एक लम्बे अरसे से एग्रीगेटर्स पर कुछ विशिष्ट ब्लॉगर्स की पोस्टों पर ही लाईक का चटका दीखता था, जबकि उससे बेहतर पोस्टें सूनी और बंजर पड़ी दिखती थीं। हमने सोचा , क्यूँ न मैं भी कुछ उम्दा पोस्टों पर लाईक कर दूं। लेकिन यह क्या ... हम तो लाईक करने के लिए entitled ही नहीं पाये गए। क्या कर सकते थे , मन मारकर रह गए। आखिर जिसकी लाठी , उसी की तो भैंस होगी ना ।
जय हिंद !
8 comments:
jiski bhains uski lathi.
Nice .
जिसकी लाठी,उसी की तो भैंस,,,,आपने सही कहा,,,
MY RESENT POST,,,,,काव्यान्जलि ...: स्वागत गीत,,,,,
सही है ऐसी ही अनुभव हमारा भी है । हमारे ब्लॉग पर कमेंट देक कर हम उनके ब्लॉग पर गये पर हम वहां अवांछ्त पाये गये ।
एग्रीगेटर्स के बारे में ज्यदा कुछ तो नहीं पता मुझे पर कुछ लोगों के ऐसा करने से सही लोगों की महत्ता कम नहीं हो जाती है...बहुत लोग उनसे सीखते चलते हैं...और बहुत से लोग अपने जीवन में उन चीजो को करने की कोशिस करते हैं...अतः मेरे हिसाब से हमें ऐसे बैटन को पीछे छोड़ सकारात्मक रूप से आगे बढ़ते रहना चाहिए|
हर बात को सबके सामने रखना और प्रकाश में लाना भी सकारात्मकता ही है विनीत जी।
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मजे की बात तो ये है की मेरी इस पोस्ट के प्रकाशन के तुरंत बाद ही , परम्परागत लाईक्स से हटकर , अन्य बहुत सी पोस्टों पर भी Like के चटके देखने को मिले...Smiles...वन्देमातरम !
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जिसकी लाठी उसकी भैंस.
@ ... जिसके हाथ में लाठी होती है वही भैंसों को आसानी से हाँक पाता है और हाँकने वाले ही कुशल पशुपालक (गडरिये) माने जाते हैं.
सारथी अपने हाथों से पकड़ी वल्गा को कभी रथियों को नहीं थमाता और न ही ड्राइवर अपने हाथों की स्टीरिंग व्हील को सवारियों को सौंपता है.
सभी अपने-अपने अनुसार अन्य आगुन्तकों पर प्रतिबंध लगाते हैं, यथा
— कोई अपनी पोस्ट पर चुनिन्दा पसंदीदा टिप्पणियाँ ही प्रकाशित करता है
— तो कोई कमेन्ट बॉक्स का ऑप्शन ही हटा देता है.
पसंद करना, नापसंद करना, सराहना करना जैसे भाव ... लगे प्रतिबंधों के कारण ही ... पाठक के मन में रह जाते हैं. बस ऎसी स्थिति में तब केवल 'उपेक्षा करना' ही विकल्प बचता है.
बड़े-बड़े ब्लोगर्स को यह प्रायः कहते सुना होगा.... "मेरा ब्लॉग है, व्यवस्था मेरी है, मैं जिसे चाहूँ छापूँ, जिसे चाहूँ न छापूँ."
परम्परागत लाईक्स से हटकर , अन्य बहुत सी पोस्टों पर भी Like के चटके देखने को मिले
@ मेहनत रंग लायी. :)
इसलिये कहते हैं कि जो बात अखरे उस पर चुप्पी नहीं लगाओ, तो शायद अखरने वाली बात समाप्त हो!
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