हमारी अति-दयालु राष्ट्रपति श्रीमती प्रतिभा पाटिल ने ३५ अपराधियों की मर्सी-पेटीशन स्वीकार कर उनकी मृत्युदंड की सज़ा माफ़ कर दी । ये भाग्यशाली लोग मॉस-किलिंग, किडनैपिंग और छोटी बच्चियों के साथ बलात्कार करने वाले अपराधी थे। माफ़ कर दिया गया इन्हें । क्यों ? क्योंकि पाटिल जी दयालू हैं , कोई कसाई नहीं।
वैसे जब मीडिया ने, फेसबुक ने और यत्र-तत्र , पाटिल जी के इस गैर-जिम्मेदार कृत्य की निंदा हुयी तो उन्होंने घबराकर कहा कि - "सभी याचिकाएं , गृह मंत्री पी चिदंबरम के सुझाव पर ही स्वीकार कि गयी हैं " । बस इतना कहकर हमारी राष्ट्रपति प्रतिभा जी ने पल्ला झाड लिया।
यदि राष्ट्रपति किसी निर्णय को लेने में अपनी बुद्धि का इस्तेमाल ही नहीं करते या करना नहीं चाहते या कर सकने में असमर्थ हैं , तो राष्ट्रपति पद कि आवश्यकता ही क्या है ?
शो-पीस कि तरह सजाना ही है तो गुलाब सजाईये। गुलदस्ते में राष्ट्रपति अच्छे नहीं लगते।
29 comments:
दिव्या जी पते की बात कही है ………हद होती जा रही है हमारे देश के कर्णधारों की
खरी खरी कहती रहे, खर खर यह खुर्रैट ।
दुष्ट-भेड़ियों से गले, मिलते चौबिस रैट ।
मिलते चौबिस रैट, यही दोषी है सच्चे ।
हो सामूहिक कत्ल, मरे जो बच्ची-बच्चे ।
ईश्वर करना माफ़, इन्हें यह नहीं पता है ।
बुद्धी से कंगाल, हमारी बड़ी खता है ।।
sach hai divyajee..guldaste hoolon se sajaye jaate hain aaur rastrapati pad jaisa guldasta foolon se....
kabhi guldaste phoolon se to kabhi foolon se sajaye jaate hain...rastrpati banane se pahle saare par katwaye jaate hain...dimag ko girvi rakhkar kisi lokar me...apne shabd inkee juwan se bulbaye jaate hain...accha vyangya hai bilkul mirinda wale add kee tarah..sadar
इस प्रकार के शोपीस राष्ट्रपति देश का भारी नुकसान कर रहे हैं । देश का यह सर्वोच्च स्थान केवल देश का अमृल्य समय और धन बर्बाद करने के लिए नहीँ अपितु देश सेवा के नये कीर्तिमान बनाने के लिए होता है । लेकिन .....?
दिव्या जी पिछले कुछ दिनों से राष्ट्रपति पद को लेकर जो छीछालेदर हो रही है मैं सोच रहा हूं कि क्या वाकई भारत में राष्ट्रपति का पद ऐसा हो गया है , इतना हल्का । शायद नहीं राजनीति शास्त्र का विद्यार्थी होने के जानता हूं कि नहीं इसे जानबूझ कर हल्का बनाया दिखाया जा रहा है । किसी योग्य के बैठते ही पद की ताकत और गरिमा का भान हो जाएगा । सोच रहा हूं कि एक पोस्ट लिखूं इस विषय पर जल्दी ही । आपसे पूरी तरह सहमत हूं
बिल्कुल सही कहा आपने. लेकिन शायद यही चलन है...या यहाँ ऐसा ही होता है !
निरर्थक होते जा रहे पद पर बहुत सार्थक बात ...
इस दिखावटी तीहल की ज़रुरत क्या है .याद है बचपन में दहेज़ का बुलावा आता था यानी लडकी को जो दहेज़ दिया जाता था उसे सज़ा कर लोगों को बुलाकर दिखाया जाता था .राष्ट्रपति भी दहेज़ की तरह है प्रजातंत्र में एपेंडिक्स की तरह फ़ालतू है वेस्तिजीयल ओर्गें की तरह नाकारा है .अरे भली मानसी अनुशंशा को लौटाने का अधिकार तो राष्ट्रपति के पास होता ही है .आप तो वाह वाही लूट ले गईं -मैंने सारी फरियादें निपटा दीं.
वीरुभाई ,४३,३०९ सिलार वुड ड्राइव ,कैंटन ,मिशिगन ४८ ,१८८ ,यू. एस. ए .
My personal all time favourite is Dr.APJ Abdul Kalaam
दिव्या जी ..बहुत सही कथन आप का ..कुछ दिनों से फिर नए राष्ट्रपति के चुनाव में भी यही सब दिख रहा है हम आप लाख चाहे भी तो क्या होता है कुछ सर्वे में सब से अधिक पसंद डॉ कलम को किया गया लेकिन बन रहे हैं हमारे दादा जी बहुमत हो बस आप की कौन सुनता है चाहे फांसी माफ़ करें या देश बेंच दें सब मिलकर पांच साल बाद फिर मौका आएगा कोई विकल्प नहीं फिर वाही होगा ..सार्थक लेख आप का ..आभार
भ्रमर ५
हमको उस दिन यह पढ़कर बहुत क्रोध आया की कोई किसी मासूम बच्ची का बलात्कार करने वाले को माफ़ी कैसे दे सकता है... उस माता पिता पर क्या गुजरी होगी, जिन्होंने ये सब भोग और अपनी फूल सी बेटी को कुचलने वाले अधर्मी को सजा दिलाने के लिए थाने से लेकर अदालत तक चप्पलें घिसी...
कितने संवेदनाहीन हैं हमारे देश के कर्णधार !
सभी अपने अपने रिश्तेदारों को बचाना चाहते हैं , प्रतिभा ने ऐसा किया तो क्या गलत किया ??? :)
दिव्या जी बिल्कुल सही कहा आप ने..सार्थक लेख
आपकी बात से सहमत हूँ ... बेहद अफसोसजनक है इस तरह के लोगों को माफी देना ...
दिव्या जी
आपने जो लिखा है वह निंस्सदेह काबिल-ए-तारीफ है।एक सच्चा हिन्दुस्तानी इस प्रकार की स्थितियों में परेशान हुए बिना नहीं रह सकता। फिर ये नेता!छोड़िए, इनकी कृत्यों के लिए मेरे पास ऎसे शब्द नहीं हैं जिन्हें सभ्य शब्दावली में लिया है।
इन्हें राष्ट्रपति के पद पर खींच कर लाने वाली सोनिया को सब पता था कि ये क्या करने वाली हैं. उपयोगिता की दृष्टि से वे इन्हें लाई थी और ये अपनी उपयोगिता सिद्ध करके जा रही हैं. छिपकलियों की जमात है हमारे सिर पर.
"हो सकता है आपको अकारण ख्याल न आया हो क्योंकि कविता के पहले draft में इटैलियन छिपकली का ज़िक्र था :)) फिर मैंने अपने ब्लॉग की परिशुद्धता को बनाए रखना बेहतर समझा."
प्रश्न यह है : राष्ट्रपति कौन ? उत्तर : प्रधानमंत्री का प्रशंसक / सत्ता रुद्ध दल का .
राष्ट्रपति कैसा ? उत्तर : रबर स्टंप जैसा
तो फिर : इसके बारे में सोचना ही कैसा ?
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Bhushan ji , Take that Italian lizard out from your shelf/draft and publish it...lol...
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बहुत सुन्दर प्रस्तुति..!
आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा आज के चर्चा मंच पर भी की गई है!
सूचनार्थ!
क्या करें डॉ .दिव्या यह सरकार ही रिमोटिया है .एक मौन सिंह हैं जिन्हें हमने कागभगोड़ा कहना भी मुल्तवी कर रखा है ,पक्षी भी इस पर बीट(बिष्टा )करके भाग खड़े होतें हैं .मियाँ फखरुद्दीन ने आपातकाल लगने के बाद अगले दिन अध्यादेश पे दस्तखत किए थे .. यहाँ भी पधारें -
ram ram bhai
बृहस्पतिवार, 30 अगस्त 2012
लम्पटता के मानी क्या हैं ?
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