ब्लॉगर को दो सरल समुदायों में वर्गीकृत किया गया है--एक दुखी रहने वाला, एक सदा सर्वदा मुस्कुराते रहने वाला।
अब ये आपके ऊपर है की आप खुश रहना चाहते हैं या फिर दुखित। जब इंटरनेट नहीं था तो भी दुखी थे ये लोग और जब तकनीक इतनी उन्नत हो गयी है तो भी दुखी हैं जनाब।
ब्लौगिंग तो एक वरदान की तरह है और ब्लॉगर्स हैं सबसे भाग्यशाली जो इस माध्यम से लिख, पढ़ और अभिव्यक्त कर रहे हैं। लेकिन अफ़सोस इस बात का है की कुछ ब्लॉगर्स , अन्य ब्लॉगर्स से अति दुखित रहते हैं। कभी उनके लम्बा लिखने पर उदास हो जाते हैं तो कभी उनके संक्षिप्त लिखने पर । कभी ज्यादा लिखने पर तो कभी न-लिखने पर। कभी टिप्पणियां अधिक होने पर तो कभी टिप्पणियों का विकल्प बंद होने पर। कभी मेल ज्यादा आने पर तो कभी मेल के ना-आने पर।
अब क्या किया जाए , इन्हें तो बस उदास होने का बहाना चाहिए। बारिश नहीं आई, तो भी उदास। आ गयी तो कहेंगे 'ओसारे' में क्यूँ बरसी। सर्दी आई तो बोले- "हांड कंपा रही है"। गर्मी आई तो बोले- "हवा नहीं चल रही"। आम दिया तो बोले- "गला है ज्यादा" । लीची दी तो बोले--"खट्टी है"।
इसके विपरीत ब्लॉगर्स के दुसरे समूह में मस्त रहने वाले खुशमिजाज ब्लॉगर्स आते हैं, जो हर-हाल में खुश ही रहते हैं, मस्त रहते हैं, जीते हैं और जीने देते हैं।
चाहे कोई सताए, चाहे गालियाँ दे, चाहे अपमानित करे, चाहे निंदा करे , चाहे सर चढ़ाये, चाहे टंकी चढ़ाये , वे तो बस- "मस्त राम मस्ती में , आग लगे बस्ती में" ।
नमन है ब्लॉगर्स की इस दूसरी कटागरी में आने वाले ब्लॉगर्स (लेखक/लेखिकाओं) को।
कुछ को तकलीफ है की वे लिखते ज्यादा हैं--
अरे यार, लिखे जाओ,
टाइम बचे तो पढ़े जाओ,
मन करे तो टिपिया दो ,
न करे तो आगे बढा दो।
दुखी और उदास रहने वाले ब्लॉगर्स के लिए मनभावन गीत समर्पित है---
न मुंह छुपा के जियो, न सर झुका के जियो, ग़मों का दौर भी आये तो मुस्कुरा के जियो.....
भैया के लाल जियें , हम तो सदा प्रसन्न रहने वाले ब्लॉगर हैं। आप किस समूह में आते हैं ?
Zeal
अब ये आपके ऊपर है की आप खुश रहना चाहते हैं या फिर दुखित। जब इंटरनेट नहीं था तो भी दुखी थे ये लोग और जब तकनीक इतनी उन्नत हो गयी है तो भी दुखी हैं जनाब।
ब्लौगिंग तो एक वरदान की तरह है और ब्लॉगर्स हैं सबसे भाग्यशाली जो इस माध्यम से लिख, पढ़ और अभिव्यक्त कर रहे हैं। लेकिन अफ़सोस इस बात का है की कुछ ब्लॉगर्स , अन्य ब्लॉगर्स से अति दुखित रहते हैं। कभी उनके लम्बा लिखने पर उदास हो जाते हैं तो कभी उनके संक्षिप्त लिखने पर । कभी ज्यादा लिखने पर तो कभी न-लिखने पर। कभी टिप्पणियां अधिक होने पर तो कभी टिप्पणियों का विकल्प बंद होने पर। कभी मेल ज्यादा आने पर तो कभी मेल के ना-आने पर।
अब क्या किया जाए , इन्हें तो बस उदास होने का बहाना चाहिए। बारिश नहीं आई, तो भी उदास। आ गयी तो कहेंगे 'ओसारे' में क्यूँ बरसी। सर्दी आई तो बोले- "हांड कंपा रही है"। गर्मी आई तो बोले- "हवा नहीं चल रही"। आम दिया तो बोले- "गला है ज्यादा" । लीची दी तो बोले--"खट्टी है"।
इसके विपरीत ब्लॉगर्स के दुसरे समूह में मस्त रहने वाले खुशमिजाज ब्लॉगर्स आते हैं, जो हर-हाल में खुश ही रहते हैं, मस्त रहते हैं, जीते हैं और जीने देते हैं।
चाहे कोई सताए, चाहे गालियाँ दे, चाहे अपमानित करे, चाहे निंदा करे , चाहे सर चढ़ाये, चाहे टंकी चढ़ाये , वे तो बस- "मस्त राम मस्ती में , आग लगे बस्ती में" ।
नमन है ब्लॉगर्स की इस दूसरी कटागरी में आने वाले ब्लॉगर्स (लेखक/लेखिकाओं) को।
कुछ को तकलीफ है की वे लिखते ज्यादा हैं--
अरे यार, लिखे जाओ,
टाइम बचे तो पढ़े जाओ,
मन करे तो टिपिया दो ,
न करे तो आगे बढा दो।
दुखी और उदास रहने वाले ब्लॉगर्स के लिए मनभावन गीत समर्पित है---
न मुंह छुपा के जियो, न सर झुका के जियो, ग़मों का दौर भी आये तो मुस्कुरा के जियो.....
भैया के लाल जियें , हम तो सदा प्रसन्न रहने वाले ब्लॉगर हैं। आप किस समूह में आते हैं ?
Zeal
26 comments:
बढ़िया -
मुश्किल में मुस्काते जाते, बड़ा हौसला उत्साही |
कंटकाकीर्ण पथ पर बढ़ते, उदाहरण बढ़िया राही ||
रविकर की अपनी शैली, बुद्धि कम उपयोग करे-
सीधा सादा जीवन जीता , ढूँढ़ रहा इक हमराही ||
बात तो सही ही है..!
किसी ने पूछा - 'सबसे सुखी कौन है?'
उत्तर मिला - 'पागल'.
उसने फिर पूछा - वो कैसे?
उत्तर मिला - वह अधिक सोचता नहीं... चिंता भी नहीं करता परिणाम की... इसलिये.
किसी ने फिर पूछा - 'सबसे दुखी कौन है?'
उत्तर मिला - प्रेमी.
उसने फिर पूछा - वो कैसे?
उत्तर मिला - 'वह प्रिय के वियोग में तो दुखी रहता ही है, अपितु संयोग में भी दुखी रहता है.'
सवाल फिर हुआ - संयोग में क्यों दुखी होता है?
उत्तर - संयोग में इसलिये कि उसे संयोग के क्षण के समाप्त होने का दुःख बना रहता है.
किसी ने पूछा - 'सुख और दुःख से कौन उबरा हुआ है?
उत्तर मिला - जिसने संवाद करना छोड़ दिया हो. जिसमें संवेदनाएँ नहीं. जो भूखे को 'अन्न देने' के बजाय 'अन्न पर उपदेश देने' में विश्वास करता हो.
भक्त की भक्ति 'दास्य भावी' भी हो सकती है और 'सख्य भावी' भी. 'पिता-पुत्र भावी' भी और 'दाम्पत्य भावी' भी.
भक्त चाहता है कि उसका उपास्य उसे केवल सुकर्मों के करते समय ही दर्शन दे. वह ऐसे समय न प्रकट हो जाये जब वह शुद्धि क्रियाओं में रत हो.
भक्त के सम्पूर्ण समय में बहुत से ऐसे क्षण भी होते हैं जब वह उपास्य की उपस्थिति नहीं चाहता. जिसे वह केवल मन-मंदिर में देखना चाहे उसे वह विसर्जन-स्थलों पर देखकर क्योंकर खुश होने लगा.
:)
स्माइली देदें तो कौनसी कटैगिरी में आते हैं दिव्या जी...:) :) :)
मेरा कमैंट कहाँ गया:(
Waah Pratul ji, Great comment !
.
@--रविकर की अपनी शैली, बुद्धि कम उपयोग करे-
सीधा सादा जीवन जीता , ढूँढ़ रहा इक हमराही ...
रविकर जी , आपकी बुद्धि के आगे तो बड़े-बड़े भी नतमस्तक हो गए हैं। हम भी बस आपके साथ कदम-ताल मिलाये चले जा रहे हैं।
.
सुनीता शानू जी, आपकी प्रथम टिप्पणी तो आपको 'प्रसन्नचित' ही ठहरा रही है, लेकिन टिप्पणी के त्वरित गति से प्रकाशित न हो पाने की अवस्था में आपकी द्वितीय टिप्पणी आपको किंचित दुखित दर्शा रही है। हा हा हा....:) :) :)
क्या बढ़िया विश्लेषण !
आपकी पोस्ट पढी ,मन को भाई ,हमने चर्चाई , आकर देख न सकें आप , हाय इत्ते तो नहीं है हरज़ाई , इसी टीप को क्लिकिये और पहुंचिए आज के बुलेटिन पन्ने पर
एक Table बनाकर अपने प्रशंसकों और दुश्मनों को भी Categorize कर लेती दिव्या जी आप तो ..... !
आप सदा ही प्रसन्न बनी रहें..
.
सुबीर रावत जी ,
मुझे तो सारा ब्लौगजगत ही अपना प्रशंसक लगता है। दुश्मन तो एक भी नहीं लगता, फिर विभेद कैसे करूँ। हाँ किसी को आपत्ति है मेरे कथन पर तो आकर ये लिख दे कि वो मेरा दुश्मन है। फिरहाल मुझे तो कोई पराया नहीं लगता, दुश्मन नहीं लगता, क्योंकि मस्त रहने वालों का कोई दुश्मन होता ही नहीं है।
आपके कमेन्ट में कुछ तल्खी का एहसास हो रहा है, कारण नहीं समझ आया।
आपसे एक प्रश्न-- आपके द्वारा सुझाए गए दो समूहों में से , आपको किस समूह में रखूँ ?
.
प्रवीण पाण्डेय जी ,
इतना सुन्दर आशीर्वाद देने के लिए आभार। सदा प्रसन्न ही रहूंगी, ऐसा संकल्प है। दुःख भरे दिन बीते रे भईया , सुख भरे दिन आयो रे....
अजय जी , हम आ रहे है दउड़ -दउड़ के बिलाग-बुलेटिन की टिरेन पकड़ने, तनिक ठहरें तो....
हर particle का anti-particle होता है या कहते है हर matter का anti matter| उसी तरह एक ब्लॉगर ,दूसरा एंटी-ब्लॉगर | जैसे पाकिस्तान का अस्तित्व एंटी-इंडिया कम्पेन से ही होता है ,उसी तरह बहुत से लोग दूसरों का विरोध कर ही अपनी रोजी रोटी चलाते हैं | आप मस्त रहिये और कहती रहिये " भैया के लाल जिए ..."|
दूसरी कैटेगरी वालों को नमस्कार (पहली वालों को भी)
प्रतुल जी, आपकी दर्शाई एक-दो कैटेगिरी में अपने मनमोहनसिंह जी भी आते है :)
दिव्या जी!...क्क्या खूब कही आपने...यह पोस्ट पढ़ कर इस विषय पर फिट होने वाला एक गाना याद आ रहा है....
ब्लोगर मेरा नाम...लिखना मेरा काम...
सह्रदय,भावुक,गुस्सैल,झगडालू..सब को मेरा प्रणाम!
हा हा हा अरुणा जी...गजब का गाना याद दिलाया...सबको मेरा प्रणाम....
:) सही कहा दिव्या जी मस्त रहो जहाँ रहो और अपना कर्म किये जाओ तभी ज़िन्दगी मे आनन्द है:)
हमेशा की तरह एक बार फिर लाजवाब कर दिया :)
-- सुन्दर बचन...
---मीमांसा का कथन है...सर्व सुखम् दुखम् ...
क्या कहें सब कुछ ही कह दिया जब आपने|
कौन मीटर बना पाया, सुख-दुःख को नापने |
.
डॉ श्याम,
चेहरे पर मुस्कान, आँखों में आँसू और लबों पर शिकायतें सब कुछ बयां कर देती है । फिर किसी पैमाने की दरकार नहीं जाती। :):):)
.
आपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टि की चर्चा दुबारा कल के चर्चा मंच पर राजेश कुमारी द्वारा की जायेगी आकर चर्चामंच की शोभा बढायें
Post a Comment