विश्वनाथन आनंद के विश्व चैम्पियन बनने पर उनकी पत्नी का एक इंटरव्यू पढ़ा। उनका कहना है की --"उन्हें अच्छी तरह पता है विश्व चम्पियाँशिप के दौरान उनके पति के मानसिक तनाव की। वे भली भाँती जानती हैं की उन्हें कब कितना बोलना है और कब चुप रह जाना है , आदि..आदि..."
शायद हर पत्नी अपने पति का मन समझती है, लेकिन क्या पति भी अपनी पत्नी का मन पढ़ सकते हैं ? क्या वे जानते हैं की वह कब तनाव में और उसका कारण क्या है ? क्या वे भी जानते की उनकी पत्नी भी कुछ सपने देखती है और उनके साकार होने के लिए प्रतीक्षारत है। क्या वे भी अपनी पत्नी की महत्वाकाषाओं को समझते हैं? क्या अपनी पत्नी की मुस्कुराहटों के पीछे झिलमिलाते आँसू देखते हैं ?
क्या उन्हें ये पता होता है की शादी के कुछ वर्षों बाद ही उसकी पत्नी ने अपने सपनों को दफ़न कर दिया था और हर वर्ष अकेले ही घर के किसी शांत कोने में उन सपनों की बरसी मनाती है।
Zeal
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शायद हर पत्नी अपने पति का मन समझती है, लेकिन क्या पति भी अपनी पत्नी का मन पढ़ सकते हैं ? क्या वे जानते हैं की वह कब तनाव में और उसका कारण क्या है ? क्या वे भी जानते की उनकी पत्नी भी कुछ सपने देखती है और उनके साकार होने के लिए प्रतीक्षारत है। क्या वे भी अपनी पत्नी की महत्वाकाषाओं को समझते हैं? क्या अपनी पत्नी की मुस्कुराहटों के पीछे झिलमिलाते आँसू देखते हैं ?
क्या उन्हें ये पता होता है की शादी के कुछ वर्षों बाद ही उसकी पत्नी ने अपने सपनों को दफ़न कर दिया था और हर वर्ष अकेले ही घर के किसी शांत कोने में उन सपनों की बरसी मनाती है।
Zeal
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17 comments:
सच कहा.................
समझदारी का...कुर्बानियों का.....सामंजस्य बैठाने का.....
सब ठेका औरतों ने ही ले रखा है....
सपनों के लिए न समय है न स्पेस.........
बस पति पत्नि में यही तो फर्क है..सुन्दर लेख
पतियों को पत्नी पर ध्यान देने की फ़ुर्सत कहां है ?
त्याग प्रेम बलिदान की, नारी सच प्रतिमूर्ति ।
दफनाती अपने सपन, करती पति की पूर्ति ।
करती पति की पूर्ति, साथ ही पुत्र-पुत्रियाँ ।
आश्रित कुल परिवार, चला परिवार स्त्रियाँ ।
बहुत बड़ा दायित्व, मगर अधिकार घटे हैं ।
छीने जो अधिकार, पुरुष वे बड़े लटे हैं ।।
मेरा मानना है जरूर समझा होगा ...
दोनों कों देखने पे नहीं लगता की उनकी पत्नी का महत्त्व वो नहीं समझते या उनकी भावनाओं कों नहीं समझते ...
एक समय ऐसा जरूर आएगा जब स्थिति उलट जाएगी और ये जल्दी होगा इसी सदी में होगा . पति को पत्नियों को समझना ही होगा वास्तविक अर्थों में
आखिर पत्नी के सपने होते कैसे हैं? समझ नहीं पाता ....
अकेले होने पर हमारे लक्ष्य अलग होते हैं, उपलब्धियों का श्रेय हमारा अपना.
दुकेले होने पर हमारे लक्ष्य साझा हो जाते हैं, उपलब्धियों का श्रेय साझा.
व्यक्तिगत महत्वाकांक्षाओं के लिये हम एक-दूसरे का सहयोग लेते हैं, धकेलने और दबाने के प्रयास अपनी क्षमताओं पर अविश्वास पैदा करते हैं.
यदि हर पत्नी अपने पति के मन को समझती तो कभी पति के द्वारा छली नहीं जाती. समाचारों में आयेदिन कोई-न-कोई मामला ऐसा सुनने को मिलता है कि वह धोखाधडी का शिकार हुई.
दूसरे, यदि मेरी पत्नी मेरे मन को जानती होती तो यह जरूर जानती कि सौन्दर्यबोध सबका एक-सा नहीं होता. कुछ उघरने में उसे ढूँढते हैं तो कुछ सँवरने में.
स्त्री नर्तन में जैसे 'लास्य' का महत्व है वैसे ही जीवन में 'कोमलतम' भावों और 'व्रीड़ा' का औचित्य बना हुआ है.
एक बहुत ही सुन्दर लेख और जैसा की हर लेख से मिलता रहता है ये लेख भी अपने अन्दर एक बहुत बड़ी सोच को प्रदर्शित कर रहा है और लोगों की आंखे खोलने वाला लेख| आपसी रिश्तों को बचाए और मजबूत रखने का एक बहुत सुन्दर रास्ता बताते हुए| पर भाई बहन के मन को नहीं पढ़ पता है, बेटा माँ के मन को नहीं पढ़ पा रहा है, पति पत्नी के मन में क्या चल रहा है नहीं पढ़ पता है...सहती रही है लड़की और महिला...पर आज परिस्थितियां कुछ उल्टी भी होती जा रही हैं...आज चीजे सामानांतर रूप से चल रही हैं...भौतिकतावादी और पाश्चात्य सभ्यता के अन्धानुशरण ने सभी को पथ्भ्रस्त कर दिया है| हम अपने प्यारे लोगों पर ही कम ध्यान देने लगे हैं| उनकी जरुरत, उनकी सोच सब हम पीछे छोड़ते चले जा रहा हैं बिना सोचे की इसका दूरगामी परिणाम क्या होगा|
ek sateek prashn patiyon se.unhen jabaab dena hoga.
वाह...
बहुत खूब।
भावों का सार्थक सुंदर संम्प्रेषण,,,,
MY RECENT POST:...काव्यान्जलि ...: यह स्वर्ण पंछी था कभी...
आपकी पोस्ट कल 21/6/2012 के चर्चा मंच पर प्रस्तुत की गई है
कृपया पधारें
चर्चा - 917 :चर्चाकार-दिलबाग विर्क
पति-पत्नि गृहस्थ रूपी रथ दो पहिये हैं,अतः सार्थकता इसी में है,एक बेलेन्स को कायम रखना.
निसंदेह,सपने सभी देखते हैं.
पति-पत्नि गृहस्थ रूपी रथ दो पहिये हैं,अतः सार्थकता इसी में है,एक बेलेन्स को कायम रखना.
निसंदेह,सपने सभी देखते हैं.
राम राम जी,
मानव(नर-नारी) स्वभाव ही ऐसा है कि वो दूसरो के भावो को समझता ही नहीं बल्कि उन्हें सम्मान भी देता है!और जब बात उसके स्वयं से जुड़े प्राणियों कि हो तो वो और भी अधिक संवेदनशील हो जाता है!मै अपवादों का जिक्र नहीं करना चाहूँगा; सभी पति मानव ही होते है और अपने पुरे परिवार की भावनाओ अच्छी तरह समझते है! मुझे ऐसा कतई नहीं लगता कि कोई भी पति अपनी किसी बहुत बड़ी मज़बूरी के बिना अपने परिवार जनों की भावनाओ की अनदेखी करता हो!
ऐसा भी हो सकता है की जिस परिवार को सभी सुविधा और सुख देने के लिए वह मानसिक और शारीरिक परिश्रम कर रहा है,उसकी वजह से ही उपजे किसी मानसिक तनाव अथवा दबाव के कारण ही वो उस परिवार के सदस्यों के मन के भाव ना अनुभव कर पाया हो......
पर मुझे ऐसा नहीं लगता कि ऐसा होना "सपनो की बरसी" हो गयी!
परस्पर आपसी समझ तो दोनों और ही होनी चाहिए!कभी एक ने अनदेखी कर भी दी तो दुसरे को यह जानने की कोशिश करनी चाहिए की ऐसा क्यों हुआ!समस्या गम्भीर हो तो मिल कर उसका हल खोजा जाना चाहिए!
कुँवर जी,
आपकी यह पोस्ट पुरुषप्रधान समाज की कमी की ओर स्पष्ट संकेत करती है.
एक अच्छा पति अपनी पत्नी को घर, फ्रिज, भोजन ,गहने सभी कुछ देता है, लेकिन शायद hi कोई हो जो अपनी patni से ये पूछता हो की उसके सपने क्या हैं और उनको साकार करने के लिए उन्हें मोटिवेट करता हो जैसे नाना पाटेकर ने 'यशवंत' फिल्म में किया। अपनी पत्नी को पढाया, आई इ एस बनाया और उसे क़ानून का रक्षक बनाया।
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