं अहंकारी हैं वही तुम्हें अहंकारी समझते हैं।" । तुममे अहंकार नहीं है लेश मात्र भी । मैं तुम पर गर्व करता हूँ कि तुम मेरी हो, मैं तुम्हारा सम्मान करता हूँ। , तुमसे प्यार करता हूँ मैं "

समय बीतता गया। दोनों का विवाह हो गया। पति-पत्नी में प्रेम और विश्वास बढ़ता गया। प्यार भरी नोक-झोंक और उलाहनों के बीच उनके मध्य गहन संवाद और विमर्श होते। धीरे-धीरे मत-वैभिन्न का प्रकटीकरण भी होने लगा।

मत-भिन्नता से मन-भिन्नता आना स्वाभाविक है , लेकिन वे दोनों ही इस बात कि कोशिश करते कि उनके विचारों कि भिन्नता उनके निजी जीवन को प्रभावित न करे।

इस प्रयास में सुहास उसी विषय पर चीनी को बार-बार समझाता और अपनी बात से सहमत करने कि कोशिश करता। जबकि चीनी जानती थी कि कुछ विषयों पर मतैक्य संभव नहीं है अतः वो उन विषयों पर बात नहीं करना चाहती थी ताकि मन-भेद न हो और आपस कि मिठास बनी रहे।

फिर परिस्थितियां कुछ ऐसी बनीं कि सुहास हताश रहने लगा। चीनी कि दृढ़ता को अहंकार समझने लगा, वो दूर न चली जाए इस बात से डरने लगा, बहुत बार वो चीनी के आगे रो भी पड़ता था। उसे लगता था चीनी बदल गयी है, अहंकारी हो गयी है, तानाशाह हो गयी है। उसके प्यार को भी नहीं समझती है और उसके आंसुओं कि भी कद्र नहीं करती है।

पर चीनी तो सच जानती थी। वो बिलकुल भी नहीं बदली थी। वो सुहास को पहले से भी ज्यादा प्यार करने लगी थी। उसके आंसुओं से छटपटा जाती थी। वो नहीं समझ पा रही थी कि सुहास के दुःख कि असली वजह क्या है। वह सुहास की ताकत बनना चाहती थी ! उसके आंसुओं को पीने के प्रयास में स्वयं को और भी कठोर बना लेती ताकि सुहास कमज़ोर न पड़े। लेकिन जितना ही वह दृढ रहकर उसे समझाने कि कोशिश करती , सुहास उसे उतना ही संवेदनहीन समझता।

सुहास कभी बहुत गुस्सा हो जाता । अपनी चीनी पर अनेकों आरोप लगता , उसे अहंकारी, दम्भी , ढकोसलेबाज कहता। चीनी को विश्वास नहीं होता कि ये वही सुहास है जो कभी प्रशंसाओं से उसका दामन भरा रखता था।

कभी सुहास अचानक रोने लगता , माफ़ी मांगता और ढेरों प्रशंसा करता। चीनी को अब ये प्रशंसा झूठी लगने लगी थी। वो मन ही मन सहम गयी थी। सुहास को पहले जैसा चहकता हुआ देखना चाहती थी।

चीनी दृढ रहकर सुहास कि ताकत बनना चाहती थी , लेकिन अफ़सोस उसकी दृढ़ता अब उसके 'अहंकार' में शामिल की जाने लगी थी।

चीनी ने एक नया विकल्प ढूंढा। खुद को बदल लिया। स्वयं को सुहास से कमज़ोर बना डाला। अब वह बात-बात पर रोती थी , सुहास को किसी बात की ठेस न पहुंचे , इसलिए उससे माफ़ी भी मांगती थी । डर-डर कर जीने लगी थी चीनी।

चीनी के आंसुओं ने सुहास का खोया आत्म विश्वास लौटा दिया। अब उसे चीनी अहंकारी और दम्भी नहीं लगती थी। लेकिन वो निडर, निर्भीक, बिन्दास चीनी खो गयी थी। अब जो शेष थी , उसमें न उत्साह बचा था, न ही कोई उमंग। ---फिर सुहास गर्व किस पर करता ?

ढूंढता था उसे--- " चीनी, मेरी जान, तुम कहाँ खो गयी हो ?---लौट आओ...

Zeal

21 comments:

vandana gupta said...

पुरुष का दंभ कभी कभी बहुत कुछ खो देता है।

ANULATA RAJ NAIR said...

आह!!!!!!!!!!

कहीं भीतर तक चुभ गयी आपकी ये मिठास..............

संजय कुमार चौरसिया said...

bahut badiya

महेन्‍द्र वर्मा said...

पति-पत्नी के संवेदनशील रिश्ते पर आधारित यथार्थपरक और अच्छी कहानी।

अहंकार और स्वभाव की दृढ़ता में जमीन-आसमान का अंतर है।
स्वभाव में दृढ़ता एक सकारात्मक गुण है जबकि अहंकार एक दुर्गुण है।

सही है, रिश्तों की मिठास कहीं खोती जा रही है।

प्रवीण पाण्डेय said...

ऐसी स्थितियाँ बहुधा न बदलने वाला बदलाव लाती हैं...

vineet kumar singh said...

अपने एक बहुत ही हृदय स्पर्शी लेख लिखा जिसे पढ़ कुछ सिखने को मिला...पति पत्नी का रिश्ता एक नाजुक प्रेम के डोर से बंधा होता है...इस डोर को बचाए रखने के लिए अपने दंभ और अहम् को दूर रख कर आपसी समझ को बढाया जाता है...पर आज के इस भौतिक और तेज भागती दुनिया में आडम्बर इतने हो गए हैं की सबसे आगे रहने की होड़ में लोग अपने और अपनों को भूल जाते हैं...यही गलती उनके रिश्ते को डूबा देती है...समर्पण खोते जा रहे हैं आज के रिश्ते...और सबसे बड़ी बात है की भरोषा खोते जा रहे हैं आज के रिश्ते...और जब ये दोनों चीजे ही नहीं रहेंगी तो पति-पत्नी का क्या कोई रिश्ता जिन्दा नहीं रह सकता है.

Rajesh Kumari said...

वही... मेल... इगो....अगर पत्नी किसी बात पर सही भी है और वो अपनी सही बात पर अड़ रही है तो वो पुरुष पत्नी को जिद्दी या घमंडी समझता है इस कहानी में मुख्य कारण वही है

ashish said...

just amazing

धीरेन्द्र सिंह भदौरिया said...

पति पत्नी का आपसी तालमेल सही न होने पर,ही ऐसी कहानी जन्म लेती है,,,,जो बाद में रिश्तों में खटास पैदा करती है,,,,,,,

RECENT POST ,,,, काव्यान्जलि ,,,, अकेलापन ,,,,

virendra sharma said...

बढ़िया सहज सरल सन्देश दे जाती है यह कहानी ,परस्पर एक दूसरे की सीमाओं में जीना सीखो .संभावनाओं में नहीं .'मैं ही सही हूँ 'शैली एक के व्यक्तित्व को ले डूबती है ... .कृपया यहाँ भी पधारें -


बृहस्पतिवार, 31 मई 2012
शगस डिजीज (Chagas Disease)आखिर है क्या ?
शगस डिजीज (Chagas Disease)आखिर है क्या ?

माहिरों ने इस अल्पज्ञात संक्रामक बीमारी को इस छुतहा रोग को जो एक व्यक्ति से दूसरे तक पहुँच सकता है न्यू एच आई वी एड्स ऑफ़ अमेरिका कह दिया है .
http://veerubhai1947.blogspot.in/

गत साठ सालों में छ: इंच बढ़ गया है महिलाओं का कटि प्रदेश (waistline),कमर का घेरा
साधन भी प्रस्तुत कर रहा है बाज़ार जीरो साइज़ हो जाने के .

http://kabirakhadabazarmein.blogspot.in/

विरेन्द्र सिंह शेखावत said...

समर्पण खोते जा रहे हैं आज के रिश्ते
एक समर्पित है तो दूसरा हावी है

Maheshwari kaneri said...

ये तो पुरुषो का दंभ है जो स्त्रियो को बदलने को मजबूर करता है...

prritiy----sneh said...

bahut achha likha hai

shbuhkamnayen

surenderpal vaidya said...

जीवन की वास्तविकता और अहं की संतुष्टी मेँ विरोधाभास के कारण इस प्रकार की स्थिति निर्माण होती है ।
.....बहुत अच्छी रचना ।

प्रतुल वशिष्ठ said...

संबंधों पर एक भावुक करने वाली कथा...पढ़कर अच्छा लगा.

क्योंकि यह सच है.... 'त्रासदी में भी सुख है'... इसलिये पाठक ऎसी रचनाओं से दूरी नहीं बनाता.

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